अभी तो आप जवान हैं

48 साल की नेहा अक्सर ही जींस या शॉर्ट्स के साथ टी शर्ट पहन कर पार्कमें टहलने निकल जाती. कभी स्टाइलिश वनपीस पहन कर हमउम्र पुरुषों के दिलोंपर छुरियां चलाती. कभी अपने बच्चों की उम्र के लड़केलड़कियों के साथठहाके लगाती और गप्पें मारती. वह अपने से आधी उम्र की लड़कियों के साथ कईबार साइकिल या बाइक पर रेस भी लगाती. एक दिन तो वह अपनी बाहों में टैटूबनवा कर आई. उस की उम्र की महिलाएं उसे अजीब नजरों से देखतीं क्योंकिमोहल्ले की बाकी महिलाएं यह सब करने की सोच भी नहीं सकती थीं.नेहा अपने पति के साथ रहती थी और दोनों बेटे बेंगलुरु में जॉब कर रहे थे.

पति के जाने के बाद घर में ज्यादा काम नहीं रहता था सो वह अपनी जिंदगीअपनी मरजी से जी रही थी. वह योग और फिटनेस क्लासेस भी जाती थी. इस उम्रमें भी उस ने खुद को बहुत फिट और एक्टिव बना कर रखा हुआ था. उस की उम्रकी महिलाएं जहाँ उस से जलती और चिढ़ती थीं वहीँ पुरुष उसे तारीफ की नजरोंसे देखते. नेहा अपनी जिंदगी पूरे जोश और उत्साह के साथ जी रही थी. इस वजहसे उस के चेहरे पर भी उम्र की छाप नजर नहीं आती थी. उस के चेहरे कीग्लोइंग स्किन और स्वीट स्माइल से कोई भी प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाताथा.

अक्सर ऐसा माना जाता है कि अधेड़ उम्र में लोगों का व्यवहार रूखा औरचिड़चिड़ा हो जाता है. जीवन के प्रति उत्साह कम हो जाता है और नकारात्मकसोच हावी होने लगती है. लेकिन सच तो यह है कि अधेड़ उम्र के लोग असल मेंअन्य उम्र के लोगों की तुलना में ज्यादा सकारात्मक होते हैं. एक हालियाशोध के अनुसार 40 से 60 साल की उम्र के लोग युवाओं और बुजुर्गों की तुलनामें कहीं ज्यादा सकारात्मक होते हैं.अमेरिका और नीदरलैंड में 30,000 लोगों पर किए गए शोध के मुताबिक़ अधेड़उम्र के लोग जीवन में अच्छी चीजें होने को ले कर ज्यादा सकारात्मक होतेहैं.

विशेषज्ञों का मानना है कि अधेड़ लोग जो अपने जीवन में मूल्यों औरसंतुष्टि को ज्यादा कीमती समझते हैं वे अच्छी बातों पर ज्यादा ध्यानकेंद्रित करते हैं. जैसेजैसे लोग परिपक्व होते हैं वे अपने काम में अधिकसक्षम हो जाते हैं. सफलता उन के लिए थोड़ी आसान हो जाती है क्योंकि वेअपने जीवन के विभिन्न कार्यों में महारत हासिल कर लेते हैं. इसलिए वेअधेड़ उम्र तक पहुंचते ही अधिक आशावादी बनने लगते हैं. अधेड़ उम्र के लोगजीवन में आगे बढ़ने पर कम ध्यान केंद्रित करते हैं और जो वर्तमान मेंमौजूद है उसे खुशी से जीने को कोशिश करते हैं.

दरअसल उम्र कितनी भी हो मगर आप की जिंदगी खूबसूरत है यदि दिल में किसी केलिए प्यार और आँखों में सपने हों. कुछ करने का जज्बा और समय के साथ चलनेका हौसला हो. उम्र महज एक संख्या है और जिंदगी उन के लिए हर पल उत्सव हैजो खुद को जवान मानते हैं. आप का दिल जवान होना चाहिए सब कुछ दिलकश नजर आएगा. अगर आप ने अब तक जिंदगी को नहीं जिया बल्कि केवल घर और बच्चों कीसाजसंभाल में जिंदगी बिताती आई हैं तो अब भी समय है.

अपने अंदर कुछ नयापन और कुछ युवापन लाएं. अक्सर हम दूसरों से कहते फिरते हैं कि अब हड्डियों में दम नहीं या इस उम्र में फैशन कौन करे. बस अब तो समय बिताना है. कुछ करने की उम्र कहाँ रही. यह सोच ही बेमानी है. कुछ करने की उम्र तो अंतिम समय तक बाकी रहती है बस दूसरों से और खुद से यह कहना बंद करें कि अब उम्र ढल चुकी है. खुद को हमेशा जवान मानें तो हड्डियों में दम खुद आ जाएगा. नए फैशन के साथ चलें. कलरफुल और स्टाइलिश कपड़े पहनें. आकर्षक हेयर कट कराएं और वह सब करें जो आज का युवा कर रहा है या जो करना आप को पसंद है. आप को अपने अंदर बहुत एनर्जी और हैप्पीनेस महसूस होगी. जिंदगी की बोरियत और अकेलापन कहींदूर भाग जाएगा.

40 की उम्र के बाद महिलाएंअगर बात करें महिलाओं की तो अध्ययनों के मुताबिक़ 40 या 50 की उम्र के बादकी महिलाएं अपने लुक को ले कर सब से ज्यादा नाखुश रहती हैं. दरअसल इसउम्र के आसपास कई महिलाओं का वजन बढ़ना शुरू हो जाता है और वे यह माननेलगती हैं कि मैं अच्छी नहीं दिखती. यह नकारात्मक विश्वास उन के लिए खुशरहने और अपने बारे में अच्छा महसूस करने में एक बड़ी बाधा है. आज रंगरूपपर जोर देने के साथ अच्छा दिखने का दबाव ज्यादा है. जबकि भारतीय महिला कीदुनिया अपने परिवार के इर्द गिर्द केंद्रित रहती है.इस उम्र तक महिलाओं के बच्चे बड़े हो जाते हैं और कॉलेज या अपने करियरमें इतने व्यस्त हो गए हैं कि उन के पास मां के लिए बहुत कम समय है. पतिअपने करियर के लिए पूरी तरह समर्पित रहते हैं. किसी के पास महिला के लिएसमय नहीं होता. जिस महिला ने अपने परिजनों के लिए अपना करियर, खुशियां औरसेहत कुर्बान कर दी वही अकेलापन महसूस करने लगती है. इसलिए उस के जीवनमें एक खालीपन घर करने लगता है.

वैसे भी एक महिला का शरीर इस उम्र के दौरान भारी बदलाव से गुजरता है. वरजोनिवृत्ति की ओर बढ़ रही होती है. शरीर में काफी कुछ हार्मोनल परिवर्तनहोते हैं. सावधानी नहीं बरती गई तो महिलाएं भावनात्मक रूप से परेशान रहनेलगती हैं. वे चिंता और अवसाद से गुजर सकती हैं. कई बार जब पति पहले कीतरह प्यार का प्रदर्शन नहीं करते तो कई महिलाएं सोचती हैं कि उन के बढ़तेवजन और घटते आकर्षण के कारण ऐसा हो रहा है. इसी वजह से उन का पति अबउन्हें प्यार नहीं करता. इस आयु वर्ग की महिलाओं को अचानक लगने लगता हैकि उन के सपने और आकांक्षाएं अधूरी रह गई है.

इतना समय और ऊर्जा बच्चोंको पालने और अपने परिवारों की देखभाल में लगा कर उन्होंने जीवन में बहुतकुछ खो दिया है.अधिकांश भारतीय महिलाएं शादी करने के बाद पारिवारिक जिम्मेदारियों के काबोझ उठाने में पूरी तरह फंसी रहती हैं. फिर जब 40 साल में पहुंचती है तोउन के बच्चे घोसला छोड़ने लगते हैं जिस से उसे खुद और अपने जीवन को करीबसे देखने का समय मिलता है. वह सोचती है कि उस ने क्या हासिल किया. उस नेअपने ऊपर अपने परिवार को प्राथमिकता दी थी और वजन बढ़ा लिया. अपने रंगरूप को नजरअंदाज कर दिया.मगर याद रखें रास्ते हमेशा खुले होते हैं. आप कैसी दिखती हैं, क्या करतीहैं, क्या हासिल कर सकती हैं, आप का अपने प्रति नजरिया कैसा है यह सब कुछआप के हाथ में है. आप को जीवन को नए ढंग से जीना चाहिए. नए नए प्रयोगकरने चाहिए.

आगे बढ़ना चाहिए. अपने आप को और अपनी प्रतिभा को निखारनाचाहिए. पहले खुद में बदलाव लाएं और फिर देखिए कि आप के साथ दुनिया कैसीबदली हुई नजर आती है. खुशी की तलाश दुख से निपटने का सब से अच्छा तरीकाहै. आप जैसी भी दिखती हैं उसे स्वीकार करें और अपने शरीर से प्यार करनासीखें. जो है उसे खूबसूरत बनाएं मगर उस का गम न करें. खुशी मन की अवस्थाहै. जिस तरह से हम दुनिया को देखते हैं वैसे ही दुनिया हमें देखती है. लोगों की परवाह न करेंकई बार लोगों की असंवेदनशील टिप्पणी आप को परेशान कर सकती है. कोई आप केऊपर कमेंट कर सकता है. पर इन सब से विचलित न हो. खुशी आप के अंदर ही है.आप को तय करना है कि आप इस ख़ुशी को अपने जीवन में कैसे उतारते हैं. एक नईशुरुआत करें. खुद में नयापन लाएं. कोई भी शारीरिक रूप से संपूर्ण नहीं.अपने आप से प्यार करें और खुद की सराहना करें.

इस उम्र में व्यायाम औरयोग अनिवार्य है. शरीर हार्मोनल परिवर्तनों के दौर से गुजर रहा है और उन परिवर्तनों को संतुलित करने के लिए अधिक प्रयास की जरूरत है. जब आप वर्कआउट करती हैं, डांस करती हैं , ठहाके लगाती हैं तो फील गुड हार्मोन सेरोटोनिन रिलीज होता है. स्वस्थ आहार लें. कभी कभी जो मन करे वह खाएं और जिंदगी का मजा लें. अपनी भावनाओं को दबाएं नहीं. दूसरों से बात करें. ऐसा देखा गया दबी हुई भावनाएं कई तरह की बीमारियां उत्पन्न कर सकती. अधिक सामाजिक बने. बाहर जाएं. सकारात्मक और खुश लोगों के साथ रहे.

कभी भी अपने जीवन की तुलना अपने परिवार और दोस्तों से न करें. क्षमा करना सीखें. अच्छी बातों को याद रखें और अपमान भूल जाएं. आप को अपनी खुशी के लिए काम करना होगा. जब आप अपनी मदद करने के लिए निकलेंगे तो ऐसे लोगों का हुजूम दिखेगा जो आप पर व्यंग्य कसेगा या रोकना चाहेगा. उ पर ध्यान न दें. बुढ़ापे में भी फैशन के साथ चलें फैशनेबल बनें. जो दिल करे और खुद पर सूट करे वह पहनें. जींस, ट्रॉउज़र ,पटियाला ,पेंट्स ,वनपीस ,स्लीवलेस ,अनारकली ,टॉप, कुर्ते ,साड़ी यानी जो दिल करे वह पहनें. फैशन ट्रेंड अपनाएं. ब्राइट कलर्स भी ट्राई करें. गॉगल्स ,वाच, कैप या इयररिंग्स जो दिल को भाये उसे पहनें. यह न सोचें कि इस उम्र में क्या पहनना सही रहेगा या लोग क्या कहेंगे. जो आप के लुक को सूट करे और जो चीज़ें फैशन में हों उन्हें ट्राई करने से हिचकें नहीं.

अपने बचपन में लौटें

बचपन में क्या खूबसूरत दिन होते थे. स्कूल से आते ही बगीचे में तितली पकड़ने भाग गए . जब तक तितली हाथों में न आ जाए घर वापस नहीं लौटते थे चाहे जिस हाल में हो. जबकि आज हम किसी काम को शुरू करने से पहले ही हिम्मत हार देते हैं और सोचते हैं कि यह काम मुझ से नहीं होगा. बचपन के साथ दिल का वह विश्वास कहीं गायब हो जाता है. ऐसे लगता है जैसे उम्र बढ़ने के साथ जीवन से वह सारा उत्साह भी गायब हो गया. याद कीजिए बचपन में जहां लेट जाते थे वही नींद आ जाती थी. चिंता, तनाव और शक का कोई सवाल न था. दोस्तों के साथ खेलना, बातें शेयर करना. बड़ा से बड़ा दुख या समस्या दोस्तों से शेयर करना दिल को कितना सुकून देता था. आज अपने घर में अपने जीवनसाथी और बच्चों के साथ भी समस्या शेयर नहीं कर सकते. दोस्त के आगे कहीं नीचे न देखना पड़े इसलिए कोई भी समस्या उन्हें भी नहीं बताते.

आज उम्र के इस दौर में फिर से बचपन की तरफ लौटना जरूरी है. तभी जीवन में नयापन और सम्पूर्णता का अहसास होगा. बचपन में जिस प्रकार हम कभी हार नहीं मानते थे उसी प्रकार जीवन भर हार न मानने का प्रण करें. बचपन में हम किसी से भी कुछ मांग लेते थे. हमें शर्म बिल्कुल नहीं आती थी कि लोग क्या सोचेंगे. आज फिर से लोगों के बारे में सोचना छोड़ें और खुले दिल से दोस्तों के गले लगें. अपने मन की बातें शेयर करें. यह बिल्कुल न सोचें क वे क्या सोचेंगे. याद करें आप पिछली बार कब जोर से हंसे थे. ठहाका लगा कर हंसे आप को महीनों हो गए होंगे. जबकि बचपन में आप दिन में कई बार जोरजोर से हंसते थे. आज फिर छोटीछोटी बातों पर ठहाका लगाकर हंसें. उम्र पचपन का हो लेकिन दिल बचपन का होना जरूरी है. बचपन को साथ रखियेगा जिंदगी की शाम में, उम्र महसूस न होगी सफ़र के मुकाम में.

एक्टिव रहें

कानों में यदि बुढ़ापा या अधेड़ शब्द पहुंचे तो ज्यादातर लोगों के मन में खुद की एक तस्वीर उभरती है. झुर्रियों या झाइयों वाली सूरत , उदास नजर और थके से कदम. इस सोच से परे खुद को नया सा महसूस करें. उत्साह और फुर्ती से भरपूर. उम्र के साथ अपने शरीर की गतिविधियां घटाएं नहीं बल्कि एक्टिव रहे. अक्सर एक उम्र के बाद इंसान शरीर से ज्यादा काम लेना बंद कर देता है और उतनी शारीरिक गतिविधियां भी नहीं करता जितना उन्हें फिट रहने के लिए करना जरूरी है. यह उचित नहीं. जब तक डॉक्टर सलाह न दें बढ़ती उम्र में भी खूब चलें, पौधों को पानी डालें और वो सारी हल्कीफुल्की कसरतें करें जो आप के लिए संभव हों. इस से आप का वजन भी कंट्रोल में रहेगा और आप हेल्दी भी बनेंगे. आप का आत्मविश्वास भी बढ़ेगा. जब आप घूमना शुरू करते हैं तो कई ऐसी चीजें देखते हैं जो आपने पहले नहीं देखी होती है.

बच्चे को बचाएं Allergy से

बच्चों में विभिन्न प्रकार की ऐलर्जी होने की प्रवृत्ति होती है और ऐलर्जी उत्पन्न करने वाले कारण कई होते हैं. जैसे- धूल के कण, पालतू जानवर की रूसी और कुछ भोज्य पदार्थ. कुछ बच्चों को कौस्मैटिक्स मिलाए जाने वाले सौंदर्य प्रसाधनों, कपड़े धोने वाले साबुन, घर में इस्तेमाल होने वाले क्लीनर्स से भी ऐलर्जी हो जाती है. ऐलर्जी अकसर जींस के कारण भी पनपती है. लेकिन आप अगर इस के उपचार का पहले से पता लगा लें तो इस की रोकथाम कर सकती हैं.

ऐलर्जी के लक्षण

लगातार छींकें आना, नाक बहना, नाक में खुजली होना, नाक का बंद होना, कफ वाली खांसी, सांस लेने में परेशानी और आंखों में होने वाली कंजंक्टिवाइटिस. अगर बच्चे की सांस फूलती है या सांस लेने में बहुत ज्यादा तकलीफ होने लगे तो वह श्वास रोग का शिकार हो सकता है.

ऐलर्जी का इलाज

यदि बच्चे में 1 हफ्ते से अधिक समय तक ये लक्षण नजर आएं अथवा साल में किसी एक खास समय में लक्षण दिखाई दें तो डाक्टर की सलाह लें. डाक्टर आप से इन लक्षणों के बारे में कुछ प्रश्न पूछेगा और उन के जवाब पर बच्चे के शारीरिक परीक्षण के आधार पर उसे दवाएं देगा. अगर जरूरत पड़े तो ऐलर्जी के विशेषज्ञ डाक्टर से परामर्श व दवा लेने के लिए कहेगा या रेफर करेगा.

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ऐलर्जी की तकलीफ का वास्तव में कोई इलाज नहीं है. लेकिन इस के लक्षण को कम कर के आराम मिल सकता है. मातापिता को अपने बच्चों को ऐलर्जी से मुकाबला करने के लिए शिक्षित करना होगा और उन के शिक्षकों, परिवार के सदस्यों, भाईबहन, दोस्तों आदि को इन के लक्षणों से अवगत करा कर निबटने की अनिवार्य जानकारी देनी होगी.

ऐलर्जी से बचाव

अपने बच्चों के कमरे से पालतू जानवर को दूर रखें और ऐसे कौस्मैटिक्स वगैरह को भी दूर रखें, जिन से ऐलर्जी की संभावना हो. कालीन को हटाएं जिस से मिट्टी न जमा हो. ज्यादा भारी परदे न टांगें जिन में धूल जमा हो. तकिया के सिरों को ठीक से सिल कर रखें. जब पराग का मौसम हो तो अपने कमरे की खिड़कियां बंद रखें. बाथरूम को साफ और सूखा रखें और उन्हें ऐसे खाद्यपदार्थ न दें जिन से उन्हें ऐलर्जी होती हो.

-डा. अरविंद कुमार

 एचओडी, पीडिएट्रिक्स विभाग, फोर्टिस अस्पताल, शालीमार बाग 

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बीमारी के कारण भी हो सकती है डबल चिन की प्रौब्लम, पढ़ें खबर

मोटापे से कई तरह की परेशानियां पैदा होती हैं. इससे शरीर के सारे अंग प्रभावित होते हैं. डबल चिन मोटापे के कारण होता है. इससे आपकी सुंदरता पर बुरा असर होता है. आम तौर पर लोग इसे पसंद नहीं करते और इससे छुटकारा पाने के लिए काफी मशक्कत करते हैं, पर परिणाम हमेशा सकारात्मक नहीं होता. इस खबर में हम आपको उन कारणों के बारे में बताएंगे जिनके चलते डबल चिन की परेशानी होती है.

1. थायराइड

थायराइड डबल चिन का एक प्रमुख कारण है. आपको बता दे कि वजन बढ़ना हाइपोथायरायडिज्म सामान्य सूचक है. लेकिन क्या यह जानते हैं कि आपके जबड़े के बढ़ने का भी यही कारण हो सकता है? यदि आपके जबड़े की हड्डी के नीचे स्थित क्षेत्र में त्वचा समय के साथ फैट से भर जाती है, तो आपको डबल चिन की समस्या हो सकती है. थायराइड के बढ़ने से गर्दन में भी सूजन आ सकती है.

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2. कुशिंग सिंड्रोम

कुशिंग सिंड्रोम के प्रमुक लक्षम हैं उपरी शरीर का मोटा होना और गर्दन में फैट का जमा होना. इसमें लंबे समय तक कोर्टिसोल का अधिक उत्पादन होने लगता है जिसका परिणाम पिट्यूटरी एडेनोमा के रूप में दिखता है. अगर आप एडेनोमा से पीड़ित हैं, तो ट्यूमर को निकालने के लिए सर्जरी जरूरी हो सकती है.

3. साइनस इंफेक्शन

क्रोनिक साइनसाइट के कारण लिंफ नोड्स बढ़ता है. इसके कारण आपके चेहरे और गर्दन पर मोटापा आ सकता है. इस तरह की पुरानी साइनसिसिस जो डबल चिन के लिए जिम्मेदार है उसमें एलर्जी रैनिटिस, अस्थमा, नाक की समस्याएं या स्यूनोसाइटिस शामिल हैं.

4. सलवेरी ग्लैंड इन्फ्लमेशन

कई बार लार ग्रंथी में इंफेक्शन की वजह से जबड़े वाले हिस्से में सूजन हो जाती है जिसके कारण डबल चिन हो जाती है. ओरल हाइजीन, लार की नली की समस्या, पानी में अपर्याप्त जल, पुरानी बीमारी और धूम्रपान इस सूजन के कुछ सामान्य कारण हैं.

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सुंदरता और स्वास्थ्य चाहिए तो दालचीनी का इस्तेमाल है फायदेमंद

देश की ज्यादातर रसोइयों में दालचीनी मसाले के तौर पर इस्तेमाल होता है. पर क्या आप इसके सेहत पर होने वाले फायदों के बारे में जानती हैं? आपको बता दें कि दालचीनी एक पेड़ की छाल होती है, जिसका इस्तेमाल कई तरह की बीमारियों को दूर करने में होता है. इसमें एंटी इंफ्लेमेंट्री, संक्रामक विरोधी जैसे कई गुण पाए जाते हैं. इसके अलावा इसमें एंटी-औक्सीडेंट, मैंगनीज, फाइबर जैसी जरूरी तत्व भी होते हैं. कई तरह की बामारियों में शरीर को स्वस्थ रखने में ये बेहद कारगर है. इस खबर में हम आपको दालचीनी से होने वाले स्वास्थ लाभ के बारे में बताएंगे.

1. सर्दी जुकाम में है असरदार 

सर्दी जुकाम में भी ये काफी असरदार . दालचीनी के पाउडर को पानी में उबाल लें. अर्क को छान कर रख लें. फिर इस पानी में शहद मिला कर पिएं. जल्दी आपको आराम मिलेगा.

2. वजन कम करने के लिए है फायदेमंद

वजन कम करने के लिए दालचीनी को पानी में उबाल कर पानी को छान लें. उसमें नींबू का रस मिला कर पिएं. कुछ ही दिनों में आपको अंतर दिखेगा. गैस या पेट दर्द संबंधी समस्याओं में दालचीनी को शहद में मिला कर खाने से काफी राहत मिलती है.

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3. जोड़ों के दर्द में करें इस्तेमाल

जोड़ों के दर्द में दालचीनी एक बेहतर विकल्प है. पहले दालचीनी को पीस कर पाउडर बना लें. एक कप गर्म पानी में इस पाउडर और शहद को मिला कर पीने से दर्द में काफी आराम मिलता है.

4. हेयरफौल की परेशानी में करें इस्तेमाल

हेयरफौल की परेशानी में ये काफी फायदेमंद होता है. जैतून के तेल में शहद और दालचीनी का पेस्ट बना कर रख लें. नहाने से पहले 30 मिनट तक इसे लगा कर रखें, फिर बाल धो लें. बालों के झड़ने की समस्या में ये काफी फायदा पहुंचाएगा.

5. सुंदरता बरकरार रखने है फायदेमंद

सुंदरता बरकरार रखने में भी ये बेहद कारगर है. मुहांसों की परेशानी में दालचीनी को नींबू के रस में मिलाकर लगाने से काफी फायदा मिलता है.

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महिलाओं को ओवरी के बारे में पता होनी चाहिए ये बातें

आम तौर पर देखा जाता है कि महिलाएं सेक्स या सेक्शुअल हेल्थ पर बात करने से कतराती हैं. जबकि उन्हें कई बातों के बारे में उन्हें जानने की जरूरत है. जानकारी के अभाव में उन्हें कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है. इस खबर में हम आपको महिलाओं के ओवरी (अंडाशय) के बारे में कुछ जरूरी बातें बताएंगे. ओवरी से जुड़ी ये कुछ ज़रूरी बातें हैं जो आपको पता होनी चाहिए.

1. ओवरी के साइज में बदलाव होत रहता है

शरीर के अन्य अंग भले ही एक साइज पर आकर रुक जाते हों, पर ओवरी की साइज बदलती रहती है. ये बदलाव उम्र के साथ और पीरियड्स के दौरान होता है. आपको बता दें कि जब ये अंडा बना रही होती है तो ये आकार में बढ़ जाती है. इसमे करीब 5 सेंटीमीटर तक का बदलाव होता है.

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2. ओवरी को होता है स्ट्रेस

जिस समय आपकी ओवरीज अंडे बना रही होती हैं, उस वक्त को ओव्यूलेशन कहते हैं. और स्ट्रेस का इस पर बहुत असर पड़ता है. उस दौरान अगर आप वाकई बहुत ज़्यादा स्ट्रेस में हैं, तो आपकी ओवरीज़ अंडे बनाना बंद कर देगी.

3. बर्थ कंट्रोल पिल से ओवरीज होती हैं प्रभावित

जानकारों की माने तो बर्थ कंट्रोल पिल्स ओवरीज़ पर सकारात्मक असर करती हैं. सुनने में ये भले ही अजीब लग रहा हो, पर ये सच है. हम बात कर रहे हैं गर्भनिरोधक गोलियों की. उनको लेने से ओवेरियन कैंसर होने का रिस्क काफी कम रहता है.

4. ओवेरियन सिस्ट अकसर अपने आप ठीक हो जाते हैं

बहुत सी औरतों के ओवरी में सिस्ट हो जाता है. ये कैविटी जैसी एक चीज है जिसमें पस भर जाता है. इसे ठीक करने के लिए कई तरह की दवाइयां और सर्जरी हैं. ओवरी के सिस्ट से घबराएं नहीं. ये तीन चार महीनों में अपने आप ठीक हो जाते हैं.

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बच्चे को चाय पिलाना अच्छा है या नहीं?

चाय एक बहुत साधारण पेय है. बहुत से लोगों में रोज सुबह शाम चाय पीने की आदत होती है. ऐसा माना जाता है कि चाय पीने से पाचन क्रिया अच्छी रहती है. इसके अलावा रोग प्रतिरोधक क्षमता को विकसित करने में और कमजोरी को दूर करने में बहुत कारगर होता है. जाहिर तौर पर चाय पीने के कई फायदे हैं. पर व्यस्क और बच्चों पर इसका असर बिल्कुल अलग अलग होता है.

इस खबर में हम आपको बताएंगे कि चाय बच्चे की सेहत को किस तरह से प्रभावित करता है.

कई जानकारों का मानना है कि व्यस्कों और बच्चों पर चाय का असर बिल्कुल अलग अलग होता है. अलबत्ता बच्चों की सेहत पर इसका नकारात्मक असर होता है. अगर आपका बच्चा ज्यादा चाय पीता है तो इसका असर उसके मांसपेशियों, मस्तिष्क और नर्वस सिस्टम पर भी पड़ता है. शारीरिक विकास पर भी बुरा असर होता है.

जानकारों की माने तो बहुत अधिक चाय पीने वाले बच्चों में इन परेशानियों के होने का खतरा बढ़ जाता है:

  • कमजोर होती हैं हड्ड‍ियां
  • हड्ड‍ियों में दर्द रहता है, खासतौर पर पैरों में
  • व्यवहार में बदलाव होता है
  • मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं

चाहिए तेज तर्रार दिमाग वाले बच्चे, तो ये खबर आपके लिए है

प्रेग्नेंसी में बच्चे की सेहत का राज होता है प्रेग्नेंसी के दौरान मां की डाइट. गर्भावस्था में मां का खानपान किस तरह का है इसपर निर्भर करता है कि बच्चे का सेहत कैसा होने वाला है. अगर आप चाहती हैं कि आपका बच्चा सेहतमंद रहे, मानसिक तौर पर तेज हो तो ये खबर आपके लिए है. बच्चों को मानसिक तौर पर स्मार्ट बनाने के लिए जरूरी है कि मांएं को पोषक खाद्य पदार्थों के साथ साथ विटामिंस की खुराक लेती रहें.

अमेरिका में हुए एक शोध में ये बात सामने आई कि प्रेग्नेंसी के दौरान जिन महिलाओं ने विटामिन सप्लिमेंट की खुराक लेती हैं उनके बच्चे, उन महिलाओं के बच्चों की तुलना में दिमागी तौर पर अधिक तेज तर्रार हैं जिनकी माएं गर्भावस्था के दौरान विटामिन सप्लिमेंट नहीं लेती थी.

आपको बता दें कि इस शोध को 9 से 12 साल के करीब 3000 बच्चों पर किया गया है. जानकारों की माने तो प्रेग्नेंसी के दौरान मां के खानपान का असर बच्चों के संज्ञानात्मक  क्षमताओं पर होता है. विटामिन के तत्व जो प्रेग्नेंसी में बच्चों की मानसिक क्षमताओं को सकारात्मक ढंग से प्रभावित करते हैं वो हैं फौलिक एसिड, रिबोफ्लेविन, नियासिन और विटामिन बी12, विटामिन सी और विटामिन डी. इन तत्वों को अपनी डाइट में शामिल करने वाली माओं के बच्चों में सोचने, समझने की क्षमता अच्छी रहती है. शोधकर्ताओं के अनुसार प्रेग्नेंसी के दौरान सिर्फ भोजन से इन सभी पोषक तत्वों की भरपूर और पर्याप्त मात्रा नहीं मिल पाती. इसलिए भोजन के साथ-साथ विटामिन सप्ल‍िमेंट्स की खुराक भी जरूरी हैं.

आपको बता दें कि शुरुआती तीन साल के दौरान ही जो बच्चे ताजे फल, हरी सब्ज‍ियां, मछली और अनाज खाते हैं, उनका स्कूल में रिजल्ट बेहतर होता है. कई शोधों में ये बात स्प्ष्ट हुई है कि जिन बच्चों की डाइट अच्छी रहती है उनमे कौन्फिडेंस भी बेहतर होता है.

नार्मल या सी-सेक्शन डिलिवरी : आपके बच्चे की सेहत के लिए क्या है बेहतर?

आज कल ज्यादातर बच्चों की डिलिवरी आधुनिक चिकित्सा पद्धति यानि सी-सेक्शन से हो रही है. सेहत के जोखिम, दर्द और भी कई समस्याओं को देखते हुए लोग नार्मल डिलिवरी कराना बेहतर समझते हैं. हाल में एक रिसर्च में यह बात सामने आई कि जिन बच्चों की डिलिवरी नार्मल होती है, यानि औपरेशन के बिना, वो बच्चे ज्यादा स्वस्थ होते हैं.

अध्ययन की माने तो गर्भावस्था और प्रसव के दौरान माइक्रोबायोम वातावारण में गड़बड़ी, विकसित होते बच्चे के शुरुआती माइक्रोबायोम को प्रभावित कर सकती हैं. जिसके कारण बच्चे को भविष्य में स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है.

अध्ययन में ये भी बताया गया कि सी-सेक्शन जैसी प्रसव पद्धतियां इन माइक्रोबायोम को प्रभावित करती हैं और बच्चों के इम्यून, मेटाबौलिज्म और तंत्रिक संबंधी प्रणालियों के विकास में नकारात्मक असर डालती हैं. जानकारों की माने तो शिशु के स्वास्थ्य के लिए केवल शिशु की ही नहीं, बल्कि मां के मोइक्रोबायोम की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है. अगर मां के माइक्रोबायोट में किसी प्रकार की गड़बड़ी होती है तो बच्चे को दमा, मोटापा, एलर्जी जैसी कई परेशानियां हो सकती हैं.

अध्ययन में ये बात सामने आई कि सामान्य प्रसव में जन्म के तत्काल बाद मां की त्वचा का शिशु की त्वचा से संपर्क और स्तनपान जैसी पारंपरिक क्रियाएं बच्चे में माइक्रोबायोम के विकास को बढ़ाने और बच्चे के स्वास्थ्य विकास में सकारात्मक प्रभाव डालने में मदद कर सकती हैं.

प्रेग्नेंसी के दौरान इन चीजों से रहें दूर

प्रेग्नेंसी के दौरान महिलाओं को कई तरह की सावधानियां बरतनी पड़ती है जिससे कोख में पल रहे बच्चे को किसी तरह की परेशानी ना हो. इस दौरान ध्यान रखना चाहिए कि गर्भवती महिला को अच्छा खान पान मिले, नियमित एक्सरसाइज और जरूरी सप्लीमेंट्स मिलते रहें. इन बातों के अलावा ऐसी और भी कुछ चीजें हैं जिनमें लापवाही करना नुकसानदायक हो सकता है.

आइए कुछ ऐसी ही बातों के बारे में विस्तार से जाने.

दूर रहें नुकसानदायक गंध ले

कई चीजों के गंध आपके बच्चे के लिए हानिकारक हो सकता है. अगर आप दीवारों पर पेंट करने वाली हैं तो रुक जाइए. पेंट की गंध आपके बच्चे के लिए हानिकारक हो सकता है.

 गर्म पानी से ना नहाएं

गर्भावस्था के दौरान गर्म पानी से नहाना खतरनाक हो सकता है. हालांकि हमेशा इसका असर बुरा नहीं होता. लेकिन संभव है कि शरीर का तापमान 101 डिग्री तक पहुंच जाए और आपका ब्लड प्रेशर गिर सकता है. ऐसा होने पर आपके बच्चे को जरूरी पोषक तत्व और औक्सीजन की कमी हो सकती है. और्गैनाइजेशन ऑफ टेराटोलौजी इन्फौर्मेशन सर्विस की माने तो गर्भवती महिलाओं को अपने शरीर का तापमान 101 डिग्री से नीचे ही रखने की कोशिश करनी चाहिए.

फलों के जूस के अत्यधिक सेवन से बचें

जी हां, गर्भावस्था में अत्यधिक जूस के सेवन से बचें. इसका प्रमुख कारण है कि इसमें शुगर की मात्रा अधिक होती है. जूस पीने से बेहतर है कि आप फलों को खाएं.

पीठ के बल ना सोएं

प्रेग्नेंसी के दौरान पीठ के बल सोने से बचें. इस वक्त सबसे अच्छा होता है कि आप बाईं ओर करवट ले कर सोएं. हालांकि आपके लिए ये थोड़ा मुश्किल हो सकता है. आपको बता दें कि जब गर्भवती महिला पीठ के बल लेटती है तो गर्भाशय का पूरा भार शरीर के दूसरे अंगों पर पड़ता है. इससे ब्लड सर्कुलेशन भी बिगड़ सकता है. पीठ के बल सोने से सांस संबंधी समस्याएं भी हो सकती हैं.

 स्किन केयर प्रोडक्ट्स

आप अपनी त्वचा पर कुछ भी लगाएंगी वो आपके शरीर द्वारा सोख लिया जाता है. इसका प्रभाव आपके बच्चे पर भी होता है. इस दौरान आपको किसी भी तरह के केमिकल्स के उपयोग से बचाव करना चाहिए. खासतौर पर एसिड, रेटिनौयड और बेंजाइल पेरोक्साइड से दूरी बनाएं. अपने ब्यूटी प्रोडक्ट खरीदने से पहले एक बार उसके कंपोनेंट्स जरूर चेक कर लें.

महिलाओं को होता है कैंसर का ज्यादा खतरा, जानिए क्यों

देश में असमय मौत होने वाले कारणों में कैंसर प्रमुख कारण है. 2016 में तरीब 14 लाख कैंसर के मामले दर्ज किए गए हैं. आपको बता दें कि इन आंकडों में महिलाओं की संख्या पुरुषों से अधिक है. वहीं इंडियन काउंसिल औफ मेडिकल रिसर्च ने साल 2020 तक कैंसर के 17 लाख नए मामलों के दर्ज होने की आशंका जताई है, जिनमें 8 लाख लोगों के लिए जान का खतरा कहीं ज्यादा है.

महिलाओं को होने वाले कैंसर में स्तन, सर्वाइकल, फेफड़े के मामले प्रमुख हैं. एक वेबसाइट के मुताबिक देश में हम मिनट एक महिला की मौत सर्वाइकल कैंसर से होती है. आपको बता दें कि महिलाओं को हर तरह के कैंसरों में स्तन का कैंसर सबसे ज्यादा 27 प्रतिशत होता है.

जानकारों की माने तो महिलाओं में स्तन कैंसर होने के प्रमुख कारण मोटापा, वसा युक्त भोजन, देर से शादी, अपर्याप्त स्तनपान हैं.

बड़े पद पर बैठी एक हेल्थ एक्सपर्ट ने एक आर्टिकल में लिखा कि महिलाओं में पुरुषों की अपेक्षा अधिक कैंसर होने का कारण खान-पान पर ध्यान ना देना है. इसके अलावा वायु प्रदूषण का भी महिलाओं के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है. हालांकि इन दोनों कारणों का शिकार पुरुष भी हैं लेकिन जागरूकता के अभाव में महिलाएं देर से इलाज कराती हैं जिसका खामियाजा भुगतना पड़ता है. इसके अलावा भारत में मासिक धर्म के दौरान महिलाएं साफ-सफाई का ख्याल नहीं रख पातीं जिसकी वजह से भी स्वास्थ्य से जुड़ी कई समस्याएं हो जाती हैं.

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