भूल किसकी: रीता की बहन ने उसके पति के साथ क्या किया?

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भूल किसकी- भाग 4: रीता की बहन ने उसके पति के साथ क्या किया?

प्रिंस जैसेजैसे बड़ा हो रहा था पापाजी उतने ही छोटे बनते जा रहे थे. दिनभर उस के साथ खेलना, उस के जैसे ही तुतला कर उस से बात करना. आज रीता की किट्टी पार्टी थी. प्रिंस को खाना खिला कर पापाजी के पास सुला कर वह किट्टी में जाने के लिए तैयार होने लगी. वैसे भी प्रिंस ज्यादा समय अपने दादाजी के साथ बिताता था, इसलिए उसे छोड़ कर जाने में रीता को कोई परेशानी नहीं थी.

जिस के यहां किट्टी थी उस के कुटुंब में किसी की गमी हो जाने की वजह से किट्टी कैंसिल हो गई और वह जल्दी घर लौट आई. बाहर तुषार की गाड़ी देख आश्चर्य हुआ. आज औफिस से इतनी जल्दी कैसे आना हुआ… अगले ही पल आशंकित होते हुए कि कहीं तबीयत तो खराब नहीं है, जल्दीजल्दी बैडरूम की ओर बढ़. दरवाजे पर पहुंचते ही ठिठक गई.

अंदर से रीमा की आवाजें जो आ रही थीं. रीमा को तो इस समय कालेज में होना चाहिए. यहां कैसे? कहीं पापाजी की बात सही तो नहीं है? गुस्से में जोर से दरवाजा खोला. अंदर का नजारा देखते ही उस के होश उड़ गए. तुषार तो रीता को देखते ही सकपका गया पर रीमा के चेहरे पर शर्मिंदगी का नामोनिशान नहीं था.

गुस्से से रीता का चेहरा तमतमा उठा. आंखों से अंगारे बरसने लगे. पूरी ताकत से रीमा को इसी समय कमरे से और घर से जाने को कहा. तुषार तो सिर  झुकाए खड़ा रहा पर रीमा ने कमरे से बाहर जाने से साफ इनकार कर दिया. रीता ने बहुत बुराभला कहा पर रीमा पर उस का कुछ भी असर नहीं हुआ.

हार कर रीता को ही कमरे से बाहर आना पड़ा. उस की रुलाई थमने का नाम ही नहीं ले रही थी. बड़ी मुश्किल से अपनेआप को संभाला और फिर हिम्मत कर तुषार से बात करने कमरे में गई और बोली ‘‘तुषार इस घर में या तो रीमा रहेगी या मैं,’’ उसे लगा यह सुन कर तुषार रीमा को जाने के लिए कह देगा.

मगर वह बोला, ‘‘रीमा तो यहीं रहेगी, तुम्हें यदि नहीं पसंद तो तुम जा सकती हो.’’

तुषार से इस जवाब की उम्मीद तो रीता को बिलकुल नहीं थी. अब उस के पास कहने को कुछ नहीं था.

सुचित्रा और शेखर ने भी रीमा को सम झाने की बहुत कोशिश की, पर अपनी जिद पर अड़ी रीमा किसी की भी बात सुनने को तैयार नहीं थी. अभी तक जो काम चोरीछिपे होता था अब वह खुल्लमखुल्ला होने लगा. रीता को तो अपने बैडरूम से भी बेदखल होना पड़ा. जिस घर में हंसी गूंजती थी अब वीरानी सी छाई थी. आखिर कोई कब तक सहे. इन सब का असर रीता की सेहत पर भी होने लगा. सुचित्रा और शेखर ने तय किया कि रीता उन के पास आ कर रहेगी वरना वहां रह कर तो घुटती रहेगी.’’

तुषार को प्रमोशन मिली थी. आज उस ने प्रमोशन की खुशी में पार्टी रखी थी. रीता जाना ही नहीं चाहती थी, लोगों की नजरों और सवालों से बचना जो चाहती थी. पार्टी में वह रीमा को ले कर गया.

पापाजी बहुत परेशान थे. उन्हें सम झ ही नहीं आ रहा था इस मामले को कैसे सुल झाया जाए. वे किसी भी कीमत पर रीता और प्रिंस को इस घर से जाने नहीं देना चाहते थे. उन के जाने के बाद वे कैसे जीएंगे. पर रोकें भी तो कैसे? इसी उधेड़बुन में लगे थे कि अचानक उन्होंने एक ठोस निर्णय ले ही लिया.

रीता का कमरा साफ करते हुए सुचित्रा ने शेखर से कहा, ‘‘पता नहीं मु झ से रीमा की परवरिश में कहां चूक हो गई.’’

‘‘कितनी बार तुम से कहा अपनेआप को दोष मत दिया करो सुचित्रा.’’

‘‘नहीं शेखर, यदि बचपन में ही उस की जिद न मानी होती तो शायद यह दिन न देखना पड़ता. जब भी उस ने रीता की किसी चीज पर हक जमाया हम ने हमेशा यह कह कर रीता को सम झाया कि छोटी बहन है दे दो, पर इस बार उस ने जो चीज लेनी चाही है वह कैसे दी जा सकती है?

‘‘सपने में भी नहीं सोचा था. रीमा रीता का घर ही उजाड़ देगी, काश मैं ने रीमा पर नजर रखी होती, उसे इतनी छूट न दी होती. ये सब मेरी भूल की वजह से हुआ.’’

रीता बैग में कपड़े रखते हुए सोच रही थी कि उस ने सपने में भी नहीं सोचा था कि यह दिन भी देखना पड़ेगा. तुषार भी बदल जाएगा. काश मैं ने पापाजी की बात को सीरियसली लिया होता. उन्होंने तो मु झे बहुत बार आगाह किया पर मैं सम झ ही नहीं पाई. जो कुछ हुआ उस में मेरी ही गलती है.

पापाजी के मन में उथलपुथल मची थी. वे रीता के पास जा कर बोले, ‘‘कपड़े वापस अलमारी में रखो. तुम कहीं नहीं जाओगी.’’

‘‘पर पापाजी मैं यहां रह कर क्या करूंगी जब तुषार ही नहीं चाहता?’’

‘‘क्या मैं तुम्हारे लिए कुछ भी नहीं? इस घर को घर तो तुम ने ही बनाया है. तुम चली जाओगी तो वीराना हो जाएगा. मैं कैसे जीऊंगा तुम्हारे और प्रिंस के बिना. अब तुम अपने बैडरूम में जाओ. यह घर तुम्हारा है.’’

‘‘जी पापाजी,’’ कह वह प्रिंस को ले कर सोने चली गई.

रात के 2 बज रहे थे. तुषार और रीमा अभी तक नहीं आए थे. पापाजी की आंखों की नींद उड़ गई थी. वे सोच रहे थे कि मैं तो बड़ा और अनुभवी था जब मु झे आभास हो गया था तो चुप क्यों बैठा रहा. सारी मेरी गलती है.

हरकोई इस भूल के लिए अपनेआप को दोषी ठहरा रहा था, जबकि जो दोषी था वह तो अपनेआप को दोषी मान ही नहीं रहा था. घड़ी ने 12 बजा दिए. पापाजी ने अंदर से दरवाजा लौक किया और आंखें बंद कर दीवान पर लेट गए. मन में विचारों का घुमड़ना जारी था. गेट खुलने की आवाज आते ही पापाजी ने खिड़की से देखा, तुषार गाड़ी पार्क कर रहा था. दोनों हाथों में हाथ डाले लड़खड़ाते हुए दरवाजे की ओर बढ़ रहे थे.

तुषार ने इंटर लौक खोला पर दरवाजा नहीं खुला, ‘‘यह दरवाजा क्यों नहीं खुल रहा?’’

‘‘हटो, मैं खोलती हूं.’’

पर रीमा से भी नहीं खुला.

‘‘लगता है किसी ने अंदर से बंद कर दिया है.’’

‘‘अरे, ये बैग कैसे रखे यहां?’’

‘‘रीता के होंगे. वह आज मम्मी के घर जा रही थी न.’’

तुषार ने दरवाजा कई बार खटखटाया पर कोई उत्तर न आने पर रीता को आवाज लगाई. पर तब भी कोई जवाब नहीं.

‘‘लगता है रीता गहरी नींद में है, पापाजी को आवाज लगाता हूं.’’

‘‘यह दरवाजा नहीं खुलेगा,’’ अंदर से ही पापाजी ने जवाब दिया.

‘‘देखो, दरवाजे पर ही एक तुम्हारा और एक रीमा का बैग रखा है.’’

‘‘यह घर मेरा है मु झे अंदर आने दीजिए.’’

‘‘बरखुरदार, तुम भूल रहे हो मैं ने अभी यह घर तुम्हारे नाम नहीं किया है.’’

‘‘पापाजी मैं इस समय कहां जाऊंगी?’’

‘‘यह फैसला भी तुम्हें ही करना है… इस घर में तुम्हारे लिए कोई जगह नहीं. जब तुम्हें पूरी तरह सम झ आ जाए कि तुम क्या कर रहे हो और कुछ ऐसा कि इस दरवाजे की एक और चाबी तुम्हें मिले, तब तक यह दरवाजा बंद सम झो.’’

दोनों का नशा काफूर हो चुका था. थोड़ी देर इंतजार किया कि शायद पापाजी दरवाजा खोल दें. मगर जब दरवाजा नहीं खुला तो गाड़ी स्टार्ट करते हुए बोला, ‘‘रीमा, चलो गाड़ी में बैठो.’’

रीमा ने कहा, ‘‘तुषार, मु झे घर पर उतार दो. तुम्हें तो रात को शायद होटल में रहना पड़ेगा,’’ रीमा को मन में खुशी भी थी कि बहन का घर तोड़ दिया पर यह डर भी था कि तुषार जैसा वेबकूफ पार्टनर कहीं हाथ से न निकल जाए.

‘‘तुषार भी शादी के दिन इतना सुंदर नहीं लगा था जितना आज लग रहा था.

कहते हैं जब व्यक्ति खुश होता है तो चेहरे पर चमक आ ही जाती है…’’

भूल किसकी- भाग 3: रीता की बहन ने उसके पति के साथ क्या किया?

पापाजी सभी मेहमानों का स्वागत उत्साहपूर्वक कर रहे थे. बीचबीच में शाम के प्रोग्राम की भी जानकारी ले रहे थे.

बहुत ही शानदार आयोजन था. लाइटें इतनी कि आंखें चौंधिया जाएं. कई व्यंजन, लजीज खाना… सभी तारीफ कर रहे थे.

तुषार भी शादी के दिन इतना सुंदर नहीं लगा था जितना आज लग रहा था. कहते हैं जब व्यक्ति खुश होता है तो चेहरे पर चमक आ ही जाती है. रीमा को तो तुषार का साथ वैसे भी अच्छा लगता था और आज उस की नजरें तुषार के चेहरे से हट ही नहीं रही थीं.

पापाजी ने सभी मेहमानों का आभार व्यक्त करते हुए कहा, ‘‘मैं ने सुना भर था कि बिन घरनी घर भूत का डेरा पर अब उस का अनुभव भी कर लिया. मेरा घर भूत के डेरे के समान ही था पर रीता ने आ कर उसे एक खूबसूरत और खुशहाल घर बना दिया. रीता ने घर ही नहीं घर में रहने वालों की भी काया पलट दी. मैं बहुत खुश हूं जो रीता जैसी बहू हमारे घर आई.’’

‘‘मेरे लिए भी घर एक सराय जैसा था जहां मैं रात गुजारने आता पर उस सराय को एक घर बनाने का श्रेय रीता को जाता है,’’ कहते हुए तुषार ने रीता का हाथ अपने हाथों में ले लिया.

सभी ने रीता की खूब तारीफ की. तभी अचानक रीता को चक्कर आ गया. वह गिरती उस के पहले ही तुषार ने संभाल लिया. सभी घबरा गए. डाक्टर को बुलाया गया. जितने लोग उतनी बातें. कोई बोला काम की अधिकता की वजह से चक्कर आया तो किसी ने कहा नींद पूरी नहीं हुई होगी, कोई कह रहा था ठीक से खाना नहीं खाया होगा. महिलाओं में एक अलग ही खुसरफुसर थी. सब से ज्यादा चिंता पापाजी और तुषार के चेहरे पर थी.

डाक्टर ने जैसे ही रीता के पैर भारी होने की सूचना दी मुर झाए चेहरे खिल उठे. पापाजी तो इतने खुश हुए जैसे खजाना हाथ लग गया हो. रीमा, रीता की खुशी में खुश नहीं थी वरन उसे इस बात की जलन हो रही थी कि तुषार जैसा जीवनसाथी उसे क्यों नहीं मिला. वह तुषार की ओर खिंचाव सा महसूस करने लगी थी. वह तुषार के करीब आने का कोई न कोई बहाने ढूंढ़ती रहती थी. रीता की तबीयत के बहाने उस घर में उस का आनाजाना बढ़ गया था. घर का माहौल पूरी तरह पलट गया था. अभी तक रीता तुषार और पापाजी का खयाल रखती थी. अब ये दोनों मिल कर रीता का खयाल रख रहे थे. कभीकभी मजाक में रीता पापाजी से बोल भी देती थी कि आप तो ससुर से सासूमां बन गए.

जैसेजैसे समय नजदीक आ रहा था पापाजी की चिंता बढ़ती जा रही थी. अब तो वे रीता की हर गतिविधि पर नजर रख रहे थे.

उस दिन सुबह से रीता अनमनी सी थी. बारबार लेट जाती थी. पापाजी ने तुषार को औफिस जाने से मना किया. ऐसा पहले भी हुआ जब पापाजी ने उसे औफिस जाने से मना किया और उस ने हर बार उन की बात मानी.

दोपहर होतेहोते रीता को दर्द शुरू हो गया. हालांकि डाक्टरों ने जो तारीख दी थी उस में अभी 7 दिन बाकी थे. मगर वे कोई रिस्क नहीं लेना चाहते थे, इसलिए तुरंत अस्पताल पहुंचे.

रीता डिलिवरीरूम में थी. बाहर पापाजी और तुषार चहलकदमी कर रहे थे.

नर्स ने कई बार टोका, ‘‘आप लोग आराम से बैठ जाएं डिलिवरी में अभी टाइम है.’’

वे 2 मिनट बैठते फिर चहलकदमी शुरू कर देते. जितनी बार नर्स बाहर आती उतनी ही बार पापाजी उस से पूछते कि रीता तो ठीक है न और वह हर बार मुसकरा कर जवाब देती, ‘‘सब ठीक है.’’

आखिर वह घड़ी आ ही गई जिस का उन्हें बेसब्री से इंतजार था. नर्स ने जैसे ही खबर दी पापाजी ने उस से पूछा, ‘‘रीता तो ठीक है न?’’

‘‘हां बिलकुल ठीक है पर आप ने यह नहीं पूछा कि बेटा हुआ या बेटी…’

‘‘उस से हमें कोई फर्क नहीं पड़ता. बस दोनों स्वस्थ होने चाहिए.’’

नर्स ने उन्हें अचरज से देखा और फिर अंदर चली गई.

अब चहलकदमी बंद हो गई थी. थोड़ी ही देर में नर्स कपड़े में लिपटे नवजात को ले कर बाहर आई. फिर तुषार को देते हुए बोली, ‘‘बेटा हुआ है.’’

तुषार ने पापाजी की ओर इशारा कर कहा कि पहला हक इन का है.

जैसे ही पापाजी ने उसे हाथों में लिया एकटक देखते रहे. उन्होंने कोशिश तो बहुत की, पर आंसुओं को न रोक पाए.

‘‘पापाजी क्या हुआ?’’ तुषार परेशान हो उठा.

बच्चे को तुषार को सौंपते हुए बोले, ‘‘कुछ नहीं आंखों से कुछ नहीं छिपा सकते… ये आंसू खुशी के हैं. मैं इतना खुश तो तेरे पैदा होने पर भी नहीं हुआ था जितना आज हूं. कभीकभी डर भी लगता है कहीं इन खुशियों पर किसी की नजर न लग जाए.’’

‘‘मूल से ब्याज जो प्यारा होता है,’’ तुषार ने हंस कर जवाब दिया.

‘‘अब बेबी मु झे दीजिए वैक्सिनेशन करना है.’’

‘‘सिस्टर, हम रीता से कब मिल सकते हैं?’’

‘‘थोड़ी देर बाद हम उसे रूम में शिफ्ट कर देंगे. तब मिल लेना.’’

‘‘8 नंबर रूम में जा कर आप लोग रीता से मिल सकते हैं,’’ थोड़ी देर बाद आ कर नर्स बोली.

पापाजी ने सम झदारी दिखाते हुए पहले तुषार को रीता से मिलने भेजा.

रीता का हाथ अपने हाथ में लेते तुषार ने कहा, ‘‘कैसी हो? थैंक्स मु झे इतना प्यारा गिफ्ट देने के लिए.’’

रीता ने मुसकराते हुए पूछा, ‘‘पापाजी कहां हैं?’’

‘‘बाहर हैं, अभी बुलाता हूं.’’

अंदर आते ही पापाजी ने रीता के सिर पर हाथ फेरते हुए पूछा, ‘‘ठीक तो हो न?’’

आज घर को फूलों से सजाया गया था. दरवाजे पर सुंदर सी रंगोली भी बनाई

गई थी. रीता अस्पताल से घर जो आने वाली थी. रीता और बच्चे का स्वागत पापाजी ने थाली बजा कर किया. पापाजी ने तो उस का नामकरण भी कर दिया ‘प्रिंस.’

रीता को देखभाल की जरूरत थी. सुचित्रा ने कुछ दिन यहीं रुकने का निश्चय किया तो रीमा की तो मन की मुराद ही पूरी हो गई. तुषार के साथ रहने का मौका जो मिल गया. ऐसा नहीं कि तुषार कुछ सम झता नहीं था. वह हमेशा कोशिश करता कि रीमा से दूर रहे. किसी से कुछ कह भी तो नहीं सकता था. वह जितना दूर होता रीमा उतना ही उस के करीब आने की कोशिश करती. उस की तो जिद थी कि तुषार को पाना है. पर तुषार तो रीता से खुश और संतुष्ट था. वह किसी भी कीमत पर उसे धोखा नहीं देना चाहता था.

प्रिंस के आने से पापाजी का बचपना लौट आया था. उन्हें तो मानो एक खिलौना मिल गया था, जिसे वे अपनी आंखों से एक पल के लिए भी ओ झल नहीं होना देना चाहते थे. नैपी बदलना, पौटी साफ करने जैसे कामों में भी कोई हिचक नहीं थी.

समय बीतते देर नहीं लगती. प्रिंस 1 साल का हो गया था. अब तो वह चलने भी लगा था. प्रिंस को खेलाने के बहाने रीमा का आना जारी था. दिनभर प्रिंस के पीछेपीछे पापाजी भागते रहते. रीता ने कई बार टोका भी कि पापाजी आप थक जाएंगे, आप के घुटनों का दर्द बढ़ जाएगा पर उन की दुनिया तो प्रिंस के इर्दगिर्द ही थी. वे पहले से ज्यादा खुश और स्वस्थ नजर आते थे.

आखिर जिस की उम्मीद नहीं थी वही हुआ. रीमा अपने मकसद में कामयाब हो गई. उस का छुट्टी के दिन आना और घंटों बतियाना, कभीकभी एक ही थाली में खाना खाना पापाजी की अनुभवी आंखों से छिप न सका. उन्हें आने वाले तूफान का आभास होने लगा था. उन्होंने इशारेइशारे में रीता को कई बार सम झाने की कोशिश की पर रीता को तो तुषार और रीमा पर इतना विश्वास था कि वह इसे पापाजी का वहम मानती.

आज फिर पापाजी ने रीता से बात की.

‘‘पापाजी, जीजासाली में तो मजाक चलता है. आप बेकार में परेशान होते हैं. ऐसा कुछ भी नहीं है उन दोनों के बीच.’’

भूल किसकी- भाग 2: रीता की बहन ने उसके पति के साथ क्या किया?

खिड़कियों से आती हवा और धूप ने जैसे कमरे को नया जीवन दिया. सफाई होते ही कमरा जीवंत हो उठा. रीता ने एक लंबी सांस ली. बदबू अभी भी थी. उसे उस ने रूम फ्रैशनर से दूर करने की कोशिश की.

कमरे में आते ही पापाजी ने मुआयना किया. खुली खिड़कियों से आती हवा और रोशनी से जैसे उन के अंदर की भी खिड़की खुल गई. चेहरे पर एक मुसकराहट उभर आई. पलट कर रीता की ओर देखा और फिर धीरे से बोले, ‘‘थैंक्स.’’

पापाजी को कोई बीमारी नहीं थी. वे मम्मीजी के जाने के बाद चुपचाप से हो गए थे. खुद को एक कमरे तक सीमित कर लिया था.

तुषार भी दिनभर घर पर नहीं रहता था और नौकरों से ज्यादा बात नहीं करता था. उस के चेहरे पर अवसाद साफ दिखाई देता था. ये सब बातें तुषार उसे पहले ही बता चुका था.

कमरे की तो सफाई हो गई, अब एक काम जो बहुत जरूरी था या वह था पापाजी को अवसाद से बाहर निकालना. वह थक गई थी पर इस थकावट में भी आनंद की अनुभूति हो रही थी. भूख लगने लगी थी. फटाफट नहाधो कर लंच के लिए डाइनिंगटेबल पर पहुंची.

‘‘उफ, कितनी धूल है इस टेबल पर,’’ रीता खीज उठी.

‘‘बहूरानी इस टेबल पर कोई खाना नहीं खाता इसलिए…’’

‘‘अरे रुको पारो… यह थाली किस के लिए ले जा रही हो?’’

‘‘पापाजी के लिए… वे अपने कमरे में ही खाते हैं न… हम वहां खाना रख देते हैं जब उन की इच्छा होती है खा लेते हैं.’’

‘‘लेकिन तब तक तो खाना ठंडा हो जाता होगा? 2 रोटियां और थोड़े से चावल… इतना कम खाना?’’

‘‘पापाजी बस इतना ही खाते हैं.’’

रीता की सम झ में आ गया था कि कोई भी अकेले और ठंडा बेस्वाद खाना कैसे खा सकता है. इसलिए पापाजी की खुराक कम हो गई है. उन की कमजोरी की यह भी एक वजह हो सकती है.

‘‘तुम टेबल साफ करो, पापाजी आज से यहीं खाना खाएंगे.’’

‘‘बहुरानी, कमरे से बाहर नहीं जाएंगे.’’

‘‘आएंगे, मैं उन्हें ले कर आती हूं.’’

पापाजी बिस्तर पर लेटे छत की ओर एकटक देख रहे थे. रीता के आने का उन्हें पता ही नहीं चला.

पापाजी, ‘‘चलिए, खाना खाते हैं.’’

‘‘मेरा खाना यहीं भिजवा दो,’’ वे धीरे से बोले.

‘‘पापाजी मैं तो हमेशा मांपापा और रीमा के साथ खाना खाती थी. यहां अकेले मु झ से न खाया जाएगा,’’ रीता ने उन के पलंग के पास जा कर कहा.

पापाजी चुपचाप आ कर बैठ गए. सभी आश्चर्य से कभी रीता को तो कभी पापाजी को देख रहे थे.

खाने खाते हुए रीता बातें भी कर रही थी पर पापाजी हां और हूं में ही जवाब दे रहे थे. रीता देख रही थी खाना खाते हुए पापाजी के चेहरे पर तृप्ति का भाव था. पता नहीं कितने दिनों बाद गरम खाना खा रहे थे. खाना भी रोज के मुकाबले ज्यादा खाया.

फिर रीता ने थोड़ी देर आराम किया. शाम के 6 बजे थे. फटाफट तैयार हुई. कमरे के इस बदलाव पर तुषार की प्रतिक्रिया जो देखना चाहती थी. बारबार नजर घड़ी पर जा रही थी. तुषार का इंतजार करना उसे भारी लग रहा था.

डोरबैल बजते ही मुसकराते हुए दरवाजा खोला. तुषार का मन खिल उठा. कौन नहीं चाहता घर पर उस का स्वागत मुसकराहटों से हो.

‘‘सौरी, देर हो गई.’’

‘‘कोई बात नहीं.’’

कमरे में पैर रखते हुए चारों ओर नजर घुमाई और फिर एक कदम पीछे हट गया.

‘‘क्या हुआ?’’ रीता ने पूछा.

‘‘शायद मैं गलत घर में आ गया हूं.’’

रीता ने हाथ पकड़ कर खींचते हुए कहा, ‘‘हां, आप मेरे घर में आ गए हो,’’ और फिर दोनों की सम्मिलित हंसी से कमरा भी मुसकरा उठा. रीता को अपने काम की प्रशंसा मिल चुकी थी.

पलंग पर बैठ कर तुषार जूते उतार कर हमेशा की तरह जैसे ही उन्हें पलंग के नीचे खिसकाने लगा रीता बोल पड़ी, ‘‘प्लीज, जूते रैक पर रखें.’’

‘‘सौरी, आगे से ध्यान रखूंगा,’’ कहते हुए उस ने जूते रैक पर रख दिए.

आदतें एकदम से नहीं बदलतीं. उन्हें समय तो लगता ही है. जैसे ही तुषार ने कपड़े उतार कर बिस्तर पर रखे रीता ने उठा कर हैंगर पर टांग दिए. बारबार टोकना व्यक्ति में खीज पैदा करता है, यह बात रीता बहुत अच्छी तरह सम झती थी. आदतन बाथरूम से निकल कर तौलिया फिर बिस्तर पर… जब मुसकराते हुए रीता उसे बाथरूम में टांगने गई तो तुषार को अपनी इस हरकत पर शर्म महसूस हुई. तभी उस ने तय कर लिया कि वह भी कोशिश करेगा चीजें व्यवस्थित रखने की.

‘‘अच्छा बताओ ससुराल में आज का दिन कैसे बिताया? मैं भी न… मु झे दिखाई दे रहा है दिनभर तुम ने बहुत मेहनत की.’’

‘‘पहली बात तो यह है यह ससुराल नहीं मेरा अपना घर है. इसे व्यवस्थित करना भी तो मेरा ही काम है.

फिर रीता ने पापाजी के कमरे की सफाई, पापाजी का डाइनिंग टेबल पर खाना खाना सारी बातें विस्तार से बताईं. तुषार को खुद पर नाज हो रहा था कि इतनी सुघड़ पत्नी मिली.

‘‘अरे, 9 बज गए. समय का पता ही नहीं चला. डिनर का भी समय हो गया. आप पहुंचिए मैं पापाजी को ले कर आती हूं.’’

फिर उन के कमरे में जा कर बोली, ‘‘पापाजी, चलिए खाना तैयार है.’’

इस बार पापाजी बिना कुछ कहे डाइनिंगटेबल पर आ गए.

‘‘पापाजी, मु झे अभी आप की और तुषार की पसंद नहीं मालूम, इसलिए आज अपनी पसंद से खाना बनवाया है.’’

‘‘तुम्हारी पसंद भी तुम्हारी तरह अच्छी ही होगी. क्यों पापाजी?’’

तुषार की इस बात का जवाब पापाजी ने मुसकराहट में दिया.

रीमा को घर के कामों से कोई मतलब नहीं था. रीता की शादी के बाद पापा को सारे काम अकेले ही करने पड़ते थे.

शादी को 1 साल होने वाला था. पापाजी अवसाद से बाहर आ गए थे. उन की दवाइयां भी बहुत कम हो गई थीं. अब वे कमरे में सिर्फ सोने जाते थे.

जैसे एक छोटा बच्चा दिनभर मां के आगेपीछे घूमता है वही हाल पापाजी का भी था. थोड़ी भी देर यदि रीता दिखाई न दे तो पूछने लग जाते. 1 साल में मुश्किल से 1-2 बार ही मायके गई थी. पापाजी जाने ही नहीं देते थे. वह स्वयं भी पापाजी को छोड़ कर नहीं जाना चाहती थी. मायका लोकल होने के कारण मम्मीपापा खुद ही मिलने आ जाते थे.

पापाजी अस्वस्थ होने के कारण अपने बेटे की शादी ऐंजौय नहीं कर पाए थे, इसलिए वे शादी की पहली सालगिरह धूमधाम से मनाना चाहते थे. इस के लिए वे बहुत उत्साहित भी थे. सारे कार्यक्रम की रूपरेखा भी वही बना रहे थे. आखिर जिस दिन का इंतजार था वह भी आ गया.

सुबह से ही तुषार और रीता के मोबाइल सांस नहीं ले पा रहे थे. हाथ में ऐसे चिपके थे जैसे फैविकोल का जोड़ हो. एक के बाद एक बधाइयां जो आ रही थीं. घर में चहलपहल शुरू हो गई थी. मेहमानों का आना शुरू था. कुछ तो रात में ही आ गए थे.

भूल किसकी- भाग 1: रीता की बहन ने उसके पति के साथ क्या किया?

जैसेही चाय में उबाल आया सुचित्रा ने आंच धीमी कर दी. ‘चाय के उबाल को तो कम या बंद किया जा सकता है पर मन के उबाल पर कैसे काबू पाया जाए? चाय में तो शक्कर डाल कर मिठास बढ़ाई जा सकती है पर जबान की मिठास बढ़ाने की काश कोई शक्कर होती,’ सोचते हुए वे चाय ले कर लौन में शेखर के पास पहुंचीं.

दोनों की आधी चाय खत्म हो चुकी थी. बाहर अभी भी खामोशी पसरी थी, जबकि भीतर सवालों का द्वंद्व चल रहा था. चाय खत्म हो कर कप रखे जा चुके थे.

‘‘शेखर, हम से कहां और क्या गलती हुई.’’

‘‘सुचित्रा अपनेआप को दोष देना बंद करो. तुम से कहीं कोई गलती नहीं हुई.’’

‘‘शायद कुदरत की मरजी यही हो.’’

एक बार बाहर फिर खामोशी छा गई. जब हमें कुछ सम झ नहीं आता या हमारी सम झ के बाहर हो तो कुदरत पर ही डाल दिया जाता है. मानव स्वभाव ऐसा ही है.

शेखर और सुचित्रा की 2 बेटियां हैं- रीता और रीमा. रीता रीमा से डेढ़ साल बड़ी है. पर लगती दोनों जुड़वां. नैननक्श भी काफी मिलते हैं. बस रीमा का रंग रीता से साफ है. भारतीयों की अवधारणा है कि गोरा रंग सुंदरता का प्रतीक होता है. जिस का रंग जितना साफ होगा वह उतना ही सुंदर माना जाएगा, जबकि दोनों की परवरिश समान माहौल में हुई, फिर भी स्वभाव में दोनों एकदूसरे के विपरीत थीं. एक शांत तो दूसरी उतनी ही जिद्दी और उग्र स्वभाव की.

वैसे भी ज्यादातर देखा जाता है कि बड़ी संतान चाहे वह लड़का हो या लड़की शांत स्वभाव की होती है. उस की वजह शायद यही है तुम बड़े/बड़ी हो, उसे यह दे दो, तुम बड़े हो उसे मत मारो, तुम बड़े हो, सम झदार हो भले ही दोनों में अंतर बहुत कम हो और छोटा अपनी अनजाने में ही हर इच्छापूर्ति के कारण जिद्दी हो जाता है. यही रीता और रीमा के साथ हुआ. आर्थिक संपन्नता के कारण बचपन से ही रीमा की हर इच्छा पर होती रही. मगर उस का परिणाम यह होगा, किसी ने सोचा नहीं था.

रीता सम झदार थी. यदि उसे ठीक से सम झाया जाए तो वह सम झ जाती थी पर रीमा वही करती थी जो मन में ठान लेती थी. किसी के सम झाने का उस पर कोई असर नहीं होता था. शेखर यह कह कर सुचित्रा को दिलासा देते कि अभी छोटी है बड़ी होने पर सब सम झ जाएगी. अब तो वह बड़ी भी हो गई पर उस की आदत नहीं बदली, बल्कि पहले से ज्यादा जिद्दी हो गई.

रीता के लिए तुषार का रिश्ता आया है पर सुचित्रा इस रिश्ते के लिए तैयार नहीं हैं, क्योंकि उस घर में कोई भी महिला सदस्य नहीं है. केवल तुषार और उस के बीमार पिता हैं. हर मां को अपनी बच्ची हमेशा छोटी ही लगती है. वह परिवार की इतनी बड़ी जिम्मेदारी निभा भी पाएगी इस में हमेशा संशय रहता.

शेखर के सम झाने और तुषार की अच्छी जौब के कारण अंत में सुचित्रा शादी के लिए मान गईं. रीता ने भी तुषार से मिल कर अपनी रजामंदी दे दी. शादी की तैयारियां जोरशोर से शुरू हुईं. रीमा भी खुश थी. तैयारियों में बढ़चढ़ कर हिस्सा ले रही थी. वह इस बात से ज्यादा खुश थी कि अब पूरे घर में उस का राज रहेगा और बातबात में मां द्वारा रीता से उस की तुलना भी नहीं होगी.

खैर, बिना किसी परेशानी के शादी हो गई. शेखर ने बहुत कोशिश की आंसुओं को रोकने की पर नाकाम रहे. बेटी की विदाई सभी की आंखें गीली करती है. अपने दिल का टुकड़ा किसी और को सौंपना वाकई कठिन होता है. पर तसल्ली थी कि रीता इसी शहर में है और 4 दिन बाद आ जाएगी. लड़की की विदाई के बाद घर का सूनापन असहज होता है. सुचित्रा तो बिखरे घर को समेटने में व्यस्त हो गईं.

ससुराल के नाम से ही हर लड़की के मन में डर समाया रहता है. रीता भी सहमी हुई ससुराल पहुंची. एक अनजाना सा भय था कि पता नहीं कैसे लोग होंगे. पर उस का स्वागत जिस आत्मीयता और धूमधाम से हुआ उस से डर कुछ कम हो गया.

‘‘वाह, तुषार बहू तो छांट कर लाया है… कितनी सुंदर है,’’ चाची ने मुंहदिखाई देते हुए तारीफ की.

‘‘भाभी, आप की मेहंदी का रंग तो बड़ा गाढ़ा है.’’

‘‘भैया की प्यारी जो है,’’ सुनते ही उस का चेहरा शर्म से लाल हो गया.

चुहल और हंसीखुशी के माहौल ने उस के डर को लगभग खत्म कर दिया. तुषार का साथ पा कर बहुत खुश थी. हनीमून पर जाने के लिए तुषार पहले ही मना कर चुका था. वह पापा को अकेला छोड़ कर नहीं जाना चाहता था. अपने पिता के प्रति प्रेम और परवाह देख रीता को बहुत अच्छा लगा. 4 दिन पता ही नहीं चला कैसे बीत गए.

पापा उसे लेने आ गए थे. घर पहुंचने पर उस ने देखा उस की सभी चीजों पर रीमा ने अपना हक जमा लिया है.

उसे बहुत गुस्सा आया पर शांत रही. बोली, ‘‘रीमा ये सारी चीजें मेरी हैं.’’

‘‘पर अब यह घर तो तुम्हारा है नहीं, तो ये सब चीजें मेरी हुईं न? ’’

‘‘रीता उदास होते हुए बोली, मम्मा, क्या सचमुच अब इस घर से मेरा कोई नाता नहीं?’’

‘‘यह घर हमेशा तेरा है पर अब एक और घर तेरा हो गया है, जिस की जिम्मेदारी तु झे निभानी है,’’ मां ने कहा.

अभी आए 2 ही दिन हुए थे पर पता नहीं जिस घर में पलीबढ़ी थी वह अपना सा क्यों नहीं लग रहा… तुषार की कमी खल रही थी जबकि दिन में 2-3 बार फोन पर बातें होती रहती थीं.

मेहमानों के जाने के बाद घर खाली हो गया था. तुषार उसे लेने आ गया. घर पर छोड़ कर जल्दी आने की कह तुषार औफिस चला गया. उस ने चारों ओर नजर घुमाई. उसे घर कम कबाड़खाना ज्यादा लगा. पूरा घर अस्तव्यस्त. उसे सम झ नहीं आ रहा था कि शुरुआत कहां से करे.

‘‘पारो.’’

‘‘जी, बहूरानी.’’

‘‘ झाड़ू कहां है? इस कमरे की सफाई करनी है. देखो कितना गंदा है… तुम ठीक से सफाई नहीं करती लगता.’’

‘‘अभी कर देती हूं.’’

दोनों ने मिल कर कमरा व्यवस्थित किया. बैडसीट बदली. तुषार की अलमारी में कपड़ों को व्यवस्थित किया. सारे सामान को यथास्थान रखा.

‘‘बहुरानी, इस कमरे की तो रंगत ही बदल गई. लग ही नहीं रहा कि यह वही कमरा है.’’

‘‘चलो अब पापाजी के कमरे की सफाई करते हैं.’’

‘‘पापाजी, आप ड्राइंगरूम में आराम कीजिए. हमें आप के कमरे की सफाई करनी है.’’

पापाजी ने अचरज से सिर उठा कर रीता की ओर देखा पर बोले कुछ नहीं, चुपचाप जा कर दीवान पर लेट गए.

कमरे में दवाइयों की खाली शीशियां, रैपर बिखरे पड़े थे. चादर, परदे भी कितने गंदे… पता नहीं कब से नहीं बदले गए. कमरे में सीलन की बदबू से रीता को खड़े रहना भी मुश्किल लग रहा था… इस बीमार कमरे में पापाजी कैसे स्वस्थ रह सकते हैं?

सब से पहले उस ने सारी खिड़कियां खोलीं. न जाने कब से बंद थीं. उन के खोलते ही लगा जैसे मृतप्राय कमरा सांस लेने लगा है.

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