फिल्म रिव्यू: किसी का भाई किसी की जान – बोर व सिरदर्द करने वाली फिल्म

  • रेटिंग: पांच में से आधा स्टार
  • निर्माताः सलमान खान फिल्मस
  • निर्देशक: फरहाद सामजी
  • कलाकार : सलमान खान,पूजा हेगड़े, विनाली भटनागर,शहनाज गिल,पलक तिवारी,सिद्धार्थ निगम,राघव जुएल, जगपति बाबू,वेंक्टेश, भाग्यश्री, भूमिका चाला व अन्य
  • अवधि: दो घंटे 24 मिनट

2014 में तमिल भाषा में एक फिल्म आयी थी-‘‘वीरम’’.इस सफल फिल्म के हिंदी रीमेक के अधिकार खरीदकर फिल्म निर्माता साजिद नाड़ियादवाला इसे ‘‘कभी ईद कभी दीवाली’’ के नाम से बना रहे थे.फिल्म में सलमान खान हीरो थे.लेकिन सलमान खान की अपनी दखलंदाजी के चलते साजिद नाड़ियादवाला ने इस फिल्म को बनाने से मना कर दिया.तब सलमान खान ने स्वयं ‘वीरम’ के रीमेक को ‘किसी का भाई,किसी की जान’ नाम से लेकर आए हैं.जिसमें वह बौलीवुड के साथ ही तेलुगु फिल्म इंडस्ट्ी के जितने भी कलाकार जोड़ सकते थे,उन सभी को जोड़कर ‘‘चॅूं चॅूं का मुरब्बा’’ बना डाला.फिल्म के प्रदर्शन से तीन दिन पहले सलमान खान ने पत्रकारों संग मीट एंड ग्रीट के वक्त कहा था-‘‘मेरा मानना है कि हर कलाकार को सोलो हीरो की बजाय मल्टीस्टार कास्ट वाली फिल्म करनी चाहिए.इससे हर कलाकार के अपने अपने प्रश्ंासक उस फिल्म को देखेंगे और फिल्म सफल होगी.’’ अफसोस 21 अप्रैल को सिनेमाघर में पहुॅची ‘किसी का भाई किसी की जान’’ इतनी सिर दर्द व दर्शक को तनाव देने वाली फिल्म है कि इस फिल्म का कुछ नही हो सकता.इतना ही नही दर्शक को सलमान खान की पिछली ‘जय हो’,‘बजरंगी भाईजान’,‘ट्यूबलाइट’,‘भारत’  जैसी फिल्में याद आएंगी.इस फिल्म से वह लोग जरुर खुश होंगे जो कि सलमान खान के मंुह से ‘‘वंदेमातरम’’ सुनना चाहते हैं.वैसे भी सलमान खान ने ‘वंदेमातरम’ बोलने के साथ ही पूरी फिल्म में उन आदर्शवाद की बात की है,जो कि व्यावहारिक नजर नही आते.सलमान खान ने इस फिल्म में भी बार बार दोहराया है कि इंसानियत, धर्म,जाति व वर्णभेद से परे है.

कहानीः

फिल्म की कहानी के केंद्र में भाईजान(सलमान खान) हैं,जिनकी परवरिश अनाथालय में हुई.अनाथालय में आग लगने पर भाई जान ने तीन लड़कों लव (सिद्धार्थ निगम),इश्क (राघव जुआल) व मोह (जस्सी गिल) को बचाकर अपने साथ रखा और उनकी परवरिश की.अब यह सभी बड़े हो चुके हैं और  दिल्ली की एक अनाम बस्ती (झुग्गी) में रहते हैं.सभी उन्हें प्यार करते हैं.एक स्थानीय राजनेता और गुंडा महावीर (विजयेंद्र सिंह ) इस बस्ती से सभी निवासियों को बेदखल करना चाहता है,लेकिन भाईजान द्वारा उसके प्रयासों को विफल कर दिया जाता है.

भाईजान ने षादी नही की हैं.वह चाहते हैं कि सभी भाई लड़कियो से दूर रहें और कोई शादी नही करेगा.लेकिन लव, इश्क,मोह को क्रमशः चाहत (विनाली भटनागर),सुकून (षहनाज गिल ) व मुस्कान (पलक तिवारी ) से प्यार हो गया है.इसलिए यह तीनों भाई जान के लिए लड़की की तलाश शुरू करते हैं.इसी क्रम में यह तीनों तेलुगु लड़की भाग्यलक्ष्मी (पूजा हेगड़े ) को तलाषते हैं.जो कि पुरातत्वविद हैं.भाईजान व भाग्यलक्ष्मी के बीच प्यार हो जाता है.जब दोनों शादी के लिए तैयार हो जाते हैं,तो पता चलता है कि नागेश्वर (जगपति बाबू ), भाग्यलक्ष्मी के भाई अनन्या (वेंक्टेश) व पूरे परिवार को खत्म करना चाहता है.अब भाईजान अपनी होने वाली ससुराल को बचाने में अपने भाईयों संग लग जाते हैं.

लेखन निर्देशनः

पूरी फिल्म अहिंसा की बात करती है.लेकिन फिल्म में हिंसा ,खून खराबा ही ज्यादा है.रोमंास या प्रेम कहानी या मनोरंजन का घोर अभाव है.फिल्म में सलमान खान का संवाद है-‘‘जब एक हिंसक आदमी एक अहिंसक व्यक्ति को परेशान करता है,तो दूसरे हिंसक आदमी को अहिंसक के आगे खड़ा होना पड़ता है.घटिया कथानक, पटकथा के साथ ही सामजी के अयोग्य निर्देशन के चलते फिल्म में देखने लायक कुछ भी नही है.इंटरवल के बाद फिल्म का पूरा सत्यानाश हो जाता है.हमने दर्शकों को बीच में ही फिल्म छोड़कर जाते हुए देखा.पटकथा लेखक की समझ मे ंनही आ रहा है कि वह किस तरह से किरदारों को गढ़ें.सलमान खान ने अपनी तरफ से देशभक्ति के सारे तड़के भरने की कोशिश की है,पर यह सब कुछ दर्शक के सिर के उपर से गुजर जाता है.एक्शन दृश्यों में भी सलमान खान मात खा गए हैं.यहां तक कि एक्शन के दौरान उनका अपना शर्ट उतारने का चिरपरिचित अंदाज भी दर्शक को पसंद नही आता.वास्तव में फिल्म के कुछ एक्शन दृश्य देखकर एक्शन डायरेक्टर की सोच व समझ पर तरस आता है.फिल्म में भगवदगीता के संस्कृत श्लोक बोलते हुए सलमान खान व पूजा हेगड़े के बीच प्यार हो जाता है.है न कमाल की प्रेम कहानी…

फिल्म के निर्देशक फरहाद सामजी हर जगह हाथ पांव मारते रहे हैं.2006 मे लेखन से शुरूआत की.फिर गीतकार बन गए.गायक भी बन गए.और 2014 की असफल फिल्म ‘‘इंटरटेनमेंट’’ से निर्देशन के क्षेत्र में कदम रखा.उसके बाद फरहाद ने ‘बेबी कम ना’,‘बू सबकी फटेगी’,‘हाउसफुल 4’,‘बच्चन पांडे’,‘पाप कौन’’ जैसी असफल फिल्में व वेब सीरीज निर्देशित कर चुके हैं.अब तक उन्होने किसी फिल्म मे ंयह साबित नही किया कि उन्हे निर्देशन आता है.इसके बावजूद अक्षय कुमार से लेकर सलमान खान तक फरहाद को ही निर्देशक चुनते हैं..इसकी वजह समझ से परे है.‘‘किसी का भाई किसी की जान’’ देखकर भी नही लगता कि इसे किसी ने निर्देशित किया है.

फिल्म का एक भी गाना कर्णप्रिय नही है.इसके गानों में भी सलमान अजीब-ओ-गरीब अंदाज में थिरकते नजर आते हैं.

अभिनयः

भाईजान के किरदार में सलमान खान ओवर एक्टिंग करने के साथ ही खुद को दोहराते हुए नजर आते हैं.दक्षिण की स्टार की जाने वाली अभिनेत्री पूजा हेगड़े अब तक हिंदी में ‘मोहनजोदाड़ो’, ‘हाउसफुल 4’,‘राधेश्याम’ व ‘ सर्कस’जैसी फिल्मों  में क्रमशः रितिक रोशन,अक्षय कुमार,प्रभास व रणवीर सिंह के साथ अभिनय करते हुए इन कलाकारों के कैरियर पर सवालिया निशान लगा चुकी हैं.पूजा हेगड़े की यह फिल्में बुरी तरह से असफल रही हैं.और अब उन्होने हिंदी में पांचवीं फिल्म ‘किसी का भाई किसी की जान’’, सलमान खान के साथ की है.पर इस फिल्म में भी उम्मीदों पर खरा नही उतरती.

जगपति बाबू,मुक्केबाज विजेंदर सिंह,वेक्टेश,रोहिणी हट्टंगड़ी,भाग्यश्री व भूमिका चावला जैसे अनुभवी व प्रतिभाशाली कलाकारों ने क्या सोचकर यह फिल्म की,यह समझ से परे हैं.निदेश्षक व पटकथा की कमजोरी के चलते किसी का भी अभिनय उभर कर नहीं आता.फिल्म के अन्य कलाकार भी अपना प्रभाव छोड़ने में बुरी तरह से असफल रहे हैं.

फिल्म समीक्षाः ‘‘पठान: बेहतरीन एक्शन, बेहतरीन लोकेशन,बाकी सब शून्य…’’

रेटिंग: डेढ़ स्टार

निर्माता: आदित्य चोपड़ा

पटकथा लेखक: श्रीधर राघवन

निर्देषक: सिद्धार्थ आनंद

कलाकार: ष्षाहरुख खान,जौन अब्राहम,दीपिका पादुकोण, आषुतोष राणा,डिंपल कापड़िया, सिद्धांत घेगड़मल,गौतम रोडे,गेवी चहल,षाजी चैहान, दिगंत हजारिका, सलमान खान व अन्य.

अवधि: दो घंटे 26 मिनट

‘ये इश्क नही आसान’, ‘दुनिया मेरी जेब में’,‘शहंशाह ’ जैसी फिल्मों के निर्माता बिट्टू आनंद के बेटे सिद्धार्थ आनंद ने बतौर निर्देषक फिल्म ‘‘सलाम नमस्ते’’ से कैरियर की षुरूआत की थी.उसके बाद उन्होने ‘तारा रम पम’,‘बचना ऐ हसीनों’,‘अनजाना अनजानी’,‘बैंग बैंग’ और ‘वाॅर’ जैसी फिल्मंे निर्देषित कर चुके हैं.सिद्धार्थ आनंद निर्देषित पिछली फिल्म ‘‘वार’’ 2019 में रिलीज हुई थी,जो कि आदित्य चोपड़ा निर्मित ‘वायआरएफ स्पाई युनिवर्स’ की तीसरी फिल्म थी.और लगभग साढ़े तीन वर्ष बाद  बतौर निर्देषक सिद्धार्थ आनंद नई फिल्म ‘‘पठान’’ लेकर आए हैं, जिसका निर्माण ‘यषराज फिल्मस’ के बैनर तले आदित्य चोपड़ा ने किया है. फिल्म ‘पठान’,‘वायआरएफ स्पाई युनिवर्स’ की चैथी फिल्म है.फिल्म ‘पठान’ पर ‘यषराज फिल्मस’के साथ ही इसके मुख्य अभिनेता षाहरुख खान ने भी काफी उम्मीदें लगा रखी हैं.2022 में ‘यषराज फिल्मस’ की सभी फिल्में बुरी तरह से असफल हो चुकी हैं.जबकि षाहरुख खान की पिछली फिल्म ‘‘जीरो’’ 2018 में प्रदर्षित हुई थी,जिसने बाक्स आफिस पर पानी तक नहीं मांगा था.फिल्म ‘पठान’ को तमिल व तेलगू में भी डब करके प्रदर्षित किया गया है.‘यषराज फिल्मस’ की यह पहली फिल्म है,जिसे आईमैक्स कैमरों के साथ फिल्माया गया है.

dipika

‘यषराज फिल्मस’ ने फिल्म ‘पठान’ का जब पहला गाना अपने यूट्यूब चैनल पर रिलीज किया था,उस वक्त से ही वह गाना और  फिल्म विवादों में रही है.उस वक्त बौयकौट गैंग ने दीपिका पादुकोण की भगवा रंग की बिकनी को लेकर आपत्ति दर्ज करायी थी.पर अफसोस की बात यह है कि फिल्म ‘पठान’ में भगवा रंग कुछ ज्यादा ही फैला है.फिल्म देखकर दर्षक की समझ में ेआता है कि भगवा रंग तो ‘आईएसआई’ के एजंटांे को भी हिंदुस्तान की तरफ खीच लेता है.

कहानीः

एक्षन प्रधान,देषभक्ति व जासूसी फिल्म ‘‘पठान’’ की कहानी के केंद्र में राॅ एजेंट फिरोज पठान (षाहरुख खान) और पूर्व ‘राॅ’ अफसर जिम्मी (जौन अब्राहम) और पाकिस्तानी खुफिया एजंसी की जासूस डाॅ. रूबैया मोहसीन (दीपिका पादुकोण) और पाकिस्तानी आईएसआई जरनल हैं.फिल्म की षुरूआत 5 अगस्त 2019 से होती है,जब कष्मीर से धारा 370 हटाए जाने की खबर से बौखलाया हुआ पाकिस्तानी सेना का जनरल अपनी मनमानी करते हुए पूर भारत को नेस्तानाबूद करने का सौदा जिम्मी से करता है. जिम्मी दक्षिण अफ्रीका के खतरनाक हथियार विक्रताओं से हथियार खरीदने का सौदा करता है.जहां पर पठान घायलअवस्था में बंदी है.फिर कहानी तीन साल के बाद षुरू राॅ के आफिस से षुरू होती है.जब एक खुफिया पुलिस अफसर (सिद्धांत घेगड़मल),राॅ की अफसर नंदिनी को सूचना देता है कि पठान की तस्वीर नजर आयी है.अब नंदिनी उस अफसर के साथ पठान से मिलने निकलती है.विमान में बैठने के बाद वह पठान की कहानी बताती है कि राॅ प्रमुख कर्नल लूथरा ( आषुतोष राणा ) राॅ के हर एजेंट को कुछ समझता नही है.एक दिन खबर मिलती है कि दुबई में हो रहे वैज्ञानिकों के सम्मेलन में भारत के दो वैज्ञानिक भी होंगे तथा मुख्य अतिथि भारत के राष्ट्पति है.कर्नल लूथरा भारत के राष्ट्पति की पूरी सुरक्षा की जिम्मेदारी लेते हैं.पठान अपनी टीम के साथ आतकंवादियों को पकड़ने की जिम्मेदारी लेता है.कर्नल लूथरा राष्ट्पति व वैज्ञानिकों अलग अलग राह पर भेज देते हैं.जिम्मी वैज्ञानिको के सामने आकर उन्हे अपने कब्जे मंेकर लेता है,पठान पहुॅचता है,पर जिम्मी के हाथों परास्त हो जाता है.उसके हाथ कुछ नही आता.यहीं पर जिम्मी की बातों से खुलासा होता है कि जिम्मी एक पूर्व राॅ अफसर है,जिसे सरकार ने मरने के लिए छोड़ दिया था.भारत सरकार के रिकार्ड मंे राॅ अफसर जिम्मी की मौत हो चुकी है और उसे षौर्य पदक से नवाजा जा चुका है.इसलिए अब जिम्मी भी भारत के खिलाफ है.अब वह पैसे के लिए पाकिस्तानी आईएसआई एजंसंी के जनरल के लिए काम करता है.फिर एक दिन पता चलता है कि लंदन में डांॅ रूबया के एकाउंट से बहुत बड़ी रकम जिम्मी को ट्ांसफर हुई है. पठान जानकारी निकाल कर स्पेन पहुॅचता है?जहां पता चलता है कि उसे जिम्मी ने वहां बुलाने के ेलिए यह खबर राॅ तक भिजवायी थी.डाॅ रूबिया आईएसआई एजेट हैं और जिम्मी के साथ काम कर रही है.पर उसका दिल पठान पर आ जाता है,इसलिए वह जिम्मी के गुंडांे ेसे उसे बचाती है और फिर उसके ेसाथ मिलकर रक्तबीज लेने जाती है.रक्तबीज हाथ में आते ही डाॅ. रूबिया अपनी असलियत पा आ जाती है और पठान को बताती है कि उसने तो जिम्मी के कहने पर उसके ेसाथ यह नाटक किया क्योंकि रक्तबीज उसकी मदद के बिना पाना मुष्किल था.पठान को मौत के मंुहाने पर छोड़ देती है.रक्तबीज की मदद से जिम्मी रूस के एक षहर में बंदी बनाए गए भारतीय वैज्ञानिक से ऐसा वायरस बनवा रहा है जिसे छोड़ देने पर पूरे भारत के लोग ‘स्माल फाॅक्स’ की बीमारी से ग्रसित होकर एक सप्ताह के अंदर मौत के मंुह में समा जाएंगे.अब पठान की लड़ाई देष को बचाने के लिए जिम्मी से है.बीच में टाइगर (सलमान खान) भी पठान की मदद के लिए आ जाते हैं.अंततः  यह लड़ाई कई मोड़ांे से गुजरती है और नंदिनी सहित कई राॅ के अफसर व वैज्ञानिको की मौत के बाद जिम्मी की चाल असफल हो जाती है.पठान को अब नंदिनी की जगह बैठा दिया जाता है.

लेखन व निर्देषनः

फिल्म बहुत तेज गति से दौड़ती है,मगर पटकथा मंे काफी गड़बड़ियंा हैं. कहानी कब वर्तमान मंे और कब अतीत में चल रही है,पता ही नही चलता.पूरी फिल्म एक खास अजेंडे के तहत बनायी गयी है.फिल्म मेंपाकिसतानी एजेट रूबिया भगवा रंग के कपड़े व भगवा रंग की बिकनी पहनती है और अंततः भारत के पक्ष में कदम उठाती हैं.फिल्म में ंअफगानिस्तान को दोस्त बताया गया है.यानीकि ‘अखंड ’भारत का सपना साकार होने वाला है,षायद ऐसा फिल्मकार मानते हैं. फिल्म अजेंडे के तहत बनायी गयी है,इसका अहसास इस बात से होता है कि भारत को बर्बाद करने की जिम्मेदारी एक भारतीय राॅ एजंसी के एजेंट जिम्मी ने उठाया है.जिम्मी कहता है कि- ‘भारत माता’ ने उसे क्या दिया.भारत माता ने उसकी मां को मरवा दिया.उसके पिता को बम से उड़वा दिया.वगैरह वगैरह..इन संवादांे से जिसे जो अर्थ लगाने हो लगाए.पर देष के राजनीतिक घटनाक्रमों व घटनाओं को इन संवादांे सेे जोड़कर देखे,तो कुछ बातें साफ तौर पर समझ में आ सकती हैं कि फिल्मकार कहना क्या चाहता है? पर क्या इस तरह के संवाद व इस तरह के किरदार को फिल्म में प्रधानता देकर हमारी अपनी ‘राॅ’ के  कार्यरत लोगों का उत्साह खत्म नही कर रहे हैं? अब तक हमेषा यह होता रहा है कि जब भी फिल्मकार किसी अजेंडे के तहत फिल्म बनाता है तो फिल्म की कहानी व उसकी अंतर आत्मा गायब हो जाती है. इसलिए फिल्म देखना दुष्कर हो जाता है.फिल्म में एक्यान दृष्य बहुत अच्छे ढंग से फिल्माए गए हैं. एक्षन के षौकीन इंज्वाॅय कर सकते हैं.फिल्म में कुछ खूबसूरत लोकेषन हैं.तो वहीं कई दृष्य देखकर फिल्मकार व लेखक की सोच पर तरस आता है.मसलन-विमान के ऐसी डक के अंदर ‘वायरस’ रक्तबीज है.राॅ अफसर विमान के पायलट को उसके नाम से फोन कर कहते है कि वह देखे.पायलट एसी डक मंे वायरस रक्तबीज के होने की पुष्टि करता है.पर पायलट के चेहरे पर या विमान यात्रियों के चेहरे पर कोई भय नजर नही आता.फिर कर्नल लूथरा आदेष देते हैं कि विमान को दिल्ली षहर से बाहर ले जाओ और पूरे विमान को गिरा दो.जबकि ‘एटीसी’ कंट्ोलर ही विमान के पायलट से फ्लाइट का नाम लेकर बात करता है.राॅ अफसर कर्नल लूथरा मिसाइल से विमान को गिराने का आदेष देते है,मिसाइल छूटने के बाद उसका रास्ता भी मुड़वा देेते हैं.यानीकि बेवकूफी की घटनाए भरी पड़ी हैं.फिल्म के अंत में प्रमोषन गाने के ेबाद पठान(षाहरुख खान  )और टाइगर (सलमान खान)एक साथ रूस में उसी टूटे हुए पुल पर नजर आते हैं, और कहते है कि अब हमने बहुत कर लिया.अब दूसरो को करने देते हैंफिर किसे दे,यह काम का नहीख्,यह बेकार है.अंत में कहते है कि हमें ही यह सब करना पड़ेगा,हम बच्चों के हाथ में नही सौंप सकते.अब इस दृष्य की जरुरत व मायने हर दर्षक अपने अपने हिसाब से निकालेगा..फिर विरोध होना स्वाभाविक है.रूस में बर्फ के उपर के एक्षन दृष्य अतिबचकाने व मोबाइल गेम की तरह नजर आते हैं.

संवाद लेखक अब्बास टायरवाला के कुछ संवाद अति सतही हैं.

कैमरामैन बेजामिन जस्पेर ने बेहतरीन काम किया है.पर संगीतकार विषाल षेखर निराष करते हैं.

अभिनयः

पठान के किरदार में षाहरुख खान नही जमे.एक्षन दृष्यों में बहुत षिथिल नजर आते हैं.उनके ेचेहरे पर भी उम्र झलकती है.जिम्मी

के किरदार में जौन अब्राहम को माफ किया जा सकता है क्योंकि वह पहले ही कह चुके हैं कि उनके किरदार के साथ और उनके साथ न्याय नही हुआ.पाकिस्तानी एजेंट रूबैया के किरदार में दीपिका पादुकोण के हिस्से कुछ एक्षन दृष्यों के अलावा सिर्फ जिस्म की नुमाइष करना व खूबसूरत लगने के अलावा कुछ आया ही नही.खूफिया एजेंट होते हुए जब आप किसी को फंसा रही है,तो उस वक्त जो चेहरे पर कुटिल भाव होने चाहिए,वह दीपिका के चेहरे पर नही आते.डिंपल कापड़िया,प्रकाष बेलावड़े व आषुतोष राणा की प्रतिभा को जाया किया गया है.

REVIEW: जानें कैसी है सिद्धार्थ मलहोत्रा और कियारा अडवाणी की फिल्म Shershah

रेटिंगः चार स्टार

निर्माताः काश इंटरटेनमेंट और धर्मा प्रोडक्शन

निर्देशकः विष्णु वर्धन

कलाकारः सिद्धार्थ मलहोत्रा, कियारा अडवाणी, शिव पंडित, जावेद जाफरी, निकितन धीर, हिमांशु मल्होत्रा, साहिल वैद्य, राज अर्जुन, कृष्णय बत्रा, मीर सरवर व अन्य.

अवधिः दो घंटा 17 मिनट

ओटीटी प्लेटफार्मः अमेजॉन प्राइम

1999 में पाकिस्तान ने कारगिल की पहाड़ियों पर कबजा कर लिया था, मगर बाद में भारतीय  जवानों ने 16 हजार फिट की उंचाई पर बर्फीली पहाड़ी पर बैठे पाक सैनिको को अपने शौर्य के बल पर खत्म कर पुनः कारगिल पर कब्जा जमाया था. उसी कारगिल युद्ध के परमवीर चक्र विजेता शहीद विक्रम बत्रा पर फिल्म ‘शेरशाह’आयी है. उसी कारगिल युद्ध पर  एलओसी,  लक्ष्य,  स्टंप्ड,  धूप,  टैंगो चार्ली और मौसम से लेकर गुंजन सक्सेना जैसी फिल्में बनी हैं.  मगर शेरशाह इनसे अलग है.

कहानीः

कहानी जम्मू कश्मीर राइफल की 13 बटाइलन की है, जो कि रिजर्ब फोर्स है. मगर कारगिल युद्ध में इसे ही कैप्टन विक्रम बत्रा के नेतृत्व में पाक सेना द्वारा कब्जा की गयी कारगिल की जमीन को वापस लाने की जिम्मेदारी सौंपी गयी थी, जिसे कैप्टन विक्रम बत्रा व उनके साथियों ने अपनी जान गंवाकर पूरी करते हुए पाकिस्तानी सेना का सफाया कर दिया था.

ये भी पढ़ें- तोषू के कारण वनराज-अनुपमा लेंगे बड़ा फैसला, क्या किंजल भी छोड़ेगी घर?

फिल्म की शुरूआत विक्रम बत्रा के बचपन से होती है, और टीवी कार्यक्रम देखकर वह सैनिक बनने का निर्णय लेते हैं. कालेज में पढ़ाई करते हुए डिंपल(कियारा अडवाणी) से उनका प्यार हो जाता है. डिंपल का परिवार सिख है और विक्रम बत्रा(सिद्धार्थ मल्होत्रा) पंजाबी खत्री हैं. इस वजह से डिंपल के पिता इस व्याह के लिए तैयार नही होते. तब विक्रम मर्चेंट नेवी मंे जाने की बात करता है. इसी आधार पर डिंपल अपने पिता से लड़कर विक्रम से ही शादी करने का फैसला सुना देती है. लेकिन विक्रम का दोस्त सनी उसे समझाता है कि महज शादी करने के लिए वह अपने सैनिक बनने के सपने को छोड़कर गलती कर रहा है. तब फिर से विक्रम सेना में जाने का फैसला करता है, इससे डिंपल को तकलीफ होती है. पर वह विक्रम के साथ खड़ी नजर आती है. ट्रेनिंग लेकर विक्रम बत्रा जम्मू कश्मीर राइफल की तेरहवीं बटालियन में पहुंचकर अपने सहयोगियों के साथ ही कश्मीर की जनता के बीच घुल मिल जाते हैं. पहले वह आतंकवादी गिरोह के अयातुल्ला को पकड़ता है,  फिर वह आतंकवादियों का सफाया करते हुए हैदर का सफाया करता है. इससे उसके वरिष्ठों को उस पर नाज होता है. वह छुट्टी लेकर पालमपुर आता है और गुरूद्वारा में डिंपल की चुनरी पकड़कर फेरे लेने के बाद कहता है कि अब वह मिसेस बत्रा बन गयी. अपने आतंकियों के सफाए से बौखलाया पाकिस्तान कारगिल की पहाड़ियों पर कब्जा कर लेता है. तब विक्रम मल्होत्रा को वापस जाना पड़ता है. जब विक्रम ड्यूटी पर लौटने लगता है, तो जब उनका दोस्त सनी उससे कहता है कि जल्दी लौटना. तो विक्रम का जवाब होता हैः तिरंगा लहरा कर आऊंगा,  नहीं तो उसमें लिपट कर आऊंगा. इस बार उसकी बटालियन को विक्रम बत्रा के नेतृत्व में कारगिल की पहाड़ी पर पुनः कब्जा करने की जिम्मेदारी दी जाती है. तथा विक्रम बत्रा को कोडनेम ‘‘शेरशाह’’दिया जाता है. विक्रम बत्रा के नेतृत्व में  सेना के जांबाजों ने 16 हजार से 18 हजार फीट ऊंची ठंडी-बर्फीली चोटियों पर चढ़ते-बढ़ते हुए दुश्मन पाकिस्तानी फौज को परास्त कर कारगिल की पहाड़ी पर पुनः भारत का कब्जा हो जाता है, मगर विक्रम बत्रा सहित कई सैनिक शहीद हो जाते हैं. मगर उनके शौर्य को पूरा देश याद रखता है.

लेखन व निर्देशनः

बेहतरीन पटकथा वाली युद्ध पर बनी एक बेहतरीन फिल्म है. पूरी फिल्म यथार्थपरक है. तमिल में बतौर निर्देशक आठ फिल्में बना चुके विष्णुवधन की यह पहली हिंदी में हैं. विष्णु वर्धन ने हर बारीक से बारीक बात को पूरी इमानदारी के साथ उकेरा है. अमूूमन सत्य घटनाक्रम पर आधारित फिल्म बनाते समय फिल्मकार वास्तविक किरदारों के नाम बदल देते हैं. लेकिन निर्देशक विष्णु वर्धन ने फिल्म ‘शेरशाह’ में सभी किरदारों,  घटनाक्रम और जगह आदि के नाम हूबहू वही रखे हंै, जो कि यथार्थ में हैं.

फिल्म के संवाद कमजोर है. संवाद वीरोचित व भावपूर्ण नही है.

फिल्म में विक्रम बत्रा और डिंपल के बीच रोमांस को पूरी तरह  से फिल्मी कर दिया है. फिल्म में कारगिल की पहाड़ी पर एक पाक सैनिक, विक्रम बत्रा से कहता है कि  ‘हमें माधुरी दीक्षित दे दो, हम कारगिल छोड़ देंगे. ’’यह संदर्भ कितना सच है, यह तो निर्माता व निर्देशक ही बता सकते हैं. मगर बॉलीवुड के फिल्मकार अक्सर सत्यघटनाक्रम पर फिल्म बनाते समय इस तरह की चीजें परोसते ही हैं.

फिल्म का क्लायमेक्स कमाल का है. यह फिल्म कैप्टन विक्रम बत्रा और कारगिल युद्ध में अपने शौर्य का प्रदर्शन करते हुए अपनी जान गंवाने वाले वीर जवानों को सच्ची श्रृद्धांजली हैं. पटकथा अच्छी ढंग से लिखी गयी है।फिल्म की खासियत यह है कि इसमें देशभक्ति के नारे नही है. निर्देशक ने विक्रम बत्रा के सेना में पहुंचने के बाद उनकी निडरता, वीरता और नेतृत्व की खूबी को ही उभारा है. निर्देशक विष्णु वर्धन बधाई के पात्र हैं कि उन्होने भारतीय सिनेमा और विक्रम बत्रा के शौर्य को पूरे सम्मान के साथ उकेरा है. फिल्म यह संदेश देने में पूरी तरह से कामयाब रहती है कि फौजी के रुतबे से बड़ा कोई रुतबा नहीं होता.  वर्दी की शान से बड़ी कोई शान नहीं होती.  देश प्रेम से बड़ा कोई धर्म नहीं होता.

ये भी पढ़ें- दिवंगत पति के बर्थडे पर इमोशनल हुईं Mayuri deshmukh, ‘इमली’की ‘मालिनी’ ने शेयर किया पोस्ट

मगर युद्ध के दृश्य काफी कमजोर हैं.

इस फिल्म की सबसे बड़ी खूबी यह है कि फिल्म के अंत में कारगिल के योद्धाओं की निजी तस्वीरें, उनके संबंध में जानकारी और फिल्म में उनके किरदार को निभाने वाले कलाकार की तस्वीरों के साथ पेश किया गया है.

वीएफएक्स भी कमाल का है.

कैमरामैन कलजीत नेगी ने कमाल का काम किया है. उन्होेने लोकेशन को सही अंदाज में पेश किया है.

अभिनयः

विक्रम बत्रा के किरदार में अभिनेता सिद्धार्थ मल्होत्रा नही जमते. जो वीरोचित भाव और वीरोचित छवि उभरनी चाहिए थी, वह नहीं उभरती. रोमांस व कालेज के दृश्यों में वह जरुर जमे हैं. कियारा अडवाणी ने संजीदा अभिनय किया है. वैसे उनके हिस्से करने को कुछ खास रहा नही. अन्य सभी कलाकारों ने अपने अपने किरदार को बेहतर तरीके से जिया है.

एक्ट्रेस विद्या बालन को नहीं करना पड़ता अब किसी का इंतज़ार, जानें वजह  

फिल्म ‘परिणीता’से एक्टिंग के क्षेत्र में चर्चित होने वाली अभिनेत्री ‘विद्या बालन ने इंडस्ट्री में अपनी एक अलग छवि बनाई है. उन्होंने इंडस्ट्री में अभिनेता और अभिनेत्री के बीच पारिश्रमिक और सुविधाओं की असमानता को कम किया है और सिद्ध कर दिया है कि अभिनेत्रियाँ भी फिल्म को लीड कर सकती है. यही वजह है कि आज कई निर्माता निर्देशक उन्हें अपनी फिल्मों में लेना पसंद करते है. उनकी प्रसिद्ध फिल्में‘लगे रहो मुन्ना भाई’, ‘द डर्टी पिक्चर’ ‘कहानी’ आदि कई है. विद्या स्वभाव से हँसमुख, विनम्र और स्पष्ट भाषी है. फिल्म ‘लगे रहो मुन्ना भाई’ उसके करियर की टर्निंग पॉइंट थी, जिसके बाद से उन्हें पीछे मुड़कर देखना नहीं पड़ा. उन्होंने बेहतरीन परफोर्मेंस के लिए कई अवार्ड जीते और साल 2014 में उन्हें पद्मश्री पुरस्कार से नवाज़ा गया. विद्या तमिल, मलयालम, हिंदी, अंग्रेजी और बांग्ला अच्छा बोल लेती है. विद्या की फिल्म ‘शेरनी’रिलीज हो चुकी है, जिसमें उन्होंने शेरनी की मुख्य भूमिका निभाकर मानव और जंगली जानवरों के बीच एक तालमेल के बारे में बताई है, जो इस धरती के लिए जरुरी है. फिल्म की सफलता पर खुश विद्या ने बात की. पेश है कुछ अंश.

सवाल-फिल्म की सफलता आपके लिए क्या माइने रखती है?

इस सफलता से मुझे बहुत ख़ुशी है, क्योंकि ये एक अलग तरीके की फिल्म है. इसे दर्शक कितना पसंद करेंगे, ये पता नहीं चल पा रहा था, लेकिन एक लालच थी कि 240 देशों के लोग इसे देख सकेंगे. अच्छी बात अभी ये भी है कि ओटीटी पर रिलीज होने की वजह से दर्शक जब चाहे इसे देख सकता है. दर्शकों ने फिल्म देखी और मुझे अच्छे-अच्छे मेसेज भेजे, इस बार शर्मीला टैगोर ने भी फिल्म की तारीफ की.

ये भी पढ़ें- ‘गुम है किसी के प्यार में’ के ‘विराट’ ने ‘पाखी’ के लिए गाया Romantic गाना, वीडियो वायरल

सवाल-आपने हमेशा अलग-अलग विषयों पर काम किया है, इस दौरान कई उतर-चढ़ाव आये, किसने साथ दिया?

मेरे जीवन की सबसे स्ट्रोंग पर्सन मेरी माँ सरस्वती बालन है, जो मुश्किल घड़ी में शांत रहकर आसानी से उसे पार कर लेती है. उन्होंने हम दोनों बहनों को खुद की ड्रीम पूरा करने का साहस दिया है. फिल्म इश्कियां से पहले मैं बहुत कन्फ्यूज्ड रहा करती थी. मैं हिंदी फिल्मों के लिए बनी हूं या नहीं. ये सोचती रहती थी, लेकिन इश्कियां के लिए मैं फिट बैठ गयी. आगे भी मैंने  अलग विषयों पर काम किया है. मेरे लिए हीरो ओल्ड है या जवान कुछ फर्क नहीं पड़ता. मैंने रिस्क लिया और कामयाब रही. अभी जब मैं पीछे मुड़कर देखती हूं, तो लगता है कि मैंने जो ड्रीम अपने जीवन में देखी थी, वह धीरे-धीरे पूरी हो रही है. मैं एक विषय से ऊब जाती हूं, इसलिए अलग-अलग विषयों पर काम करती हूं, इससे मेरे अंदर काम करने की इच्छा बनी रहती है.

सवाल-आजकल की महिलाएं बहुत मजबूती से आगे बढ़ रही है, लेकिन एक सीमा तक पहुँचने के बाद उन्हें मंजिल तक जाने से रोका जाता है, इसकी वजह आप क्या मानती है?

फारेस्टलाइफ में शेरनी चुपचाप शिकार की तलाश में शांत बैठी रहती है और शिकार को देखते ही उसपर छलांग मारकर उसे झपट लेती है, लेकिन रियल लाइफ में ऐसा नहीं हो सकता, लेकिन औरतों को जब भी ताने सुनने को मिले या लोग उनके सपनों को समझ नहीं रहे है,तो चुपचाप उसे सुने या अनसुना कर दें और समय आने पर उसका जवाब दें, क्योंकि जिंदगी एक है और हर महिलाको अपनी ड्रीम पूरा करने का हक है.

सवाल-कई बार उच्च प्रशासनिक पद पर कार्यरत महिलाएं एक मुकाम तक पहुंचकर आगे नहीं बढ़ पाती, क्योंकि उस स्थान से वापस आना ही भलाई समझती है, ऐसे महिलाओं के लिए आपकी मेसेज क्या है?

ये सही है कि लड़कियों की परवरिश इसी तरह से की जाती है, उन्हें किसी प्रकार की चुनौतियों से आगे बढ़ने की सलाह नहीं दी जाती, बल्कि पीछे हटने के लिए कह दिया जाता है. डर पर काबू पाना जरुरी है और सभी महिलाओं में ताकत होती है, उन्हें सिर्फ समझना पड़ता है, तभी हम आगे बढ़ सकते है.

सवाल-महिलाओं को कमतर समझने की वजह क्या है? क्या आपको कभी इसका सामना करना पड़ा?

महिलाएं खुद को ही कमतर समझती है, उन्हें खुद की काबिलियत पर संदेह होने लगता है. ये उनके दिमाग में चलता रहता है. असल में महिलाओं ने काफी सालों बाद बहुत सारे क्षेत्रों में काम करना शुरू किया है. उसमें एडजस्ट होने में समय लगेगा. हर महिला अपनी बात तेज आवाज में नहीं रख पाती. चुप रहकर भी कुछ महिलाएं अपना काम निकाल लेती है. कैरियर की शुरू में बहुत बार ऐसा हुआ है, जब सबने मुझे कमतर समझा. जब मैंने फिल्म कहानी की, तो सबको लग रहा था कि ये फिल्म नहीं चलेगी, जबकि ‘ द डर्टी पिक्चर’ को सबने सही कहा, क्योंकि ये मसाला और सेक्सी फिल्म है. एक प्रेग्नेंट महिला, जो अपने खोये हुए पति की खोज में है, उस पिक्चर को कौन देखना चाहेगा? इसकी वजह केवल मैं नहीं, बल्कि सब्जेक्ट, फिल्म की टीम सभी को कम समझा गया, लेकिन कहानी इतनी चली कि सबकी बोलती बंद हो गयी.

ये भी पढ़ें- अनुपमा से तुलना होने पर Kinjal को आया गुस्सा तो Kavya ने किया ये काम

सवाल-फिल्म इंडस्ट्री में क्या आपको लैंगिक असामनता का सामना करना पड़ा? उसे कैसे लिया?

बहुत बार सामना करना पड़ा, क्योंकि आसपास के लोगों में ये धारणा रहती है कि लड़की और लड़के की काम में अंतर है. जब लड़की इसे तोड़ कर आगे बढती है, सब उन्हें रोकते है. जब मैं इश्कियां कर रही थी तो सबका कहना था कि बड़ी मुश्किल से एक फिल्म महिला प्रधान बनती है, लेकिन मैंने इन 13 वर्षों में उनके इस प्रश्न का उत्तर दे दिया है. इसके अलावा शुरूआती दौर में एक्टर के हिसाब से डेट देने पड़ते थे, एक्टर के लिए बड़ा कमरा, बड़ा वैन होता था. ये सीनियर कलाकारों को ही नहीं, बल्कि नए चेहरे को भी ऐसी सहूलियत मिलती थी. वह सही नहीं लगता था. इसके अलावा एक्टर समय से 3 या 4 घंटे लेट आता था. मुझे अच्छा नहीं लगता था और सोचती थी कि ये कब बदलेगा. अभी बदला है, मुझे किसी का अब इंतज़ार नहीं करना पड़ता.

REVIEW: जानें कैसी है विद्या बालन की Film ‘शेरनी’

रेटिंगः दो स्टार

निर्माताः भूषण कुमार, किशन कुमार,  विक्रम मल्होत्रा, अमित मसूरकर

निर्देशकः अमित वी मसूरकर

कलाकारः विद्या बालन, शरत सक्सेना,  विजय राज, ब्रजेंद्र काला, इला अरूण , नीरज काबी, मुकुल चड्ढा व अन्य.

अवधिः दो घंटे दस मिनट 44 सेकंड

ओटीटी प्लेटफार्मः अमेजॉन प्राइम वीडियो

एक तरफ देश के राष्ट्ीय पशुं टाइगर(बाघ )की प्रजाति खत्म होती जा रही है. तो दूसरी तरफ विकास के नाम पर जंगल खत्म हो रहे हैं, ऐसी परिस्थितियों में हर जानवर के सामने समस्या है कि वह कहां स्वच्छंदतापूर्ण विचरण करे. जंगल के खत्म होने से टाइगर, भालू आदि हिंसक जानवर खेतों व आबादी की तरफ बढ़ रहे हैं. जिसके चलते पशु और इंसान के बीच संघर्ष बढ़ता जा रहा है. तो वहीं इस समस्या का सटीक हल ढूढ़ने की बनिस्बत राजनेता अपनी रोटी सेंकने में लगे हुए हैं, जिसका फायदा अवैध तरीके से टाइगर का शिकार करने वाला शिकारी उठा रहा है. इन्ही मुद्दों व पशु व इंसान के बीच  संघर्ष को खत्म कर संतुलन बनाने का संदेश देने वाली फिल्म ‘‘शेरनी’’ लेकर आए हैं फिल्म निर्देशक अमित वी मसुरकर, जो कि 18 जून से ‘‘अमैजॉन प्राइम’’पर स्ट्रीम हो रही है.

ये भी पढे़ं- Anupamaa की ‘काव्या’ ने औफस्क्रीन ससुर Mithun Chakraborty को Birthday किया Wish

कहानीः

कहानी शुरू होती है विजाशपुर वन मंडल के जंगलों से, जहां कुछ पुलिस  की टीम व वन संरक्षण अधिकारी टाइगर की आवाजाही को समझने के लिए वीडियो कैमरा लगा रही है. उसी वक्त नई वन अधिकारी विद्या विंसेट(विद्या बालन) भी वहां पहुंचती है और हालात का जायजा लेती है. वाटरिंग होल सूखा हुआ है. क्योंकि स्थानीय विधायक जी के सिंह(अमर सिंह परिहार  )का साला मनीष उस जंगल में सुविधाएं देखने वाला ठेकेदार है. वह किसी नही सुनता. उधर जंगल के नजदीक में बसे गांव वासी अपने मवेशियों को चारा खिलाने इसी जंगल में कई वर्षों से जाते रहे हैं. मगर अब राष्ट्रीय पार्क और इस जंगल के बीच हाइवे सहित कई विकास कार्य संपन्न हो चुके है, जिसकी वजह से जंगल कें अंदर मौजूद टाइगर व भालू जैसे हिंसक पशु नेशनल पार्क नही जा पा रहे हैं और वह ग्रामीणों का भक्षण करने लगे हैं. पूर्व विधायक पी के सिंह(सत्यकाम आनंद)  ग्रामीणों के जीवन की सुरक्षा के नाम पर वन अधिकारियों को धमकाते हुए अपनी राजनीति को चमकाने में लगे हैं. वन अधिकारी विद्या विंसेट चाहती है कि इंसानों और पशुओं के बीच संघर्ष खत्म हो और एक संतुलन बन जाए. इसके लिए वह अपने हिसाब से प्रयास शुरू करती हैं, जिसमें वन विभाग से ही जुड़े मोहन, हसन दुर्रानी(  विजय राज )  व अन्य लोगों की मदद से प्रयासरत हैं. पर विधायक जी के सिंह के चमचे व वन विभाग के अधिकारी बंसल(ब्रजेंद्र काला )  व अन्य अपने हिसाब से टंाग अड़ाते रहते हैं. तभी चुनाव जीतने के लिए विधायक जी के सिंह शिकारी पिंटू को लेकर आते हैं.  विद्या चाहती है कि नर भक्षी बन चुकी बाघिन टी 12 व उसके दो नवजात बच्चों को इस जंगल से निकालकर नेशनल पार्क भेज दिया जाए, जिससे ग्रामीणों की भी सुरक्षा हो सके. जबकि बंसल व पिंटू(शरत सक्सेना) की इच्छा टाइगर यानी कि शेरनी को बचाने में बिलकुल नही है. इसी बीच अपने उच्च अधिकारी नंागिया(नीरज काबी )  की हरकत से विद्या विंसेट को तकलीफ होती है. अब राजनीतिक कुचक्र और नेताओं के इशारे पर नाच रहे कुछ भ्रष्ट वन अधिकारियों व इमानदार वन अधिकारी विद्या विंसेट में से किसकी जीत होती है, यह तो फिल्म देखने पर ही पता चलेगा.

लेखन व निर्देशनः

‘‘सुलेमानी कीड़ा’’ और ऑस्कर के लिए भारतीय प्रविष्टि के रूप में भेजी जा चुकी फिल्म‘‘ न्यूटन’’के निर्देशक अमित वी मसूरकर  इस बार मात खा गए हैं. फिल्म की कमजोर पटकथा के चलते फिल्म काफी नीरस और धीमी है. जंगल में  नरभक्षी टाइगर की मौजूदगी के चलते जो डर व रोमांच पैदा होना चाहिए, उसे पैदा कर पाने में अमित वी मसूरकर असफल रहे हैं. शेरनी की आंखों से पैदा होने वाला सम्मोहन भी नदारद है. दो राजनेताओं के बीच की राजनीतिक चालों का भी ठीक से निरूपण नही हुआ है.

फिल्म‘‘शेरनी’’ अवनी या टी1 के मामले की याद दिलाती है. जब बाघिन पर 13 लोगों की हत्या का आरोप लगा था. महीनों के लंबे शिकार के बाद,  2018 में महाराष्ट्र के यवतमाल में एक नागरिक शिकारी के नेतृत्व में वन विभाग के कुछ अधिकारियों के साथ उसकी गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. कई कार्यकर्ताओं ने इसे ‘कोल्ड ब्लडेड मर्डर‘ बताया और मामला भारत के सुप्रीम कोर्ट तक भी पहुंच गया. यह मामला अभी भी चल रहा है और अधिकारी यह पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि अवनी नामक बाघिन आदमखोर थी या नहीं. लेकिन फिल्मकार इस सत्य घटनाक्रम को सही अंदाज में नही उठा पाए.

ये भी पढे़ं- आखिर एक्ट्रेस विद्या बालन क्यों बनी ‘शेरनी’, पढ़ें खबर

फिल्म का संवाद ‘‘विकास के साथ जाओ, तो पर्यावरण को नहीं बचा सकते. और यदि पर्यावरण के साथ जाएं, तो विकास बेचारा उदास हो जाता है. ’’कई सवाल उठाता है, मगर अफसोस की बात यह है कि इस तरह की बात करने वाले नंागिया का कार्य इस संवाद से मेल नही खात. यानी कि चरित्र चित्रण में भी फिल्मकार ने गलतियंा की हैं. फिल्म में पशुओं को लेकर मनुष्य की संवेदनहीनता, वन विभाग में भ्रष्टाचार, राजनेताओं की नकली नारेबाजियां, जैसे मुद्दे उठाए गए हैं मगर बहुत ही सतही तौर पर. बीच बीच में फिल्म पूरी तरह से डाक्यूमेंट्री बनकर रह जाती है.

कैमरामैन राकेश हरिदास बधाई के पात्र हैं.

अभिनयः

जहां तक अभिनय का सवाल है, तो विद्या बालन का अभिनय शानदार है. उन्होने वन अधिकारी विद्या विसेंट को जीवंतता प्रदान की है. फिर चाहे डर का भाव हो या कुछ न कर पाने की विवशता. मगर लेखक व निर्देशक ने विद्या बालन के किरदार को भी ठीक से नही गढ़ा है. वह कहीं भी दहाड़ती नही है, उसके कारनामे ऐसे नही है जो कि याद रह जाएं. नीरज काबी व मुकुल चड्ढा की प्रतिभा को जाया किया गया है. हसन दुर्रानी के किरदार मे विजय राज एक बार फिर अपने अभिनय की छाप छोड़ जाते हैं. ब्रजेंद्र काला को अवश्य कुछ अच्छे दृश्य मिल गए हैं.

Coolie no 1: फिल्म देखने से पहले यहां पढ़ें वरूण और सारा की फिल्म का रिव्यू

रेटिंगः डेढ़ स्टार

निर्माताः दीपशिखा देशमुख, वासु भगनानी और जैकी भगनानी

निर्देशकः डेविड धवन

कलाकारः वरूण धवन, सारा अली खान,  परेश रावल, जावेद जाफरी,  राजपाल यादव, जानी लीवर.

अवधिःदो घंटा 14 मिनट तीस सेकंड

ओटीटी प्लेटफार्मः अमेजॉन प्राइम वीडियो

1993 की सफलतम तमिल फिल्म‘‘चिन्ना मपिलाई’’का 1995 में डेंविड धवन ने गोविंदा व करिश्मा कपूर के साथ हिंदी रीमेक ‘कुली नंबर वन’ बनायी थी. अब पच्चीस वर्ष बाद अपनी 1995 की ही फिल्म का उसी नाम से डेविड धवन ने ही रीमेक किया है, जिसमें वरूण धवन व सारा अली खान की जोड़ी है. 1995 की फिल्म के पटकथा लेखक कादर खान थे, जबकि इस बार रोमी जाफरी है.  बाप बेटे यानी कि डेविड धवन व वरूण धवन की जोड़ी की यह अति कमजोर फिल्म है.

ये भी पढ़ें- पति की मौत के बाद ससुरालवालों ने किया था सोनाली फोगाट को टौर्चर, बिग बौस में किया खुलासा

कहानीः

यह कहानी पैसे के घमंड में चूर जोफरी रोजोरियो(परेश रावल)अपनी मॉं(भारती आचरेकर)और दो बेटियो साराह रोजोरियो (सारा अली खान)और अंजू रोजोरियो(शिखा तलसानिया) के संग रहते हैं. वह अपनी बेटियों की शादी करोड़पति परिवार में करना चाहते है. पंडित जयकिशन( जावेद जाफरी)एक दिन बड़ी बेटी साराह रोजोरियो के लिए एक रिश्ता लेकर आते हैं. साथ में लड़का व लड़के के माता पिता भी होते हैं. मगर जोफरी रोजोरियो उस लड़के व उसे माता पिता का अपमान कर घर से निकाल देते हैं. पंडित जयकिश को बुरा लगता है और वह सोच लेते हैं कि अब वह उनकी बेटी की शादी ऐसे लड़के से कराएंगे, जिससे उनका घमंड चूर हो जाएगा. पं. जयकिशन के हाथ में साराह रोजोरियो की तस्वीर है. अचानक स्टेशन पर पहॅुचते ही जयकिशन के हाथ से वह तस्वीर छूटती है और हवा के झोकों से स्टेशन पर कुली नंबर वन के रूप में मशहूर कुली राजू (वरूण धवन)के उपर गिरती है. राजू उस तस्वीर को देखते ही उस पर लट्टू हो जाता है और तय करता है कि वह इसी लड़की से शादी करेगा. इससे पहले कई लड़कियों के माता पिता ने कुली होने के कारण अपनी बेटी की शादी राजू के साथ करने से मना कर चुके हैं. राजू का दोस्त व कार मैकेनिक दीपक(साहिल वैद्य)भी राजू की शादी कराने के कई असफल प्रयास कर चुका है. तस्वीर के पीछे भागते हुए पं. जयकिशन, राजू के पास पहुंचकर फोटो वापस मांगते हैं. राजू कहता है कि यह तो उसकी है और इसी से शादी करेगा. तब जयकिशन के दिमाग में योजना जन्म लेती है. फिर पं. जयकिशन, राजू व दीपक के साथ योजना बनाते हैं. तीनों अमीर होने का ढोंग रच अपना हुलिया बदलते हैं. दीपक अपने गैरेज से राजा महेंद्रप्रताप सिंह की आलीशान निकालता है. राजू अपना नाम व हुलिया बदलकर कुंवर राज प्रताप सिंह बन जाता है. जयकिशन,  कुंवर के सेके्रटरी जैक्सन व दीपक उनका ड्रायवर बन जाता है. तीनों  जोफरी के होटल पहुंचते हैं. पहली ही नजर में साराह,  कुंवर को अपना दिल दे बैठती है. जोफरी यह जानकर खुश होते हैं कि कुंवर के पिता राजा हैं और वह वहां गोवा में अपना नया पोर्ट बना रहे हैं. इतना ही नही मुंबई में शूटिंग के लिए किराए पर मिलने वाला बंगला लेकर कुंवर, जोफरी के परिवार को अपना बंगला दिखाते हैं. अब जोफरी अपनी बेटी साराह की शादी कंुवर राज प्रताप से करना चाहते हैं, इसके लिए वह सेक्रेटरी जैक्सन को घूस के तौर पर लंबी रकम दे देते हैं. साराह और कुंवर राज प्रताप की शादी हो जाती है. इस बीच अंजू व दीपक के बीच प्रेम पनप चुका होता है.

शादी के बाद साराह चाहती है कि वह कुंवर राज प्रताप के बंगले में जाकर रहे. पहले तो कुंवर बहाना करते हैं. फिर लेकर जाते हैं और बंगले के सामने पहुंचकर खुद जैक्सन के साथ अंदर जाते हैं, जहां महेंद्रप्रताप सिंह और उनके बेटे महेश (विकास वर्मा)के बीच झगड़ा हो रहा होता है, उसे देखकर दोनो वापस आ जाते हैं कि पिता बहुत नाराज हैं और घर से निकाल दिया. अब कुंवर किराए के मकान में साराह के साथ रहने लगता है और रोज रेलवे स्टेशन पर कुली बनकर पैसा कमाता है. एक दिन बेटी का हाल चाल जानने जब जोफरी रोजोरियो स्टेशन पहुंते हैं, तो वह कुली राजू से मिलते हैं. उस वक्त राजू कहता है कि वह कुंवर राज नही है, कुंवर राज तो उसका जुड़वा भाई हैं. फिर कहानी कई मोड़ों से होकर गुजरती है. इधर लालच में जोफरी अपनी दूसरी बेटी अंजू की शादी कुली राजू से कराना चाहते हैं. वह सोचते हैं कि एक दिन महेंद्र प्रताप की मौत के बाद दोनो भाईयों को आधी आधी संपत्ति मिलेगी. हास्य के कई घटनाक्रम तेजी से घटित होते हैं. अंततः सारा सच सामने आता है. अंजू की शादी दीपक से हो जाती. मरने से पहले महेंद्र प्रताप अपनी जायदाद अपने बेटे की बजाय राजू को दे देते हैं.

ये भी पढ़ें- Anupamaa: काव्या देगी वनराज को धोखा तो किंजल की प्रेग्नेंसी से Shocked होंगे घरवाले

लेखन व निर्देशनः

उटपटांग पटकथा पर बनी बनी उटपटंाग फिल्म है. पटकथा लेखक रोमी जाफरी ने कुछ दृश्य ज्यों का त्यों उतार दिए हैं. संवाद लेखक फरहाद समजी के संवाद भी घटिया हैं. अफसोस की बात यह है कि डेविड धवन की 1995 की ‘कुली नंबर वन’ के मुकाबले उन्ही के निर्देशन में बनी यह ‘कुली नंबर वन’ किसी भी पैमाने पर खरी नही उतरती है. गोविंदा संग दुश्मनी शुरू होने के बाद से डेविड धवन लगातार अपने बेटे वरूण धवन को गोविंदा का पर्याय बनाने का असफल प्रयास कर रहे हैं. जबकि अभिनय के मामले में वरूण धवन,  गोविंदा से कोसों दूर हैं. कहानी में कहीं कोई सहजता नही है. पूरी फिल्म में कुछ भी लॉजिक नही है. अति लाउड कॉमेडी है. फूहड़ता चरम सीमा पर है. बतौर निर्देशक डेविड धवन कोई कमाल नही दिखा पाएं.

अभिनयः

जब आप किसी दूसरे के जूते में पैर डालकर सुख का आनंद लेना चाहते हैं, तो अक्सर फजीहत ही झेलनी पड़ती है. क्योंकि जूता आपके पैर की साइज से बड़ा होता है. ऐसा ही कुछ इस फिल्म में वरूण धवन ने किया है. गोविंदा के जूतों में पैर रखने का आनंद प्राप्त करने में वरूण धवन बुरी तरह से मात खा गए हैं. उन्होने सिर्फ गोविंदा ही नही, बल्कि अमिताभ बच्चन, सलमान खान, मिथुन चक्रवर्ती ही नहीं बल्कि दिलीप कुमार की भी मिमिक्री कर डाली. वरूण भूल गए कि मिमिक्री व अभिनय में बड़ा अंतरहोता है. नकल कभी साथ नहीं देती. कॉमेडी के नाम पर वरूण धवन महज उछलकूद करते नजर आते हैं. उन्हे संवाद लेखक फरहाद शामजी के संवादों का भी सहयोग नहीं मिला. सारा अली खान को अभी भी अभिनय के गुण सीखने होंगे. परेश रावल की लापरवाह अदाएं और राजपाल यादव का तुतलाना रोना फिल्म के स्तर को लगातार नीचे गिराता जाता है. अफसोस की बात है कि फिल्म दर फिल्म राजपाल यादव के अभिनय का स्तर गिरता ही जा रहा है. कुछ हद त कजावेद जाफरी और जानी लीवर अपने अभिनय से इस फिल्म को संभालते हैं.

कैसे पटरी पर लौटेगा बेहाल बौलीवुड

सिनेमा जगत पर भी कोरोना का कहर बुरी तरह बरपा है, चाहे बौलीवुड हो या क्षेत्रीय सिनेमा, सभी को कोरोना की मार झेलनी पड़ रही है. इंडस्ट्री के सभी डिपार्टमैंट और प्रोडक्शन के काम जैसे कास्टिंग, लोकेशन ढूंढ़ना, टेक स्काउटिंग, कौस्टयूम फिटिंग, वार्डरोब, हेयर ऐंड मेकअप आर्ट, साउंड व कैमरा, कैटरिंग, एडिटिंग, साउंड और वौयस ओवर जैसे सभी काम ठप पड़ गए हैं और ये काम करने वालों के पास कोई काम नहीं है और न ही कमाई का जरीया है.

एक्सपर्ट्स के अनुसार सिनेमाघरों के बंद होने, शूटिंग रुकने, प्रमोशनल इवेंट्स के न होने और इंटरव्यू रुकने के चलते टीवी और फिल्म इंडस्ट्री को आने वाले समय में भारी नुकसान झेलना पड़ेगा.

यह नुकसान कितना बड़ा होगा, इस के सही आंकड़ें अभी मौजूद नहीं हैं, लेकिन अनुमान है कि इंडस्ट्री को 100 से 300 करोड़ रुपए तक का नुकसान हो सकता है.

बंद पड़े हैं सिनेमाघर

तकरीबन 9,500 सिनेमाघरों को बंद कर दिया गया है और आने वाले कुछ हफ्तों तक इन के खुलने की कोई संभावना नहीं है. हर साल हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में 1,200 फिल्में बनती हैं. इन फिल्मों की कमाई मल्टीप्लैक्स से आती है, जो लौकडाउन के दौरान बंद हैं.

मार्च माह में सब से पहले रिलाइंस ऐंटरटेनमैंट ने रोहित शेट्टी की फिल्म ‘सूर्यवंशी’ की तारीख आगे बढ़ाई थी, जिस के बाद फिल्म ‘संदीप और पिंकी फरार’,  ‘हाथी मेरे साथी’ समेत 83 फिल्मों की रिलीज की तारीख टाल दी गई.

फिल्म ‘बागी’ 3 मार्च को रिलीज जरूर हुई, लेकिन उस की टिकटों की बिक्री नहीं हुई थी. इस का एक कारण भारत में बढ़ रहा कोरोना का खतरा था.

इसी तरह इरफान खान और राधिका मदान की फिल्म ‘अंग्रेजी मीडियम’ को बौक्स औफिस से निकाल ओटीटी प्लेटफार्म डिज्नी हौटस्टार पर रिलीज किया गया. क्षेत्रीय फिल्मों को भी रिलीज से रोक दिया गया था.

ये भी पढ़ें- सुशांत सिंह राजपूत के सुसाइड से डरे शेखर सुमन, बेटे को लेकर कही ये बात

ओटीटी प्लेटफार्म्स बैस्ट औप्शन नहीं 

रिलीज डेट आगे बढ़ जाने और सिनेमाघरों के बंद होने के चलते फिल्म, टीवी व वैब सीरीज की शूटिंग को रोक दिया गया, जिस पर लौकडाउन के बाद पूरी तरह विराम लग गया. ओटीटी प्लेटफार्म्स जैसे अमेजन प्राइम, नैटफ्लिक्स पर कुछ फिल्में रिलीज जरूर हो रही हैं, लेकिन यह हर फिल्म के लिए संभव नहीं है कि वह ओटीटी तक पहुंच पाए और न ही ओटीटी प्लेटफार्म्स हर बड़ी फिल्म को खरीद सकते हैं.

चर्चित तेलुगु फिल्म प्रोड्यूसर एसकेएन का कहना है कि लगभग 1,000 सीटों वाले सिनेमाघरों को महीने के 10 लाख रुपए का घाटा हो रहा है.

एसकेएन इस बात को ले कर चिंतित हैं कि ओटीटी प्लेटफार्म्स लंबी रेस का घोड़ा साबित होंगे या नहीं. वे कहते हैं, ‘‘मुझे नहीं लगता कि ओटीटी प्लेटफार्म्स उन फिल्मों को खरीदना चाहेंगे, जो सिनेमाघर में रिलीज नहीं हुई हैं, क्योंकि हमें नहीं पता कि कौन सी फिल्म सिनेमाघर में हिट साबित होगी और कौन सी नहीं. और यह साफ  है कि ओटीटी उन्हीं फिल्मों को खरीदना चाहते हैं, जो पहले से ही हिट हों.’’

इस समय ऐंटरटेनमैंट इंडस्ट्री में केवल ओटीटी प्लेटफार्म ही एसे हैं, जो फायदे में हैं. बहुचर्चित शोज और फिल्मों को लोग लौकडाउन के चलते बिंज वौच कर रहे हैं, जिन के जरीए इन प्लेटफार्म की व्युअरशिप बढ़ी है.

साल 2019 में इस इंडस्ट्री ने 17,300 करोड़ रुपए की कमाई की थी. इस से अंदाजा लगाया जा सकता है कि साल 2020 में इन प्लेटफार्म्स की कमाई के कितने रिकौर्ड टूटेंगे.

यह जगजाहिर है कि सिनेमाघरों में बौलीवुड फिल्मों की रिलीज व उन की मान्यता कितनी महत्वपूर्ण है, जोकि ओटीटी प्लेटफार्म्स पर होना मुश्किल है, दूसरी तरफ , ओटीटी प्लेटफार्म्स 5 करोड़ की फिल्म तो खरीद सकते हैं लेकिन वे 100 करोड़ की फिल्म खरीदने में असमर्थ होंगे. इसलिए बौलीवुड फिल्मों को सिनेमाघरों में रिलीज करना आवश्यक है.

इन फिल्मों की कमाई का एक बड़ा हिस्सा दिल्ली, मुंबई और चेन्नई समेत भारत के 10 महानगरों से आता है, जो फिलहाल कोरोना वायरस के हौटस्पौट हैं. इस स्थिति में बौलीवुड की बिग बजट फिल्मों का भविष्य अंधकारमय है.

कर्मचारियों की है हालत पस्त

बड़े सितारे आएदिन सोशल मीडिया के जरीए अपनी उपस्थिति दिखाते हैं. किसी को अपने एसी खराब होने की चिंता है, तो कोई बरतन धोने को प्रोडक्टिविटी के रूप में पेश कर रहा है. परंतु, फिल्मों के बैकग्राउंड में काम करने वालों के लिए यह समय बेरोजगारी और भुखमरी ले कर आया है.

फिल्मों की शूटिंग और उस से जुड़े सभी प्रोडक्शन और प्रमोशन के काम बंद होने का इतना असर बड़े बैनर्स और एक्टर्स पर नहीं पड़ा है, जितना फिल्मों से जुड़े छोटे स्तर पर उतना काम करने वाले कर्मचारियों पर हुआ है. कू्र्र मेंबर्स, दिहाड़ी पर काम करने वाले और छोटेमोटे प्रोजेक्ट्स से पैसा कमाने वाले लोगों के लिए जीवन निर्वाह करना मुश्किल हो गया है. वे दो 2 वक्त की रोटी के लिए भी मोहताज हो चुके हैं.

प्रोड्यूसर्स गिल्ड औफ  इंडिया के अनुसार, बौलीवुड का काम ठप होने से इंडस्ट्री से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े तकरीबन 10 लाख लोगों पर कोरोना के चलते प्रभाव पड़ रहा है. कई लोग बिना काम के रहने को मजबूर हैं. इस से बौलीवुड में दिहाड़ी पर काम करने वाले 35,000 कर्मचारी अत्यधिक प्रभावित हुए हैं.

सिने एंड टीवी आर्टिस्ट्स एसोशिएशन यानी सिनटा द्वारा बौलीवुड के ए लिस्टर सितारों से इन कर्मचारियों के लिए डोनेशन की अपील की गई, जिस के चलते रोहित शेट्टी, सलमान खान, रितिक रोशन, अमिताभ बच्चन और विद्या बालन उन सितारों में से थे, जो दिहाड़ी कर्मचारियों के लिए फंड व राशन देने के लिए सामने आए.

चिंता की बात यह है कि आखिर कब तक डोनेशन के जरीए इन कर्मचारियों का घर चलेगा. ज्ञातव्य है कि मदद हर कर्मचारी तक नहीं पहुंच रही व एसे कितने ही अभिनेता हैं, जो खुद चिंता में हैं कि उन के खर्चे कैसे पूरे होंगे, परंतु पोपुलैरिटी के चलते वे मदद मांगने में असमर्थ हैं.

नए एक्टर्स और पैपराजी भी चपेट में

मुंबई महानगरी है और देश के अलगअलग हिस्सों से युवा यहां अपने सपने पूरे करने आते हैं. किराए के घरों में रहने वाले इन युवाओं को भी अपने घरों तक लौटना पड़ा. यह सभी छोटेमोटे प्रोजेक्ट कर अपना निर्वाह कर रहे थे, पर अब कोई काम न होने पर इन्हें अपने मातापिता पर आश्रित होना पड़ रहा है.

हालत यह है कि एकसाथ मिल कर जी लोग जिस घर का किराया दे रहे थे, उन में से कई अपने घर लौट चुके हैं. इस के चलते जो रह गया है, उसे पूरा किराया खुद देना पड़ रहा है. यह स्थिति कब तक बनी रहेगी, किसी को कोई अंदाजा नहीं है.

आएदिन टीवी एक्टर्स के एयरपोर्ट लुक्स, जिम लुक्स, वैडिंग लुक या सीक्रेट डेट लुक को कैमरे में कैद करने वाले पैपराजी भी कोरोना की मार से नहीं बचे हैं. न अब सैलिब्रिटी घर से निकल रहे हैं और न ही ये उन्हें कैप्चर कर पा रहे हैं.

ये भी पढ़ें- सांवलेपन को लेकर बिपाशा बसु ने किया ये इमोशनल पोस्ट, बताई अपनी जर्नी 

आमतौर पर एक दिन में 11,000 से 20,000 रुपए कमाने वाले इन पैपराजी के लिए कमाई के रास्ते बंद हो गए हैं. डायरैक्टर और प्रोड्यूसर रोहित शेट्टी व एक्टर रितिक रोशन ने इन के लिए डोनेशन दिया है.

ऐसे संभलेगी फिल्म इंडस्ट्री

लौकडाउन खुलने के बाद फिल्म इंडस्ट्री को पटरी पर वापस आना है. लेकिन यह इतना आसान नहीं है. फिल्म के निर्मातानिर्देशकों को प्रीप्रोडक्शन काम को बेहद सावधानी से पूरा करना होगा.

यदि स्टाफ  के एक व्यक्ति को भी कोरोना संक्रमण होता है, तो सारा काम 3 हफ्तों तक रोक दिया जाएगा. अंतर्राष्ट्रीय यातायात पर प्रतिबंध होने पर ज्यादा से ज्यादा ग्रीन स्क्रीन पर शूटिंग होगी, जिस से फिल्में अलग तरह से बनेंगी. इसी तरह से अनेक बदलाव होने वाले हैं.

प्रोडक्शन को जारी करने के लिए प्रोड्यूसर्स गिल्ड औफ  इंडिया ने बैक टु एक्शन रिपोर्ट जारी की है. इस रिपोर्ट में औन और औफ  स्टेज व प्री और पोस्ट प्रोडक्शन के सभी डिपार्टमैंट्स के लिए निर्देश दिए गए हैं, जिन की मुख्य बातें निम्नलिखित हैं:

– लौकडाउन खुलने के पहले 3 महीनों में सैट पर आने वाले हर शख्स का टैंपरेचर चैक होगा व उस के द्वारा सैनिटाइजेशन, सोशल डिस्टैसिंग, जहां तक संभव हो, वर्क फ्रौम होम का पालन किया जाएगा. साथ ही, कम कास्ट और क्रू व बाहरी लोकेशनों में शूटिंग कम करने को ध्यान में रखा जाएगा. सैट पर मैडिकल टीम का होना अनिवार्य होगा.

– सैट पर सभी को हर थोड़ी देर में हाथ धोने होंगे व ट्रिपल लेयर मास्क हर समय लगाए रखना होगा. सभी को 3 मीटर की दूरी का पालन करना होगा और हाथ मिलाने, गले लगने व किस करने से परहेज करना होगा.

– सैट पर आने वाले हर क्रू मैंबर और स्टाफ  को अपनी फिटनैस और स्वास्थ्य के सही होने की पुष्टीकरण के लिए फार्म भरना होगा और किसी भी प्रोजैक्ट को साइन करने से पहले स्वास्थ्य की सही जानकारी देनी होगी.

– शूटिंग के दिनों में हर व्यक्ति की उपस्थिति का रिकौर्ड रखा जाएगा. सभी को शूटिंग से 45 मिनट पहले सैट पर पहुंचना होगा, ताकि उन्हें कोरोना से बचाव के तरीके बताए जाएं और नई दिनचर्या उन की आदत बन जाए.

– जो लोग घर से काम कर सकते हैं, उन्हें घर से ही काम करना होगा. 60 वर्ष से ज्यादा उम्र के व्यक्ति और किसी भी तरह की बीमारी से ग्रसित व्यक्ति को घर से काम करना अनिवार्य होगा.

देखना यह है कि आखिर कब तक यह स्थिति बनी रहती है. सभी की कोशिश यही है कि काम जल्दी से जल्दी पटरी पर लौट आए और रफ्तार पकड़ ले.

बौलीवुड में फिल्म, टीवी सीरियल व वेब सीरीज की शूटिंग को लेकर अनिश्चितता कायम

कोरोना महामारी की वजह से 17 मार्च से फिल्म,टीवी सीरियल व वेब सीरीज की शूटिंग बंद होने के साथ ही बौलीवुड पूरी तरह से ठप्प है. जिसके चलते लगभग पंाच लगभग दिहाड़ी मजदूर गंभीर आर्थिक संकट व भूखमरी के शिकार हो रहे हैं. बौलीवुड से जुड़े तमाम दिहाड़ी मजदूर तो मुंबई छोड़कर अपने अपने गांव जा चुके हैं. कई कलाकार व तकनीशियन भी आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं. पर निर्माताओं या सरकार की इस बात की कोई परवाह नही है.
मई माह के दूसरे सप्ताह से फिल्म निर्माताओं ने महाराष्ट् के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे संग बैठक कर अपनी विपत्ति का रोना रोया और स्टूडियो के किराए में छूट आदि की मांग करने के अलावा शूटिंग शुरू करने की इजाजत मांगी.मगर इन निर्माताओं ने सरकार के सामने तकनीशियन या ज्यूनियर डांसर, या स्पाॅट ब्वाॅय सहित किसी भी दिहाड़ी मजदूर की समस्या का रोना नहीं रोया.बहरहाल, महाराष्ट् सरकार के सांस्कृतिक विभाग ने 31 मई की देर शाम सोलह पन्नों की गाइडलाइन्स के साथ फिल्म, टीवी सीरियल व वेब सीरीज की शूटिंग शुरू करने के आदेश जारी कर दिए थे.सरकार की तरफ से गाइड लाइंस जारी किए जाने के 22 दिन बाद भी शूटिंग शुरू नहीं हो पायी है. इसकी मूल वजह यह है कि ‘सिंटा’और‘एफडब्लू वाय सी ई’’ के अनुसार महाराष्ट्र सरकार की गाइड लाइंस में कलाकारों ,तकनीशियन और दिहाड़ी मजदूरों के हितों को नजरंदाज किया गया है.
उधर फिल्म निर्माता संगठनों ने बीस जून से शूटिंग शुरू करने के कृत संकल्प के साथ सरकार की गाइड लाइंस के अनुसार मुंबई में ‘फिल्मसिटी’स्टूडियो के संचालक के पास श्ूाटिंग की इजाजत के लिए कागजी काररवाही पूरी कर ली.मगर निर्माताओं के संगठन ने कलाकारों व कामगारों के हितांे पर ध्यान दिए बगैर ‘सिंटा’ और ‘एफडब्लू वाय सी ई’के सदस्यांे को फोन कर शूटिंग पर आने के लिए आदेश देने शुरू कर दिए.इसी बीच निर्माताओं के संगठन‘इम्पा’ने एक अलग तरह की प्रेस विज्ञप्ति जारी कर दी.

इन हालातों के बीच 22 जून को मंुबई में ‘‘सिंटा’’और ‘‘एफडब्लू वाय सी ई’’से जुड़े लोगो ने ‘‘वच्र्युअल जूम बैठक’’ कर इस मसले पर विस्तृत बातचीत कर कुछ नई गाइड लाइन्स तैयार की.इस बैठक में ‘‘सिंटा’’की तरफ से मनोज जोशी(वरिष्ठ उपाध्यक्ष),अमित बहल(वरिष्ठ संयुक्त सचिव), राजेश्वरी सचदेव(संयुक्त सचिव), राशिद मेहता (कार्यकारणी सदस्य),संजय भाटिया (कार्यकारणी सदस्य) और अयूब खान (कार्यकारणी सदस्य) तथा ‘एफडब्लू वाय सी ई’की तरफ से बी एन तिवारी (अध्यक्ष) व गंगेश्वर श्रीवास्तव(कोषाध्यक्ष) ने हिस्सा लिया.इस बैठक में शूटिंग के वक्त सेट की दिक्कतें,पारिश्रमिक राशि अदा करने की अवधि,शूटिंग करने की समयावधि सहित कई मुद्दो पर गंभीरता से विचार विमर्श किया गया. इसके बाद ‘सिंटा’’और ‘‘एफडब्लू वाय सी ई’’की तरफ से संयुक्त विज्ञप्ति जारी की गयी, जिसमें कहा गया है कि,‘‘हमारे संगठनों ने कलाकारों, तकनीशियनों,वर्करों व अन्य क्राफ्ट से जुड़े लोगों के हितों के संबंध में कई बार निर्माताओं के संगठन‘‘इंडियन फिल्म एंड टीवी प्रोड्यूसस् कौंसिल’’(आईएफटीपीसी )के संज्ञान में लेकर आए,मगर ‘आईएफटीपीसी’की तरफ से कोई स्पष्ट जवाब न आने से भ्रम व अनिश्चितता की स्थिति बनी हुई है. इतना ही नहीं अब निर्माता एकतरफा काम करते हुए हमारे संगठनों से जुड़े कलाकारों व वर्करों को फोनकर शूटिंग के लिए बुला रहे हैं.यह निर्माता ‘कोविड 19’’के आवश्यक सुरक्षा नियमो पर घ्यान देने की भी बात नही कर रहे हैं.’’

ये भी पढ़ें- एक्टिंग की दुनिया में 6 साल पूरे होने पर मोहसिन खान ने मनाया जश्न, देखें फोटोज

इतना ही नही इस प्रेस विज्ञप्ति में निर्माताओ पर आरोप लगाते हुए कहा गया है-‘‘यह बताते हुए हमें बड़ा अफसोस है कि‘कोविड 19’’महामारी के बीच सरकार द्वारा लाॅक डाउन की घोषणा से पहले अभिनेताओं, कामगारों और तकनीशियनों के हक के कमाए हुए पारिश्रमिक राशि का काफी समय से बकाया राशि,जिसका भुगतान तुरंत करने के लिए सभी निर्माताओं को सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा जारी किए गए सख्त निर्देशों के बाद भी,निर्माताओं ने अभी भी हमारे सदस्यों की बकाया देय राशि,उनके हक के पैसे नहीं दिए हैं.इसलिए हमारे सभी सदस्यों की पूरी बकाया राशि पुनः शूटिंग शुरू होने से पहले दे देना चाहिए.’’

इसके अलावा ‘‘सिंटा’’और ‘‘एफडब्लू वाय सी ई’’ दोनो ने संयुक्त रूप से निम्न मुद्दों पर हर पक्ष से संज्ञान लेेकर उचित समाधन की मांग भी की है.

‘‘सिंटा’’और ‘‘एफडब्लू वाय सी ई’’की प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार यह मुद्दे इस प्रकार हैंः

1-हर दिन सिर्फ आठ घंटे श्ूाटिंग ंके नियम का सख्ती से पालन हो.

2-दैनिक भुगतानः दैनिक रूप से सहभागी अभिनेताओं,तकनीशियनों व श्रमिको को भुगतान दिन के अंत में किया जाए.

3-मासिक भुगतानः कॉट्रेक्ट पर काम कर रहे सभी कर्मचारियों, अभिनेताओं और तकनीशियनों को 30 दिन में भुगतान किया जाए.

3-कंवेयंसः सभी को हर दिन का कंवेयंस (आने-जाने का किराया)दिया जाए.

4-साप्ताहिक छुट्टीः हर हफ्ते एक दिन का साप्ताहिक अवकाश दिया जाए.

5-सरकार के निर्देशों के अनुसार कड़े स्वास्थ्य व सुरक्षा प्रोेटोकॉल का पालन किया जाए.

6-बीमाः ‘‘कोविड -19’’विशेष  कवरेज के साथ स्वास्थ्य और जीवन बीमा.‘कोविड -19’’संक्रमित होकर यदि किसी अभिनेता, श्रमिकां या  तकनीशियनों की मृत्यू हो जाए तो उनके लिए पचास लाख रूपए के  बीमा कवर की मांग.

7-तय पारिश्रमिक राशि में कोई कटौती नहींःकिसी भी अभिनेता,श्रमिक या तकनीशियन के मद से कोई पारिश्रमिक राशि कटौती / छूट नहीं की जाएगी.

8-किसी को भी काम से निकाला न जाएःकिसी भी अभिनेता/ तकनीशियन/ श्रमिक को धनराशि में कटौती न मानने पर न तो उसे परेशान किया जाए और न ही सीरियल से निकाला जाए.

9-इमरजेंसी मेडिकल सुिवधाएँः स्टूडियो और लोकेशन पर एक डॉक्टर और मेडिकल स्टाफ (नर्स आदि) के साथ सभी उपकरणों से युक्त एक एंबुलेस सेट के बाहर तैनात रहे.

‘‘सिंटा’’और ‘‘एफडब्लू वाय सी ई’’ ने मांग की है शूटिंग शुरू करने से पहले उपर्युक्त मुद्दों पर पूरी स्पष् टता हो जानी चाहिए,जिससे अभिनेता,तकनीशियन,श्रमिक किसी के भी जीवन के साथ किसी भी तरह का जोखिम न हो.‘‘सिंटा’’और ‘‘एफडब्लू वाय सी ई’’अपनी तरफ से किसी के भी जीवन का जोखिम नहीं उठा सकता.

ये भी पढ़ें- सुशांत की औनस्क्रीन बहन को फिर आई उनकी याद, शेयर किया इमोशनल पोस्ट

‘‘सिंटा’’और ‘‘एफडब्लू वाय सी ई’’अपनी तरफ से पिछले डेढ़ माह से इन मुद्दों को उठाते आ रहे हैं,मगर फिल्म निर्माता संगठन और सरकार के कानों पर जूूं नहीं रेंग रही है.सभी अपनी अपनी ठपली अपना अपना राग अलापने में लगे हुए हैं.

मल्टीप्लैक्स और फिल्म निर्माताओं की लड़ाईः सिनेमा के लिए कितनी नुकसानदेह

सिनेमा में होंगे अमूलचूल बदलाव

कोरोना की बीमारी के चलते पूरे विश्व में लॉक डाउन है, जिससे आम इंसान अपने अपने घरों में कैद है. तो वहीं पूरे विश्व में हर इंसान के साथ हर इंडस्ट्री पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं.  इससे पूरे विश्व के साथ साथ भारत की फिल्म व टीवी इंडस्ट्री भी अछूती नही है.  अफसोस की बात यह है कि संकट की इस घड़ी में आपस में बैठकर सिनेमा की बेहतरी के लिए किसी नई राह को तलाशने की बजाय कुछ भारतीय फिल्म निर्माताओं ने एक तरफा निर्णय लेते हुए अपनी फिल्मों को थिएटर मल्टीप्लैक्स व सिंगल सिनेमाघरों की बजाय सीधे ओटीटी प्लेटफार्म पर प्रदर्शन के लिए बेच कर अपनी जेबें भर ली हैं. इस पर निर्माताओं का तर्क है कि उनकी फिल्में फरवरी माह से तैयार थीं,  कोरोना के चलते पता नहीं कब सिनेमाघर खुलेंगे, इसलिए उन्होने अपनी फिल्म की ताजगी को बरकरार रखने के मकसद से यह कदम उठाया है.

मगर फिल्म निर्माताओं के इस कदम से फिल्म निर्माताओं और मल्टीप्लैक्स मालिकों के बीच तलवारे खिंच गयी हैं. इसके‘यदि दूरदर्शी परिणामों पर गौर किया जाए, तो इसका सबसे बुरा असर सिनेमा पर ही पड़ने वाला है. क्योंकि फिल्म निर्माता और सिनेमाघर मालिक तो आते जाते रहेंगे, क्योंकि कुछ भी नश्वर नहीं है. मगर इनकी आपसी खींचतान से सिनेमा और फिल्म उद्योग का जो नुकसान होगा, उसकी भरपाई कौन करेगा? इसका जवाब देने के लिए कोई तैयार नही है. मगर जिस तरह के हालात बन गए हैं, उसके मद्दे नजर अब भारतीय फिल्म उद्योग कई खेमों में न सिर्फ बंटा हुआ नजर आएगा, बल्कि यह खेमें यदि एक दूसरे के साथ ‘‘अछूत’’जैसा व्यवहार करते हुए नजर आएं, तो किसी को भी आश्चर्य नही होगा.

15 मार्च से पूरे देश के सिनेमाघर बंद हैं

वास्तव में कोरोना के चलते 15 मार्च से पूरे देश के सभी सिनेमाघर बंद चल रहे हैं. 17 मार्च से फिल्म व टीवी सीरियलों की शूटिंग बंद चल रही हैं. इसी के चलते अब टीवी चैनलों, मल्टीप्लैक्स व सिंगल सिनेमाघर मालिकों के साथ साथ ओटीटी प्लेटफार्म के सामने भी आर्थिक संकट गहरा गया है.

ये भी पढ़ें- आर्थिक तंगी झेल रहे Hamari Bahu Silk की टीम की मदद के लिए आगे आया CINTAA और FWICE, कही ये बात

15 मार्च से अब तक करीबन दस सप्ताह हो गए हैं. एक भी फिल्म प्रदर्शित नही हो पायी हैं. इनमें छोटे बजट से लेकर बडे़ बजट तक की फिल्मों का समावेश है. कुछ फिल्मों में कई सौ करोड़ रूपए लगे हुए हैं और यह फिल्में मार्च, अप्रैल व मई माह में रिलीज होनी थीं. पर कोरोना के चलते लॉकडाउन खत्म होने को लेकर अनिश्चितता की स्थिति बनी हुई है. तो वहीं लॉक डाउन खत्म होने के बाद भी एकल सिनेमाघर और मल्टीप्लैक्स कब खुलेंगे और इनमें दर्शक कब फिल्म देखने जाएगा, इसको लेकर किसी के पास कोई ठोस जवाब नही है.

सिनेमाघरों को नजरंदाज कर फिल्म निर्माता चले ओटीटी प्लेटफार्म की शरण में

इन सूरतों में कुछ फिल्म निर्माताओं ने ओटीटी प्लेटफार्म को अपनी फिल्में बेचने का फैसला कर लिया. जैसे ही खबरें आयी कि ‘83’, ‘राधे’ व ‘लक्ष्मी बम’ जैसी बड़े कलाकारों की फिल्में ओटीटी प्लेटफार्म पर रिलीज होंगी,  वैसे ही सिनेमाघर मालिकों में खलबली मची और उन लोगों ने मिलकर फिल्म निर्माताओ, कलाकारों व तकनीशियनों से आग्रह किया कि वह ऐसा ना करें. अब तक के नियमानुसार फिल्में पहले सिनेमाघर में ही प्रदर्शित करें. सिनेमाघर मालिकों ने तो यहां तक कहा है कि वह सरकार के निर्देशों का इंतजार कर रहे हैं और सरकार से हरी झंडी मिलते ही सिनेमाघर के दर्शकों की क्षमता के 20 प्रतिशत दर्शकों के साथ भी सिनेमाघरों को खोलने के लिए तैयार हैं. उधर 18 मई को पीवीआर मल्टीप्लैक्स के मालिकों ने ऐलान कर दिया कि यदि सब कुछ ठीक रहा तो वह कुछ सुरक्षात्मक नियमों के साथ पीवीआर मल्टीप्लैकस के सिनेमाघरों में फिल्म का प्रदर्शन शुरू करने वाले है.

खैर, मल्टीप्लैक्स मालिकों के आग्रह के एक सप्ताह बाद ही निर्माता शील कुमार व रॉनी लाहिड़ी ने फिल्म ‘गुलाबो सिताबो’,  टीसीरीज ने‘झुंड’और ‘लूडो’को ओटीटी प्लेटफार्म ‘अमैजॉन प्राइम’को बेच दिया. ज्ञातब्य है कि ‘गुलाबो सिताबो’ और ‘झंुड’में अमिताभ बच्चन तथा ‘लूडो’में अमिताभ बच्चन के सुपुत्र अभिषेक बच्चन की मुख्य भूमिका है. अमैजॉन प्राइम ने 12 जून को अमिताभ बच्चन और आयुश्मान खुराना के अभिनय से सजी फिल्म‘‘गुलाबो सिताबो’’को स्ट्रीम रिलीज करने का एलान किया है.

आयनॉक्स, पीवीआर और कार्नीवल मल्टीप्लैक्स सिनेमाघर के मालिकों ने किया विरोध

आयनॉक्स, पीवीआर और कार्नीवल मल्टीप्लैक्स की तरफ से निर्माताओं के इस कदम का जोर शोर से विरोध किया गया. मल्टीप्लैक्स के मालिकों का दावा है कि वह दर्शकों तक अच्छे ढंग से सिनेमा दिखाने के लिए कई वर्षो से लगातार लंबी रकम लगाकर मल्टीप्लैक्स खड़े कर उसमें बेहतरीन व आधुनिक सुविधाएं मुहैय्या कराने के लिए प्रयासरत हैं. और वह फिल्म निर्माताओं को अपना सहयोगी मानकर चल रहे थे, मगर अब उनके इस कदम से उन्हे कुछ कठोर कदम उठाने पड़ सकते हैं.

फिल्म निर्माताओं की दलील

मल्टीप्लैक्स मालिकों की तरफ से जो कुछ कहा जा रहा है, उस पर यदि ‘सिनेमा’केे भलाई के नजरिए से गौर किया जाए, तो उनका तर्क सही है. मल्टीप्लैक्स से भारतीय सिनेमा के विकास में क्रांति आयी. क्योंकि भारत में मल्टीप्लैक्स आने के बाद से ही सिनेमाघरों में दर्शकों की संख्या तेजी से बढ़ी और भारत में पांच सौ से हजार करोड़ रूपए की लागत वाली फिल्मों का निर्माण का सिलसिला शुरू हुआ है. मगर मल्टीप्लैक्स के मालिकों ने जब फिल्म को सीधे ‘ओटीटी’ प्लेटफार्म पर दिए जाने का विरोध किया, तो ‘‘फिल्म एंड टीवी प्रोड्यूसर्स गिल्ड’’ने दो पन्ने का एक पत्र जारी कर अपना पक्ष स्पष्ट करते हुए कहा कि निर्माता को अपना फायदा देखते हुए वर्तमान हालात में ओटीटी प्लेटफार्म को फिल्म देने से रोका नहीं जा सकता.

उसके बाद एक छुटभैए निर्माता ने गिनाया कि मल्टीप्लैक्स किस तरह से समोसे व अन्य खाद्य सामग्री बेचकर धन कमाते आए हैं. इस छुटभैए निर्माता ने यहां तक कहा है कि मल्टीप्लैक्स में अपनी फिल्म को प्रदर्शित करने के लिए छोटे बजट की फिल्म निर्माताओं को अपने जूते घिसने पड़ते हैं, मगर छोटे बजट की फिल्में मल्टीप्लैक्स वाले जल्दी प्रदर्शित नहीं करते.

छोटे फिल्म निर्माताओं के साथ मल्टीप्लैक्स व ओटीटी प्लेटफार्म का रहा है अपमानित करने वाला रवैया

माना कि इस छुटभैए निर्माता का यह तर्क सही है. मगर वह इस तथ्य को कैसे नजरंदाज कर गए कि छोटे बजट की फिल्मों के साथ अब तक ‘ओटीटी’ प्लेटफार्म’ का भी यही रवैया रहा है. छोटे बजट में नए कलाकारों को लेकर बेहतरीन कथानक पर फिल्म बनाने वाला निर्माता निर्देशक तो मल्टीप्लैक्स और ओटीटी प्लेटफार्म दोनो से ठोकर खाने के साथ ही अपमानित होता  आया है.

परिवर्तन संसार का नियमः

वहीं कुछ लोग सिनेमाघर मालिकों और फिल्म निर्माताओं की इस लड़ाई यानी कि बहती गंगा में अपने हाथ धोने के लिए अजीबोगरीब तर्क दे रहे हैं. एक शख्स ने  अमिताभ बच्चन को महान बताने के साथ ही फिल्म ‘गुलाबो सिताबो’ के निर्माता के कदम को सही ठहराते हुए मल्टीप्लैक्स वालों को चेताया है कि वह यह न भूले कि कल को वह नही भी रह सकते है. इस शख्स ने तर्क दिया है कि द्वितीय विश्वयुद्ध से पहले भारत में दमानिया के पचास सिनेमाघर थे. मगर द्वितीय विश्व युद्ध खत्म होने के बाद दमनिया के सिनेमाघर कहां गए? आज की पीढ़ी तो यह भीं नहीं जानती कि दमानिया सिनेमाघर भी हुआ करते थे. इस तरह का अजीबोगरीब तर्क देकर धमकाने वाले लोग प्रकृति के नियम को भूल जाते है कि इस संसार में स्थायी कुछ नही है. मल्टीप्लैकस से पहले  सिंगल सिनेमाघर हुआ करते थे. पर अब यह न के बराबर ही रह गए हैं. सिर्फ मुंबई शहर में पचास से अधिक सिंगल सिनेमाघर खत्म हो गए, किसे पता? क्या मुंबई की नई पीढ़ी को पता है कि मुंबर्ई के अंधेरी इलाके में अंबर, औस्कर व मायनर सिनेमाघर की जगह पर अब ‘शॉपर्स स्टॉप’ नामक शॉपिंग माल है. कहने का अर्थ यह है कि किसी को भी ‘भारतीय सिनेमा’और‘भारतीय फिल्म इंडस्ट्री’ को बचाने की चिंता नही है, सभी कुतर्क करने में लगे हुए हैं.

दक्षिण के मल्टीप्लैक्स ने किया जीवा की फिल्मों का बहिस्कारः

इधर बौलीवुड मुंबई में कुतर्क करते हुए लोग अपनी अपनीतलवारें भांज रहे हैं, उधर दक्षिण भारत के अभिनेता जीवा ने जब अपनी फिल्म ओटीटी प्लेटफार्म को दी, तो दक्षिण के सिनेमाघर मालिकों ने जीवा की सभी फिल्मों का हमेशा के लिए बहिस्कार करने का ऐलान कर दिया. उसके बाद दक्षिण के किसी भी कलाकार या निर्माता ने अपनी फिल्में को ओटीटी प्लेटफार्म पर देने की बात नही की. वहां पर सभी चुप हैं.

ये भी पढ़ें- शिवांगी जोशी के बर्थडे पर हुआ दादा का निधन, फैंस से कही ये बात

ओटीटी प्लेटफार्म पर फिल्म के जाने से खुश नहीं कलाकारः

ओटीटी प्लेटफार्म पर फिल्मों को बेचने के निर्णय से कलाकार खुश नही है. मगर ‘गुलाबो सिताबो’में अमिताभ बच्चन हैं,  इसलिए कलाकार चुप हैं. सूत्रों की माने तो कलाकारों के बीच तूफान के आने से पहले की खामोशी दिखाई दे रही है. कुछ कलाकारों का दावा है कि उन्होंनें फिल्म के लिए कई तरह की तैयारी की थी. मेकअप में लंबा समय खर्च किया था. मेहनत से फिल्म बनायी थी कि दर्शक सिनेमाघर में बडे़ परदे पर उनको देखेगा, और अब जब यही फिल्म ओटीटी प्लेटफार्म पर आने जा रही है, तो यह उनकी मेहनत के साथ पूरा अन्याय है. इतना ही नही कुछ कलाकार सिनमाघरों की बजाय सीधे ‘ओटीटी’प्लेटफार्म पर फिल्म को प्रदर्शित करने के निर्णय को कलाकार के स्टारडम को खत्म करने का कदम मान रहे हैं. जबकि कुछ कलाकारों का मानना है कि एक फिल्म में अभिनय करने के बाद कलाकार के वश में नही रहता कि वह तय करें कि उनकी फिल्म कब,  कैसे और कहां रिलीज होगी.

आयुष्मान खुराना की बेबसीः

बौलीवुड की नई पीढ़ी के कलाकारों में स्टारडम का स्वाद चखने वालों में आयुष्मान खुराना भी हैं, जिनकी फिल्म ‘‘गुलाबो सिताबो’’12 जून को ‘अमैजॉन प्राइम’ पर आएगी. फिलहाल आयुश्मान खुराना ने चुप्पी साध रखी है. पर सूत्र बता रहे हैं कि उनकी चुप्पी की पहली वजह यह है कि उन्हे इस फिल्म में पहली बार अमिताभ बच्चन के साथ अभिनय करने का अवसर मिला. दूसरी वजह यह है कि इस फिल्म के निर्माण से जुड़े होने के साथ इस फिल्म के निर्देशक सुजीत सरकार हैं, जिन्होने आयुष्मान ख्ुाराना को पहली बार फिल्म‘‘विक्की डोनर’’में अभिनय करने का अवसर दिया था. तो आयुष्मान खुराना सोच रहे हैं कि उन्होने सुजीत सरकार को ‘गुरू दक्षिणा’चुका दी.

सिनेमाघर वाला आनंद ओटीटी प्लेटफार्म पर नहीं

फिल्मों के ओटीटी प्लेटफार्म पर रिलीज होने के सवाल पर अभिनेता पंकज त्रिपाठी ने बड़ी साफगोई के साथ कहा- ‘‘कलाकार के तौर पर मुझे ठीक से जानकारी नही है. क्योंकि मैं बिजनेस को बहुत कम समझता हूं. हालांकि दर्शकों का जो अनुभव थिएटर में होता है, वह तो ओटीटी प्लेटफॉर्म पर नहीं होगा. बड़े स्क्रीन पर फिल्म देखने का जो मजा होता है, वह टीवी की 20 से 25 इंच की स्क्रीन पर या मोबाइल पर देखते समय नही मिल सकता. मोबाइल, टीवी तथा थिएटर@सिनेमाघर के अंदर फिल्म देखने का अनुभव एक जैसा कभी नही हो सकता. मगर फिलहाल थिएटर बंद हैं. इस वक्त लोगों की सेहत जरूरी है, इसलिए जिसकी जितनी क्षमता है वह उस हिसाब से देख ले. ’’

क्या हर फिल्म को ओटीटी प्लेटफार्म से हो सकेगी सही कमायी?

फिल्म‘‘गुलाबो सिताबो’’के निर्माता का दावा है कि अमैजॉन ने उन्हे संतोषप्रद बहुत बड़ी रकम दी है. हो सकता है कि वह सच कह रहे हों. मगर हमें इस बात पर गौर करना चाहिए कि ‘कोरोना’महामारी के फैलने से पहले जब निर्माता अपनी फिल्म को पहले भारतीय और विदेशी सिनेमाघरों में प्रदर्शित करने के बाद ओटीटी प्लेटफार्म को बेचते थे, उस वक्त उन्हें एक फिल्म से जो आमदनी होती थी, क्या उतने पैसे निर्माता को ओटीटी प्लेटफार्म देते रहेंगे?सच तो ही है कि ओटीटी प्लेटफार्म कभी भी उतनी बड़ी राशि हर फिल्म को नहीं दे पाएगा, जितनी राशि एक फिल्म निर्माता अपनी फिल्म को सिनेमाघर,  टीवी और ओटीटी प्लेटफार्म तीनों जगहों पर प्रदर्शित कर कमाता रहा है. इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि कोरोना महामारी में सिनेमाघर बंद होने, टीवी व सेटेलाइट चैनलों पर पुराने कार्यक्रमों के प्रसारण के चलते ‘ओटीटी’प्लेटफार्मके दर्शक इस वक्त बढ़ें होंगे, मगर जब सब कुछ सामान्य हो जाएगा,  तब क्या यही हालात बरकरार रहेंगें.

क्या ओटीटी प्लेटफार्म पर हर भारतीय फिल्म के दर्शक हैं

ओटीटी प्लेटफार्म की फिल्में व वेब सीरीज एक साथ करीबन 200 देशों में देखी जाती हैं, इसलिए ओटीटी प्लेटफार्म उन्ही फिल्मों को प्राथमिकता देगा, जिनमें बड़े दर्शक हों या जिनकेदर्शक विदेशों में भी हों. ऐसे में हर कलाकार की किसी भी फिल्म को ओटीटी प्लेटफार्म कभी नही लेगा. सबसे बड़ा कटु सत्य यह है कि ग्लोबलाइजेशन के इस युग में भी अब तक विश्व के चंद देशों में ही भारतीय फिल्में देखी जाती रही हैं. इसके अलावा इस बात को भी नजरंदाज नही किया जा सकता कि कई बड़े भारतीय कलाकारों के अभिनय से सजी हॉलीवुड फिल्मों को पूरे विश्व में नापसंद किया जा चुका है. इसलिए लंबे समय तक बौलीवुड फिल्मों के लिए ‘ओटीटी’ प्लेटफार्म एकमात्र विकल्प नही हो सकता.

लोग स्वार्थ की लड़ाई लड़ते हुए आवश्यक सवालों को नजरंदाज कर रहे हैं

वास्तव में फिलहाल निजी स्वार्थ के चलते ओटीटी प्लेटफार्म, मल्टीप्लैक्स सिनेमाघर के मालिक और फिल्म निर्माता आपस में तलवारें लेकर खड़े हो गए हैं, मगर किसी को भी ‘बेहतर सिनेमा’और ‘भारतीय फिल्म उद्योग’को बचाने की कोई चिंता नहीं है. फिल्म इंडस्ट्री को लेकर कई सवाल हैं, जिन पर विचार करने की जरुरत है.

सिनेमा में आएगा अमूल चूल बदलाव

हकीकत में कोरोना महामारी और लॉक डाउन के खात्मे के बाद हर इंसान के साथ साथ सिनेमा को भी अपने अंदर अमूलचूल बदलाव करने ही पड़ेंगे. इस संंबंध में बौलीवुड से जुड़े कई लोगों की राय है कि, ‘‘अब हम उस हालात में पहुंच गए हैं, जहां हमें सबसे पहले फिल्मों के बजट पर अंकुश लगाना पडे़गा. अब कई सौ करोड़ रूपए की लागत से भव्य फिल्मों का निर्माण कुछ वर्षों तक संभव नही. तो वही अब कलाकारों के नाम से भी आम लोगों का मोहभंग हो गया है. अब बदले हुए हालात में दर्शक फिल्म में अच्छी कहानी के साथ मनोरजन की चाह रखेगा. जिसके चलते अब हर कलाकार , निर्देशक,  लेखक,  तकनीशियन , मेकअपमैन,  हेअर ड्रेसर वगैरह को मानकर चलना चाहिए कि अब फिल्में तभी बन सकती हैं, जब यह सभी अपनी पारिश्रमिक राशि में भारी कटौती करेंगे. इसके अलावा लेखक को उचित सम्मान देते हुए बेहतरीन व जमीन से जुड़ी कहानियां लिखवानी पड़ेंगीं. क्योंकि ‘लॉक डाउन’ खत्म होने और सिनेमाघरो के पुनः खुलने के बाद सिनेमाघरों तक दर्शकों को खींचना किसी भी फिल्मसर्जक के लिए आसान नहीं हो सकता. ’’बौलीवुड से जुड़े यह लोग सही दिशा में सोच रहे हैं. ‘कोरोना’और ‘लॉक डाउन’ने दर्शकों को कंगाल कर दिया है. अब हर दर्शक की पहली प्राथमिकता अपने काम काज व नौकरी को सुचारू रूप से चलाने के साथ घरेलू हालात सुधारना ही प्राथमिकता होगी.

ओटीटी प्लेटफार्म के चलते निर्माता व सिनेमाघर के मालिकों की लड़ाई का हश्र क्या हो सकता है?   

फिलहाल फिल्म इंडस्ट्री के हालात काफी बदतर हो गए हैं. फिल्म निर्माताओ की एक संस्था,  जिसके कर्ता धर्ता अभिनेत्री विद्या बालन के पति सिद्धार्थ रौय कपूर हैं, ने मल्टीप्लैक्स को धमकाते हुए ‘ओटीटी’प्लेटफार्म की ओर हाथ बढ़ाकर युद्ध के हालात पैदा कर दिए हैं. परिणामतः अब फिल्म निर्माता , कलाकार, लेखक आदि कई खंडों में बंटे हुए नजर आ रहे हैं. हमने कई लोगों से बात की, लोगों अपना नाम गुप्त रखने की शर्त पर अपनी राय दी. इनकी बात माने तो अब ओटीटी प्लेटफार्म और सिनेमाघर के लिए अलग अलग फिल्में बनेंगी. और इनके निर्माता आमने सामने खड़े नजर आ सकते हैं. इस तरह फिल्म इंडस्ट्री दो भागों विभाजित नजर आ सकती है. जब ऐसा होगा, तो फिल्म के कथानक से लेकर कलाकारों के चयन और उनकी शूटिंग आदि में भी बहुत कुछ अंतर नजर आने लगेगा.

कुछ लोगों की राय में फिल्म इंडस्ट्री में इस तरह के टकराव के चलते ओटीटी प्लेटफार्म और सिनेमाघरों की फिल्मों से जुड़े लोग एक दूसरे से दूरी बनाए हुए नजर आएंगे. बौलीवुड से जुड़े तमाम लोग  इस बात से आशंकित हैं कि अब ओटीटी प्लेेटफार्म, मल्टीप्लैक्स कीे अपने अस्तित्व को बचाए रखने की लड़ाई किस हद तक जा सकती है, इसका अनुमान लगाना संभव नही है. हमें इस बात को नही भूलना चाहिए कि जब भारत में टीवी और सेटेलाइट चैनलों में का तेजी से प्रादुर्भाव हुआ था, तब फिल्मकारों ने टीवी को अपने लिए बड़ा संकट मानकर टीवी से जुड़े लोगों से लंबे समय तक अछूत जैसा व्यवहार किया था. करीबन दस पंद्रह वर्ष बाद यह दूरी बड़ी मुश्किल से खत्म हो पायी थी कि अब कोरोना के चलते एक बार फिर उसी तरह के हालात पैदा होने जा रहे हैंैं. ऐसे मंे भविष्य में यदि सिनेमाघरों के लिए बनने वाली फिल्मांें से जुड़े लोग यदि ‘ओटीटी’के लिए बनने वाली फिल्मों से जुड़े लोगों के संग अछूत जैसा व्यवहार करने लगें, तो इसमें आश्चर्य वाली कोई बात नही होगी.

मजदूर हो गए पलायनः

यह फिल्म निर्माता अपने अस्तित्व को बचाए रखने की बजाय अहम की लड़ाई लड़ते हुए ज्यादा नजर आ रहे हैं. एक फिल्म के निर्माण में ज्यूनियर आर्टिस्ट, स्पॉट ब्वॉय,  कैमरा असिस्टटेंट, ज्यूनियर डांसर सहित करीबन दो से चार हजार से अधिक देहाड़ी मजदूरों का योगदान होता है. जिसकी फिक्र किसी ने नहीं की. लॉक डाउन शुरू होने पर सलमान खान ने ‘फेडरेशन आफ वेस्टर्न इंडिया सिने इम्पलाइज’संस्था के मार्फत इन देहाड़ी मजदूरों को कुछ राहत सामग्री व धन उपलब्ध कराया था. पर उसके बाद कुछ नहीं हुआ. सूत्रों की माने तो पचास प्रतिशत से अधिक फिल्म इंडस्ट्री के दिहाडी मजदूर मुंबई छोड़कर जा चुके हैं, बाकी जाने की तैयारी में हैं. इतना ही नही तमाम छोटे कलाकार भी आर्थिक तंगी का शिकार हैं. किसी के पास घर का किराया देने के पैसे नहीं हैं. तो किसी के सामने दो वक्त की रोटी का सवाल खड़ा हो चुका हैं. इन सभी को बांधकर रखने की दिशा में फिल्म निर्माता वगैरह नहीं सोच रहे हैं.

ये भी पढ़ें- लॉकडाउन में इस TV एक्टर ने किया सुसाइड, कोरोनावायरस के डर से लोगों ने नहीं की मदद

ई मेल और व्हाट्सअप के युग में क्यों तड़पाती है चिट्ठियों की याद 

बौलीवुड में पचास के दशक की सबसे खूबसूरत अभिनेत्रियों में से एक नर्गिस और राजकपूर की लव स्टोरी के किस्से हर किसी की जुबान में रहा करते थे.लेकिन जब नर्गिस को यह बात समझ में आ गयी कि राजकपूर से उन्हें झूंठी दिलासा के अलावा कुछ नहीं मिलेगा और दूसरी तरफ सुनील दत्त उनके लिए सब कुछ कुर्बान कर देने के लिए तैयार थे.तो अंततः नर्गिस भी सुनील दत्त को प्यार करने लगीं.अब क्या था राजकपूर परेशान हो गए.वह चाहते थे नर्गिस और सुनील में किसी भी तरह से दूरियां पैदा हों.इसलिए वह खुद और उनके साथी संगी सुनील दत्त को नर्गिस के खिलाफ एक से एक बातें कहकर भड़काने लगे.यहां तक कि उन्हें एक हद तक इसमें सफलता भी मिलती दिखने लगी.सुनील दत्त काफी परेशान से रहने लगे थे.नर्गिस को यह सब समझते देर न लगी कि आखिर माजरा क्या है ? लेकिन उन्हें यह सूझ नहीं रहा था कि आखिर कैसे वह सुनील को इस परेशानी से बाहर निकालें.अंत में उन्होंने इसके लिए चिट्ठी का सहारा लिया.

नर्गिस ने सुनील दत्त को लिखा, ‘डार्लिगजी आपको मेरे बारे में राजकपूर या किसी और ने जो भी कहा है,उससे गमगीन होने की जरूरत नहीं है.वो आपका ध्यान मुझसे हटाने के लिए कुछ भी कह सकते हैं.यह बात केवल मैं ही जानती हूं कि मैंने अपनी जिंदगी कितनी साफगोई से गुजारी है. मैं चाहती हूं कि आप मुझ पर विश्वास रखें, मैं ऐसा कोई काम नहीं करूंगी, जिससे आपको शर्मिंदा होना पड़े.’ कहते हैं नर्गिस के ख़त की इन पंक्तियों ने जादू कर दिया.इसके बाद सुनील पूरी जिंदगी में नर्गिस को लेकर कभी भी असुरक्षित महसूस किया.

ये भी पढ़ें- दफ्तर में क्या चीज बनाती है हमें बौस का खास

ख़त से जुड़ा एक ऐसा ही किस्सा दुनिया के सबसे ताकतवर देश अमरीका के प्रथम नागरिक यानी पूर्व राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन का भी है. शादी की 31वीं वर्षगांठ पर रीगन की पत्नी नैंसी रीगन उनसे दूर थीं.इस पर  4 मार्च,1983 को रीगन ने प्यारी पत्नी को एक पत्र लिखा.उसमें उन्होंने इस दिन को लेकर अपनी भावनाएं कुछ इस प्रकार व्यक्त कीं, ‘सालों से मैं तुम्हें शादी की वर्षगांठ पर अपनी शादी का कार्ड ब्रेकफास्ट की ट्रे पर सजाकर पेश करता रहा हूँ.लेकिन इस बार मैं तुम्हें एक खास तोहफा भेज रहा हूं.वो है 31 साल पहले जुड़े इस रिश्ते की खुशी का शब्दों में उकेरा एहसास.यह एहसास दुनिया में कुछ ही पुरुषों को हासिल होता है.सच मैं तुम्हारे बिना बिलकुल अधूरा हूं .तुम मेरी जिंदगी हो क्योंकि तुम्हारे आने से ही मैं फिर से जी सकूंगा.’

दुनिया में न जाने कितनी विख्यात शख्सियतें हैं जिन्होंने अपने प्रेम का इजहार करने के लिए एक दूसरे को अजर अमर ख़त लिखे हैं. अमृता ने साहिर को,विक्रम साराभाई ने मृणालिनी साराभाई को, जॉर्ज बर्नार्ड शॉ ने ब्रिटिश अभिनेत्री एलेन टैरी को, ऑस्कर वाइल्ड ने  अल्फ्रेड डगलर को और ब्रिटिश महारानी एलिजाबेथ ने रॉबर्ट ब्राउनिंग को जो पत्र लिखे हैं,वे महज व्यक्तिगत पत्र नहीं बल्कि साहित्य और संवेदना का एक समूचा कालखंड हैं.दुनिया में हजारों मशहूर लोग खासकर फाइन आर्ट्स के क्षेत्र के मशहूर लोगों के लरजते हुए प्रेम पत्र आज भी खूब चाव से पढ़े जाते हैं.बॉलीवुड की तमाम फिल्मों में प्रेम पत्रों पर खूबसूरत गीत लिखे गए हैं.

भावनाओं को प्रगाढ़ करने वाले पत्रों की चाहत आज भी हम लोगों के मन में बसती है.मगर चूँकि यह कम्युनिकेशन की अपार सुविधाओं वाला युग है.इसलिए लोग आज चाहकर भी एक दूसरे की कुशलक्षेम पूछने के लिए या अपना इश्क जाहिर करने के लिए पत्र नहीं लिख पाते.चाहत तो खूब रखते हैं,खासकर हर प्रेमी जोड़ा एक दूसरे से प्रेम पत्र पाने की रोमांच से भरी नास्टैल्जिक उम्मीद रखता है.लेकिन इस तेज से तेजतर हो रहे जीवन में ज्यादातर की यह उम्मीद,उम्मीद ही बनी रहती है. शायद इसके पीछे एक कारण यह है कि हम सबको लगने लगा है कि हमारा समय बहुत कीमती है,फिर चाहे हम बेरोजगार ही क्यों न हों.इसलिए अपनी प्रकृति से ही ठहरे भावों का स्पंदन करने वाला खत निजी जीवन की भूमिका में पिछड़ गया है.जबकि आधिकारिक लेनदेन या कारोबार में आज भी खतों की ही निर्णायक भूमिका है.

दिल की गहराई में उतरने वाले चिट्ठियों के शब्द आज फोन की आवाज या वाइस कॉल में बदल गए हैं. लोग फोन में  ही आवश्यक बातें कर संवाद कायम रखने की औपचारिकता पूरी कर लेते हैं. हालांकि इससे लोगों को औपचारिक  संपर्क बनाए रखना सरल और सहज हो गया है. लोगों का पलक झपकते ही किसी परिचित से बात करना आसान हो गया है,लेकिन निजी पत्रों की कमी के चलते भावनाओं की संदूक खाली हो गई है. आज इंटरनेट के जरिये किसी से आसानी से मुखातिब हुआ जा सकता है. ऐसे में खत का चलन खत्म न भी हो तो भी कम तो होना ही था.आज पत्रों की जगह व्हाट्सअप और मैसेजिंग ने ले ली है . लेकिन ये तमाम माध्यम तेज कितने ही क्यों न हों मगर भावनाओं के स्तर पर वह असर नहीं दिखाते जो कभी पत्र दिखाया करते थे.

ये भी पढ़ें- जिम्मेदारियों के बीच न भूलें जीवनसाथी को वरना हो सकता है ये अफसोस

वास्तव में सन्देश देने और पाने के तमाम मशीनी जरिये एक किस्म से सूचना पाने या देने का जरियाभर हैं . जबकि किसी भी चिट्ठी या पत्र में एक छोटी सी कथा, छोटी सी घटना या जीवन का एक टुकड़ा समाया रहता था.चिट्ठी लिखने वाला और उसे पढने वाला,एक दूसरे से चाहे कितना ही दूर क्यों न हों लेकिन चिट्ठियों के माध्यम से वे एक-दूसरे की नजरों के सामने होते थे. यही कारण है कि पत्र पढ़ते-पढ़ते कभी आंख भर जाती है, तो पत्र लिखते-लिखते कोई व्यक्ति भावना में बहकर अपने मन पर से पीड़ा या खुशी के बोझ को हटा लेता है. पत्र में संबंधों की प्रागाढ़ता जहां खुशनुमा सुबह होती है, तो गिले-शिकवे भी किसी लरजती हुई शाम से कम का एहसास नहीं देती. चिट्ठियों की यही तरलता है जिसके लिए सूचना-संचार का यह क्रांतियुग तरसता है.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें