family story in hindi
family story in hindi
72 वर्षीय श्रीकांत हाथ में लिफाफा लिए हुए घर में घुसे. पत्नी सुमित्रा लिफाफा देखते ही खुश हो गई थीं. वे बोलीं, ‘‘क्या अर्णव की चिट्ठी आई है? वह कब आ रहा है?’’ परंतु उन के उदास चेहरे पर निगाह पड़ते ही वे चिंतित हो उठी थीं. ‘‘क्या हुआ? तबीयत तो ठीक है? आप का चेहरा क्यों इतना उतरा हुआ है?’’
पत्नी के सारे प्रश्नों को नजरअंदाज करते हुए श्रीकांत सोफे पर निराशभाव से धंस कर बैठ गए थे. उन का चेहरा झुका हुआ था, दोनों हाथ उन के सिर पर थे.
पति का गमगीन चेहरा देख, बुरी खबर की आशंका से सुमित्रा एक गिलास में पानी ले कर आई. फिर पूछा, ‘‘कांत, क्या बात है? कुछ तो बोलिए?’’
श्रीकांत रोंआसे हो कर बोले, ‘‘बैंक से मकान की नीलामी का नोटिस आया है. तुम्हारा लाड़ला राजकुमार इस मकान के ऊपर बैंक से लोन ले कर अमेरिका गया है. लोन की एक भी किस्त नहीं भेजी है. नालायक कहीं का. तुम्हारे लाड़ले ने अपने बूढ़े बाप को हथकड़ी पहना कर जेल भेजने का पक्का प्रबंध कर दिया है.’’
‘‘बड़े घमंड और शान से ब्लैंक चैक कहा करती थीं न.’’‘‘देख लो, अपने ब्लैंक चैक को. मांबाप को मुसीबत में डाल दिया है.’’ ‘‘हमारा मकान नीलाम होगा…’’ सुमित्रा घबरा कर बोलीं, ‘‘किसी तरह कोशिश कर के इस नीलामी को रोकिए. इस बुढ़ापे में हम लोग कहां जाएंगे. जो कहना है, अपने राजदुलारे से कहो.’’
‘‘उस का तो कुछ अतापता ही नहीं है.’’ श्रीकांत बोले, ‘‘उस की राह देखतेदेखते तो आंखों की रोशनी भी चली गई. अब तो आंखों के आंसू भी सूख चुके हैं.’’
‘‘आप मुझे बताइए, मैं उस अफसर के पैर पकड़ लूंगी, भीख मांगूंगी कि मुझे मोहलत दे दो. इस बुढ़ापे में बताओ भला मैं कहां भटकूंगी.’’
‘‘चुप हो जाओ. सब तुम्हारा ही कियाधरा है. तुम्हारी बातों में आ कर आज यह दिन देखना पड़ रहा है.’’ श्रीकांत बोले. फिर वे मन ही मन बुदबुदाए थे, ‘‘झूठे राजेश के झांसे में पड़ कर सबकुछ बरबाद हो गया. वह पैसा खाता रहा, कहता था कि सर, आप निश्ंिचत रहिए, मैं ने आप की फाइल नीचे दबा दी है. अब किसी अफसर की निगाह ही उस पर नहीं पड़ सकती. मैं ने आप की जिंदगीभर का इंतजाम कर दिया है. झूठा, मक्कार एक लाख रुपया भी खा गया और न कुछ करा न धरा.’’
पत्नी को रोते देख वे खिसिया कर बोले, ‘‘सुमित्रा, शांत हो जाओ. अब सबकुछ औनलाइन हो गया है, इसलिए कोई कुछ कर भी नहीं सकता.’’ सुमित्रा चुपचाप बैठी रही थीं. उन्हें अपने चारों ओर अंधकार दिखाई पड़ रहा था. अंधेरे में तीर मारते हुए उन्होंने अपने दोचार परिचितों को फोन मिलाया परंतु किसी से अपनी समस्या कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाईं.
उन के जेहन में बारबार बेटीतुल्य ननद शची का चेहरा याद आ रहा था. अपने बेटे के मोह में वे अंधी हो गई थीं. बेटे के घमंड में वे शची को जाने क्याक्या कह बैठी थीं. कांत ने उन्हें समझाने की कोशिश की थी तो वे उन से भी उलझ बैठी थीं.
शची की कही बात सौ प्रतिशत सही निकली. उस की कही हुई बात उन के दिल पर हथौड़े सी हमेशा चोट करती रहती है. ‘भाभी, अब समय बदल गया है. बेटेबेटी में अब कोई फर्क नहीं रह गया है. ब्लैंक चैक की रातदिन आप माला जपती रहती हैं जबकि उस के लक्षण से तो लगता है कि वह ब्लैंक ही न रह जाए.’
एक दिन वह आई थी केवल उन्हें आगाह करने के लिए. ‘भाभी, आप का बेटा बिगड़ रहा है. अपनी आंखों के ऊपर से पट्टी खोलिए, जब उस की असलियत खुलेगी तब आप को मेरी कही बात याद आएगी.’
‘‘कांत, मैं शची से बात करूं. अब तो वही एक सहारा दिखाई पड़ रही है.’’ ‘‘किस मुंह से उस से मदद मांगोगी. तुम ने उसे कितना जलील किया था. मेरा तो राखी का रिश्ता भी तुड़वा दिया और आज जब तुम्हें जरूरत है, तो उस की याद आ रही है.’’
‘‘एक बात समझ लो, पैसा बड़ी बुरी चीज है. मदद मांगते ही अपने भी पराए हो जाते हैं. उसे तो तुम दुश्मन ही समझती थीं.’’ सुमित्रा अपने आंसू पोंछ कर बोलीं, ‘‘कांत, हम लोग शची से अपना लोन चुकता करने को कहेंगे. फिर यह घर उसी के नाम कर देंगे और हम लोग किराएदार की तरह उसे हर महीने किराया दे दिया करेंगे.’’
‘‘तुम्हारा प्लान तो अच्छा है लेकिन उस ने मना कर दिया तो…’’‘‘नहीं, वह मना नहीं करेगी. इस समय उस के लिए 10 लाख रुपए कोई बड़ी रकम नहीं है. इस से हम लोगों की इज्जत सरेआम नीलाम होने से बच जाएगी और घर की चीज घर में ही रह जाएगी.’’‘‘मैं उस दिन उधर से निकल रही थी तो अंजू ने उस की कोठी दिखाई थी. आजकल शची के बंगले की चर्चा पूरे महल्ले में हो रही है.’’
‘‘सुमित्रा, प्लीज इस समय चुप हो जाओ.’’वे चुप हो कर मन ही मन सोचने को विवश हो गईं कि आज की स्थिति के लिए काफी हद तक क्या वे खुद जिम्मेदार नहीं हैं.
श्रीकांत चिंतित मुद्रा में शून्य में निहार रहे थे. उन के उदास और मुरझाए हुए चेहरे को देख सुमित्रा घबरा उठी थीं. यदि कांत इस सदमे को न झेल पाए और इन्हें कुछ हो गया, तो उन का क्या होगा?
वे चुपचाप वहां से उठ कर अंदर कमरे में चली गई थीं. काफी देर तक वहीं पर बैठेबैठे सोचती रहीं. जब किसी तरह कोई समाधान नहीं सूझा तो उन्होंने अपना मोबाइल उठाया और शची से माफी मांगते हुए अपनी सारी समस्या खुल कर कह डाली थी.
शची के उत्तर की प्रतीक्षा कर रही थीं. फिर पति का ध्यान आते ही वे गिलास में दूध ले कर आईं. कांत ने दूध की ओर निगाह उठा कर देखा भी नहीं. फिर भला वे क्या खातीपीतीं.
पतिपत्नी दोनों ही भविष्य के अंधकार की कालिमा की चिंता के कारण एकदूसरे की ओर पीठ कर के लेट गए. थके हुए कांत कुछ देर में खर्राटे भरने लगे थे. परंतु निराशा की गर्त में डूबी सुमित्रा अतीत के पन्नों को पलटने में उलझ गई थीं.
शची उन की छोटी और प्यारी सी ननद है जिस की शादी करने में श्रीकांत ने अपना सबकुछ लुटा दिया था. परंतु लालची पति के अत्याचार से परेशान हो कर शची 5 वर्ष की बेटी आन्या को ले कर उन के पास लौट कर आ गई थी. श्रीकांत अपनी बहन शची को पितातुल्य स्नेह देते थे. उन्होंने सब से पहले उसे अपने पैरों पर खड़े होने की सलाह दी.
भाईबहन की मेहनत रंग लाई थी. शची ने पहली बार में ही बैंक की परीक्षा पास कर ली थी. शची की तनख्वाह और प्यारी सी आन्या के आ जाने से उन की खुशियों में चारचांद लग गए. ननदभाभी के बीच प्यारा सा रिश्ता था. नन्ही सी आन्या के ऊपर वे अपना प्यार लुटा कर बहुत खुश थीं. वह स्कूल से आती तो वह स्वयं उसे अपने हाथों से खाना खिलातीं, उस के साथ खेलतीं. सबकुछ सुचारु रूप से चलने लगा था. शची अपनी तनख्वाह सुमित्रा के हाथ में ही रखती थी.
परंतु फिर भी अकसर मां न बन पाने की कसक सुमित्रा के मन में उठ जाया करती थी. उन की शादी के 12 वर्ष पूरे हो चुके थे, और अब तो वे मां बनने की उम्मीद भी छोड़ बैठी थीं.
मां बनने के लिए वे डाक्टरों के साथ मौलवी, पंडित, गंडातावीज, मंदिरमसजिद हर जगह चक्कर काटतेकाटते निराश हो चुकी थीं. वे आन्या को पा कर अपने गम को अब काफी हद तक भूल बैठी थीं.
परंतु कुछ दिनों से उन्हें चक्कर और मितली की शिकायत रहने लगी थी. एक दिन शची ही उन्हें जबरदस्ती डाक्टर के पास ले गई थी. वे मां बनने वाली हैं, यह जान कर वे खुशी के मारे फूली नहीं समा रही थीं.शची ने भाभी की सेवा में रातदिन एक कर दिया था. उन्हें बिस्तर से जमीन पर पैर भी नहीं रखने दिया था. वह घड़ी भी जल्द ही आ गई थी, जब सुमित्रा प्यारे से बेटे की मां बन गई थीं.
सुमित्रा की देखभाल के लिए उन की अम्मा आ गई थीं. ‘श्रीकांत, तुम्हें बहुत ही खुश होना चाहिए. बेटा तो ब्लैंक चैक की तरह ही होता है. इस की शादी में मनचाही रकम भर के चैक कैश कर लेना. अम्मा की बातें सुन सुमित्रा की आंखें चमक उठी थीं. वे बातबात पर बेटे को ब्लैंक चैक कह कर पुकारतीं और घमंड में रहने लगी थीं.
समय को तो पंख लगे ही होते हैं. अर्णव भी स्कूल जाने लगा था. आन्या 5वीं क्लास में आ गई थी. वह हर बार अपनी कक्षा में प्रथम आती. कभी स्पोर्ट्स में तो कभी डिबेट में मैडल ले कर आने लगी थी.
अर्णव भी पहली कक्षा में आ गया था. परंतु वह लाड़ में बिगड़ता जा रहा था. पति से लड़झगड़ कर सुमित्रा उसे ट्यूशन भेजने लगी थीं. यदि शची कभी अर्णव को डांट देती तो सुमित्रा की त्योरियां चढ़ जातीं और वे बिलकुल भी बरदाश्त नहीं कर पाती थीं. उन के मन में मेरातेरा कब पनप उठा था, वे खुद नहीं जान पाई थीं.
जो शची कभी उन की प्यारी ननद थी और आन्या लाड़ली बेटी के समान थी, अब उन लोगों की शक्ल भी उन्हें नहीं सुहाती थी. वे आन्या की सफलता देख ईर्ष्या की आग में धधकती रहती थीं.
उन्हीं दिनों शची और अजय की नजदीकियों की खबर उन्हें सुनने को मिली थी. वे तो भड़ास निकालने का कोई मौका तलाश ही रही थीं. एकदम से बिफर कर बोली थीं, ‘वह गंजा अजय, जिस की बीवी 2 साल पहले कैंसर से मरी है, बड़ेबड़े 2 लड़के हैं उस के. बड़ा दिलफेंक निकला वह. क्यों अपनी बाकी की जिंदगी खराब करने पर तुली हुई हो? लगता है उस की बड़ीबड़ी गाडि़यों पर मरमिटी हो?’
‘भाभी, आप नाहक नाराज हो रही हैं. मैं गौरव और आरव, दोनों बच्चों से कई बार मिल चुकी हूं. दोनों मुझे बहुत पसंद करते हैं.’
‘तुम्हें जहां मरजी हो जाओ, परंतु आन्या को मेरे पास ही छोड़ना होगा. उस के बिना भला मैं कैसे रहूंगी? वे सुबकसुबक कर रोने लगी थीं. फिर धीरे से बोलीं, ‘शादी कब करने वाली हो?’
उत्तर कांत ने दिया था, ‘इसी 25 दिसंबर को.’ वे चिढ़ कर बोली थीं, ‘सारी खिचड़ी भाईबहन के बीच पक चुकी है. बस, मैं ही गैर थी, जिसे तुम लोगों ने एकदम अंधेरे में रखा था. अंजू न बताती तो मुझे शादी के बाद ही
पता लगता.’ ‘नहीं भाभी, मैं आज ही आप से बात करने वाली थी.’ शची आन्या को अपने साथ अपने नए घर में ले जाना चाहती थी. परंतु सुमित्रा ने आन्या को सौतेले पिता की उलटीसीधी बातें बता कर भड़का दिया था. वह अपनी मां के साथ दूसरे घर में जाने को तैयार नहीं हुई थी.
शची ने आन्या को हालांकि अजय, उन के पुत्रों गौरव व आरव से कई बार मिलवाया था परंतु सुमित्रा और स्कूल की सहेलियों की बातों को सुन कर आन्या मां की दूसरी शादी के विरोध में खड़ी हो गई थी.
लेकिन शची अपने निर्णय पर अडिग रही थी. वह अपने नए परिवार में रमने का प्रयास कर रही थी. अजय और बच्चों का सहयोग पा कर वह बहुत खुश थी. परंतु बेटी आन्या के बिना उसे सबकुछ अधूरा सा लग रहा था.
आन्या फोन पर भी मां से बात नहीं करती थी. सुमित्रा ने आन्या को इसलिए नहीं जाने दिया था कि शची बेटी की वजह से उन्हें अपनी तनख्वाह देती रहेगी. उस की तनख्वाह के कारण ही वे मालामाल बन चुकी थीं. हर बार की तरह इस बार भी पहली तारीख का बेसब्री से इंतजार करती रहीं परंतु न शची आई, न पैसे.
शची ने पैसे भाई के अकाउंट में ट्रांसफर किए, जिसे वे लेना उचित नहीं समझ रहे थे, इसलिए उन्होंने सुमित्रा से इस की चर्चा करना जरूरी नहीं समझा था.
अब सुमित्रा का मिजाज बदल गया था. उन की प्राथमिकताएं बदल गई थीं. आन्या उन की सहायिका बन कर रह गई थी. वे उसे घरेलू कार्यों में उलझा कर पढ़ने का समय भी नहीं देती थीं.
कांत उस के लिए दूध गरम करते तो कभी ठंडा दूध पी कर ही वह स्कूल चली जाती. उसे टिफिन में ताजे नाश्ते के स्थान पर बिस्कुट या ब्रैड मिलने लगी थी. स्कूल यूनिफौर्म अकसर प्रैस भी नहीं होती थी. जूते में पौलिश मुश्किल से वह कभीकभी कर पाती थी.
जब फरवरी में उस का फाइनल रिजल्ट आया तोे उस का बी ग्रेड देख कर सुमित्रा पति के सामने उस की शिकायतों का पुलिंदा खोल कर बैठ गई थीं. स्कूल से आन्या की शिकायत शची के पास पहुंची थी. उस का रिजल्ट देख वह रोंआसी हो उठी थी.
वह पति अजय के साथ बेटी से मिलने आई तो उस दिन सुमित्रा ने उन लोगों का अपमान किया और आन्या की बुराइयों का पिटारा खोल कर बैठ गई थीं. भाई श्रीकांत ने अकेले में बहन से बेटी को अपने साथ ले जाने का आग्रह किया था.
पैसा न मिलने की तिलमिलाहट थी ही और अब आन्या के जाने की सुगबुगाहट से सुमित्रा के हाथों के तोते उड़ गए थे. उन्हें आन्या के रूप में एक मुफ्त की नौकरानी मिली हुई थी.
शची अपनी अबोध बेटी के उलझे बाल, गंदे एवं टूटे बटन वाली फ्रौक, अनाथ सी अवस्था व उतरा हुआ चेहरा देख कर अपने कमरे में जा कर फूटफूट कर रो पड़ी थी.
वह सोचने को मजबूर हो गई थी कि बेटी की इस अवस्था के लिए क्या वह स्वयं जिम्मेदार नहीं है? वह तो इतनी बड़ीबड़ी गाडि़यों में घूम रही है और उन की बेटी की ऐसी दयनीय दशा.
उस दिन काफी कहासुनी व हंगामे के बाद शची बेटी को जबरदस्ती अपने साथ ले कर जाने लगी तो सुमित्रा ने सारे रिश्ते तोड़ने की बात कह दी थी.
उस दिन से आज तक दोनों के बीच सारे संबंध समाप्त हो गए थे. चूंकि अर्णव और आन्या एक ही स्कूल में पढ़ते थे इसलिए सुमित्रा को आन्या की ऊंचाइयों को छूने की सारी दास्तां पूरी तरह से मिलती रहती थी.
अर्णव ट्यूशन के सहारे बस पास भर होता रहा. परंतु उन के लाड़ में बिगड़ा हुआ वह ब्रैंडेड कपड़ों के शौक में उलझा रहा. वे हमेशा से चाहती थीं कि उन का बेटा विदेश में जा कर डौलर में कमाई करे.
अपनी इच्छापूर्ति के चक्कर में सुमित्रा को इंजीनियरिंग के ऐडमिशन के लिए अपने प्रौविडैंट फंड से बड़ी रकम निकाल कर डोनेशन के लिए देनी पड़ी थी.
श्रीकांत एक बड़ी दुकान में सैल्समैन ही तो थे. कभी बेटे के लिए बाइक जरूरी हो गई थी तो कभी नए मौडल का एंड्रौएड फोन तो कभी ब्रैंडेड गौगल्स. प्राइवेट कालेज की फीस और बेटे का लंबाचौड़ा हाथ खर्च देतेदेते उन के फंड से काफीकुछ निकलता जा रहा था.
सुमित्रा सपनों में डूबी हुई थीं. ‘कांत, आप क्यों परेशान हो रहे हैं? मेरा राजकुमार तो ब्लैंक चैक है. उस की शादी में मनचाही रकम भर के वसूल लेना. यह अमेरिका जा कर इतने डौलर कमाएगा कि आप रुपए गिन भी नहीं पाएंगे.’
कांत नाराज हो कर बोले थे, ‘हवा में मत उड़ो. अब समय बदल गया है, दहेज के बारे में सोचना भी अपराध है.’
एक दिन अपने मित्रों के सामने वे अपने दिल का दर्द उड़ेल बैठे थे, ‘आजकल बच्चों की पढ़ाई में जितना खर्च हो जाता है उतने में तो बेटी का ब्याह भी हो जाए.’
सभी जोर से ठहाका लगा कर हंस पड़े थे कि मित्र ने कहा था, ‘बात तो सही कह रहे हो पर लड़कियां भी तो बेटे के बराबर ही पढ़ती हैं. अब मेरी बेटी भी इंजीनियरिंग कर रही है. वह तो गवर्नमैंट कालेज में पढ़ रही है और उसे स्कौलरशिप भी मिल रही है. उस का तो कैंपस सलैक्शन भी हो गया है. जिस के घर जाएगी, पैसे से उस का घर भर देगी.’
अर्णव का कैंपस सलैक्शन नहीं हुआ था. उसे कौल सैंटर में नौकरी मिली थी. अमेरिका के हिसाब से उसे रात में जा कर काम करना पड़ता था. वह शाम 7 बजे जाता था और सुबह 8 बजे लौट कर आता था. उस का शरीर रात की नौकरी नहीं झेल पाया था. वह बीमार हो कर घर लौट आया था. काफी दिनों तक उस का इलाज चलता रहा था. वहां पर उस के कई दोस्त बन गए थे जो विदेशों में पढ़ाई के साथसाथ नौकरी कर रहे थे. अर्णव भी अमेरिका जाने को उतावला हो उठा था. उस ने जीआरई के लिए तैयारी करनी शुरू कर दी. कोचिंग और फीस उस ने स्वयं ही दी थी.
उस ने 2 बार जीआरई की परीक्षा दी परंतु असफल रहा था. वहीं पर वह उन दलालों के चंगुल में फंस गया जो ठेके पर लड़कों को अमेरिका, इंग्लैंड और आस्ट्रेलिया भेजते थे. वे लड़कों को अपने जाल में फंसाने के लिए सारे हथकंडे आजमाया करते थे.
एक दिन वह अपने मित्र सुधांशु को ले कर आया था. ‘पापा, सुधांशु अमेरिका जा रहा है. मां, प्लीज आप पापा को समझाइए. सब की जिंदगी बदल जाएगी. वहां मुझे स्कौलरशिप भी मिल जाएगी. मैं वहां से पोस्ट ग्रेजुएट कर के आऊंगा तो यहां मुझे बहुत बड़ा पैकेज मिलेगा. वहां रहूंगा तो डौलर में कमाऊंगा. सोचिए जरा, बड़ा सा बंगला, बड़ी सी गाड़ी, क्या ठाट होंगे आप के.’
‘कांत नाराज हो कर बोले थे, ‘सुधांशु तो नेता का बेटा है. अपने पिता के पैसे पर ऐश कर रहा है. मेरे पास पैसा कहां रखा है जो मैं दे दूं.’
‘पापा, प्लीज आप कहीं से कर्ज ले लीजिए. मैं एकएक पैसा लौटा दूंगा.’
परंतु श्रीकांत नहीं पिघले थे.
वह घर में पड़ा रहता. न मां से बात करता, न पापा से. वह सूख कर कांटा हो गया था.
‘कहीं नौकरी क्यों नहीं कर लेता?’
‘दिनभर नौकरी ही तो लैपटौप पर बैठाबैठा ढूंढ़ता रहता हूं.’
फिर किसी बीपीओ में उस की नौकरी लग गई थी. सालभर करता रहा था. कुछ रुपए इकट्ठे कर लिए थे.
अब उस ने बैंक में लोन के लिए अर्जी डाल दी थी. सीधा फौर्म ले कर गारंटर की जगह हस्ताक्षर करने का हुक्मनामा सुना दिया था. घर के पेपर्स उस ने श्रीकांत से पूछे बिना ही निकाल लिए थे.
कई दिनों तक घर में अशांति छाई रही थी. परंतु हमेशा की तरह ही सुमित्रा बेटे के समर्थन में खड़ी हो कर बोली थीं, ‘पेपर बैंक में रखने से उस का भविष्य सुधर जाता है तो इस में क्या परेशानी है? कर दीजिए हस्ताक्षर.
‘बेटे को पंख लग जाएंगे. वह आकाश की ऊंचाइयों को छू लेना चाहता है तो आप क्यों बाधा बने हुए हैं. हम लोगों का क्या? थोड़ी सी जिंदगी जी लेंगे किसी तरह. बेटा दुखी रहेगा, तो हम इस मकान का भला क्या करेंगे.’
कांत चिल्ला कर बोले थे, ‘जब तक जिंदा हूं, सिर पर छत चाहिए कि नहीं? एकएक ईंट जोड़ कर इस 2 कमरे का घर किसी तरह बना पाया हूं, वह भी जीतेजी गिरवी रख दूं. मैं ने इस घर को बनाने में अपना खूनपसीना बहाया है. तब जा कर यह बना पाया हूं.’
अर्णव भी कम नहीं था. वह बचपन से जिद्दी था. जो सोच लेता था, वह कर के रहता था. दलाल ने
उसे ऐसे सपने दिखाए थे मानो अमेरिका की सड़कों पर डौलर बिखरे पड़े हैं. वहां पहुंचते ही वह बटोर कर अपनी झोली में भर लेगा.
आखिरकार सुमित्रा के दबाव में कांत को मजबूर हो कर उस पर हस्ताक्षर करने ही पड़े थे. परंतु उस समय उन की आंखों से आंसू भरभर कर निकल पड़े थे. उस दिन सुमित्रा का भी मन खराब हुआ था पर बेटे की खुशी के लिए वे सबकुछ करने को तैयार थीं. आखिर वह उन का ब्लैंक चैक जो था.
बैंक से 10 लाख रुपए लोन ले कर सुमित्रा ने अर्णव को दे दिए थे. बेटे को खुश देख कर सुमित्रा को तसल्ली तो हुई थी परंतु कांत उस रात खून के आंसू रोए थे.
अर्णव उसी दिन मुंबई चला गया था. कुछ दिन फोन करता रहा था. फिर जल्दी ही शायद वह वहां की अपनी रंगीन दुनिया में खो गया और मांबाप, घरद्वार सब को पूरी तरह से भूल गया था.
आज सुमित्रा अपनी गलतियों पर पछता कर सिसक रही थीं. परंतु ‘अब पछताए होत का, जब चिडि़या चुग गई खेत.’ तभी दरवाजे की घंटी बजी थी. उन्होंने घबरा कर घड़ी पर निगाह डाली, सुबह के 6 बजे थे.
सुमित्रा ने उठ कर दरवाजा खोला तो सामने शची खड़ी थी. वे उस से लिपट कर जोरजोर से सिसक पड़ी. ‘‘भाभी, आप ने फोन करने में इतनी देर क्यों कर दी,’’ शची बोली थी.
शची के हाथ से छूट कर ब्लैंक चैक हवा में फड़फड़ा रहा था.