romantic story in hindi
romantic story in hindi
तुम बहुत अच्छे और सच्चे इंसान हो… अपना यह फैसला बदलने का दुख मुझे हमेशा रहेगा. बिट्टू नहीं जानता, सुधांशु की बातों में आ कर उस ने किस इंसान को खो दिया है. आई एम सौरी, यश.’’ मानसी धीरे से बोली.
यश ने एक ठंडी सांस ली. वह सिर झकाए बैठा था, ‘‘बिट्टू से मैं ने बहुत प्यार किया था. मुझे उस में अपना बचपन नजर आता था. फिर तुम से मिला. तुम मेरे लिए बहुत खास हो. इतनी खास कि मैं सारा जीवन तुम्हारा इंतजार कर सकता हूं और करूंगा भी क्योंकि मैं अपने दिल से मजबूर हूं. मुझे तुम से कोई शिकायत नहीं है, तुम्हारी जगह मैं होता तो शायद यही करता.’’
मानसी के लिए अब वहां रुकना मुश्किल हो रहा था. दोनों की आंखों के कोने नम होने लगे थे और बिछड़ने का पल तो यों भी कष्ट देने वाला होता ही है और बिछड़ना भी वह कि जिस में फिर मिलने की कोई उम्मीद ही न हो.
यह फैसला मानसी के लिए आसान तो नहीं था. कहीं दिल कराहा था, यादों ने हलचल मचाई थी, आंखें रातदिन रोई थीं तब कहीं जा कर यह फैसला हुआ था.
मानसी घर पहुंची तो बिट्टू ने उस की लाल आंखों और उतरे चेहरे को बड़े ध्यान से देखा, लेकिन वह तेजी से अपने कमरे में चली गई.
1 हफ्ते बाद मानसी के पापा ने बताया कि यश अपना सारा बिजनैस बेच कर हमेशा के लिए कनाडा चला गया. वह आज उन से मिलने आया था. मानसी ने नोट किया बिट्टू यह सुन कर काफी रिलैक्स हो गया था.
फिर मानसी का जीवन बहुत सूना हो गया. वह अपने काम में व्यस्त रहती. बिट्टू का व्यवहार बदल गया था. अब वह उस से हंसनेबोलने की कोशिश करता. लेकिन मानसी का दिल जैसे मर गया था. पतझड़ तो बहुत चुपके से उस के जीवन में आ गया था. दिन बेहद उदास बीतने लगे. वह बहुत अकेलेपन की शिकार थी. उसे लगता यश उसे बहुत याद करता होगा. फोन की हर घंटी उसे चौंका देती.
एक दिन जब बिट्टू ने कहा कि वह अपनी छुट्टियां अपने पापा के साथ अमेरिका में बिताना चाहता है तो उस ने अपने जवान होते बेटे को जाने से नहीं रोका. 2 महीने की जगह वह इस बार 1 महीने में ही वापस लौट गया, लेकिन इस बार उस का मूड अपने पापा की वजह से बहुत खराब था. उस के पापा ने एक अमीर विधवा अंगरेज औरत से तीसरी शादी कर ली थी. इस बार सुधांशु ने बिट्टू को भी खास लिफ्ट नहीं दी थी. अब की बार वह बहुत डिस्टर्ब था. अब वह धीरेधीरे अपनी नजरों से चीजों को देखने और समझने लगा था. काफी समय बीत गया. मानसी के मम्मीपापा भी नहीं रहे थे. घर में दोनों मांबेटा ही रहते थे.
एक दिन सुधांशु का फोन आया तो मानसी ने बिट्टू को फोन पर चिल्लाते हुए सुना, ‘‘मैं आप को अच्छी तरह जान गया हूं. आप के लिए पैसे से बढ़ कर कुछ नहीं है. अब आप मुझे गलत गाइड नहीं कर सकते. आज के बाद मुझे फोन मत करना,’’ कह कर उस ने गुस्से से रिसीवर
रख दिया.
मानसी ने यह सब सुना तो उस का दिल बहुत दिनों बाद कुछ हलका हुआ.
बिट्टू एकदम से बड़ा हो गया था. नानानानी की मृत्यु के बाद वह काफी अपसैट सा रहता. अपना खाली समय वह मानसी के साथ बिताता. उसे अब मानसी की चिंता रहने लगी थी.
एक दिन वह चुपचाप मां की गोद में सिर रख कर लेट गया, बोला, ‘‘मम्मी, आप ने मेरे लिए बहुत त्याग किया है पता नहीं मैं कभी इस त्याग के बदले में कुछ कर पाऊंगा भी या नहीं.’’
मानसी को उस पर प्यार आ गया. उस के जख्म भी हरे होने लगे, ‘‘बेकार की बातें मत मत सोचो, चलो, सो जाओ.’’
मानसी अपने कमरे में आ गई. उस की आंखों से आंसू बहने लगे. कई बार दिल जिद्दी बच्चे की तरह एडि़यां रगड़रगड़ कर रोने लगता तो ऐसे समय में उसे कौन चुप कराए?
कुछ दिनों बाद मानसी औफिस से लौटी तो बिट्टू ने उसे देखते ही कहा, ‘‘मम्मी, कल मेरा एक दोस्त लंच पर आ रहा है. आप बहुत अच्छी तरह तैयार होना. सुंदर सी साड़ी पहनना,’’ और फिर उस के गले में बांहें डाल कर प्यार करने लगा तो मानसी को हंसी आ गई.
अगले दिन रविवार था. उस के दोस्त को 1 बजे जाना था. अचानक बिट्टू को कुछ चीजें लाना याद आया तो वह अभी आया कह कर बाजार चला गया. दरवाजे की घंटी बजी तो मानसी बिट्टू के दोस्त को देख कर खड़ी की खड़ी रह गई. कई सालों का लंबा समय उन दोनों के बीच आ गया था. मानसी अपलक यश को निहार रही थी और यश मानसी को.
मानसी के मुंह से इतना ही निकला, ‘‘तुम यहां कैसे?’’
यश ने उस का हाथ पकड़ कर उसे सोफे पर बैठाया और बड़े प्यार से देखते हुए कहा, ‘‘मेरे दोस्त ने फोन कर के मुझे बुलाया या तो मुझे तो आना ही था. मैं ने जिसे अपना बिजनैस दिया था उसी से बिट्टू ने मेरा फोन नंबर ले कर मुझे फोन किया. वह कल मुझे लेने एयरपोर्ट आया था. मेरे गले लग कर बहुत रोया. बहुत बदल गया है. बारबार माफी मांग रहा था.’’
तभी बिट्टू आ गया. उस के चेहरे पर बच्चों जैसा भोलापन और खुशी थी. यश
बोला, ‘‘देखो मानी, मेरे दोस्त का कद अब मेरे जितना हो गया है.’’
बिट्टू आगे बढ़ा और मानसी के घुटनों पर हाथ रखता हुआ नीचे बैठ गया और बोला, ‘‘मम्मी, कई दिनों से अंकल की याद आ रही
थी. अंकल के साथ जो समय बिताया था सब याद आ रहा था. एक फैसला आज से 5 साल पहले आप ने मेरे कारण किया था तो एक
फैसला क्या मैं आप के बारे में नहीं कर सकता? मम्मी, यश अंकल सचमुच मेरे बैस्ट फ्रैंड हैं. देखो, मेरे एक फोन करने पर आ गए. मैं ने अंकल से फोन पर इतना ही कहा था कि
अंकल, लौट आइए, मुझे आप की जरूरत है. हैं न, मम्मी अंकल अच्छे?’’ और अचानक बिट्टू ने मानसी का हाथ पकड़ कर उठा दिया और यश को भी पास लाते हुए बोला, ‘‘मम्मी, हम तीनों साथसाथ कितने अच्छे लग रहे हैं’’ और फिर तीनों हंस दिए. तीनों को लग रहा था अब खुशियों ने दस्तक दे दी है.
‘‘आप सब अदालत को बताना, हमें भी आप के कारनामे बताने हैं. जो बाप रातें क्लबों में बिताता हो, कई बार जेल भी जा चुका हो, जिस की अंगरेज पत्नी अपने किसी और दोस्त के साथ रह रही हो, उसे कोई मां अपना बच्चा कैसे दे सकती है?’’ यश ने कहा तो सुधांशु दांत पीसता रह गया.
‘‘मैं देख लूंगा तुम्हें,’’ सुधांशु जातेजाते वह धमकी दे गया.
अदालत ने बिट्टू का निर्णय मानसी के हक में दे दिया और मानसी को
बड़ी हैरानी इस बात पर हुई कि सुधांशु ने अदालत में उस पर किसी तरह का घटिया आरोप नहीं लगाया. वैसे कोर्ट ने उसे बिट्टू से मिलने का हक दे दिया.
शुरूशुरू में वह 1-2 बार बिट्टू से मिलने आया, फिर पता चला वह वापस अमेरिका चला गया है. मानसी ने चैन की सांस ली. वहां से वह कभीकभी बिट्टू से फोन पर बात करता रहता. सब नौर्मल चल रहा था.
6 महीने बाद सुधांशु के फिर आने की खबर ने मानसी को डिस्टर्ब कर दिया. बिट्टू की छुट्टियां थीं. सुधांशु आया तो बड़ी शराफत से उस ने 5 दिन के लिए बिट्टू को घुमाने की अनुमति मांगी. मानसी मना नहीं कर पाई. मानसी ने महसूस किया बिट्टू भी घूमने जाना चाहता है सुधांशु के साथ. सुधांशु बिट्टू को ले गया.
बिट्टू के जाने के बाद घर में सन्नाटा सा
छा गया. सब से ज्यादा बोर यश हो रहा था.
अभी उस की भी छुट्टियां थीं और नया काम शुरू होने में समय था. सारा दिन आशाजी और मानसी से बिट्टू की बातें करता रहता. बिट्टू सचमुच यश के जमीन का एक महत्त्वपूर्ण भाग बन चुका था.
फिर एक दिन यश ने अपने पापा और मानसी के मम्मीपापा के सामने मानसी की उंगली में डायमंड की अंगूठी पहना दी. मानसी के चेहरे पर इंद्रधनुष के रंग बिखर गए.
यश कहने लगा, ‘‘जब भी अपने घर के
बारे में सोचता हूं तो पापा के साथ तुम्हारा और बिट्टू का चेहरा मेरी आंखों में उभर जाता है.
अब बस बिट्टू जल्दी से आ जाए तो मेरा घर
भी बस जाए.’’
उस की इस बात पर सब हंस पड़े.
बिट्टू 5 की जगह 10 दिनों में आया, लेकिन उस का उखड़ाउखड़ा रवैया मानसी का दिल दहलाने लगा. वह काफी चुप और गंभीर था. सब से बड़ी बात यह थी कि यश के साथ उस का व्यवहार बहुत ही रूखा था. यश कई बार उसे साथ ले जाने के लिए आया तो बिट्टू ने उस से बात तक नहीं की.
मानसी को पहली बार अपनी गलती का एहसास हुआ कि उसे इतने दिनों के लिए सुधांशु की बातों में आ कर बिट्टू को उस के साथ नहीं भेजना चाहिए था. अब तो गलती हो ही गईर् थी.
मानसी बिट्टू से बात करने की कोशिश करती भी तो वह सिर्फ हांहूं में जवाब देता. यश
ने बिट्टू से बात करने की बहुत कोशिश की लेकिन यश को देख कर ही बिट्टू अपने कमरे में बंद हो जाता और उस के जाने के बाद ही निकलता. बिट्टू के इस व्यवहार से हरकोई
दुखी था.
फिर एक दिन बिट्टू ने जो कहा मानसी
का दिमाग सुन कर सुन्न रह गया, ‘‘पापा ठीक कहते हैं तुम्हारे नाना की दौलत पर पराए लोग ऐश करेंगे और वह तुम्हें दूध में मक्खी की तरह निकाल फेंकेंगे.’’
‘‘पराए… कौन पराए लोग.’’
‘‘यश अंकल और कौन.’’
‘‘बिट्टू, तुम्हारा दिमाग तो ठीक है? यह सब तुम ने कहां से सीख लिया?’’
‘‘मम्मी, रिलैक्स. पापा ठीक कहते हैं आप को लोगों की पहचान नहीं है. यश अंकल आप के माध्यम से नाना की संपत्ति पर कब्जा करना चाहते हैं.’’
मानसी का जी चाहा बिट्टू का मुंह थप्पड़ों से लाल कर दे. वह उसे गुस्से से देखती रही, फिर चुपचाप बाहर चल दी.
अगले दिन शाम को यश आया तो बिट्टू ने दहाड़ कर मानसी से कहा, ‘‘आप अंकल को मना कर दो कि यहां न आया करें.’’
मानसी ने प्यार से समझने का प्रयत्न किया, ‘‘बिट्टू तुम तो कहते थे अंकल तुम्हारे बैस्ट फ्रैंड हैं, उन्होंने तुम्हें कितना प्यार दिया है. क्या तुम सब भूल गए हो?’’
वह पांव पटक कर बोला, ‘‘नहीं हैं वे मेरे बैस्ट फ्रैंड, वे धोखेबाज हैं, आप से शादी करना चाहते है.’’ फिर यश को देख कर जो अपमानित सा खड़ा था बिट्टू फिर चिल्लाया, ‘‘आप गंदे हैं, हमारे घर मत आया करें. आप मेरी मम्मी को मुझ से छीन कर ले जाना चाहते हैं,’’ वह आप से बाहर था.
यश परेशान हो गया. बिट्टू का कच्चा दिमाग काफी हद तक बिगड़ चुका था. यश ने
प्यार से उस की तरफ हाथ बढ़ाया तो बिट्टू उस का हाथ जोर से झटक कर अंदर चला गया. यश दुखी हो कर अपने घर वापस चला गया.
फिर एक दिन यश के पापा का सोतेसोते हार्टफेल हो गया. अब यश दुनिया में बिलकुल अकेला था. मानसी और यश का घर कुछ कदम के फासले पर ही था. मानसी के मम्मीपापा अकसर यश के पास चले जाते. यश ने तो बिट्टू का मन जीतने की बहुत कोशिश की, लेकिन बिट्टू ने उस दिन से उस के घर पैर भी नहीं रखा जब से वह सुधांशु के पास से लौटा था. यश ने भी बिट्टू का ध्यान रखते हुए मानसी के घर जाना छोड़ रखा था.
एक दिन मानसी यश के घर गई और बहुत गंभीरतापूर्वक बोली, ‘‘आज बहुत सोचने
के बाद मैं तुम से एक बात कहना चाहती हूं.’’
यश का दिल धड़का, ‘‘कहो.’’
‘‘यश, मेरे जीवन में खुशियां कम ही आई हैं. मेरे इस फीके, बेरंग जीवन में एक ही खुशी है और वह है बिट्टू. उसे मैं नहीं छोड़ सकती. पहले मुझे लगता था वह तुम्हारे साथ खुश रहेगा, लेकिन अब हालात बदल गए हैं. अगर मैं तुम्हारा साथ देती हूं तो बिट्टू की नफरत मुझ से सहन नहीं होगी. मुझे दुख है तुम्हारे जीवन में आने वाली लड़की की मजबूरी है कि वह एक मां भी है जो अपनी हर खुशी संतान के लिए कुरबान कर सकती है. मुझे उम्मीद है तुम मेरी यह मजबूरी समझ कर मुझे माफ कर दोगे.’’
कमरे में एकदम सन्नाटा छा गया. यश के चेहरे पर दुख ही दुख था.
फिर मानसी मुश्किल से बोली, ‘‘मैं सिर्फ 1 महीना सुधांशु के साथ रही थी उस 1 महीने का दुख मैं आज तक नहीं भुला पाई.
टैक्सी घर के बाहर रुकी तो मानसी ने चैन की सांस ली. घर को बाहर से निहारते हुए अंदर प्रवेश किया. यह घर उसे बहुत अच्छा लगता है. यह घर मानसी के पापा ने कुछ समय पहले ही खरीदा था. यहां बहुत शांति है.
मानसी ने जोर से आवाज दी, ‘‘बिट्टू,
कहां हो?’’
मानसी को विश्वास था बिट्टू किसी कोने से निकल कर अभी उस से लिपट जाएगा.
1 सप्ताह पहले जब मानसी को बैंक की तरफ से 4 दिन की ट्रेनिंग के लिए दिल्ली जाना था तो बिट्टू ने रोरो कर घर सिर पर उठा लिया और मानसी के मम्मीपापा के लिए उसे संभालना मुश्किल हो गया था. शुरू में तो उस का मन भी नहीं लगा, लेकिन मम्मी ने जब फोन पर बताया कि बिट्टू को कोई अच्छा दोस्त मिल गया है तो वह बहुत खुश हो गईर् कि कम से कम अब वह आराम से रह लेगा क्योंकि घर के आसपास अधिकतर बंगले खाली थे. बिट्टू अकेला बोर हो जाता था.
बिट्टू, पापा, मम्मी, मानसी सब को आवाज देती अंदर आ रही थी कि तभी मम्मी किचन से निकलीं. बोली, ‘‘अरे मानी, तुम कब आई?’’
‘‘बस आ ही रही हूं. बिट्टू कहां है?’’
उस की मम्मी हंसते हुए बताने लगीं, ‘‘पहले दिन तो उस ने खूब हंगामा किया. फिर
उस की दोस्ती साथ वाले बंगले में रहने आए नए परिवार के बेटे से हो गई, बस, आजकल उसी के साथ रहता है. स्कूल भी उसी के साथ जाता है वह भी बिना जिद किए. बहुत खुश रहने लगा है आजकल.’’
मानसी ने चैन की सांस ली.
उस की मम्मी बोलीं, ‘‘तुम फ्रैश हो कर जरा आराम कर लो… खाने में क्या खाओगी?’’
‘‘मम्मी, जो बिट्टू खाए वही बना लो.’’
‘‘बिट्टू ने तो अपने दोस्त के साथ उसी के घर खा लिया है.’’
‘‘अरे, यह तो असंभव सी बात है मम्मी… उसे तो कहीं खाना अच्छा नहीं लगता है.’’
‘‘पूछो मत, मानी, अपने दोस्त के पीछेपीछे घूमता है जो वह कहता है, खा लेता है.’’
मानसी हंसती हुई फ्रैश होने चली गई. नहा कर लेटी तो बिट्टू के बारे में सोचने लगी. कुदरत को धन्यवाद देते हुए मन ही मन बोली कि बिट्टू को कोई खुशी तो मिली. न चाहते हुए भी उसे सुधांशु का खयाल आ गया. मानसी के पिता ने अपने बिजनैस पार्टनर की बातों में आ कर 18 साल में ही उस की शादी उन के आवारा बेटे सुधांशु से कर दी थी जो एक बहुत ही गलत निर्णय सिद्ध हुआ था.
सुधांशु उन से बिजनैस के बहाने से एक मोटी रकम ले कर शादी के 1 महीने के बाद ही अमेरिका चला गया था. शुरूशुरू में उस ने सुधांशु से संपर्क करने के बहुत प्रयत्न किए, लेकिन उधर से कभी कोईर् जवाब नहीं आया था. फिर धीरेधीरे मानसी ने अपनी पढ़ाई, साथ ही बिट्टू के जन्म के बाद बढ़ती जिम्मेदारी और फिर जौब की व्यस्तता इन सब में उस ने सुधांशु को एक बुरे स्वप्न की तरह भूल जाने का प्रयत्य किया था जिस में वह अब काफी हद तक सफल भी हो चुकी थी. कुछ समय पहले ही वह अपने मम्मीपापा और बिट्टू के साथ यहां नए घर में शिफ्ट हुईर् थी.
वह सो कर उठी तो बाहर बिट्टू बड़े उत्साह से बौलिंग कराता हुआ दौड़ता आ रहा था. उसे देख कर दौड़ कर उस की बांहों में समा गया. 8 साल के बिट्टू में मानसी की जान बसती थी. वह उसे मां के साथसाथ बाप का प्यार देने की भी जीजान से कोशिश करती थी. बिट्टू को लिपटा कर उस ने उस का माथा चूम लिया.
बिट्टू बड़े उत्साह से बताने लगा, ‘‘मम्मी, आप को पता है मैं बहुत अच्छा क्रिकेट खेलने लगा हूं. मैं 3 बार अपने दोस्त को बोल्ड भी कर चुका हूं. मम्मी, मेरा दोस्त बहुत अच्छा है.’’
‘‘कहां है तुम्हारा दोस्त, जिस के लिए तुम अपनी मम्मी को भूल गए हो?’’
उस ने इधरउधर देखते हुए बिट्टू को छेड़ा और सामने ही 28-30 साल के नौजवान को देख कर मानसी हैरान रह गई जो खुद बड़ी
हैरानी से उसे देख रहा था क्योंकि वह खुद एक बच्चे की मां कहीं से नहीं लगती थी. अच्छेखासे जवान लड़के को बिट्टू के इतने अच्छे दोस्त के रूप में देखना मानसी के लिए किसी शौक से कम नहीं था.
फिर जब उस ने ‘हैलो’ कहा तो वह बस सिर हिला कर खड़ी रह गई. बिट्टू बता रहा था, ‘‘मम्मी, ये मेरे दोस्त हैं यश अंकल. बहुत अच्छे हैं, मेरे साथ बहुत खेलते हैं.’’
‘‘मैं सोच भी नहीं सकती थी बिट्टू का दोस्त आप की एज का इंसान होगा. मम्मी ने भी कुछ नहीं बताया था.’’
मानसी की बात पर यश मुसकराया, ‘‘मेरे विचार से दोस्ती में उम्र का कोई बंधन नहीं होता. आप से मिल कर बहुत खुशी हुई, अच्छा मैं चलता हूं, बाय,’’ कह कर वह गेट की तरफ बढ़ गया.
पहले बैंक में बैठे हुए भी मानसी को बिट्टू की चिंता लगी रहती थी और अब वह जब भी फोन करती मम्मी उसे यही बताती कि वह यश के साथ है. कभी यश उस को पढ़ा रहा होता तो कभी खेल रहा होता उस के साथ. मम्मी ने ही बताया था कि यश के पिता कुलकर्णी यहां अकेले ही रहते हैं. यश की मम्मी का कई साल पहले सड़क दुर्घटना में देहांत हो गया था. यश लंदन में पढ़ रहा है. आजकल पिता के पास आया हुआ है.
अपने मम्मीपापा के साथ मानसी भी कई बार पड़ोस में कुलकर्णी अंकल से मिलने जाती. दोनों बापबेटे बहुत ही सरल स्वभाव के हैं. सब में बहुत ही अपनापन बढ़ता जा रहा था.
एक दिन मानसी ने यश की बातों से अंदाजा लगाया कि वह काफी समझदार लड़का है. उस ने सीए किया था. शुरू में उस ने यश को एक लापरवाह सा लड़का समझ, लेकिन कई बार मिलने से उस की राय बदल गई. बिट्टू वह तो यश के पीछेपीछे घूमता. बिट्टू के साथ हंसतेखेलते यश को देख कर मानसी को भी अच्छा लगने लगा. बहुत सालों बाद दिल खुश हो कर मुसकराया था.
सीधीसादी गंभीर सी मानसी भी यश के दिल में उतर चुकी थी. अब अकसर यश भी
जिद कर के मानसी को भी अपने खेल में शामिल कर लेता. दोनों मन ही मन एकदूसरे को पसंद करने लगे. मानसी के जीवन में फिर से रंग बिखरने लगे.
एक दिन मानसी यश और बिट्टू के साथ डिनर के लिए गई. घर लौटने पर बिट्टू तो अंदर भाग गया, पर मानसी गाड़ी के पास कुछ पल रुकी तो यश ने एकदम अपना हाथ उस के कंधे पर रखा तो मानसी के सारे बदन में बिजली सी दौड़ गई. वह हड़बड़ा गई.
यश ने बहुत आशाभरी नजरों से उसे देखते हुए कहा, ‘‘मानसी, बिट्टू और मुझ में एक बात एक सी है. हम दोनों को बचपन में कंपनी देने वाला कोई नहीं था. उस के साथ होने पर मैं अपने बचपन में चला जाता हूं. मुझे उस से दूर मत करना. अपनी और बिट्टू की दुनिया में मुझे भी हमेशा के लिए शामिल कर लो प्लीज.’’
मानसी पसीने से भीग गई. सालों बाद किसी पुरुष ने स्पर्श किया था. दिल तेजी से धड़क उठा. वह तेजी से अपने घर में चली गई.
अगले ही दिन मानसी को एक मीटिंग के लिए बाहर जाना पड़ा. 3 दिन बाद जब वह लौटी तो उसे घर में एक अजीब सा सन्नाटा महसूस हुआ. उस ने ड्राइंगरूम में चुपचाप बैठी अपनी मम्मी को देखा जो उसे बहुत उदास लगी.
मानसी ने परेशान हो कर पूछा, ‘‘मम्मी, आप की तबीयत तो ठीक है? पापा और बिट्टू कहां हैं?’’
‘‘मेरी तबीयत ठीक है, तुम्हारे पापा कुलकर्णी साहब के घर पर हैं.’’
‘‘तुम्हारा टूर कैसा रहा? चलो हाथमुंह धो कर कुछ खापी लो.’’
‘‘मम्मी, बिट्टू कहां है?’’
इतने में मानसी के पापा, यश और उस के पापा सब लोग साथ चले आए. मानसी ने सब को नमस्ते की, फिर बेचैनी से पूछा, ‘‘बिट्टू कहां है?’’
मानसी के पापा ने बहुत ही थके स्वर में कहा, ‘‘कल मैं बाहर गया हुआ था, तुम्हारी मम्मी अकेली थी. सुधांशु आया हुआ है और वह जबरदस्ती बिट्टू को ले गया.’’
यह सुन कर मानसी के दिमाग में जैसे धमाका हुआ, जैसे किसी ने उस का दिल मुट्ठी में दबा लिया हो.
मानसी के पापा की आवाज भर्रा गई, ‘‘वह धोखेबाज आदमी जो शादी के फौरन बाद मेरी बेटी को छोड़ कर चला गया, जिस ने कभी बिट्टू की शक्ल नहीं देखी, अमेरिका में एक अंगरेज लड़की के साथ रहता है, उस के 2 बच्चे भी हैं, मुझे पता चला है बिट्टू के जरीए मेरी इकलौती बेटी के हिस्से की संपत्ति पर कब्जा जमाने आया है. अमेरिका में उस का धोखाधड़ी का व्यवसाय ठप हो चुका है.’’
मानसी का गला सूख गया. एक बोझ सा उसे अपने दिल पर महसूस हुआ.
तभी यश की गंभीर आवाज आई, ‘‘अंकल, धैर्य रखिए, सब ठीक हो जाएगा.’’
यश के पापा ने भी कहा, ‘‘मेरा दोस्त सैशन जज है, तुम टैंशन मत लो, मैं उस से सलाह करता हूं.’’
मानसी की मम्मी रोते हुए कहने लगीं, ‘‘वह कह रहा था बिट्टू मेरा भी
उतना ही बेटा है जितना मानसी का और वह उस के लिए कोर्ट तक जाएगा.’’
यश ने आंखों ही आंखों में उसे हिम्मत रखने को कहा तो मानसी ने अपनेआप को कुछ मजबूत महसूस किया. बोली, ‘‘तो ठीक है, मैं उस से कोर्ट में बात करने को तैयार हूं. मैं आज ही उस के खिलाफ पुलिस में रिपोर्ट करवाती हूं,’’ और फिर उस ने फोन करने शुरू कर दिए. परिणाम यह हुआ कि रात को बिट्टू उस के पास था. वह कुछ डराडरा, सहमासहमा सा था. फिर उसे वकील की तरफ से सुधांशु का दिया हुआ नोटिस मिला.
उस ने बैंक से छुट्टी ले थी. वह बहुत परेशान थी. सब से ज्यादा परेशानी उसे बिट्टू के व्यवहार से हो रह थी. वह 2 दिन बाप के पास रह कर आया था और सुधांशु ने पता नहीं उसे क्या मंत्र पढ़ाया कि वह काफी उखड़ाउखड़ा सा था. बातबात पर उस से लड़ रहा था. कह रहा था, ‘‘आप ने मुझे मेरे पापा के बारे में क्यों नहीं बताया? पापा कितने अच्छे लगे मुझे.’’
मानसी कुछ देर सोचती रही, फिर बोली, ‘‘हम दोनों अलग हो गए थे और तुम्हारे पापा
ने कभी तुम्हारी शक्ल तक देखने की कोशिश नहीं की.’’
मानसी कभी सोच भी नहीं सकती थी कि उसे जीवन में कभी अपने बेटे के कठघरे में खड़ा होना पड़ेगा.
बिट्टू उलझन भरी नजरों से उसे देखता रहा फिर कहने लगा, ‘‘जब आप ने घर बदल लिया तो हमें कहां ढूंढ़ते?’’
उस समय छोटा सा बिट्टू मानसी को नौजवान लग रहा था. लगा सुधांशु ने उस की खूब ब्रेनवाशिंग कर दी है.
मानसी मानसिक रूप से बहुत थक गई थी. सुधांशु ने बिट्टू को लेने के लिए उस पर केस कर दिया था और अदालत से केस के दौरान हफ्ते में 2-3 बार बिट्टू से 2-3 घंटे बात करने की अनुमति भी ले ली थी.
उस दिन के बाद सुबह यश से उस का पहली बार आमनासामना हुआ. वह स्वयं ही उस से बच रही थी. यश आया और मानसी की मम्मी आशा के कहने पर उस के साथ नाश्ता करने बैठ गया. उस ने मुसकराते हुए मानसी का हाथ थपथपा दिया और इतना ही कहा, ‘‘मैं हर मुश्किल में तुम्हारे साथ हूं.’’
मानसी की आंखें भर आईं तो यश ने उस के सिर पर प्यार से हाथ रख दिया, हिम्मत रखो मानी, हम मिल कर इस समस्या का समाधान निकाल लेंगे.’’
उसी समय बिट्टू उठ कर आ गया और यश उसे गोद में बैठा कर प्यार से बातें करने लगा. बिट्टू यश से बातें करता हुआ काफी खुश दिखने लगा, तो मानसी को थोड़ा चैन आया.
अदालत में मुकदमा शुरू हो गया. वह संतुष्ट थी. उस ने बहुत होशियार वकील किया. उस दिन वह पापा के बजाय यश के साथ वकील से मिलने आई, लेकिन वहां अपने वकील के साथ सुधांशु को देख कर बुरी तरह चौंकी.
सुधांशु भी उसे यश के साथ देख कर चौंक गया और धमकी दी, ‘‘इस भूल में मत रहना कि मैं बिट्टू को छोड़ जाऊंगा.’’ उस की आवाज बहुत सख्त थी और त्योरियां चढ़ी हुई थीं.
‘‘मैं जरूर बिट्टू को आप के हवाले कर देती यदि मुझे अनुमान न होता कि 9 साल बाद आप के दिल में उस के लिए प्यार क्यों जागा है. बिट्टू के माध्यम से आप मेरी या पापा की संपत्ति में से कुछ भी पाने में सफल नहीं हो पाएंगे.’’
‘‘जो मेरे बेटे का हक है वह तो मैं हासिल कर के ही रहूंगा.’’
यश से रहा नहीं गया तो बोलो, ‘‘आप को जो भी कहना है कोर्ट में कहना,’’ फिर वह मानसी से बोला, ‘‘चलो, मानी, अपना समय मत खराब करो.’’
सुधांशु आगबबूला हो गया, ‘‘मैं अदालत को बताऊंगा कि मुझे उस घर में मेरे बच्चे का चरित्र बिगड़ने का डर है. जो मां अपने जवान होते बच्चे के सामने रंगरलियां मनाती फिरती हो, मैं उस के पास अपने बेटे को नहीं छोड़ सकता.’’
मानसी का चेहरा अपमान से लाल पड़ गया.