Happy teacher’s day: जानें कैसे थे स्टार्स के अपने टीचर्स के साथ रिश्ते

बौलीवुड के सितारों पर बड़ों से लेकर बच्चा, हर कोई अपनी जान छिड़कता है. लेकिन कुछ सितारे ऐसे हैं जो दूसरों पर भी जान छिड़कते हैं. हर किसी का कोई ना कोई क्रश या कहें पहला प्यार होता है. वहीं बौलीवुड सितारें भी इसमें पीछे नहीं हैं. दरअसल आज यानी 5 सितंबर को टीचर्स डे सेलिब्रेट किया जाता हैं. इसी खास मौके पर आज हम आपको बताएंगे कि सेलेब्स कैसे अपने टीचर्स को दिल दे बैठे थे. और कौन उनका पहला प्यार बना था.

1. टीचर के लिए की पढ़ाई से दोस्ती

अपने क्रश के लिए कोई भी काम करने के लिए तैयार हो जाते हैं लोग. इन्हीं में शामिल हैं. बौलीवुड स्टार आयुष्मान खुराना, जिन्हें स्कूल में अपनी गणित की टीचर बहुत पसंद थी और अपने क्रश के पास रहने के लिए उन्होंने गणित से भी दोस्ती कर ली थी. हालांकि आगे चल कर उनका दिल किसी और टीचर पर आ गया था.

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2. टीचर से फ्लर्ट करते थे सलमान खान

 

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Respect to all the farmers . .

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सुर्खियों में रहने वाले बौलीवुड के दबंग खान यानी सलमान खान ने अपने आप इस बात का खुलासा करते हुए कहा था कि वह अपनी स्कूल टीचर को बहुत पंसद किया करते थे, जिसके कारण वह अपनी टीचर के साथ फ्लर्ट करने का मौका हाथ से नहीं जाने देते थे.

3. जब रणबीर कपूर को हुआ प्यार

बौलीवुड के चौकलेट बौय, जिन पर लड़कियां मरतीं हैं वह भी दूसरी क्लास में किसी के उपर जान लुटा चुके हैं. दरअसल, रणबीर कपूर को अपनी सेकेंड स्टैंडर्ड की टीचर से ही प्यार हो गया था. रणबीर उसे अपना पहला प्यार मानते हैं. इसका खुलासा उन्होंने एक इंटरव्यू में करते हुए कहा था कि मम्मी नीतू कपूर के बाद वह टीचर रणबीर को बहुत प्यार किया करती थीं.

4. विदेशी टीचर पर लट्टू हुए थे वरूण धवन

 

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Sweet 16🍼

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यूके में जब बिजनेस मेनेजमेंट की पढ़ाई कर रहे वरूण धवन को अपनी एक्टिंग टीचर बहुत पसंद थी. और केवल 21 साल के वरूण की टीचर उनसे दो साल बड़ी थी. वह बात अलग है कि, वह अपनी टीचर से दिल की बात तो नहीं कह पाए थे.

5. साइंस टीचर पर मर मिटे थे सिद्धार्थ मल्होत्रा

 

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#GoodMorning ☀️

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बौलीवुड हंक सिद्धार्थ मल्होत्रा ने एक इंटरव्यू में खुलासा किया था कि, उन्हें 9वीं क्लास में अपनी साइंस टीचर पर क्रश था. सिद्धार्थ को उनसे बात करना बेहद पसंद था. वह सबसे बहुत अच्छे से बात करती हैं और उन्हें यही बात बेहद पसंद आती थी.

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नेपोटिज्म और खेमेबाजी का केंद्र है बॉलीवुड 

आप कहां से यहां आये हो और यहां सीडियों पर बैठकर कर क्या रहे हो? मैडम मैं एक लेखक  और अपना नाम फिल्म राइटर्स एसोसिएशन में लिखवाने आया . इससे क्या होगा? मैं कवितायेँ लिखता  और राजस्थान के एक गांव से आया . यहां मैं अपने कविताओं को पहले रजिस्टर करवाकर फिर किसी म्यूजिक डायरेक्टर को देना चाहता , क्योंकि यहां मैंने सुना है कि कविताओं की चोरी संगीत निर्देशक कर लेते है. काम के लिए मैं हर रोज किसी संगीत निर्देशक के ऑफिस के बाहर घंटो अपनी कविताओं को लेकर बैठता , जिस दिन उनकी नज़र मेरे उपर पड़ी, मेरा काम बन जायेगा.’ मुझे उसकी बातें अजीब लगी थी, क्योंकि वह करीब 2 साल से ऐसा कर रहा था.

पत्नी और दो बच्चों के पिता होकर भी उसकी कोशिश बॉलीवुड में काम करने की थी, जिसके लिए उसके परिवार वाले पैसे जुटा रहा था, उसे काम कभी मिलेगा भी या नहीं, ये सोचने पर मजबूर होना पड़ा. ऐसे न जाने कितने ही लेखक और कलाकार मुंबई की सडको पर एक अवसर पाने की कोशिश में लगातार घूमते रहते है. इक्का दुक्का ही सफल होते है, बाकी या तो वापस चले जाते है, या डिप्रेसड होकर गलत कदम उठा लेते है. 

 इंडस्ट्री में प्रोडक्शन हाउस से लेकर कास्टिंग डायरेक्टर तक हर जगह खेमेबाजी और नेपोटिज्म चलता है. इन प्रोडक्शन हाउसेस में काम करने वाले आधे से अधिक लोगों के वेतन पेंडिंग रहते है, जिसके लिए कर्मचारी हर दिन इनके चक्कर लगाते रहते है. इसकी वजह प्रोडक्शन हाउस के मालिकों का कर्मचारियों को कम पैसे में पकड़ कर रखना है, ताकि वे दूसरी जगह काम न कर सके. ऐसे में कर्मचारी अपने दोस्तों और परिवार वालों से पैसे मांगकर किसी तरह गुजारा करते है, पर घरवालों को नहीं बता पाते, क्योंकि उनका हौसला टूट जाएगा. उनकी बदनामी होगी.

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देखा जाए तो नेपोटिज्म और खेमेबाजी सालों से बॉलीवुड पर हर स्तर पर हावी रही, जिसका किसी ने बहुत खुलकर विरोध नहीं किया, क्योंकि जो उसे सह गये, वही इंडस्ट्री में रह गए और जिसने सहा नहीं वे निकाल दिए गये. अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या ने इंडस्ट्री के सभी को झकझोर कर रख दिया है और एक नए मिशन को हवा दी है. भले ही सुशांत ने आत्महत्या किसी और वजह से की हो, जो अभी तक साफ़ नहीं है, लेकिन इतना सही है कि बड़े निर्माता, निर्देशक के खेमेबाजी के शिकार वे हुए थे. इस आन्दोलन से आगे किसी कलाकार, निर्देशक या लेखक से ऐसा करने से पहले प्रोडक्शन हाउसेस थोडा अवश्य सोचेंगे. ऐसा सभी मान रहे है. इससे पहले ‘मी टू मूवमेंट’ भी ऐसी ही एक आन्दोलन है, जिसमें सभी बड़े-बड़े कलाकारों की पोल खोल दी और आज कोई भी किसी अभिनेत्री से कुछ कहने से डरते है. 

ये सही है कि नेपोटिज्म हर क्षेत्र में होता है, लेकिन इसकी सीमा बॉलीवुड में सालों से बेलगाम है. खेमेबाजी के शिकार भी तक़रीबन हर आउटसाइडर कलाकार को होना पड़ता है. अभिनेत्री कंगना ने तो डंके की चोट पर सबके आगे आकर इस बात को बार-बार दोहराई है, उसका कहना है कि मैं इंडस्ट्री के किसी से भी नहीं डरती अगर मुझे काम नहीं मिलेगा तो मैंने एक अच्छा घर अपने शहर में बनाया है और वहां जाकर रहूंगी. केवल कंगना ने ही नहीं अभिनव कश्यप, रवीना टंडन, साहिल खान, विवेक ओबेरॉय, सिंगर अरिजीत सिंह आदि जैसे कई कलाकारों ने अपनी बात नेपोटिज्म और खेमेबाजी को लेकर कही है. अभिनेता अभय देओल जो सपष्टभाषी होने के लिए जाने जाते है, वे भी इस खेमेबाजी का शिकार हो चुके है. उन्होंने कई इंटरव्यू में इस बात को दोहराया है कि उनका नाम पहले फिल्म में लीड बताया जाता है, बाद में उन्हें हटाकर दूसरे कलाकार को ले लिया जाता है और अवार्ड भी उन्हें ही दे दिया जाता है. ऐसे में उन्होंने लीक से हटकर फिल्मों में काम किया और अपनी अलग पहचान बनायीं. इसके अलावा वे फिल्में प्रोड्यूस करने और ओटीटी प्लेटफ़ॉर्म पर काम करना ही उचित समझते है. 

निर्देशक अभिनव कश्यप ने भी कहा है कि उनके कैरियर को ख़राब करने में सलमान ने कोई कसर नहीं छोड़ी. ये तो अच्छा हुआ कि उन्हें दूसरा अच्छा विकल्प मिल गया. ऐसी सोच हर क्रिएटिव पर्सन के पास होनी चाहिए. खासकर सुशांत सिंह जैसे होनहार कलाकार जो हर फिल्म में किरदार को पूरी तरह से उतारते थे, पर दुःख इस बात का है कि उन्होंने इतनी जल्दी इंडस्ट्री की खेमेबाजी से हार मान गए.  

जानकार बताते है कि पिछले दिनों सुशांत की कुछ फिल्में बॉक्स ऑफिस पर चल नहीं पायी थी, जिसका प्रभाव उसके कैरियर पर पड़ने लगा था, लेकिन इससे वह निकल सकता था, क्योंकि कई दूसरे निर्माता निर्देशकों ने उसे अपनी फिल्मों में लेने की बात कही थी. बॉलीवुड हमेशा किसी भी कलाकार के हुनर से अधिक फिल्म की सफलता और उससे मिले पैसे को अधिक आंकता है. इसमें वे अपने परिवार को भी झोंकने से नहीं कतराते. 

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अभिनेत्री शमा सिकंदर कहती है कि नेपोटिज्म और खेमेबाजी हमेशा से इंडस्ट्री में है और इसका शिकार मैं भी हुई . मैं डिप्रेशन में गयी और उससे काफी समय बाद निकली भी, जिसमें मेरे परिवारवालों ने साथ दिया. इन सबमें गलती दर्शकों की है. फिल्म कैसी भी हो, वे किसी स्टार के बेटे और बेटी को देखने के लिए हॉल में चले जाते है, जबकि बाहर से आये एक नए कलाकार को कोई देखना नहीं चाहता. दर्शक ही कीसी फिल्म को देखकर उसे सुपरहिट बना सकता है. कई फिल्में नए कलाकारों की आई, जो बहुत अच्छी थी, पर दर्शकों ने उन्हें देखा नहीं, साथ नहीं दिया. नए प्रतिभा को अगर दर्शकों का साथ मिलेगा तो, निर्माता, निर्देशक उसे लेने से कभी नहीं कतरायेंगे. नए कलाकार को दर्शक तब देखते है, जब उनकी कुछ फिल्में सफल हुई हो और ये बहुत मुश्किल से हो पाता है. मुश्किल से एक काम मिलता है, ऐसे में अगर कोई हॉल तक उसे देखने ही न पहुंचे तो उसे अगला काम कैसे मिलेगा? आप बैन प्रोडक्शन हाउस को नहीं, खुद इस दायरे से निकल कर एक नए कलाकार को मौका दे. इस खेमेबाजी और नेपोटिज्म को दर्शक ही हटा सकता है. इतना ही नहीं किसी पार्टी या अवार्ड फंक्शन में नए स्थापित कलाकारों को आमंत्रित भी नहीं किया जाता.

इसके आगे शमा कहती है कि इंडस्ट्री व्यवसाय पर आधारित है, ऐसे में वे उन्हें ही लेना पसंद करते है, जो उन्हें अच्छा व्यवसाय दे सके. आज जिस फिल्म के लिए सुशांत सिंह राजपूत सबको देखने के लिए कहता रहा, आज दर्शक उसे ही ओटीटी प्लेटफॉर्म पर सबसे अधिक देख रहे है, इसका अर्थ अब क्या रह गया है? दर्शकों की वजह से भी कलाकर तनाव में जाता है. मैं चाहती  कि सुशांत की आत्महत्या को कोई गलत रंग न दिया जाय, एक प्रतिभावान कलाकार ने अपनी जान दी है, इसलिए इस खेमेबाजी और नेपोटिज्म के अंदर जन्मी इस मुद्दे को सही रूप में सामने लायी जाय, जिसमें जो भी प्रतिभावान कलाकार है, उन्हें इंडस्ट्री में जोड़ा जाय. नए प्रतिभा को मौका दिया जाय, ताकि अभिनय की रीपिटीशन न हो. 

मराठी अभिनेत्री प्रिया बापट ने भी एक इंटरव्यू में कहा है कि गॉडफादर न होने पर बॉलीवुड में काम मिलना बहुत मुश्किल होता है. सुपर स्टार के बेटे या बेटी होने पर ये काम आसान होता है. उनके लिए फिल्में भी लिखी जाती है. कुछ बड़ी मीडिया ग्रुप भी इस खेमेबाजी में शामिल होती है, जो कुछ पैसे लेकर किसी भी फिल्म को सबसे अच्छी फिल्म की रिव्यु दे देती है, जबकि फिल्म देखने के बाद इसकी असलियत पता चलती है. अभिनेता ओमी वैद्य ने भी माना है कि कोरोना काल की वजह से इंडस्ट्री में नए प्रतिभावान कलाकार और निर्देशक को काम मिलना आसान हुआ है, क्योंकि अधिकतर फिल्में डिजिटल पर जा रही है, जिसे कोई भी बना सकता है.    

इसके अलावा रातों रात नाम बदल देना और नाम निकाल देना इसी भाई-भतीजावाद और खेमेबाजी का हिस्सा सालों से हिंदी सिनेमा जगत में रहा है. सिंगर से लेकर लेखक सभी इस समस्या से गुजरते है. सिंगर सोनू निगम ने एक इंटरव्यू के दौरान कहा था कि मैं कई बार खेमेबाजी का शिकार हुआ पर मैं किसी से डरा नहीं, जिसे जो कहना था कह दिया. सिंगर कुमार शानू ने भी कहा है कि कई फिल्मों में उनके गाने को लिया गया, पर बाद में हटा दिया. यहां तक कि उस गीत को उस फिल्म के हीरो से गवाया गया. आज संगीत में तकनीक के आने से रियलिटी ख़त्म हो गयी है. कोई भी कभी भी सिंगर बन सकता है. इसलिए आजकल मैं एल्बम बनाता  और शोज करता . जिसमें मेरी आवाज आज भी सबको पसंद आती है. 

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ये सही है कि बॉलीवुड में खेमेबाजी और भाई-भतीजावाद सालों से है लेकिन सुशांत सिंह राजपूत की सुइसाइड ने सबको सोचने पर मजबूर कर दिया है कि इस जाग्रत अभियान में शामिल होकर इंडस्ट्री को एक नयी दिशा दी जाए, जो आज सबकी मांग है. 

अलविदा सुशांत सिंह राजपूत: चकाचौंध की जिंदगी के पीछे काली छाया 

बॉलीवुड अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत का अचानक आत्महत्या कर लेना हर सिनेमा प्रेमी के लिए एक चौकाने वाली घटना रही. हिंदी सिनेमा जगत के सारे लोग भी इस पर विश्वास नहीं कर पा रहे है. आखिर क्यों एक सफल कलाकार ने आत्महत्या किया है ? क्यों वे अपनी ग्लैमरस जिंदगी को अच्छी तरह जी नहीं पाए? क्या समस्याएं थी? क्यों वे ऐसी कदम उठाने से पहले अपने परिवार और माता-पिता को याद नहीं कर पाए आदि न जाने कितने ही सवाल हर कलाकार के सुसाइड के बाद उनको चाहने वालों के जेहन में आती है, जिसके बारें में जानना और समझना जरुरी है. 

ये सही है कि आज एक सफल कलाकार का बनना बॉलीवुड में आसान नहीं होता, यहाँ प्रतिभा से अधिक भाई-भतीजावाद और बड़े-बड़े निर्माताओं की लॉबी पूरी तरह से हावी रहती है, ऐसे में इंडस्ट्री के बाहर से आकर अपनी पहचान बनाने के लिए मेहनत और धीरज की बहुत जरुरत होती है. खासकर मुंबई जैसे शहर में जहाँ ये आर्टिस्ट्स बहुत अधिक संघर्ष करते हुए आगे बढ़ते है, ऐसे में एक सफल कलाकार का ऐसा कदम सबको चकित करता है, जबकि उन्हें आर्थिक तंगी भी नहीं थी.

 दरअसल सफल कलाकारों को इस चकाचौंध की जिंदगी जिसमें प्यार, पैसा और शोहरत सब शामिल होता है, जिसके लिए ये अपना शहर और घर छोड़कर कुछ हासिल करने के जज्बे से मुंबई चले आते है और काफी मेहनत के बाद उन्हें सफलता मिलती है और वे ग्लैमरस जिंदगी जीने लगते है, लेकिन धीरे-धीरे जब इंडस्ट्री की हकीकत से परिचित होने लगते है, तो सब कुछ आईने की तरह साफ़ हो जाता है. जिसका सामना कलाकार कई बार करने में असमर्थ होते है और डिप्रेशन का शिकार हो जाते है, जो आगे चलकर आत्महत्या का रूप ले लेती है. इसमें सुशांत सिंह राजपूत के अलावा जिया खान, प्रत्युषा बैनर्जी, दिव्या भारती, गुरुदत्त, परवीन बॉबी, मनमोहन देसाई आदि कई नाम है, जिन्होंने आत्महत्या की.

इस बारें में निमये हेल्थ केयर के मनोचिकित्सक डॉ. पारुल टांक कहती है कि सुइसाइड करने की वजह को समझना मुश्किल होता है, क्योंकि ये केवल सेलिब्रिटी ही नहीं कोई भी कर सकता है, यहाँ ये सेलिब्रिटी है, इसलिए हम जान पाते है. इसे करने के कई कारण हो सकते है.

  • जिन्हें उदासीनता की बीमारी हो, 
  • ड्रग और अधिक एल्कोहल लेने वाले लोग,
  • कुछ बड़ी बीमारी से पीड़ित लोग जैसे स्किजोफ्रिनिया, बाइपोलर आदि,  
  • डिप्रेशन की वजह से पहले कभी सुसाइड का अटेम्प्ट किया हो,
  • फॅमिली हिस्ट्री आत्महत्या की हो,ये सभी आत्महत्या की प्रवृत्ति को बढ़ावा देते है.

सेलिब्रिटी या नॉन सेलिब्रिटी पैसे से इसका कोई सम्बन्ध अधिक नहीं होता. गरीब और अमीर दोनों ही करते है. ये पैसे से भी अधिक ख़ुशी से सम्बंधित होता है. सूत्रों की माने तो सुशांत सिंह राजपूत का भी मानसिक बीमारी का इलाज चल रहा था, पर उन्होंने ऐसा क्यों किया? कौन से कारण थे? ये अभी पता नहीं चल पाया है. ये सही है कि सेलिब्रिटी में मानसिक और सामाजिक दबाव अधिक होता है. ये सहजता से किसी बात को किसी से कहने में असमर्थ होते है. 

जब भी ऐसे हालत बनते हो, तो प्रोफेशनल मनोरोग चिकित्सक की मदद लेन ही सही होता है. दवा और काउंसलिंग से इसे कम किया जा सकता है. ये कोई स्टिग्मा नहीं है. प्रोफेशनल के पास जाने से शर्म महसूस नहीं करना चाहिए. इसके अलावा अपने परिवार और दोस्तों का सहारा लेना जरुरी होता है, जो आपको समझ पाएं. हर इंसान के पास एक या दो लोग होने चाहिए जो डिप्रेशन से आपको निकाल सके. इसके अलावा सही डाइट और व्यायाम भी डिप्रेशन से व्यक्ति को राहत दिलाती है, क्योंकि व्यायाम हैप्पी हार्मोन को इम्प्रूव करती है. आत्महत्या किसी भी चीज का समाधान नहीं होता, क्योंकि इससे माता-पिता, परिवार जन और आसपास के सभी आहत होते है. डिप्रेशन एक या दो दिन में नहीं आता, ये दो हफ्ते से महीने तक चलता है, इसके लक्षण निम्न  है…

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  • उदासीनता, 
  • किसी बात में मन न लगना, 
  • नकारात्मक भाव का आना,
  • आत्मविशवास और आत्मसम्मान का कम हो जाना,
  • नींद न आना,
  • भूख नहीं आना, 
  • किसी चीज में मन नहीं लगना, बहुत रोना आदि अगर होने लगे, तो मनोरोग चिकित्सक की सलाह अवश्य लें. 

सूत्रों की माने तो सुशांत सिंह राजपूत भी किसी बड़ी प्रोडक्शन लॉबी के शिकार हुए थे और कुछ ही दिनों में उनके हाथ से कई बड़ी फिल्में जा चुकी थी, जिसका उन्हें मलाल था और इसे न सह पाने की स्थिति में उन्होंने आत्महत्या को अंजाम दिया. जिसकी छानबीन जारी है. ये सही है कि बॉलीवुड लॉबी माफिया के बारें में पहले कंगना रनौत ने भी खुलकर अपनी बात रखी थी और उसने डटकर सामना किया था, जो सुशांत सिंह राजपूत नहीं कर पाए और जिंदगी को ख़त्म कर दिया.

जीवन में आये इस उतार-चढ़ाव से गुजरना और डटकर सामना करना किसी भी कलाकार के लिए आसान नहीं होता, क्योंकि सफलता का स्वाद कलाकारों की मुरादों की लिस्ट को पूरा करती रहती है और जब ये उनके हाथ से निकलती जाती है तो अपने आपको सम्भाल पाना बहुत मुश्किल होता है, ऐसे ही कुछ कलाकारों ने अपने अनुभव शेयर किये,जब वे किसी न किसी वजह से तनाव के शिकार हुए और अपने आपको सम्हाला. आइये जानते है क्या कहते है सितारे, 

अमिताभ बच्चन 

लाइफ कभी भी आसान नहीं होती, मेरे पिता कहा करते थे कि जीवन हमेशा संघर्षमय होता है. जब तक आप जीवित रहते है, ये संघर्ष चलता रहता है, सभी को उससे गुजरना पड़ता है. जब साल 1969 में ‘साथ हिन्दुस्तानी’ फिल्म केवल 5 मिनट में मिली थी,तो बहुत ख़ुशी हुई. इसके बाद फिल्म ‘आनंद’ साल 1971 में आई,जो सफल रही. इसके बाद कई सालों का गैप मेरे कैरियर में आया, लोग मुझे भूलने लगे थे कि मैं एक परफ़ॉर्मर हूं. कई बार अकेलापन मेरी जिंदगी में आया, पर परिवार और दोस्तों ने सहारा दिया और मैं आगे बढ़ा. 

मिथुन चक्रवर्ती

मुझे रातोंरात सफलता नहीं मिली थी. मुझे बहुत संघर्ष करना पड़ा. मैं अपने शुरुआती पलों को याद करना भी अब नहीं चाहता, क्योंकि अब मैं अपनी जिंदगी से खुश हूं. संघर्ष के बाद जब फिल्मों का मिलना शुरू हुआ, तो मेरी माँ ने मुझसे कही थी कि हमेशा नीचे की तरफ देखकर चलो, अगर ऊपर की तरफ देखकर चलोगे, तो ठोकर खाकर गिर जाओगे. इसी मन्त्र को लेकर मैं चला हूं और एक सुपर स्टार बना, लेकिन ये भी पता था कि ये चिरस्थायी नहीं है. इसे डाईजेस्ट करना मेरे लिए आसान नहीं था, इसलिए अब मैं अपना समय अपने डॉगी और प्लांट्स के साथ बिताता हूं.

रणवीर सिंह 

जब आप रैट रेस में होते है, तो अपनों के साथ समय बिताना भूल जाते है. सफलता के बाद मेरी दोस्तों की लिस्ट बहुत कम हो चुकी है, जिसे मैं अब समय देने लगा हूं. मैं काम और परिवार के बीच में सामंजस्य रखना जानता हूं. तनाव होने पर मैं एक लम्बी सांस लेकर जिम में चला जाता हूं और सारे तनाव को बाहर निकाल लेता हूं. सफलता और पैसा जिंदगी में उलझन लाती है. इसलिए जब भी शूटिंग नहीं होता, मैं फ़ोन को स्विच ऑफ कर परिवार के साथ समय बिताता हूं. 

अक्षय कुमार 

मेरा शुरूआती दौर बहुत संघर्षमय था, कई रिजेक्शन का सामना करना पड़ा, लेकिन मैंने धीरज धरी और आगे बढ़ा. सफलता से आज मैं बहुत खुश हूं, क्योंकि आज मेरे करोड़ो फैन फोलोवर्स है, जो मुझे अच्छा लगता है. मैं अपने फैन्स को कभी भी मायूस नहीं करना चाहता, पर कई बार फिल्में फ्लॉप हो जाती है. कंट्रोवर्सी का सामना करना पड़ता है. तनाव भी होता है, लेकिन ऐसे समय में मैं जिम में जाकर सारे तनाव को निकाल देता हूं.

सारा अली खान 

सारा कहती है कि सफल कलाकार जब सामने कुछ भी नकारात्मक चीज देखता है, तो उसे मानसिक तनाव होने लगता है, ऐसे में उसके आसपास के लोग ही उसे उस तनाव से निकाल सकते है, लेकिन सफलता की सीढ़ी चढ़ते-चढ़ते कलाकार अधिकतर अपने आसपास के लोगों को भूलते जाते है, ऐसे में जब उन्हें किसी के सहारे की जरुरत होती है, तो वह अकेला होता है और कुछ भी गलत कदम वह उठा सकता है. मुझे भी इसका अनुभव है जब मुझे पहली फिल्म मिली और उसकी सफलता के लिए मैंने कितना इंतजार किया. डर भी था, पर मां ने मेरा साथ दिया था. 

दीपिका पादुकोण 

मानसिक दबाव में जीना बहुत मुश्किल होता है. कोई आपकी समस्या को समझ नहीं सकता. खुद को ही उससे निकलना पड़ता है, लेकिन इसमें मेरे परिवार और दोस्तों ने बहुत सहायता की. एक समय मैंने सबसे दूर और अकेले रहने को सोची थी, कई गलत ख्याल भी आये पर मैंने एक्सपर्ट का हेल्प लिया और आज मैं बहुत खुश हूं कि एक अच्छी जिंदगी बिता रही हूं.

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श्रध्दा कपूर 

जब मेरी शुरू की कई फिल्में फ्लॉप हुई तो बहुत बड़ा झटका लगा. कई बार ये सोचने पर मजबूर हुई कि मैं इस फील्ड के लिए ठीक नहीं, डिप्रेशन में चली गयी थी, लेकिन मेरे परिवार ने मुझे समझाया और मैं आगे बढ़ी. बहुत मुश्किल होता है, तनाव से निकलना. मुझे इसका बहुत बढ़ा अनुभव है और आज मैं इस परिस्थिति से निकलना जानती हूं. असफलता ने ही मुझे इसकी सीख दी है.

मुंबई तो है मुंबई

बंबई, बौम्बे और अब मुंबई. रात को भी जागने वाला शहर. गगनचुंबी इमारतों की जगमग करतीं लाइटें इसे कुछ ज्यादा ही सुंदर बनाती हैं. तभी तो कहा जाता है, ‘मुंबई रात की बांहों में.’ दुनियाभर में विख्यात यह शहर एक बार फिर चर्चा में है, हालांकि, दुनिया के अन्य बड़े नगरों की तरह यह भी नोवल कोरोना वायरस की मार झेल रहा है.

महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई इन दिनों कोरोना के अलावा एक और चीज को ले कर चर्चा में है और वह है यहां रहने के लिए होने वाला खर्च. दरअसल, देश की आर्थिक राजधानी मुंबई रहने के लिहाज से देश का सब से महंगा शहर है. वहीं, समूचे एशिया में यह 19वां सब से महंगा शहर है, जबकि दुनिया के सब से महंगे शहरों में इस का 60वां स्थान है.

मर्सर के ‘वर्ष 2020 – कौस्ट औफ लिविंग (रहनसहन की लागत) सर्वे’ की रिपोर्ट सामने आ गई है. इस सर्वे में भारत के मुंबई शहर को प्रवासियों के लिए रहनेखाने के लिहाज से देश का सब से महंगा शहर बताया गया है. अमेरिकी शहर न्यूयौर्क को आधार बना कर किए गए इस सर्वे का मकसद काम के लिए अलगअलग शहरों में रहने वाले लोगों, नौकरीपेशा लोगों द्वारा किए जाने वाले खर्च का आकलन करना था. इस से मल्टीनेशनल कंपनियों और सरकारों को अपनी योजनाएं बनाने में मदद मिलेगी.

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भारतीय शहरों में बढ़ती लिविंग कौस्ट :

भारत के दूसरे शहरों की बात करें तो दिल्ली (विश्व स्तर पर 101वां) और चेन्नई (विश्व स्तर पर 143वें स्थान पर) हैं. वहीँ, बेंगलुरु (171) और कोलकाता (185) रैंकिंग में अपेक्षाकृत कम खर्चीले भारतीय शहर हैं.

रिपोर्ट को गौर से देखें तो सर्वे में शामिल सभी भारतीय शहरों ने अपनी रैंकिंग में छलांग लगाई है. इस का मतलब यह है कि सर्वे में शामिल भारतीय शहरों में कौस्ट औफ़ लिविंग यानी रहनसहन का खर्च बढ़ा है. नई दिल्ली शहर सर्वाधिक वृद्धि के साथ 17वें स्थान पर पहुंच गया है और प्रवासियों के लिए सब से महंगे शहरों की शीर्ष 100 सूची से बहुत कम के अंतर से ही रह गया है.

कौस्ट औफ लिविंग सर्वे की रिपोर्ट के अनुसार, हौंगकौंग विश्व का सब से महंगा शहर है.  ग्लोबल रैंकिंग में हौंगकौंग सब से टौप पर है. उस के बाद अश्गाबात (तुर्कमेनिस्तान) दूसरे स्थान पर है.

जापान के टोक्यो और स्विट्जरलैंड के ज्यूरिख तीसरे व चौथे स्थान पर हैं, जबकि सिंगापुर पिछले साल से 2 स्थान नीचे 5वें स्थान पर है. वैश्विक रैंकिंग में शीर्ष दस में शामिल होने वाले अन्य शहरों में छठे स्थान पर अमेरिका का न्यूयौर्क, 7वें पर चीन का शंघाई, 8वें पर स्विट्जरलैंड का बर्न और जिनेवा 9वें स्थान पर हैं, जबकि 10वें स्थान पर बीजिंग है.

बात मुंबई की :

समंदर के किनारे बसा मुंबई सपने जैसा है. मुंबई शहर यानी की ख्वाबों की ताबीर का शहर, एक ऐसा शहर जहां हज़ारों लोग आंखों में ढेर सारे सपने लिए रोज़ आते हैं. इस शहर के बारे में एक सब से खास बात जो कही जाती है या समझी जाती है वह यह कि शहर न कभी रुकता है, न थकता है.

‘गेटवे औफ इंडिया’ इस शहर की शोभा को बढ़ा रहा है. यहां रातभर रोशनी से नहाई चकाचौंध सड़कें इस बात का एहसास कराती हैं कि यह शहर आम नहीं, बल्कि ख़ास है. दिल को सुकून देने वाली जुहू चौपाटी भी इस शहर में आने वालों के चेहरे पर मुसकान ले आती है.

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दिन में घूमने के लिए काफी खूबसूरत व प्यारी जगहें हैं, तो यहां की नाइटलाइफ भी उतनी ही खास है. इस के अलावा जो लोग बौलीवुड के दीवाने हैं, एक्टिंग जिन के मन में बसती है उन के लिए भी मुंबई बहुत खास है क्योंकि हिंदी फिल्म इंडस्ट्री यहीं है. फिल्मस्टार्स इसी शहर में रहते हैं.

इस तरह यह कहना सही होगा कि विश्व में चर्चित इंडिया का स्वप्निल शहर मुंबई सब का तहेदिल से स्वागत करता है. इस खूबसूरत शहर में सब के लिए कुछ न कुछ है और यह सब को कुछ न कुछ देता है, कोई जा कर दीदार तो करे. तो फिर दिल से कहिए न ‘लव यू मुंबई.’

घर जा रहे मजदूरों से मिलने आए सोनू सूद को रेलवे पुलिस ने रोका, जानें क्या है वजह

सोनू सूद जो कि पूरे भारत से अपने नेक कामों के लिए वाह वाही बटोर चुके हैं को बांद्रा रेलवे स्टेशन पर मजदूरों से मिलने से रोका गया तथा वापस जाने को बोला गया. आपको बता दें कि सोनू सूद अब तक कई हजार मजदूरों को उनके घर तक पहुंचाने में सफल हो चुके हैं. महाराष्ट्र सरकार उनकी पीठ थप थपाने की बजाए उनको यह नेक काम करने से रोकती नज़र आ रही है जो कि सही नही है. आखिर क्या है पूरा मामला, आईए गहराई से जानते हैं.

सोनू सूद को प्लेटफाॅर्म पर जाने से रोका

यह खबर आग की तरह फैल रही क्है कि सोमवार को रात में जब कुछ मजदूर बांद्रा से यू.पी. जाने के लिए ट्रेन में बैठे थे तो सोनू सूद उनसे मिलने के लिए बांद्रा रेलवे स्टेशन पर आए परंतु रेलवे पुलिस ने उनको स्टेशन के अंदर प्लेटफाॅर्म तक जाने से रोका व वापस जाने को बोला. हालांकि ऐसा कुछ समय के लिए ही हुआ व बाद में उनको मजदूरों से मिलने दिया. अतः यह खबर झूठ है कि अभिनेता सोनू सूद मजदूरों से बिना मिले ही वापस अपने घर चले गए.

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परंतु सोशल मीडिया के माध्यम से सोनू सूद ने यह स्पष्ट किया है कि उपर लिखित खबर पूरी तरह से झूठ है. सोनू सूद को मजदूरों से मिलने से नही रोका गया था. वह प्रवासी मजदूरों जिन्हें वे मुंबई से यू.पी भेज रहे थे से मिलने दिया गया था. यहां तक कि मुंबई पुलिस ने भी इस मामले में सफाई देते हुए कहा है कि सोनू सूद को हमने नहीं बल्कि रेलवे पुलिस फोर्स ने रोका था तथा बाद में उन्हे जाने भी दिया गया था.

ऐसी किसी भी खबर की बिना पुष्टि किए उसे आग की तरह नहीं फैलाना चाहिए. झूठी खबरों से बचिए तथा दूसरों को भी बचाइए. हमें कोशिश करनी चाहिए की इस संकट की घडी में जितना हो सके अफवाहों से बचें व एक दूसरे की अधिक से अधिक मदद करें.

महाराष्ट्र सरकार ने की सोनू सूद की सराहना

महाराष्ट्र के सी.एम उद्धव ठाकरे ने सोनू सूद की इस प्रशंसनीय काम के लिए पीठ थप थपाई है. उन्होने कहा है कि इस मुश्किल घडी में सभी को सोनू सूद की तरह एक दूसरे के साथ खडे होकर उनकी मदद करनी चाहिए तथा सरकार के साथ मिलकर इस मुसीबत भरी घडी से निकलने की कोशिश करनी चाहिए.

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Women’s Day 2020: जानें क्या कहते हैं बौलीवुड सितारे

महिला दिवस हर साल किसी न किसी रूप में विश्व में मनाया जाता है. महिलाएं आज आजाद है, पर आज भी कई महिलाएं बंद कमरे में अपना दम तोड़ देती है और बाहर आकर वे अपनी व्यथा कहने में असमर्थ होती है. अगर कह भी लिया तो उसे सुनने वाले कम ही होते है. इस पर कई फिल्में और कहानियां कही जाती रही है पर इसका असर बहुत कम ही देखने को मिलता है. आखिर क्या करना पड़ेगा इन महिलाओं को, ताकि पुरुष प्रधान समाज में सभी सुनने पर मजबूर हो? कुछ ऐसी ही सोच रखते है हमारे सिने कलाकार आइये जाने उन सभी से,

तापसी पन्नू

महिलाओं को पुरुषों के साथ सामान अधिकार मिले. ये केवल कहने से नहीं असल में होने की जरुरत है. इसके लिए समय लगेगा, पर होनी चाहिए. महिलाओं को भी अपनी प्रतिभा को निखारने और लोगों तक पहुंचाने की जरुरत है. आज महिला प्रधान फिल्में बनती है, क्योंकि महिलाओं ने अपनी काबिलियत दिखाई है. आज दो से तीन फिल्में हर महीने महिला प्रधान रिलीज होती है और लेखक ऐसी कहानियां लिख रहे है और निर्माता निर्देशक इसे बना भी रहे है.

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आलिया भट्ट

मैं हमेशा ये कहती रही हूं कि आपके सपने को आप कैसे भी पूरा करें. आप खुद अपने आप को औरत समझकर कभी पीछे न हटें. पुरुष प्रधान समाज में हमेशा लोग कहते रहते है कि आप औरत है और आपसे ये काम नहीं होगा. मेरे हिसाब से ऐसा कुछ भी नहीं है, जो औरतें कर नहीं सकती. आपमें बस हिम्मत की जरुरत है और यही मुझे दिख भी रहा है.

अंकिता लोखंडे

 

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My Dear #saree u were, u are, and u will be my first love forever ?#saree #indianbeauty ???????

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महिला दिवस महिलाओं के लिए एक अच्छा दिन है, लेकिन हर महिला को हमारे देश में सम्मान मिलने की जरुरत है. किसी औरत पर कुछ समस्या आने पर मैं सबसे पहले उसके लिए खड़ी होती हूं. मैं थोड़ी फेमिनिस्ट हूं. इसके अलावा आज की सभी लड़कियां भी बहुत होशियार है और इसे मैं अच्छा मानती हूं, वे जानती है कि उन्हें क्या करना है. मेरी छोटी बहन भी अपने हर काम में हमेशा फोकसड रहती है और वैसे आज के यूथ भी है. ये ग्रोथ है और इसे आगे बढ़ाने में सबका सहयोग होना चाहिए. महिला सशक्तिकरण ऐसे ही होगा,लेकिन कहना बहुत मुश्किल है कि महिलाओं का विकास कितना हुआ है, क्योंकि जहाँ भी पुरुषों को मौका मिलता है, वे उसे दबाने की कोशिश करते है, ऐसे में महिलाओं को बहुत मजबूत होने की जरुरत है. यही वह पॉवर है जब आप ऐसे किसी बात के लिए ना कह सकें. ‘ना’ कहने के लिए शिक्षा जरुरी है.

काजोल

 

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Sometimes a smile just isn’t enough…… #blue #leaveitlikethat #kapilsharmashow

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महिला दिवस मनाने से महिलाओं को ख़ुशी नहीं मिल सकती. उन्हें अलग नहीं बल्कि पुरुषों के समान अधिकार मिलने की जरुरत है. इसके लिए सभी महिलाओं को साथ मिलकर काम करनी चाहिए, क्योंकि अधिकतर एक महिला दूसरे को नीचा दिखाती है, जो ठीक नहीं. इसके अलावा एक माँ को अपने बेटे को मजबूती से परवरिश करने की जरुरत है , ताकि बड़े होकर वह किसी भी महिला को सम्मान दे सके.

नीना कुलकर्णी

महिलाओं पर अत्याचार सालों से होता आया है, पहले वे बंद कमरे में रहकर इसे सहती थी, क्योंकि कोई जानने या सुनने पर शर्म उस महिला के लिए ही होती थी, पर आज महिलाओं ने अपनी आवाज बुलंद की है और आगे आकर अपराधी को दंड देने से नहीं कतराती. इसमें भागीदारी सभी महिलाओं की जरुरी है, ताकि ऐसे दौर से गुजरने वाली किसी भी महिला को न्याय मिले, भूलकर भी कभी उनकी आलोचना न करें.

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प्रणाली भालेराव

महिला प्यार और केयर की प्रतिमूर्ति है. जितना एक महिला इसे कर सकती है, उतना कोई नहीं कर सकता. इसलिए इसके माँ, बहन, बेटी आदि कई रूप में देखने को मिलती है. महिला दिवस केवल एक दिन ही नहीं. बल्कि हमें हर दिन उतना ही प्यार, केयर और सम्मान उन्हें देनी चाहिए, जो हर रूप में हर दिन हमारे आसपास रहती है. तभी कोई आगे बढ़ सकता है. महिलाओं को भी अपनी देखभाल बिना डरे अपने लिए करनी चाहिए. मैंने वैसा ही किया और आज मुझे सबका सहयोग मिला है. गृहशोभा की सभी महिलाओं को महिला दिवस की शुभ कामनाएं देती हूं, ताकि वे हमेशा अपने जीवन में खुश रहे.

राजीव खंडेलवाल

 

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महिला दिवस मेरे लिए बहुत ख़ास है और मैं इस दिन को अपने पूरे परिवार के साथ मनाना पसंद करता हूं, क्योंकि मेरे आसपास महिलाएं ही किसी न किसी रूप में मेरे साथ है और उनकी वजह से मैं यहाँ तक पहुंच पाया हूं. ये केवल एक दिन नहीं हर दिन उनको ही समर्पित है. मैं उन्हें हमेशा सम्मान देता हूं, क्योंकि उनके बिना किसी की जिंदगी संभव नहीं.

मौनसून के रंग सितारों के संग    

आज से कई साल पहले ‘टिप टिप बरसा पानी…….’ फिल्म ‘मोहरा’ का ये गाना हिट हुआ, जिसकी रीमेक एक बार फिर किया जा रहा है. दरअसल बारिश की बूंदों को लेकर बनी तक़रीबन सभी गाने प्रकृति की रोमांस को दर्शाते है, जिसे फिल्मकारों ने अपनी फिल्मों में फिल्माने से कभी नहीं कतराएं, फिर चाहे वह देश में हो या विदेश में, उसकी सुन्दरता दर्शकों को हमेशा भाया और हो भी क्यों न? मानसून की बौछार से जनजीवन से लेकर पेड़ पौधे और जानवर सभी खिल जाते है, लेकिन जहां इस बारिश को कलाकार पर्दे पर भले ही रोमांटिक पहलू को जीवंत करने के लिए करते हो, पर असल जीवन में कुछ कलाकार को बारिश कतई पसंद नहीं, जबकि कुछ को पसंद भी है. क्या कहते है वे इस बारें में, आइये जाने उन्ही से.

मल्लिका शेरावत

मानसून को बहुत एन्जौय करती हूं. विदेश में भी बारिश होती है, पर वहां ठण्ड अधिक होने से अच्छा नहीं लगता. सूरज नहीं निकलता और डिप्रेसिंग होता है. हमारे देश में मानसून खुशियों के साथ नवजीवन को साथ लेकर आता है. माटी की सौधी-सौधी खुश्बू,गर्मी का कम होना,चारों तरफ हरियाली आदि सबकुछ देखना मुझे बहुत अच्छा लगता है. मुझे मानसून में समुद्री तट पर चलना बहुत पसंद है.

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तुषार कपूर

मानसून पहले मुझे अधिक पसंद नहीं था. बेटे के आने के बाद इसे मैं अधिक पसंद करने लगा हूं. इस मौसम में लक्ष्य के साथ मैं पार्क में जाता हूँ और वह 2 से 3 घंटे तक खेलता है. इसलिए अब मैं इसे पसंद करने लगा हूं.

सिमोन सिंह

मुझे मानसून बहुत अच्छा लगता है. इस मौसम में मिट्टी की भीनी-भीनी खुश्बू और पेड़ पौधों से टपकते बारिश की बूँदें इस मौसम में देखना बहुत अच्छा लगता है. बचपन से ही मैंने इसे एन्जॉय करती आई हूँ. ख़ासकर समुद्री तट इस मौसम में बहुत सुंदर लगता है.

विद्या बालन

मुझे इस मौसम में ठंडी हवा और बारिश को देखना बहुत अधिक पसंद है. मैंने बचपन से इसे पसंद किया है. सिर्फ आउटडोर शूटिंग और बाहर जाना इन दिनों मुश्किल होता है. गरम चाय और पकौड़े इस मौसम को और अधिक सुहावना बनाते है.

सोनाक्षी सिन्हा

मानसून मुझे पसंद नहीं. खास कर मुंबई में तो हर जगह पानी भर जाता है और इस मौसम में मुझे काम करना भी अच्छा नहीं लगता. उदासी वाले इस मौसम में कुछ भी करना मुझे पसंद नहीं. इस मौसम में मैं घर पर रहना पसंद करती हूँ.

आयुष्मान खुराना

मुझे बारिश और मानसून का मौसम बहुत पसंद है इसे मैं बहुत एन्जौय करता हूं. खास कर परिवार और दोस्तों के साथ रहने में मुझे बहुत अच्छा लगता है. पानी जीवन है और बारिश इसका एक माध्यम, जिसे मैं कभी मिस नहीं करना चाहता.

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कैटरीना कैफ

मुझे बारिश की बौछार से आने वाली माटी की खुश्बू बहुत पसंद है. इसे मैं मुंबई में रहकर एन्जौय करना चाहती हूं, लेकिन अगर ऐसा न हुआ, तो मैं इसे बहुत मिस करती हूं. बारिश की बूंदे मुझे बहुत अच्छी लगती है. बारिश की ये बूंदे प्यार और रोमांस का एहसास करवाते है.

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