कोरोनाकाल में विशाल का बर्थडे फिर पास आ रहा था वह अब तक अपना बर्थडे बहुत ही जोशखरोश के साथ मनाता आया था. उस के दोस्त संदली, तनु, मयंक और रजत चारों उस से वीडियो कौल पर बात कर रहे थे.
संदली ने कहा, ‘‘यार तेरा पिछला बर्थडे भी ऐसे ही चला गया था. लौकडाउन में ही तेरा पिछला बर्थडे निकल गया. घर में रहरह कर पक गए हैं. तेरा बर्थडे मिस करने का तो मन ही नहीं करता.’’
विशाल ने कहा, ‘‘देखो, तुम लोग भी घर से नहीं निकल रहे हो. मैं भी घर पर ही रहता हूं. मेरी मम्मी कह रही हैं कि सब लोग एक दिन के लिए मेरे घर आ कर ही रहो. बढि़या सैलिब्रेशन करते हैं. मम्मी तुम सब को बहुत मिस करती हैं. प्रोग्राम बनाओ, सब आ जाओ.’’
तो तय हो ही गया कि विशाल का बर्थडे तो इस बार जरूर मनेगा. सारा दिन लैपटौप पर बैठे बच्चे इस प्रोग्राम को ऐंजौय करने का मोह नहीं छोड़ पाए.
मस्ती मगर कैसे
मुंबई में अंधेरी में ही आसपास सब रहते थे. यह 25 से 30 साल के युवाओं का गु्रप था. लंबे समय से कोरोना में हुए लौकडाउन के कारण घर में बंद था. विशाल और उस की मम्मी सुधा बस घर में 2 ही लोग थे. विशाल के पिता थे नहीं, मम्मी वर्किंग थीं जो अब वर्क फ्रौम होम कर रही थीं.
घर में 2 ही लोग थे. टू बैडरूम फ्लैट था. बच्चों को मस्ती करने के लिए काफी जगह मिल जाती थी पर सब बच्चे विशाल की मम्मी सुधा आंटी के बारे में सोचते तो जाने का सारा उत्साह ठंडा पड़ जाता पर आपस में मिल कर मजा भी आता था और अब तो घर में बंद हो कर ही बहुत समय बिता लिया था तो विशाल के बर्थडे के लिए सब ने अपने घर वालों को जाने देने के लिए मना ही लिया.
संदली अपनी मम्मी से हंसते हुए कह रही थी, ‘‘सब जा तो रहे हैं, औफिस से सब ने छुट्टी भी ले ली है. रात उस के घर रुकने तो जा रहे हैं पर देखते हैं. आंटी इस बार ऐंजौय करने देंगीं या नहीं क्योंकि उन्हें भी इतने दिन से कोई मिला नहीं होगा, काफी भरी होंगी.’’
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दिल खोल कर स्वागत
सब बच्चे विशाल के घर पहुंचे तो सुधा ने दिल खोल कर उन का स्वागत किया. सब आपस में बहुत दिन बाद मिले थे. बहुत कुछ था जो कहनासुनना था. गेम्स खेलने का प्रोग्राम था. साथ बैठ कर कोई मूवी देखनी थी. फोन पर टच में रहना अलग था. सामने मिल कर बातें करने में अलग मजा आता है. सुधा ने हमेशा की तरह खानेपीने की बहुत अच्छी तैयारी की थी. काफी चीजें और्डर भी की गईं ताकि सुधा पर ज्यादा काम का बो झ न पड़े.
जब तक बच्चे डिनर कर के फ्री हो कर साथ बैठे, सुधा भी हमेशा की तरह उन के बीच आ बैठीं. इस समय रात के 10 बज रहे थे. सुधा ने सब को अब ध्यान से देखा. संदली काफी हैल्थ कौंशस थी. जंक फूड से बहुत दूर रहती. काफी स्लिमट्रिम थी. सुधा खुद काफी भारी शरीर की महिला थीं. संदली से बोलीं, ‘‘यह क्या हाल बना लिया है तुम ने अपना?’’
‘‘क्यों आंटी, क्या हुआ?’’
‘‘इतना स्लिम क्यों हो गई?’’
‘‘आंटी, मोटा हो कर क्या करना है,’’ संदली हंसी.
‘‘तुम्हारी मम्मी क्या तुम्हारी डाइट का ध्यान नहीं रखतीं?’’
‘‘अरे आंटी क्यों नहीं रखेंगी?’’
‘‘चलो, अपनी पूरी डाइट बताओ दिन की मु झे.’’
‘‘आंटी, नाश्ते में कभी पोहा, कभी उपमा, कभी आमलेट तो कभी परांठा खाती हूं. लंच में दाल, सब्जी, रायता होता है तो कभी कुछ…’’
सुधा बीच में ही बोलीं, ‘‘फू्रट्स कहां हैं तुम्हारी डाइट में?’’
‘‘आंटी, फ्रूट्स 4-5 बजे खाती हूं, फिर 8 बजे डिनर.’’
‘‘इस डाइट में कमी लग रही है. स्वीट्स में क्या खाती हो?’’
‘‘आंटी, स्वीट्स का तो मु झे शौक नहीं है.’’
‘‘पर ऐनर्जी कैसे मिलेगी?’’
‘‘आंटी, मैं ठीक हूं, कोई परेशानी नहीं है मु झे,’’ अंदर ही अंदर इन बातों पर चिढ़ती संदली बाहर से मुसकराते हुए पानी पीने का बहाना कर के उठ गई.
उस के जाते ही सुधा तनु से बोलीं, ‘‘बेटा, आप के पेरैंट्स आप की शादी का क्या सोच रहे हैं?’’
अब तनु के इंटरव्यू का नंबर था, ‘‘आंटी, मैं ने मम्मीपापा को कह दिया है कि अभी मु झे थोड़ा टाइम चाहिए.’’
‘‘तुम्हारे कहने से क्या होता है. उन्हें सोचना चाहिए. अब तुम 26 की हो गई न?’’
‘‘आंटी, उन्हें मेरी बात सम झ आ गई है. वे मु झ पर प्रैशर नहीं डाल रहे हैं.’’
‘‘अब उन्हें सोचना चाहिए. उन्होंने तुम्हारे लिए शादी की क्याक्या तैयारी की है.’’
‘‘अभी क्या करें? जब कोई बात ही नहीं है अभी.’’
‘‘फिर भी सोना तो खरीद कर रखना ही चाहिए न.’’
फिर उन की नजर मयंक पर गई, ‘‘मयंक, तुम कितनी सेविंग करते हो?’’
मयंक ने बताया, ‘‘काफी, आंटी, कई इंश्योरैंस प्लान ले रखे हैं.’’
‘‘क्यों? इतने क्यों? अरे, खाओपीयो, ऐंजौय करो, किस के लिए बचाना है?’’
सब बच्चे इस बात पर उन का मुंह देखने लगे और वे सब को यही सम झाती रहीं कि लाइफ में बचत की जरूरत क्या है, ऐंजौय करना चाहिए.
बच्चों के साथ ऐंजौय
सब बच्चे अपने पेरैंट्स से मिले सु झाव से बिलकुल उलट इस ज्ञान पर हैरान रह गए. 2 घंटे सिर्फ सुधा ही बोलती रहीं. बच्चे आपस में बिलकुल बात नहीं कर पाए और रात के 12 बजे विशाल के बर्थडे केक काटने की तैयारी होने लगी. तब जा कर सुधा से बच्चों को थोड़ा ब्रेक मिला.
केक और स्नैक्स में एक घंटा और बीत गया. इस दौरान सुधा ने भी बच्चों के साथ बहुत ऐंजौय किया. फिर सुधा बच्चों के साथ ही बैठ गईं तो विशाल ने कहा, ‘‘मम्मी, अब आप सो जाओ न. हम लोग कोई मूवी देखेंगे.’’
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‘‘हां, देखो, मैं भी सब के साथ देखती हूं.’’
‘‘ऊफ, मम्मी, आप सो जाओ न. इतनी रात हो गई है.’’
‘‘बाद में सो जाऊंगी,’’ सुधा ने फिर बच्चों के साथ ही मूवी देखी. फिर संदली, तनु और प्रिया सुधा के ही रूम में सोईं. विशाल, मयंक और रजत एकसाथ सो गए. सोते समय भी सुधा प्रिया से कह रही थीं, ‘‘तम्हारे पेरैंट्स ने तुम्हारे लिए कोई लड़का देखना शुरू किया?’’
प्रिया ने ऐसी ऐक्टिंग की जैसे वह बहुत नींद में है और जल्दी से ‘न’ कह कर चादर मुंह तक ओढ़ ली.
सब सुबह सो कर उठीं तो देखा सुधा रूम में नहीं थीं. प्रिया ने कहा, ‘‘यार, आंटी का क्या करें? आपस में तो बात कर ही नहीं पाते. इंटरव्यू ही देते रह जाते हैं.’’
तनु ने कहा, ‘‘यार संदली, जब तेरे घर आते हैं, कितनी शांति रहती है, कितना स्पेस देती हैं तेरी मम्मी. थोड़ी देर हम सब से मिल कर उठ जाती हैं. यहां तो ऐसे लगता है जैसे आंटी की जेल में बंद हो गए.’’
संदली फुसफुसाई, ‘‘धीरे बोल, कहीं आंटी अभी फिर न आ जाएं. मेरा तो रात में मन कर रहा था कि कार निकालूं और घर चली जाऊं. हर बार यही होता है कि हम आपस में कभी समय बिता ही नहीं पाते. ठीक है, आंटी को हमारे साथ अच्छा लगता होगा पर हमें तो जरा भी ऐंजौय नहीं करने देतीं. कितनी पर्सनल बातों पर कमैंट करती हैं. जरा भी अच्छा नहीं लगता. मेरी डाइट तो उन का प्रिय टौपिक है. ऐसे कहती हैं जैसे मेरे पेरैंट्स मु झे खिलाते ही नहीं.’’
इतने में सुधा आ गईं, ‘‘अरे, उठ गए तुम लोग. चलो, फ्रैश हो जाओ. नाश्ता बनाया है. उन लोगों को भी उठाती हूं. फिर बैठ कर थोड़ी बातें करते हैं.’’
संदली, तनु और प्रिया ने एकदूसरे को देखा और बड़ी मुश्किल से अपनी हंसी रोकी. सुधा ने बड़े प्यार से सब बच्चों को नाश्ता करवाया.
फिर संदली ने कहा, ‘‘आंटी, बहुत अच्छा लगा आ कर, अब हम घर चलते हैं.’’
‘‘अरे, चले जाना, इतने दिन बाद तो आए हो.’’
कोई फायदा नहीं
सुधा ने फिर शुरू किया अपने परिवार के बारे में वही सब बताना जो बच्चे पिछले कई सालों से सुनते आ रहे थे. अब तो बच्चों को ये किस्से याद हो गए थे. उन के रिश्तेदारों के नाम तक याद हो चुके थे.
विशाल ने बीचबीच में कहा, ‘‘मम्मी, बस कर दो न. आप पिछली बार भी तो यही सब बता रही थीं.’’
पर कोई फायदा नहीं था. 2 घंटे सुधा ने अपने किस्से हमेशा की तरह सुनाए जिन में किसी की भी रुचि नहीं थी. विशाल अपने दोस्तों के चेहरे देख रहा था पर सब उस के इतने अच्छे पुराने दोस्त थे कि कोई भी ऐसा रिएक्शन न देते जिस से किसी भी तरह का सुधा के लिए अपमान दिखे. सुधा ने कहा, ‘‘अरे, बच्चो, तुम्हें पता है मैं ने तुम लोगों के साथ आज टाइम पास करने के लिए छुट्टी ली हुई है, शाम तक जाना.’’
बच्चे रुक सकते थे पर हमेशा की तरह वे उन की बातों से मानसिक रूप से इतने थक गए थे कि जैसे उन की सारी ऐनर्जी खत्म हो गई है. सब घर जाने के लिए उठ ही गए.
संदली ही अपनी कार से प्रिया और तनु को उन के घर तक छोड़ रही थी. सब एक ही एरिया के थे.
प्रिया ने कहा, ‘‘यह ब्रेक लिया हम ने? थका देती हैं यार आंटी तो. मैं हर बार सोचती हूं कि नहीं जाऊंगी, पर विशाल की वजह से फिर आ जाती हूं. इस से तो अच्छा कि मैं छुट्टी ले कर आराम से घर पर सो लेती, अच्छा ब्रेक मिलता.’’
तनु ने कहा, ‘‘आंटी को शायद हम लोगों से बातें करना अच्छा लगता है. थोड़ी देर तो हमें भी अच्छा लगता है पर आंटी तो हम लोगों को आपस में भी कोई बात नहीं करने देतीं लगातार बोलती हैं यार.’’
‘‘इन की अपनी फ्रैंड्स नहीं हैं क्या, यार?’’
संदली ने ठंडी सांस लेते हुए कहा, ‘‘बस अब तुम लोग अपनी बात कर लो. भई, अब भी आंटी की ही बातें करनी हैं क्या? घर आने वाला है. मु झे तो लगता है हम बस अब फिर फोन पर ही बातें कर पाएंगें अपनी.’’
सवालों की बौछार
शामली में रहने वाली मीता अपनी सहेली अनु के घर जब भी जाती, उस की तलाकशुदा बुआ जो अनु के घर ही रहती थीं, उन दोनों के पास आ कर बैठतीं और ऐसेऐसे सवाल पूछतीं कि मीता घबरा जाती, ‘‘बौयफ्रेंड है? बहन अपने ससुराल में खुश है? लड़कों से दोस्ती है तुम्हारी?’’
फिर अगर अनु मीता के लिए कुछ चाय, पानी लेने किचन में जाती तो उस के जाते ही बुआ मीता से पूछती, ‘‘इस अनु का कोई बौयफ्रैंड तो नहीं है? कालेज में लड़कों से ज्यादा बातें करती है क्या? तुम तो इस की सहेली हो, सब जानती होगी, जल्दी बताओ कुछ.’’
मीता बस यही मनाती कि अनु जल्दी से आ जाए और बूआ के सवाल बंद हों.
ओमैक्स रैजीडैंसी, लखनऊ में रहने वाली अरीशा की कालेज में आरती से बहुत अच्छी दोस्ती हो गयी थी. वे बताती हैं, ‘‘मेरे डैड हमेशा उस समय मेरे आसपास घूमते, हमारी बातें सुनने की पूरी कोशिश करते जब भी आरती घर आती. मेरी बड़ी बहन अंजुम को तो हमेशा यही खोजबीन करनी होती कि आरती का कोई भाई तो नहीं है. जब पता चला, 2 भाई हैं, तो मैं जब भी आरती के घर जाने की बात करती, तो मेरी बहन कहतीं कि क्यों कर रखी है उस से दोस्ती.
‘‘कालेज में जितनी बात हो जाए हो जाए. एकदूसरे के घर बैठ कर तो बात करना ही मुश्किल था. हमारी बातें सुनने के लिए सब अपना काम छोड़ कर हमारे आसपास मंडराते कि पता नहीं क्या बातें कर लेंगे. जब घर में ही आराम से किसी दोस्त के साथ बैठ कर बातें न कर पाएं तो बड़ी कोफ्त होती है.’’
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एक अजीब स्थिति
मेरठ में रहने वाली रिद्धि का ऐक्सीडैंट हुआ. उस का पैर टूट गया था जिस वजह से बैड पर लेटेलेटे उस का कुछ वजन बढ़ गया था. सब बच्चे उसे देखने गए. उस की दादी भी वहीं आ कर बैठ गईं. एक एक बच्चे को ध्यान से देखती रहीं और फिर रिद्धि से कहने लगीं, ‘‘तू मोटी हो जाएगी लेटेलेटे, देख इन में से कोई मोटा नहीं है.’’
फिर ग्रुप में जो 2 लड़के भी उसे देखने गए थे, दादी ने उन से उन के घरपरिवार के बारे में इतने सवाल पूछे कि बच्चे जल्द ही शर्मिंदगी से भाग खड़े हुए. रिद्धि को अपनी दादी के सवाल बहुत नागवार गुजरे.
कई बार ऐसी गलतियां कर के बड़े बच्चों और उन के दोस्तों को एक अजीब स्थिति में डाल देते हैं जिन का उन्हें अंदाजा नहीं होता. कहीं आप भी तो यह गलती नहीं करतीं जब आप के बच्चों के दोस्त आप के घर आते हैं? युवा पीढ़ी से बात करते हुए बहुत सी बातों का ध्यान रखते हुए तालमेल बैठाना होता है.
आजकल इतने स्ट्रैस के माहौल में जब बच्चे दोस्तों के साथ इकट्ठे बैठ कर हंसनाबोलना चाहें तो उन्हें एक स्पेस दें. उन से मिलें, कुछ देर बातें भी करें पर अपना टाइम पास करने के चक्कर में उन के सिर पर न बैठे रहें. अपनी भपियाने की आदत पर कंट्रोल रखें. युवा बच्चों से उन की पर्सनल लाइफ पर सवाल करने की गलती न करें.