family story in hindi
family story in hindi
इस तरह के विचार मन में आने के बाद शारदा कोशिश करने के बाद भी खुशबू के प्रति अपने व्यवहार को सामान्य नहीं कर पा रही थीं. यह बात जैसे आहिस्ताआहिस्ता शारदा के मन में घर बना रही थी कि 7 वर्ष पहले शायद नर्सिंगहोम में उस के बच्चे को भी बदल कर किसी दूसरे को दे दिया गया. अगर ऐसा हुआ था तो उस ने अवश्य एक बेटे को ही जन्म दिया होगा.
मन में उठने वाले इन विचारों ने जैसे शारदा के जीवन का सारा सुखचैन ही छीन लिया.
अपने मन में चल रहे विचारों के मंथन को शारदा अपने पति रमाकांत से छिपा नहीं सकी थी. उन ने बोलीं कि मैं ने भी तो अपने तीसरे बच्चे को इसी नर्सिंगहोम में जन्म दिया था. क्या ऐसा नहीं हो सकता कि औरों की तरह मैं ने भी कहीं धोखा ही खाया हो? खुशबू वास्तव में हमारी बच्ची न हो?’’
शारदा की बात सुन रमाकांत स्तब्ध रह गए, ‘‘उन्हें इस तरह की बातें नहीं सोचनी चाहिए. ऐसी बातों का अब कोई मतलब नहीं. 7 साल बीत चुके हैं. ऐसी बातें सोचने से हमारी ही परेशानी बढ़ेगी,’’ रमाकांत ने उन्हें सम झाने की कोशिश की.
‘‘मैं चाह कर भी इस शक को अपने मन से निकाल नहीं सकती. क्या तुम्हें नहीं लगता कि 7 साल पहले हमारे साथ जो कुछ भी हुआ था अजीब हुआ था? अपने दिल पर जरा हाथ रख कर कहो मैं जो भी कह रही हूं गलत कह रही हूं? तुम कह सकते हो कि पंडित और ज्योतिषयों ठोंग करते हैं. उन की बातें झूठी होती हैं. मगर क्या मशीनें भी झूठ बोलती हैं? मैडिकल साइंस भी अंधी है?’’
‘‘तुम्हारी इन सारी बातों के मेरे पास जवाब नहीं शारदा, मगर मैं तुम से इतना ही पूछना चाहता हूं कि गड़े मुरदे को उखाड़ने से क्या फायदा होगा? मैं मानता हूं नर्सिंगहोम में बहुत से लोगों के साथ धोखा हुआ, मगर इस बात का कोई सुबूत हम लोगों के पास नहीं कि उन लोगों में हम शामिल थे ही. बेकार मन में वहम पालो कि खुशबू हमारी बेटी नहीं.’’
‘‘यह वहम नहीं, एक हकीकत हो सकती है,’’ शारदा ने शब्दों पर जोर देते हुए शारदा ने कहा.
‘‘मैं तुम्हारी बात मान भी लूं, तो इस हकीकत को साबित कौन करेगा? रमाकांत का लहजा तलख हो गया.
‘‘हमें पुलिस से संपर्क करना चाहिए.’’
‘‘क्या पुलिस इस बात का फैसला करेगी कि खुशबू हमारी बेटी है या नहीं?’’
‘‘तुम हमेशा मेरी बात का उलट मतलब निकालते हो, पुलिस सारे मामले की जांच कर रही है. वह इस मामलें में हमारी मदद कर सकती है,’’ शारदा ने कहा. उन के स्वर में बेसब्री थी.
‘‘तुम्हारे कहने का मतलब यह है कि हम अपने पैरों पर खुद ही कुल्हाड़ी मारें. पुलिस के पास जाए और उस से कहें कि हमें शक है कि खुशबू हमारी बेटी नहीं, नर्सिंगहोम वालों ने बेइमानी कर के हमारे बच्चे को भी बदल दिया था. जानती हो इस के बाद क्या होगा? पुलिस इस मामले में हमें जांच का आश्वासन देगी, मगर इस के साथ ही वह एक काम और भी करेगी और खुशबू को हम से छीन किसी अनाथालय में भेज देगी. वह तब तक उसी अनाथालय में रहेगी जब तक पुलिस की जांच पूरी नहीं हो जाती. इस के साथ ही अगर तुम्हारे शक के मुताबिक पुलिस की जांच में यह साबित हो जाए कि नर्सिंगहोम वालों ने हमारा बच्चा भी बदला था तो इस बात की कोई गारंटी नहीं कि खुशबू के बदले में हमें कोई दूसरा बच्चा मिल ही जाएगा. अगर तुम इन सब चीजों का सामना करने के लिए तैयार हो तो मैं पुलिस स्टेशन चलने को तैयार हूं,’’ रमाकांत ने पत्नी को गहरी नजरों से देखते हुए कहा.
इस पर शारदा मानो धर्मसंकट में पड़ती हुई नजर आईं. इस के बाद पुलिस के पास जाने की बात शारदा ने पति से नहीं की. हां पंडित रामकुमार तिवारी से जरूर जिक्र किया, पर पुलिस के पास जाने को उस ने भी मना किया.
बिना कुछ हासिल किए ही कोई चीज गंवाने का रिस्क उठाने की हिम्मत शारदा में नहीं थी. अपने शक के कारण पुलिस के पास जाने का खयाल तो शारदा ने फिलहाल मन से निकाल दिया, मगर इस से उस के मन में जैसे घर बना चुका वहम नहीं निकला कि वह भी नर्सिंगहोम वालों के धोखे की शिकार है.
शारदा के मन के वहम ने मासूम खुशबू के जीवन को बहुत ही उदास बना डाला था. वह मम्मी में पहले वाला प्यार ढूंढ़ती नजर आती थी जो उसे नहीं मिलता था. मम्मी के व्यवहार की बेरुखी देख मासूम खुशबू यह भी नहीं सम झ पाती कि उस से गलती क्या हुई है?
रमाकांत खुशबू के पति शारदा के बदले व्यवहार से परेशान थे, पर समस्या के तत्काल समाधान का रास्ता नहीं सू झ रहा था.
सारी कशमकश के बीच एक नई बात कह कर शारदा ने रमाकांत के लिए एक नया सिरदर्द पैदा कर दिया.
डीएनए के माने वास्तव में क्या थे और वह क्या था यह तो शारदा को मालूम नहीं था, मगर पंडित रामकुमार तिवारी के कहने पर और टीवी पर खबरें सुनने से उन्हें इतना अवश्य मालूम था कि उन के टैस्ट से किसी भी बच्चे के असली मांबाप का पता लगाया जा सकता है.
शारदा ने रमाकांत से कहा, ‘‘पंडितजी कह रहे थे कि एक टैस्ट होना है जिस से किसी भी बच्चे के असली मांबाप के बारे में बिलकुल सही ढंग से जाना जा सकता है. मैं ने मोबाइल पर पढ़ा था, डीएनए या ऐसा ही कोई मिलताजुलता नाम था इस टैस्ट का. क्यों न हम भी अपना व खुशबू का टैस्ट करवा लें? उस से दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा. पंडितजी ने एक लैब का कार्ड भी दिया है कि वह उन की जानपहचान की है.
शारदा की बात सुन रमाकांत कुछ पलों के लिए तो हक्काबक्का रह गए.
वे नहीं जानते थे कि खुशबू को ले कर शारदा की सोच इस हद तक चली गई है.
‘‘इस टैस्ट को क्या तुम ने कोई मजाक सम झा है? इस पर बहुत पैसा खर्च होगा,’’ रमाकांत ने शारदा को टालने की गरज से कहा.
‘‘चाहे जितना भी खर्च आए करो, मगर किसी तरह भी मु झे मेरी दिनरात की दिमागी तकलीफ से छुटकारा दिलाओ वरना यह मु झे मार डालेगी,’’ शारदा ने कहा.
शारदा की बात से रमाकांत को लगा कि मामला एक नाजुक शक्ल ले रहा है. खुशबू को ले कर लगातार अंदर से घुल रही शारदा का तनाव खतरनाक सीमा तक बढ़ गया है. अगर जल्दी शारदा को उस की वर्तमान मनोस्थिति से बाहर निकालने का कोई रास्ता नहीं खोजा गया तो इस के बुरे नतीजे सामने आ सकते हैं.
रमाकांत ने इस बारे में बहुत सोचा, बहुत मंथन किया. अंत में इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि शारदा को उन की वर्तमान मनोस्थिति में से निकालने के लिए झूठ का ही सहारा लेना पड़ेगा.
तभी रमाकांत को अपने बचपन के दोस्त सतीश धवन की याद आ गई, जो डाक्टर था.
सतीश धवन अपने क्लीनिक के साथसाथ एक लैब का भी मालिक था. रमाकांत ने डाक्टर सतीश धवन से मिल कर उसे अपनी सारी समस्या बताई. रामकुमार तिवारी के दिए गए लैब के कार्ड को भी दिखाया.
अखबार में छपी एक खबर की वजह से एक ही दिन में जैसे खुशबू की सारी दुनिया ही बदल गई. अपनों के बीच जैसे खुशबू एकाएक बेगानी हो गई.
देखने में तो अब भी सबकुछ पहले जैसा ही दिखता था, लेकिन नजरों के साथसाथ दिलों में भी कहीं फर्क आ गया था. मम्मी के स्पर्श से भी खुशबू इस फर्क को महसूस कर सकती थी. मम्मी के स्पर्श में वैसे अब एक संकोच और दुविधा थी.
खुशबू के वजूद पर ही जैसे एक सवालिया निशान लग गया था. मगर सवाल यह भी था कि खुशबू का कुसूर क्या था? उस के जन्म के समय कहां पर क्या हुआ था, किस ने क्या बेईमानी की थी उसे क्या मालूम.
अखबार में छपी खबर ने 7 वर्षीय खुशबू को उस के अपने ही घर में अजनबी जैसा बना दिया था. बाहर के एक नर्सिंगहोम के स्कैंडल को ले कर भी इस प्राइवेट नर्सिंगहोम को पुलिस ने सील कर के उस की संचालिका और नर्सिंगहोम में काम करने वाली कुछ नर्सों को भी गिरफ्तार कर लिया था. पुलिस ने यह सारी काररवाई उस नर्सिंगहोम में बच्चे को जन्म देने वाली एक महिला की शिकायत पर की थी. शिकायत करने वाली महिला का आरोप था कि नर्सिंगहोम में उस के बच्चे को बदल दिया गया, महिला के अनुसार उस ने नर्सिंगहोम में जिस बच्चे को जन्म दिया था वह एक लड़का था. मगर उस के बदले में उसे एक लड़की मिली थी.
शिकायत करने वाली महिला ने बच्चे को बदले जाने के संबंध में नर्सिंगहोम की 2 नर्सों पर अपना शक जाहिर किया था.
महिला की शिकायत पर पुलिस ने काररवाई करते हुए दोनों नर्सों को अपनी हिरासत में ले कर जब कड़ाई से पूछताछ की तो एक बहुत बड़ा और सनसनीखेज स्कैंडल सामने आया. स्कैंडल में नर्सिंगहोम को जाली डाक्टरी सर्टिफिकेट के साथ चलाने वाली उस की मालकिन भी शामिल थी. उसे भी पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था.
पुलिस की तफतीश से खुलासा हुआ कि 16 वर्ष पहले अपने अस्तित्व में आने के बाद से ही नर्सिंगहोम लोगों की आंखों में धूल झोंक रहा था. वहां न केवल गैरकानूनी तरीके से कुंआरी मां बनने वाली लड़कियों के गर्भपात किए जाने थे बल्कि बच्चा गोद लेने के इच्छुक लोगों को भी बच्चा मोटी रकम में बेचा जाता था.
यहां डिलिवरी कराने वाली कई युवतियों के बच्चों को भी गुपचुप बदल दिया था. इस काम के बदले में भी एक खूब मोटी रकम बसूल की जाती थी.
नर्सिंगहोम की संचालिका और बाकी स्टाफ से पूछताछ करने पर पुलिस को मालूम हुआ कि इस की कोई गिनती या रिकौर्ड नहीं था कि नर्सिंगहोम में कितनी युवतियों के शिशुओं को बदला गया. बेटे की चाह रखने वाले कितने लोगों को उन के यहां बेटी होने की सूरत में किसी दूसरे का बेटा मोटी रकम बसूल कर दे दिया गया था. इस का भी कोई रिकौर्ड नहीं था. 7 वर्ष पहले खुशबू ने भी पुलिस के द्वारा सील किए गए इसी नर्सिंगहोम में जन्म लिया था.
खुशबू की दोनों बड़ी बहनों ने तो सरकारी अस्पताल में जन्म लिया था. इस के लिए घर की माली हालात की मजबूरी थी. खुशबू के पापा रमाकांत अपनी पहली दोनों बेटियों के जन्म के समय किसी प्राइवेट नर्सिंगहोम का खर्चा नहीं उठा सकते थे.
मगर खुशबू के जन्म के समय उस के पापा रमाकांत के हाथ में थोड़े पैसे थे अगर नहीं भी होते तो वे उधार ले कर भी किसी नर्सिंगहोम का खर्चा उठाते क्योंकि ऐसा खुशबू की मम्मी शारदा भी चाहती थीं.
2 बेटियों की मां बन चुकीं शारदा के लिए तीसरा बच्चा बड़ा माने रखता था और वे कोई भी रिस्क नहीं लेते हुए पूरी एहतियात से काम लेना चाहती थीं.
वास्तव में तीसरे बच्चे के जन्म के समय शारदा बेटे की चाहत और कल्पनाओं से सराबोर थी.
बेटे की चाहत में शारदा ने पंडित रामकुमार तिवारी को पकड़ा था. उन्होंने ही दोनों को वृंदावन जाने को कहा था. आश्रम का पता दिया था. वहां के पहुंचे हुए स्वामी को फोन कर दिया था. दोनों ने कई हजार रुपयों की भेंट दी थी.
रामकुमार तिवारी दावे से कह रहे थे कि शारदा के गर्भ में मौजूद उस का तीसरा बच्चा एक लड़का ही होगा. लिंग निर्धारण टैस्ट चूंकि गैरकानूनी था, इसलिए कोई भी टैस्ट लेबोरट्री अलट्रासाउंड करने के उपरांत लिखित रूप से यह गारंटी देने को तैयार नहीं थी कि शारदा के गर्भ में मौजूद बच्चा एक लड़का है जुबानी तौर पर शारदा से यही कहा गया कि उस की गर्भ में मौजूद तीसरा बच्चा एक लड़का ही.
मगर एक बेटे की मां बनने की शारदा की सारी उम्मीदों पर तब कुठाराघात हुआ जबउसे बताया गया कि उस का तीसरा बच्चा भी लड़की है.
शारदा का तो जैसे दिल ही टूट गया. रामकुमार तिवारी पंडित और अन्य ज्योतिषियों की सारी बातें गलत साबित हुई थीं. अल्ट्रासाउंड करने वाली लैबोरटरी की जबानी कही बात भी गलत निकली. रामकुमार तिवारी फिर भी कह रहे थे कि यह कोई चमत्कार है. उन का कहा गलत हो ही नहीं सकता. लड़की होने पर भी वे क्व20 हजार झटक गए थे.
शारदा को ही नहीं, तीसरी बेटी के आने से रमाकांत को भी सदमा लगा था. बेटे की चाहत में चौथी संतान के खयाल से भी उन दोनों ने तोबा कर ली.
तीसरी बेटी खुशबू को जन्म देने के बाद शारदा काफी दिनों तक बु झीबु झी रही थीं. पूजापाठ और उपवासों पर से जैसे उन का विश्वास ही डगमगा गया. रामकुमार तिवारी ने आना बंद नहीं किया पर अब वे दक्षिणा नहीं मांगते पर चौथे बच्चे के लड़के होने की गारंटी देने लगे थे. वे अभी भी गलती मानने को तैयार न थे.
खुशबू को जन्म देने के बाद शारदा ने बु झे मन के कारण उस के प्रति 1-2 दिन बेरुखी दिखाई थी, मगर जब शारदा की ममता ने जोर मारा तो अपनी मायूसियों को भूल खुशबू को स्वीकार कर लिया.
खुशबू को स्वीकार करने के बाद एक मां के रूप में शारदा ने न तो उसे अपनी पहली दोनों बेटियों से कम प्यार दिया और न ही उस की कभी उपेक्षा ही की.
खुशबू के जन्म के बाद शारदा को उस की मायूसी से निकालने में रमाकांत का भी काफी योगदान था. उन्होंने शारदा को सांत्वना देते हुए कहा था कि आज के युग में बेटियां किसी भी लिहाज से बेटों से कम नहीं. हमें जो भी मिला है उसे हमें खुशीखुशी स्वीकार करना चाहिए.
खुशबू को स्वीकार कर लिया गया था. वह छोटी होने की वजह से मांबाप की लाड़ली बन गई थी.
सबकुछ ठीकठाक चल रहा था कि उस नर्सिंगहोम की काली करतूतों का पुलिस के द्वारा भंडाफोड़ कर दिया गया जहां 7 वर्ष पहले खुशबू का भी जन्म हुआ था.
नर्सिंगहोम की करतूतों का भंडा फोड़ होने के बाद बीता हुआ कल जैसे एक सवाल की शक्ल में सामने आ कर खड़ा हो गया था. पंडित रामकुमार तिवारी फिर बारबार आने लगे थे. इस नर्सिंगहोम की करतूतों की चर्चा वे जोरशोर से करते थे.
शारदा दुविधा और संदेह में घिर गई थी. वह सोचने को मजबूर हो गई थी कि क्या 7 वर्र्ष पहले नर्सिंगहोम में उस के साथ भी कोई धोखा ही हुआ था? क्या पंडितों और ज्योतिषियों की कही बातें वास्तव में सही थीं? लैबोरटरी वालों ने भी कोई गलतबयानी बच्चे के लिंग को ले कर नहीं की थी. दूसरों महिलाओं की तरह नर्सिंगहोम में उस के साथ भी तो कोईर् धोखा नहीं हो गया था?
रमाकांत की सारी बात सुन डाक्टर सतीश धवन कुछ पलों के लिए सोच में पड़ गया और फिर बोला, ‘‘शारदा भाभी कहां तक पढ़ी हैं?’’
‘‘जहां तक मैं जानता हूं 12वीं से ज्यादा नहीं,’’ रमाकांत ने कहा.
‘‘आजकल डीएनए वाली
बात तो हरकोई जानता है. जगहजगह आईवीएफ के बोर्ड लगे हैं. सैरोगेट मदर का भी नाम उछलता रहता है,’’ डाक्टर सतीश ने गंभीरता से कहा.
‘‘जब आप के घर के अंदर व्हाट्सएप जैसा शुरू हो तो आप उन चीजों के बारे में भी आसानी से जान जाते हैं जोकि देखने में आप से बहुत दूर होता है और फिर वह पंडित रामकुमार तिवारी भी तो है जो लैब का कार्ड ले गया.’’ रमाकांत ने कहा तो वह व्हाट्सएप और पंडितों के जरिए मिला ज्ञान है. तब समस्या कोई बड़ी नहीं, तुम कल ही शारदा और खुशबू को ले कर वहां आ जाना. बाकी मैं देख लूंगा. सतीश ने कहा.
अगले दिन रमाकांत ने शारदा को खुद तैयार होने
और खुशबू को भी तैयार करने
को कहा.
‘‘कहां चलना है?’’ शारदा
ने पूछा.
इस पर रमाकांत ने फुसफुसाती हुई आवाज में कहा, ‘‘डाक्टर सतीश के कहां.’’
‘‘किसलिए?’’ शारदा ने पूछा.
‘‘तुम खुशबू को ले कर जो डीएनए टैस्ट करवाने की बात कर रही थी न, उसी के सिलसिले में,’’ रकामांत ने कहा.
रमाकांत के शब्द सुन कर शारदा एकाएक सकते में आ गईं. बोलीं, ‘‘इतनी अचानक ये सब? तुम ने मु झे इस के बारे में पहले कुछ बताया भी नहीं?’’
‘‘मैं ने कल ही डाक्टर सतीश से इस बारे में बात की थी. मैं तुम को बतलाना भूल गया था. डाक्टर सतीश हम तीनों के शरीर में से कुछ चीजों के नमूने ले कर बाहर किसी ऐसे शहर भेजेगा जहां किसी प्रयोगशाला में डीएनए टैस्ट की व्यवस्था होगी. रिपोर्ट के आने में 8-10 दिन का वक्त लगेगा.’’
कशमकश में नजर आ रही शारदा खामोश रहीं. जब सच का सामना करने की स्थिति पास आ कर खड़ी हो गई तो शारदा के अंदर एक दूसरी ही तरह का द्वंद्व शुरू हो गया था.
खुशबू और शारदा को साथ ले कर रमाकांत सुबह 11 बजे डाक्टर सतीश धवन के क्लीनिक पहुंच गए. डाक्टर धवन की लैब उस के क्लीनिक के ही एक हिस्से में थी.
डीएनए टैस्ट के नाम पर एक ड्रामा ही तो करना था, सब से पहले डाक्टर सतीश रमाकांत को साथ ले कर लैब के अंदर गया. लैब के अंदर डाक्टर सतीश ने रमाकांत के साथ बैठ आराम के साथ 5-7 मिनट तक गपशप की और फिर दिखावे के लिए उस ने रमाकांत के अंगूठे और कलाई पर पट्टी चिपका उन्हें लैब से बाहर भेज दिया.
लैब से बाहर आ कर रमाकांत ने तनाव में दिख रही शारदा को अंदर भेज दिया. ये सब देख मासूम खुशबू काफी डरी नजर आ रही थी. वह कुछ भी सम झने में असमर्थ थी.
सारे ड्रामे को असली रूप देने के लिए डाक्टर सतीश ने शारदा के साथ सबकुछ असली ही किया. शरीर के 1-2 हिस्सों में से खून ले कर उसे कांच की टैस्ट प्लूबों में डाला.
डाक्टर सतीश कोई भी ऐसा काम करना नहीं चाहता था जिस से शारदा के मन में जरा सा भी कोई शक पैदा हो.
वास्तविकता यह थी कि शारदा के खून के नमूनों की न तो सतीश खुद ही कोई जांच करने वाला था और न ही कहीं भेजने वाला था. खुशबू को ले कर शारदा के मन में बने संशय और दुविधा को दूर करने के लिए उस को यह विश्वास दिलाना जरूरी था कि खुशबू को ले कर वास्तव में ही कोई डीएनए टैस्ट होने वाला है.
शारदा के बाद डाक्टर सतीश डरी, घबराई खुशबू को लैब के अंदर ले गया.
शक की गुंजाइश कोई न रहे इस बात का खयाल कर के न चाहते हुए भी डाक्टर सतीश को उस के हाथ की एक उंगली में सूई चुभो कर खून निकालना पड़ा.
जब शारदा और खुशबू को ले कर रमाकांत डाक्टर सतीश से वापस आने लगे तो डाक्टर सतीश ने धीमी आवाज में कहा, ‘‘मैं जो कुछ भी कर रहा हूं वह मेरे पेशे के साथ सरासर बेईमानी है.’’
‘‘किसी अच्छे काम के लिए की जाने वाली बेईमानी, बेईमानी नहीं होती,’’ रमाकांत ने जवाब में कहा.
शारदा जैसी औरतों के जटिल मनोविज्ञान को सम झना वास्तव में ही बड़ा कठिन होता है.
डाक्टर सतीश धवन के यहां से आने के बाद रमाकांत ने शारदा में फिर एक परिवर्तन देखा. उन्होंने देखा कि पिछले कुछ दिनों से खुशबू के प्रति बेरुखी दिखा रही शारदा एक बार फिर से उस के लिए प्रेम दिखाने लगी है. खुशबू के प्रति उस का लगाव पहले से अधिक बढ़ गया था.
यह देख रमाकांत भी हैरान थे. रमाकांत यह भी महसूस कर रहे थे कि डाक्टर सतीश के वहां से आने के बाद शारदा पहले से भी अधिक बेचैन और कशमकश में है.
वैसे शारदा को इस बात का कोई इल्म नहीं था कि खुशबू के डीएनए टैस्ट के नाम पर डाक्टर सतीश ने जो कुछ भी किया वह केवल एक नौटंकी था. शारदा के मन से खुशबू को ले कर जो सुविधा और वहम था उसे निकालने के लिए डीएनए टैस्ट की झूठमूठ की रिपोर्ट डाक्टर सतीश ने ही तैयार करनी थी.
शारदा इतनी पढ़ीलिखी नहीं थी कि इस झूठ को असानी से पकड़ पाती. डीएनए की बात करने वाली शारदा उस की एबीसी भी नहीं जानती थी. वैसे रमाकांत को यह भी विश्वास था कि डीएनए वाली बात का जिक्र शारदा किसी दूसरे से नहीं करेगी. जब उस ने पंडित रामकुमार तिवारी को डीएनए टैस्ट दूसरी लैब से कराने की बात कही तो वे बेचैन हो उठे थे. कल आऊंगा कह कर चलते बने थे पर आए नहीं.
8-10 दिन बीत गए. इस बीच एक बार भी शारदा ने डीएनए टैस्ट की रिपोर्ट का जिक्र रमाकांत से नहीं किया. ऐसा लगता जैसे उस की रिपोर्ट में कोई दिलचस्पी ही नहीं रही.
रमाकांत के लिए ये सब आश्चर्य के साथसाथ उल झन से भी भरा था.
इन 8-10 दिन में शारदा खुशबू के पहले से भी अधिक करीब नजर आने लगी थीं. कई
बार ऐसा भी लगता था कि जैसे शारदा अपनेआप से लड़ रही हों.
8-10 दिन के बाद रमाकांत ने डाक्टर सतीश से बात करने के बाद स्वयं ही शारदा से कहा, ‘‘डाक्टर सतीश का टैलीफोन आया था. उस का कहना था कि डीएनए टैस्ट की रिपोर्ट आ गई है.’’
रमाकांत की बात को सुन शारदा एकदम भावहीन और ठंडी रहीं. कुछ नहीं कहा.
यह देख रमाकांत ने कहा, ‘‘मैं शाम को घर आते हुए डाक्टर सतीश के क्लीनिक से रिपोर्ट लेता आऊंगा.’’
रमाकांत की इस बात पर भी शारदा ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी.
शाम को रमाकांत डाक्टर सतीश के यहां से एक बंद लिफाफा ले आए. लिफाफे के अंदर खुशबू की तथाकथित डीएनए रिपोर्ट थी. रिपोर्ट में क्या है, रमाकांत को मालूम था. डाक्टर सतीश ने उस की मनमाफिक रिपोर्ट ही बनाई थी.
बंद लिफाफा शारदा के सामने करते हुए रमाकांत ने कहा, ‘‘इस रिपोर्ट का संबंध हम लोगों के निजी जीवन से है, इसलिए डाक्टर सतीश ने इसे पढ़ना ठीक नहीं सम झा. इस से पहले कि मैं लिफाफा खोल इस रिपोर्ट को पढ़ूं तुम्हारे मन का शक सही भी हो सकता है और गलत भी. तुम्हें हर स्थिति का सामना शांत रह कर करना होगा.’’
अंतर्द्वंद्व में फंसी शारदा ने कुछ पल खामोश नजरों से रमाकांत और हाथ में पकड़े लिफाफे को देखा. फिर उन्होंने जो किया वह अप्रत्याशित था.
शारदा ने रमाकांत के हाथ से लिफाफे को बिजली की सी तेजी से छीना और फिर उस के टुकड़ेटुकड़े कर दिए. इस के साथ ही ऐसा लगा जैसा वे अपनी कशमकश और अंतर्द्वंद्व से एक फटके में बाहर आ गई हो. पंडित रामकुमार तिवारी उस दिन से कभी नहीं आए.
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