पूरे घर में हलचल मची हुई थी. कोई परदे बदल रहा था तो कोई नया गुलदस्ता सजा रहा था. अम्मा की आवाज रहरह कर पूरे घर में गूंज उठती, ‘‘किसी भी चीज पर धूल नहीं दिखनी चाहिए. बाजार से मिठाई आ गई या नहीं?’’
नित्या को यह हलचल, ये आवाजें बहुत भली लग रही थीं. फिर भी हृदय में विचित्र सी उथलपुथल थी. उस ने द्वार पर खड़े हो कर एक दृष्टि घर में हो रही सजावट पर डाली, और वह मीता को खोजने लगी. थोड़ी देर पहले तक तो उसी के साथ थी. उस की उंगलियों के नाखून सजाते हुए लगातार बोलती जा रही थी, ‘‘अब हाथ नहीं सजेंगे तो भला उन के सामने प्लेट बढ़ाती तुम्हारी उंगलियों पर ध्यान कैसे जाएगा जीजाजी का,’’ नित्या के दिमाग में पूरी घटना एकबारगी दौड़ गई.
मीता कैसे उसे चिढ़ाती हुई बोली, ‘‘क्या दहीबड़े बनाए हैं मैं ने. आने दो जरा, सजावट में इतनी लाल मिर्च डालूंगी कि ‘सीसी’ न कर उठें हमारे होने वाले जीजाजी तो कहना.’’
नित्या के मन में तो मीठीमीठी गुदगुदी हो रही थी पर ऊपर से क्रोध का दिखावा कर वह उसे डांटती भी जा रही थी, ‘‘चुप, मीतू, अभी वे कौन लगते हैं हम दोनों के?’’
‘‘हां भई, अभी कौन लगते हैं. अभी तो केवल देखनादिखाना हो रहा है.’’
फिर उस की हथेलियां छोड़ बोली, ‘‘तू भी दीदी, एकदम बोर है. वही पुराना जमाना लिए जी रही है. अपना तमाशा बनवाना,’’ यह कहने के साथ ही वह स्तब्ध सी हो उठी. नजरें झुकाए एकदम कमरे से बाहर निकल गई.
‘उफ, अब जाने कहां जा कर रो रही होगी, पगली,’ नित्या ने स्मृतियों को झटकते हुए सोचा तभी बड़ी ताई दनदनाती हुई उस के कमरे में आ गईं, ‘‘मीता कहां है?’’
‘‘पता नहीं,’’ उस ने कहा.
‘‘हूं…बता नहीं रहे तो ठीक है,’’ उन्होंने होंठ सिकोड़ कर कहा, ‘‘मैं ने तो सुबह ही छोटी को कह दिया था कि मीता को लड़के वालों के सामने न आने देना.’’
‘‘लेकिन ताई…’’ उस ने टोकना चाहा.
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‘‘लेकिनवेकिन कुछ नहीं. उस के कारण तू कब तक भुगतती रहेगी?’’
नित्या का मन अवसाद से भर उठा. पता नहीं ताई की बात में कितना सत्य है? मीता की एक छोटी सी भूल क्या उस के साथसाथ पूरे घर के लिए भी दुखों का पहाड़ बन गई है?
नित्या की आंखों में मीता की मस्तमौला छवि घूम गई. बचपन से ही अलमस्त सी हिरणी की तरह कुलांचें भरती. झूठे आडंबरों के विरुद्ध ऊंचीऊंची आवाज में बहस करती. जीवन के प्रति सदा अलग दृष्टिकोण अपनाकर चलने की धुन ने ही शायद उस से वह भूल हो जाने दी, जिस का पछतावा उस के जीवन से सारी उमंगें ही छीन ले गया.
कुछ देर को सब भूलभाल कर यदि वह खुश होती भी है तो ताई या मां सरीखी महिलाएं उसे पुरानी बातें याद दिला कर फिर से दुख के सागर में डूब जाने को विवश कर देती हैं.
नित्या को तैयार कराने की जिम्मेदारी ताई की बड़ी बहू पर थी. इस बीच नित्या ने कई बार मीता के बारे में जानना चाहा पर उसे टाल दिया गया. वह समझ गई कि मां ने मीता को एकांत में बैठने का आदेश दे दिया होगा ताकि लड़के वालों के सामने वह न पड़ने पाए.
लड़के वाले आ चुके थे और गहमागहमी बढ़ गई थी. सब के चेहरों पर नित्या के पसंद किए जाने की चिंता से अधिक संभवत: मीता का डर व्याप्त था. कहीं इन लोगों को भी भनक न लग गई हो कि लड़की की छोटी बहन अपने प्रेमी के साथ घर से भाग गई थी. हां, यही शब्द तो सब दोहराते हैं.
कितना भोंडा सा लगता है यह सब. क्या उस समय कोई भी मीता के हृदय में झांकना चाहता है? क्या बीतती होगी उस के मन पर. कैसी कोमल उमंगों के साथ सारे आडंबरों को अंगूठा दिखाती हुई वह अपने प्रेमी के साथ ब्याह रचाने गई थी.
वह भी इसलिए विवश हुई थी क्योंकि घर के सारे सदस्य एक विजातीय के साथ उस का विवाह करने को तैयार नहीं थे. कैसे उस ने अपने अरमानों का खयाली सेहरा उस व्यक्ति के सिर बांधा होगा और आर्य समाज मंदिर में चंद लोगों के समक्ष विवाह किया होगा.
इधर, हर तरफ उस की खोज के बाद पुलिस तक बात पहुंच गई थी. जब वह अपने पति के साथ स्कूटर पर घर वालों से मिलने आ रही थी, तभी पुलिस की जीप उन के पीछे लग गई.
मीता जल्दी से सीधे घर पहुंचना चाह रही थी कि तभी अचानक तेज रफ्तार के कारण घटी दुर्घटना में वह अपने सारे सपनों, सारे अरमानों से हाथ धो बैठी थी.
मीता अपने पति के शव पर ढंग से रो भी न पाई थी कि उसे घर वाले जबरदस्ती पकड़ कर ले आए थे.
मीता के ससुर ने एक पत्र द्वारा अपनी बहू को घर ले जाने का अनुरोध भी किया था पर उस के मातापिता ने उस विवाह को मान्यता देने से ही इनकार कर दिया था.
कई माह तक मीता एकदम गुमसुम हो गई थी. तब चुपकेचुपके नित्या ही उसे समझाती थी. लेकिन घर के शेष सदस्य उसे इस सब से बाहर निकलने ही नहीं दे रहे थे. एक भूल की उसे इतनी कठोर सजा मिलेगी, यह तो उस ने सोचा भी नहीं था. वह अपने ही घर में एक कैदी बना दी गई थी.
पढ़ाई बंद हो गई. समाज की दृष्टि से छिपा कर उसे घर के कार्यों में लगा दिया गया. अभी उस की बड़ी बहन कुंआरी थी. यदि मीता पर कठोर अनुशासन न बैठाया जाता तो नित्या का जीवन भी अंधकारमय हो जाता. हालांकि तमाम सावधानियों के बाद भी नित्या के विवाह में निरंतर बाधाएं आ रही थीं. इसलिए अब लड़के वालों से मीता को छिपाया जाता था.
मेज पर कई प्रकार की मिठाइयां, नमकीन और मेवे सजाए जा रहे थे. ताई की बहू अतिथियों को शीतल पेय पेश कर रही थी.
ताई, मां व पिताजी लड़के वालों के सामने जम कर बैठ गए. मीता को रसोई में चाय बनाने में व्यस्त कर दिया गया था. थोड़ी ही देर में नित्या चाय की ट्रे ले कर भाभी के साथ बैठक में आई तो सब की दृष्टि उस की तरफ उठ गई. मां व पिताजी की आंखें अतिथियों की नजरों की टोह लेने में जुट गईं.
मेहमानों में लड़का, उस के मातापिता, विवाहित बहन व छोटा भाई भी था. सभी उत्सुकता से नित्या को देख रहे थे. मातापिता नित्या से उस की पढ़ाई आदि के बारे में प्रश्न कर रहे थे.
नित्या से अधिक उन के प्रश्नों का उत्तर ताई दे रही थीं. तभी अचानक जैसे धमाका हुआ. लड़के के पिता ने नित्या से कहा, ‘‘बेटी, हम ने सुना था कि तुम 2 बहनें हो. तुम्हारी छोटी बहन दिखाई नहीं दे रही.’’
नित्या ने घबरा कर मां व पिताजी को देखा. ताई सहित सभी के चेहरे का रंग उड़ गया.
पिताजी ने स्थिति को संभालने के लिए कहा, ‘‘जी हां, वह बहुत शरमीली है. रसोई में व्यस्त है.’’
‘‘वाह, बहुत अच्छी चाय बनी है,’’ लड़के के पिता ने कहा. शेष मेहमान मुसकरा कर उन का साथ दे रहे थे.
तभी लड़के की मां ने कहा, ‘‘बुलाइए न उसे भी, मिल तो लें.’’
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पिताजी, मां तथा ताई आदि मन ही मन पिता को कोसने लगे कि आखिर वह घड़ी आ ही गई जिस का डर था. सब एकदूसरे का मुंह देख कर जैसे आंखों ही आंखों में पूछ रहे थे कि अब क्या करें.
‘‘जाओ बेटी, तुम बुला लाओ अपनी बहन को. आखिर अपने होने वाले जीजाजी से उसे भी तो मिलना चाहिए.’’
उन की इस बात पर घर वालों की आंखों में जहां यह संकेत पा कर चमक आ गई थी कि नित्या उन्हें पसंद आ गई है, वहीं आगे अब क्या होगा, यह सोच कर उन का सिर चकराने लगा.
ये लोग कुछ कहते, उस से पहले ही नित्या उठ कर अंदर चली गई. उस की आंखों में प्रसन्नता की लहर थी कि उसे पसंद कर लिया गया है. पीछे से ताई उठने लगीं तो लड़के की मां ने कहा, ‘‘आप बैठिए, वह ले आएगी.’’
ताई को मन मार कर बैठना पड़ा. नित्या ने मीता को पहले यह समाचार सुनाया कि उसे शायद पसंद कर लिया गया है. सुनते ही मीता की आंखों में प्रसन्नता के आंसू आ गए पर बाहर चलने के नाम पर उस के मन में भय की लहर दौड़ गई.
थोड़ी देर बाद लड़के की बहन जब भाभी के साथ वहीं आ गई तो मीता को बाहर जाना ही पड़ा.
मां और पिताजी के चेहरों का रंग बुरी तरह उड़ा हुआ था, जैसे सुख हाथ में आतेआते छीना जा रहा हो. मीता को उन लोगों ने अपने बीच में ही बैठा लिया.
लड़के की मां ने हंसते हुए कहा, ‘‘भई, छोटी बहनें तो सब से पहले बड़ी बहन के होने वाले पति को पसंद करने आती हैं. तुम तो अंदर ही छिपी बैठी थीं.’’
मीता ने मुसकरा कर गरदन झुका ली, लेकिन इस से पहले एक भयभीत दृष्टि मातापिता पर डाल ली.
वे लोग नित्या को छोड़ मीता से ही बातें करने लगे तो मां ने उन का ध्यान भंग करते हुए कहा, ‘‘आप लोग मेज तक चलें, नाश्ता ठंडा हो रहा है.’’
‘‘हांहां, वहां भी चलेंगे,’’ लड़के के पिता ने कहा, ‘‘लेकिन पहले अपने घर की सब से बड़ी बहू से कुछ बातें तो कर लें.’’
उन्होंने स्नेहपूर्वक मीता को देखा तो मां व पिताजी भय व आश्चर्य से एकदूसरे का मुख देखने लगे. सोचने लगे कि शायद इन लोगों ने नित्या की जगह मीता को पसंद कर लिया है.
तभी लड़के के पिता ने कहा, ‘‘आप लोग मेरी बात पर इतना परेशान न हों. हमें मालूम है कि आप की छोटी बेटी ने विवाह किया था. जिस घर की यह बहू है वह हमारे अभिन्न मित्र ही नहीं, सगे भाई से भी बढ़ कर हैं.’’
मीता की आंखों में सोया हुआ दर्द जाग उठा था. मातापिता की समझ में नहीं आ रहा था कि अब उन्हें क्या करना चाहिए.
तभी लड़के की मां ने कहा, ‘‘हम मानते हैं कि मीता ने कुछ जल्दबाजी की, पर एक भूल आप से भी हुई. अगर उस सत्य को आप स्वीकार कर लेते तो उस घर का इकलौता दीपक इस तरह बुझने से शायद बच जाता.’’
उन लोगों की आंखें नम थीं. लड़के के पिता बोले, ‘‘जो हुआ सो हुआ, अब हम अपनी बहू को पूरी मानमर्यादा से लेने आए हैं.’’
‘‘क्या मतलब?’’ अचानक नित्या के पिता ने चौंक कर कहा.
मीता के सिर पर हाथ फेरते हुए लड़के के पिता बोले, ‘‘बेटी, तुम्हारा खोया सुख तो वापस नहीं दे पाएंगे हम लेकिन दुख भी नहीं देंगे कभी. हमारा छोटा बेटा यदि तुम्हें पसंद हो तो हम दोनों बहनों को एक ही दिन विदा करवा कर ले जाएंगे.’’
मीता ने धीरेधीरे पलकें उठा कर उधर देखा. एक सलोना युवक मंदमंद मुसकरा रहा था. जैसे इतनी घुटन के बीच शीतल हवा का एक झोंका उस की राह में खुशियां बिखेरने को उत्सुक हो रहा हो.
मीता ने मातापिता की ओर देखा और दुख व संकोच से गरदन झुका ली. नहीं, अब कोई निर्णय वह स्वयं नहीं करेगी. मालूम नहीं, फिर कौन सी भूल कर बैठे.
लेकिन उस के मातापिता कदाचित अपनी सोच से बाहर निकल चुके थे. अनायास ही पिता ने उठ कर लड़के के पिता के दोनों हाथ थाम लिए, ‘‘हमें अपनी भूल का बहुत पछतावा है.’’
मां ने भी खुशी के आंसू पोंछते हुए कहा, ‘‘हम अपनी दोनों बेटियों का रिश्ता आज ही करने को तैयार हैं.’’
घर में अचानक ही चारों ओर खुशियां बिखर गई थीं. शगुन की रस्म से पहले साडि़यां पहनते हुए नित्या ने अचानक मीता के कान में कहा, ‘‘मीतू, तेरे ‘उस’ की प्लेट में कितनी मिर्च डालूं कि जन्मभर ‘सीसी’ करता रहे…?’’
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