Afwaah Movie Review: दिग्भ्रमित निर्देशक की अजीबोगरीब सोच का नतीजा फिल्म अफवाह

  • रेटिंगः डेढ़ स्टार
  • निर्माताः अनुभव सिन्हा
  • लेखकः सुधीर मिश्रा, निसर्ग मेहता, षिवा बाजपेयी
  • निर्देशकः सुधीर मिश्रा
  • कलाकारः नवाजुद्दीन सिद्दिकी, भूमि पेडणेकर, सुमित व्यास, षारिब हाशमी, सुमित कौल, ईषा चोपड़ा,  रॉकी रैना,  कविराज लायके व अन्य
  • अवधि: दो घंटे छह मिनट

1983 में फिल्म ‘‘जाने भी दो यारो’’ से लेखक के तौर पर शुरूआत करने वाले सुधीर मिश्रा ने 1987 में ‘यह वो मंजिल तो नही’ से लेखक व निर्देशक के रूप में कैरियर शुरू किया था. उसके बाद ‘में जिंदा हॅूं’, , ‘धरावी’, ‘इस रात की सुबह नहीं’, ‘कलकत्ता मेल’, ‘चमेली’, ‘यह साली जिंदगी’, ‘इंकार’ व‘सीरियस मैन’सहित लगभग अठारह फिल्में निर्देषित कर चुके हैं. अब तक वह हर फिल्म में बेबाकी से अपनी बात कहते आए हैं, मगर अपनी ताजातरीन 5 मई को सिनेमाघरों में प्रदर्षित फिल्म ‘‘अफवाह’’ में वह बुरी तरह से चुक गए हैं.

इस फिल्म में उन्होेने मां के जिस रूप को चित्रित किया है, उससे सहमत होना मुष्किल है. तो वहीं वह राजनीति का भी असली चेहरा नही दिखा पाए. सुधीर मिश्रा ने अपनी इस फिल्म में जिस बात की खिलाफत की है, काश वह और पूरी फिल्म इंडस्ट्ी उस बात को समझ कर सोशल मीडिया और अफवाह का सहारा छोड़ कर फिल्म मेकिंग पर ध्यान देने लगे तो सिनेमा का भला हो जाएगा. बतौर सह लेखक व निर्देशक सुधीर मिश्रा ने जो कुछ राजनीति में होते दिखाया है, क्या वह दावा कर सकते हंै कि वैसा ही फिल्म इंडस्ट्ी में नहीं हो रहा है. फिल्मसर्जक सुधीर मिश्रा की फिल्म ‘अफवाह’ के केंद्र में यह बात है कि अगर वायरल वीडियो या अफवाह बनाने वालों को ही वही वीडियो या अफवाह पलटकर डस ले तो क्या होगा?

कहानीः

कहानी शुरू होती है एक धर्म केंद्रित नेता विक्रम उर्फ विक्की सिंह के चुनाव प्रचार से. तो दूसरी तरफ अमरीका से वापस आए राहाब अहमद (नवाजुद्दीन सिद्दीकी) अब मातृभूमि के लिए काम करना चाहते हैं. वह अपनी औटोमैटिक कार में जा रहे हैं और राजनीतिक बात से बचने के लिए रेडियो चैनल स्विच कर जैज सुनते हैं.  क्योंकि वह एक हाई-प्रोफाइल साहित्यिक उत्सव में जा रहे हैं, जहाँ उनकी पत्नी की किताब का लोकार्पण समारोह हो रहा है. इधर विक्की सिंह (सुमीत व्यास) के राजनीतिक मार्च के दौरान या यॅूं कहें कि राजनीतिक शक्ति प्रदर्शन के दौरान सांप्रदायिक संघर्ष छिड़ जाता है. इस संघर्ष के दौरान कई लोग आततायियों से अपनी जिंदगी के लिए विनती करते हैं. तो वहीं विक्की सिंह के वफादार सहयोगी चंदन (शारीब हाशमी) एक कसाई की दुकान में घुसकर उसकी हत्या कर देते हैं. यह वीडियो वायरल हो जाता है. इस वीडियो को देखकर विक्की सिंह की मंगेतर निवेदिता सिंह उर्फ निवी (भूमि पेडनेकर) परेशान हो जाती हंै,  जो एक पूर्व राजनीतिक दिग्गज की बेटी हैं.  निवी को बेवजह हिंसा पंसद नहीं. यहीं से निवी व विक्की के बीच दूरियां बढ़ने गलती हैं. उधर पुलिस इंस्पेक्टर तोमर पर चंदन सिंह के खिलाफ काररवाही का दबाव बढ़ता है. तो विक्की सिंह, तोमर को चंदन सिंह की हत्या करने का आदेश दे देता है. , पुलिस इंस्पेक्टर तोमर ऐसा करने का प्रयास करते हैं, पर वह चंदन सिंह की बजाय एक निर्दोश संतोश की हत्या कर बैठते हैं. उधर विक्की से षादी न करने के लिए निवी घर से भागती है. विक्की के गुंडे उसे रास्ते में परेषान करते हैं. तब राहाब अहमद निवी की मदद के लिए आते हैं और वहां तमाषा देख रहे लोगेां से कहते है कि वह इन सभी का वीडियो बनाए. राहाब ख्ुाद भी वीडियो बनाने लगता है. विक्की के गंुडे उसका मोबाइल तोड़ देते हैं. इस बीच निवी , राहाब की गाड़ी में बैठ जाती तो राहाब अपनी गाड़ी चलाकर वहां से भागता है. विक्की के गंुडे उसक पीछे हैं. इस घटना का राजनीतिक फायदा उठाने के लिए विक्की सिंह,  राहाब के साथ निवी के होने को ‘लव जेहाद’ बताकर वीडियो वायरल करा देते हैं.  उधर संतोश को मारते हुए तोमर को चंदन देख चुका होता है, तो वह समझ जाता है कि यह विक्की के ही इषारे पर हुआ है. अब वह विक्की से भी दूर भागता है. विक्की एक मुस्लिम ड्ायवर के ट्क में सवार होकर जा रहा है. विक्की के साथी ट्क के नंबर प्लेट की तस्वीर खींचकर विक्की के पास भेजते हैं. तब विक्की दूसरा वीडियो वायरल करवाता है कि ट्क मे गायों को ले जाया जा रहा है.  इधर पुलिस इंस्पेक्टर तोमर के षारीरिक संबंध अपनी सहायक महिला पुलिस इंस्पेक्टर(टी जे भानू ) के साथ हैं. महिला पुलिस इंस्पेक्टर को पता है कि तोमर षादीशुदा है, पर वह ऐसा अपनी मां के इषारे पर ऐसा कर रही है. लेकिन संतोश की हत्या के बाद से वह महिला पुलिस अफसर अपनी चाल चलने लगती है.  कहानी कई मोड़ों से होकर गुजरती है. ट्क ड्ायवर क ेअलावा चंदन सिंह मारे जाते हैं. अब ट्क के अंदर निवी और विक्की सिंह है. भीड़ ट्क पर हमला कर विक्की सिंह को राहाब समझकर पीट पीट कर मार डालती है. अंततः निवी चुनाव जीत जाती है.

लेखन व निर्देशन:

फिल्म ‘अफवाह’ देखकर इस बात का अहसास नही होता कि यह फिल्म सुधीर मिश्रा के तेवर की फिल्म है. बल्कि यह किसी अजेंडे के तहत बनायी गयी फिल्म होने का अहसास दिलाती है. व्हाट्सएप युनिवर्सिटी के फॉरवर्ड संदेश और वायरल होने वाली अफवाहों के खतरनाक परिणामो ंसे लोग वाकिफ हैं. लोग समझने लगे है कि इस तरह की अफवाहें ही माॅब लिंचिंग को बढ़ावा देती हैं. तो वहीं हर राजनीतिक दल व राजनेता अपने व्यक्तिगत और राजनीतिक लाभ के लिए तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश करता है. फिल्मकार ने अपने अंदाज में नफरत की प्रचलित राजनीति,  सामाजिक ध्रुवीकरण और गहरी जड़ें जमा चुकी पितृसत्ता की निंदा जरुर की है, मगर वह प्रभावी तरीके से कुछ नही कह पाए. एक दृष्य है जहां निवी यानी कि अभिनेत्री भूमि पेडण्ेाकर एक किरदार से कहती हंै कि उसने वीडियो को सच क्यांे मान लिया. उसने यह क्यों नहीं सोचा कि वह वीडियो कितना सही है या किस मकसद से बनाया गया है. मगर इससे अधिक कोई बात नहीं की गयी. जबकि इस पर दोनों किरदारांे के बीच ऐसी लंबी बात होनी चाहिए थी, जिससे फिल्म क्या कहना चाहती हैवह दर्षक तक पहुॅच पाता. पर फिल्मकार बुरी तरह से यहां मात खा गए.  सुधीर मिश्रा को ‘अफवाह’ और मौलिक वीडियो के साथ छेड़छाड़ कर बनाए गए वीडियो में अंतर नही पता, यह आष्चर्य की बात है. फिल्म में हाथ जोड़कर दया की भीख माँगते हुए आदमी का दृश्य सहित कुछ दृष्य गुजरात दंगों की चर्चित तस्वीरों की याद दिलाते हैं. आखिर फिल्मकार कब तक एक ही दृष्य को भुनाते रहेंगें? जिन लोगो ने सुधीर मिश्रा की फिल्म ‘इस रात की सुबह नहीं’ देखी है, उनकी समझ मे आ जाएगा कि फिल्मकार अभी भी उस फिल्म से बहुत आगे नहीं बढ़ पाए हैं. इस फिल्म में भी कारपोरेट जगत का ंइसान अनजाने में अपराध जगत के लोगों में फंस जाता है और फिल्म का हीरो है, इसलिए उसी तरह पलटकर वार भी नही करता.  फिल्मकार सुधीर मिश्रा का संबंध राजनीतिक परिवार से रहा है. इसलिए वह राजनीति को गहराई से समझते हैं. इसी वजह से वह अतीत में ‘यह वो मंजिल तो नहीं’ और ‘हजारों ख्वाहिशें ऐसी’जैसी जमीनी मुद्दों व युवाओं की भागीदारी पर आधारित फिल्में बनाकर खुद को बेहतरीन लेखक निर्देशक के रूप में स्थापित कर चुके हैं. मगर ‘अफवाह’ तो महज एक अजेंडे वाली फिल्म बनकर रह गयी है. अफसोस तीनों लेखक सुधीर मिश्रा,  निसर्ग मेहता और शिव बाजपेयी ने जिस समाज को समझने का दावा करते हुए महिला पुलिस की मंा के किरदार को गढ़ा है, उसे कदापि स्वीकार नही किया जा सकता. आज जब हर नारी स्वतंत्र है और ‘मेरा शरीर मेरा हक’ की बात करती हो, उस दौर में एक मां अपनी बेटी को एक षादीशुदा पुरूश से संबंध स्थापित करने के लिए समझाए, अजीब नही लगता.  इतना ही नही फिल्मकार नवाजुद्दीन सिद्दकी के किरदार को भी ठीक से चित्रित नही कर पाए. इस किरदार को लेकर वह पूरी तरह से दिग्भ्रमित नजर आते हैं.

अभिनयः

जहां तक अभिनय का सवाल है तो ‘यशराज फिल्मस’ की सहायक कंपनी ‘यशराज टैलेंट्स’ की कलाकार भूमि पेडणेकर ने जब अभिनय जगत में कदम रखा था, तब उनमें काफी संभावनाएं नजर आयी थीं. लेकिन धीरे धीरे ‘यशराज टैंलेंट्स’ के इषारे पर वह ‘कंुए का मेठक’ बनकर रह गयी हैं. न उनकी अभिनय क्षमता का विकास हो रहा है और न सोच का. इसी कारण वह अपने हर किरदार को एक ही तरह से घिसे पिटे अंदाज में निभाते हुए नजर आने लगी हैं. निवेदिता उर्फ निवी के किरदार में भी वह कुछ नया नही कर पायी. जबकि इस किरदार में उनके पास अपनी अभिनय क्षमता के नए अंदाज को दिखाने के अवसर थे. पर वह हर दृष्य में एक जैसा ही अभिनय करते हुए नजर आती हैं. षायद वह इस बात से खुश हैं कि उन्हे उनकी क्षमता से कहीं ज्यादा बड़ी फिल्में मिल रही हैं. पर वह यह भूल रही है कि वह इस तरह से उसी डाल को काट रही हैं, जिस पर वह बैठी हैं. इसी वजह से ‘शुभ मंगल ज्यादा सावधान’,  ‘भूत’,  ‘डॉली किट्टी और वो चमकते सितारे’,  ‘दुर्गामती’,  ‘बधाई दो’,  ‘रक्षा बंधन’, ‘गोविंदा नाम मेरा’ और ‘भीड़’ जैसी फिल्में बाक्स आफिस पर अपना जलवा नही विख्ेार पायीं. जब वह एक युवक से वीडियो को सच न मानने की बात करती है, उस वक्त तो उनका अभिनय एकदम घटिया है.  राहाब अहमद के किरदार में नवाजुद्दीन सिद्दकी ने अपनी तरफ से कुछ रस डालने का प्रयास किया है. पर हकीकत में उनके हाथ बंधे हुए नजर आते हैं, क्योंकि लेखक व निर्देशक ने उनके किरदार को सही ढंग से विस्तार ही नही दिया. वैसे भी अतीत में उनकी कुछ फिल्में पहले ही निराश कर चुकी हैं. नेता विक्रम सिंह उर्फ विक्की के किरदार में सुमित व्यास अवष्य प्रभावित करते हैं. षारिब हाशमी भी इस फिल्म में अपने अभिनय का कोई नया पक्ष नहीं दिखा पाए. फिल्म खत्म होने पर दर्षक के दिमाग में अभिनेत्री टी जे भानू रह जाती हैं, जिसे अनचाहे महज अपनी मां के कहने पर अपने वरिष्ठ पुलिस इंस्पेक्टर संग जिस्मानी रिष्ते बनाने पड़ते हैं, उस वक्त उसके चेहरे के भाव बहुत कुछ कह जाते हैं. दो पाटों के बीच फंसी एक नारी की व्यथा को टी जे भानु ने बहुत अच्छे ढंग से पेश किया है.

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रेटिंगः डेढ़ स्टार

निर्माताःजी स्टूडियो, कलर येलो प्रोडक्शन और अलका हीरानंदानी

निर्देशकः आनंद एल राय

लेखकः कनिका ढिल्लों और हिमांशु शर्मा

कलाकारः अक्षय कुमार, भूमि पेडणेकर, सहजमीन कौर, साहिल मेहता, दीपिका खन्ना, सदिया खतीब,  स्मृति श्रीकांत, सीमा पाहवा, नीरज सूद व अन्य.

अवधिः एक घंटा पचास मिनट

बौलीवुड में आनंद एल राय की गिनती सुलझे हुए, बेहतरीन व समझदार निर्देशक के रूप में होती है.  ‘तनु वेड्स मनु’,  ‘रांझणा’, ‘तनु वेड्स मनु रिटर्न’जैसी सफलतम फिल्मों के निर्देशन के बाद वह फिल्म निर्माण में व्यस्त हो गए. आनंद एल राय ने ‘निल बटे सन्नाटा’, ‘हैप्पी भाग जएगी’’,  ‘शुभ मंगल सावधान’ व तुम्बाड़’जैसी बेहतारीन व सफल फिल्मों का निर्माण किया. इसके बाद उनके अंदर अजीबोगरीग परिवर्तन नजर आने लगा. और पूरे तीन वर्ष बाद जब बतौर निर्माता व निर्देशक ‘जीरो’ लेकर आए, तो यह फिल्म बाक्स आफिस पर भी ‘जीरो’ ही साबित हुई. इसके बाद फिल्मकार के तौर पर उनका पतन ही नजर आता रहा है. बतौर निर्देशक उनकी पिछली फिल्म ‘अतरंगी रे’’ भी नही चली थी. अब बतौर निर्माता व निर्देशक उनकी उनकी नई फिल्म ‘‘रक्षाबंधन’’ 11 अगस्त को सिनेमाघरों में पहुंची है. इस फिल्म से भी अच्छी उम्मीद करना बेकार ही है. सच यही है कि ‘तनु वेड्स मनु’ या ‘रांझणा’ का फिल्मकार कहीं गायब हो चुका है. मजेदार बात यह है कि फिल्म ‘‘रक्षाबंधन’’ के ट्ेलर को दिल्ली में आधिारिक रूप से रिलीज करने से एक दिन पहले मुंबई में ट्ेलर दिखाकर अनौपचारिक रूप से जब अनंद एल राय ने हमसे बातें की थी, तो उस दिन उन्होने काफी समझदारी वाली बातें की थी. हमें लगा था कि उनके अंदर सुधार आ गया है. मगर दिल्ली में ट्रेलर रिलीज कर वापस आते ही वह एकदम बदल चुके थे. फिर उन्होने  अपनी फिल्म को लंदन व दुबई में जाकर प्रमोट किया. दिल्ली,  इंदौर,  लखनउ,  चंडीगढ़,  जयपुर, कलकत्ता,  पुणे,  अहमदाबाद,  वडोदरा सहित भारत के कई शहरों में ‘रक्षाबंधन’’ के प्रमोशन के लिए सभी कलाकारांे के साथ घूमते रहे. कलाकारों के लिए बंधानी साड़ी से जेवर तक खरीदते रहे. हर इंवेंअ पर लाखों लोगों का जुड़ा देख खुश होेते रहे. पर अब उन्हे ख्ुाद सोचना होगा कि हर शहर में जितनी भीड़ उन्हे देखने आ रही थी, उसमें से कितने प्रतिशत लोगों ने उनकी फिल्म देखने की जहमत उठायी. लोग सिनेमाघर मे अपनी गाढ़ी व मेहनत की कमाई से टिकट खरीदने के बेहतरीन कहानी देखते हुए मनोरंजन के लिए जाता है. जिसे ‘रक्षाबध्ंान’ पूरा नहीं करती. फिल्म का नाम ‘रक्षाबंध्न’ है, मगर इसमें न तो भाई बहन का प्यार उभर कर आया और न ही दहेज जैसी कुप्रथा पर कुठाराघाट ही हुआ.

कहानीः     

कहानी का केंद्र दिल्ली के चंादनी चैक में गोल गप्पे@ पानी पूरी यानी कि चाट बेचने वाले लाला केदारनाथ(अक्षय कुमार) और उनकी चार अति शरारती बहनों के इर्द गिर्द घूमती है. जिन्होने मृत्यू शैय्या पर पहुंची अपनी मां को वचन दिया था कि वह अपनी चारों छोटी बहनों की उचित शादी करवाने के बाद ही अपनी प्रेमिका सपना(  भूमि पेडणेकर) संग विवाह रचाएंगे. यह चारों बहने भी अपने आप में विलक्षण हैं. एक बहन दुर्गा (दीपिका खन्ना), जरुरत से ज्यादा मोटी हैं. एक बहन सांवली ( स्मृति श्रीकांत  ) , जबकि एक बचकाने लुक (सहजमीन कौर ) हैं. चैथी बहन गायत्री(सादिया खतीब) खूबसूरत व सुशील है. लाला केदारनाथ जिस चाट की दुकान पर बैठते हैं, वह उनके पिता ने शुरू किया था, जिस पर लिखा है ‘गर्भवती औरतें बेटे की मां बनने के लिए उनकी दुकान के गोल गप्पे खाएं. अब अपने पारिवारिक मूल्यों को कायम रखते हुए अपनी बहनों की शादी कराने के लाला केदारनाथ के सारे प्रयास विफल साबित हो रहे हैं. उधर सपना के पिता हरिशंकर(नीरज सूद) सरकारी नौकर हैं और उनके रिटायरमेंट में महज आठ माह बचे हैं. वह रिटायरमेंट से पहले ही अपनी बेटी सपना की शादी करवाने के लिए लाला केदारनाथ पर बीच बीच में दबाव डालते रहते हैं.

लाला केदारनाथ अपनी बहनों की शादी नही करवा पा रहे हैं. क्योंकि वह उस कर्ज की हर माह लंबी किश्त चुका रहे हैं, जिसे द्वितीय विश्व युद्ध के समय उनके पिता ने लिया था. इसके अलावा हर बहन की शादी में दहेज देने के लिए बीस बीस लाख रूपए नही हैं. किसी तरह जुगाड़कर 18 लाख रूपए दहेज में देकर वह मैरिज ब्यूरो चलाने वाली शानू (सीमा पाहवा ) की मदद से एक बहन गायत्री की शादी करवा देते हैं. उसके बाद अचानक हरीशंकर रहस्य खोलते हैं कि उन चारों बहनों के लाला केदारनाथ सगे भाई नही है. लाला केदारनाथ के पिता ने एक बंगले के सामने से उठाकर अपने रूार में नौक के रूप में काम करने के लिए लेकर आए थे, पर केदारनाथ मालिक ही बन बैठे. यहीं पर इंटरवल हो जाता है.

इंटरवल के बाद कहानी आगे बढ़ती है. अन्य बहनों की शादी के लिए लाला केदारनाथ अपनी एक किडनी बेचकर घर उसी दिन पहुंचते हैं, जिस दिन रक्षाबंधन है. तभी खबर आती है कि गायत्री ने आत्महत्या कर ली. और सब कुछ अचानक बदल जाता है. उसके बाद लाला केदारनाथ दूसरी बहनों की शादी करा पाते हैं या नही. . आखिर सपना व केदारनाथ की शादी होती है या नही. . इसके लिए तो फिल्म देखनी पड़ेगी. ?

लेखन व निर्देशनः

फिल्म ‘रक्षाबंधन’’ देखकर यह अहसास नही होता कि यह फिल्म ‘तनु वेड्स मनु ’ और ‘रांझणा’ जैसे फिल्मसर्जक की है. फिल्म की पटकथा अति कमजोर, भटकी हुई और गफलत पैदा करने वाली है. जब हरीशंकर को पता है कि लाला केदारनाथ तो भिखारी था, जिसे नौकर बनाकर लाया गया था, तो ऐसे इंसान के साथ हरीश्ंाकर अपनी बेटी सपना का विवाह क्यों करना चाहते हैं? फिल्म में इस सच को ‘जोक्स’ की तरह कह दिया जाता है. इसके बाद इस पर फिल्म में कुछ खास बात ही नही होती. इंटरवल तक फिल्म लाला केदारनाथ यानी कि अक्षय कुमार की झिझोरेपन वाली उझलकूद, मस्ती व स्तरहीन जोक्स के साथ स्टैंडअप कॉमेडी के अलावा कुछ नही है. इंटरवल से पहले एक दृश्य है. चांदनी चैक की व्यस्त गली में एक बेटे का पिता खुले आम कहता है,  ‘‘हमने अपनी बेटी की शादी के दौरान दहेज दिया था,  इसलिए हम अपने बेटे की शादी के लिए दहेज की मांग कर सकते हैं. ‘‘ कुछ दश्यों के बाद जब एक सामाजिक कार्यकर्ता जनता से दहेज को हतोत्साहित करने का आग्रह करती है,  तो लाला केदारनाथ ( अक्षय कुमार ) गर्व से उस महिला से कहते हैं कि दहेज की निंदा करना आसान है. जब आपकी दो लड़कियां हैंं,  लेकिन अगर दो बेटे होंते, तो आप निंदा न करती. चांदनी चैक के हर इंसान का समर्थन लाला केदारनाथ को मिलता है.

लेकिन जब गायत्री दहेज के चलते मारी जाती है, तब शराब के नशे में केदारनाथ दहेज का विरोध करते हुए अपनी बहनों की शादी में दहेज न देने का ऐलान करते हैं. अब इसे क्या कहा जाए?? कुल मिलाकर यह फिल्म ‘‘दहेज ’’की कुप्रथा पर भी कुठाराघाटनही कर पाती.  हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हमारे देश मंे शराब के नशे में इंसान जो कुछ कहता है, उसे गंभीरता से नहीं लिया जाता. आनंद एल राय ने शायद 21 वीं सदी में भी साठ के दशक की फिल्म बनायी है, जहां जमींदार व साहूकारों का अस्तित्व है, तभी तो द्वितीय विश्व युद्ध के वक्त अपने पिता द्वारा लिए गए कर्ज को केदारनाथ चुका रहे हैं. कुल मिलाकर कमजोर व भटकी हुई पटकथा तथा औसत दर्जे के निर्देशन के चलते ‘दहेज विरोधी’ संदेश प्रभावी बनकर नहीं उभरता. इसके अलावा इस विषय पर अब तक सुनील दत्त की फिल्म ‘यह आग कब बुझेगी’ व ‘वी.  शांताराम’ की ‘दहेज’ सहित सैकड़ों फिल्में बन चुकी हैं.   पर दहेज प्रथा का उन्मूलन 21 वीं सदी में भी नही हुआ है.

गायत्री की मौत पर पुलिस बल की मौजूदगी में गायत्री की ससुराल के पड़ोसी चिल्ला चिल्लाकर आरोप लगाते हैं कि महज एक फ्रिज की वजह से गायत्री की हत्या की गयी है. मगर पुलिस मूक दर्शक ही बनी रहती है. बहनांे के लिए कुछ भी करने का दावा करने वाला भाई लाला केदारनाथ सिर्फ शराब पीकर आगे दहेज न देने का ऐलान करने के अलावा कुछ नही करता. फिल्म न तो न्याय की लड़ाई लड़ती है और न ही दहेज विरोधी कोई सशक्त संदेश ही देती है. यह लेखकद्वय और निर्देशक की ही कमजोरी है.

फिल्म के निर्देशक आनंद एल राय कभी टीवी से जुड़े रहे हैं. उनके बड़े भाई रवि राय ‘सैलाब’ सहित कई उम्दा व अति बेहतरीन सीरियल बना चुके हैं, उनके साथ आनंद एल राय बतौर सहायक काम कर चुके हैं. उन्ह दिनों जीटीवी पर एक सीरियल ‘अमानत’आया करता था. जिसमें लाला लाहौरी राम अपनी सात बेटियों की शादी के लिए चिंता में रहते हैं, मगर सभी की शादी हो जाती है. इसमें फिल्म ‘लगान’ फेम ग्रेसी सिंह, पूजा मदान, स्मिता बंसल, सुधीर पांडे, श्रेयश तलपड़े और रवि गोसांई जैसे कलाकार थे. काश आनंद एल राय और लेखकद्वय ने इस सीरियल की एक पिता औसात लड़कियों के किरदारों से कुछ सीखकर अपनी फिल्म ‘‘रक्षाबंधन’’ के किरदारों को गढ़ा होता?इतना ही नही लेखक व निर्देशक ने बॉडी शेमिंग के अलावा हकलाने वाले पुरुष जैसे घिसे पिटे तत्व भी इस फिल्म में पिरो दिए हैं. कहानी में कुछ तो नया लेकर आते.

लेखकद्वय के दिमागी दिवालिएपन का नमूना यह भी है कि  हरीशंकर, लाला केदारनाथ को बहुत कुछ सुनाकर उन्हे अपनी बेटी सपना से दूर रहने के लिए कहकर सपना की न सिर्फ शादी तय करते हैं, बल्कि बारात आ गयी है. शादी की रश्मंे शुरू हो चुकी हैं. अचानक हरीशंकर का हृदय परिवर्तन हो जाता है और पांचवे फेरे के बाद हरीशंकर अपनी बेटी से शादी को तोड़ने की बात कहते हैं और बारात की नाराजगी को अकेले ही झेले लेने की बात करते हैं. सपना फेरे लेने के की बजाय दूल्हे का साथ छोड़कर लाला केदारनाथ के पास पहुंच जाती है.  इस तरह तो विवाह संस्था का मजाक उड़ाने के साथ ही उसे कमजोर करने का प्रयास लेखकद्वय ले किया है. लेकिन हिंदू धर्मावलंबियो को खुश करने का कोई अवसर नही छोडा गया. जितने मंदिर दिखा सकते थे, वह सब दिखा दिया.

जी हॉ! गर्भवती औरतों को गोल गप्पा खिलाकर उन्हें बेटे की मां बनाने का दावा करना भी तांत्रिको या बंगाली बाबाओं की तरह 21वीं सदी में अंधविश्वास फैलाना ही है.

फिल्म के संवाद भी अजीबो गरीब हैं. एक जगह जब गायत्री को देखने लड़के वाले आते हैं, तो दुकान वाला कुछ सामान देने के बाद लाला केदारनाथ से कहता है कि दूध भी लेते जाएं. इस पर अक्षय कुमार कहते हैं-‘‘आज नागपंचमी नही है. ’

लेखकद्वय ने कहानी को फैला दिया, चार बहन के किरदार भी गढ़ दिए, पर क्लायमेक्स में उन्हे समझ में नही आया कि किस तरह खत्म करे, तो आनन फानन में कुछ दिखा दिया, जो दर्शक के गले नही उतरता.

वहीं गायत्री की मौत के बाद तीनो बने कुछ बनने का फैसला लेते हुए कहती हैं-‘‘अब हम कुत्ते की तरह प़ढ़ाई करेंगे. ’’. . . अब लेखकद्वय से कौन पूछेगा कि कुत्ते की तरह पढ़ाई कैसी होती है?

पिछले कुछ दिनों से कनिका ढिल्लों पर ‘अति-राष्ट्रवादी’ होने का आराप लगाकर हमला करने वाले भी निराश होंगे, क्योंकि इस फिल्म में लेखिका कनिका ढिल्लों ने चांदनी चैक में कुछ मुस्लिम व सिख चेहरे भी खड़े कर दिए हैं.

फिल्म का गीत संगीत घटिया ही कहा जाएगा. एक गीत चर्चा में आया था-‘‘तेरे साथ हूं मैं. . ’’ यह गाना तो फिल्म का हिस्सा ही नही है.

अभिनयः

लाला केदारनाथ के किरदार में अक्षय कुमार का अभिनय भी इस फिल्म की कमजोर कड़ी है. बौलीवुड में इतने लंबे वर्षों से कार्य करते आ रहे अक्षय कुमार आज भी इमोशनल सीन्स ठीक से नही कर पाते हैं. वह हर किरदार में सीधा तानकर चलते नजर आते हैं. इसके अलावा उन्होने अपने अभिनय की एक शैली बना ली है, जिसमें छिछोरापन, उछलकूद, निचले स्तर के जोक्स व मस्ती करते हैं. कुछ लोग तो उन्हे स्टैंडअप कमेडियन ही मानते हैं. एक दो फिल्मों में उनके ेइस अंदाज को पसंद किया गया, तो अब वह हर जगह इसी तह नजर आते हैं. पर यह लंबी सफलता देने से रहा. कई दृश्यों मंे वह बहुत ज्यादा लाउड नजर आते हैं. चांदनी चैक के दुकानदार, खासकर चाट बेचने वाला डिजायनर कपड़े पहनने लगा है, यह एक सुखद अहसास है. अक्षय कुमार का बचपन चांदनी चैक की गलियों में ही बीता,  इसका फायदा जरुर उन्हें मिला. अक्षय कुमार का बहनों का किरदार निभा रही अभिनेत्रियो संग केमिस्ट्री नही जमी.  सपना के किरदार मे भूमि पेडणेकर के हिस्से करने को कुछ खास रहा नही. सच कहें तो भूमि पेडणेकर के कैरियर की जो शुरूआत थी, उससे उनका कैरियर नीचे की ओर जा रहा है. इसकी मूल वजह फिल्मों के चयन को लेकर उनका सतर्क न होना ही है. 2020 में प्रदर्शित विधू विनोद चोपड़ा की फिल्म ‘‘शिकारा’’से  अभिनय में कदम रखने वाली अभिनेत्री सादिया खिताब जरुर गायत्री के छोटे किरदार में अपने अभिनय की छाप छोड़ जाती हैं. हरीशंकर के किरदार में नीरज सूद का अभिनय ठीक ठाक ही है. दीपिका खन्ना,  सहजमीन कौर और स्मृति श्रीकांत को अभी काफी मेहनत करने की जरुरत है. लाला केदारनाथ के सहायक के किरदार में साहिल मेहता जरुर अपने अभिनय की छाप छोड़ते हैं. उनके अंदर बेहतरीन कलाकार के रूप में खुद को स्थापित करने की संभावनाएं हैं, अब वह उनका किस तरह उपयोग करते हैं, यह तो उन पर निर्भर करता है.

यदि बौलीवुड इसी तरह से फिल्में बनाता रहा, तो बौलीवुड को डूबने से कोई नहीं बचा सकता. दक्षिण के सिनेमा के नाम आंसू बहाना भी काम नहीं आ सकता.

बेस्ट फ्रेंड की शादी में हौट लुक में पहुंची Alia Bhatt, ट्रोलिंग का हुई शिकार

हाल ही में बौलीवुड एक्टर आदित्य सील और अनुष्का रंजन कपूर की शादी हुई, जिसमें इंडस्ट्री के कई सितारे पहुंचे. वहीं इन सितारों में एक्ट्रेस आलिया भट्ट का भी नाम शामिल है. लेकिन आलिया बेस्ट फ्रैंड की शादी में अपने लुक के चलते इन दिनों ट्रोलिंग का शिकार हो गई हैं. आइए आपको बताते हैं क्या है पूरा मामला….

एक्टर की हुई ग्रैंड शादी

 

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कई बौलीवुड फिल्मों में नजर आने वाले एक्टर आदित्य सील और फिल्म स्टार अनुष्का रंजन कपूर की शादी की फोटोज सोशलमीडिया पर छा गई हैं. जहां वेडिंग लुक में आदित्य वाइट कलर के आउटफिट में नजर आए तो वहीं अपनी शादी के लिए अनुष्का हल्के जामनी कलर का ब्राइडल लहंगा पहने दिखीं, जिसमें वह बेहद खूबसूरत लग रही थीं.

 

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हॉट ब्लाउज में दिखीं Alia Bhatt

 

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शादी का हिस्सा बनने वाले गेस्ट में आलिया भट्ट भी नजर आईं, जिसमें उन्होंने कई लुक कैरी किए. वहीं इनमें से एक लुक ट्रोलर्स को बिल्कुल पसंद नहीं आ रहा . दरअसल, अनुष्का रंजन और आदित्य सील की शादी में अदाकारा आलिया भट्ट पीले रंग के लहंगे के साथ हॉट ब्लाउज पहने दिखीं, जिसे देखकर सोशलमीडिया पर ट्रोलर्स सवाल कर रहे हैं कि ये पहनते कैसे हैं.

 

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हसीनाओं के दिखे जलवे

 

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आलिया भट्ट के अलावा बौलीवुड और टीवी की हसीनाएं भी नजर आईं, जिनमें अथिया शेट्टी, भूमि पेडनेकर और क्रिस्टल डिसूजा पहुंची, जिसमें उनका लुक बेहद खूबसूरत लग रहा था. इंडियन लुक में बौलीवुड हसीनाएं बेहद खूबसूरत लग रही थीं. एक से बढ़कर एक लुक में हसीनाएं एक दूसरे को फैशन के मामले में टक्कर देते नजर आ रही थीं.

 

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Photo Credit – Viral Bhayani

Sushant Singh Rajput 1st Death Anniversary: Ankita से लेकर Aly तक इमोशनल हुए सेलेब्स¸ किया ये काम

साल 2020 में कई सितारों ने दुनिया को अलविदा कहा, जिनमें बॉलीवुड एक्टर सुशांत सिंह राजपूत (Sushant Singh Rajput) भी शामिल हैं. वहीं सुशांत सिंह राजपूत की मौत को आज यानी 14 जून को एक साल  की मौत को एक साल पूरा हो गया है. लेकिन आज भी फैंस और सेलेब्स उन्हें भुला नहीं पा रहे हैं. जहां फैंस उन्हें श्रद्धांजलि दे रहे हैं. तो सेलेब्स सोशलमीडिया पर उनके लिए खास मैसेज देकर इमोशनल होते नजर आ रहे हैं. आइए आपको दिखाते हैं सितारों के इमोशनल पोस्ट…

अंकिता लोखंडे ने किया ये काम

 

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सुशांत की पहली बरसी पर उनकी फैमिली और फैंस से लेकर बौलीवुड और टीवी सेलेब्स अंकिता लोखंडे, अशोक पंडित, पुलकित सम्राट, अर्जुन बिजलानी, भूमि पेडनेकर समेत कई सेलेब्स ने उन्हें श्रद्धांजलि दे रहे हैं. सुशांत की एक्स गर्लफ्रैंड रह चुकीं अंकिता लोखंडे ने अपनी इंस्टा स्टोरी पर एक वीडियो शेयर किया है जिसमें वे हवन करती नजर आ रही हैं. वहीं सुशांत को याद करते हुए अर्जुन बिजलानी ने लिखा, ‘हम दोनों बाइक्स के शौकीन थे. एक दिन उन्होंने मुझे सरप्राइज करते हुए कहा कि अर्जुन नीचे आओ. मुझे तुम्हें कुछ दिखाना है. जैसे ही मैं नीचे गया तो मैंने देखा कि वो एक नई फैंसी बाइक पर बैठे थे.’

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भूमि पेडनेकर ने लिखी ये बात

 

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भूमि पेडनेकर ने लिखा, ‘तुम्हें, तुम्हारे सवालों और हमारी बातचीत को मिस करती हूं. तारों से लेकर अनजानी चीजों तक, तुमने मुझे वो दुनिया दिखाई जिसे मैंने पहले कभी नहीं देखा था. मुझे उम्मीद है कि तुम्हें उस दुनिया में शांति मिल गई होगी. ओम शांति.’ वहीं एक्टर अली गोनी ने सशांत सिंह को याद करते हुए अपनी प्रोफाइल फोटो पर सुशांत की फोटो लगा ली है.

 

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आपको बता दें कि कुछ दिनों पहले एक्ट्रेस कृति सेनन ने फिल्म राब्ता से जुड़ी एक वीडियो शेयर की थी, जिसमें सुशांत संग वह नजर आ रही थीं.

 

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REVIEW: जानें कैसी है भूमि पेडनेकर और अरशद वारसी की फिल्म ‘दुर्गामती’

 रेटिंगः एक स्टार

 निर्माताः विक्रम मल्होत्रा, अक्षय कुमार, भूष् ाण कुमार, किशन कुमार

निर्देशकः अशोक

कलाकारः भूमि पेडनेकर, अरशद वारसी, माही गिल,  करण कपाड़िया, जीशू सेन गुप्ता, अमित बहल, अनंत महादेवन, धनराज, सोण्ब अली, चंदन विकी रॉय, प्रभाकर रघुनंदन,  ब्रजभूषण शुक्ला व अन्य.

अवधिः दो घंटे 36 मिनट

ओटीटी प्लेटफार्मः अमेजन प्राइम वीडियो

दक्षिण भारत के चर्चित फिल्मकार जी. अशोक अपनी 2018 की सफलतम हॉरर व रोमांचक तमिल व तेलगू फिल्म ‘‘भागमती’’का हिंदी रीमेक ‘‘दुर्गामती’’लेकर आए हैं. राजनीतिक भ्रष्टाचार के इर्द गिर्द बनी गयी हॉरर रोमांचक फिल्म में किसी राज्य के आईएएस अफसर को किसी केंद्रीय जांच एजेंसी सीबीआई की चाल में फंसाकर बदनाम करने,  बेइज्जत करने और फिर उसे एक बड़ी साजिश का हिस्सा बनाने की कोशिश करने की कहानी है फिल्म ‘दुर्गामती’. यह बात मूल फिल्म ‘भागमती’ में क्लायमेक्स में दर्शकों को पता चलती है, जबकि फिल्म ‘दुर्गामती’शुरू में ही सारा खेल दर्शकों के सामने रख देती है. फिल्म पूरी तरह से निराश करती है.

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कहानीः

कहानी एक राज्य से शुरू होती है, जहां पर 12 प्राचीन मंदिरों की मूर्तियां चोरी हो चुकी हैं. जहां राज्य के इमानदार माने जाने वाले जल संसाधन मंत्री ईश्वर प्रसाद (अरशद वारसी) एक सभा में लोगों से वादा करते हैं कि यदि मंदिर की मूर्तियां चुराने वालों को 15 दिनों में नहीं पकड़ा गया, तो वह अपने मंत्री पद से इस्तीफा देने के अलावा राजनीति से सन्यास लेकर अजय को अपना उत्तराधिकारी बना देंगे, जो कि लोगों की सेवा करना ही परमधर्म समझता है. ईश्वर प्रसाद को उनकी ईमानदारी की वजह से जनता भगवान मानती है. पर इससे मुख्यमंत्री व पार्टी के अन्य नेता डरे हुए हैं. राज्य के मुख्यमंत्री मुख्यमंत्री सीबीआई की संयुक्त आयुक्त सताक्षी गांगुली (माही गिल) और एसीपी अभय सिंह (जीशु सेनगुप्ता) को ईश्वर प्रसाद के भ्रष्टाचार का पर्दाफाश करने के लिए कहते हैं. योजना के तहत सताक्षी गांगुली और एसीपी अभय सिंह जेल में बंद ईश्वर प्रसाद की पूर्व निजी सचिव व आईएएस अफसर चंचल चैहान (भूमि पेडनेकर) को पूछताछ के लिए जेल से निकालकर जंगल में बनी एक ‘दुर्गामती’नामक भुतिया महल में ले जाती हैं. चंचल अपने मंगेतर व अभय सिंह के छोटे भाई शक्ति (करण कपाड़िया) की हत्या  के जुर्म में जेल में बंद है. लोगों की राय में महल में रानी दुर्गामती की आत्मा वास करती है. लेकिन सीबीआई अफसर शताक्षी, चंचल को वहीं पर हर किसी की नजर से बचकर रखते हुए ईश्वर प्रसाद के कारनामे के बारे में पूछताछ करती है. जहां कई चीजे बलती हैं. चंचल, दुर्गामती बनकर कई नाटक करती है. पुलिस व सीबीआई अफसर को अहसास हो जाता है  कि रात होते ही चंचल पर रानी दुर्गामती की आत्मा आ जाती है औैर वह पूरी तरह से बदल जाती है. वही बताती है कि रानी दुर्गामती कौन थी?अंततः मनोचिकित्सक (अनंत महादेवन)की सलाह पर चंचल को पागलखाना में भर्ती कर दिया जाता है. जहां ईश्वर प्रसाद उससे मिलने आते हैं. तो क्या सच में वहां आत्मा का वास है या चंचल की चाल? यही क्लार्यमैक्स है.

लेखन व निर्देशनः

एक तमिल व तेलगू की सफलतम  फिल्म का हिंदी रीमेक ‘दुर्गामती’’ घोर निराश करती है. नारीवाद व भ्रष्टाचार पर कहानी कही जानी चाहिए, लेकिन फिल्म ‘दुर्गामती’ इस कसौटी पर भी खरी नही उतरती. पटकथा में काफी गड़बड़िया हैं. राज्य का एक महल शापित क्यों हैं? इस महल को लेकर पुरातत्व विभाग ने कभी कुछ क्यों नहीं कहा? यहां कोई जाने से डरता क्यो है? आखिर क्यों एक जांच एजेंसी किसी आईएएस अफसर को जेल से निकालकर किसी सुनसान हवेली में पूछताछ के लिए कैसे ले जा सकती है? ऐसे तमाम सवालों के जवाब फिल्म ‘दुर्गामती’ देने की कोशिश नहीं करती. फिल्म को हॉरर रोमांचक फिल्म बताया गया है, मगर इसमें न तो हॉरर है और न ही रोमांच है. हकीकत में इन दिनों सिनेमा के नाम पर दर्शकों के सामने कुछ भी परोस देने की जो परंपरा चल पड़ी है, उसी का निर्वाह यह फिल्म करती है. फिल्म में गल ढंग से लिखी गयी पटकथा के चलते कथा कथन की शैली ही दोषपूर्ण है. इतना ही नही इसके संवाद तो पटकथा से भी ज्यादा खराब हैं.

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फिल्म देखकर अहसास करना मुश्किल हो जाता है कि इसी निर्देशक ने मूल सफलतम फिल्म का निर्देशन किया था. निर्देशन अति लचर है. फिल्म हिंदी में है मगर सीबीआई अफसर ज्यादातर बातचीत अंग्रेजी में करती है. भूमि पेडनेकर के होंठ इतने सूजे क्यों है? इसका जवाब फिल्मकार ने नहीं दिया. रानी दुर्गामती बनी भूमि पेडनेकर के संवादों के पीछे दिया गया पाश्र्वसंगीत और ‘ईको’ उबाउ देने वाला है. इसके लिए पूर्णतः निर्देशक ही दोषी हैं.

निर्देशक ने राजनीति में वंशवाद, हिंदुत्व का मुद्दा, मंदिर का मुद्दा यानी कि जितने भी मसाले हो सकते थे, वह सब घुसा दिए हैं.

अभिनयः

भूमि पेडनेकर एक बेहतरीन अदकारा हैं, मगर यह फिल्म उनके कैरियर की सर्वाधिक खराब फिल्म है. जो दर्शक भूमि पेडनेकर को इस फिल्म में देखेंगे, उनके लिए यह यकीन करना मुश्किल हो जाएगा कि यह वही भूमि पेडनेकर हैं, जो इससे पहले लगातार कई चुनौतीपूर्ण किरदार निभाकर अपनी प्रतिभा साबित करती रही हैं. जीशू सेनगुप्ता बहुत खराब अभिनय है. माही गिल भी प्रभावित नहीं करती. करण कपाड़िया के चेहरे पर तो भाव ही नहीं आते.  हर दृश्य में वही सपाट चेहरा, वैसे भी उनका किरदार काफी छोटा है. अरशद वारसी व अमित बहल की प्रतिभा को जाया किया गया है.

REVIEW: औरत के नजरिए से बेडरूम की प्रौब्लम दिखाती ‘डॉली किटी और वह चमकते सितारे’

रेटिंग: तीन स्टार

निर्माता: शोभा कपूर और एकता कपूर

लेखक और निर्देशक: अलंकृता श्रीवास्तव

कलाकार: कोंकणा सेन शर्मा, भूमि पेडणेकर, विक्रांत मेस्सी, आमिर बशीर, अमोल पाराशर, नीलिमा अजीम, कुबरा सेट , करण कुंद्रा व अन्य

अवधि: 2 घंटे

ओ टीटी प्लेटफार्म : नेटफ्लिक्स

फिल्म”लिपस्टिक अंडर माय बुर्का ” से जबरदस्त शोहरत बटोरने वाली लेखक और निर्देशक अलंकृता श्रीवास्तव एक बार फिर औरतों की यौन स्वच्छदता /स्वतंत्रता को लेकर एक अति बोल्ड फिल्म “डॉली किट्टी और वह चमकते सितारे” लेकर आई है, जिसमें उन्होंने जबरन सेक्स परोसने की पूरी कोशिश की है. इसमें मध्यम वर्गीय नारी के यौन सुख संतुष्टि/  चाहत के साथ-साथ बेडरूम की समस्याओं का चित्रण है. तो वही अलंकृता ने इस फिल्म में कामी-लंपट पुरुष की तस्वीर को भी उकेरा है.

कहानी:

यह कहानी नोएडा में रह रही डाली उर्फ राधा यादव(कोंकणा सेन शर्मा) की है, जो कि अपने दो बच्चों भरत व पप्पू तथा पति अमित(आमिर बशीर) के साथ रहती है. डाली एक कंपनी में नौकरी करते हुए नए मकान की किस्त भरने के लिए रकम भी जमा कर रही है. एक दिन दरभंगा, बिहार से उसकी चचेरी बहन काजल (भूमि पेडणेकर)  अपने माता पिता  से झगड़ कर उसके पास रहने आ जाती है. फिल्म की शुरुआत  पार्क से होती है, जहां पर काजल अपनी बहन डाली से उसके पति की शिकायत करती है कि जीजू उसके साथ गलत ढंग से पेश आ रहे हैं. इस पर डाली हंसते हुए कहती है कि,वह खुद  अपने जीजा पर लाइन मार रही है. उस वक्त काजल एक जूता फैक्ट्री में काम कर रही थी, पर वह नौकरी छोड़ देती है. उसके बाद वह अलग रहने चली जाती है और एक कॉल सेंटर “रेड रोज रोमांस ऐप “में किट्टी के नाम से नौकरी करने लगती है. यह ऐप पुरुषों के अकेलेपन को फोन पर दूर करने का प्रयास करता है. इसी के चलते किट्टी को भी प्रदीप(विक्रांत मेस्सी) से प्यार भरी बातें करनी पड़ती हैं, और उसकी दोस्ती  शाजिया(कुबरा सेट) नामक दूसरी सहकर्मी से हो जाती है. शाजिया पैसे के लिए अपना जिस्म भी बेचती है. एक  तरफ वह डीजे (करण कुंद्रा) के संग प्यार का नाटक कर रही है, तो वही वह एक भवन निर्माता का भी बिस्तर गर्म करती रहती है. शाजिया अपने साथ किट्टी को भी इस धंधे में व्यस्त करना चाहती है. पर किट्टी मना कर देती है .लेकिन किट्टी, प्रदीप को अपना दिल दे बैठी है. और जब आगरा का ताजमहल देखने जाती है, तो वहां प्रदीप से मुलाकात होती है .दोनों के बीच यौन संबंध स्थापित होते हैं. उसके बाद नोएडा आने पर भी प्रदीप और किट्टी के बीच यौन संबंध बनते हैं. पर एक दिन ऐसा आता है, जब पुलिस इन दोनों को पकड़ लेती है. तब प्रदीप, किट्टी को  धोखा देकर खुद को छुड़ाकर चला जाता है. खुद को छुड़ाने के लिए काजल, डॉली को फोन करती है. डॉली गुस्साती है और दरभंगा से चाचा चाची को बुला लेती है.

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उधर डॉली की जिंदगी भी अजीबोगरीब मोड़ से गुजर रही है. शादी की रात यानी की सुहागरात से लेकर अब तक उसे कभी भी अपने पति से यौन संतुष्टि नहीं मिली है. उसका पति  अमित हमेशा उस पर ठंडी होने का लांछन लगाते आया है .और पता चलता है कि अमित भी ‘रेड रोज  रोमांस ऐप”  की लड़कियों से फोन पर बात करता रहता है .

इधर डाली धीरे धीरे ऑनलाइन डिलीवरी करने आने वाले युवक उस्मान(अमोल पाराशर) के नजदीक पहुंच जाती है और एक दिन उस्मान को अपने घर बुलाती है. डॉली, उस्मान के साथ यौन संबंध स्थापित कर एहसास करती है कि  वह ठंडी नहीं है.

उसके बाद कई घटना का तेजी से बदलते हैं. काजल माता पिता के साथ जाने को जा अलग कहीं चली जाती है.एक घटनाक्रम में गुंडों की गोली से उस्मान भी मारा जाता है. डाली अपने छोटे बेटे  पप्पू के साथ पति का घर छोड़ देती है.

लेखन व निर्देशन:

अलंकृता श्रीवास्तव ने पितृ सत्तात्मक सोच का विरोध करते हुए नारी की स्वतंत्रता और यौन संतुष्टि को लेकर जो कहानी गढ़ी  है, उसका विरोध होना स्वाभाविक है. वास्तव में अलंकृता श्रीवास्तव ने हवस के  पुजारी पुरुष के साथ ही उन नारियों का भी चित्रण किया है जोके आदर्शवाद के खाते में फिट नहीं बैठती है. यह नारियां आदर्शवाद को धता बताकर अपने मन की सुनते हुए, अपने पैरों पर खड़े होने के लिए हर तरह का काम और हर तरह के कदम को उठाने से हिचकती नहीं है. इसी के चलते एक तरफ डोली अपने बच्चों की बजाए डिलीवरी ब्वॉय उस्मान पर ज्यादा ध्यान देती हैं. जबकि शाजिया और किट्टी मंकी इच्छा अनुसार सिगरेट शराब पीने के साथ-साथ यौन सुख के लिए हवस की पुजारी पुरुषों के हाथ का खिलौना बनने से भी खुद को रोक नहीं पाती हैं.

फिल्म बहुत ही धीमी गति से आगे बढ़ती है. शुरुआत के एक घंटे के दौरान समझ में ही  नहीं आता कि कहानी क्या है? उसके बाद डाली, किट्टी और शाजिया यौन सुख पाने के  लिए जो खेल रचती है, वह वाहियात है. दो अर्थ वाले संवादों की भी भरमार है.नारी स्वतंत्रता व नारी के मन की इच्छाओं की पूर्ति तथा नारीवाद के नाम पर अश्लील यौन संबंध वाले दृश्य भर दिए गए हैं. यदि निर्देशक ने थोड़ी सी सूझबूझ से काम लिया होता, तो इन दृश्यों को कलात्मक ढंग से पेश किया जा सकता था. मगर लेखक व निर्देशक जिस तरह से सेक्स को परोसा है, उससे एक नारी प्रधान फिल्म बनाने का उनका पूरा मकसद ही विफल हो गया है.  सारे दृश्य बहुत ही बेहूदगी वाले हैं जिन्हें दर्शक भी नहीं देखना चाहेगा.

अभिनय:

कोंकणा सेन शर्मा एक बेहतरीन अदाकारा है, पर इस फिल्म में वह अपने अभिनय का जादू पूरी तरह से दिखाने में सफल नहीं हो पाई है. भूमि पेडणेकर को काजल या किट्टी जैसा किरदार निभाने की जरूरत क्यों पड़ी? यह तो वही जाने. इस फिल्म में उनकी अभिनय क्षमता के बजाय लोगों की नजरों में उनकी सेक्स भरी बातें, सेक्सी अदाएं और यौन संबंध बनाने प्यास ही छाई रहती है. इसी तरह विक्रांत मैसे को भी प्रदीप के किरदार में में देखकर क्षोफ होता है. यह तीनों ही अपनी उत्कृष्ट अभिनय क्षमता के लिए पहचाने जाते हैं. पर कमजोर पटकथा और सतही निर्देशन के चलते इनकी अभिनय प्रतिभा उभर नहीं पाई.

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19 दिन 19 टिप्स: सोशल मीडिया पर दिखा भूमि पेडनेकर का जलवा, देखें PHOTOS

फिल्म ‘दम लगा के हइशा’ से अपना फिल्मी करियर शुरू करने वालीं देशी गर्ल भूमि पेडनेकर (Bhumi Pednekar) आज अपनी दमदार अदाकारी के लिए जानी जाती है. भूमि ने कई हिट फिल्में दे कर अपने फैंस के दिल में खास जगह बना ली हैं. देसी गर्ल ने इंस्टाग्राम पर अपनी हॉट तस्वीरें पोस्ट कर अपना ग्लैमरस अंदाज दिखाना शुरू कर दिया हैं. अपनी पहली फिल्म में मोटी लड़की का रोल निभा कर भूमि ने देसी गर्ल के रूप में छा गई भूमि ने अपनी पहली फिल्‍म के बाद काफी वजन घटाया है. अब वह काफी फिट और गैलमरस दिख रही हैं.

हाल ही में भूमि पेडनेकर (Bhumi Pednekar) का अब तक का सबसे हॉट ग्लैमरस रूप देखने को मिला. भूमि बॉलीवुड के मशहूर फोटोग्राफर डब्बू रतनानी के कैलेंडर 2020 (Dabboo Ratnani Calendar 2020) के लिए फोटोशूट कराया है. डब्बू रतनानी (Dabboo Ratnani) के कैलेंडर 2020 के लिए भूमि पहली बार टॉपलेस नजर आईं, जिसकी वजह से भूमि काफी चर्चा में रही थीं. उनकी ये टॉपलेस फोटो सोशल मीडिया पर काफी चर्चा में रही थी. इसकी वजह से उन्हें ट्रोल भी किया.

 

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Am blushing ☺️ . . . #hello #monday #love #blushpink

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अब भूमि की एक और ग्लैमरस फोटो सुर्खियों में बनी हुई है. उनकी ये फोटो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रही है. भूमि के इन फोटो को 23 घंटे के अंदर सवा तीन लाख से ज्यादा लाइक्स मिले हैं. ज्यादातर कमेंट्स में भी उनकी तारीफ की गई है. एक यूजर ने तो ये लिख दिया आज जब हर कोई मेलेनिया ट्रम्प को देखने में बिजी है मैं तब भी आपको देख रहे हैं.

आपको बता दे इस समय मेलिनिया अपने पति यूएस प्रेजिडेंट डोनॉल्ट ट्रम्प के साथ भारत आयीं हैं. मेलेनिया की सोशल मीडिया पर जबर्दस्त फैन फॉलोइंग है लोग उन्हें गूगल पर खूब सर्च करते हैं.

भूमि ने लेटेस्ट फोटो में बेबी पिंक कलर का गाउन पहना हुआ है इस पिंक गाउन के साथ पिंक मेकअप और खुले बाल उनकी खूबसूरती को और बढ़ा रहे हैं. लोगों ने भूमि के इस लुक और ड्रेस की तुलना पिग्गी चोप्स यानि प्रियंका चोपड़ा से शुरू कर दी. प्रियंका ने कुछ दिनों पहले ऐसा ही हॉट और ग्लैमरस पोज दे कर लोगों के होश उड़ाए थे.


भूमि के वर्क फ्रंट की बात करें तो उनके लिए बीता साल बहुत शानदार रहा है. पिछले साल की उनकी फिल्मों ने एक तरफ बॉक्स ऑफिस पर शानदार प्रदर्शन किया. पिछले साल भूमि सांड की आंख, बाला और पति, पत्नी और वो जैसी सफल फिल्मों का हिस्सा रही हैं, जिसमें से फिल्म ‘सांड की आंख’ में बेहतरीन अभिनय के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के फिल्मफेयर क्रिटिक्स अवार्ड से सम्मानित किया गया है. भूमि एक बार फिर आयुष्मान खुराना के साथ ‘शुभ मंगल ज्यादा सावधान’ मूवी में स्क्रीन शेयर करती नज़र आ रही हैं.

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#coronavirus: प्लेन में सीटबेल्ट की सफाई करती दिखीं भूमि पेडनेकर, PHOTOS VIRAL

डब्ल्यूएचओ (विश्व स्वास्थ्य संगठन)ने ‘‘कोरोना 19’’यानी ‘‘कोविड 19’’को एक महामारी घोषित किए जाने के साथ ही पूरे भारत में बंद का माहौल है. इस घातक और जानलेवा वायरस के प्रसार को रोकने के मकसद से इस सप्ताह बड़े पैमाने पर होने वाली सभाओं, शादी समारोहों के साथ ही जिम,सिनेमा हाल,माल्स, रेस्टारेंट,पब पूरी तरह से बंद किए जा चुके हैं. इसी के साथ फिल्म की शूटिंग भी बंद कर दी गयी है.

जब भारत में ‘कोरोना’वायरस ने पैर पसारे उस वक्त अक्षय कुमार निर्मित फिल्म ‘‘दुर्गावती’’की शूटिंग मध्यप्रदेश के भोपाल शहर में चल रही थी, जिसे बीच में ही स्थगित करना पड़ा. इसके बाद फिल्म की पूरी युनिट,अभिनेत्री भूमि पेडणेकर व अभिनेता तथा अक्षय कुमार के भतीजे करण कापड़िया भी हवाई जहाज पकड़कर भोपाल से मुंबई वापस आए.

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हवाई जहाज में चढ़ते ही अभिनेत्री भूमि पेडणेकर ने ‘कोरोना’से बचाव के उपाय के तहत भूमि पेडणेकर ने उस हवाई जहाज की सीटबेल्ट वगैरह को साफ करना शुरू किया, जिसमें वह मुंबई के लिए यात्रा कर रही थी.उनके साथ यात्रा कर रहे कुछ साथियों ने उनका मजाक उड़ाया,तो वहीं अक्षय कुमार भतीजे ने उसका वीडियो बना डाला.

बाद में भूमि पेडनेकर ने अपनी इंस्टाग्राम कहानियों पर कई तस्वीरें और वीडियो साझा किए कि वह भोपाल से मुंबई वापस अपने घर जा रही हैं. इंस्टाग्राम पर मौजूद तस्वीरों में भूमि ने अक्षय कुमार और ट्विंकल खन्ना के भतीजे करण कपाड़िया द्वारा ली गई तस्वीर को रीपोस्ट किया. जबकि तस्वीर को साझा करते हुए करण ने इसे कैप्शन दिया, “व्यामोह? व्यामोह क्या है? ” और पोस्ट में अभिनेत्री को टैग किया. तस्वीर में भूमि पेडनेकर को आरामदायक कपड़ों की एक जोड़ी में देखा गया है.लेकिन यात्रा के दौरान आवश्यक निवारक उपाय किए गए हैं.

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एक फोटो में भूमि ने अपने चेहरे पर मास्क पहना हुआ है और अपने हाथों को दस्ताने से ढंका हुआ है. यानी कि भूमि पेडणेकर खुद को ‘कोरोना’ वायरस से संपर्क में आने से बचने के लिए उपाय करने में व्यस्त नजर आती हैं.

वहीं मास्क और दस्ताने पहनने के अलावा भूमि जब हवाई जहाज की जिस सीटबेल्ट पर वह बैठने वाली हैं, उसे स्प्रे करने के बाद उसे साफ करती हैं, तो उसकी भी तस्वीर खींची गयी. करण ने अपने इंस्टा्राम पर इन तस्वीरों को साझा करते हुए लिखा कि यात्रा के दौरान पैरानोइया ने भूमि को कैसे मारा है. मगर अभिनेत्री को अतिरिक्त देखभाल करते देखना सराहनीय प्रयास है.

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इस बीच फिल्म‘‘दुर्गावती’’ में दुर्गावती की शीर्ष भूमिका निभा रही  अभिनेत्री ने तस्वीरों की एक श्रृंखला भी साझा की, जिसमें करण कपाड़िया के साथ एक सेल्फी शामिल है. दूसरी ओर जैसे ही अगले स्तर पर व्यामोह हिट होता है, पूरी टीम दुर्गावती के सेट से वापस मुंबई आ जाती है और फ्लाइट और एयरपोर्ट से तस्वीरों में मास्क पहने हुए भाग जाती है.

इस पर भूमि कहती हैं-‘‘मैंने हवाई जहाज के अंदर जो कुछ किया, वह ‘कोरोना वायरस’से खुद को बचाने के लिए किया. मगर जब करा ने तस्वीरे खींच ली और वीडियो बना डाला, तो  मैने भी सोचा कि इन्हे अपने इंस्टाग्राम पर पोस्ट कर दूं, जिससे हर आम इंसान खुद को सुरक्षित रखने के लिए इस तरह के उपाय करने से न हिचकिचाए.’’

हाउसफुल ‘कुमार’ और ‘शूटर दादी’ भूमि पेडनेकर बने पौपुलैरिटी में नम्बर-1

अपनी फिल्म ‘हाऊसफुल-4’ की वजह से बौलीवुड सुपरस्टार अक्षय कुमार स्कोर ट्रेंड्स इंडिया लोकप्रियता चार्ट में शीर्ष स्थान पर हैं. तो ‘सांड की आंख’ फिल्म की वजह से बहुमुखी प्रतिभा रहीं अभिनेत्री भूमि पेडनेकर भी अभिनेत्रीयों के चार्ट्स में टौप पोजिशन पर बनी हुई हैं. यह आंकड़े अमरिका की मीडिया टेक कंपनी स्कोर ट्रेंड्स इंडिया द्वारा प्रमाणित किए गयें हैं.

‘मिशन मंगल’ और ‘हाउसफुल-4’ की सफलता के बाद खिलाडी कुमार इस वक्त लोकप्रियता के शिखर पर हैं. 88 अंकों के साथ नंबर वन स्थान पर रहें अक्षय कुमार ने लोकप्रियता में किंग खान को पिछे छोड दिया हैं. 69 अंकों के साथ शाहरूख खान दूसरे स्थान पर है. शाहरुख का टेड टॉक शो और हाल ही में आए उनके जन्मदिन की वजह से उनकी डिजीटल, सोशल और प्रिंट पब्लिकेशन्स में काफी चर्चा हुई और इसी वजह लोकप्रियता में वह दुसरे स्थान पर पहुँचे.

फिल्म सांड की आंख की परफौर्मन्स की वजह से भूमि पेडनेकर बॉलीवूड अभिनेत्रीयों की लोकप्रियता में शीर्ष स्थान पर हैं. 53 अंकों के इस नंबर वन स्थान पर रहीं भूमी की को-स्टार और दूसरी शूटर दादी यानी की अभिनेत्री तापसी पन्नू 47 अंकों के साथ दूसरे स्थान पर हैं.

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बौलीवुड के बादशाह अमिताभ बच्चन अपने लोकप्रिय गेम शो ‘कौन बनेगा करोडपती’ (KBC) के साथ तीसरे स्थान पर हैं. वहीं आश्चर्यजनक रूप से सुपरस्टार सलमान खान चौथे स्थान पर पहुंच गयें हैं. अपनी अगली रिलीज़ दबंग 3 और राधे की घोषणा के बाद वह चौथे स्थान पर पहुंच गयें है.

लोकप्रिय अदाकाराओं की फेहरिस्त में तिसरे स्थान पर अनुष्का शर्मा पहुँच गयीं हैं. उनके पति क्रिकेटर विराट कोहली के साथ की उनकी तस्वीरें विभिन्न सोशल प्लेटफार्मों और वायरल समाचार में काफी ट्रेंडिंग में बनी हुई हैं. इसीलिए तो वह 41 अंकों के साथ लोकप्रियता में छायी हुई हैं. अंतर्राष्ट्रीय आइकन प्रियंका चोपड़ा जोनास अपनी बॉलीवूड प्रोजेक्ट्स के साथ ही सोशल मीडिया पर अपनी रोज आती तस्वीरों की वजह से भी चौथे स्थान पर बनी हुई हैं.

स्कोर ट्रेंड्स इंडिया के सह संस्थापक अश्वनी कौल बतातें हैं, “हाऊसफुल-4 का लुक, उसका बाला गाना और इस फिल्म की पॉप्युलैरिटी इस सबकी वजह से सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म और वायरल पब्लिकेशन्स में अक्षय कुमार की काफी लोकप्रियता बढी. वहीं, भूमी पेडनेकर और तापसी पन्नू की फिल्म ‘सांड की आंखं’ में उनके परफॉर्मन्स को काफी सराहा गया. और इस वजह से इन दोनों प्रतिभाशाली अभिनेत्रीयों की लोकप्रियता बढी.“

अश्वनी कौल आगे बताते हैं, “ 14 भारतीय भाषाओं में उपलब्ध 600 से अधिक समाचार स्रोतों से यह रैंकिंग उपलब्ध होती हैं. यह नंबर फेसबुकट्विटरप्रिंट प्रकाशनवायरल न्यूजब्रॉडकास्ट और डिजिटल प्लेटफौर्म जैसे सैकड़ों स्रोतों से उठाए गए हैं और फिर कई अत्याधुनिक एल्गोरिदम इस विशाल डेटा की प्रक्रिया में सहायता करते हैं. जिससे बौलीवुड सितारों के स्कोर और रैंकिंग तक हम पहुंच पाते हैं

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फिल्म‘‘सांड की आंख’’ का ट्रेलर लौंच, जानें क्या है खास बात

मेरठ के एक गांव की 85 और 60 वर्षीय ‘‘राष्ट्रीय शार्प शूटर’’ (निशाने बाज ) प्रकाशी और चंद्रा तोमर के जीवन, उनकी सोच और उनके द्वारा शूटर के तौर पर गढ़े गए नए मापदंडो को फिल्मकार तुशार हीरानंदानी अपनी फिल्म ‘‘सांड की आंख’’में लेकर आ रहे हैं. इस फिल्म का ट्रेलर 23 सितंबर को मुंबई के मालाड इलाके में स्थित‘ औयनौक्स मल्टी प्लैक्स’ में रिलीज किया गया. फिल्म का ट्रेलर उच्च आत्माओं, सोच व ऊर्जा से भरपूर तथा मजेदार है. ट्रेलर से पता चलता है कि यह कहानी हमें सीख देती है कि यदि विश्वास है तो सफलता की कोई सीमा नहीं है.

फिल्म‘‘सांड की आंख’’में दिखाया गया है कि कैसे उत्तर प्रदेश के जौैहरी गॉंव की यह दो औरतें अपनी अधेड़ उम्र में नियानेबाजी करने गयी. इन महिलाओं ने अपने लक्ष्य का पीछा करने के लिए नई परंपरा को परिभाषित किया और 65 वर्ष की आयु के बाद 30 से अधिक राष्ट्रीय चैंपियनशिप जीतकर प्रसिद्धि प्राप्त की.

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इस अवसर पर अपने गांव से प्रकाशी तोमर खासतौर पर आयी थी. इस ट्रेलर लांच के अवसर पर प्रकाशी के साथ साथ प्रकाशी तोमर का किरदार निभा रही अदाकारा तापसी पन्नू, चंद्रो तोमर का किरदार निभाने वाली अदाकारा भूमि पेडणेकर और निर्देशक तुशार हीरानदानी ने खुलकर बात की.

‘पिंक’,‘बेबी’जैसी कई चर्चित फिल्मों की अदाकारा तापसी पन्नू ने फिल्म ‘‘सांड की आंख’’ के ट्रेलर लांच के अवसर पर फिल्म में शूटर दादी प्रकाशी तोमर का किरदार निभा रही तापसी पन्नू ने फिल्म ‘सांड की आंख’की चर्चा करते हुए कहा-‘‘इस फिल्म का हिस्सा बनने से पहले मैंने कभी अपने हाथ में बंदूक नहीं उठायी थी.इसके लिए मैंने तीन माह तक प्रशिक्षण लिया,उसके बाद ही मैं ठीक से पिस्तौल पकड़ सकी.जब मैं पहली बार प्रकाशी से मिली थी,तो मैं सोच नही पा रही थी कि उन्होेने इतने अवार्ड अपनी झोली में कैसे डाले.’’

तापसी ने आगे कहा-‘‘मैं अपनी यह फिल्म ‘अपनी मां को समर्पित करना चाहती हॅूं.क्योंकि फिल्म में काम करने के दौरान मैंने महसूस किया कि एक महिला अपने परिवार को चलाने के लिए अनगिनत बलिदान करती है.इनकी कहानी सुनते हुए मैंने अपनी माँ के बारे में सोचा. क्योंकि यह उन महिलाओं की कहानी है,जिन्होंने अपने माता-पिता, पति और बच्चों के लिए अपना जीवन जिया है.उन्होंने कभी अपनी जिंदगी अपनी शर्तों पर नहीं जी.मेरी माँ 60 वर्ष की हैं.इसलिए  मुझे लगता है कि मैं उन्हें बताऊं कि मैं उनके जीवन जीने के तरीके का कारण बनना चाहती हूं.मुझे उम्मीद है कि लोग इसे देखने के लिए अपनी मां, दादा-दादी और माता-पिता को दिखाएंगे.’’

अस्सी चंद्रो तोमर का किरदार निभाने वाली अदाकारा भूमि पेडणेकर अब तक हर फिल्म में लीक से हटकर किरदार निभाती आयी हं. फिल्म ‘सांड की आंख ’के ट्रेलर लौंच के अवसर पर भूमि ने कहा-‘‘मुझे लगता है कि आपके करियर में कुछ फिल्में हैं,जो विशेष से अधिक होती है, उन्हीं में से एक है-‘सांड की आंख’. मैं यह बात आत्मविश्वास के साथ कह सकती हूं.इस फिल्म से जुड़े  सभी लोग बहुत खास हैं.फिल्म बेहद खास है.यह फिल्म वास्तव में मेरे दादा-दादी और माता-पिता,विशेष रूप से मेरी माँ के लिए ही है.’’

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मां की बात चलने पर भावुक होते हुए भूमि पेडनेकर ने कहा-‘‘ हमारी मां हमारे लिए क्या क्या नहीं करती,पर हमें उन्हें धन्यवाद देने का मौका भी नहीं मिलता.यह फिल्म उन्हें धन्यवाद देने का हमारा तरीका है.हम उन्हे बताना चाहते हैं कि,‘आपने हमें उड़ान भरने के लिए पंख दिए, अब आपका समय है.’मेेरे लिए तो दोनों दादी (चंद्रो और प्रकाशी तोमर) बहुत प्रेरणादायक रही हैं.’’

फिल्म‘‘सांड की आंख’’दो हीरोईन वाली फिल्म है.इस पर तापसी ने कहा-‘‘‘मैं हमेशा एक ऐसी फिल्म करना चाहती थी, जिसमें दो नायिकाओं की भूमिका समान हो. जब मैंने कहानी सुनी,तो मेरी आंखों में आंसू थे और 10 सेकंड के भीतर, मैंने फिल्म के लिए हामी भर दी थी.शूटर दादी प्रकाशी तोमर हमारे देश की महिलाओं के प्रेरणा स्रोत हैं. इसमें  भूमि (पेडनेकर और मैं) फिल्म, स्क्रिप्ट और हमारी भूमिकाएं दोनों अलग-अलग हैं.‘‘

तापसी पन्नू के साथ फिल्म करने के एक सवाल पर भूमि ने कहा- ‘‘हम दोनो एक साथ किसी फिल्म का हिस्सा हैं,यह बात मेरे लिए रोमांच से कम नही. क्योंकि मुझे लगता है कि वह एक अभूतपूर्व अभिनेत्री हैं. जब निर्देशक तुषार ने मुझे बताया कि इस फिल्म के लिए तापसी का चयन हो चुका है, तो मुझे लगा कि यह फिल्म सिर्फ मेरे लिए ही है.शूटिंग के दौरान हम दोनों के बीच कभी कोई मतभेद नहीं रहा.सेट पर लोग शर्त लगा रहे थे कि हम कम से कम एक बार लड़ेंगे, लेकिन हमारी कभी लड़ाई नहीं हुई. हम दोनों ने अपनी भूमिकाओं पर विश्वास किया और महसूस किया कि यह फिल्म एक बड़े कारण के लिए बनाई जा रही है. हमारे पास  वैचारिक मतभेद के लिए कोई वजह नही है. हमने अपना सर्वश्रेष्ठ दिया है और मुझे लगता है कि तापसे और मैं अभिनेताओं के रूप में बहुत सुरक्षित हैं, इसलिए मुझे खुशी है कि हम साथ में थे.”

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इस फिल्म में भूमि पेडणेकर ने अस्सी साल की चंद्रो तोमर के किरदार को निभाने के लिए प्रोस्थेटिक्स मेकअप का सहारा लिया है.वह कहती हैं-‘‘जब हम अपना मेकअप करवाते थे,तो हम कामना करते थे कि काश इसे करने का कोई अन्य तरीका भी होता.मुझे  जलन भी हुई.लेकिन जैसे ही हम सेट पर आए,हम दर्द और तकलीफ भूल गए.इस तरह से हमने सेट पर खूब मस्ती की.’’

फिल्म‘‘सांड की आंख’का निर्माण अनुराग कश्यप, रिलायंस एंटरटेनमेंट और निधि परमार द्वारा किया गया है.जो कि 25 अक्टूबर को सिनेमाघरो में पहुंचेगी.

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