जरा तुम हटके खड़ी हो जाओं, मैं ट्रेन के अंदर तो घुस जाऊं, नहीं तो मैं गिर जाउंगी’, ऐसे करीब दो बार कहने पर भी वह लड़की टस से मस नहीं हुई, क्योंकि वह छोटी सी जगह में अपने मोबाइल पर वेब सीरीज की किसी शो को देख रही थी और अपने आप मुस्करा रही थी. किसी तरह दूसरी महिला ने उसे सहारा दिया, ट्रेन के अंदर खीच लिया और उसकी जान बच गयी. मुंबई की लोकल ट्रेन में जहाँ पीक ऑवर्स में खड़े होने की भी जगह नहीं होती, ऐसे में वेब सीरीज या टीवी शो या फिल्म देखने के उत्सुक महिलाएं कुछ सुनने और समझने के लिए तैयार नहीं. कई बार तो इसे देखने को लेकर महिलाओं में झगड़े भी शुरू हो जाते है. एक दिन तो ट्रेन की दरवाजे पर खड़ी लड़की की मोबाइल भी किसी ने ट्रैक से गाडी के थोड़ी सी धीमी होने पर खींच लिया. सब कुछ पता होने पर भी इसकी लत इतनी लग चुकी है कि कोई भी इसे देखे बिना नहीं रह सकता.
दरअसल फिल्में और धारावाहिके हमेशा हमारे जीवन में अहम् हिस्सा निभाती रही है. एक्शन, फिक्शन, थ्रिलर, रोमांस आदि सभी फिल्में, शोज और वेब सीरीज हमारे जीवन को किसी न किसी रूप में प्रभावित करती है. इसके बिना जिंदगी यूथ से लेकर वयस्क सभी की अधूरी लगती है. मल्टी नेशनल कंपनी में काम करने वाली दिशा से इस बारें में पूछने पर कहती है कि घर पर समय नहीं मिलता, इसलिए ट्रेन की जर्नी से देखने लगती हूँ और बाद में घर पर जाकर पूरा देख लेती हूँ. ऐसा न करने पर रात को देर से सोना पड़ता है. छात्र अनिषा का कहना है कि दिनभर की थकान के बाद ये वेब सीरीज मुझे अच्छा महसूस करवाती है और मैं हर नयी सीरीज को देखना पसंद करती हूँ. 40 साल की वैशाली तो बिंज वाच शनिवार को करती है, हालांकि परिवार वालों को इससे नाराजगी रहती है, पर वह किसी की सुनती नहीं है.
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इस बारें में मुंबई की डॉ. एल एच हीरानंदानी हॉस्पिटल के मनोचिकित्सक डॉ. हरीश शेट्टी कहते है कि ये हर शो आज यूथ में लत की तरह शामिल हो चुका है, जिससे निकलना उनके लिए मुश्किल होता है. ख़ासकर टिनएजर्स की बढती उम्र में उनका मन इधर-उधर भटकता है, ऐसे में किसी भी प्रकार की नशा उनके लिए ख़राब होता है. माता-पिता को इससे बच्चे को सम्हालना पड़ता है. वे उन्हें उससे दूर रख भी लेते है, लेकिन इस तरह के वेब सीरीज और शोज से वे उन्हें दूर नहीं रख पाते. ये उनमें कोकीन के नशे से भी अधिक मजबूती से समा चुका है और इसके निर्माता भी जान बुझकर उन्हें परोस रहे है. यही वजह है कि इसे देखने का प्रचलन दिनोदिन बढ़ता जा रहा है, क्योंकि इसके कांसेप्ट आकर्षक और सबके पसंद के अनुसार होते है. इसे देखते हुए लोग रियलिटी से दूर फेंटासी की दुनिया में चले जाते है. जहाँ उन्हें हर चीज सुंदर और सुहाना लगता है. इससे उनकी आशाएं बढ़ने लगती है और जब वह नहीं मिलता, तो वे चिडचिडे हो जाते है. कुछ सही और गलत बातें इन शोज के साथ जुडी हुई है, जिसे परख लेना उचित है.
बोन्डिंग होती है कम
टीवी शोज और वेब सीरीज में दिखाए गए बोन्डिंग किसी भी रिश्ते को मजबूती दे सकती है, साथ ही उस रिश्ते को दूर भी ले जा सकती है, क्योंकि इसे देखते हुए लोग आपस में बातचीत कम करने लगते है और कई बार ऐसी शो को वे अपने घर पर लाकर उससे अपनी तुलना करने लगते है. आपसी कम्युनिकेशन की क्षमता धीरे-धीरे कम होने की वजह से रिश्तों में कड़वाहट आने लगती है. जिससे मानसिक स्तर ख़राब होने लगता है और रिश्ते टूटते है. इसके अलावा कई बार लोग रील के रिश्तों को अपने रिश्तों से तुलना करने लगते है, जो असंभव होता है., क्योंकि अधिकतर टीवी शो में महिलाओं को असहाय या फेमिनिस्ट दिखाया जाता है, जबकि पुरुषों को इन इमोशन से दूर कठोर दिखाया जाता है, जो रियल वर्ल्ड से कोसों दूर होती है. कुछ व्यक्ति इन फिल्मों की संवाद से इतने प्रभावित हो जाते है कि वे ऐसे संवाद को अपने घर पर भी प्रयोग करने लगते है.
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होती है एडिक्शन
डॉ. हरीश आगे कहते है कि इसका एडिक्शन इतना खातरनाक होता है कि लोग बिना सोये रातभर जागकर इसे देखते है. इससे उनकी नीद ख़राब होती है. सुबह काम ठीक से नहीं हो पाता, जिससे डिप्रेशन और घबराहट बढ़ती है, क्योंकि व्यक्ति बाहर की दुनिया से दूर हो जाता है. इसके अलावा कई शो व्यक्ति की मानसिक दशा को भी ख़राब कर सकती है, वे इसे देखने के बाद कुछ गलत कदम भी उठा सकते है.
बढती है सेकेंडरी डिप्रेशन
बच्चों में ऐसे शोज लगातार देखने से उनके शिक्षा का स्तर घटने लगता है, पढाई में उनका मन नहीं लगता, गाली- गलौज की भाषा का प्रयोग वे करने लगते है. ऐसे में सेकेंडरी डिप्रेशन और फ्रस्टेशन होने लगता है. इसके अलावा आँखों में तकलीफ होने लगती है, स्पाइनल कॉड में दर्द और मोमेंटल थकान भी होता है.
बदल सकती है मानसिकता
डॉ शेट्टी कहते है कि वेब सीरीज की कोई सर्टिफिकेशन नहीं होता. कोई भी कभी भी इसे बना सकता है. अधिक समय तक देखने के बाद व्यक्ति के स्वभाव में परिवर्तन, आक्रामकता, झूठ बोलना आदि प्रबल होने की संभावना बढ़ जाती है, क्योंकि ये सीरीज में चलती रहती है, जो हमारे समाज और पर्यावरण के लिए घातक है. इसलिए इससे दूर हटकर अपने दोस्तों, रिश्तेदारों के साथ समय बिताने पर व्यक्ति रील और रियल वर्ल्ड के अंतर को आसानी से समझ सकता है
इसके अलावा कुछ शोज ऐसे भी है, जो आपके तनाव को कम करते है, मसलन अच्छी कॉमेडी शो या फिल्में,जो रिश्तों में मजबूती लाती है. निरसता जो आपके जीवन में है, उसे तरोताजा बनाकर खुशियाँ भर देती है.
वेब सीरीज मेकर्स का मत है कि इन्टरनेट पर ऐसी चीजे हमेशा से उपलब्ध है, जिसे कोई भी कभी भी देख सकता है. इसे रोकना संभव नहीं. इस बारें में डॉ. शेट्टी का कहना है कि कई ऐसे माध्यम है जहाँ शोज के सही न होने पर व्यक्ति शिकायत कर सकता है, उनकी एक काउंसल होती है. इसलिए इन्टरनेट और वेब सीरीज की भी काउंसिल होनी चाहिए, ताकि कोई सही चीज न होने पर उसकी शिकायत की जा सकें, अनियंत्रित कोई भी चीज इन्टरनेट पर नहीं दिखाई जानी चाहिए. कई दूसरे देश ने भी इस पर बैन किया हुआ है और ये सही कदम है. कुछ भी बिकाऊं नहीं होनी चाहिए.
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कितना और कैसे देखना है सही
ये सही है कि मनोरंजन की इस शोज को दैनिक जीवन से हटाना मुश्किल है, पर इन्हें देखते हुए कुछ बातों का ध्यान हमेशा रखनी चाहिए, ताकि इसका असर आपके रिश्तों और परिवार पर न पड़े. जो निम्न है,
- अपने रिश्तों की तुलना कभी भी इन रील वर्ल्ड से न करें, उन्हें सँवारने की कोशिश करें, क्योंकि ऐसे बहुत लोग है, जो आपसे कमतर जिंदगी जीकर भी बेहतर है,
- आपसी तनाव को फ़िल्मी अंदाज में नहीं अपने अंदाज़ में सुलझाने की कोशिश करें,
- अपने लिए निकाले समय में वर्कआउट, घूमना, स्क्रीन टाइम आदि को निश्चित करें, दिन में एक से दो घंटे स्क्रीन टाइम काफी होते है. इसके अलावा हर एक का हक है कि वह अपने खाली समय को अपने हिसाब से बिताने का प्रयास करें और खुद सोचे कि उन्हें क्या देखना है और क्या नहीं.