रेटिंगः एक स्टार
निर्माताः अजय देवगन फिल्मस, पैनोरमा स्टूडियो, सेलेक्ट मीडिया
निर्देशकः अभिषेक दुधैया
कलाकारः अजय देवगन, सजय दत्त, सोनाक्षी सिन्हा, नोरा फतेही, शरद केलकर, अमी विर्क, अनुराग त्रिपाठी व अन्य.
अवधिः एक घंटा 53 मिनट
ओटीटी प्लेटफार्मः हॉटस्टार डिजनी
1971 के भारत पाकिस्तान युद्ध के वक्त गुजरात के भुज हवाई अड्डे के एअरबेस को पाकिस्तानी वायुसेना ने बमबारी से ध्वस्त कर दिया था. तब भुज हवाई अड्डे के तत्कालीन प्रभारी आईएएफ स्क्वाड्रन लीडर विजय कर्णिक और उनकी टीम ने मधापर व उसके आसपास के गांव की 300 महिलाओं की मदद से वायुसेना के एयरबेस का पुनः निर्माण किया था. उसी सत्य ऐतिहासिक घटनाक्रम पर सिनेमाई स्वतंत्रता के साथ फिल्मकार अभिषेक दुधैया फिल्म‘‘भुजः द प्राइड आफ इंडिया’’लेकर आए हैं. जो कि तेरह अगस्त की शाम साढ़े बजे से ‘‘हॉट स्टार डिजनी’पर स्ट्रीम हो रही है.
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कहानीः
15 अगस्त 1947 को आजादी के समय हिंदुस्तान का विभाजन होने पर पाकिस्तान व पूर्वी पाकिस्तान बना था. पाकिस्तान के प्रधान मंत्री याहया खान ने पूर्वी पाकिस्तान में जुल्म ढाते हुए चालिस लोगों को मौत के घाट उतार दिया था. जिसके चलते वहां के लोगों व शांतिवाहिनी ने विद्रोह किया था और फिर पाकिस्तान ने पूर्वी पाकिस्तान पर सैनिक आक्रमण किया था, तब भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भारतीय सेना को पाकिस्तान के खिलाफ भेजकर काफी हिस्से पर कब्जा कर लिया था और पूर्वी पाकिस्तान को बांगला देश बनाने में मदद की थी. इससे बौखलाए याहया खान ने भारत के पश्चिमी हिस्से में कच्छ से घुसकर भुज पर आक्रमण किया था. उस वक्त भुज एअरबेस के प्रभारी आईएएफ स्क्वार्डन लीडर विजय श्रीनिवास कार्णिक(अजय देवगन )थे. जबकि उनके कमंाडर आर के नायर(शरद केलकर)हैं. आर के नायर ने एक अपंग मुस्लिम महिला से शादी की है. तीन दिसंबर 1971 को विजय कार्णिक और उनकी पत्नी उषा (प्रणिता सुभाष ) की शादी की दसवीं सालगिरह मनायी जाती है. उसी वक्त भुज पर पाक सेना की तरफ से बमबारी की खबर आती है. विजय कार्णिक परेशान होते हैं. उधर पाक में मौजूद भारतीय जासूस हीना रहमानी पाक सेना के अगले कदमो की जानकारी पहुॅचती रहती है, जिसने पाक से सेना के उच्च अधिकारी से विवाह किया है. तो वहीं ‘रॉ अधिकारी रणछोड़दास पागी(संजय दत्त)हैं, जिन्हे मरूस्थल की अच्छी जानकारी है. वह रेगिस्तान की रेत कदमों के निशान देखकर बता देते हैं कि वह भारतीय सैनिक या पाक सैनिक के निशान हैं. रणछोड़ दास पागी चतुर चालाक है. वह पाक सेना को मूर्ख बनाकर आर के नायर को युद्ध जीतने की रणनीति बताता रहता है. पाक वायुसेना ने भुज एअरबेस को तहस नहस कर दिया है. अब कोई हवाई जहाज न इस एअरबेस पर उतर सकता है और न ही उड़ान भर सकता है. उधर पाक अपने 150 टैंक व 1800 सैनिको के साथ भुज पर कब्जा करने भेजता है. पाक जानता है कि अब भुज एअरबेस ठीक होने तक भारतीय सेना नही आ कसती. ऐसे में नियम के विपरीत जाकर स्वकार्डन लीडर विजय कार्णिक मधापुर गांव की 300 औरतों की मदद से भुज एअरबेस को ठीक कराने में सफल होते हैं. और पांच सौ सैनिक भुज एअरबेस पर उतरने में सफल हो जाते हैं.
लेखन व निर्देशनः
एक बेहतरीन व प्रेरणा दायक कहानी का लेखक, निर्देशक, एडीटर व वीएफएक्स ने बंटाधार कर दिया. पटकथा काफी कमजोर व भटकी हुई सी है. फिल्मकार ने फिल्म में एक साथ छह कहानियों और कई घटनाक्रम को पिरोने का प्रयास किया, जिन्हे दो घंटे के अंदर सही ढंग से पिरोना संभव नही. इसलिए किसी भी कहानी के साथ सही न्याय नही हो पाया. सिनेमाई स्वतंत्रता के नाम पर कुछ गाने व कुछ अतार्किक दृश्य भी जोड़े गए हैं. अफसोस की बात यह है कि फिल्म के ट्रेलर व प्रचार में दिखाए जा चुके गाने के हिस्से और कुछ संवाद गायब हैं. फिर भी एडीटर फिल्म में कसावट न ला पाए. क्योकि पटकथा ही हिचकोले लेते हुए ही आगे बढ़ती है. यह हालत तब है, जब इसे तीन लेखक और अतिरिक्त संवाद लेखक ने गढ़ा है. कई बार ऐसा लगा कि हम किसी टीवी सीरियल के अलग अलग हिस्से जोड़कर देख रहे हैं.
फिल्म में बेवजह धर्म, मंदिर व भगवान की मूर्तियों से जुड़े दृश्य पिरोए गए हैं. राष्ट्वाद को लेकर जिस तरह से बात की गयी है, वह भी प्रभावशाली नही है. जब जल्द से जल्द एअरबेस बनाने का संकट हो, उस वक्त एअर बेस बनाने जा रही औरतें अपनी नेता संुदर बेन के साथ ढोल नगारे के साथ भजन गाती हैं, यह अजीब सा लगता है. वर्तमान सरकार की विचारधारा के अनुरूप राष्ट्वाद को ठॅंूसने के चक्कर में ही फिल्म सही ढंग से नहीं बन पायी.
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वीएफएक्स भी बहुत घटिया है. एअरफोर्स को एअरबेस पर लेंड करने के लिए अजय देवगन ट्क का सहारा देने जा रहे है, उस वक्त जिस तरह से ट्क हिलता है, उससे एक नौसीखिया भी समझ जाएगा कि वीएफएक्स बहुत घटिया है. दुश्मन के एअर प्लेन को मार गिराने वाले दृश्य हों या गन फायरिंग के दृश्य हों, सभी वीडियो गेम जैसे ही हैं.
फिल्म की मूल कहानी ‘नारी सशक्तिकरण’ की है. किस तरह रातों रात एअरबेस को बनाने के लिए गांव की तीन सौ औरतें आती हैं और देश के लिए अपने घर की दीवारें तोड़कर वह ईंट वगैरह एअरबेस बनाने में लगा देती हैं. पर इस फिल्म में इन तीन सौ वीरांगनाओं को महत्व ही नही दिया गया. सोनाक्षी सिन्हा का फिल्म में आगमन लगभग सवा घंटे बाद होता है, पर उसके किरदार संुदर बेन का कोई असर नही दिखता. फिल्म में दो चार मिनट के दृश्य में एअरबेस को तीन सौ औरतों को जिस तरीके से बनाते हुए दिखाया है, वह भी अति बचकाना है. जब फिल्मकार कहानी की आत्मा की ही हत्या कर देता है, तो सब कुछ विखर जाता है.
संवाद भी प्रभावशाली नही है. ज्यादातर संवाद लोग वर्षों से सुनते आ रहे हैं. कुछ संवाद तो काफी विरोधाभासी हैं.
अभिनयः
विजय कार्णिक फिल्म के हीरो हैं, मगर विजय कार्णिक का किरदार निभाने वाले अजय देवगन ने साधारण अभिनय किया है. एक आर्मी आफिसर का जो ‘औरा’होना चाहिए, वह कहीं नजर ही नही आता. संजय दत्त भी नही जमे. जबकि अजय देवगन इससे पहले फिल्म‘तान्हाजीःद अनसंग वॉरियर’में कमाल का अभिनय कर चुके हैं. शरद केलकर ने ठीक ठाक अभिनय किया है. सोनाक्षी सिन्हा केवल खूबसूरत लगी हैं. नोरा फतेही ने एक्शन दृश्य अच्छे किए हैं, मगर उनके किरदार को ज्यादा जगह नही मिली. प्रणिता सुभाष का किरदार जबरन ठॅूंसा हुआ लगता है. संजय दत्त एक बार फिर चूक गए.