फिल्म ‘मसान’ से हिंदी फिल्मों में चर्चित होने वाले विकी कौशल (Vicky Kaushal), एक्शन डायरेक्टर श्याम कौशल के बेटे है. बचपन से ही फ़िल्मी माहौल में पले और बड़े हुए विकी ने इंजिनीयरिंग की पढ़ाई पूरी की, पर उसे उस क्षेत्र में काम करने की रूचि नहीं थी. उसने थिएटर और नमित किशोर की एक्टिंग क्लासेज में ज्वाइन किया और फिल्मों की और बढ़े. पहले उसने कई छोटी-छोटी भूमिकाएं निभाई. फिल्म मसान उनके जीवन की टर्निंग पॉइंट साबित हुई, जिसमें उनके अभिनय को प्रसंशकों ने काफी तारीफ की, पुरस्कार मिले. इसके बाद फिल्म उरी- द सर्जिकल स्ट्राइक में भी उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार मिला. आज वे सफलता की सीढ़ी चढ़ रहे है और हर नयी प्रोजेक्ट में कुछ अलग ढूंढने की कोशिश कर रहे है. उनकी फिल्म भूत – हौंटेड शिप रिलीज पर है, उनसे मिलकर बात करना रोचक था, पेश है कुछ अंश.
सवाल-इस फिल्म को करने की खास वजह क्या है और भूत- प्रेत आदि पर कितना विश्वास रखते है?
जब मुझे इसकी स्क्रिप्ट सुनाई गयी थी तो मुझे लगा था कि ये कोई होरर रोमांटिक फिल्म होगी. मैं अधिकतर रात को कोई भी स्क्रिप्ट पढता हूं, मैंने इस स्क्रिप्ट को 3 घंटे तक पढ़ा और इतना डर गया था कि पानी लाने किचन तक नहीं गया. मैं किसी भी होरर फिल्म को अकेले नहीं, दोस्तों के साथ देखता हूं. इससे वह मजेदार हो जाती है. मैंने कुछ समय पहले एक भुतिया अंग्रेजी फिल्म ‘एनाबेल’ देखी थी, जो बहुत डरावनी थी. मैं पंजाब में अपने गाँव होशियारपुर जाने पर कई बार महसूस होता है कि भूत-प्रेत आसपास है, क्योंकि वहां लोग कई ऐसी कहानियां सुनाते है. इसके अलावा बचपन में ऐसा अनुभव होता था और डर भी लगता था. अब मैं विश्वास नहीं करता.
सवाल-आजकल आपकी फिल्में काफी सफल हो रही है, अलग-अलग फिल्मों में भी काम कर सफल हो रहे है, इसकी वजह क्या मानते है?
मेरी फिल्मों की सफलता को लोगों से सुनकर बहुत अच्छा लगता है. मेरा चरित्र ही सबको बहुत पसंद आता है. इससे मुझे और अच्छा करने की इच्छा होती है. असल में आज के दर्शक नयी चीजो को देखना पसंद करती है. उन्हें मेरा नया प्रयोग पसंद आता है और मेरे लिए ये जरुरी है. नए प्रयोग कर मुझे अपनी प्रतिभा को आगे बढ़ाना है.
सवाल-ऐसी फिल्मों को करने का अनुभव कैसा रहा?
सालों से होरर यहां कम बनती है, पर मुझे कुछ नया करने में पसंद आता है. मेरा कोई को- एक्टर इसमें नहीं है और शिप पर मैं अकेले ही चल रहा हूं, लेकिन एक भूत है जो मेरे साथ है. ऐसी फिल्मों के करने में एक सस्पेंस होता है, जिसमें रिएक्शन अंजान बने रहने की देना पड़ता है, जो मुश्किल होता है, इसलिए मैंने अपनी भूमिका को करने के बाद बार-बार परफोर्मेंस को देखा है.
सवाल-इंजीनियरिंग की पढाई के बाद फिल्मों में आना कैसे संभव हुआ?
मैं एक पढ़ाकू इंजीनियर हूं. काम मैं बहुत कुछ उस क्षेत्र में नहीं कर सकता था. जॉब मिलने पर उसे नहीं किया, क्योंकि मुझे अभिनय करना था. स्टेज पर मैं एक्टर था. मैंने अपनी ख़ुशी को अपना प्रोफेशन बनाया.
सवाल-परिवार का सहयोग कितना रहा?
फ़िल्मी परिवार है, पर उनका कहना था कि मैं अपनी पढ़ाई पूरी करूं. मैंने ग्रेजुएशन पूरा किया और अभिनय की बात कहने पर पिता ने एक्टर बनने का कारण पूछा, क्योंकि यहां कलाकार की हार्डवर्क, धैर्य और लगन सबकी परीक्षा ली जाती है. यहाँ बहुत लोग है जो इसी क्षेत्र में काम करना चाहते है. मुझे मेरे पिता के सहयोग से आगे नहीं आना था, क्योंकि मेरा बोझ मैं उनपर लादना नहीं चाहता था, इसलिए मैंने मेहनत की है और आज मैं अपने निर्णय से संतुष्ट हूं.
सवाल-स्टारडम को आप कितना एन्जॉय करते है?
मैं सफलता और असफलता को ठग मानता हूं. ये दर्शकों की देन है. इसे जितना आसानी से वह देती है उतना ही आसानी से उसे ले भी सकती है. ये काम पर निर्भर होता है. मैं अपनी जर्नी को सीरियसली लेता हूं. इससे ख़ुशी बहुत मिलती है. खुद से अधिक मैंने अपने माता-पिता की आँखों में ख़ुशी से आँखे नम होते हुए देखा है. मैंने अपने पिता को कहते हुए सुना है कि जब वे कामयाब हुए थे, तो उनके पिता उसे देखने के लिए जिन्दा नहीं थे, उन्होंने बेटे को संघर्ष करते हुए ही देखा था. मुझे इस बात की ख़ुशी है कि मुझे सफलता जल्दी मिली और मेरे माता-पिता भी इसके भागिदार बने.
सवाल-सफलता मिलने के बाद अपने आपको ग्राउंडेड रखना कितना मुश्किल होता है?
सुबह टाइम से न उठने पर मुझे जगाने के लिए माँ की बुलंद आवाज मुझे ग्राउंडेड रखने के लिए काफी होता है. वह अभी भी वैसा ही है. यह जरुरी है कि आप के आसपास रहने वाले आपको सच्चाई से जोड़े रखे, जो परिवार और दोस्त होते है. आज भी मैं अपने पुराने दोस्तों के साथ मिलकर समय बिताना पसंद करता हूं. हर फिल्म की पहली स्क्रीनिंग पर मेरे 15 कॉलेज के दोस्त पहली लाइन में आज भी बैठते है. असल जिंदगी में आने के लिए मैं अपने परिवार और दोस्तों के साथ समय बिताता हूं.
सवाल-आगे की योजनायें क्या है?
अभी उधम सिंह की शूटिंग ख़त्म हुई है. आगे और कई फिल्मों का काम चल रहा है. फिल्म तख़्त के बाद मानिक शॉ बनेगी. काम चलता रहता है.
सवाल-बायोपिक बनाना कितना मुश्किल होता है?
जिम्मेदारी बहुत होती है. जिसे लोग जानते है, उसके बारें में आप फ़िल्मी आज़ादी को नहीं ले सकते. इसका दायरा लिमिट होता है. श्याम मानिक शॉ की बायोपिक बनाने की घोषणा करने के बाद लोगों की प्रतिक्रिया मुझे मिलने लगी. इससे ये साबित होता है कि हर कोई इसे ठीक से करने की सलाह देते है और यही सबसे बड़ी चुनौती होती है.