जब हम संसार में होश संभालते हैं, तभी से निरंतर प्रगतिशील होने की प्रेरणा दी जाती है. जिस के पास जितनी अधिक दौलत है वह उतना ही सफल माना जाता है. इसी विचारधारा के अंतर्गत टीवी, रेडियो, अखबार, पत्रिकाएं, वैबसाइट्स व सड़क पर खड़े बिलबोर्डों के विज्ञापन चीखचीख कर अपनी ओर आकर्षित कर हम से कहते हैं, ‘ज्यादा है तो बेहतर है’, ‘यों जियो जैसे कल हो न हो’, ‘लिव लाइक किंग साइज’ आदि.
लिहाजा, हम अपने सपनों के संसार का विस्तार कर उस की पूर्ति के लिए अंधी दौड़ में भागे जाते हैं और भागते ही रहते हैं. बस, एक ही लक्ष्य होता है, हमारे पास सबकुछ हो, बहुत हो और लेटैस्ट हो. ज्यादा बेहतर है, को हमें इतना रटाया गया होता है कि हम इसे जीवन की सचाई मान बैठते हैं और इसी में उलझे रहते हैं.
विश्व के जानेमाने लेखक औस्कर वाइल्ड कहते हैं, ‘‘जीवन उलझा हुआ नहीं है, हम उलझे हुए हैं. सादगी से जीना ही असली जीवन है.’’
असल में ‘ज्यादा बेहतर है’ मंत्र के विपरीत आजकल एक नई सोच, ‘गोइंग मिनिमिलिस्टिक’ यानी जीवन की आवश्यकताएं कम की जाएं, उभर रही है.
इस विचार के पक्षधर माइक्रोसौफ्ट कंपनी की इकाई माइक्रोसौफ्ट एक्सिलरेटर कंपनी के सीईओ मुकुंद मोहन बेंगलुरु में रहते हैं. उन्होंने वर्ष 2001 से अपने जीवन में बदलाव लाना शुरू किया और अति सूक्ष्मवादी जीवनशैली अपना ली. उन के बच्चे व पत्नी भी इसी जीवनशैली से जीते हैं. इस से पूर्व वे अमेरिका में कई उच्चस्तरीय कंपनियों में कार्यरत रहे. वहां औडी व बीएमडब्लू गाड़ी चलाते थे. भारत में आ कर मारुति औल्टो खरीदी. पर आज वे बस द्वारा अपने दफ्तर जाते हैं. सूटबूट तथा उच्चस्तरीय वस्तुओं को छोड़ सादा व सरल जीवन जी रहे हैं.
इस विचार से प्रभावित लोग पुरानी रीति पर चलना चाह रहे हैं जब कम सामान के साथ जीवन व्यतीत किया जाता था. हाल ही में अमेरिकन टीवी कलाकार व जनसेविका ओपरा विनफ्रे ने अपना बहुत सारा सामान बेच दिया ताकि मनमस्तिष्क हलके हो जाएं. उन का मानना है कि हमारे साधन सीमित हैं, इसलिए इन का प्रयोग आवश्यकतानुसार सोचसमझ कर करना चाहिए.
ऐसी ही ऐच्छिक सादगीपूर्ण जीवन जीने के पक्षधर हैं अंकुर वारिकू. वे नियरबाय कंपनी के सीईओ हैं. वे कहते हैं, ‘‘मैं महंगा व फैंसी सामान नहीं खरीदता क्योंकि महंगी व बड़ी कार भी वही कार्य करती है जो एक छोटी कार करती है. दोनों गाडि़यों का कार्य एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाना ही होता है. इसलिए छोटीबड़ी गाड़ी से क्या फर्क पड़ता है.’’
इसी सोच के धारक हैं विंसेंट कार्थेसर जोकि एक ऐक्टर हैं. वे कार के बजाय बस द्वारा जाना या पैदल जाना ज्यादा पसंद करते हैं.
ऐसे लोगों की अब संख्या बढ़ रही है. बौलीवुड स्टार सिद्धार्थ मल्होत्रा अपने काम पर साइकिल से जाते हैं. वहीं ऐक्टर नाना पाटेकर अपनी सादगीपूर्ण जिंदगी अपने फौर्म हाउस (पुणे) में ही रह कर जीना पसंद करते हैं. पिछले 10 वर्षों से उन्होंने एक ही गाड़ी रखी हुई है. वे ज्यादा सामान खरीदना/रखना पसंद नहीं करते. इसी तरह बौलीवुड डायरैक्टर मंसूर खान भी अपने औरगैनिक फौर्म पर रह कर सादा जीवन जीते हैं. उन का मानना है कि अगर खुशी चाहिए तो भौतिकवाद से दूर रहें, जरूरत के सामान पर ही निर्भर रहें. भौतिकवाद आप को अपने परिवार के लिए समय नहीं देता, फलरूप, मन अशांत रहता है.
लेखक पीको अय्यर का कहना है कि भोजन सादा खाना चाहिए, फास्टफूड आदि से दूर रहें.
रौ फूड एक्सपर्ट डा. सूर्या कौर कहती हैं, ‘‘सादगी अपनी रसोई से ही शुरू करें. अपनी बौडी के हिसाब से उतना ही खाना खाएं जो पचा सकें.’’ अमेरिकन सोशलवर्कर क्रिस्टीकेन भी सादा भोजन की पक्षधर हैं. वे हलकी आंच से पका चावल खाना पसंद करती हैं.
40 वर्षीय मुंबई बेस्ड पीयूष शाह, जो कि आईटी प्रोफैशनल हैं, ने मुहिम चलाई है, ‘साइकिल टू वर्क.’ उन के अनुसार, साइकिल ईकोफ्रैंडली होने के साथसाथ चुस्तदुरुस्त भी रखती है. अपना बड़ा मकान बेच कर अब ये वनरूम अपार्टमैंट में रहते हैं. वे चाहते हैं कि जीवन सहज व सरल तरीके से व्यतीत हो.
दुनियाभर में मशहूर अमेरिकी व्यवसायी वारेन बफेट तो अपने पास सैलफोन तक नहीं रखते और वे डायरैक्टर क्रिस्टोफर नोलान की तरह ही सादा जीवन व्यतीत करते हैं.
ऐच्छिक सादगी से तात्पर्य कंजूसी से जीना नहीं है और न सबकुछ छोड़ कर ही जीना है बल्कि बेकार के खर्चों पर नियंत्रण करना है. सामान कम करना है और कम करते समय स्वयं से पूछना है कि क्या इस सामान की जरूरत है? तो ज्यादातर जवाब मिलेगा, नहीं. फिर आप बाकी बचे सामान के लिए भी सोचें कि क्या उस के बिना आप रह सकते हैं. तब आप और भी सामान कम कर पाएंगे यानी सीधा सा अर्थ है कि ऐच्छिक सादगी अनचाहे खर्चों को कम करना है.
एक और उदाहरण से आप रूबरू हों. डैनियल सुएलो नामक व्यक्ति ने एक दिन अपनी सारी पूंजी एक टैलीफोन बूथ पर छोड़ दी और वे जंगल व गुफाओं की ओर प्रस्थान कर गए. उन्होंने अपना जीवन जंगली फलफूल पर आश्रित हो व्यतीत किया. इन के ऊपर एक पुस्तक ‘द मैन हू क्विट मनी’ भी लिखी गई है जोकि बहुत पौपुलर हुई.
पर यह एक तरीके से सादा जीवन या अतिसूक्ष्मवाद की पराकाष्ठा है. फिर भी इस से एक शिक्षा तो मिलती है कि संसार के अरबपति, करोड़पति अपनी संपत्ति से कुछ कमी करें तो विश्व से गरीबी खत्म नहीं तो काफी कम तो की ही जा सकती है.
गौर करें तो इन सभी भावों का संबंध भौतिकता से है. अतिसूक्ष्मवाद या ऐच्छिक सादगी अपनाने का अर्थ जीवन को कम से कम वस्तुओं, आवश्यकताओं के साथ व्यवस्थित करने से है. केवल पदार्थवादी व अनआत्मवाद संबंधी जीवन जी कर हम अपने जीवन में अनावश्यक क्लेश घोलते हैं.
ऐसे टिप्स जो जीवन को सहज व सरल बनाने में सहयोगी होंगे :
- अपने खर्चों पर ध्यान रखें. अच्छा हो कि अपने खर्चों को लिखें ताकि अनावश्यक खर्च पर रोक लग सके.
- क्रैडिट कार्ड का प्रयोग न के बराबर करें.
- रात में मोबाइल फोन तथा वाईफाई बंद रखें.
- फोन की हर बीप पर उसे औन न करें.
- सादगी को ध्यान में रख कर अपनी दिनचर्या में शामिल करें, यह एक सहज कदम होगा.
- जो ज्यादा है उसे जरूरतमंदों में बांट दें. इस से जो खुशी व संतुष्टि मिलेगी वह अप्रतिम होगी.
- जरूरत पड़ने पर ही शौपिंग करें. इसे अपनी हौबी या प्रैस्टिज इश्यू न बनने दें.
- अपनी बौर्डरोब हलकी रखें, क्योंकि पहनेंगे वही जो आप को बहुत पसंद है.