Bloody Daddy Movie Review: शाहिद कपूर की औसत दर्जे की फिल्म

  • रेटिंगः पांच में से दो स्टार
  • निर्माताः जियो स्टूडियो,  आज फिल्मस,  आफसाइड इंटरटेनमेंट
  • लेखकः अली अब्बास जफर,  आदित्य बसु और सिद्धार्थ गरिमा
  • निर्देशकः अली अब्बास जफर
  • कलाकार: शाहिद कपूर, राजीव खंडेलवाल, रोनित रौय, संजय कपूर,  डायना पेंटी, सरताज कक्कड़,  अंकुर भाटिया, विवान बथेना, जीषान कादरी, मुकेश भट्ट, अमी ऐला, विक्रम मेहरा व अन्य.  
  • अवधिः दो घंटे एक मिनट
  • ओटीटी प्लेटफार्म: जियो सिनेमा

यूं तो ड्ग्स माफिया के इर्द गिर्द घूमने वाली कहानियों पर कई फिल्में बन चुकी हैं. अब इसी तरह की कहानी पर ‘टाइगर जिंदा है’ जैसी कई एक्षन फिल्मों के निर्देशक अली अब्बास जफर फिल्म ‘‘ब्लडी डैडी’’ लेकर आए हैं, जो कि 2011 में प्रदर्षित फ्रेंच क्राइम फिल्म ‘‘नुइट ब्लैंच’’ का हिंदी रीमेक है. फिल्म की षुरूआत में बताया गया है कि कोविड के दूसरे चरण के बाद पूरे देश में अपराध बढ़े हैं. मगर अफसोस फिल्म की कहानी से इसका कोई संबंध नही है. लेकिन फिल्म की कहानी एक अलग स्तर पर है. इस कहानी में नारकोटिक्स विभाग से जुड़े पुलिस कर्मियों के बीच आपसी रंजिश, ड्ग माफिया के नारकोेटिक्स विभाग में छिपे गुप्तचर और ड्ग माफिया है.

कहानीः

नारकोटिक्स अधिकारी सुमैर (शाहिद कपूर) एक दिन सुबह सुबह अपने सहयोगी के साथ ड्रग लेकर जा रही कार का पीछा कर उस कार से पचास करोड़ की ड्ग का बैग अपने कब्जे मे ले लेता है. पर ड्ग ले जा रहा इंसान भागने में सफल हो जाता है. परिणामतः ड्रग लॉर्ड माफिया और सेवन स्टार होटल के मालिक सिकंदर (रोनित रॉय) अपने लोगों की मदद से सुमेर के बेटे अथर्व (सरताज कक्कड़) का अपहरण करवा लेता है. अब सिकंदर चाहता है कि सुमैर ड्ग का बैग वापस कर अपने बेटे को ले जाए. सुमैर के पास ऐसा करने के अलावा कोई अन्य रास्ता नही है.  क्योंकि उसकी पत्नी आएषा ( अमी ऐला ) उसे छोड़कर अन्य नारकोटिक्स अफसर आकाश के संग रह रही हैं. पर बेटा उसके साथ रह रहा है. सिकंदर (रोनित रॉय) को ड्ग का बैग हर हाल में चाहिए, क्यांेकि उसने ड्ग का सौदा काफी उंची कीमत पर एक अन्य ड्ग माफिया हमीद (संजय कपूर) के साथ किया है. कोई अन्य विकल्प नहीं बचा होने के कारण सुमैर एनसीबी मुख्यालय से बैग को पुनः प्राप्त कर अपने बेटे अथर्व को छुड़ाने के लिए सिकंदर के होटल में प्रवेश करता है.  जहां सुमैर के बौस समीर राठौड़ (राजीव खंडेलवाल) के कहने पर ज्यूनियर नारकोटिक्स अफसर अदिति (डायना पेंटी),  सुमेर के बैग को चुरा लेती है, जिसे समीर अपनी गाड़ी में डाल देता है. समीर एक तीर से दो निषाने करने जा रहा है.  हकीकत में समीर,  सिकंदर के लिए काम करता है. अब वह सुमैर को अपराधी के रूप में गिरफ्तार करना चाहता है. कहानी में कई मोड़ आते हैं.

लेखन व निर्देशनः

अली अब्बास जफर की एक्षन फिल्मों पर से पकड़ खोती जा रही है. इस फिल्म की पटकथा काफी लचर है. फिल्म की षुरूआत में कुछ उम्मीदें बंधती हैं, मगर आधे घंटे के बाद फिल्म शिथिल होने लगती है. इंटरवल के बाद फिल्म पर से लेखक व निर्देशक दोनों की पकड़ कमजोर हो जाती है. पिता पुत्र के बीच के समीकरण ठीक से चित्रित ही नही किए गए. फिल्म लेखन व निर्देशन की खामियों से भरी हुई है. एक बार टेंडर अपनी पहली आकस्मिक मुलाकात में अचानक किसी व्यक्ति से उसकी शादी के बारे में कैसे पूछ सकता है? एक बार मूर्ख बन चुका इंसान पुनः उसी इंसान की मदद केसे कर सकता है? क्या वह भूल जाएगा कि इसी इंसान ने उसे पिछली बार मूर्ख बनाया था.

एक नारकोटिक्स अधिकारी नकली मौत का नाटक कर सकता है?गले में गोली लगने पर भी 5-10 मिनट के बाद होश में आ सकता है? महिला शौचालय में पुरुश बेरोकटोक आ जा सकते हैं? फिर भी सेवन स्टार होटल की गरिमा बरकरार है? मतलब कि पूरी फिल्म गलतियों और बेवजह की गालियों व खून खराबा का जखीरा मात्र है. सिकंदर और हामिद ड्ग माफिया हैं, मगर इनके बीच बहुत ही गलत अंदाज में हास्य के दृष्य पिरोए गए हैं. पूरी फिल्म देखकर यह कहना मुश्किल है कि इन्ही अली अब्बास जफर ने अतीत में ‘टाइगर जिंदा है’ और ‘सुलतान’ जैसी फिल्में निर्देशित की हैं.

वैसे भी अली अब्बास जफर निर्देशित नौ फिल्मों में से सिर्फ यही दोे एक्षन प्रधान फिल्में लोगों को पसंद आयी थीं. मगर फिर वह एक्षन पर से भी अपनी पकड़ खो बैठे. किचन के अंदर राजीव खंडेलवाल और षाहिद कपूर के बीच के एक्षन दृष्य अच्छे बन पड़े हैं. षायद निर्माता व निर्देशक को अहसास हो गया था कि उनकी फिल्म ‘‘ब्लडी डैडी’’ सिनेमाघरों में पानी नहीं मांगने वाली है, इसीलिए इसे ओटीटी प्लेटफार्म ‘जियो सिनेमा’ पर मुफ्त में देखने के लिए डाल दिया.

अभिनयः

सुमैर के किरदार में जिस तरह के अभिनय की षाहिद कपूर से आपेक्षा थी, उसमंे वह खरे नहीं उरते.  निजी जीवन में भी वह पिता बन चुके हैं, इसके बावजूद पिता पुत्र के बीच जिस तरह के इमोषंस होने वाहिए, उन्हें वह परदे पर लाने में विफल रहे हैं. कुछ दृश्यों में वह ओवरएक्टिंग करते हुए नजर आते हैं.  डायना पेंटी से ज्यादा उम्मीद नही थी. वह अपनी पिछली फिल्मों की ही तरह दोश पूर्ण संवाद अदायगी करते हुए नजर आती हैं. सिकंदर के किरदार में रोनित रौय अपना प्रभाव छोड़ जाते हैं. उन्होने ड्ग माफिया,  गैंगस्टर होने के साथ ही सेवन स्टार होटल के मालिक सिकंदर के किरदार में काफी सधा हुआ अभिनय किया है. बेवजह चिल्लाते नही है, मगर अपने अभिनय से वह खौफ जरुर पैदा करते हैं. ड्ग माफिया हामिद के छोटे किरदार में संजय कपूर का अभिनय ठीक ठाक है.  समीर के ेकिरदार में राजीव खंडेलवाल सबसे अधिक कमजोर नजर आते हैं.

फिल्म समीक्षाः एन एक्शन हीरो- आयुष्मान खुराना की अविश्वसनीय कहानी

रेटिंगः दो स्टार

निर्माताः आनंद एल राय व टीसीरीज

निर्देशकः अनिरूद्ध अय्यर

कलाकारः आयुष्मान खुराना, जयदीप अहलावत,हर्ष छाया, मिराबेल स्टुअर्ट, रचित जोडाॅन, अलेक्झेंडर गर्सिया,अमरो

मोहम्मद, हितेन पटेल,मो.  तालिब, जॉन बायरन, गौरव कंडोई,जीतेंद्र राय,टाइगर रूड व अन्य.  

अवधिः दो घंटे दस मिनट

‘तनु वेड्स मनु’ व ‘रांझणा’ जैसी कुछ बेहतरीन फिल्मों के निर्देशक व ‘निल बटे सन्नाटा’ जैसी फिल्म के निर्माता आनंद एल राय अब बतौर निर्माता फिल्म‘एन एक्शन हीरो’लेकर आए हैं,जिसका निर्देशन अनिरूद्ध अय्यर ने किया है.

कहानीः

कहानी के केंद्र में देश का मशहूर व घमंडी एक्शन हीरो मानव ( आयुष्मान खुराना) है,जिसे लोगों को इंतजार कराने में आनंद आता है.  वह लोगों को इंतजार कराकर अपनी शोहरत को नापता रहता है.  एक फिल्म की शूटिंग के लिए हरियाणा जाते समय एअरपोर्ट पर अंडरवल्र्ड के खिलाफ बयानबाजी करता है.  हरियाणा में शूटिंग के लिए इजाजत दिलाने वाला स्थानीय गांव के निगम पार्षद भूरा सोलंकी (जयदीप अहलावत) का भाई विक्की सोलंकी शूटिंग के सेट पर मानव के साथ फोटो खिंचाने जाता है. मगर मानव शूटिंग में व्यस्त रहता है. पूरा दिन बीत जाता है.

 

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शूटिंग खत्म होने के बाद मानव अपनी नई मुस्टैंग कार में बैठकर ड्ाइव पर निकल जाता है,यह देख कर विक्की अपनी कार से उसका पीछा करता है. सुनसान जगह पर विक्की,मानव की कार को रोकता है. दोनों में बहस होती है और विक्की की मौत हो जाती है. मानव डर कर चार्टर्ड प्लेन से लंदन चला जाता है. भूरा सोलंकी भी अपने भाई की मौत का बदला लेने के लिए लंदन पहुंच जाता है. लंदन पहुॅचते ही भूरा ,मानव के घर पहुॅचता है. उस वक्त मानव घर पर नही होता,पर मानव की तलज्ञश में यूके पुलिस जब पहुॅचती है तो भूरा ,उन यूके पुलिस अफसरों को मौत के घाट उताकर इस बात का परिचय देता है कि वह कितना खतरनाक है.

इधर मानव अपने सेके्रटरी रोशन (हर्ष छाया) व वकील की मदद से खुद को सुरक्षित करने में लगा हुआ है.  पर हालात कुछ और हो जाते हैं. कई घटनाक्रम तेजी से बदलते हैं. भारत मंे मानव के खिलाफ एक माहौल बन गया है. इधर जब भूरा व मानव आमने सामने होते हैं,तो भूरा,मानव को मार कर अने भाई की मौत की बजाय लड़ने ़की बात करता है.

पूरी फिल्म मंे दोेनो एक दूसरे को पछाड़ते या भागते नजर ओत हैं. अचानक अंडरवल्र्ड डाॅन मसूद अब्राहम काटकर आ जाता है,जो कि मानव को अपनी नवासी की शादी में नाचने के लिए विवश करता है. काटकर के अड्डे पर भूरा भी पहुॅच जाता है. काटकर,मानव के साथ तस्वीर खिंचवाकर वायरल कर देता है. कई घटनाक्रम तेजी से बदलते हैं. अंत मे मानव हीरो बनकर भारत वापस लौटता है.

कहानी व निर्देशनः

फिल्म ‘एन एक्शन हीरो’ के निर्माता आनंद एल राय मशहूर निर्माता व निर्देशक हैं. उन्होने ‘तनु वेड्स मनु’,‘तनु वेड्स मनु रिर्टन’, ‘रांझणा’ जैसी फिल्में निर्देशित कर अपनी एक अलग पहचान बनायी. उसके बाद वह निर्देशन से तोबा कर सिर्फ निर्माता बन गए.  फिर ‘निल बटे सन्नाटा’,‘तुम्बाड़’जैसी बेहतरीन फिल्मों के अलावा ‘मेरी निम्मो’ जैसी कुछ घटिया फिल्मों का निर्माण कर खूब पैसा कमाया.

2018 में आनंद एल राय ने शाहरुख खान को लेकर फिल्म ‘जीरो’ निर्देशित की,जिसने बाक्स आफिस पर पानी तक नही मांागा.  जब आनंद एल राय ने मुझे बताया था कि वह शाहरुख खान को लेकर एक फिल्म निर्देशित करने जा रहे हैं,तभी मैने उनसे फिल्म की कहानी के आधार पर कहा था कि वह अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने जा रहे हैं.  उस वक्त आनंद एल राय ने अपनी बातों से खुद को भगवान और दर्शकों की नब्ज को समझने वाला सबसे बड़ा फिल्मकार साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी. पर हर कोई जानता है कि ‘जीरो’ अपनी लागत भी वसूल नही कर पायी.

यहीं से आनंद एल राय के बुरे दिनों की शुरूआत भी हो गयी थी. उसके बाद से उनकी किसी भी फिल्म को सफलता नही मिल रही है. लेकिन आनंद एल राय आज भी अहम के शिकार हैं. वह ख्ुाद को ही सबसे बड़ा समझदार इंसान समझते हैं. बतौर निर्माता अपनी नई फिल्म ‘एन एक्शन हीरो’ के प्रदर्शन से कुछ दिन पहले पत्रकारों से अनौपचारिक बातचीत के दौरान आनंद एल राय ने कहा था-‘‘हम फिल्में अच्छी बना रहे हैं, मगर दर्शक हमसे नाराज चल रहा है.

’’बहरहाल,फिल्म ‘एन एक्शन हीरो’ की कहानी भी एक अति घमंडी अभिनेता की है,जो कि बेसिर पैर के काम करता है. पर फिल्म में उसे विजेता दिखा दिया गया है. मगर हकीकत में इस फिल्म से बतौर निर्माता आनंद एल राय के विजेता बनकर उभरने की कोई उम्मीद नजर नहीं आती. फिल्म के निर्देशक व कहानीकार अनिरूद्ध अय्यर एक बेसिरपैर की कहानी वाली फिल्म ‘एन एक्शन हीरो’ लेकर आए हैं.

फिल्म की कहानी व पटकथा दोेनों गड़बड़ है. हर मशहूर अभिनेता अपनी नई कार की डिलिवरी अपने शहर में लेता है,किसी गांव मंे नहीं और हर हीरो जहां भी जाता है, उसके साथ अब बाउंसरों की टोली होती है. मगर यह बात फिल्म के निर्माता,निर्देशक व लेखक को पता ही नही है.

एक सफल फिल्म कलाकार,जिसके पास भारत व लंदन में अपने आलीशान मकान व अकूट संपत्ति हो,तो उसके संबंध बड़े बड़े लोगों तक होते हैं. फिर भी दुर्घटना वष विक्की की मौत होेने पर मानव सीधे चार्टर्ड प्लेन पकड़कर लंदन भागता है. फिल्मकार ने लंदन की पुलिस को भी घटिया दिखा दिया. पुलिस कमिश्नर अपने आफिस में बैठकर सीसीटीवी पर सब कुद देखते रहते हैं. फिर भी अंडरवल्र्ड डाॅन काटकर के आदमी खुलेआम मानव को बीच सड़क से उठा ले जाते हैं.

 

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हरियाणा के गांव में रहने वाला जाट भूरा सोलंकी लंदन पहुॅचकर मानव के घर में यू के पुलिस वालों की हत्या कर घूमता रहता है,उसे पुलिस पकड़ती नही. पूरी फिल्म इसी तरह के अविश्वसनीय घटनाक्रमों से भरी हुई है.  मानव लंदन भगते समय मास्क पहनकर चेहरा नही छिपाता और कोई उसे पहचान नही पाता.

अभिनेता अक्षय कुमार प्लेन मंे मानव से मिलते हैं और कहते है कि वह किसी को न बताए कि प्लेन में अक्षय मिले थे.  वाह क्या पटकथा है. भारत में ऐसा कौन सा एक्शन हीरो है,जो अपनी निजी जिंदगी में भी एक्शन के कारनामंे करता हो,पर एक्शन सुपर स्टार मानव तो निजी जिंदगी में भी एक्शन मंे माहिर है. वाह क्या सोच है निर्माता,निर्देशक व लेखक की.

फिल्म में संजीदगी तो कहीं है ही नही.  मीडिया को मसखरा,भारतीय पुलिस इतनी निकम्मी है कि वह निगम पार्षद के इषारे पर उसके घर में बिना वस्त्र खड़े रहते हैं.  अंडरवल्र्ड डाॅन जिसके पास भारत का राॅ विभाग तीस वर्षों से नही पहुॅच पाया,उस तक भूरा आसानी से पहुॅच जाता है. फिल्मकार तो न्यायपालिका का मजाक उड़ाने से भी नहीं चूके.   फिल्म में इमोशन तो कहीं नजर ही नही आता. विक्की की मौत के बाद उसके भाई भूरा या परिवार के किसी सदस्य का दुःख नजर नही आता.  रिष्ते तो है ही नहीं. मानव भी अपने सेक्रेटरी व मैनेजर रोशन के अलावा पूरी फिल्म में किसी को फोन नही करता.

अभिनयः

मानव के किरदार को निभाने के लिए आयुष्मान ख्रुराना ने अपनी तरफ से कड़ी मेहनत की है.  पर सच यह है इस किरदार में वह फिट नही बैठते.  जयदीप अहलावत का अभिनय भी काफी मोनोटोनस नजर आता है. हर्ष छाया जरुर अपने अभिनय की छाप छोड़ जाते हैं.

REVIEW: जानें कैसी है अभिषेक बच्चन की फिल्म ‘द बिग बुल’

रेटिंगः डेढ़ स्टार

निर्माताः अजय देवगन और आनंद पंडित

निर्देशकः कुकू गुलाटी

कलाकारः अभिषेक बच्चन, सोहम शाह,  निकिता दत्ता, इलियाना डिक्रूजा,  सुप्रिया पाठक, राम कपूर व अन्य.

अवधिः लगभग दो घंटा पैंतिस मिनट

ओटीटी प्लेटफार्मः डिजनी प्लस हॉट स्टार

1992 में भारतीय शेअर बाजार में एक बहुत बड़ा स्कैम हुआ था, जिसके कर्ताधर्ता शेअर दलाल हर्षद मेहता थे. उन्ही की कहानी पर कुछ दिन पहले दस एपीसोड लंबी हंसल मेहता निर्देशित वेब सीरीज ‘‘स्कैम 1992’’आयी थी, जिसे काफी पसंद किया गया था. अब उसी कहानी पर फिल्मकार कुकू गुलाटी अपराध कथा वाली फिल्म ‘‘द बिग बुल’’लेकर आए हैं, जो कि आठ अप्रैल की रात से ‘डिजनी प्लस हॉट स्टार’’पर स्ट्रीम हो रही है. बहरहाल, फिल्म‘‘द बिग बुल’’की कहानी में हर्षद मेहता, पत्रकार सुचेता दलाल सहित सभी किरदारों के नाम बदले हुए हैं और फिल्मकार ने इसे कुछ सत्य घटनाक्रम से पे्ररित बताया है.

कहानीः

वर्तमान समय में पैंतिल वर्ष से अधिक उम्र के लोगों को अस्सी व नब्बे के दशक के बीच शेअर दलाल हर्षद मेहता की पूरी कहानी पता है. उस वक्त इसे हर्षद मेहता स्कैम कहा गया था. जो युवा पीढ़ी इस कहानी से परिचित नहीं थी, उसे वेब सीरीज‘‘स्कैम 1992’’से पता चल गया.

यह कहानी शुरू होती है 1987 से, जब निम्न मध्यम वर्गीय गुजराती परिवार की. इस परिवार के दो बेटे हेमंत शाह(अभिषेक बच्चन) और वीरेंद्र शाह(सोहम शाह ) छोटी नौकरी व छोटी दलाली से कमाई कर जिंदगी गुजार रहे हैं. पर हेमंत शाह के सपने बहुत बड़े हैं. हेमंत शाह के सपने तो आसमान से भी परे हैं और वह अपनी जिंदगी में बहुत ही कम समय में देश का पहला बिलिनियर बनना चाहते हैं. एक दिन हेमंत शाह को बलदेव से शेअर बाजार में पैसा लगाकर कमाने की एक अंदरूनी जानकारी मिलती है. उसी दिन उन्हें पता चलता है कि उनका छोटा भाई वीरेंद्र शाह शेअर बाजार में पैसा लगाकर नुकसान उठा चुका है. पर वीरेंद्र अपने हिसाब से अंदरूनी जानकारी की जांचकर शेअर बाजार में पैसा लगा देता है और पहली बार में ही वह लंबा चैड़ा फायदा कमा लेते हैं. उसके बाद तो उनके सपने और बड़े हो जाते हैं. अब हेमंत शाह बैंक रसीद यानी कि बी आर का दुरूपयोग करते हुए शेअर बाजार में पैसा कमाने लगते हैं. देखते ही देखते वह‘शेअर बाजार के नामचीन  दलाल बन जाते हैं. इस बीच हेमंत शाह अपनी प्रेमिका प्रिया(निकिता दत्ता)संग शादी भी कर लेते हैं. वीरेंद्र शुरूआत में झिझकते हुए अपने भाई हेमंत शाह का साथ देता है, पर बाद में वह भी हेमंत के हर काम में भागीदार बन जाता है. लेकिन वीरेंद्र हमेशा चाहता है कि उसका भाई धीमी गति से उड़ान भरे. जिससे कहीं भी पकड़ा न जाए. मगर हेमंत शाह को धीमी गति से चलना पसंद नही है. इसी उंची उड़ान को भरते हुए हेमंत शाह सरकार का हिस्सा बने राजनेता के बेटे संजीव कोहली(समीर सोनी) के संपर्क में आते हैं. संजीव कोहली, हेमंत को आश्वासन देते हैं कि हर मुसीबत के समय उनके पिता उसे बचा लेंगे. यह वह दौर है,  जब देश में आर्थिक उदारीकरण की शुरूआत हुई है.

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हेमंत शाह ने बैंक रसीद बी आर के साथ ही बैंकिंग व सरकारी सिस्टम की कमियों का जमकर फायदा उठाते हुए अपनी तिजोरी भरी और कालबा देवी की चाल से निकलकर पेंटा हाउसनुमा आलीशान बंगले में रहने लगते हैं. हेमंत की चालों के चलते शेअर बाजार में बढ़ते शेअरों के दामों में खोजी पत्रकार मीरा(ईलियाना डिक्रूजा) को दाल में काला नजर आता है. वह अपने तरीके से हेमंत शाह के कारनामों की जांच कर अपने अखबार में लिखना शुरू कर देती है. उधर हेमंत शाह की दुश्मनी सेबी के चेअरमैन मनी मालपानी( सौरभ शुक्ला) से भी हो जाती है. एक दिन मनी मालपानी उसे सावधान भी करते है. पर हेमंत शाह अपने सपनों की उड़ान में मदमस्त कह देते है कि वह भले ही गलत काम कर रहा हो, पर कानून के हिसाब से वह गलत नही है. संजीव कोहली के साथ हाथ मिलाने के बाद हेमंत शाह कहने लगते हैं कि हुकुम का इक्का उनकी जेब में है. मगर एक दिन हेमंत शाह बुरी तरह से फंसते है, उस वक्त उनका ‘हुकुम का इक्का’फोन तक नही उठाता. अपने अति आत्मविश्वास या घमंड के चलते किसी तरह का समझौता करने की बजाय अपने वकील अशोक(राम कपूर)के साथ मिलकर‘हुकुम का इक्का’पर ही आरोप लगा देते हैं. हेमंत मानते हैं कि उन्होने कुछ भी गलत नही किया. उन्होने हर आम इंसान को पैसा कमाने का अवसर दिया. जो कुछ भी गलत हुआ है वह पोलीटिकल सिस्टम के चलते हुआ है. पर जांच में अंततः हेमंत शाह दोषी पाए जाते हैं, जिन्हे सजा हो जाती है और हार्ट अटैक से जेल में ही मौत हो जाती है.

लेखन व निर्देशनः

अफसोस की बात यह है कि अतीत में एक असफल फिल्म निर्देशित कर चुके कुकू गुलाटी ने भी फिल्म‘द बिग बुल’’से हेमंत शाह की ही तरह लंबे सपने देख रखे थे, लेकिन यह फिल्म एक अति सतही फिल्म बनी है. पटकथा व फिल्मांकन के स्तर पर काफी कमियां है. कई किरदारों के साथ न्याय नहीं कर पाए. लेखक ने फिल्म में बैंकिग सिस्टम व सरकारी सिस्टम पर भी उंगली उठायी है, मगर बहुत बचकर निकलने के प्रयास में कथानक गड़बड़ कर गए. फिल्म की शुरूआत में इसे कुछ सत्य घटनाक्रम से पे्ररित कहा गया है, मगर फिल्मकार का सारा ध्यान हर्षद मेहता की बायोपिक बनाने में ही रहा, इसी वजह से वह उस युग की जटिलताओ को भी अनदेखा कर गए. फिल्म में जब हेमंत शाह को कोई बड़ी सफलता मिलती है, तो वह जिस तरह की हंसी हंसते हैं, उसे देखकर दर्शक को अस्सी व नब्बे के दशक की फिल्मों के खलनायक की हंसी का अहसास होता है. इंटरवल तक तो कुकू गुलाटी किसी तरह फिल्म पर अपनी पकड़ बनाए रखते हैं, मगर इंटरवल के बाद उनके हाथ से फिल्म फिसल गयी है. फिल्म के क्लायमेक्स में तो वह बुरी तरह से मात खा गए हैं. कुछ किरदारो के लिए कलाकारों का चयन भी गलत किया है. संवाद भी काफी सतही है. फिल्म की एडीटिंग भी गड़बड़ है.

फिल्म में हेमंत शाह काएक संवाद है-‘‘कहानी किरदार से नही हालात से पैदा होती है. ’’मगर फिल्म‘‘द बिग बुल’’में हालात या किरदार से कुछ भी पैदा नही हुआ.

इमोशंस भावनाओं का घोर अभाव है. फिल्म के कुछ संवाद इस ओर भी इशारा करते है कि फिल्म को किसी खास अजेंडे के तहत बनाया गया है और जब जब फिल्में किसी अजेंडे के तहत बनायी गयी हैं, तब तब उनका हश्र अच्छा नही रहा.

अभिनयः

हेमंत शाह के किरदार में अभिषेक बच्चन प्रभावित नही कर पाते है. कई दृश्यों में वह अपनी पुरानी फिल्म ‘गुरू’की झलक जरुर पेश कर जाते हैं. कई जगह उसी फिल्म की तर्ज पर खुद को दोहराते हुए नजर आते हैं. मगर हमें यह याद रखना चाहिए कि यह हर्षद मेहता की कहानी है. कई ऐसे जटिल दृश्य हैं, जहां वह अपनी प्रतिभा का परिचय देने में बुरी तरह से असफल रहे हैं. वास्तव में यहां अभिषेक बच्चन को अच्छी पटकथा नही मिली और न ही निर्देशक के तौर पर यहां मणि रत्नम हैं. हेमंत के भाई वीरेंद्र शाह के किरदार में सोहम शाह ने काफी सधा हुआ अभिनय किया है. हेमंत शाह की पत्नी प्रिया के किरदार में निकिता दत्ता है, मगर उनके हिस्से करने को कुछ आया ही नही. पत्रकार मीरा के किरदार में ईलियाना डिक्रूजा हैं. अफसोस उनके हिस्से भी कुछ करने को नहीं रहा. जबकि इस कहानी में पत्रकार सुचेता दलाल का किरदार काफी अहम है. सेबी के चेअरमैन मालपानी के किरदार में सौरभ शुक्ला और मजदूर नेता राणा सावंत के किरदार में महेश मांजरेकर का चयन गलत सिद्ध होता है. सुप्रिया पाठक, राम कपूर, लेखा प्रजापति, कानन अरूणाचलम की प्रतिभा को जाया किया गया है. लेखक व निर्देशक ने इनके किरदारों को सही ढंग से चित्रित ही नहीं किया गया.

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Bhoot Part One: फिल्म देखने से पहले यहां पढ़ें विकी कौशल की ‘भूत’ का Review

रेटिंगः ढाई स्टार    

निर्माताः धर्मा प्रोडक्शंस

निर्देशकः भानु प्रताप सिंह

कलाकारः विक्की कौशल, सिद्धांत कपूर, भूमि पेडणेकर, आशुतोष राणा व अन्य.

अवधिः एक घंटा 54 मिनट

लंबे समय के अंतराल के बाद बतौर निर्माता करण जोहर लोगों को डराने के लिए हौरर फिल्म‘‘ भूत पार्ट वनः द हंटेड शिप’’ लेकर आए हैं, जिसके निर्देशक भानुप्रताप सिंह हैं. मगर निर्माता निर्देशक इस सच को नजरंदाज कर गए कि किसी भी इंसान को हंसाना कठिन मगर डराना बहुत आसान है. इसके बावजूद फिल्म को देखते समय दर्शक डर के मारे खुद को सीट से चिपका कर नही रखता.

कहानीः

यह कहानी है मर्चेंट नेवी में काम करने वाले युवक पृथ्वी (विक्की कौशल) की, जो कि अपनी प्रेमिका सपना (भूमि पेडणेकर) को भगाकर उससे कोर्ट मैरिज कर लेते हैं और उनकी बेटी मेघा हो जाती है. पर एक हादसे में मेघा व पत्नी की मौत हो जाती है. उसके बाद वह मर्चेंट नेवी से स्वेच्छा से अवकाश लेकर डी जी शिपिंग में नौकरी करने लगते हैं. वह अभी तक पत्नी व बेटी को खोने के गम से उबरे नहीं है, मगर लोगों के सामने न दिखाते हैं कि वह सब कुछ भूलकर सामान्य इंसान बन गए हैं. एक दिन पृथ्वी एक कंटेनर से अपनी जान पर खेलकर तमाम छोटी बच्चियों को उनकी तस्करी होने से बचाता है. अचानक एक दिन ‘सी बर्ड’ नामक एक हंटेड शिप मुंबई के जुहू समुद्री तट पर आकर लगता है. अब सर्वेयर होने की वजह से पृथ्वी इस शिप के अंदर जाते हैं और उनके साथ कुछ ऐसा हादसा होता है, जिसे देखकर दर्शक डरता है, मगर वह निडर हैं. पृथ्वी इस शिप के साथ छिपे रहस्य की तह तक पहुंचना चाहते हैं. इस प्रयास में इंटरवल के बाद एक अजीब सी कहानी सामने आती है.

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लेखन व निर्देशनः

इस फिल्म में भूत, प्रेम कहानी, प्रेमिका को उसके घर से भगाकर कोर्ट में शादी करना, नफरत की कहानी, बदले की कहानी, गुड़िया, ड्ग्स आदि की स्मगलिंग तस्करी, चाइल्ड ह्यूमन ट्रेफीकिंग, लाल रंग के कपड़े, चर्च, निडर हीरो, कुछ मंत्र आदि सारे मसाले मौजूद हैं. मगर इस बेसिर पैर की कहानी में डराने का जिम्मा ‘साउंड इफेक्ट’के हिस्से ही रहा. निर्देशक के अनुसार हौंटेड शिप के अंदर कई वर्षों से कोई नही है, मगर भूत मृत इंसान की आत्मा ने एक बच्ची को जरुर कैद करके रखा है, वह बच्ची जिंदा है और समय के साथ बड़ी भी होती गयी. तो फिर यह बच्च्यी शिप से बाहर क्यों नहीं निकल पायी? इसे भोजन पानी किसने दिया? क्या यह सब भूत ने दिया? हंटेड शिप के समुद्री तट पर पहुंचने पर सुरक्षा व्यवस्था कड़ी होती है और लोग उसके पास नहीं जा सकते, फिर भी एक दंपति दस मंजिला शिप के उपर पहुंच कैसे जाता है? कहने का अर्थ यह कि फिल्म में अविश्वसनीय घटनाक्रमों की भरमार है. लेखक व निर्देशक ने पृथ्वी के अतीत की कहानी को भी बताने का प्रयास किया है, मगर पृथ्वी की अतीत की कहानी को वह हौरर जौनर के साथ जोड़ नही पाए. इंटरवल के बाद फिल्म एकदम विखर जाती है. हौरर का स्थान एक्शन ले लेता है. क्लायमेक्स में भी अनसुलझे सवालों के जवाब नही है.

जहां तक निर्देशन का सवाल है तो भानुप्रताप सिंह की यह पहली फिल्म है. उन्होने अपनी तरफ से बेहतर काम करने का प्रयास किया है. मगर कहानी में झोल और पटकथा की कमजोरी के चलते फिल्म आपेक्षित मापदंडों पर खरी नहीं उतरती. फिल्म के कुछ दृश्य टुकड़ो टुकड़ों में अच्छे बन पड़े हैं, मगर पूरी फिल्म के रूप में बात नहीं बनी. फिल्म की शुरूआत में वह दर्शकों को डराने में सफल रहते हैं, मगर जैसे जैसे फिल्म आगे बढ़ती है, फिल्म पर से निर्देशक की पकड़़ ढीली होती जाती है और फिर यह हौरर की बजाय रहस्य व एक्शन वाली फिल्म बनकर रह जाती है.

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अभिनयः

जहां तक अभिनय का सवाल है तो पृथ्वी के किरदार में विक्की कौशल ने जानदार अभिनय किया है. भूमि पेडणेकर और आशुतोष राणा की प्रतिभा को जाया किया गया है. इसके अतिरिक्त एक भी कलाकार अपनी प्रतिभा से प्रभावित नहीं करता.

FILM REVIEW: जानें कैसी है सारा अली खान और कार्तिक आर्यन की Love Aaj Kal 2

रेटिंग: एक स्टार

निर्माता:इम्तियाज अली दिनेश विजन और जियोस्टूडियो

निर्देशक: इम्तियाज अली

कलाकार: कार्तिक आर्यन सारा अली खान आयुषी शर्मा रणदीप हुडा व अन्य

अवधि: 2 घंटे 22 मिनट

रॉकस्टार, (Rockstar) कभी सोचा ना था (Kabhi Socha Na Tha) जैसी फिल्मों के निर्देशक इम्तियाज अली ( Imtiaz Ali) 2009 में एक प्यारी सी प्रेम कहानी वाली फिल्म लव आज कल (Love Aaj Kal ) लेकर आए थे, जिसे काफी सराहा गया था. अब पूरे 11 वर्ष बाद इम्तियाज अली उसी फिल्म का सीक्वल लव आज कल दो लेकर आए हैं. इस फिल्म 90 के दशक और 21वीं सदी के प्यार को पेश करते हुए इम्तियाज अली जितनी खराब में खराब फिल्म बना सकते थे ,इतनी खराब फिल्म मनाई है.

कहानी

फिल्म फिल्म शुरू होने पर दर्शक कि समझ में नहीं आता की फिल्म शुरू हो गई या वह अभी भी फिल्म का ट्रेलर देख रहा है. फिल्म की शुरुआत के पहले दृश्य मैं स्कूल के बाहर रघु से लीना कहती है कि कि तुम मेरा पीछा क्यों कर रहे हो और रघु कहता है कि मैं नहीं कर रहा. फिल्म के दूसरे दृश्य में वीर से जोई कहती है कि तुम मेरे साथ सेक्स नहीं कर सकते ,तो फिर मेरा पीछा क्यों कर रहे हो. इसके बाद पता चलता है कि माजी  नामक एक कैफे मैं जोई (सारा अली) (Sara Ali Khan) बैठी हुई है वह वहीं पर बैठकर अपनी इवेंट कंपनी खड़ी करने के लिए काम की तलाश कर रही है उसका पीछा करते हुए वहीं पर वीर (कार्तिक आर्यन) (Kartik Aaryan) पहुंच जाता है. दोनों में बात होती है और   जोई , वीर के साथ वीर के घर पहुंच जाती है.

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और वीर के साथ हमबिस्तर होकर सेक्स करना चाहती हैं. पर वीर उसे  एक स्पेशल लड़की  मानकर ऐसा करने से मना कर देता है.  इससे जो ई  नाराज हो जाती हैं. पर वीर उसका पीछा करना नहीं छोड़ता यह सब देख कर माजी कैफे का मालिक जो ई को अपनी जवानी की प्रेम कहानी को बताना शुरु करता है. तो पता चलता है कि जवानी में यह रघु थे, जिन्हें लीना से प्यार हुआ था. उसके बाद रघु और लीना की प्रेम कहानी के साथ-साथ वर्तमान में वीर और जोईकी प्रेम कहानी चलती रहती है. कैफे के मालिक उर्फ रघु अपनी कहानी को जिस तरह से पेश करते हैं उससे प्रभावित होकर जो अली अपनी मां की सलाह को दरकिनार कर कैरियर को भूल कर वीर के साथ हमबिस्तर होकर पूरी जिंदगी बिताने का निर्णय ले लेती है. एक दिन वीर जब जो ई को अपने माता-पिता से मिलाने ले जाता है ,तो उस वक्त जो ई की मां उसेसे कुछ ऐसा कह देती है की वीर के घर पहुंचते ही जो ई को लगता है कि कैरियर को छोड़कर शादी करने का गलत निर्णय ले रही है. और वह वीर के माता-पिता के सामने ही वीर से अलग होने की बात कह देती है. उसके बाद फिर कैफे का मालिक यानी कि रघु अपनी जिंदगी की कहानी को सुनाता है उधर जो ई बहुत बड़ी इवेंट कंपनी की मालकिन हो जाती है. पर उसे लगता है जिंदगी में कुछ कमी है जबकि वीर हिमालय में पानी बचाने को मुद्दों पर काम करने पहुंच गया है खैर रघु को दोबारा लीना नहीं मिली थी पर जो ई को एहसास होता है कि उसने वीर को छोड़कर गलती की तो वह वीर के पास हिमालय पर पहुंच जाती है.

लेखन और निर्देशन:

इस फिल्म मैं इम्तियाज अली ने कैरियर निजी जिंदगी और प्यार के बीच सामंजस्य बैठाने के मुद्दे को उठाया है मगर पहले दृश्य से ही वह पूरी तरह से कंफ्यूज नजर आते हैं निर्देशक के तौर पर इम्तियाज अली ने हर रिश्ते को जितना जितने बना सकते थे इतना जटिल बनाने की पूरी कोशिश की पर वह कहना क्या चाहते हैं या स्पष्ट नहीं हो पाया फिल्म की कहानी के नाम पर बेसिर पैर की कहानी है फिल्म की  पटकथा बहुत ही खराब है फिल्म कब अतीत में जाती है कब वर्तमान में आ जाती है कुछ समझ में नहीं आता कुछ दृश्यों में अतीत और वर्तमान के दृश्य समानांतर चलते रहते हैं

जिन लोगों ने इम्तियाज अली की रॉकस्टार या पहली वाली लव आज कल देखी है उन सब को इस फिल्म से घोर निराशा होगी निर्देशक के तौर पर इम्तियाज अली अब तक इससे घटिया फिल्म नहीं दी होगी फिल्म में फूहर और अश्लील संवादों की भरमार है इतना ही नहीं निदेशक ने मान लिया है कि दर्शक सिर्फ सेक्स और बोल्ड व किसिंग  दृश्य देखने के लिए ही फिल्म देखने आता है इसी के चलते अंदर इस तरह के दृश्य जबरन ठोसे गए हैं.

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अभिनय

जहां तक अपने का सवाल है तो जब निर्देशन कहानी और पटकथा ही गड़बड़ हो तो कलाकारों से अच्छे अपने की उम्मीद करना भी बेमानी हो जाता है वैसे भी कार्तिक आर्यन निर्देशक के कलाकार  है पर अफसोस इस फिल्में कार्तिक आर्यन को निर्देशक की तरफ से कोई सहयोग नहीं मिल पाया परिणाम था इस फिल्म में रघु और वीर दोनों ही किरदारों में वह दर्शकों का दिल नहीं जीत पाते अब तक कार्तिक आर्यन फिल्म दर फिल्म अपनी परफॉर्मेंस को लेकर सराहना बटोर रहे थे पर इस फिल्म से उनकी अभिनय क्षमता पर सवालिया निशान खड़े होते हैं फिल्म केदारनाथ से सारा अली खान ने खुद को बेहतरीन अदाकारा साबित किया था मगर अफसोस इस फिल्म में उन्होंने भी निराश किया है और इसके लिए भी उससे कहीं ज्यादा गलती फिल्म की पटकथा और निर्देशक की है  वह जोई के किरदार की गहराई में उतर पाने में कमतर साबित हुई हैं. नवोदित आरुषि शर्मा ने लीना के रूप में सहज और सुंदर अभिनय किया है. रणदीप हुडा का कैरियर ढलान पर है और इस फिल्म से उनके करियर में कोई अच्छा बदलाव नहीं आ पाएगा.

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