प्रैग्नेंसी के बाद आपके ब्रैस्ट में वास्तव में क्‍या होता है

आमतौर पर प्रैग्नेंसी के दौरान और बाद एक महिला के शरीर में कई बदलाव होते हैं. प्रैग्नेंसी के बाद स्तनों में बदलाव होता ही है. क्‍या आप जानते हैं, स्तन लोब्‍युल्‍स से बने होते हैं, जो दूध बनाने वाली ग्रंथियाँ होती है और इनमें नलिकाएँ  हुती हैं, जो दूध को निप्‍पल तक ले जाती हैं और उनके इर्द-गिर्द ग्रंथीय, नसों वाले और चर्बीदार ऊत्‍तक होते हैं. उम्र बढ़ने के साथ ग्रंथीय ऊत्‍तक का आकार घटता है. प्रैग्नेंसी के दौरान स्‍तन का विकास इस प्रक्रिया का एक महत्‍वपूर्ण हिस्‍सा है, क्‍योंकि उसे शिशु के लिये दूध बनाने के लिये बदलाव से गुजरना होता है. प्रैग्नेंसी से पहले के हॉर्मोन स्‍तन के ऊतकों में बदलाव लाते हैं. प्रैग्नेंसी के दौरान मिलने वाले शुरूआती संकेतों में स्‍तनों को संवेदी अनुभव होना शामिल है, जो शरीर में अतिरिक्‍त हॉर्मोन्‍स के बहने से होता है.

डॉ. तनवीर औजला, सीनियर कंसल्‍टेन्‍ट ऑब्‍स्‍टेट्रिशियन एवं गाइनेकलॉजिस्‍ट, मदरहूड हॉस्पिटल, नोएडा की बता रही हैं गर्भावस्था के दौरान स्तनों में क्या बदलाव होते है.

प्रैग्नेंसी के दौरान हमारे स्‍तनों में शिशु को दूध देने के लिये बदलाव होते हैं. प्रैग्नेंसी के दौरान होने वाले इन बदलावों में स्‍तनों का आकार बढ़ना और स्‍तनों तथा निप्‍पल का मुलायम या संवेदनशील होना शामिल है. इसमें निप्‍पलों और एरीयोला का रंग भी बदलता है और मोंटगोमरी ग्रंथियाँ स्‍पष्‍ट और बड़ी दिखाई देती हैं. स्‍तनों में ज्‍यादा खून आने लगता है, जिससे उनकी नसें गहरे रंग की हो जाती हैं. इस अवस्‍था में एस्‍ट्रोजेन और प्रोजेस्‍टेरॉन की मात्रा बढ़ जाती है और इन दोनों हॉर्मोन्‍स के मिलने से दूध बनने लगता है.

प्रैग्नेंसी के बाद प्रोजेस्‍टेरॉन और एस्‍ट्रोजेन का स्‍तर घट जाता है, जो प्रोलेक्टिन हॉर्मोन से संकेत मिलने के बाद होता है और प्रोलेक्टिन ही दूध बनाता है. शिशु के लिये दूध बनाने में आमतौर पर दो दिन लगते हैं. जन्‍म के बाद 3 से 5 दिन में लिम्‍फेटिक फ्लूइड के कारण स्‍तन बड़े हो जाते हैं. लिम्‍फेटिक फ्लूइड से ही स्‍तन की नलिकाएँ बनती हैं.

प्रैग्नेंसी के बाद भी स्‍तनों में बदलाव जारी रहते हैं, जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं:-

स्‍तनों के भरने का मतलब प्रैग्नेंसी के बाद सामान्‍य रूप से उनका आकार बढ़ने से है और यह दूध बनने के दौरान होता है. स्‍तनों का भरना कम करने के लिये शिशु को बार-बार दूध पिलाना महत्‍वपूर्ण है, ताकि दूध बच्‍चे की भूख के अनुसार आता रहे.

ब्रैस्टफीडिंग कराते समय निप्‍पल में दर्द होता है, जिससे निप्‍पल कट सकती है या उसमें से खून आ सकता है. निप्‍पल क्रीम या स्‍तन का दूध इस दर्द से राहत देने में मदद कर सकता है. कभी-कभी निप्‍पल के कटने से यीस्‍ट का संक्रमण भी हो जाता है.

जब दूध की नलिकाएँ बाधित होती हैं, तब ‘मेस्‍टाइटिस’ नामक एक संक्रमण हो जाता है. यह एक स्‍तन से दूसरे स्‍तन में भी पहुँच जाता है. स्‍तन की स्किन पर लाल निशान, बाधित नलिका के इर्द-गिर्द स्किन का गर्म होना और स्‍तन में तेज दर्द इसके लक्षण हैं.

अगर उपर्युक्त मेस्‍टाइटिस या संक्रमण का उपचार न हो, तो फोड़ा हो जाता है और मवाद इकट्ठा होने लगता है, जिसके लिये फिर ऐंटीबायोटिक्‍स दिये जाते हैं और मवाद को सुई से निकाला जाता है.

स्‍तनों पर खिंचाव के निशान दिखते हैं, जो गायब होने में कुछ समय ले सकते हैं.

स्‍तनों को पुराने सामान्‍य आकार में ले जाने के लिये प्रभावित करने में शरीर के वजन की महत्‍वपूर्ण भूमिका होती है. कई महिलाओं को ब्रैस्टफीडिंग और दूध बनने के कारण स्‍तनों में ढीलेपन का अनुभव होता है. इससे बचने के लिये पूरी प्रैग्नेंसी के दौरान और बाद में भी सपोर्टिव ब्रा पहनी जा सकती है और स्‍वास्‍थ्‍यकर आहार की आदत डाली जा सकती है, जो प्रैग्नेंसी के बाद स्‍तन से जुड़ी समस्‍याओं को रोकने में मदद करेगी.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें