मेरी बेटी को स्तन कैंसर है, सुना है कीमोथेरैपी के बाद मां बनना संभव नहीं होता है, क्या ये सच है?

सवाल 

मेरी बेटी को स्तन कैंसर है. अभी उस की शादी भी नहीं हुई है. सुना है कीमोथेरैपी के बाद मां बनना संभव नहीं होता है?

जवाब 

युवा मरीजों में कीमोथेरैपी के बाद अंडाशय के अंडे खत्म हो जाते हैं. ऐसी महिलाएं जिन की शादी नहीं हुई है या जिन का परिवार पूरा नहीं हुआ है और वे बच्चे की इच्छुक हैं तो उन्हें अपने ओवम या अंडे फ्रीज करा लेने चाहिए ताकि बाद में इन का इस्तेमाल किया जा सके. यह जरूरी नहीं है कि अंडे आप के शरीर में इंप्लांट हो जाएंलेकिन इस से इन विट्रो फर्टिलाइजेशन तकनीक (आईवीएफ) से बच्चा पाना संभव है.

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सवाल

पिछले कुछ दिनों से मेरे पेट में बहुत दर्द है. जांच कराने पर गर्भाशय में गांठ होने का पता चला है. यह गर्भाशय के कैंसर का संकेत तो नहीं है?

जवाब

आप ने यह नहीं बताया कि आप की माहवारी नियमित है या नहींमाहवारी के बीच में ब्लीडिंग तो नहीं हो रही है या माहवारी बंद तो नहीं हुई है. आप तुरंत किसी स्त्रीरोग विशेषज्ञा को दिखाएं. सब से पहले आप के गर्भाशय में जो गांठ है उस की बायोप्सी कराई जाएगी. अगर उन्हें ऐंडोमीट्रियल कैंसर की आशंका होगी तो वे पेल्विस की एमआरआई कराने को कहेंगी. उस के बाद स्थिति स्पष्ट हो पाएगी.

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सवाल

मेरे परिवार में पिछले कुछ दिनों में 2 लोगों की कीमोथेरैपी हुई है. एक के बाल पूरे झड़ गए जबकि दूसरे के बिलकुल नहीं झड़े हैंऐसा क्यों?

जवाब

कीमोथेरैपी के बाद बाल उड़ना स्वाभाविक है. जिन के बाल ?ाड़े हैंउन्हें चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है क्योंकि यह स्थायी नहीं है. 60% मरीजों में ऐसा होता है. यह दवाइयों और आप के शरीर से संबंधित होता है. इस के बाद जो बाल आते हैं वे पहले से अच्छेघने और डार्क होते हैं. कीमोथेरैपी के बाद कुछ लोगों के बाल नहीं ?ाड़ते हैं. लेकिन घबराएं नहीं. इस का कतई यह मतलब नहीं है कि कीमोथेरैपी असर नहीं कर रही है.

 

स्तन कैंसर: निदान संभव है

भारत में 40 वर्ष से अधिक आयु की महिलाओं में स्तन कैंसर सबसे अधिक प्रचलित कैंसर है. ऐसे मामले विश्व स्तर पर हर साल लगभग 2% की दर से बढ़ रहे हैं. यह महिलाओं में कैंसर संबंधित मौतों का सबसे आम कारण भी है.

आज हमारे पास स्तन कैंसर से होने वाली मौतों को कम करने का मौका है. स्तन कैंसर को जल्दी पकड़ा जा सकता है ओर हारमोन थेरेपी, इम्यूनो थेरेपी और टारगेटेड थेरेपी जैसी नई विकसित के जरीए पहले की तुलना में अधिक विश्वास के साथ इसका इलाज किया जा सकता है.

सेल्फ एग्जामिनेशन

यदि प्रारंभिक चरण में कैंसर का पता लग जाता है तो उपचार अधिक प्रभावी ढंग से हो सकता है. इस अवस्था में कैंसर छोटा और स्तन तक सीमित होता है.

शुरुआत में एक छोटी गांठ की उपस्थिति या स्तन के आकार में बदलाव के अलावा कोई कथित लक्षण नहीं होता है, जिसे रोगियों द्वारा आसानी से अनदेखा किया जा सकता है. यही वह समय है जब स्क्रीनिंग जरूरी है. स्क्रीनिंग टेस्ट से स्तन कैंसर के बारे में जल्दी पता लगाने में मदद मिलती है. ऐसे में जब कोई खास लक्षण दिखाई नहीं देते तब भी स्क्रीनिंग के द्वारा हमें इस बीमारी का पता चल सकता है. स्क्रीनिंग के लिए नियमित रूप से डाक्टर के पास जाना चाहिए ताकि रोगी महिला के स्तन की पूरी तरह से जांच कर सकें. डाक्टर अकसर इस के जरीए ब्रेस्ट में छोटीछोटी गांठ या बदलाव का पता लगा लेते हैं. वे महिलाओं को सेल्फ एग्जामिनेशन करना भी सिखा सकते हैं ताकि महिलाएं खुद भी इन परिवर्तनों को पकड़ सकें.

हालांकि मैमोग्राफी स्तन कैंसर की जांच का मुख्य आधार है. यह एक एक्स-रे एग्जामिनेशन है और गांठ दिखने से पहले ही स्तनों में संदिग्ध कैंसर से जुड़े परिवर्तनों का पता लगाने में मदद करता है.

पहला मैमोग्राम कराने और इसके बाद भी कितनी बार मैमोग्राम कराना है. यह इस पर निर्भर करता है कि उस महिला को ब्रेस्ट कैंसर होने का रिसक कितना है. जिन महिलाओं के रक्त संबंधी स्तन कैंसर या ओवेरियन कैंसर से पीडि़त हैं और जिनको पहले भी स्तनों से जुड़ी कुछ असामान्यताओं जैसे स्तनों में गांठ, दर्द या डिस्चार्ज आदि का सामना करना पड़ा है उन्हें जोखिम ज्यादा रहता है. ऐसी महिलाओं को 30 साल की उम्र के बाद हर साल मैमोग्राफ कराना चाहिए. दूसरों को 40 साल की उम्र के बाद हर साल या हर 2 साल में जांच करवानी चाहिए.

टेस्टिंग

अगर मैमोग्राम में कैंसर का कोई संदिग लक्षण दिखता है तो पक्के तौर पर कैंसर है या नहीं इसका पता लगाने के लिए बायोप्सी की जाती है. इस प्रक्रिया में संदिग्ध क्षेत्र से स्तन ऊतक के छोटे हिस्से को निकाल लिया जाता है और कैंसर सेल्स का पता लगाने के लिए प्रयोगशाला में विश्लेषण किया जाता है.

उच्च जोखिम वाल महिलाओं के लिए, बीआरसीए म्युटेशन जैसी जेनेटिक असामान्यताओं का पता लगाने के लिए जेनेटिक टेस्टिंग की भी सिफारिश की जाती है. ‘बीआरसीए’ दरअसल ब्रेस्ट कैंसर जीन का संक्षिप्त नाम है. क्चक्त्रष्ट्न१ और क्चक्त्रष्ट्न२ दो अलगअलग जीन हैं तो किसी व्यक्ति के स्तन कैंसर के विकास की संभावनाओं को प्रभावित करते हैं. जिन महिलाओं में ये असामान्यताएं होती हैं उन सभी को स्तन कैंसर हो ऐसा जरूरी नहीं, मगर उनमें से 50% को यह जिंदगी में कभी न कभी जरूर होता है.

वीआरसीए जीन असामान्यता वाली महिलाओं को अतिरिक्त सतर्क रहना चाहिए और नियमित रूप से वार्षिक मैमोग्राम कराने से चूकता नहीं चाहिए. जो महिलाएं नियमित रूप से जांच नहीं कराती हैं उनके लिए यह संभावना बढ़ जाती है कि उनके स्तन कैंसर का पता लेटर स्टेज या एडवांस स्टेज पर लगेगा. इस स्तर पर कैंसर संभावित रूप से स्तन या शरीर के कुछ दूसरे हिस्सों में फैल सकता है. ऐसे में इलाज एक चुनौती बन जाती है, लेकिन जब डाइग्रोसिस शुरुआती स्टेज में हो जाती है तब इलाज के कई तरह के विकल्प मौजूद होते हैं जो कैंसर का सफलतापूर्वक कर पाते हैं और इसके फिर से होने की संभावना पर भी रोक लगाते हैं.

आपके लिए कौन सा इलाज अच्छा

होगा यह प्रत्येक कैंसर की प्रोटीन असामान्यताओं पर निर्भर करता है, जिसका पता कुछ खास जांच द्वारा लगाया जाता है. एडवांस्ड थैरेपीज जिसे इम्मुनोथेरेपी, टार्गेटेड थेरेपी और हारमोनल थेरेपी इन विशेष अब्नोर्मिलिटीज पर काम करती है और बेहतर परिणाम देती हैं.

कुछ रोगियों के लिए ये उपचार पारंपरिक कीमोथेरेपी की जगह भी ले सकते हैं. कुछ उपचार जो कैंसर दोबारा होने से रोकते हैं उन्हें गोलियों के रूप में मौखिक रूप से भी लिया जा सकता है. यह अर्ली स्टेज के स्तन कैंसर की मरीज को भी एक अच्छी जिंदगी जीने को संभव बनाते हैं.

प्रारंभिक अवस्था में स्तन कैंसर डायग्नोज होने वाली महिलाओं में से 90% से अधिक इलाज के बाद लंबे समय तक रोग मुक्त जिंदगी जी सकती हैं. लेकिन भारत में स्तन कैंसर से पीडि़त महिलाओं की 5 साल तक जीवित रहने की दर महज 42-60% है. ऐसा इसलिए है क्योंकि लगभग आधे रोगियों का पता केवल अंतिम चरण में चलता है.

हम इसे बदल सकते हैं. यदि महिलाएं अपने थर्टीज में स्तन कैंसर की जांच की योजना बनाती हैं और लक्षणों के प्रकट होने की प्रतीक्षा नहीं करती हैं.

स्तन कैंसर का डायग्नोज होना अब मौत की सजा की तरह नहीं होना चहिए क्योंकि हम कैंसर का जल्द पता लगा सकते हैं और हमारे पास इसके सफल उपचार के लिए इफेक्टिव थेरेपीज हैं.

-डा. सुरेश एच. आडवाणी द्वारा एमडी, (एफआईसीपी, एफएनएएमएस, कंसल्टेंट आन्कोलौजिस्ट)

 

जानें क्या है ब्रेस्ट कैंसर

‘कैंसर’ शब्द न तो आंखों को सुहाता है, न ही कानों को अच्छा लगता है. यह विचारों और दृश्यों को नकारात्मक बना देता है, वास्‍तव में ऐसा नहीं होना चाहिये और इसका सरलता से निदान होना चाहिये. वर्तमान में मामलों की संख्या और मृत्यु दर के आधार पर भारत में ब्रेस्ट कैंसर सबसे आम है. लेकिन अच्छी खबर यह है कि यह सभी प्रकार के कैंसरों में सबसे अधिक रोकथाम योग्य है.

एक पुरानी कहावत है, ‘‘रोकथाम उपचार से बेहतर होती है’’, लेकिन हमने इस पर ध्यान नहीं दिया और हम तभी जागते हैं, जब समस्या उन्नत अवस्था में पहुँच जाती है. ब्रेस्ट कैंसर के कारकों, लक्षणों, उपचार, प्रबंधन और भ्रांतियों समेत इस पर जागरूकता फैलाने की प्रासंगिकता वर्तमान परिदृश्य में सबसे महत्वपूर्ण है, खासकर ऐसे समय में जब अधिक युवा महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर की पहचान हो रही है और इस समस्या का प्रभाव शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में एक समान है.

ब्रेस्ट कैंसर आनुवांशिक, हार्मोनल और लाइफस्‍टाइल घटकों के कारण स्‍नत में असामान्‍य कोशिकाओं की अनियंत्रित एवं अत्‍यधिक वृद्धि है. हमारे तथाकथित आधुनिक समाज में जो पानी हम पीते हैं, जो खाना हम खाते हैं और जिस हवा में सांस लेते हैं, वह हानिकारक रसायनों से प्रदूषित है और इस कारण से ब्रेस्ट कैंसर के मामले बढ़ रहे हैं. कभी-कभी हमारी आदतों और जीवनशैली का भी इसमें योगदान होता है, जैसे मोटापा, अल्कोहल, व्यायाम नहीं करना, अत्यधिक तनाव, आदि.

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ब्रेस्ट कैंसर के जोखिम को कम करनाः

यह अनुशंसा की जाती है कि आप अपने शरीर के वजन को स्वस्थ सीमा में रखें, खूब सब्जियां और फल खायें (एक दिन में 5 कप से अधिक), और ऐसा आहार लें, जिसमें ओमेगा-3 फैटी एसिड्स की प्रचुर मात्रा हो. प्रतिदिन की औसत कैलोरीज में आपका संतृप्त वसा सेवन 10 प्रतिशत से कम होना चाहिये और वसा का सेवन 30 ग्राम प्रतिदिन तक सीमित हो, ट्रांस फैट्स, प्रसंस्कृत मांस, भुने हुए भोजन से बचें. प्रमाण बताते हैं कि सप्ताह में 5 या अधिक दिन 45-60 मिनट व्यायाम करने से इसका जोखिम कम होता है.

ब्रेस्ट कैंसर का पता लगानाः

‘‘इसका जल्‍दी पता लगाएं, हमेशा के लिये मात दें’’

जल्‍दी पता चलने से प्रभावी उपचार की संभावना भी बढ़ती है और ब्रेस्ट खोने से बचा जा सकता है. शीघ्र पता लगाने के विभिन्न तरीके हैं, जैसे ब्रेस्ट की खुद जाँच करना, ब्रेस्ट की चिकित्सकीय जाँच, स्क्रीनिंग मैमोग्राम्स. यह देखकर अच्‍छा लगता है कि  कुछ रोगियों ने साहस दिखाते हुए खुद को बाहर की दुनिया के सामने लाये और ब्रेस्ट कैंसर पर विजय प्राप्त करने की अपनी कहानियों को सांझा कर दूसरे लोगों को प्रेरणा दी.

डॉ. आर. के. सग्गू, एमबीबीएस, एमएस, ब्रेस्ट एवं ऑन्को सर्जन, अपोलो स्पेक्ट्रा-करोल बाग से बातचीत पर आधारित

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