48 साल की नेहा अक्सर ही जींस या शॉर्ट्स के साथ टी शर्ट पहन कर पार्कमें टहलने निकल जाती. कभी स्टाइलिश वनपीस पहन कर हमउम्र पुरुषों के दिलोंपर छुरियां चलाती. कभी अपने बच्चों की उम्र के लड़केलड़कियों के साथठहाके लगाती और गप्पें मारती. वह अपने से आधी उम्र की लड़कियों के साथ कईबार साइकिल या बाइक पर रेस भी लगाती. एक दिन तो वह अपनी बाहों में टैटूबनवा कर आई. उस की उम्र की महिलाएं उसे अजीब नजरों से देखतीं क्योंकिमोहल्ले की बाकी महिलाएं यह सब करने की सोच भी नहीं सकती थीं.नेहा अपने पति के साथ रहती थी और दोनों बेटे बेंगलुरु में जॉब कर रहे थे.
पति के जाने के बाद घर में ज्यादा काम नहीं रहता था सो वह अपनी जिंदगीअपनी मरजी से जी रही थी. वह योग और फिटनेस क्लासेस भी जाती थी. इस उम्रमें भी उस ने खुद को बहुत फिट और एक्टिव बना कर रखा हुआ था. उस की उम्रकी महिलाएं जहाँ उस से जलती और चिढ़ती थीं वहीँ पुरुष उसे तारीफ की नजरोंसे देखते. नेहा अपनी जिंदगी पूरे जोश और उत्साह के साथ जी रही थी. इस वजहसे उस के चेहरे पर भी उम्र की छाप नजर नहीं आती थी. उस के चेहरे कीग्लोइंग स्किन और स्वीट स्माइल से कोई भी प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाताथा.
अक्सर ऐसा माना जाता है कि अधेड़ उम्र में लोगों का व्यवहार रूखा औरचिड़चिड़ा हो जाता है. जीवन के प्रति उत्साह कम हो जाता है और नकारात्मकसोच हावी होने लगती है. लेकिन सच तो यह है कि अधेड़ उम्र के लोग असल मेंअन्य उम्र के लोगों की तुलना में ज्यादा सकारात्मक होते हैं. एक हालियाशोध के अनुसार 40 से 60 साल की उम्र के लोग युवाओं और बुजुर्गों की तुलनामें कहीं ज्यादा सकारात्मक होते हैं.अमेरिका और नीदरलैंड में 30,000 लोगों पर किए गए शोध के मुताबिक़ अधेड़उम्र के लोग जीवन में अच्छी चीजें होने को ले कर ज्यादा सकारात्मक होतेहैं.
विशेषज्ञों का मानना है कि अधेड़ लोग जो अपने जीवन में मूल्यों औरसंतुष्टि को ज्यादा कीमती समझते हैं वे अच्छी बातों पर ज्यादा ध्यानकेंद्रित करते हैं. जैसेजैसे लोग परिपक्व होते हैं वे अपने काम में अधिकसक्षम हो जाते हैं. सफलता उन के लिए थोड़ी आसान हो जाती है क्योंकि वेअपने जीवन के विभिन्न कार्यों में महारत हासिल कर लेते हैं. इसलिए वेअधेड़ उम्र तक पहुंचते ही अधिक आशावादी बनने लगते हैं. अधेड़ उम्र के लोगजीवन में आगे बढ़ने पर कम ध्यान केंद्रित करते हैं और जो वर्तमान मेंमौजूद है उसे खुशी से जीने को कोशिश करते हैं.
दरअसल उम्र कितनी भी हो मगर आप की जिंदगी खूबसूरत है यदि दिल में किसी केलिए प्यार और आँखों में सपने हों. कुछ करने का जज्बा और समय के साथ चलनेका हौसला हो. उम्र महज एक संख्या है और जिंदगी उन के लिए हर पल उत्सव हैजो खुद को जवान मानते हैं. आप का दिल जवान होना चाहिए सब कुछ दिलकश नजर आएगा. अगर आप ने अब तक जिंदगी को नहीं जिया बल्कि केवल घर और बच्चों कीसाजसंभाल में जिंदगी बिताती आई हैं तो अब भी समय है.
अपने अंदर कुछ नयापन और कुछ युवापन लाएं. अक्सर हम दूसरों से कहते फिरते हैं कि अब हड्डियों में दम नहीं या इस उम्र में फैशन कौन करे. बस अब तो समय बिताना है. कुछ करने की उम्र कहाँ रही. यह सोच ही बेमानी है. कुछ करने की उम्र तो अंतिम समय तक बाकी रहती है बस दूसरों से और खुद से यह कहना बंद करें कि अब उम्र ढल चुकी है. खुद को हमेशा जवान मानें तो हड्डियों में दम खुद आ जाएगा. नए फैशन के साथ चलें. कलरफुल और स्टाइलिश कपड़े पहनें. आकर्षक हेयर कट कराएं और वह सब करें जो आज का युवा कर रहा है या जो करना आप को पसंद है. आप को अपने अंदर बहुत एनर्जी और हैप्पीनेस महसूस होगी. जिंदगी की बोरियत और अकेलापन कहींदूर भाग जाएगा.
40 की उम्र के बाद महिलाएंअगर बात करें महिलाओं की तो अध्ययनों के मुताबिक़ 40 या 50 की उम्र के बादकी महिलाएं अपने लुक को ले कर सब से ज्यादा नाखुश रहती हैं. दरअसल इसउम्र के आसपास कई महिलाओं का वजन बढ़ना शुरू हो जाता है और वे यह माननेलगती हैं कि मैं अच्छी नहीं दिखती. यह नकारात्मक विश्वास उन के लिए खुशरहने और अपने बारे में अच्छा महसूस करने में एक बड़ी बाधा है. आज रंगरूपपर जोर देने के साथ अच्छा दिखने का दबाव ज्यादा है. जबकि भारतीय महिला कीदुनिया अपने परिवार के इर्द गिर्द केंद्रित रहती है.इस उम्र तक महिलाओं के बच्चे बड़े हो जाते हैं और कॉलेज या अपने करियरमें इतने व्यस्त हो गए हैं कि उन के पास मां के लिए बहुत कम समय है. पतिअपने करियर के लिए पूरी तरह समर्पित रहते हैं. किसी के पास महिला के लिएसमय नहीं होता. जिस महिला ने अपने परिजनों के लिए अपना करियर, खुशियां औरसेहत कुर्बान कर दी वही अकेलापन महसूस करने लगती है. इसलिए उस के जीवनमें एक खालीपन घर करने लगता है.
वैसे भी एक महिला का शरीर इस उम्र के दौरान भारी बदलाव से गुजरता है. वरजोनिवृत्ति की ओर बढ़ रही होती है. शरीर में काफी कुछ हार्मोनल परिवर्तनहोते हैं. सावधानी नहीं बरती गई तो महिलाएं भावनात्मक रूप से परेशान रहनेलगती हैं. वे चिंता और अवसाद से गुजर सकती हैं. कई बार जब पति पहले कीतरह प्यार का प्रदर्शन नहीं करते तो कई महिलाएं सोचती हैं कि उन के बढ़तेवजन और घटते आकर्षण के कारण ऐसा हो रहा है. इसी वजह से उन का पति अबउन्हें प्यार नहीं करता. इस आयु वर्ग की महिलाओं को अचानक लगने लगता हैकि उन के सपने और आकांक्षाएं अधूरी रह गई है.
इतना समय और ऊर्जा बच्चोंको पालने और अपने परिवारों की देखभाल में लगा कर उन्होंने जीवन में बहुतकुछ खो दिया है.अधिकांश भारतीय महिलाएं शादी करने के बाद पारिवारिक जिम्मेदारियों के काबोझ उठाने में पूरी तरह फंसी रहती हैं. फिर जब 40 साल में पहुंचती है तोउन के बच्चे घोसला छोड़ने लगते हैं जिस से उसे खुद और अपने जीवन को करीबसे देखने का समय मिलता है. वह सोचती है कि उस ने क्या हासिल किया. उस नेअपने ऊपर अपने परिवार को प्राथमिकता दी थी और वजन बढ़ा लिया. अपने रंगरूप को नजरअंदाज कर दिया.मगर याद रखें रास्ते हमेशा खुले होते हैं. आप कैसी दिखती हैं, क्या करतीहैं, क्या हासिल कर सकती हैं, आप का अपने प्रति नजरिया कैसा है यह सब कुछआप के हाथ में है. आप को जीवन को नए ढंग से जीना चाहिए. नए नए प्रयोगकरने चाहिए.
आगे बढ़ना चाहिए. अपने आप को और अपनी प्रतिभा को निखारनाचाहिए. पहले खुद में बदलाव लाएं और फिर देखिए कि आप के साथ दुनिया कैसीबदली हुई नजर आती है. खुशी की तलाश दुख से निपटने का सब से अच्छा तरीकाहै. आप जैसी भी दिखती हैं उसे स्वीकार करें और अपने शरीर से प्यार करनासीखें. जो है उसे खूबसूरत बनाएं मगर उस का गम न करें. खुशी मन की अवस्थाहै. जिस तरह से हम दुनिया को देखते हैं वैसे ही दुनिया हमें देखती है. लोगों की परवाह न करेंकई बार लोगों की असंवेदनशील टिप्पणी आप को परेशान कर सकती है. कोई आप केऊपर कमेंट कर सकता है. पर इन सब से विचलित न हो. खुशी आप के अंदर ही है.आप को तय करना है कि आप इस ख़ुशी को अपने जीवन में कैसे उतारते हैं. एक नईशुरुआत करें. खुद में नयापन लाएं. कोई भी शारीरिक रूप से संपूर्ण नहीं.अपने आप से प्यार करें और खुद की सराहना करें.
इस उम्र में व्यायाम औरयोग अनिवार्य है. शरीर हार्मोनल परिवर्तनों के दौर से गुजर रहा है और उन परिवर्तनों को संतुलित करने के लिए अधिक प्रयास की जरूरत है. जब आप वर्कआउट करती हैं, डांस करती हैं , ठहाके लगाती हैं तो फील गुड हार्मोन सेरोटोनिन रिलीज होता है. स्वस्थ आहार लें. कभी कभी जो मन करे वह खाएं और जिंदगी का मजा लें. अपनी भावनाओं को दबाएं नहीं. दूसरों से बात करें. ऐसा देखा गया दबी हुई भावनाएं कई तरह की बीमारियां उत्पन्न कर सकती. अधिक सामाजिक बने. बाहर जाएं. सकारात्मक और खुश लोगों के साथ रहे.
कभी भी अपने जीवन की तुलना अपने परिवार और दोस्तों से न करें. क्षमा करना सीखें. अच्छी बातों को याद रखें और अपमान भूल जाएं. आप को अपनी खुशी के लिए काम करना होगा. जब आप अपनी मदद करने के लिए निकलेंगे तो ऐसे लोगों का हुजूम दिखेगा जो आप पर व्यंग्य कसेगा या रोकना चाहेगा. उ पर ध्यान न दें. बुढ़ापे में भी फैशन के साथ चलें फैशनेबल बनें. जो दिल करे और खुद पर सूट करे वह पहनें. जींस, ट्रॉउज़र ,पटियाला ,पेंट्स ,वनपीस ,स्लीवलेस ,अनारकली ,टॉप, कुर्ते ,साड़ी यानी जो दिल करे वह पहनें. फैशन ट्रेंड अपनाएं. ब्राइट कलर्स भी ट्राई करें. गॉगल्स ,वाच, कैप या इयररिंग्स जो दिल को भाये उसे पहनें. यह न सोचें कि इस उम्र में क्या पहनना सही रहेगा या लोग क्या कहेंगे. जो आप के लुक को सूट करे और जो चीज़ें फैशन में हों उन्हें ट्राई करने से हिचकें नहीं.
अपने बचपन में लौटें
बचपन में क्या खूबसूरत दिन होते थे. स्कूल से आते ही बगीचे में तितली पकड़ने भाग गए . जब तक तितली हाथों में न आ जाए घर वापस नहीं लौटते थे चाहे जिस हाल में हो. जबकि आज हम किसी काम को शुरू करने से पहले ही हिम्मत हार देते हैं और सोचते हैं कि यह काम मुझ से नहीं होगा. बचपन के साथ दिल का वह विश्वास कहीं गायब हो जाता है. ऐसे लगता है जैसे उम्र बढ़ने के साथ जीवन से वह सारा उत्साह भी गायब हो गया. याद कीजिए बचपन में जहां लेट जाते थे वही नींद आ जाती थी. चिंता, तनाव और शक का कोई सवाल न था. दोस्तों के साथ खेलना, बातें शेयर करना. बड़ा से बड़ा दुख या समस्या दोस्तों से शेयर करना दिल को कितना सुकून देता था. आज अपने घर में अपने जीवनसाथी और बच्चों के साथ भी समस्या शेयर नहीं कर सकते. दोस्त के आगे कहीं नीचे न देखना पड़े इसलिए कोई भी समस्या उन्हें भी नहीं बताते.
आज उम्र के इस दौर में फिर से बचपन की तरफ लौटना जरूरी है. तभी जीवन में नयापन और सम्पूर्णता का अहसास होगा. बचपन में जिस प्रकार हम कभी हार नहीं मानते थे उसी प्रकार जीवन भर हार न मानने का प्रण करें. बचपन में हम किसी से भी कुछ मांग लेते थे. हमें शर्म बिल्कुल नहीं आती थी कि लोग क्या सोचेंगे. आज फिर से लोगों के बारे में सोचना छोड़ें और खुले दिल से दोस्तों के गले लगें. अपने मन की बातें शेयर करें. यह बिल्कुल न सोचें क वे क्या सोचेंगे. याद करें आप पिछली बार कब जोर से हंसे थे. ठहाका लगा कर हंसे आप को महीनों हो गए होंगे. जबकि बचपन में आप दिन में कई बार जोरजोर से हंसते थे. आज फिर छोटीछोटी बातों पर ठहाका लगाकर हंसें. उम्र पचपन का हो लेकिन दिल बचपन का होना जरूरी है. बचपन को साथ रखियेगा जिंदगी की शाम में, उम्र महसूस न होगी सफ़र के मुकाम में.
एक्टिव रहें
कानों में यदि बुढ़ापा या अधेड़ शब्द पहुंचे तो ज्यादातर लोगों के मन में खुद की एक तस्वीर उभरती है. झुर्रियों या झाइयों वाली सूरत , उदास नजर और थके से कदम. इस सोच से परे खुद को नया सा महसूस करें. उत्साह और फुर्ती से भरपूर. उम्र के साथ अपने शरीर की गतिविधियां घटाएं नहीं बल्कि एक्टिव रहे. अक्सर एक उम्र के बाद इंसान शरीर से ज्यादा काम लेना बंद कर देता है और उतनी शारीरिक गतिविधियां भी नहीं करता जितना उन्हें फिट रहने के लिए करना जरूरी है. यह उचित नहीं. जब तक डॉक्टर सलाह न दें बढ़ती उम्र में भी खूब चलें, पौधों को पानी डालें और वो सारी हल्कीफुल्की कसरतें करें जो आप के लिए संभव हों. इस से आप का वजन भी कंट्रोल में रहेगा और आप हेल्दी भी बनेंगे. आप का आत्मविश्वास भी बढ़ेगा. जब आप घूमना शुरू करते हैं तो कई ऐसी चीजें देखते हैं जो आपने पहले नहीं देखी होती है.