कोरोना संकट पहले या, बीजेपी की राजनीति

भारत में कोरोना का कहर इस कदर फैलता जा रहा है, जिसे अब रोकना मुश्किल होता जा रहा है. आज की तारीक में 3+ लाख से ऊपर नए कोरोना केस सामने आए है, 2000 से अधिक मौतें हुईं, जिस कारण अस्पताल में बेड और ऑक्सीजन की कमी से जूझ रहे हैं. ऐसे में भाजपा शासित सरकार क्या कर रही है,वही जो वो पहले से करती आया है – राजनीति. भाजपा अपनी राजनीतिक एजेंडा को आगे बढ़ाने में लगी हुई है,उनके लिए ये महामारी कुछ नहीं.

हैरानी की बात तो यह है,जब कुछ दिन पहले रात को पीएम नरेंद्र मोदी जी ने टीवी पर मूल रूप से अपनी सरकार को महामारी से निपटने के लिए, इस महामारी में एक दूसरे की सहायता करने और उत्कृष्ट कार्य करने की बधाई दी. इतना ही नहीं उन्होंने लोगों से सावधानी बरतने और कोविड–सुरक्षा नियमों का पालन करने का भी आग्रह किया. फिर भी उन्हें और उनकी पार्टी को किसी भी तरह के नियमों की न तो कोई चिंता है न ही कोई कदर है. इसका जीता जागता उदाहरण है बंगाल के इलेक्शन.

मास्क लेस इलेक्शन मेला

बंगाल में मास्क लेस इलेक्शन मेले से भले ही जीत का एक मौका महक रहा हो, जहां पीएम नरेंद्र मोदी जी के साथ उनके गृह मंत्री अमित शाह ने राज्य में कई दमदार रैलियां की, जिसमें बिना मास्क के लोगों की बेहिसाब भीड़ शामिल थी. जो बिना मास्क के नेताओं का उत्साह बढ़ा रही थी. चुनावी रैलियों में पूरी तरह से कोरोना गाइडलाइन का उल्लंघन हुआ.बंगाल में चुनावी रैलियों में जमकर भीड़ उमड़ी. इस दौरान कोरोना नियमों का पालन भी नहीं किया गया, क्योंकि राज्य में शांतिपूर्ण चुनाव कराने का अधिकार चुनाव आयोग का ही होता है ऐसे में कोरोना संकट के बीच रैली, रोड शो और जनसभाओं में उमड़ती भीड़ पर काबू पाने के लिए कदम उठाना और शांति पूर्ण मतदान कराना चुनाव आयोग की जिम्मेदारी होती है. क्या एक मौके पर भी पीएम ने इस भीड़ के अकार के बारे में सोचा, इस भीड़ में शामिल बिना मास्क के लोगों पर ध्यान दिया, क्या यह सोचा कि इससे देश में इस महामारी का क्या प्रभाव पड़ेगा और कितना नुकसान हो सकता है.

बीते सप्ताह के आंकड़े

जब ऐसी महामारी को बुरी तरह से फैलने पर, इस तरह से प्रचार करने के खतरे के बारे में पूछा गया, तो गृहमंत्री अमित शाह जी ने साफ शब्दों में घोषणा की कि रैलियों की वजह से कोविड –19 मामलों में किसी भी तरह से कोई वृद्धि नहीं हुई है. रिकॉर्ड के अनुसार, बीते सप्ताह से पश्चिम बंगाल में आठ ही दिनों में कोरोना मामलों में दोगुनी रफ्तार से वृद्धि हुई है. एक ही दिन में लगभग 10 हजार संक्रमण मामले सामने आए हैं,जो की एक बहुत बड़ी चुनौती है. यहां कोरोना के मामलों में काफी उछाल आया है. स्वास्थ्य विभाग की तरफ से कराए गए एक आंतरिक सर्वे के अनुसार बंगाल के 19 जिलों में कोरोना वायरस की स्थिति गंभीर है और यहां कोरोना के मामले में लगातार बढ़ोतरी हो रही है.

अपना स्वार्थ

इसी बीच, बंगाल सरकार ने चुनाव आयोग से विनती की है कि वे बढ़ती हुई इस महामारी को ध्यान में रखते हुए, बचे हुए तीन चरणों के चुनावों को रद्द कर दिया जाए. चुनाव आयोग एक सम्मान जनक संस्था है, इसमें कोई संदेह नहीं है, लेकिन सभी जानते है की यह भाजपा है जो बंगाल में आठ चरण के इस सुपर चुनाव से सबसे अधिक लाभ हासिल करने के लिए खड़ी है.

राजनीति का खेल

इस घटक महामारी से निपटने के लिए सामूहिक टीकाकरण महत्वपूर्ण है,और दुनिया भर के देशों में सरकारें अपने नागरिकों को मुफ्त में टीका लगा रही हैं. भारत में सरकार को आदेश न देने और अपनी वयस्क आबादी को जल्दी से टीका लगाने के लिए पर्याप्त वैक्सीन खुराक खरीदने में काफी आनाकानी की है जिस वजह से सरकार की काफी आलोचना भी हुई है.देश में दवा की कमी होने के बावजूद भी केंद्र दूसरे देशों में दवा भेज रही है. परिणामस्वरूप, अब हमारे पास वैक्सीन की भारी कमी है.

भारत में नई वैक्सीन की रणनीति

सरकार के द्वारा कोविड – 19 वैक्सीन नीति जो अब 18 वर्ष से अधिक आयु के सभी लोगों के लिए उपलब्ध कराई गई है. अब जो वैक्सीन निर्माता है वे अपनी आपूर्ति का 50 प्रतिशत राज्य सरकार और ओपन मार्केट को देंगें एक ही मूल्य पर ( कोविशील्ड राज्यों को 400 रुपए प्रति डोज पर उपलब्ध होगी ), यह है जो, स्वास्थ्य संकट के बीच भी राजनीति को एक राष्ट्र के हितों से ऊपर रखता है.

हम क्या देख रहे हैं

कोरोना वैक्सीन पर एक राजनीतिक ब्लेम –गेम चल रहा है. कयी राज्यों को इस समय 18 –45 आयु वर्ग के टीकाकरण के लिए टीके खरीदने के लिए कहना केवल मुख्य रूप से केंद्र की जिम्मेदारी है. लेकिन इसके पीछे भी बड़ा खेल है, यदि राज्यों में टीकाकरण अभियान धीमा हो जाता है तो, सरकार के लिए राज्यों पर दोष शिफ्ट करने का यह एक अच्छा राजनीतिक प्रयास है. इसमें कोई संदेह नहीं है कि, नॉन भाजपा शासित राज्यों को केंद्र सरकार के मंत्रियों द्वारा सबसे अधिक हमलों का सामना करना पड़ेगा. इसके अलावा कई राज्यों के पास मार्केट द्वारा निर्धारित कीमत पर वैक्सीन की खुराक खरीदने की क्षमता नहीं है.

दूसरे शब्दों में कहें तो, हम आने वाले राजनीतिक ब्लेम–गेम का एक तांडव देख रहे हैं – जहां केंद्र, राज्यों को टीकाकरण के लिए दोषी ठहरा रहा है , वही दूसरी ओर सभी राज्य, जिम्मेदारी को अच्छे से न निभाने के लिए केंद्र को दोषी ठहरा रहें हैं. इतना ही नहीं सभी राज्य आपस में एक दूसरे को आउट बिडिंग टीके की आपूर्ति के लिए दोषी ठहरा रहे हैं.
राजनीतिक तकरार में, यह भारतीय नागरिक है जो कोविड से पीड़ित है,और हर रोज अपनी जान गंवा रहे हैं.

दोष किसका

लेकिन यह शायद ही आश्चर्य की बात है, इस महामारी की दूसरी लहर को देश भर में तबाही मचाने में सरकार का भी बहुत अधिक दोष है. फरवरी 2021 के अंत तक, यह स्पष्ट था की कोविड 19 मामले एक बार फिर बढ़ रहे है. यह तक ही पांच राज्यों में विधानसभा के चुनाव बाकी थे जो होने वाले थे ऐसे में वोट मांगने के प्रचार को सख्त कोविड प्रोटोकॉल के अधीन किया जाना चाहिए था.

अनोखी बीजेपी का कहना

दोषों के लिए अपने राजनीतिक अपोनेंट को दोष दें ’. लेकिन इस बार महामारी को रोकने के लिए केंद्र ने चूक की है. केंद्र सरकार की लापरवाही के कारण कोविड 19 मामलों में वृद्धि हुई है.

जब पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी ने महागठबंधन को एक गरिमापूर्ण और पूरी तरह से राजनीति से उदासीन एक पत्र लिखा जिसमे महामारी से निपटने के लिए सुझाव पेश किए गए थे, तो केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने इसका जवाब तिरस्कार, मजाक उड़ते हुए और कांग्रेस के बारे में तीखी टिप्पणी के साथ दिया.

गंदा खेल

जब दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने केंद्र को लिखा कि, कोविड –19 मामलों की तेजी से बढ़ती बाढ़ को मद्देनजर रखते हुए अस्पतालों में मेडिकल ऑक्सीजन की आपूर्ति को बढ़ाने का अनुरोध किया तो, कॉमर्स मंत्री पियूष गोयल ने कहा था कि: “ राज्य सरकारों को मांग करनी चाहिए ” नियंत्रण में =डिमांड – साइड मैनेजमेंट, सप्लाई – साइड मैनेजमेंट जितना ही महत्वपूर्ण है.
WHO ने पहले ऑक्सीजन स्टॉक करने के निर्देश दिए थे,तो केंद्र सरकार ने ऐसा क्यों नहीं किया ?
जब देश भर के अस्पताल कोविड –19 रोगियों के साथ तेजी से बढ़ रहे हैं, जिन्हे ऑक्सीजन सपोर्ट की आवश्यकता है, तो राज्य सरकारें ऑक्सीजन की डिमांड साइड को ‘ मैनेज ’ कैसे करें ?

कॉमर्स मिनिस्टर की टिप्पणी से यह तो साबित होती है कि यह भाजपा की यह हमेशा की भाषा है – मुद्दा चाहे कोई भी हो, लगभग किसी भी राजनीतिक विरोधी को किसी भी तरह से दोषी ठहराना ही बीजेपी की सबसे पहली कोशिश रहती है. यह हमेशा राजनीति का पहला भाव है, और संवेदनशीलता अंतिम है.

नहीं भूलेगा इतिहास कभी

इतिहास कभी नहीं भूलेगा की सरकार की सत्ता में रहने की भूख के लालच की वजह से, जनता को इस खतरनाक महामारी की आपदा के कारण स्वास्थ्य पर भारी संकट का सामना करना पड़ा है. न जाने कितने लोगों को कितनी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा है. न जाने कितने लोग ऑक्सीजन की कमी से तड़प कर अपनी जान गवाई हैं.

वहीं दूसरी ओर महाराष्ट्र में, बीजेपी नेता देवेंद्र फडणवीस और प्रवीण दरेकर कथित तौर पर रेमेड्सविर की खरीद में शामिल है, जिसमें यह भी आरोप लगे है कि वे भी कालाबाजारी में शामिल हो सकते हैं.

यह सब जानते है कि राजनीति में राजनीतिक पार्टियां किसी भी हद तक जा सकती है. राजनीति में पूर्ण उद्देश्य ही राजनीति करना होता है. लेकिन यह हमेशा ही राजनीति करना जरूरी नहीं. जब तो बिलकुल नहीं जब देश स्वास्थ्य आपातकाल से उबर रहा हो.

इतिहास इस सरकार को इसकी सत्ता की भूख के लिए कभी माफ नहीं करेगा. पावर के जुनून में चूर यह सरकार, अपनी राजनीति के खेल में डूबी हुई है और यही दूसरी ओर असहाय महसूस जनता अपनी जान गंवा रही है .

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