रेटिंगः तीन
निर्माताः प्रकाश झा प्रोडक्शन
निर्देशकः प्रकाश झा
कलाकारः बॉबी देओल, चंदन राय सान्याल, अदिति सुधीर पोहणकर, दर्शन कुमार, अध्ययन सुमन.
अवधिः लगभग छह घंटे 45 मिनट, चालिस से पचास मिनट के नौ एपीसोड
ओटीटी प्लेटफार्मः एमएक्स प्लेअर
राजनीति व सामाजिक मुद्दों पर बेहतरीन फिल्मों के सर्जक के रूप में पहचान रखने वाले निर्माता निर्देशक प्रकाश झा ओटीटी प्लेटफार्म ‘‘जी 5’’पर कुछ दिन पहले आयी फिल्म ‘‘परीक्षा’’ने लोगों के दिलों तक अपनी पहुॅच बना ली थी, मगर यह बात उनकी ‘‘एम एक्स प्लेअर’’पर 28 अगस्त से प्रसारित वेब सीरीज ‘‘आश्रम’’को लेकर नहीं कहा जा सकता. अभी ‘आश्रम’’के पहले सीजन का भाग एक ही आया है, जिसके 40 से 50 मिनट के बीच के नौ एपीसोड यानीकि लगभग पौने सात घंटे हैं.
खुद को भगवान का दर्जा देकर धर्म, अंध विश्वास व आस्था के नाम पर मासूमों की भावनाओं का हनन करने वाले धर्म के तथाकथित ठेकेदारों व उनके अनुयायियों का पर्दाफाश करने वाली वेब सीरीज ‘‘आश्रम’’लेकर आए हैं प्रकाश झा. इसमें विश्वास पर आघात, शडयंत्र की राजनीति, सच्चाई के कैसे दफन किया जाता है, आदि का बेहतरीन चित्रण है.
कहानीः
कहानी शुरू होती है उत्तर भारत के एक गांव की दलित लड़की परमिंदर उर्फ पम्मी( अदिति सुधीर पोहणकर) से. जिसे कुश्ती के दंगल में विजेता होते हुए भी उसे नहीं बल्कि उंची जाति की लड़की को विजेता घोषित किया जाता है. शाम को एक शादी के लिए घोड़ी पर बैठकर उंची जति के मोहल्ले से गुजरने पर उसके भाई को उंची जाति के लोग पीट पीटकर अधमरा कर देते हैं. अस्पातल में उसका इलाज नही हो रहा है, तब निराला बाबा(बॉबी देओल) यानी कि काशीपुर वाले बाबा जी का आगमन होता है, लड़के का इलाज होता है, इससे मुख्यमंत्री सुंदरलाल हरकत में आ जाते हैं और उंची जाति के लोगों को गिरफ्तार करने का आदेश देते हैं, मगर बाबा अपना पैंतरा खेलकर मामला रफादफा कर देते हैं और पम्मी उनकी भक्त हो जाती है. उधर मुख्यमंत्री ने भ्रष्टाचार करते हुए जंगल की जमीन एक बिल्डर ‘‘मिश्रा गोबल प्रोजेक्ट’’को देते हैं, जहंा पर खुदाई में एक नर कंकाल मिलता है, पुलिस इंस्पेक्टर उजागर सिंह(दर्शन कुमार) अपने सहयोगी साधू( विक्रम कोचर) के साथ जंाच शुरू करते हैं. मुख्यमंत्री के दबाव पर उजागर सिंह को जांच से रोका जाता है. उधर पूर्व मुख्यमंत्री हुकुम सिंह(सचिन श्राफ) वहां पहुॅचकर जांच की मांग करते हैं. नर कंकाल की फोरंसिक जांच कर डाक्टर नताशा कटारिया अपनी रिपोर्ट बनाती हैं.
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पुलिस के दबाव में वह रिपोर्ट नहीं बदलती. इस नर कंकाल के मिलने से निराला बाब उर्फ काशीपुर वाले बाबा उर्फ गरीबों के बाबा परेशान हैं कि उनकी असलियत सामने न आ जाए. तो वहीं कुर्सी बचाए रखने के लिए मुख्यमंत्री सुंदर लाल, हुकुम सिंह के साथी दिलावर सहित कुछ लोगों को अपने साथ कर लेता है. अब पम्मी अपने भाई शक्ति के साथ बाबा के आश्रम में काम करते हुए वहीं रहने लगती है. मुख्यमंत्री के आदेश पर बाबा के खिलाफ जंाच जारी है. उजागर सिंह मोहिनी की हत्या की जांच कर रहा है. आई जी शर्मा जांच करते हुए बाबा सिंह की पूर्व पत्नी के पास पहुंच जाते हैं, जो कि बताती हैं कि बाबा का असली नाम मोंटी सिंह है और उनके सहयोगी भूपेंदर सिंह उर्फ भोपी(चंदन रॉय सान्याल) भी गलत काम कर रहे थे, इसलिए वह उन्हे छोड़कर अपने बेटों के साथ अलग रह रही है. काशीपुर वाले बाबा जी की पत्नी ने तीन अरब का मकान लंदन में खरीद कर देने की मांग की है, बाबा देना नहीं चाहते. अब भोपी एक गणिका यानी कि कालगर्ल लूसी की मदद से होटल के कमरे में लूसी संग आई जी शर्मा का सेक्स करते हुए वीडियो बनवाकर आई जी शर्मा को धमकाते हैं, आई जी शर्मा डरकर सारी जांच रपट मूल सबूतों के साथ बाबा के चरणों में रख देते हैं. पर बाद में खबर मिलती है कि वह आश्रम के अस्पताल में आईसीयू में भर्ती हैं.
उधर हुकुमसिंह को काशीपुर वाले बाबा जी का चुनाव में वरदहस्त चाहिए. क्योंकि बाबा जी के 44 लाख अनुयायी हैं. इसलिए आश्रम में नारी सशक्तिकरण के नाम पर आयोजित 1100 लड़कियों के सामूहिक विवाह का आयोजन होता है, जिसमें हुकुमसिंह मुख्य अतिथि बनकर आते हैं और एक करोड़ ग्यारह लाख एक सौ इक्कीस रूपए आश्रम को देते हैं. इसी समारोह में शक्ति को एक वेश्या बबिता(त्रिधा चैधरी)के साथ जबरन विवाह करना पड़ता है. फिर बंद कमरे में बाबा जी तीन करोड़ रूपए के बदले में एक सीट की दर से हुकुमसिंह को बीस सीटें जितवाकर देने का सौदा करते हैं. उधर हुकुम सिंह चालाकी से मुख्यमंत्री व मिश्रा ग्लोबल के बीच हुए भ्रष्टाचार के दस्तावेज हासिल कर मीडिया में हंगामा कर देते हैं. उजागर सिंह की जांच के चलते बाबा व भूपी खुद को फॅंसते हुए पा कर गृहमंत्री से बात कर एक हरिजन पुलिस इंस्पेक्टर हरिचरन दास का प्रमोशन करवाकर उजागर सिंह के उपर बैठवा देते हैं, जो कि उजागर सिंह के खिलाफ ही काररवाही करने लगता है. उधर आश्रम की ही लड़की कविता(अनुरीता झा ) भी इंस्पेक्टर उजागर सिंह से मिलती है, पर बाद में कविता को बंदी बनाकर आश्रम में डाल दिया जाता है. अब बाबा अपने रास्ते से डाॅक्टर नताषा व मोहिनी की बहन सुहानी को हटाने की चाल चलते है. उजागर इन्हे बचाते हुए अपनी जांच जारी रखता है. तो वहीं बाबा अपने आश्रम के साथ युवा पीढ़ी को जोड़ने के लिए बॉलीवुड गायक टीका सिंह(अध्ययन सुमन ) को मजबूरन अपने साथ आने पर मजबूर करते हैं.
लेखनः
वेब सीरीज ‘‘आश्रम’’ में प्रकाश झा ने अपनी पुरानी फिल्मों के सारे मसाले भरे हैं. पूरी सीरीज आयोध्या में तैयार किए गए एक आश्रम व आउटडोर में फिल्मायी गयी है.
इस वेब सीरीज में इस बात का उत्कृष्ट चित्रण है कि किस तरह इमानदार पुलिस अफसरो पर राजनीतिज्ञ, नौकरशाही व धर्म के ठेकेदार दबाव डालकर उन्हे उनका काम करने से रोकते है. इसमें जाति गत विभाजन का भी संुदर चित्रण है. यानी कि वेब सीरीज ‘‘आश्रम’’ जातिगत राजनीति के लिए अनैतिकता की गहन अंतर्धारा के साथ स्वच्छ रूपक का काम करती है. इसमें डेमोक्रेसी/लोकतंत्र पर भी कटाक्ष किया गया है. कुत्सित राजनीति का स्याह चेहरा लोगों के सामने लाने में लेखक व निर्देशक सफल रहे हैं. पहले एपीसोड में ही दर्षक समझ जाता है कि ‘काशीपुर वाले बाबा’कोई संत या महात्मा या समाज सुधारक नहीं, बल्कि एक चालाक, तेजतर्रार, धूर्त, धर्म को निजी स्वार्थ के लिए उपयोग करने वाला कौनमैन है. एक संवाद-‘‘एक बार जब आप आश्रम में आते हैं, तो आप कभी वापस नही जा सकते. ’ निराला बाबा और आश्रम के संबंध में बहुत कुछ कह जाता है. नारी सशक्तिकरण के नाम पर पितृसत्तात्मक सोच व सेक्स के भूखे भेड़िए क्या करते हैं, उसका भी एक आइना है.
एपीसोड नंबर पांच में पुलिस आई जी शर्मा और लूसी के बीच का पूरा प्रकरण बेवकूफी भरा है. और आई जी शर्मा को लूसी द्वारा होटल में बुलाने के बाद ही समझ में आ जाता है कि अब क्या होने वाला है. इससे दर्शक की रूचि कम होती है. यह पूरा प्रकरण महज सेक्स व बोल्ड दृश्य परोसने के लिए ही रखा गया है. बोल्ड सेक्स दृश्यों व गंदी गालियों का भरपूर समावेश किया गया है. और ऐसे दृश्य महज सेक्स को भुनाने के लिए ही रखे गए हैं, इससे फिल्मकार का नेक मकसद कमजोर हो जाता है.
सुखद बात यही है कि धर्म की आड़ में तथाकथित धर्म गुरूओं की काली दुनिया के खतरनाक रहस्य दर्शकों के सामने आते हैं और यह भी पता चलता है कि वोट बैंक की राजनीति के चलते किस तरह ऐसे भ्रष्ट धर्मगुरूओं को राजनेताओं और शासन का वरदहस्त हासिल रहता है. लेकिन‘हिंदू फोबिया’वाले नाराज हो सकते हैं.
निर्देशनः
प्रकाश झा एक बेहतरीन निर्देशक हैं, इसमें कोई दो राय नही. वह इससे पहले भी राजनीति, पुलिस महकमे व आरक्षण आदि पर फिल्में बना चुके है और लोग उनकी फिल्मों के प्रश्ंासक भी है. मगर इस वेब सीरीज के कई दृश्यांे मंे प्रकाश झा की निर्देशकीय छाप नजर नही आती है. कुछ दृश्य बेवकूफी भरे व बहुत ही निराश करने वाले है. किरदार काफी हैं. कुछ किरदारों का चरित्र चित्रण कमतर नजर आता है.
कुछ एपीसोड बहुत धीमी गति से आगे बढ़ते हैं. इन्हे एडीटिंग टेबल पर कसे जाने की जरुरत थी.
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अभिनयः
चालाक, तेजतर्रार, धूर्त, धर्म को निजी स्वार्थ के लिए उपयोग करने वाले, शांतचित्त, काॅनमैन काशीपुर वाले यानी कि निराला बाबा के किरदार में बॉबी देओल ने काफी मेहनत की है. मगर ‘सेके्रड गेम’के बाबा यानीकि पंकज त्रिपाठी से तुलना करने पर वह काफी पीछे रह जाते हैे. कई दृश्यों में वह निराश करते है. पर कुछ दृश्यों में कृटिल बाबा के रूप में उन्होने शानदार अभिनय किया है. निराला बाबा के सहयोगी और हर गलत काम को अंजाम देने के चक्रब्यूह को रचने वाले भूपेंद्र सिंह उर्फ भूपी के किरदार में चंदन राॅय सान्याल ने सशक्त अभिनय किया है. पम्मी के किरदार में अदिति सुधीर पोहरणकर के अभिनय का लोग कायल बन जाते हैं. इमानदारी से सच की तलाश में जुटे पुलिस इंस्पेक्टर उजागर सिंह अपने ही महकमे के लोगों के दबाव के चलते किस तरह अपने काम को करने में मजबूर व बेबस होता है, इसका सजीव चित्रण अपने अभिनय से दर्शन कुमार ने किया है. तो वहीं निडर व सत्य को सामने लाने के दृढ़ प्रतिज्ञ डाक्टर नताशा के किरदार में अनुप्रिया गोयंका ने शानदार अभिनय किया है. बबिता के किरदार मेे त्रिधा चैधरी लोगों का ध्यान खींचने में सफल रही है. ड्ग एडिक्ट गायक टिंका सिंह के किरदार में अध्ययन सुमन ने ठीक ठाक अभिनय किया है. विक्रम कोचर, तन्मय रंजन, जहांगीर खान व अन्य कलाकार भी अपनी अपनी जगह सही हैं.