मुद्दा जरा टेढ़ा था लेकिन हम ने दिमाग के घोड़े ऐसे दौड़ाए कि अमीनाजी हमारी कायल हो गईं. ऐसे में पत्नीजी भी हमारी बुद्धिमानी पर नतमस्तक हुए बगैर न रह सकीं, पर तुर्रा देखो, हमारी समझदारी का श्रेय भी वे खुद ले गईं.
मैं जब अपने औफिस से लौट कर आया तो पत्नी के चेहरे पर अजीब सी खुशी नाच रही थी. मैं समझ गया कि शायद हमारी सासुजी आ रही हैं क्योंकि बरसात के मौसम में जब घने काले बादल छाए हों, बिजली चमके, मौसम में अजीब सी उमस हो तो जान लें कि तेज बरसात होने वाली है. उसी तर्ज पर पत्नीजी के चेहरे की मुसकान देख कर हम जान गए कि हमारी आफत (सासुजी) आने वाली होंगी और पता नहीं यह साढ़ेसाती कितने बरसों तक रहेगी? कब तक हम परेशान होते रहेंगे. लेकिन पत्नी ने हमारे भ्रम को तोड़ते हुए कहा, ‘‘आज आप के पसंद के पकौड़े बनाए हैं.’’
‘‘क्यों?’’
‘‘एक खुशखबरी है…’’
‘‘अच्छा,’’ हम ने डरते हुए थूक निगलते हुए आगे कहा, ‘‘मम्मीजी आ रही होंगी?’’
‘‘नहीं तो.’’
‘‘मैं मेरी मां की नहीं, तुम्हारी अम्मा की कह रहा हूं.’’
‘‘न मेरी मां, न तुम्हारी मम्मी.’’
पत्नी ने हमें संशय में डाल दिया था.
‘‘फिर क्या बात है?’’ हम ने अपने को संयत करते हुए प्रश्न किया.
‘‘मैं ने तुम्हें बताया था न, कि मेरी एक सहेली थी,’’ पत्नी ने कहा.
‘‘कौन, वो मीनाटीना?’’
‘‘जी नहीं, अमीना,’’ पत्नी ने बताया.
‘‘अमीना के बारे में तो कभी नहीं बताया.’’
‘‘भूल गई शायद.’’
‘‘कौन, वो…?’’
‘‘जी नहीं, मैं बताना भूल गई.’’
‘‘तो क्या हो गया.’’
‘‘वह दिल्ली जा रही थी, तो उस ने खबर दी कि वह यहां रुकते हुए आगे जाएगी,’’ पत्नी ने बताया.
‘‘तो ठीक है न, आ जाने दो.’’
‘‘लेकिन…?’’
‘‘लेकिन क्या?’’
‘‘वह मुसलमान है.’’
‘‘तो क्या हो गया?’’
‘‘तुम ऐडजस्ट कर लोगे?’’
‘‘मुझे ऐसा क्या करना है. आए, शौक से,’’ मैं ने कहा.
‘‘तुम कितने अच्छे हो.’’
‘‘सो तो पहले से ही हूं.’’
‘‘जानती हूं इसलिए तो मैं ने तुम से शादी की,’’ पत्नी ने जवाब दिया, फिर मेरे सामने गोभी के पकौड़े रखते हुए वे कहने लगीं, ‘‘जानते हैं, अमीना और हमारा घर पासपास था. हम दोनों के बीच कभी भी धर्म दीवार नहीं बनी. हमारे त्योहार में वह भागीदारी करती थी और ईद पर हम सब उस के घर जाते थे. कभी किसी भी तरह का धर्म या जाति का भेदभाव नहीं था. उस के बाद वह स्थानीय चुनाव में खड़ी हो गई थी. उसे जिताने में हम ने एड़ीचोटी की ताकत लगा दी थी और वह जीत गई थी. क्या दिन थे वे…’’
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पत्नीजी अपने में गुम मुझे पूरा किस्सा सुनाए जा रही थीं. मैं हूं हां करते जा रहा था.
‘‘तर्क देने में तो वह माहिर है.’’
‘‘कौन?’’
‘‘अमीना, और कौन,’’ पत्नी समझ गई थी कि मेरा ध्यान उस ओर कम ही है, इसलिए वह नाराज हो कर किचन में चली गई. मैं न्यूज देखने लगा था. रात को भोजन किया तो पत्नी की आंखों में अपनी सहेली के आने की खुशी जाहिर हो रही थी. खरबूजे को तो कटना ही है, चाहे सासू के नाम पर, चाहे सहेली के नाम पर.
सुबह 8 बजे टैक्सी रुकी तो अमीनाजी ने हमारे गरीबखाने में प्रवेश किया. दोनों सहेलियां गलबहियां हुईं. हम से परिचय हुआ. हमारी शादी के समय वह कहीं विदेश गई हुई थी. इसलिए हम से माफी मांगी और मैरिज का गिफ्ट शादी के
7 बरसों बाद ला कर दिया. हम ने भी दांतों को निपोरते हुए स्वीकार कर लिया. इस में 2 मत नहीं थे कि अमीना वास्तव में बहुत सुंदर थी. बातचीत में तहजीब थी. उस की आवाज का सुर कम था, लय में था जबकि हमारी बेगम का तो बेसुर कभीकभी तो गधे को मात देने वाला हो जाता था. वह जब चीखती तो मैं शांत ही रहना पसंद करता था.
सुबह नाश्ते में इतने विभिन्न प्रकार के व्यंजन थे कि तबीयत खुश हो गई. नाश्ते के टेबल पर मैं ने प्रशंसा करते हुए अमीनाजी से कहा, ‘‘आप तो महीने में
4-6 बार आ जाया करें.’’
‘‘क्यों?’’
‘‘ताकि हमारी बेगम इतने वैरायटी का नाश्ता रोज बना कर खिलाएं.’’ पत्नीजी ने हंसते हुए कहा, ‘‘जनाब, यह मेहनत, मेरी नहीं, अमीना की है. यह खाना पकाने में भी मास्टर है.’’ अमीना थोड़ा शरमा गई थी.
‘‘भई अमीनाजी, कुछ प्रकार का नाश्ता इधर भी सिखा देना.’’
अमीना चुप हो गई, लेकिन अणुबम जैसे आग्नेय नेत्रों से पत्नी ने हमें देखा.
नाश्ते के बाद हम घूमने गए. अगले दिन अमीनाजी को रवाना होना था. एक समाचारपत्र वाहक सांध्य का समाचारपत्र ले कर चीखता हुआ निकला. वह हैडलाइन को देख कर चीख रहा था, ‘‘राज्य में गौमांस पर प्रतिबंध…’’
मैं ने पेपर लिया. उस को पढ़ा. उस में लिखा था, ‘पूरे देश में गौहत्या या बीफ के मांस पर रोक लगाने के लिए सरकार विचार कर रही है.’
पत्नीजी बड़ी धार्मिक प्रवृत्ति की थीं, उन्होंने खुश हो कर कहा, ‘‘चलो, हमारी गौमाता अब मरने से बचेगी.’’
मुझ से नहीं रहा गया, मैं ने कहा, ‘‘बूढ़ी होने पर उसे सड़कों पर छोड़ देंगे मरने के लिए.’’
‘‘उस में तैंतीस करोड़ देवीदेवताओं का वास होता है,’’ पत्नी ने तर्क दिया.
‘‘एक बात बताओ, रेलगाड़ी से कट कर या ट्रक से टकरा कर जब
वह मरती है तो यह तैंतीस करोड़ देवीदेवता कहां चले जाते हैं? वे भी कटमरते होंगे?’’
‘‘चुप रहो, फालतू की बातें नहीं करते,’’ पत्नीजी ने तुनक कर कहा.
‘‘यार, जीजाजी सही ट्रैक पर हैं, तुम इस बात का जवाब दो. ये तर्क की बातें हैं,’’ अमीना ने बातों को आगे बढ़ाते हुए कहा.
‘‘तुम ही बताओ, अरबों का मांस विदेश में निर्यात होता है, हजारों लोग इस व्यवसाय में लगे हैं, वे सब बेरोजगार हो जाएंगे. फिर सस्ता प्रोटीन जो मिलता है वह भी नहीं मिल पाएगा. यह तो किसी एक वर्ग एक जाति को संतुष्ट करने की राजनीतिभर है,’’ मैं ने अमीना के सामने खुद को बुद्धिमान साबित करते हुए कहा.
‘‘क्या मतलब?’’ पत्नी लगभग दहाड़ीं.
‘‘तुम नाराज मत हो तो एक बात कहूं?’’
‘‘कहिए न जीजाजी,’’ अमीनाजी ने मजे लेते हुए कहा.
‘‘देखो, हिंदुओं में गाय की पूजा होती है, इसलिए धर्म के खिलाफ है गौहत्या. कहो, सच है?’’
‘‘बिलकुल सच है.’’
‘‘धर्म में ऐसा उल्लेख है, ऐसा कहा जाता है.’’
‘‘बिलकुल,’’ पत्नीजी ने उछलते हुए कहा.
‘‘हमारा देश धर्मनिरपेक्ष है.’’
‘‘हां, है,’’ पत्नी ने कहा.
‘फिर एक बात बताएं?’
‘‘कहिए?’’
‘‘अमीनाजी इसलाम में शराब को हराम माना गया है, उन के धर्म की चिंता करते हुए पूरे देश में शराबबंदी हो जानी चाहिए.’’
‘‘हां, यह तो सच है,’’ पत्नीजी ने कहा.
‘‘क्या सरकार कर पाएगी?’ बिलकुल नहीं. देश में कुछ राज्यों में चूहे को खाया जाता, कुछ राज्यों में कुत्तों को खाया जाता है और कुछ राज्यों में भैंसे को खाया जाता है. डियर, एक बात बताओ, इन में से कौन सा पशु हिंदू देवीदेवता का पूजनीय नहीं है? गणेश को ले कर दत्तात्रेय तक सब पशु देवताओं के नाम के साथ जुड़े हैं. क्या सरकार खुद को धर्मनिरपेक्ष साबित करने के लिए इन जानवरों को मार कर खाने पर प्रतिबंध लगाएगी? बिलकुल नहीं.’’
‘‘यह बात बिलकुल सच है, जीजाजी,’’ अमीना ने खुश हो कर कहा.
‘‘अरे, हमारे धर्म में तो चींटी, चिडि़या, बरबूटे, मोर, सारस, तोता, उल्लू सब खाए जाते हैं और सब किसी न किसी देवीदेवता के वाहन हैं. फिर बताओ, क्या देश में सरकार खुद को धर्मनिरपेक्ष साबित करने के लिए मांसाहार पर प्रतिबंध लगा सकती है? देश की 35 प्रतिशत आबादी मांसाहार पर निर्भर है. और तो और, कछुआ, सांप, अजगर, मछली तक खाए जाते हैं जो कि हमारे देवीदेवता के पूज्य वाहन हैं. मैं ऐसे किसी भी प्रतिबंध के खिलाफ हूं. जिसे नहीं खाना है वह न खाए. लेकिन झूठी धर्मनिरपेक्षता की आड़ में, झूठी प्रसिद्धि पाने का प्रयास करना गलत है. क्यों अमीनाजी, सच है या गलत?’’
अमीनाजी खुश हो गईं और मेरी पत्नी को एक ओर खींच कर ले गईं. थोड़ी देर में पत्नी आईं और फिर हम लौट कर घर आ गए.
सुबह अमीनाजी गईं तो हम सब को बहुत दुख हो रहा था बिछुड़ने का. अमीनाजी चली गईं तो मैं ने पत्नीजी से प्रश्न किया, ‘‘बीच बहस में तुम उठ कर अमीना के साथ कहां चली गई थीं? और अमीना ने तुम से क्या कहा था जो तुम एकदम शांत हो कर लौटी थीं?’’
पत्नीजी थोड़ा मुसकराईं और कहने लगीं, ‘‘वह मुझे खींच कर एक ओर ले गई और मेरा हाथ जोरों से पकड़ कर कहा, ‘तुझे बधाई हो.’ मैं ने पूछा, ‘किस बात की बधाई?’ तो उस ने कहा, ‘मालिक ने तुझे इतना समझदार, तर्क में निपुण पति दिया है. सच में यहां आ कर धन्य हो गई. मेरी इच्छा तो उन्हें उस्ताद बनाने की हो रही है.’’
‘‘सच, यही कहा था अमीनाजी ने?’’ मैं ने खुश हो कर पूछा.
‘‘बिलकुल सच. उस के बोलने के बाद मुझे लगा कि अमीना जैसी तार्किक बात करने वाली यदि तुम्हारी इतनी प्रशंसा कर रही है, तो दम तो है तुम में,’’ पत्नीजी ने खुश हो कर कहा.
‘‘सो तो हम हैं ही,’’ मैं ने हंस कर कहा.
‘‘वो तो तुम शादी होने के बाद इतने बुद्धिमान हो गए, वरना मैं जानती हूं तुम कैसे थे?’’ पत्नी ने कहा और मेरे किसी तरह के उत्तर को सुने बिना अंदर किचन में चली गई थीं.