Karan Deol-Drisha Wedding: देखें देओल परिवार की बहू की लेटेस्ट फोटोज

बॉलीवुड के दिग्गज अभिनेता सनी देओल और पूजा देओल के बड़े बेटे करण देओल शादी के बंधन में बंध गए हैं.  करण देओल ने द्रिशा के साथ लिए सात फेरे. करण देओल और द्रिशा की शादी की तस्वीरें सामने आई है. खुद सनी देओल ने भी बहू का स्वागत किया तो करण देओल ने भी शादी की पहली फोटोज की झलकियां सोशल मीडिया पर शेयर की.

करण काफी समय से द्रिशा को डेट कर रहे थे

करण देओल ने अपनी बेस्ट फ्रेंड और लॉन्ग टाइम गर्लफ्रेंड से शादी रचा ली है. लंबे समय से दोनों एक दूसरे को डेट कर रहे थे, ऐसे में बीते दिन 18 जून 2023 को करण और द्रिशा ने अपने परिवार के सामने शादी कर ली.

लाल लहंगे में दिखीं दुल्हनियां

देओल खानदान की बहू द्रिशा ने अपने ब्राइडल लुक को बड़े मांग टीका और एक नेकलेस के साथ पूरा किया है. वहीं हाथों में चूड़ियों के बजाय सिंपल घड़ी पहनी नजर आई. लाल सुर्ख जोड़े में दुल्हन काफी खूबसूरत लग रही है. सामने आई तस्वीरों में दूल्हा- दुल्हन मंडप पर बैठा देखा जा सकता है. इन तस्वीरों में दुल्हन कभी मुस्कुराती तो कभी शर्माती नजर आईं.

सनी देओल का लुक

इन तस्वीरों के अलावा, बारात की कई फोटोज सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है. इनमें सनी देओल और दादा धर्मेंद्र भी नजर आ रहे हैं. बेटे की शादी में सनी देओल व्हाइट कुर्ते और पायजामा के साथ लंबी ग्रीन कलर की शेरवानी में नजर आए. वहीं चाचा बॉबी देओल ब्लू सूटबूट और लाल पगड़ी में दिखे.

बहूरानी का सनी देओल ने किया स्वागत

सोशल मीडिया पर सनी देओल की पोस्ट खूब वायरल हो रही है, ये पोस्ट चर्चा में हैं. सनी देओल ने बहू द्रिशा का स्वागत करते हुए पोस्ट लिखा, ‘आज मैं अपनी प्यारी सी बेटी को पाकर बहुत खुश हूं. ऐसे ही मुस्कुराते रहना मेरे बच्चों.’

 

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इसके साथ ही सनी देओल के पोस्ट पर उनके छोटे भाई बॉबी देओल ने भी दिल वाला इमोजी बनाया और दोनों बच्चों को आशीर्वाद दिया.

Karan Deol ने लिखवाया मंगेतर का नाम तो पापा सनी देओल ने भी लगाई मेहंदी

बॉलीवुड के दिग्गज अभिनेता सनी देओल के बड़े बेटा करण देओल जल्द ही शादी के बंधन में बंधने जा रहे है. करण देओल अपनी मंगेतर द्रिशा के साथ शादी करने जा रहे है. शादी की सारी तैयारी शुरु हो चुकी है. 15 जून को करण की मेहंदी की रस्म आयोजन किया गया था. इस बीच सोशल मीडिया पर उनकी में मेहंदी की तस्वीरें खूब वायरल हो रही है. वायरल तस्वीरों में करण काफी खूबसूरत लग रहे हैं. फैंस को इनकी तस्वीरें काफी पसंद आ रही है.

करण ने अपने हाथ में लिखवाया मंगेतर का नाम

वायरल तस्वीरों में करण अपने हाथ में लगी मेहंदी फ्लॉट करते नजर आ रहे है. करण ने अपने हाथ में मंगेतर द्रिशा का नाम लिखवाया है. बताया जा रहा है इस 18 जून को करण घोड़ी चढ़ेंगे और अपनी दुल्हन के साथ सात फेरे लेंगे. इन दोनों की शादी की रस्मे जोरो-शोरो पर है. करण देओल मेहंदी सेरेमनी में येलो कुर्ता पहनकर पहुंचे. कार में बैठे करण देओल को मीडिया के कैमरे में कैप्चर किए गए हैं. इस दौरान करण देओल के चेहरे पर खुशी देखने लायक रही है.

 

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पापा सनी देओल ने भी लगाई मेहंदी

करण की मेहंदी सेरेमनी की वायरल तस्वीरों में बॉलीवुड के मशहूर दिग्गज अभिनेता सनी देओल करण की मेहंदी में खूब रंग जमाया. खास बात तो यह है कि सनी देओल ने अपने हाथ पर भी मेहंदी लगवाई. उन्होंने बेहद युनीक डिजाइन लगवाया, जो फैंस को भी पसंद आ रहा है. उनके फैंस सनी देओल के महेंदी डिजाइन की काफी पसंद कर रहे है. उनकी मेहंदी में ओम, ओंकार, चांद-तारा और क्रॉस के सिंबल बने थे, जो सभी धर्मों (हिंदू, मुस्लिम, सिक्ख और ईसाई) के प्रति उनके सम्मान को दर्शाता है.

करण देओल और दिशा रॉय की शादी

पहले खबरें आ रही थीं कि करण और द्रिशा 16 जून 2023 को शादी करने वाले हैं. हालांकि, अब लेटेस्ट मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, कपल 18 जून को दिन में शादी के बंधन में बंधेगा और रात को रिसेप्शन पार्टी होगी. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, “सभी समारोह ‘ताज लैंड्स एंड’ में आयोजित किए जाएंगे, लेकिन हल्दी की रस्म उनके घर पर रखी गई, क्योंकि वे वेडिंग वाइब के लिए घर पर कुछ फंक्शन चाहते थे.

REVIEW: रबड़ की तरह खींची गयी कहानी ‘आश्रम चैप्टर 2-डार्क साइड’

रेटिंगः ढाई स्टार

निर्माताः प्रकाश झा प्रोडक्शन

निर्देशकः प्रकाश झा

कलाकारः बॉबी देओल, चंदन राय सान्याल, अदिति सुधीर पोहणकर,  दर्शन कुमार, अध्ययन सुमन.

अवधिः लगभग छह घंटे दो मिनट,  32 से बावन मिनट के नौ एपिसोड

ओटीटी प्लेटफार्मः एमएक्स प्लेअर

प्रकाश झा कुछ माह पहले ही वेब सीरीज ‘आश्रम’ के पहले सीजन का भाग एक लेकर आए थे,  जिसे काफी सराहा गया था और लोगों ने भी काफी पसंद किया था. अब उसी का दूसरा भाग लेकर आए हैं, जिसके नौ एपिसोड हैं, जिन्हें देखने के लिए कुल छह घंटे दो मिनट का समय चाहिए. लेकिन पहले के मुकाबले दूसरा भाग थोड़ा सा कमजोर है.

कहानीः

भाग एक की कहानी जहां खत्म हुई थी, उसके आगे से ही भाग दो यानीकि ‘आश्रमःद डार्क साइड’ की कहानी शुरू होती है. पहले भाग के अंतिम एपीसोड में बाबा काशीपुर वाले ने परमिंदर उर्फ पम्मी(अदिति पेाहणकर) के भाई सत्ती  सिंह(तुशार पांडे) का शुद्धिकरण यानीकि आपरेशन कर उसे नपुंसक बनाकर एक फैक्टरी का कमांडर बनाकर भेज दिया था. इधर बाबाजी ने रात के अंधेरे में शक्ति की पत्नी बबिता(त्रिधा चैधरी) को बुलाकर ड्ग्स मिले लड्डू खिलाकर शारीरिक संबंध बनाए थे. अब दूसरे भाग की कहानी बबिता(त्रिधा चैधरी) से शुरू होती है. वह अपने कमरे में बैठे रो रही है, तभी पम्मी उसके पास आकर रोने की वजह पूछती है, तो वह कह देती है कि शक्ति से उसका झगड़ा हो गया था. फिर रेणु व पम्मी के बीच कुश्ती का दंगल होता है, दोनो एक दूसरे की जानी दुश्मन है. वहीं बाबाजी ने हुकुमसिंह(सचिन श्राफ ) के साथ ही वर्तमान मुख्यमंत्री सुंदरलाल के साथ भी सॉंठ गांठ कर ली है. पॉप गायक टीका सिंह का संगीत सत्संग कार्यक्रम होता है, जिसमें बाबाजी के साथ ही हुकुम सिंह भी मौजूद रहते हैं. इससे मुख्यमंत्री संुदरलाल(अनिल रस्तोगी) को लगता है कि बाबाजी(बॉबी देओल ) तो हुकुमसिंह का साथ दे रहे हैं. वह बाबाजी से मिलने आते हैं. काशीपुर वाले बाबा, भोपा(चंदन रॉय सान्याल) की मौजूदगी में मुख्यमंत्री सुंदरलाल से कहते हैं-‘मेरा इतिहास मत खोदो. अपना पिछवाड़ा बचाओ. हम तो नंगे खड़े हैं. ’’तब मुख्यमंत्री सुंदरलाल,  बाबाजी के सामने हुकुम सिंह जितनी रकम दे रहे हैं, उसकी दो गुनी रकम देने का प्रस्ताव रखते हुए 51 सीट पर जीत का वरदान मांगते हैं. इधर बबिता ने एक योजना बना ली है, वह बाबाजी से अपनी इच्छा से मिलती है, यह बात साध्वी माता (परिणीता सेठ ) को पसंद नही आती. पर बाबाजी, रात के अंधेरे में बबिता से मिलते हैं, इस बार बबिता उनके हाथ से लड्डू खाने से इंकार कर देती है. वह कहती है कि होश में सेक्स करने का मजा ही अलग है. फिर बबिता के साथ बाबाजी शारीरिक संबंध बनाते हैं.

दूसरे एपीसोड में साध्वी माता से आरती का हक छीनकर बाबाजी बबिता को दे देते हैं. टिंका(अध्ययन सुमन ) का संगीत सत्संग कार्यक्रम संपन्न होता है. बबिता, बाबाजी की महानता का बखान करती है. उधर इंस्पेक्टर उजागर सिंह (दर्शन सिंह) और उनका सहायक साधु (विक्रम कोचर)रूप बदलकर ड्ग्स के आदि होने का नाटक कर आश्रम के ‘नशामुक्ति केंद्र’में प्रवेश पा जाते हैं. दूसरे दिन डाक्टर नताशा रूप बदकर आश्रम में प्रवेश कर उजागर को वीडियो कैमरा दे जाती हैं. उधर सोहनी की अदालत में पेशी होनी है, इसलिए पत्रकार अक्की(राजीव सिद्धार्थ) उसे अपने गांव के मकान में छिपा देता है, मगर एक पुलिस इंस्पेक्टर से भोपा को सच पता चल जाता है, तब शामी व मंगल वहां पहुंचकर अक्की की मां व सोहनी की हत्या कर देते हैं. अब बदला लेने के लिए अक्की सरदार का रूप धर कर ईलेक्ट्रीशियन तेजेंद्र बनकर आश्रम में नौकरी पा जाता है. अब उजागर, साधू व अक्की तीनों मिलकर बाबा के खिलाफ सारे सबूत इकट्ठा करने में लग जाते हैं.

एपीसोड तीन में टिंका सिंह का संगीत सत्संग समता नगर में होता है, जहां सुंदरलाल मौजूद रहते हैं. उधर आश्रम में सनोबर के पीछे शामी पड़े हुए हैं. कुश्ती प्रतियोगिता में रेणु को पम्मी हराकर अपने लिए राष्ट्रीय कुश्ती चैंम्पियन में जाने की राह बना लेती है. बाबा काशीपुर वाले वहां मौजूद रहते हैं और उसे आशिर्वाद देने के बाद उसके साथ कुश्ती लड़ते हैं. कुश्ती में पम्मी, बाबाजी को हरा देती है. मगर बाबाजी,  पम्मी की देह पर मोहित हो जाते हैं.

चैथे एपीसोड में पम्मी को बाबाजी के संग कुश्ती के दृश्य याद आते हैं. उधर शक्ति फोन कर पम्मी को बधाई देता है. बाबाजी, पम्मी की तरक्की कर उसे अलग से रूम दिलाते हैं. उधर बाबाजी भी पम्मी संग कुश्ती वाले दृश्य भूल नही पा रहे हैं. टिंका का संगीत सत्त्संग होता है. पर वहां भी बाबाजी, पम्मी की ही याद में खोए नजर आते हैं. अंततः बाबाजी के आदेश पर साध्वी खीर में ड्ग्स मिलाकर पम्मी को खिलाकर बेहोश कर देती है. रात में बेहोश अवस्था में पम्मी को बाबाजी के भवन पर मलंग व भोपा ले जाते हैं. बाबाजी, बेहोश पम्मी संग शारीरिक संबंध बनाने के बाद उसे उसके कमरे में भिजवा देते हैं. सुबह पम्मी की समझ में नही आता कि यह दुश्कर्म उसके साथ किसने किया. टिंका के संगीत सत्संग बाबाजी के साथ हुकुम सिंह मौजूद रहते हैं, मगर मुख्यमंत्री जी दिलावर के संग मिलकर ऐसी हरकत करते हैं कि संगीत का कार्यक्रम बीच में रूक जाता है. भोपा बताता है कि यह सारा खेल दिलावर का है, तो बाबाजी कहते हैं कि ‘दिलावर तो प्यादा है. राजनीति तो वजीर खेलते हैं.

पांचवे एपीसोड में उजागर के सामने कविता रहस्य उजागर करती है कि बाबा मनसुख ने समाधि ली, तब बाबा निराला को गद्दी नसीब हुई थी. यह भी बात सामने आती है कि सनोबर, ईश्वरनाथ की बेटी है. पंत नगर के संगीत सत्संग में हुकुम नारायण व सुंदरलाल दोनो आपस में टकराते हैं. उजागर ने चाल चली और गुप्त खजाने से कई अहम सबूत जमा किए. पर अक्की उर्फ तेजेंद्र के हाथों शामी की हत्या हो गयी. उधर फिर बेहोश पम्मी के साथ बाबाजी दुश्कर्म करते हैं.

छठे एपीसोड में भोपा, शामी के हत्यारे की तलाश सख्ती से शुरू करते हैं, पर बाबा उसे समझाते है कि  इससे भक्तों में डर व दहशत का माहौल हो जाएगा, इसलिए शामी की मौत को आत्महत्या घोषित कर दो. आश्रम से निकलकर उजागर सिंह व साधु एक गुप्त स्थान पर नताशा से मिलकर सारे सबूतों की जांच पड़ताल करते हैं, तो पता चलता है कि आश्रम की जमीन के मालिक तो ईश्वरनाथ है, जिन्हे पुलिस रिकार्ड में मृत बताया जा चुका है. उजागर व साधु , ईश्वरनाथ का पता लगाते हैं, जो कि भारत व नेपाल सीमा पर बाबा के डर से छिपे हुए हैं. चुनाव प्रचार शुरू हो जाते हैं. पम्मी को रात में अपने साथ दुश्कर्म करने वाले का धुंधला चेहरा नजर आता है. कविता उसे सलाह देती है कि वह आश्रम से दूर चली जाए, परपम्मी को बाबाजी पर भरोसा है.

सातवें एपीसोड में पम्मी फिर से कुश्ती लड़ने का निर्णय लेती है. उधर नताशा व उजागर, बाबा के खिलाफ सारे सबूत एसपी करण ढांडा को सौंप देते हैं. इधर इस बार ड्ग्स मिली खीर पम्मी नही खाती है, पर बेहोश व नींद होने का नाटक करती है और पम्मी को सच पता ल जाता है कि जिसे वह भगवान मान रही थी, वही उसके साथ दुश्कर्म कर रहा था. पम्मी व बाबा के बीच लंबी बहस होती है. पम्मी धमकी देकर वहां से निकलती है. पर आश्रम से बाहर नही जा पाती. उसे कैद कर दिया जाता है. इधर एसपी ढांडा, बाबाजी की फाइल मुख्यमंत्री को सौंपकर अपना तबादला दिल्ली करवाने में सफल हो जाते हैं. मुख्यमंत्री व बाबा के बीच टशन बढ़ जाती है. भोपा, पम्मी के पिता का एक्सीडेंट करवाकर उन्हे आश्रम के अस्पताल में भर्ती करवाते हैं.

आठवें एपिसोड में दिलावर सिंह, सुंदरलाल का साथ छोड़कर अपने भाई हुकुम सिंह के पास वापस आ जाते हैं. गुस्से में मुख्यमंत्री सुंदरलाल,  बाबा के आश्रम में विजलेंस का छापा डलवाते हैं, तब बाबा और सुंदरलाल में समझौता हो जाता है. फिर बाबाजी व सुंदरलाल की मौजूदगी में टिंका सिंह का संगीत सत्संग होता है. उधर भोपा कह देते हैं कि पम्मी के पिता का इलाज बंद कर दें.

नौंवे एपीसोड में पम्मी एक कठोर निर्णय लेती है. आश्रम में कुछ लोगो की हत्या कर वह वहां से भागने में सफल होती है. पर भोपा व पुलिस तंत्र उसके पीछे है. उधर बाबा ने रातोंरात एक फैसला लिया, जिसके चलते हुकुम सिंह की पार्टी विजेता बन गयी. आरै हुकुम सिंह मुख्यमंत्री बन गए.

लेखन व निर्देशनः

प्रकाश झा फिल्म निर्देशक बनने से पहले सीरियल निर्देशित करते रहे हैं, इसलिए उन्हे बाखूबी पता है कि कहानी को एक ही जगह स्थिर रखकर कैसे उसे रबड़ की तरह खींचा जाए. ‘आश्रम’का पहला भाग जितना बेहतर था, उतना ही खराब यह दूसरा चैप्टर है. कहानी को नौ एपीसोड में छह घंटे से अधिक अवधि तक खींचने में दृश्यों का दोहराव भी है. इस बार बाबा के पास हर दिन संभोग करने और राजनीतिक गेम खेलने के अलावा कोई काम नहीं रहा. कई दृश्य बड़े अजीब से लगते हैं. संगीत सत्संग के नाम पर बहुत ही घटिया प्रस्तुति है और लगभग हर एपीसोड में दोहराव है. ‘आश्रम चैप्टर 2’पर बतौर निर्देशक प्रकाश झा अपनी पकड़ खो चुके हैं. इस बार कमजोर पटकथा के चलते   बाबा ही नहीं बल्कि भोपा, नताशा,  उजागर सिंह व साधू के किरदार भी कमजोर हो गए हैं. सिर्फ वीडियोग्राफर कम पत्रकार अक्की के किरदार को थोड़ा सा विस्तार दिया गया है. कुछ दृश्य तो बड़े अजीबोगरीब हैं.

अभिनयः

अभिनय में हर कलाकार  पहले भाग की आपेक्षा कमतर ही रहा. इस बार टिंका सिंह के किरदार में अध्ययन सुमन काफी निराश करते हैं.

Review: जानें कैसी है बॉबी देओल की Web Series ‘आश्रम’

रेटिंगः तीन

निर्माताः प्रकाश झा प्रोडक्शन

निर्देशकः प्रकाश झा

कलाकारः बॉबी देओल, चंदन राय सान्याल, अदिति सुधीर पोहणकर, दर्शन कुमार, अध्ययन सुमन.

अवधिः लगभग छह घंटे 45 मिनट, चालिस से पचास मिनट के नौ एपीसोड

ओटीटी प्लेटफार्मः एमएक्स प्लेअर

राजनीति व सामाजिक मुद्दों पर बेहतरीन फिल्मों के सर्जक के रूप में पहचान रखने वाले निर्माता निर्देशक प्रकाश झा ओटीटी प्लेटफार्म ‘‘जी 5’’पर कुछ दिन पहले आयी फिल्म ‘‘परीक्षा’’ने लोगों के दिलों तक अपनी पहुॅच बना ली थी, मगर यह बात उनकी ‘‘एम एक्स प्लेअर’’पर 28 अगस्त से प्रसारित वेब सीरीज ‘‘आश्रम’’को लेकर नहीं कहा जा सकता. अभी ‘आश्रम’’के पहले सीजन का भाग एक ही आया है, जिसके 40 से 50 मिनट के बीच के नौ एपीसोड यानीकि लगभग पौने सात घंटे हैं.

खुद को भगवान का दर्जा देकर धर्म, अंध विश्वास व आस्था के नाम पर मासूमों की भावनाओं का हनन करने वाले धर्म के तथाकथित ठेकेदारों व उनके अनुयायियों का पर्दाफाश करने वाली वेब सीरीज ‘‘आश्रम’’लेकर आए हैं प्रकाश झा. इसमें विश्वास पर आघात, शडयंत्र की राजनीति, सच्चाई के कैसे दफन किया जाता है, आदि का बेहतरीन चित्रण है.

कहानीः

कहानी शुरू होती है उत्तर भारत के एक गांव की दलित लड़की परमिंदर उर्फ पम्मी( अदिति सुधीर पोहणकर) से. जिसे कुश्ती के दंगल में विजेता होते हुए भी उसे नहीं बल्कि उंची जाति की लड़की को विजेता घोषित किया जाता है. शाम को एक शादी के लिए घोड़ी पर बैठकर उंची जति के मोहल्ले से गुजरने पर उसके भाई को उंची जाति के लोग पीट पीटकर अधमरा कर देते हैं. अस्पातल में उसका इलाज नही हो रहा है, तब निराला बाबा(बॉबी देओल) यानी कि काशीपुर वाले बाबा जी का आगमन होता है, लड़के का इलाज होता है, इससे मुख्यमंत्री सुंदरलाल हरकत में आ जाते हैं और उंची जाति के लोगों को गिरफ्तार करने का आदेश देते हैं, मगर बाबा अपना पैंतरा खेलकर मामला रफादफा कर देते हैं और पम्मी उनकी भक्त हो जाती है. उधर मुख्यमंत्री ने भ्रष्टाचार करते हुए जंगल की जमीन एक बिल्डर ‘‘मिश्रा गोबल प्रोजेक्ट’’को देते हैं, जहंा पर खुदाई में एक नर कंकाल मिलता है, पुलिस इंस्पेक्टर उजागर सिंह(दर्शन कुमार) अपने सहयोगी साधू( विक्रम कोचर) के साथ जंाच शुरू करते हैं. मुख्यमंत्री के दबाव पर उजागर सिंह को जांच से रोका जाता है. उधर पूर्व मुख्यमंत्री हुकुम सिंह(सचिन श्राफ) वहां पहुॅचकर जांच की मांग करते हैं. नर कंकाल की फोरंसिक जांच कर डाक्टर नताशा कटारिया अपनी रिपोर्ट बनाती हैं.

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पुलिस के दबाव में वह रिपोर्ट नहीं बदलती. इस नर कंकाल के मिलने से निराला बाब उर्फ काशीपुर वाले बाबा उर्फ गरीबों के बाबा परेशान हैं कि उनकी असलियत सामने न आ जाए. तो वहीं कुर्सी बचाए रखने के लिए मुख्यमंत्री सुंदर लाल, हुकुम सिंह के साथी दिलावर सहित कुछ लोगों को अपने साथ कर लेता है. अब पम्मी अपने भाई शक्ति के साथ बाबा के आश्रम में काम करते हुए वहीं रहने लगती है. मुख्यमंत्री के आदेश पर बाबा के खिलाफ जंाच जारी है. उजागर सिंह मोहिनी की हत्या की जांच कर रहा है. आई जी शर्मा जांच करते हुए बाबा सिंह की पूर्व पत्नी के पास पहुंच जाते हैं, जो कि बताती हैं कि बाबा का असली नाम मोंटी सिंह है और उनके सहयोगी भूपेंदर सिंह उर्फ भोपी(चंदन रॉय सान्याल) भी गलत काम कर रहे थे, इसलिए वह उन्हे छोड़कर अपने बेटों के साथ अलग रह रही है. काशीपुर वाले बाबा जी की पत्नी ने तीन अरब का मकान लंदन में खरीद कर देने की मांग की है, बाबा देना नहीं चाहते. अब भोपी एक गणिका यानी कि कालगर्ल लूसी की मदद से होटल के कमरे में लूसी संग आई जी शर्मा का सेक्स करते हुए वीडियो बनवाकर आई जी शर्मा को धमकाते हैं, आई जी शर्मा डरकर सारी जांच रपट मूल सबूतों के साथ बाबा के चरणों में रख देते हैं. पर बाद में खबर मिलती है कि वह आश्रम के अस्पताल में आईसीयू में भर्ती हैं.

उधर हुकुमसिंह को काशीपुर वाले बाबा जी का चुनाव में वरदहस्त चाहिए. क्योंकि बाबा जी के 44 लाख अनुयायी हैं. इसलिए आश्रम में नारी सशक्तिकरण के नाम पर आयोजित 1100 लड़कियों के सामूहिक विवाह का आयोजन होता है, जिसमें हुकुमसिंह मुख्य अतिथि बनकर आते हैं और एक करोड़ ग्यारह लाख एक सौ इक्कीस रूपए आश्रम को देते हैं. इसी समारोह में शक्ति को एक वेश्या बबिता(त्रिधा चैधरी)के साथ जबरन विवाह करना पड़ता है. फिर बंद कमरे में बाबा जी तीन करोड़ रूपए के बदले में एक सीट की दर से हुकुमसिंह को बीस सीटें जितवाकर देने का सौदा करते हैं. उधर हुकुम सिंह चालाकी से मुख्यमंत्री व मिश्रा ग्लोबल के बीच हुए भ्रष्टाचार के दस्तावेज हासिल कर मीडिया में हंगामा कर देते हैं. उजागर सिंह की जांच के चलते बाबा व भूपी खुद को फॅंसते हुए पा कर गृहमंत्री से बात कर एक हरिजन पुलिस इंस्पेक्टर हरिचरन दास का प्रमोशन करवाकर उजागर सिंह के उपर बैठवा देते हैं, जो कि उजागर सिंह के खिलाफ ही काररवाही करने लगता है. उधर आश्रम की ही लड़की कविता(अनुरीता झा ) भी इंस्पेक्टर उजागर सिंह से मिलती है, पर बाद में कविता को बंदी बनाकर आश्रम में डाल दिया जाता है. अब बाबा अपने रास्ते से डाॅक्टर नताषा व मोहिनी की बहन सुहानी को हटाने की चाल चलते है. उजागर इन्हे बचाते हुए अपनी जांच जारी रखता है. तो वहीं बाबा अपने आश्रम के साथ युवा पीढ़ी को जोड़ने के लिए बॉलीवुड गायक टीका सिंह(अध्ययन सुमन ) को मजबूरन अपने साथ आने पर मजबूर करते हैं.

लेखनः

वेब सीरीज ‘‘आश्रम’’ में प्रकाश झा ने अपनी पुरानी फिल्मों के सारे मसाले भरे हैं. पूरी सीरीज आयोध्या में तैयार किए गए एक आश्रम व आउटडोर में फिल्मायी गयी है.
इस वेब सीरीज में इस बात का उत्कृष्ट चित्रण है कि किस तरह इमानदार पुलिस अफसरो पर राजनीतिज्ञ, नौकरशाही व धर्म के ठेकेदार दबाव डालकर उन्हे उनका काम करने से रोकते है. इसमें जाति गत विभाजन का भी संुदर चित्रण है. यानी कि वेब सीरीज ‘‘आश्रम’’ जातिगत राजनीति के लिए अनैतिकता की गहन अंतर्धारा के साथ स्वच्छ रूपक का काम करती है. इसमें डेमोक्रेसी/लोकतंत्र पर भी कटाक्ष किया गया है. कुत्सित राजनीति का स्याह चेहरा लोगों के सामने लाने में लेखक व निर्देशक सफल रहे हैं. पहले एपीसोड में ही दर्षक समझ जाता है कि ‘काशीपुर वाले बाबा’कोई संत या महात्मा या समाज सुधारक नहीं, बल्कि एक चालाक, तेजतर्रार, धूर्त, धर्म को निजी स्वार्थ के लिए उपयोग करने वाला कौनमैन है. एक संवाद-‘‘एक बार जब आप आश्रम में आते हैं, तो आप कभी वापस नही जा सकते. ’ निराला बाबा और आश्रम के संबंध में बहुत कुछ कह जाता है. नारी सशक्तिकरण के नाम पर पितृसत्तात्मक सोच व सेक्स के भूखे भेड़िए क्या करते हैं, उसका भी एक आइना है.

एपीसोड नंबर पांच में पुलिस आई जी शर्मा और लूसी के बीच का पूरा प्रकरण बेवकूफी भरा है. और आई जी शर्मा को लूसी द्वारा होटल में बुलाने के बाद ही समझ में आ जाता है कि अब क्या होने वाला है. इससे दर्शक की रूचि कम होती है. यह पूरा प्रकरण महज सेक्स व बोल्ड दृश्य परोसने के लिए ही रखा गया है. बोल्ड सेक्स दृश्यों व गंदी गालियों का भरपूर समावेश किया गया है. और ऐसे दृश्य महज सेक्स को भुनाने के लिए ही रखे गए हैं, इससे फिल्मकार का नेक मकसद कमजोर हो जाता है.

सुखद बात यही है कि धर्म की आड़ में तथाकथित धर्म गुरूओं की काली दुनिया के खतरनाक रहस्य दर्शकों के सामने आते हैं और यह भी पता चलता है कि वोट बैंक की राजनीति के चलते किस तरह ऐसे भ्रष्ट धर्मगुरूओं को राजनेताओं और शासन का वरदहस्त हासिल रहता है. लेकिन‘हिंदू फोबिया’वाले नाराज हो सकते हैं.

निर्देशनः

प्रकाश झा एक बेहतरीन निर्देशक हैं, इसमें कोई दो राय नही. वह इससे पहले भी राजनीति, पुलिस महकमे व आरक्षण आदि पर फिल्में बना चुके है और लोग उनकी फिल्मों के प्रश्ंासक भी है. मगर इस वेब सीरीज के कई दृश्यांे मंे प्रकाश झा की निर्देशकीय छाप नजर नही आती है. कुछ दृश्य बेवकूफी भरे व बहुत ही निराश करने वाले है. किरदार काफी हैं. कुछ किरदारों का चरित्र चित्रण कमतर नजर आता है.
कुछ एपीसोड बहुत धीमी गति से आगे बढ़ते हैं. इन्हे एडीटिंग टेबल पर कसे जाने की जरुरत थी.

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अभिनयः

चालाक, तेजतर्रार, धूर्त, धर्म को निजी स्वार्थ के लिए उपयोग करने वाले, शांतचित्त, काॅनमैन काशीपुर वाले यानी कि निराला बाबा के किरदार में बॉबी देओल ने काफी मेहनत की है. मगर ‘सेके्रड गेम’के बाबा यानीकि पंकज त्रिपाठी से तुलना करने पर वह काफी पीछे रह जाते हैे. कई दृश्यों में वह निराश करते है. पर कुछ दृश्यों में कृटिल बाबा के रूप में उन्होने शानदार अभिनय किया है. निराला बाबा के सहयोगी और हर गलत काम को अंजाम देने के चक्रब्यूह को रचने वाले भूपेंद्र सिंह उर्फ भूपी के किरदार में चंदन राॅय सान्याल ने सशक्त अभिनय किया है. पम्मी के किरदार में अदिति सुधीर पोहरणकर के अभिनय का लोग कायल बन जाते हैं. इमानदारी से सच की तलाश में जुटे पुलिस इंस्पेक्टर उजागर सिंह अपने ही महकमे के लोगों के दबाव के चलते किस तरह अपने काम को करने में मजबूर व बेबस होता है, इसका सजीव चित्रण अपने अभिनय से दर्शन कुमार ने किया है. तो वहीं निडर व सत्य को सामने लाने के दृढ़ प्रतिज्ञ डाक्टर नताशा के किरदार में अनुप्रिया गोयंका ने शानदार अभिनय किया है. बबिता के किरदार मेे त्रिधा चैधरी लोगों का ध्यान खींचने में सफल रही है. ड्ग एडिक्ट गायक टिंका सिंह के किरदार में अध्ययन सुमन ने ठीक ठाक अभिनय किया है. विक्रम कोचर, तन्मय रंजन, जहांगीर खान व अन्य कलाकार भी अपनी अपनी जगह सही हैं.

Web Series Review: जानें कैसी है बॉबी देओल की फिल्म ‘क्लास आफ 83’

रेटिंगः तीन स्टार
निर्माताः रेड चिल्ली इंटरटेनमेंट
निर्देशकः अतुल सभरवाल
कलाकारः बॉबी देओल, अनूप सोनी,  हितेश भोजराज, भूपेंद्र जदावत,  समीर परांजपे.
अवधिःएक घंटा 38 मिनट
ओटीटी प्लेटफार्मः नेटफ्लिक्स

अपराधियों और गैंगस्टरों पर राजनीतिज्ञों का वरदहस्त होना कोई नई बात नही है. अस्सी के दशक में मुंबई में भी बहुत कुछ ऐसा ही हो रहा था. उसी काल की सत्यघटनाओं के आधार पर हुसैन जैदी ने एक किताब ‘‘द क्लास आफ 83’’लिखी थी अस्सी के दषक मे गैंगस्टरों व अपराधियों की पत्रकार के रूप में रिपोर्टिंग करते आए हुसेन जैदी ने कई किताबें लिखी हैं. उनकी दूसरी किताबों पर भी बौलीवुड में फिल्में बन चुकी हैं. अब हुसैन जैदी लिखित. ‘‘द क्लास आफ 83’’ पर ‘‘रेडचिल्ली इंटरटेनमेंट’’एक अपराध कथा वाली फिल्म‘‘क्लास आफ 83’’लेकर आया है. अतुल सभरवाल निर्देशित यह फिल्म 21 अगस्त से ‘‘नेटफ्लिक्स’’पर प्रसारित हो रही है. इस कहानी के केंद्र में एक ईमानदार व काबिल पुलिस अफसर विजय सिंह हैं, जिन्हे अपराध व राजनीतिक गंठजोड़ के चलते अस्सी के दशक में सजा के तौर पर पुलिस अकादमी में डीन बनाकर भेज दिया गया था.

कहानीः

कहानी शुरू होती है अस्सी के दशक में पुलिस अकादमी से, जहां पर पुलिस अफसर विजय सिंह (बॉबी देओल) को नौकरशाही ने सजा के तौर पर पुलिस अकादमी का डीन बनाकर भेजा है. विजय सिंह की गिनती मंुबई पुलिस के सर्वाधिक इमानदार  व काबिल अफसर के रूप में हुआ करती थी. हर अपराधी, खासकर कालसेकर उससे थर थर कांपता था. पुलिस अकादमी के छात्र भी उसके नाम से ही भय खाते हैं.
वास्तव में विजय सिंह को उसके खबरी सूचना देते हैं कि बहुत बड़ा गैंगस्टर कालसेकर नासिक में मौजूद है. उस वक्त विजय सिंह की पत्नी सुधा अस्पताल में थी और उसका आपरेशन होना था. मगर विजय सिंह अपनी पत्नी व बेटे रोहण को जरुरी काम बताकर नासिक जाते हैं. नासिक जाते समय विजय सिंह फोन करके मुख्यमंत्री मनोहर (अनूप सोनी) को बता देते हैं कि वह कालसेकर को खत्म करने के लिए नासिक जा रहे हैं. पर कालसेकर को विजय सिंह के पहुंचनेे से पहले ही खबर मिल जाने से वह भागने में कामयाब हो गया था. उसके कुछ गुर्गों के साथ छह पुलिस कर्मी मारे जाते हैं. मामला गरमा जाता है और विजय सिंह को सजा के तौर पर पुलिस अकादमी का डीन बनाकर भेज दिया जाता है. विजय सिंह को अहसास होता है कि कालसेकर को खबर देने वाला कोई और नही बल्कि मख्यमंत्री मनोहर पाटकर ही हैं, क्योंकि इस बात की जानकारी उनके अलावा किसी को नहीं थी.

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इसलिए विजय सिंह पुलिस अकादमी के तीन बदमाश कैडेट प्रमोद षुक्ला(भूपेंद्र जदावत), विष्णु वर्दे(  हितेष भोजराज ), असलम(समीर परांजपे ) को इस ढंग से तैयार करता है कि उनकेे पास अपराधियों और गैंगस्टर के साथ मुठभेड़ों की बिना किसी प्रतिबंध के स्वतंत्रता होगी. पर उसी दौरान मंुबई में कालसेकर को चुनौती देने वाला गैंगस्टर नाइक गैंग पनप रहा था. अब दोनों गैंग के लोग एक दूसरे के गैंग के गुर्गो का सफाया पुलिस को सूचना देकर करवाने लगे. तो वही मिल की जमीने बिकने लगी. इससे मुख्यमंत्री मनोहर पाटकर की चिंता बढ़ गयी. तब मनोहर पाटकर ने विजय सिंह से मदद मांगते हुए उनका तबादला पुलिस अकादमी से मुंबई पुलिस में कर दिया. उसके बाद कई घटनाक्रम तेजी से बदलते हैं.

लेखन व निर्देशनः

एक बेहतरीन पटकथा पर बनी इस फिल्म में खूंखार अपराधियों के खत्मे के लिए पुलिस की बर्बरता को सही ठहराने की कोशिश की गयी है.  तो वहीं फिल्मकार ने काॅटन मिलों की जमीन पर अपराधियों की सांठगांठ से आॅंखे गड़ाए बैठे राजनीतिज्ञो व मुंबई शहर जिस तरह के मंथन के दौर से गुजर रहा था, उसका सजीव चित्रण किया है. इतना ही नही इसमें स्वर्ण,  नकली मुद्रा,  ड्रग्स,  हथियार और संपत्ति की तस्करी के माध्यम से अवैध धन की जो अंतहीन धारा बह रही थी, उस पर भी रोशनी डाला गया है. फिल्मकार ने फिल्म में अस्सी के दषक को न्याय संगत तरीके से उकेरा गया है. जिन्होने कभी अस्सी के दशक के मंुबई को अपनी आंखों से देखा है, उनके सामने इस फिल्म को देखते हुए अस्सी के दशक की मंुबई हूबहू जीवंत होकर खड़ी हो जाती है. इस सबसे बड़ी चुनौती पर निर्देशक अतुल सभरवाल खरे उतरे हैं. निर्देशक ने अपने कौशल का बेहतरीन परिचय दिया है. फिल्म काफी कसी हुई है.  अच्छाई व सच्चे इंसानों की रक्षा करते हए बुराई के खात्मे पर एक बेहतरीन रोचक व मनोरंजक फिल्म है.
फिल्म के कुछ संवाद बहुत अच्छे बन पडे़ हंै. मसलन-जिंदगी किसी भी विजय सिंह से बेरहम हो सकती है’ अथवा ‘जहां बारूद काम न करे, वहां दीमक की तरह काम करना चाहिए. ’

अभिनयः

इस फिल्म में पहली बार बॉबी देओल अनूठे रूप में नजर आ रहे हैं. उन्होने काफी सधा हुआ और उत्कृष्ट अभिनय किया है. विजय सिंह के किरदार में बाॅबी देओल के अभिनय को देखकर दर्शक भी सोच में पड़ जाता है कि उनकी अभिनय प्रतिभा का अब तक फिल्मकारों ने सही उपयोग क्यांे नही किया. मुख्यमंत्री मनोहर पाटकर के किरदार में अनूप सोनी ने भी कमाल का अभिनय किया है. विष्वजीत प्रधान, भूपेंद्र जदावत, हितेष भोजराज, जॉय सेन गुप्ता, निनाद महाजनी, पृथ्विक प्रताप,  समीर परांजपे ने भी अच्छा अभिनय किया है.

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