..तो क्या भारतीय पुरुष बदल गए हैं? या वक्त ने उन्हें बदलने पर मजबूर कर दिया है. आज जीवनषैली काफी कुछ बदल गई है जिसमें आपोजिट सेक्स के दोस्त जिंदगी का जरूरी हिस्सा बन गए हैं. फिर चाहे बात पुरुषों की हो या महिलाओं की. पर चूंकि पुरुष हमेषा से महिलाओं से दोस्ती की फिराक में रहते रहे हैं इसलिए उनके संबंध में यह कोई चैंकाने वाली बात नहीं है. लेकिन महिलाओं के नजरिये से देखें तो यह वाकई क्रांतिकारी दौर है. जब हर उम्र की महिलाओं को पुरुष दोस्तों की जरूरत महसूस हो रही है और सहज बात यह है कि उसके सगे संबंधी पुरुष चाहे वह पिता हो, भाई हो या पति सब इस जरूरत को जानते हैं और इसे महसूस करते हैं.
दरअसल आज की इस तेज रफ्तार जीवनषैली में समस्याओं का वैसा वर्गीकरण नहीं रहा है जैसा वर्गीकरण आधी सदी पहले तक हुआ करता था. मगर जमाना बदल गया है. कामकाज के तौरतरीके और ढंग बदल गए हैं, भूमिकाएं बदल गई हैं इसलिए अब समस्याओं का बंटवारा या कहें वर्गीकरण महिलाओं और पुरुषों के लिए अलग-अलग तरह का नहीं रह गया है बल्कि जो समस्याएं आज के कॅरिअर लाइफ में पुरुषों की हैं, वही समस्याएं महिलाओं की भी हैं. ऐसा होना आष्चर्य की बात भी नहीं हैै. जब महिलाएं हर जगह पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हों तो भला समस्याएं कैसे अलग-अलग किस्म की हो सकती हैं. तनाव और खुशियां दोनों ही मामलों में पुरुष और महिलाएं करीब आ गए हैं. नई कामकाज की शैली में देर रात तक पुरुष और महिलाएं विषेषकर आईटी और इंटरटेनमेंट इंडस्ट्री में साथ-साथ काम करते हैं. ..तो दोनों के बीच इंटीमेसी विकसित होना भी आम बात है.
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स्त्री और पुरुष एक दूसरे के पूरक होते हैं. मगर पहले चूंकि पुरुषों और महिलाओं के काम अलग-अलग थे इसलिए पूरक होने की उनकी परिस्थितियां भी अलग-अलग थीं. आज जो काम वर्षाें से सिर्फ पुरुष करते रहे हैं, महिलाएं भी उन कामों में हाथ आजमा रही हैं तो फिर महिलाओं को इन कामों में मास्टरी हासिल करने के लिए दिषा-निर्देष किससे मिलेगा? पुरुषों से ही न? ठीक यही बात पुरुषों पर भी लागू होती है. वेलनेस और सौंदर्य प्रसाधन क्षेत्र में पहले इस तरह पुरुष कभी नहीं थे जैसे आज हैं. तो फिर भला इन क्षेत्रों में वह महिलाओं से ज्यादा कैसे जान सकते हैं? ऐसे में कामकाज के लिहाज से उनकी स्वाभाविक दोस्त कौन होंगी? महिलाएं ही न! चूंकि दोनों ने एक दूसरे के क्षेत्र में हस्तक्षेप किया है, प्रवेष किया है इसलिए दोनों ही एक दूसरे के भावनात्मक और सहयोगात्मक स्तर पर भी नजदीक आ गए हैं. यह जरूरत भी है और चाहत भी. इसलिए पुरुषों और महिलाओं की दोस्ती आज शक के घेरों से बाहर निकलकर सहज स्वाभाविक पूरक होने के दायरे में आ गई है.
सिग्मंड फ्रायड ने 19वीं सदी में ही कहा था ‘आॅपोजिट सेक्स’ न सिर्फ एक दूसरे को आकर्षित करते हैं बल्कि प्रेरित भी करते हैं; क्योंकि दोनों कुदरती रूप से एक दूसरे के पूरक होते हैं. हालांकि इंसानों में यह भाव हमेषा से रहा है; लेकिन सामाजिक झिझक और मान्यताओं के दायरे में फंसे होने के कारण पहले स्त्री या पुरुष एक दूसरे की नजदीकी हासिल करने की स्वाभाविक इच्छा का खुलासा नहीं करते थे. मगर कामकाज के आधुनिक तौर-तरीकों ने जब एक दूसरे के बीच जेंडर भेद बेमतलब कर दिया तो इस मानसिक चाहत के खुलासे में भी न तो पुरुषों को ही, न ही महिलाओं को किसी तरह की दिक्कत नहीं रही.
पढ़ाई चाहे गांव में हो या शहरों में, अब आमतौर पर सहषिक्षा के रूप में ही हो रही है. पढ़ाई के बाद फिर साथ-साथ कामकाज और साथ-साथ कामकाज के बाद लगभग इसी तरह की जीवनषैली यानी ऐसे समाज में जीवन गुजारना, जहां स्त्री और पुरुष के बीच मध्यकालीन भेद नहीं होता. ऐसे में पुरुष स्त्री एक दूसरे के दोस्त सहज रूप से बनते हैं. मगर यह बात तो दोनों पर ही लागू होती है फिर पुरुषों के बजाय महिलाओं के मामले में ही यह क्यों चिन्हित हो रहा है या देखने में आ रहा है कि आज हर उम्र की महिलाओं को पुरुष दोस्तों की जरूरत है? इसके पीछे वजह यह है कि महिलाओं के संदर्भ में यह नई बात है. यह पहला ऐसा मौका है जब महिलाएं खुलकर अपनी इस जरूरत को रेखांकित करने लगी हैं. जबकि इसके पहले तक वह घर-परिवार, समाज और जमाने की नाखुषी से अपनी इस चाहत और जरूरत को रेखांकित करने में झिझकती रही हैं. लेकिन इंटरनेट, भूमंडलीकरण और तेजी से आर्थिक और कामकाजी दुनिया मंे परिवर्तन के चलते जो आध्ुनिकता आयी है उसने यह वातावरण बनाया है कि महिलाएं अपनी बात खुलकर कह सकें, अपनी जरूरत को सहजता से सबके सामने रख सकें.
समाजषास्त्रियों को यह सवाल परेषान कर सकता है कि महिलाएं तो हमेषा से पुरुषों के साथ ही रही हैं. पति, पिता, पुत्र और भाई के रूप में हमेषा महिलाओं के साथ पुरुषों की मौजूदगी रही है. फिर उन्हें अपनी मन की बात शेयर करने के लिए या तनाव से राहत पाने के लिए अथवा कामकाज सम्बंधी सहूलियतें व जानकारियां पाने के लिए पुरुष दोस्तों की इतनी जरूरत क्यों पड़ रही है? दरअसल पति, पिता, पुत्र और भाई जैसे रिष्ते महिलाओं के पास सदियों से मौजूद रहे हैं और सदियों की परम्परा ने इनके कुछ मूल्यबोध भी निष्चित कर दिये हैं. इसलिए रातोंरात उन मूल्यों या बोधों को उलटा नहीं जा सकता. कहने का मतलब यह है कि पुरुष होने के बावजूद भाई, पिता, पति और पुत्र अपने सम्बंधों की भूमिका में ज्यादा प्रभावी होते हंै. इसलिए कोई भी महिला इन तमाम पुरुषों से सब कुछ शेयर नहीं कर सकती या अपनी चाहत या जिंदगी, महत्वाकांक्षाओं और दुस्साहसों को साझा नहीं कर सकती जैसा कि वह किसी पुरुष दोस्तों से कर सकती है.
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इसलिए इन तमाम पुरुषों के बावजूद महिलाओं को आज की तनावभरी जीवनषैली में सफलता से आगे बढ़ने के लिए घर के पुरुषों से इतर पुरूष दोस्तों की षिद्दत से जरूरत महसूस होती है. 10 या 12 घंटे तक लगातार पुरूषों के साथ काम करने वाली महिलाएं उनके साथ वैसा ही बर्ताव नहीं कर सकतीं जैसा बर्ताव वह अपनी निजी सम्बधों वाले जीवन में करती हैं. 8 से 12 घंटे तक लगातार काम करने वाली कोई महिला सिर्फ सहकर्मी होती है और उतनी ही बराबर जितना कोई भी दूसरा पुरुष सहकर्मी यानी वह पूरी तरह से सहकर्मी के साथ स्त्री के रूप में भी होती है और पुरूष के रूप में भी. यही ईमानदारी दोनों को आकर्षित भी करती है और प्रेरित भी करती है. जिससे काम, बोझ की बजाय रोमांच का हिस्सा बन जाता है. इसलिए तमाम सगे संबंधी पुरुषों के बावजूद महिलाओं को आज की जिंदगी में सहजता से संतुष्ट जीवन जीने के लिए हर मोड़ पर, हर कदम पर पुरुषों के साथ और उनसे दोस्ती की दरकार होती है.
यह देखा गया है कि जहां पुरुष-पुरूष काम करते हैं या सिर्फ महिला-महिला काम करती हैं, वहां न तो काम का उत्साहवर्धक माहौल होता है और न ही काम की मात्रा और गुणवत्ता ही बेहतर होती है. इसके विपरीत जहां पुरूष और महिलाएं साथ-साथ काम करते हों, वहां का माहौल काम के लिए ज्यादा सहज, अनुकूल और उत्पादक होता है. इसलिए तमाम कारपोरेट संगठन न सिर्फ पुरुषों और महिलाओं को साथ-साथ काम में रखने के लिए प्रोत्साहित करते हैं बल्कि उनमें दोस्ती पैदा हो, गाढ़ी हो इसके लिए भी माहौल का सृजन करते हैं. यही कारण है कि आज चाहे वह स्कूल की किषोरी हो, काॅलेज की युवती हो, दफ्तर की आकर्षक सहकर्मी हो या कोई भी हो. हर महिला को अपनी दुनिया में पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने के लिए पुरुषों का साथ चाहिए. यह बुरा कतई नहीं है बल्कि बेहतर समाज का बुनियादी रुख ही दर्षाता है. अगर पुरुष और महिला एक दूसरे के दोस्त होंगे, एक दूसरे के ज्यादा नजदकी होंगे तो वह एक दूसरे को ज्यादा बेहतर समझेंगे और ज्यादा बेहतर समझेंगे तो दुनिया ज्यादा रंगीन होगी.