सिनेमा में होंगे अमूलचूल बदलाव
कोरोना की बीमारी के चलते पूरे विश्व में लॉक डाउन है, जिससे आम इंसान अपने अपने घरों में कैद है. तो वहीं पूरे विश्व में हर इंसान के साथ हर इंडस्ट्री पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं. इससे पूरे विश्व के साथ साथ भारत की फिल्म व टीवी इंडस्ट्री भी अछूती नही है. अफसोस की बात यह है कि संकट की इस घड़ी में आपस में बैठकर सिनेमा की बेहतरी के लिए किसी नई राह को तलाशने की बजाय कुछ भारतीय फिल्म निर्माताओं ने एक तरफा निर्णय लेते हुए अपनी फिल्मों को थिएटर मल्टीप्लैक्स व सिंगल सिनेमाघरों की बजाय सीधे ओटीटी प्लेटफार्म पर प्रदर्शन के लिए बेच कर अपनी जेबें भर ली हैं. इस पर निर्माताओं का तर्क है कि उनकी फिल्में फरवरी माह से तैयार थीं, कोरोना के चलते पता नहीं कब सिनेमाघर खुलेंगे, इसलिए उन्होने अपनी फिल्म की ताजगी को बरकरार रखने के मकसद से यह कदम उठाया है.
मगर फिल्म निर्माताओं के इस कदम से फिल्म निर्माताओं और मल्टीप्लैक्स मालिकों के बीच तलवारे खिंच गयी हैं. इसके‘यदि दूरदर्शी परिणामों पर गौर किया जाए, तो इसका सबसे बुरा असर सिनेमा पर ही पड़ने वाला है. क्योंकि फिल्म निर्माता और सिनेमाघर मालिक तो आते जाते रहेंगे, क्योंकि कुछ भी नश्वर नहीं है. मगर इनकी आपसी खींचतान से सिनेमा और फिल्म उद्योग का जो नुकसान होगा, उसकी भरपाई कौन करेगा? इसका जवाब देने के लिए कोई तैयार नही है. मगर जिस तरह के हालात बन गए हैं, उसके मद्दे नजर अब भारतीय फिल्म उद्योग कई खेमों में न सिर्फ बंटा हुआ नजर आएगा, बल्कि यह खेमें यदि एक दूसरे के साथ ‘‘अछूत’’जैसा व्यवहार करते हुए नजर आएं, तो किसी को भी आश्चर्य नही होगा.
15 मार्च से पूरे देश के सिनेमाघर बंद हैं
वास्तव में कोरोना के चलते 15 मार्च से पूरे देश के सभी सिनेमाघर बंद चल रहे हैं. 17 मार्च से फिल्म व टीवी सीरियलों की शूटिंग बंद चल रही हैं. इसी के चलते अब टीवी चैनलों, मल्टीप्लैक्स व सिंगल सिनेमाघर मालिकों के साथ साथ ओटीटी प्लेटफार्म के सामने भी आर्थिक संकट गहरा गया है.
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15 मार्च से अब तक करीबन दस सप्ताह हो गए हैं. एक भी फिल्म प्रदर्शित नही हो पायी हैं. इनमें छोटे बजट से लेकर बडे़ बजट तक की फिल्मों का समावेश है. कुछ फिल्मों में कई सौ करोड़ रूपए लगे हुए हैं और यह फिल्में मार्च, अप्रैल व मई माह में रिलीज होनी थीं. पर कोरोना के चलते लॉकडाउन खत्म होने को लेकर अनिश्चितता की स्थिति बनी हुई है. तो वहीं लॉक डाउन खत्म होने के बाद भी एकल सिनेमाघर और मल्टीप्लैक्स कब खुलेंगे और इनमें दर्शक कब फिल्म देखने जाएगा, इसको लेकर किसी के पास कोई ठोस जवाब नही है.
सिनेमाघरों को नजरंदाज कर फिल्म निर्माता चले ओटीटी प्लेटफार्म की शरण में
इन सूरतों में कुछ फिल्म निर्माताओं ने ओटीटी प्लेटफार्म को अपनी फिल्में बेचने का फैसला कर लिया. जैसे ही खबरें आयी कि ‘83’, ‘राधे’ व ‘लक्ष्मी बम’ जैसी बड़े कलाकारों की फिल्में ओटीटी प्लेटफार्म पर रिलीज होंगी, वैसे ही सिनेमाघर मालिकों में खलबली मची और उन लोगों ने मिलकर फिल्म निर्माताओ, कलाकारों व तकनीशियनों से आग्रह किया कि वह ऐसा ना करें. अब तक के नियमानुसार फिल्में पहले सिनेमाघर में ही प्रदर्शित करें. सिनेमाघर मालिकों ने तो यहां तक कहा है कि वह सरकार के निर्देशों का इंतजार कर रहे हैं और सरकार से हरी झंडी मिलते ही सिनेमाघर के दर्शकों की क्षमता के 20 प्रतिशत दर्शकों के साथ भी सिनेमाघरों को खोलने के लिए तैयार हैं. उधर 18 मई को पीवीआर मल्टीप्लैक्स के मालिकों ने ऐलान कर दिया कि यदि सब कुछ ठीक रहा तो वह कुछ सुरक्षात्मक नियमों के साथ पीवीआर मल्टीप्लैकस के सिनेमाघरों में फिल्म का प्रदर्शन शुरू करने वाले है.
खैर, मल्टीप्लैक्स मालिकों के आग्रह के एक सप्ताह बाद ही निर्माता शील कुमार व रॉनी लाहिड़ी ने फिल्म ‘गुलाबो सिताबो’, टीसीरीज ने‘झुंड’और ‘लूडो’को ओटीटी प्लेटफार्म ‘अमैजॉन प्राइम’को बेच दिया. ज्ञातब्य है कि ‘गुलाबो सिताबो’ और ‘झंुड’में अमिताभ बच्चन तथा ‘लूडो’में अमिताभ बच्चन के सुपुत्र अभिषेक बच्चन की मुख्य भूमिका है. अमैजॉन प्राइम ने 12 जून को अमिताभ बच्चन और आयुश्मान खुराना के अभिनय से सजी फिल्म‘‘गुलाबो सिताबो’’को स्ट्रीम रिलीज करने का एलान किया है.
आयनॉक्स, पीवीआर और कार्नीवल मल्टीप्लैक्स सिनेमाघर के मालिकों ने किया विरोध
आयनॉक्स, पीवीआर और कार्नीवल मल्टीप्लैक्स की तरफ से निर्माताओं के इस कदम का जोर शोर से विरोध किया गया. मल्टीप्लैक्स के मालिकों का दावा है कि वह दर्शकों तक अच्छे ढंग से सिनेमा दिखाने के लिए कई वर्षो से लगातार लंबी रकम लगाकर मल्टीप्लैक्स खड़े कर उसमें बेहतरीन व आधुनिक सुविधाएं मुहैय्या कराने के लिए प्रयासरत हैं. और वह फिल्म निर्माताओं को अपना सहयोगी मानकर चल रहे थे, मगर अब उनके इस कदम से उन्हे कुछ कठोर कदम उठाने पड़ सकते हैं.
फिल्म निर्माताओं की दलील
मल्टीप्लैक्स मालिकों की तरफ से जो कुछ कहा जा रहा है, उस पर यदि ‘सिनेमा’केे भलाई के नजरिए से गौर किया जाए, तो उनका तर्क सही है. मल्टीप्लैक्स से भारतीय सिनेमा के विकास में क्रांति आयी. क्योंकि भारत में मल्टीप्लैक्स आने के बाद से ही सिनेमाघरों में दर्शकों की संख्या तेजी से बढ़ी और भारत में पांच सौ से हजार करोड़ रूपए की लागत वाली फिल्मों का निर्माण का सिलसिला शुरू हुआ है. मगर मल्टीप्लैक्स के मालिकों ने जब फिल्म को सीधे ‘ओटीटी’ प्लेटफार्म पर दिए जाने का विरोध किया, तो ‘‘फिल्म एंड टीवी प्रोड्यूसर्स गिल्ड’’ने दो पन्ने का एक पत्र जारी कर अपना पक्ष स्पष्ट करते हुए कहा कि निर्माता को अपना फायदा देखते हुए वर्तमान हालात में ओटीटी प्लेटफार्म को फिल्म देने से रोका नहीं जा सकता.
उसके बाद एक छुटभैए निर्माता ने गिनाया कि मल्टीप्लैक्स किस तरह से समोसे व अन्य खाद्य सामग्री बेचकर धन कमाते आए हैं. इस छुटभैए निर्माता ने यहां तक कहा है कि मल्टीप्लैक्स में अपनी फिल्म को प्रदर्शित करने के लिए छोटे बजट की फिल्म निर्माताओं को अपने जूते घिसने पड़ते हैं, मगर छोटे बजट की फिल्में मल्टीप्लैक्स वाले जल्दी प्रदर्शित नहीं करते.
छोटे फिल्म निर्माताओं के साथ मल्टीप्लैक्स व ओटीटी प्लेटफार्म का रहा है अपमानित करने वाला रवैया
माना कि इस छुटभैए निर्माता का यह तर्क सही है. मगर वह इस तथ्य को कैसे नजरंदाज कर गए कि छोटे बजट की फिल्मों के साथ अब तक ‘ओटीटी’ प्लेटफार्म’ का भी यही रवैया रहा है. छोटे बजट में नए कलाकारों को लेकर बेहतरीन कथानक पर फिल्म बनाने वाला निर्माता निर्देशक तो मल्टीप्लैक्स और ओटीटी प्लेटफार्म दोनो से ठोकर खाने के साथ ही अपमानित होता आया है.
परिवर्तन संसार का नियमः
वहीं कुछ लोग सिनेमाघर मालिकों और फिल्म निर्माताओं की इस लड़ाई यानी कि बहती गंगा में अपने हाथ धोने के लिए अजीबोगरीब तर्क दे रहे हैं. एक शख्स ने अमिताभ बच्चन को महान बताने के साथ ही फिल्म ‘गुलाबो सिताबो’ के निर्माता के कदम को सही ठहराते हुए मल्टीप्लैक्स वालों को चेताया है कि वह यह न भूले कि कल को वह नही भी रह सकते है. इस शख्स ने तर्क दिया है कि द्वितीय विश्वयुद्ध से पहले भारत में दमानिया के पचास सिनेमाघर थे. मगर द्वितीय विश्व युद्ध खत्म होने के बाद दमनिया के सिनेमाघर कहां गए? आज की पीढ़ी तो यह भीं नहीं जानती कि दमानिया सिनेमाघर भी हुआ करते थे. इस तरह का अजीबोगरीब तर्क देकर धमकाने वाले लोग प्रकृति के नियम को भूल जाते है कि इस संसार में स्थायी कुछ नही है. मल्टीप्लैकस से पहले सिंगल सिनेमाघर हुआ करते थे. पर अब यह न के बराबर ही रह गए हैं. सिर्फ मुंबई शहर में पचास से अधिक सिंगल सिनेमाघर खत्म हो गए, किसे पता? क्या मुंबई की नई पीढ़ी को पता है कि मुंबर्ई के अंधेरी इलाके में अंबर, औस्कर व मायनर सिनेमाघर की जगह पर अब ‘शॉपर्स स्टॉप’ नामक शॉपिंग माल है. कहने का अर्थ यह है कि किसी को भी ‘भारतीय सिनेमा’और‘भारतीय फिल्म इंडस्ट्री’ को बचाने की चिंता नही है, सभी कुतर्क करने में लगे हुए हैं.
दक्षिण के मल्टीप्लैक्स ने किया जीवा की फिल्मों का बहिस्कारः
इधर बौलीवुड मुंबई में कुतर्क करते हुए लोग अपनी अपनीतलवारें भांज रहे हैं, उधर दक्षिण भारत के अभिनेता जीवा ने जब अपनी फिल्म ओटीटी प्लेटफार्म को दी, तो दक्षिण के सिनेमाघर मालिकों ने जीवा की सभी फिल्मों का हमेशा के लिए बहिस्कार करने का ऐलान कर दिया. उसके बाद दक्षिण के किसी भी कलाकार या निर्माता ने अपनी फिल्में को ओटीटी प्लेटफार्म पर देने की बात नही की. वहां पर सभी चुप हैं.
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ओटीटी प्लेटफार्म पर फिल्म के जाने से खुश नहीं कलाकारः
ओटीटी प्लेटफार्म पर फिल्मों को बेचने के निर्णय से कलाकार खुश नही है. मगर ‘गुलाबो सिताबो’में अमिताभ बच्चन हैं, इसलिए कलाकार चुप हैं. सूत्रों की माने तो कलाकारों के बीच तूफान के आने से पहले की खामोशी दिखाई दे रही है. कुछ कलाकारों का दावा है कि उन्होंनें फिल्म के लिए कई तरह की तैयारी की थी. मेकअप में लंबा समय खर्च किया था. मेहनत से फिल्म बनायी थी कि दर्शक सिनेमाघर में बडे़ परदे पर उनको देखेगा, और अब जब यही फिल्म ओटीटी प्लेटफार्म पर आने जा रही है, तो यह उनकी मेहनत के साथ पूरा अन्याय है. इतना ही नही कुछ कलाकार सिनमाघरों की बजाय सीधे ‘ओटीटी’प्लेटफार्म पर फिल्म को प्रदर्शित करने के निर्णय को कलाकार के स्टारडम को खत्म करने का कदम मान रहे हैं. जबकि कुछ कलाकारों का मानना है कि एक फिल्म में अभिनय करने के बाद कलाकार के वश में नही रहता कि वह तय करें कि उनकी फिल्म कब, कैसे और कहां रिलीज होगी.
आयुष्मान खुराना की बेबसीः
बौलीवुड की नई पीढ़ी के कलाकारों में स्टारडम का स्वाद चखने वालों में आयुष्मान खुराना भी हैं, जिनकी फिल्म ‘‘गुलाबो सिताबो’’12 जून को ‘अमैजॉन प्राइम’ पर आएगी. फिलहाल आयुश्मान खुराना ने चुप्पी साध रखी है. पर सूत्र बता रहे हैं कि उनकी चुप्पी की पहली वजह यह है कि उन्हे इस फिल्म में पहली बार अमिताभ बच्चन के साथ अभिनय करने का अवसर मिला. दूसरी वजह यह है कि इस फिल्म के निर्माण से जुड़े होने के साथ इस फिल्म के निर्देशक सुजीत सरकार हैं, जिन्होने आयुष्मान ख्ुाराना को पहली बार फिल्म‘‘विक्की डोनर’’में अभिनय करने का अवसर दिया था. तो आयुष्मान खुराना सोच रहे हैं कि उन्होने सुजीत सरकार को ‘गुरू दक्षिणा’चुका दी.
सिनेमाघर वाला आनंद ओटीटी प्लेटफार्म पर नहीं
फिल्मों के ओटीटी प्लेटफार्म पर रिलीज होने के सवाल पर अभिनेता पंकज त्रिपाठी ने बड़ी साफगोई के साथ कहा- ‘‘कलाकार के तौर पर मुझे ठीक से जानकारी नही है. क्योंकि मैं बिजनेस को बहुत कम समझता हूं. हालांकि दर्शकों का जो अनुभव थिएटर में होता है, वह तो ओटीटी प्लेटफॉर्म पर नहीं होगा. बड़े स्क्रीन पर फिल्म देखने का जो मजा होता है, वह टीवी की 20 से 25 इंच की स्क्रीन पर या मोबाइल पर देखते समय नही मिल सकता. मोबाइल, टीवी तथा थिएटर@सिनेमाघर के अंदर फिल्म देखने का अनुभव एक जैसा कभी नही हो सकता. मगर फिलहाल थिएटर बंद हैं. इस वक्त लोगों की सेहत जरूरी है, इसलिए जिसकी जितनी क्षमता है वह उस हिसाब से देख ले. ’’
क्या हर फिल्म को ओटीटी प्लेटफार्म से हो सकेगी सही कमायी?
फिल्म‘‘गुलाबो सिताबो’’के निर्माता का दावा है कि अमैजॉन ने उन्हे संतोषप्रद बहुत बड़ी रकम दी है. हो सकता है कि वह सच कह रहे हों. मगर हमें इस बात पर गौर करना चाहिए कि ‘कोरोना’महामारी के फैलने से पहले जब निर्माता अपनी फिल्म को पहले भारतीय और विदेशी सिनेमाघरों में प्रदर्शित करने के बाद ओटीटी प्लेटफार्म को बेचते थे, उस वक्त उन्हें एक फिल्म से जो आमदनी होती थी, क्या उतने पैसे निर्माता को ओटीटी प्लेटफार्म देते रहेंगे?सच तो ही है कि ओटीटी प्लेटफार्म कभी भी उतनी बड़ी राशि हर फिल्म को नहीं दे पाएगा, जितनी राशि एक फिल्म निर्माता अपनी फिल्म को सिनेमाघर, टीवी और ओटीटी प्लेटफार्म तीनों जगहों पर प्रदर्शित कर कमाता रहा है. इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि कोरोना महामारी में सिनेमाघर बंद होने, टीवी व सेटेलाइट चैनलों पर पुराने कार्यक्रमों के प्रसारण के चलते ‘ओटीटी’प्लेटफार्मके दर्शक इस वक्त बढ़ें होंगे, मगर जब सब कुछ सामान्य हो जाएगा, तब क्या यही हालात बरकरार रहेंगें.
क्या ओटीटी प्लेटफार्म पर हर भारतीय फिल्म के दर्शक हैं
ओटीटी प्लेटफार्म की फिल्में व वेब सीरीज एक साथ करीबन 200 देशों में देखी जाती हैं, इसलिए ओटीटी प्लेटफार्म उन्ही फिल्मों को प्राथमिकता देगा, जिनमें बड़े दर्शक हों या जिनकेदर्शक विदेशों में भी हों. ऐसे में हर कलाकार की किसी भी फिल्म को ओटीटी प्लेटफार्म कभी नही लेगा. सबसे बड़ा कटु सत्य यह है कि ग्लोबलाइजेशन के इस युग में भी अब तक विश्व के चंद देशों में ही भारतीय फिल्में देखी जाती रही हैं. इसके अलावा इस बात को भी नजरंदाज नही किया जा सकता कि कई बड़े भारतीय कलाकारों के अभिनय से सजी हॉलीवुड फिल्मों को पूरे विश्व में नापसंद किया जा चुका है. इसलिए लंबे समय तक बौलीवुड फिल्मों के लिए ‘ओटीटी’ प्लेटफार्म एकमात्र विकल्प नही हो सकता.
लोग स्वार्थ की लड़ाई लड़ते हुए आवश्यक सवालों को नजरंदाज कर रहे हैं
वास्तव में फिलहाल निजी स्वार्थ के चलते ओटीटी प्लेटफार्म, मल्टीप्लैक्स सिनेमाघर के मालिक और फिल्म निर्माता आपस में तलवारें लेकर खड़े हो गए हैं, मगर किसी को भी ‘बेहतर सिनेमा’और ‘भारतीय फिल्म उद्योग’को बचाने की कोई चिंता नहीं है. फिल्म इंडस्ट्री को लेकर कई सवाल हैं, जिन पर विचार करने की जरुरत है.
सिनेमा में आएगा अमूल चूल बदलाव
हकीकत में कोरोना महामारी और लॉक डाउन के खात्मे के बाद हर इंसान के साथ साथ सिनेमा को भी अपने अंदर अमूलचूल बदलाव करने ही पड़ेंगे. इस संंबंध में बौलीवुड से जुड़े कई लोगों की राय है कि, ‘‘अब हम उस हालात में पहुंच गए हैं, जहां हमें सबसे पहले फिल्मों के बजट पर अंकुश लगाना पडे़गा. अब कई सौ करोड़ रूपए की लागत से भव्य फिल्मों का निर्माण कुछ वर्षों तक संभव नही. तो वही अब कलाकारों के नाम से भी आम लोगों का मोहभंग हो गया है. अब बदले हुए हालात में दर्शक फिल्म में अच्छी कहानी के साथ मनोरजन की चाह रखेगा. जिसके चलते अब हर कलाकार , निर्देशक, लेखक, तकनीशियन , मेकअपमैन, हेअर ड्रेसर वगैरह को मानकर चलना चाहिए कि अब फिल्में तभी बन सकती हैं, जब यह सभी अपनी पारिश्रमिक राशि में भारी कटौती करेंगे. इसके अलावा लेखक को उचित सम्मान देते हुए बेहतरीन व जमीन से जुड़ी कहानियां लिखवानी पड़ेंगीं. क्योंकि ‘लॉक डाउन’ खत्म होने और सिनेमाघरो के पुनः खुलने के बाद सिनेमाघरों तक दर्शकों को खींचना किसी भी फिल्मसर्जक के लिए आसान नहीं हो सकता. ’’बौलीवुड से जुड़े यह लोग सही दिशा में सोच रहे हैं. ‘कोरोना’और ‘लॉक डाउन’ने दर्शकों को कंगाल कर दिया है. अब हर दर्शक की पहली प्राथमिकता अपने काम काज व नौकरी को सुचारू रूप से चलाने के साथ घरेलू हालात सुधारना ही प्राथमिकता होगी.
ओटीटी प्लेटफार्म के चलते निर्माता व सिनेमाघर के मालिकों की लड़ाई का हश्र क्या हो सकता है?
फिलहाल फिल्म इंडस्ट्री के हालात काफी बदतर हो गए हैं. फिल्म निर्माताओ की एक संस्था, जिसके कर्ता धर्ता अभिनेत्री विद्या बालन के पति सिद्धार्थ रौय कपूर हैं, ने मल्टीप्लैक्स को धमकाते हुए ‘ओटीटी’प्लेटफार्म की ओर हाथ बढ़ाकर युद्ध के हालात पैदा कर दिए हैं. परिणामतः अब फिल्म निर्माता , कलाकार, लेखक आदि कई खंडों में बंटे हुए नजर आ रहे हैं. हमने कई लोगों से बात की, लोगों अपना नाम गुप्त रखने की शर्त पर अपनी राय दी. इनकी बात माने तो अब ओटीटी प्लेटफार्म और सिनेमाघर के लिए अलग अलग फिल्में बनेंगी. और इनके निर्माता आमने सामने खड़े नजर आ सकते हैं. इस तरह फिल्म इंडस्ट्री दो भागों विभाजित नजर आ सकती है. जब ऐसा होगा, तो फिल्म के कथानक से लेकर कलाकारों के चयन और उनकी शूटिंग आदि में भी बहुत कुछ अंतर नजर आने लगेगा.
कुछ लोगों की राय में फिल्म इंडस्ट्री में इस तरह के टकराव के चलते ओटीटी प्लेटफार्म और सिनेमाघरों की फिल्मों से जुड़े लोग एक दूसरे से दूरी बनाए हुए नजर आएंगे. बौलीवुड से जुड़े तमाम लोग इस बात से आशंकित हैं कि अब ओटीटी प्लेेटफार्म, मल्टीप्लैक्स कीे अपने अस्तित्व को बचाए रखने की लड़ाई किस हद तक जा सकती है, इसका अनुमान लगाना संभव नही है. हमें इस बात को नही भूलना चाहिए कि जब भारत में टीवी और सेटेलाइट चैनलों में का तेजी से प्रादुर्भाव हुआ था, तब फिल्मकारों ने टीवी को अपने लिए बड़ा संकट मानकर टीवी से जुड़े लोगों से लंबे समय तक अछूत जैसा व्यवहार किया था. करीबन दस पंद्रह वर्ष बाद यह दूरी बड़ी मुश्किल से खत्म हो पायी थी कि अब कोरोना के चलते एक बार फिर उसी तरह के हालात पैदा होने जा रहे हैंैं. ऐसे मंे भविष्य में यदि सिनेमाघरों के लिए बनने वाली फिल्मांें से जुड़े लोग यदि ‘ओटीटी’के लिए बनने वाली फिल्मों से जुड़े लोगों के संग अछूत जैसा व्यवहार करने लगें, तो इसमें आश्चर्य वाली कोई बात नही होगी.
मजदूर हो गए पलायनः
यह फिल्म निर्माता अपने अस्तित्व को बचाए रखने की बजाय अहम की लड़ाई लड़ते हुए ज्यादा नजर आ रहे हैं. एक फिल्म के निर्माण में ज्यूनियर आर्टिस्ट, स्पॉट ब्वॉय, कैमरा असिस्टटेंट, ज्यूनियर डांसर सहित करीबन दो से चार हजार से अधिक देहाड़ी मजदूरों का योगदान होता है. जिसकी फिक्र किसी ने नहीं की. लॉक डाउन शुरू होने पर सलमान खान ने ‘फेडरेशन आफ वेस्टर्न इंडिया सिने इम्पलाइज’संस्था के मार्फत इन देहाड़ी मजदूरों को कुछ राहत सामग्री व धन उपलब्ध कराया था. पर उसके बाद कुछ नहीं हुआ. सूत्रों की माने तो पचास प्रतिशत से अधिक फिल्म इंडस्ट्री के दिहाडी मजदूर मुंबई छोड़कर जा चुके हैं, बाकी जाने की तैयारी में हैं. इतना ही नही तमाम छोटे कलाकार भी आर्थिक तंगी का शिकार हैं. किसी के पास घर का किराया देने के पैसे नहीं हैं. तो किसी के सामने दो वक्त की रोटी का सवाल खड़ा हो चुका हैं. इन सभी को बांधकर रखने की दिशा में फिल्म निर्माता वगैरह नहीं सोच रहे हैं.
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