न्यूरोसर्जरी के क्षेत्र में प्रगति के साथ आज ब्रेन ट्यूमर के इलाज में विभिन्न प्रकार की मिनिमली इनवेसिव प्रक्रियाएं शामिल हो चुकी हैं. एंडोस्कोपिक सर्जरी भी इसी प्रकार की सर्जरी है जो मुश्किल से मुश्किल ब्रेन ट्यूमर के इलाज में कारगर साबित हुई है.
इस प्रक्रिया में एक पतली ट्यूब का इस्तेमाल किया जाता है जिसके छोर पर एक कैमरा लगा होता है. यह कैमरा ट्यूमर को ढूंढ़कर इलाज करने में मदद करता है. अच्छी बात यह है कि इस प्रक्रिया में मस्तिष्क के स्वस्थ भाग को नुकसान पहुंचाए ही ट्यूमर को बाहर कर दिया जाता है. कई मुश्किल मामलों में बेहतर परिणामों के लिए इसे रोबोटिक साइबरनाइफ रेडिएशन थेरेपी के साथ इस्तेमाल किया जाता है. इस प्रकार ट्यूमर के अतिरिक्त छोटे टुकड़ों को भी बाहर किया जा सकता है.
आर्टमिस हॉस्पिटल के अग्रिम इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूरो साइंसेस में न्यूरोसर्जरी विभाग के निदेशक, डॉक्टर आदित्य गुप्ता ने बताया कि, “जब ट्यूमर बढ़ने लगता है तो वह मस्तिष्क और वहां मौजूद उत्तकों पर दबाव बनाता है. यदि समय पर इसकी जांच की जाए तो इसके खतरे को कम किया जा सकता है. मस्तिष्क में मौजूद कोशिकाएं जब खराब होने लगती हैं तो बाद में जाकर ब्रेन ट्यूमर का रूप ले लेती हैं. ये ट्यूमर कैंसर वाला या बिना कैंसर वाला हो सकता है. जब कैंसर विकसित होता है तो यह मस्तिष्क में गहरा दबाव डालता है, जिससे ब्रेन डैमेज होने के साथ मरीज की जान तक जा सकती है. लगभग 45% ब्रेन ट्यूमर बिना कैंसर वाले होते हैं, इसलिए समय पर इलाज के साथ मरीज की जान बचाई जा सकती है.”
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ब्रेन ट्यूमर, भारत में हो रहीं मौतों का दसवां सबसे बड़ा कारण है. इस घातक बीमारी के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं, जहां विभिन्न प्रकार के ट्यूमर अलग-अलग उम्र के लोगों को अपना शिकार बना रहे हैं. इंटरनेशनल एसोसिएशन ऑफ कैंसर रेजिस्ट्रीज (आईएआरसी) द्वारा निकाली गई ग्लोबोकैन 2018 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में, हर साल ब्रेन ट्यूमर के लगभग 28,000 नए मामले दर्ज किए जाते हैं. इस घातक कैंसर के कारण अबतक लगभग 24000 मरीजों की मौत हो चुकी है.
डॉक्टर आदित्य गुप्ता ने और अधिक जानकारी देते हुए बताया कि, “ब्रेन ट्यूमर को प्राइमरी और सेकंडरी तौर पर विभाजित किया जाता है. प्राइमरी ब्रेन ट्यूमर वह है, जो मस्तिष्क में ही विकसित होते हैं जिनमें से कई कैंसर का रूप नहीं लेते हैं. सेकेंडरी ब्रेन ट्यूमर को मेटास्टेटिक ब्रेन ट्यूमर के नाम से भी जाना जाता है. यह ट्यूमर तब होता है जब कैंसर वाली कोशिकाएं स्तन या फेफड़ों आदि जैसे अन्य अंगों से फैलकर मस्तिष्क तक पहुंच जाती हैं. अधिकतर ब्रेन कैंसर इन्हीं के कारण होता है. ग्लाइओमा (जो ग्लायल नाम की कोशिकाओं से विकसित होते हैं) और मेनिंग्योमा (जो मस्तिष्क और स्पाइनल कॉर्ड की परत से विकसित होते हैं) व्यस्कों में होने वाले सबसे आम प्रकार के ब्रेन ट्यूमर हैं.”
ब्रेन ट्यूमर के लक्षण और संकेत ट्यूमर के आकार और जगह पर निर्भर करते हैं. कुछ लक्षण सीधा ब्रेन टिशू को प्रभावित करते हैं जबकी कुछ लक्षण मस्तिष्क में दबाव डालते हैं. ब्रेन ट्यूमर का निदान फिजिकल टेस्ट के साथ शुरू किया जाता है, जहां पहले मरीज से बीमारी के पारिवारिक इतिहास के बारे में पूछा जाता है. फिजिकल टेस्ट के बाद कुछ अन्य जांचों की सलाह दी जाती है जैसे कि एमआरआई, सीटी स्कैन.
साइबरनाइफ एम6 एक नॉन-इनवेसिव प्रक्रिया है, जिसमें सर्जरी के बाद मरीज बहुत जल्दी रिकवर करता है. एम6 इलाज के दौरान 3डी इमेजिंग तकनीक ट्यूमर की सही जगह देखने में मदद करता है, जिससे इलाज आसानी से सफल हो पाता है. इस प्रक्रिया में किसी प्रकार के चीरे की आवश्यकता नहीं पड़ती है, जिससे मरीज पर कोई घाव नहीं होने के कारण वह सर्जरी के बाद जल्दी रिकवर करता है. जबकी सर्जरी की पुरानी तकनीक में मरीज को कई समस्याएं होती हैं. जबकी यह प्रक्रिया 1 से 5 सिटिंग्स में पूरी हो जाती है और हर सिटिंग में आधे घंटे का समय लगता है. इस प्रकार न तो मरीज को कोई असुविधा महसूस होती और ट्यूमर भी दूसरे अगों तक नहीं फैलता है.
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साइबरनाइफ रेडिएशन थेरेपी का विशेष फायदा यह है कि यह मस्तिष्क के काम को प्रभावित किए बिना ही ट्यूमर का इलाज कर देता है. लेकिन जिन मरीजों का कैंसर पूरे शरीर में फैल जाता है, उनका इलाज होल ब्रेन रिजर्व थेरेपी (डबल्यूबीआरटी) से किया जाता है. साइबरनाइफ तकनीक ऐसे मरीजों का इलाज करने में सक्षम नहीं है. मेलानोमा जैसे फैलने वाले कैंसरों का इलाज केवल साइबरनाइफ तकनीक से ही किया जा सकता है.