लौकडाउन के समय सरकार ने दोपहिया वाहनों पर केवल एक सवारी के ही चलने का नियम बना दिया. इस नियम को तोडने वाले 500 लोगों से केवल उत्तर प्रदेश में जुर्माना वसूल किया गया. कडाउन के दौरान सबसे अधिक दो पहिया वाहनों का प्रयोग किया गया. लौकडाउन में अप्रैल-जून माह में दोपहिया वाहनों की बिक्री षून्य रही. लौकडाउन खुलते ही वाहन बाजार मंस सबसे पहले दो पहिया वाहनो की ही बिक्री षुरू हुई. जुलाई माह में 5 फीसदी ब्रिकी के साथ अगस्त माह में 15 फीसदी के कारीब ब्रिकी होने लगी.
दो पहिया वाहन कारोबार के जानकार मोहम्मद जफर कहतें है कि फेस्टिवल सीजन में दो पहिया वाहनो की बिक्री 50 फीसदी से अधिक पहुचने की उम्मीद दिख रही है. इसका अर्थ यह है कि पिछले साल इन महीनों के दौरान जितनी बिक्री हुई थी उसके 50 फीसदी तक पहंुचने की उम्मीद है. मंहगी बाइको के मुकाबले कम कीमत वाली किफायती बाइक अधिक बिक रही. इसमें भी स्कूटी की सेल सबसे अधिक है. क्योकि इसका प्रयोग महिला और पुरूश दोनो कर लेते है. इसमें आगे घरेलू सामान भी रखने की जगह होती और इसको चलाना भी बाइक के मुकाबले सरल होता है. पावर में यह मोटर बाइक के कम नहीं होती है. जिन घरों में कार है वहां भी एक स्कूटी या बाइक को रखा जाने लगा है. कार के मुकाबले दो पहिया वाहन से जल्दी गंतव्य तक पहुंचा जा सकता है.
बजट बाइक का बढा क्रेज:
कोरोना सकंट के समय कंपनियों ने अपने कर्मचारियों के वेतन में कटौती, पुराने कर्मचारियों को नौकरी से निकालने जैसे फैसले किये. जिसके कारण लाखों की संख्या में कर्मचारी आर्थिक संकट का सामना करने लगे. ऐसे में बाइक की खरीददारी में ही समझदारी दिखाने का काम किया. कम पैसे और ज्यादा माइलेज के देने के कारण 60 हजार तक कीमत वाली बजट बाइक सबसे बडी पंसद बन कर उभरी है. देश की सबसे अधिक बिकने वाली 10 बाइक 60 हजार तक में आ जाती है. यह एक लीटर पेट्रोल में औसतन 40 किलोमीटर से लेकर 60 का सफर तय कर लेती है. मंहगी बाइक भी डेढ से 2 लाख में मिल रही है. इनका प्रयोग लोग कम कर रहे है क्योकि मंहगी होने के साथ ही साथ इनमें पेट्रोल का खर्च अधिक होता है. ऐसे में बजट बाइक संक्रमण और खर्च दोनो के लिहाज से सुविधाजनक है. वेतन कटौती और नौकरियों से छटनी के इस दौर में कार के बजाय बाइक का सफर करना सुविधाजनक है. कार में प्रति किलोमीटर 5 से 7 रूपये का खर्च आता है. वहीं बाइक में यह खर्च डेढ से 2 रूपये के करीब आता है. यही वजह है कि लौकडाउन के बाद आटोमोबाइल सेक्टर में कार से अधिक बाइक और स्कूटी बिक रही है.
मोटर बाइक के बाजार से मिली जानकारी के मुताबिक कम बजट की बाइक सबसे ज्यादा पसंद की जा रही है. औसतन यह बाइक 60 हजार रूपये तक में आ जाती है. इनका माइलेज 50 किलोमीटर प्रति लीटर पेट्रोल से लेकर 80 किलोमीटर प्रति लीटर तक होता है. कम इंधन में ज्यादा दूरी तय करने के चलते जेब पर कम भार पडता है. 80 रूपये प्रति लीटर पेट्रोल के समय में बाइक की सवारी में प्रति किलोमीटर चलने का खर्च एक से डेढ रूपये तक आता है. इस कारण देश में सबसे ज्यादा बजट बाइक ही बिकती है. बजट बाइक के बाजार में सबसे ज्यादा बिकने वाली 10 प्रमुख बाइक में हीरो स्पेंलडर प्लस की कीमत 55 हजार से अधिक, हीरो सुपर स्पेंलडर 60 हजार से अधिक, हीरो ग्लैमर 65 हजार से अधिक, टीवीएस स्पोर्ट 45 हजार से अधिक, टीवीएस स्टार सिटी प्लस 55 हजार से अधिक, हौडा सीबी शाइन 56 हजार से अधिक, हौंडा शाइन लिवो 56 हजार से अधिक, बजाज वी 12 की कीमत 58 हजार से अधिक और बजाज प्लेटिना 50 हजार के करीब कीमत में मिल जाती है. शहरों में जीएसटी, रोड टैक्स और बीमा का शुल्क अलग से पडता है. वीएस की स्पोर्ट बाइक सबसे अधिक पसंद आती है. इसकी सबसे बडी वजह यह है कि यह 55 हजार के करीब कीमत की है. 15 हजार पहली बार देने पर 25 सौ रूपये की माहवारी किश्त बन जाती है. बैंक आसानी से लोन देने को तैयार हो जाते है. टीवीएस की बाइक की खासबात यह भी है कि यह इसका मेटिनेंस सरल और किफायती है. ईधन की खपत कम है.
टीवीएस की बाइक की ही तरह लडकियो को स्कूटी सबसे अधिक पसंद आती है. यह भी अलग अलग कंपनियों में 55 से 62 हजार के बीच मिल जाती है. लडकियां अपने लिये स्कूटी सबसे अधिक पंसद आती है. मजबूत और किफायती होने के कारण स्कूटी भी अब खूब तेजी से बढ रही है. हीरो की स्पेलेंडर प्लस बाइक सबसे अधिक लोगों को पसंद आ रही है. कम ईधन में ज्यादा दूरी तय करने वाली बाइक में लोगो को सबसे पहल हीरोहाडा का ही नाम याद रहता है. कंपनियों के अलग होने के बाद भी हीरों आज भी सबसे अधिक पसंद आती है. इसकी सबसे बडी वजह इसके मौडल का सबसे अधिक आकर्षक और भरोसेमंद होना है.
स्टेट्स के लिये मंहगी बाइक:
कोरोना काल में आर्थिक संकट का सामना करने वाले कुछ लोग अपने स्टेट्स को बनाये रखना चाहते है. ऐसे लोग कार से बाइक पर शिफ्ट तो हो रहे पर बजट बाइक का प्रयोग करना अपनी शान के खिलाफ समझते है. मल्टीनेशनल कंपनी में काम करने वाले आनंद प्रकाश के वेतन में 40 फीसदी की कटौती के साथ ही साथ उनको मिलने वाला 5 हजार प्रतिमाह का वाहन भत्ता भी बंद हो गया. आनंद पहले मारूती 800 से चलते थे. पिछले साल दीवाली में वह होंडा जैज कार ले आये थे. 6 माह ही बीते कि लौकडाउन शुरू हुआ. आंनद अब हौंडा जैज का प्रयोग नहीं कर पा रहे. ऐसे में उन्होने अपने चलने के लिये रायल एनफील्ड क्लासिक 1 लाख 80 हजार में खरीदी. अब वह इसकी सवारी कर रहे है. आनंद कहते है हमारा जौब प्रोफाइल ऐसा नहीं है कि हम होडा कार से सीधे बजट बाइक की सवारी करने लगे. ऐसे में मंहगी बाइक की सवारी इज्जतदार लगती है.ऐसे ही लोगों में फोटोग्राफी बिजनेस करने वाले इन्द्रेश रस्तोगी ने 2 लाख 25 हजार में जावा की बाइक ली.
मंहगी बाइक कम बिक रही है. इसके बाद भी लोगों को उम्मीद है कि फेस्टिवल सीजन में यह तेजी से बिकेगी. लखनऊ में रायल इनफील्ड स्टाकिस्ट टीना नरूला कहती है कि मंहगी बाइक सेक्टर में रायल एनफील्ड की बाइक ही सबसे आगे है. हर तरह के लोगों के लिये अलग अलग कीमत में यह बाइक मौजूद है. रायल एनफील्ड क्लासिक 1 लाख 50 हजार से अधिक, रायल एनफील्ड थंडर 1 लाख 80 हजार, रायल एनफील्ड बुलैट 350 सीसी 1 लाख 40 हजार बाजार में है. मंहगी बाइक यह मौडल सबसे अधिक पंसद किये जा रहे है. इसके मुकाबले जावा कंपनी ने अपनी बाइक 1 लाख 80 से शुरू की है. इस श्रेणी में अपाचे बाइक 1 लाख के आसपास मिलती है. दो पहिया वाहनों में मंहगी बाइक अभी कम बिक रही है. फेस्टिवल सीजन में इसके तेजी पकडने की उम्मीद की जा रही है.
लोन की सुविधा:
टौप सेलिंग बाइक में टीवीएस, हीरो, बजाज के मौडल सबसे अधिक पसंद किये जाते है. आंकडे बताते है कि अब बहुत कम बाइक नकद खरीदी जाती है. ज्यादातर बाइक बैंक से द्वारा लोन पर ली जाती है. बैको ने नियम कानून काफी कम कर दिये है. 10 से 15 हजार के नकद भुगतान पर नई गाडी की सवारी करने को मिल जाती है.
जो लोग वेतन पाते है उनको केवल अपनी चेकबुक से पोस्ट डेटेड चेक देनी होती है. इसके साथ आधार कार्ड और डाउन पेमेंट के लिये तय रकम होनी चाहिये. यह नार्मली 10 से 20 हजार ही होती है. कई बाइक कंपनियो तो किश्तों पर ब्याज भी नहीं लेती है. अक्सर त्योहारों पर बाइक कंपनियां जीरो ब्याज का प्रचार करती है. अब तो फाइल बनाने के लिये लिया जाने वाला शुल्क भी नहीं लिया जाता. जिनको तय वेतन नहीं मिलता. वह लोग कोई गांरटी देकर बाइक ले जा सकते है.
गारंटी में जमीन और जायदाद के कागज रखे जाते है. कार और दूसरे वाहनो का ब्याज भले ही लोग चुकता ना कर पाते हो पर बाइक पर ब्याज कम होने के कारण बाइक का इसको सभी चुकता कर लेते है. बाइक कंपनी के अधिकारी कहते है कि गिनेचुने मामले ही ऐसे आते है जिनमें ब्याज चुकता नहीं किया जाता है. ग्राहक को अब लोन लेने के लिये बैंक नहीं जाना होता बल्कि बाइक के शो रूम में ही बैंक के लिये काम करने वाले एजेंट मिल जाते है. जिससे बाइक की खरीददारी सरल हो गई है.
कोविड 19 यानि कोरोना संक्रमण के दौर में बचाव के लिये सबसे जरूरी है कि लोगों से दूर रहे. जिस वस्तु का प्रयोग करे वह संक्रमण मुक्त हो. कोरोना से बचाव के लिये सरकारों में पब्लिक टंªासपोर्ट को बंद कर दिया. रेल, बस ही नहीं शहरों में चलने वाली टैक्सी सेवाए भी बंद कर दी गई थी. ऐसे में जिनके पास अपने वाहन होते है उनको आराम होता है. लोगों के सामने सबसे बडी परेषानी परिवहन की होने लगी है. कोरोना संकट में षुरूआत के समय यह लग रहा था कि यह संकट जल्दी खत्म हो जायेगा. धीरेधीरे अब सभी को यह समझ आ रहा है कि कोरोना का संकट लंबा चलने वाला है. लौकडाउन खुलने के बाद कोरोना के खतरों के बीच लोगों को अपने काम करने है. जिससे धीरेधीरे जीवन वापस पटरी पर आ जाये. लोगो को वापस अपने काम धंधे को षुरू करने के लिये घर से निकलना है. ऐसे में साधन के रूप में दो पहिया वाहन पब्लिक ट्रांसपोर्ट के मुकाबले ज्यादा सुरक्षित विकल्प है. इसलिये जरूरी है कि परिवहन के रूप में चलने के लिये दो पहिया वाहन की खरीदे. दो पहिया वाहन कोरोना काल में ज्यादा सुरिक्षत रहते है. इसकी सबसे बडी वजह यह है कि दोपहिया वाहन की केयर करना सरल होता है. विष्व स्वास्थ्य संगठन की गाइड लाइन के अनुसार कोरोना से बचाव के लिये किसी भी चीज का प्रयोग करने के लिये सबसे पहले उसको डिइंफेक्षन करना जरूरी होता है. इसके बाद सोशल डिसटेंसिंग और सेटेंनाइजर का प्रयोग हो. जिससे कोरोना के संक्रमण को खुद से दूर रखा जा सके.
पब्लिक ट्रांसपोर्ट के खतरे:
पब्लिक ट्रांसपोर्ट का प्रयोग सभी तरह के लोग करते है. सरकार के लाख दावा करने के बाद भी बस या टैक्सी को वायरस मुक्त नहीं रखा जा सकता है. पब्लिक ट्रांसपोर्ट का प्रयोग करने वाले लोगों में खुद की जागरूकता नहीं है. तमाम लोग तो अभी भी गुटका और पान मसाला जैसी चीजों का प्रयोग करते है. इधर उधर थूकने से भी बाज नहीं आते है. ऐसे में साथ सफर करने वाले के लिये खतरा बढ जाता है. इसके साथ ही साथ बसों में सफर करने वाले लोगों के बीच सोशल डिस्टेसिंग वाली दूरी भी नहीं रहती है. लोग जिस तरह से बैठते आपस में एक दूसरे को छूते रहते है. ऐसे में संक्रमण फैलने का खतरा ज्यादा होता है.
पब्लिक ट्रांसपोर्ट में बस के बाद दूसरा नम्बर टैंपो-टैक्सी का आता है. जो षेयरिंग में एक जगह से दूसरी जगह तक पहंुचाने का काम करती है. इनका हाल बसों से भी बुरा होता है. यह पहले की ही तरह से ठंूसठूंस कर सवारियां बैठाते है. जिस तरह से संक्रमण फैल रहा है उससे साफ है कि कोरोना से बचाव बेहद मुष्किल काम हो गया है. पब्लिक ट्रांसपोर्ट में बस और टैंपो-टैक्सी के बाद तीसरा नम्बर ओला और उबर जैसी टैक्सियों का आता है. बस और टैंपो के मुकाबले यह थोडा सुरक्षित भले ही हो पर इनका प्रयोग करना मंहगा होता है. नियम के अनुसार हर यात्रा के बाद इन गाडियों का भी डिइंफेक्षन होना चाहिये. खर्च को बचाने के लिये ऐसा नहीं किया जाता है. जिसके कारण संक्रमण का खतरा यहंा बना होता है.
सुरक्षित है बाइक की सवारी:
कोरोना संक्रमण में बाइक की सवारी सुरक्षित है क्योकि इसका प्रयोग व्यक्तिगत रूप से होता है. प्रयोग करने से पहले इसका डिइंफेक्षन किया जाना सरल होता है. बाइक का प्रयोग करने से पहले इसकी सीट और हैंडिल को संक्रमण मुक्त कर लेना चाहिये. इसके लिये हाथ में लगाने वाले सेनेटाइजर का छिडकाव इस पर किया जा सकता है. सोशल डिस्टेसिंग का इसमें पालन हो जाता है. इसका प्रयोग एक व्यक्ति के ही द्वारा किया जाता है. इसको चलाते समय मास्क के साथ ही साथ हेलमेट का भी प्रयोग होता है. जिससे यह चलाने वाले को डबल सुरक्षा मिलती है.
अगर दो पहिया वाहन चलाते समय हैंड ग्लब्स का प्रयोग किया जाये तो और भी बेहतर बचाव हो सकता है. इसके अलावा दो पहिया वाहन सुगम और सरल है. इससे कहीं भी इधर से उधर जा सकते है. पब्लिक ट्रांसपोर्ट एक तय जगह तक ही आपको पहुंचा सकते है. बाइक के साथ खूबी यह है कि इसका प्रयोग अपने समय के अनुसार से कर सकते है. पब्लिक ट्रांसपोर्ट का अपना समय फिक्स होता है. इस कारण यह बाइक जैसी सुविधाजनक नहीं होती है. अपनी इन्ही खूबियों के कारण कोरोना संक्रमण के दौरान बाइक की सवारी पब्लिक ट्रांसपोर्ट के मुकाबले सुरक्षित होती है. बाइक का प्रयोग करते समय में हेलमेट, मास्क और सेनेटाइजर का प्रयोग आवष्यक होता है. इसमें लापरवाही ठीक नहीं होती है.
जागरूक लोग कर रहे साइकिल का प्रयोग:
बाइक के साथ ही साथ कोरोना और हेल्थ के प्रति जागरूक लोग बहुत तेजी से साइकिल का प्रयोग करने लगे है. दो-तीन किलोमीटर जिसका जाना होता है वह लोग अब साइकिल का प्रयोग तेजी से करने लगे है. इसके दो लाभ है एक तो पेट्रोल का खर्च नहीं है दूसरे इसका चलाने से एक्सरसाइज भी हो जाती है. जिससे हेल्थ भी ठीक रहती है. अपने घर से क्लीनिक जाने के लिये डाक्टर सौरभ चन्द्रा पहले कार का प्रयोग करते थे. अब रास्ते पर भीड कम होने से वह साइकिल का प्रयोग करने लगे है. उनका कहना है कि ‘कोरोना के कारण जिम बंद चल रहे है. हम एक्सरसाइज करने नहीं जा पा रहे थे. अब साइकिल चलाने के कारण एक्सरसाइज भी हो जाती है और सफर भी तय हो जाता है.‘
साइकिल चलाने में खर्च बाइक से भी कम होता है. इस कारण आम आदमी इसका प्रयोग करने लगे है. उनको लगता है कि पब्लिक ट्रांसपोर्ट के मुकाबले बाइक और साइकिल दोनो ही लाभकारी है. पहले थोडे हिचक होती थी अब यह हिचक टूट गई है. ऐसे में लोग बडी षान से साइकिल चला रहे है. कई लोग इसके द्वारा पर्यावरण का संदेश भी दे रहे है. अब पहले के मुकाबले ज्यादा स्टाइलिश और डिजाइनदार साइकिलें बाजार में बिकने आ गई है. जिनको चलाने में मेहनत कम लगती है. इस कारण लोग अब साइकिल का प्रयोग भी षान से करने लगे है.