‘‘ब्रेकअप,’’अमेरिका से फोन पर रागिनी के यह शब्द सुन कर मदन को लगा जैसे उस के कानों में पिघलता शीशा डाल दिया गया हो. उस की आंखों में आंसू छलक आए थे.
उस की भाभी उमा ने जब पूछा कि क्या हुआ मुन्नू? तेरी आंखों में आंसू क्यों? तो वह रोने लगा और बोला, ‘‘अब सब कुछ खत्म है भाभी… 5 सालों तक मुझ से प्यार करने के बाद रागिनी ने दूसरा जीवनसाथी चुन लिया है.’’
भाभी ने उसे तसल्ली देते हुए कहा, ‘‘मुन्नू, तू रागिनी को अब भूल जा. वह तेरे लायक थी ही नहीं.’’
उमा मदन की भाभी हैं, जो उम्र में उस से 10 साल बड़ी हैं. वे मदन को प्यार से मुन्नू बुलाती हैं. मदन महाराष्ट्र का रहने वाला है. मुंबई के उपनगरीय छोटे शहर में उस के पिताजी राज्य सरकार में नौकरी करते थे. उन का अपना एक छोटा सा घर था. मदन की मां गृहिणी थीं. मदन के एक बड़े भाई महेश उस से 12 साल बड़े थे. मदन के मातापिता और बड़ा भाई किसी जरूरी कार्य से मुंबई गए थे. 26 नवंबर की शाम को वे लोग लौटने वाले थे. मगर उसी शाम को छत्रपति शिवाजी टर्मिनल पर आतंकी हमले में तीनों मारे गए थे. उस समय मदन 11वीं कक्षा में पढ़ रहा था. आगे उस की इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने की इच्छा थी. पढ़ने में वह काफी होशियार था. पर उस के सिर से मातापिता और भैया तीनों का साया अचानक उठ जाने से उसे अपना भविष्य अंधकारमय लगने लगा था.
मदन के अभिभावक के नाम पर एकमात्र उस की भाभी उमा ही बची थीं. उमा का 5 साल का एक लड़का राजेश भी था. पर उमा ने मदन को कभी भी अपने बेटे से कम प्यार नहीं किया. उमा को राज्य सरकार में अनुकंपा की नौकरी भी मिल गई थी और सरकार की ओर से कुछ मुआवजा भी. अब उमा ही मदन की मां, पिता और भाई सब कुछ थीं. मदन भी उमा को मां जैसा प्यार और सम्मान देता था. मदन ने
पढ़ाई जारी रखी. उसे भाभी ने विश्वास दिला रखा था कि वे उसे हर कीमत पर इंजीनियर बना कर रहेंगी.
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मदन का महाराष्ट्र के अच्छे इंजीनियरिंग कालेज में मैरिट पर दाखिला हो गया. इस कालेज में बिहार के भी काफी विद्यार्थी थे, जो भारीभरकम डोनेशन दे कर आए थे. इन्हीं में एक लड़की रागिनी भी थी, जो मदन के बैच में ही पढ़ती थी. वह पढ़ाईलिखाई में अति साधारण थी. इसीलिए उस के पिता ने डोनेशन दे कर उस का भी ऐडमिशन करा दिया था. उस के पिता केंद्र सरकार के एक उपक्रम में थे जहां ऊपरी आमदनी अच्छी थी. रागिनी को पिता से उस के बैंक अकाउंट में काफी पैसे आते थे और उस का अपना एटीएम कार्ड था. वह दिल खोल कर पैसे खर्च करती थी. अपने दोस्तों को बीचबीच में होटल में खिलाती थी और कभीकभी मूवी भी दिखाती थी. इसलिए उस के चमचों की कमी नहीं थी. सैकंड ईयर के अंत तक उस की दोस्ती मदन से हुई. मदन वैसे तो अपना ध्यान पढ़ाई में ही रखता था, पर दोनों एक ही ग्रुप में थे, इसलिए वह रागिनी की पढ़ाई में पूरी सहायता करता था. रागिनी उस की ओर आकर्षित होने लगी थी. थर्ड ईयर जातेजाते दोनों में दोस्ती हो गई, जो धीरेधीरे प्यार में बदलने लगी.
रागिनी और मदन अब अकसर शनिवार और रविवार को कौफी हाउस में कौफी पर तो कभी किसी होटल में खाने पर मिलते थे पर पहल रागिनी की होती थी. दोनों ने अमेरिका में एमएस करने का निश्चय किया और इस के लिए जरूरी परीक्षा भी दी थी.
मदन अपनी भाभी से कुछ भी छिपाता नहीं था. रागिनी के बारे में भी बता रखा था. दोनों सोच रहे थे कि स्कौलरशिप मिल जाती, तो रास्ता आसान हो जाता.
अमेरिका में पढ़ाई के लिए लाखों रुपए चाहिए थे. हालांकि रागिनी को कोई चिंता न थी. उस के पिता के पास पैसों की कमी नहीं थी. रागिनी की बड़ी बहन का डोनेशन दे कर मैडिकल कालेज में दाखिला करा दिया था. खैर, रागिनी और मदन दोनों की इंजीनियरिंग की पढ़ाई तो पूरी हो गई पर स्कौलरशिप दोनों में से किसी को भी नहीं मिल सकी थी.
स्टूडैंट वीजा एफ 1 के लिए पढ़ाई और रहने व खानेपीने पर आने वाली राशि की उपलब्धता बैंक अकाउंट में दिखानी होती है. रागिनी के पिता ने तो प्रबंध कर दिया पर मदन बहुत चिंतित था. उस की भाभी उमा सब समझ रही थीं.
उन्होंने मदन को भरोसा दिलाते हुए कहा, ‘‘मुन्नू, तू जाने की तैयारी कर. मैं हूं न. तेरा सपना जरूर पूरा होगा.’’
और उमा ने गांव की कुछ जमीन बेच कर और कुछ जमा पैसे निकाल कर मदन के अमेरिका में पढ़ाई के लिए पैसे बैंक में जमा करा दिए. रागिनी और मदन दोनों को वीजा मिल गया और दोनों अमेरिका चले गए. पर दोनों का ऐडमिशन अलगअलग यूनिवर्सिटी में हुआ था.
खैरियत थी कि दोनों के कालेज मात्र 1 घंटे की ड्राइव की दूरी पर थे. रागिनी को कैलिफोर्निया की सांता क्लारा यूनिवर्सिटी में ऐडमिशन मिला था जबकि मदन को उसी प्रांत की विश्वस्तरीय बर्कले यूनिवर्सिटी में. रागिनी अमीर बाप की बेटी थी. उस ने अमेरिका में एक कार ले रखी थी. दोनों वीकेंड (शुक्रवार से रविवार) में अकसर मिलते. साथ खानापीना और रहना भी हो जाता था. ज्यादातर रागिनी ही मदन के पास जाती थी. कभी मदन रागिनी के यहां बस से चला जाता तो रविवार रात को वह मदन को कार से छोड़ देती थी. दोनों एकदूसरे को जन्मदिन और वैलेंटाइन डे पर गिफ्ट जरूर देते थे. यह बात और थी कि रागिनी के गिफ्ट कीमती होते थे.
मदन ने भाभी को सब बातें बता रखी थीं. उधर रागिनी ने भी मातापिता को अपनी लव स्टोरी बता दी थी. उमा भाभी को कोई आपत्ति नहीं थी. उन्होंने मदन से बस इतना ही कहा था कि कोई गलत कदम नहीं उठाना और किसी लड़की को धोखा नहीं देना. मदन ने भी भरोसा दिलाया था कि वह ऐसा कोई काम नहीं करेगा.
रागिनी के पिता को मदन के महाराष्ट्रियन होने पर तो आपत्ति नहीं थी, पर उस की पारिवारिक स्थिति और विशेष कर आर्थिक स्थिति पसंद नहीं थी और उन्होंने बेटी से साफ कहा था कि कोई अच्छा पैसे वाला लड़का ही उस के लिए ठीक रहेगा. शुरू में रागिनी ने कुछ खास तवज्जो इस बात को नहीं दी थी और उन का मिलनाजुलना वैसे ही जारी रहा था. दोनों ने शादी कर आजीवन साथ निभाने का वादा किया था.
मदन लगभग 2 साल बाद अपनी मास्टर डिगरी पूरी कर भारत आ गया था. उधर
रागिनी भी उसी के साथ अमेरिका से मुंबई तक आई थी.
वह 2 दिन तक मदन के ही घर रुकी थी.
उमा भाभी ने उस से पूछा भी था, ‘‘अब तुम दोनों का आगे का क्या प्रोग्राम है?’’
रागिनी ने कहा, ‘‘भाभी, अभी मास्टर्स करने के बाद 1 साल तक हम दोनों को पीटी (प्रैक्टिकल ट्रेनिंग) करने की छूट है. इस दौरान हम किसी कंपनी में 1 साल तक काम कर सकते हैं और हम दोनों को नौकरी भी मिल चुकी है. इस 1 साल के पीटी के बाद हम दोनों शादी कर लेंगे. आप को मदन ने कुछ बताया नहीं?’’
‘‘नहींनहीं, ऐसी बात नहीं है. मदन ने सब कुछ बताया है. पर शादी के बाद क्या करना है, मेरा मतलब नौकरी यहां करोगी या अमेरिका में?’’ भाभी ने पूछा.
रागिनी ने कहा, ‘‘मैं ने सब मदन पर छोड़ दिया है. जैसा वह ठीक समझे वैसा ही होगा, भाभी. अब आप निश्चिंत रहिए.’’
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2 दिन मुंबई रुक कर रागिनी बिहार अपने मातापिता के घर चली गई. रागिनी की बात सुन कर उमा को भी तसल्ली हो गई थी. उन की तबीयत इन दिनों ठीक नहीं रहती थी. उन्हें अपनी चिंता तो नहीं थी पर उन का बेटा राजेश तो अभी हाईस्कूल में ही था. मदन ने भी उन्हें भरोसा दिलाया था कि वे इस की चिंता छोड़ दें. अब भाभी और भतीजा राजेश दोनों उस की जिम्मेदारी थे. बेटे समान देवर पर तो उन्हें अपने से ज्यादा भरोसा था, चिंता थी तो दूसरे घर से आने वाली देवरानी की, जो न जाने कैसी हो, पर रागिनी से बात कर उमा थोड़ा निश्चिंत हुईं.
उधर रागिनी ने जब अपने घर पहुंच कर मदन के बारे में बताया तो पिता ने कहा, ‘‘बेटी, तुम्हारी खुशी में ही हमारी खुशी है. पर सोचसमझ कर ही फैसला लेना. मदन में तो मुझे कोई खराबी नहीं लगती है… क्या तुम्हें विश्वास है कि मदन के परिवार में तुम ऐडजस्ट कर पाओगी?’’
रागिनी ने कहा, ‘‘मदन के परिवार से फिलहाल तो मुझे कोई प्रौब्लम नहीं दिखती.’’
‘‘पर मैं एक बार उन से मिलना चाहूंगा,’’ पिता ने कहा.
रागिनी बोली, ‘‘ठीक है, आप जब कहें उसे बुला लेती हूं.’’
पिता ने कहा, ‘‘नहीं, अभी नहीं. मैं खुद जा कर उस से मिलूंगा.’’
लगभग 2 सप्ताह के बाद रागिनी और मदन दोनों अमेरिका लौट गए. दोनों ने वहां नौकरी शुरू की. परंतु दोनों की कंपनियां अमेरिका के 2 छोरों पर थीं. एक की पूर्वी छोर अटलांटिक तट पर तो दूसरे की पश्चिमी छोर प्रशांत तट पर कैलिफोर्निया में. दोनों के बीच हवाईयात्रा में भी 6 घंटे तक लगते थे. इसलिए अब मिलनाजुलना न के बराबर रहा. अब बस इंटरनैट से वीडियो चैटिंग होती थी. इस बीच रागिनी की कंपनी में एक बड़े सेठ के लड़के कुंदन ने नौकरी जौइन की. उसके पिता की मुंबई में ज्वैलरी की दुकान थी. कुंदन बड़े ठाटबाट से अकेले 2 बैड के फ्लैट में रहता था और शानदार एसयूवी का मालिक था. रागिनी की भी अपनी एक छोटी कार थी. रागिनी उस से काफी इंप्रैस्ड थी. एक वीकेंड में कुंदन की गाड़ी में औरलैंडो गई थी. वहां बीच पर एक होटल में एक रात उसी के साथ रुकी थी. फिर उस के साथ एक दिन डिजनी वर्ल्ड की सैर भी की थी. मदन से उस की चैटिंग भी कम हो गई थी. कुंदन के बारे में भी उस ने मदन को बताया था, पर घनिष्ठता के बारे में नहीं.
उधर मदन कैलिफोर्निया में एक स्टूडियो अपार्टमैंट में रहता था. अधिकतर खुद ही खाना बनाता था, क्योंकि उसे फास्ट फूड पसंद न था. एक टू सीटर कार थी. एक दिन अचानक रागिनी ने फोन कर बताया कि वह पापा के साथ शनिवार को मिलने आ रही है और सोमवार सुबह की फ्लाइट से लौट जाएगी.
मदन ने 3 दिन के लिए एक रैंटल कार बुक कर ली थी और बगल वाले स्टूडियो अपार्टमैंट, जो एक मित्र का था, की चाबी ले ली थी, उन लोगों को ठहराने के लिए. शनिवार को मदन एअरपोर्ट से उन्हें रिसीव कर ले आया था. उस दिन का मदन का बनाया लंच तो सब ने घर पर ही खाया पर बाकी खाना होटल में होगा, तय हुआ. खाने का पूरा बिल मदन ही पे करता था.
रागिनी के पिता ने मदन से उस के आगे का प्रोग्राम पूछा तो उस ने कहा, ‘‘अंकल, 1 साल पीटी के बाद हो सकता है मुझे इंडिया लौटना पड़े… अब भाभी की तबीयत कैसी रहती है, उस पर निर्भर करता है. वैसे मेरी कंपनी का मुंबई में भी औफिस है. ये लोग मुझे वहां पोस्ट करने को तैयार हैं.’’
रागिनी के पिता ने जवाब में सिर्फ ‘हूं’ भर कहा था. इस के बाद रागिनी पिता के साथ लौट गई थी.
अब रागिनी कुंदन के साथ अकसर वीकेंड में घूमने निकल जाती. मदन के साथ वीडियो चैटिंग बंद हो गई थी. सप्ताह के बीच में ही छोटीमोटी चैटिंग हो जाती थी. इस बीच रागिनी का बर्थडे आया.
मदन ने एक लेडीज पर्स गिफ्ट भेजा था तो दूसरी तरफ कुंदन ने सोने के इयररिंग्स भेजे थे. दरअसल, यहां न्यू जर्सी में भी उस के रिश्तेदार की दुकान थी. वहीं से भिजवा दिए थे. रागिनी के पिता भी अभी तक वहीं थे. उन्होंने कुंदन के बारे में पूछा तो रागिनी जितना जानती थी उतना बता दिया.
इत्तफाक से इस शनिवार को कुंदन गाड़ी ले कर पहुंच गया था. रागिनी ने पापा से परिचय कराया. उस ने कहा, ‘‘अंकल, क्यों न हम लोग फ्लोरिडा चलें. कल वहां से रौकेट लौंच हो रहा है. हम लोग रौकेट लौंचिंग भी देख लेंगे.’’
वे तीनों फ्लोरिडा के लिए चल पड़े.
कुंदन ही ड्राइव कर रहा था और पापा आगे बैठे थे. रास्ते में बातोंबातों में उन्होंने कुंदन से अमेरिका में आगे के प्रोग्राम के बारे में पूछा तो वह बोला, ‘‘अंकल, मैं तो यहीं नौकरी कर सैटल होऊंगा. हो सकता है साथ में ज्वैलरी का बिजनैस भी शुरू करूं.’’
कुंदन ने एक चारसितारा होटल बुक कर रखा था. तीनों एक ही कमरे में रुके थे. अगली सुबह रौकेट लौंचिंग देख कर फ्लोरिडा से लौट चले. रागिनी के पापा जब तक वहां रहे कुंदन रोज शाम को होटल से डिनर पैक करा कर घर ले आता था.
एक बार रागिनी से पापा ने पूछा था, ‘‘मुझे तो कुंदन मदन से बेहतर लड़का लगता है. तुम्हारा क्या खयाल है?’’
वह बोली, ‘‘कुंदन अच्छा तो जरूर है पर अभी हम दोस्त भर हैं. अभी उस के मन में क्या है, कह नहीं सकती हूं.’’
पापा ने कहा, ‘‘थोड़ा आगे बढ़ कर उस के मन को भांपो. आखिर इतनी रुचि तुम में वह क्यों ले रहा है… और तुम तो समझ सकती हो कि तुम दोनों बहनों की पढ़ाई पर लाखों रुपए खर्च किए हैं मैं ने सिर्फ इसलिए कि तुम दोनों को कोई कमी न महसूस हो… और मदन अपनी भाभी और भतीजे के साथ मुंबई में ही रहने वाला है.’’
रागिनी बस चुप रही थी. कुंदन रागिनी के पिता के इंडिया लौटते समय उन्हें एअरपोर्ट छोड़ने आया था और रागिनी के मातापिता दोनों के लिए गिफ्ट लाया था.
मदन से उस का संपर्क बहुत कम रह गया था. सप्ताह में 1-2 बार फोन या चैटिंग हो जाती थी. पापा के जाने के बाद रागिनी समझ नहीं पा रही थी कि कुंदन और मदन में से किसे चुने जबकि उस के पापा बारबार कुंदन की तरफदारी कर रहे थे. जो भी हो रागिनी का कुंदन से मेलजोल बढ़ने लगा था और मदन से उस का संपर्क कम हो रहा था.
इसी बीच कुंदन ने एक दिन उसे प्रपोज करते हुए कहा, ‘‘रागिनी, क्या तुम मुझ से
शादी करोगी? सोच लो ठीक से, क्योंकि मैं ने अमेरिका में ही सैटल होने का निश्चय किया है.’’
रागिनी को अमेरिकन जीवनशैली और वातावरण तो पसंद थे, फिर भी कुंदन से उस ने थोड़ा वक्त मांगा था.
उधर उमा भाभी को दिल का दौरा पड़ा था. 4 दिन में अस्पताल से छुट्टी मिल गई थी. उमा के भैयाभाभी ने सब संभाल लिया था.
मदन को भी फोन आया था, खुद उमा ने अस्पताल से बात की थी और कहा था, ‘‘मुन्नू, तू मेरी चिंता मत कर. यहां सब ठीक है.’’
इस के 1 महीने के अंदर ही मदन भारत लौट आया था. मुंबई में ही उस की अमेरिकन कंपनी में पोस्टिंग हुई. आने से पहले उस ने रागिनी से पूरी बात बता कर कहा था, ‘‘मैं तो अब इंडिया लौट रहा हूं और मुझे वहीं सैटल होना है. तुम्हारी भी तो पीटी अब खत्म हो रही है. तुम इंडिया कब आओगी या अभी वहीं नौकरी करनी है?’’
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रागिनी असमंजस में थी. कहा, ‘‘अभी तुरंत इंडिया लौटने का प्लान नहीं है. मुझे एच 1 वर्क वीजा भी मिल गया है. अब यहां नौकरी कर सकती हूं. कुछ दिन यहां नौकरी कर देखती हूं. तुम को कुंदन के बारे में बताया था, वह भी इंडिया नहीं जा रहा है. उस को भी एच 1 वीजा मिल गया है.’’
इधर मदन अपनी भाभी और भतीजे के साथ मुंबई में था. भाभी को कोई भारीभरकम काम करना मना था. मदन और भतीजा राजेश दोनों उमा को काम नहीं करने देते थे.
उधर रागिनी के मातापिता उसे कुंदन की ओर प्रेरित कर रहे थे. धीरेधीरे रागिनी भी कुंदन को ही चाहने लगी. कुंदन ने तो अमेरिका में एक बड़ा सा घर भी लीज पर ले लिया था.
एक बार मदन ने फोन पर पूछा, ‘‘रागिनी, आखिर तुम ने इंडिया आने और हमारी शादी के बारे में क्या सोचा है? फैसला जल्दी लेना. मैं तो यहीं रहूंगा.’’
रागिनी बोली, ‘‘मैं तो इंडिया नहीं आ सकती. तुम अगर अमेरिका शिफ्ट कर सकते हो तो फिर शादी के बारे में सोचेंगे. अब फैसला तुम्हें करना है.’’
मदन बोला, ‘‘मैं तो मां जैसी भाभी को यहां छोड़ कर नहीं आ सकता हूं. तो तुम बोलो क्या चाहती हो?’’
रागिनी ने कहा, ‘‘तो फिर बहस क्या करनी है. समझ लो ब्रेकअप,’’ और फोन कट गया.
मदन ने समझ लिया कि रागिनी की जिंदगी में अब कुंदन आ गया है. उस ने भाभी को भी कुंदन के बारे में बता दिया.
भाभी ने उसे रोते देख कहा, ‘‘मुन्नू, रागिनी को फोन लगा. जरा मैं भी बात कर के देखती हूं.’’
मदन ने फोन लगा कर भाभी को दिया. उमा ने रागिनी से पूछा कि उस का इरादा क्या है तो रागिनी ने कहा, ‘‘मैं वहां नहीं आ सकती और मदन यहां नहीं. मैं ने तो अपना जीवनसाथी यहां चुन भी लिया है. मदन को भी बोलिए वह भी ऐसा ही करे.’’
उमा ने फिर कहा, ‘‘रागिनी, तेरे लिए यहां मदन आंसू बहा रहा है. कह रहा है 5 सालों की दोस्ती और प्यार भरे रिश्ते को रागिनी ने आसानी से कैसे तोड़ दिया? तुम एक बार फिर सोच कर बताओ.’’
रागिनी बोली, ‘‘अब और समय गंवाना बेवकूफी है. मदन से बोलिए समझदारी से काम ले और अपना नया साथी ढूंढ़ ले.’’
थोड़ी देर फोन पर दोनों ओर से खामोशी रही फिर उमा ने ही पूछा, ‘‘तो फिर मैं मदन को क्या बोलूं? क्या तुम कुंदन को…’’
रागिनी ने बीच में उमा की बात काट दी और झल्ला कर तीखी आवाज में बोली, ‘‘ब्रेकअप… ब्रेकअप… ब्रेकअप. फुल ऐंड फाइनल,’’ और फोन काट दिया.
इस बार उमा ने मदन से कहा, ‘‘मुन्नू, तू भी रागिनी को भूल जा, उसे कुंदन चाहिए. उसे कुंदन का ढेर सारा ‘कुंदन’ भी चाहिए. कुंदन का मतलब जानता है न मुन्नू? सोना गोल्ड चाहिए उसे. तुझे उस से अच्छी जीवनसंगिनी मिलेगी. देखने में भले रागिनी नाटी है, पर है बड़ी तेज. जाने दे उसे.’’
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