Breastfeeding Tips: बच्चे के वजन से लेकर आपके पहनावे तक, इन बातों का रखें ध्यान

कई बार जुड़वां बच्चों की मां बच्चे के जन्म के पहले हफ्ते में पूर्ण स्तनपान कराए जाने के बावजूद वजन घटने के चलते घबरा जाती है. अत: अगर आप के बच्चे के जन्म के पहले हफ्ते में सही स्तनपान कराने के बावजूद वजन घट रहा है तो घबराने की जरूरत नहीं है, क्योंकि जन्म के पहले सप्ताह के पूरा होने तक फिर से जन्म के समय वाले वजन के बराबर हो जाता है. अगर ऐसा होता है तो यह समझ जाना चाहिए कि आप के बच्चे को आप का सही मात्रा में दूध मिल रहा है. अगर सप्ताह पूरा होने पर भी जुड़वां बच्चों का घटा वजन कवर न हो तो ब्रैस्टफीडिंग ऐक्सपर्ट या डाक्टर से परामर्श लेना न भूलें.

कैसे जानें कि बच्चा सही दूध पी रहा है

कई बार मां द्वारा सही स्थिति में बच्चे को ब्रैस्टफीडिंग कराने के बावजूद मां को बारबार यह लगता है कि उस के बच्चे को सही मात्रा में स्तनों से दूध नहीं मिला. यह स्थिति जुड़वां बच्चों के मामले में और जुदा होती है, क्योंकि मां को लगता है बच्चा एक स्तन का ही दूध पी रहा है, जो उस के लिए काफी नहीं है.

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ऐसे में अगर आप सही पोजीशन का ध्यान रख कर बच्चे को ब्रैस्टफीडिंग कराएं तो ज्यादातर मामलों में उस की जरूरत भर का दूध मां से मिल जाता है. इसे हम इस तरीके से जांच सकते हैं- अगर बच्चे का पेट मां के दूध से भर रहा हो तो वह 24 घंटे में कम से कम 7-8 बार टौयलेट करता है. इस के लिए बच्चे का गीला नैपी भी गिन सकती हैं. यह भी ध्यान रखें कि बच्चा दूध पीने के बाद 2 घंटे तक सोए. उस का वजन उस की उम्र के अनुसार बढ़ रहा हो यानी हर सप्ताह औसत 150 ग्राम तक तो यह सम झ लेना चाहिए कि बच्चे का पेट मां के दूध से पूरी तरह भर रहा है.

डकार दिलाना न भूलें

डाक्टर प्रीति मिश्रा के अनुसार, अगर आप जुड़वां बच्चों की मां हैं, तो आप को उन पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत होती है. ब्रैस्टफीडिंग को ले कर ऐसे में जब भी आप बच्चे को ब्रैस्टफीडिंग कराएं तो ब्रैस्टफीडिंग के तुरंत बाद बच्चे को अपने कंधे पर लिटा कर उस की पीठ को हलके हाथों से सहलाना न भूलें. इस के अलावा आप बच्चे को अपने पैरों पर पेट के बल लिटा कर उस की पीठ भी सहला सकती हैं. ऐसा करने से बच्चे को डकार अच्छी आती है, जिस से उस का दूध पच जाता है और वह उलटी नहीं करता. ऐसा करने से बच्चे के पेट में गैस भी नहीं बनती है.

खुद का भी रखें खयाल

जुड़वां बच्चों की मांओं को बच्चों की देखभाल के साथसाथ खुद का भी खयाल रखना पड़ता है खासकर तब जब बच्चे ब्रैस्टफीडिंग वाली अवस्था के हों. इस अवस्था में मां को अच्छा व पोषणयुक्त भोजन लेना चाहिए. मां को चाहिए कि वह अपने रोज के खाने में हरी सब्जियां, फल, दूध, दही, मांस, मछली, अंडा, दालें, फलियां जरूर शामिल करे. खुद के शरीर को आराम पहुंचाने के लिए व्यायाम करने के साथसाथ अच्छी नींद भी जरूर ले.

पहनावा कैसा हो

अगर आप जुड़वां बच्चों को ब्रैस्टफीडिंग कराने वाली मां हैं, तो बाहर जाने के दौरान आप का पहनावा आप की ब्रैस्टफीडिंग में बाधा पैदा करता है. ऐसे में सार्वजनिक जगहों पर चाहते हुए भी अपने बच्चे को ब्रैस्टफीडिंग नहीं करा पाती हैं. इसलिए आप को चाहिए कि इस अवस्था में आप अपने पहनावे पर विशेष ध्यान दें. इस के लिए ऐसे टौप खरीदें, जिन में बै्रस्ट का स्थान ज्यादा खुला हुआ हो. इस से आप कपड़ों को ऊपरनीचे करने से बच सकती हैं.

ब्रैस्टफीडिंग कराने वाली मांओं को अपने साथ दुपट्टा या स्टोल हमेशा रखना चाहिए. इस के अलावा घर में रहने के दौरान ऊपर से खुलने वाले गाउन, मैक्सी या हलके कपड़े पहन सकती हैं. अगर आप कोई पार्टी या फंक्शन अटैंड करने जा रही हैं तब भी आप को अपने बच्चों की ब्रैस्टफीडिंग का खयाल रखना पड़ेगा. इसलिए फैशन ऐक्सपर्ट से सलाह ले कर ब्रैस्टफीडिंग कराने में कंफर्ट कपड़ों का चयन करें.

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अगर जुड़वां बच्चों वाली मांएं कामकाजी हैं तो ऐसी अवस्था में वे अपने ब्रैस्ट मिल्क को निकाल कर स्टोर कर सकती हैं. ब्रैस्ट मिल्क को स्टोर करने के लिए उसे फ्रिज में रखने की जरूरत नहीं होती है, बल्कि इसे सामान्य तापमान पर 6 घंटों तक सुरक्षित रखा जा सकता है.

स्तनों से दूध निकालने के लिए साफ कटोरी का इस्तेमाल करें. अपने हाथ के अंगूठे और अंगूठे की बगल की उंगली से ब्रैस्ट को नीचे से ऊपर की तरफ गोलाई में एरिओला में लाना चाहिए. इस से ब्रैस्ट में स्टोर दूध बाहर आ जाता है. अगर ब्रैस्टफीडिंग के दौरान ब्रैस्ट में दर्द या घाव है, आप का बच्चा सुस्त है या दूध चूसने में उसे परेशानी हो रही है तो डाक्टर से सलाह लें.

 ब्रैस्टफीडिंग: जब हों जुड़वां बच्चे

श्रेया प्रैगनैंट थी. उस ने होने वाले बच्चे की सारी तैयारी भी कर रखी थी. जब उस की डिलिवरी हुई तो उसे जुड़वां बच्चे पैदा हुए. उस का इस तरफ ध्यान ही न था कि उसे जुड़वां बच्चे भी हो सकते हैं, क्योंकि वह जिस डाक्टर से अपनी रूटीन जांच कराती थी उस ने भी ऐसी कोई जानकारी उसे नहीं दी थी. उसे डाक्टरों ने जुड़वां बच्चों की देखभाल से जुड़े तमाम दिशानिर्देश दिए. बच्चों के साफसफाई, पोषण सहित ब्रैस्टफीडिंग से जुड़ी पूरी जानकारी दी.

अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद जब श्रेया घर आई तो 1 हफ्ते तक तो सबकुछ ठीकठाक रहा, फिर उस के दोनों बच्चे चिड़चिड़े से रहने लगे.

घबराई श्रेया ने पति के साथ ऐक्सपर्ट डाक्टर से मिल कर उन्हें बच्चों के चिड़चिड़े होने और सही से ब्रैस्टफीडिंग न कर पाने की बात बताई. तब डाक्टर ने श्रेया को बताया कि जुड़वां बच्चों के मामले में यह आम बात है, क्योंकि जुड़वां बच्चों में ब्रैस्टफीडिंग कराने के दौरान विशेष सावधानी बरतनी पड़ती है. इस के बाद फिर डाक्टर ने श्रेया को ब्रैस्टफीडिंग में अपनाई जाने वाली कुछ पोजीशंस बताईं, साथ ही कुछ सावधानियां बरतने को भी कहा, जिन पर गौर करने के बाद श्रेया की शिकायत दूर हो गई.

1. 6 माह तक विशेष खयाल

मां और बच्चों की विशेषज्ञा डाक्टर प्रीति मिश्रा कहती हैं कि अकसर मांएं जन्म के बाद से ही अपने शिशुओं को स्तनपान कराने के साथ ही ऊपर से गाय का दूध, शहद, घुट्टी, पानी आदि देने लगती हैं. जुड़वां बच्चे होने पर यह सिलसिला और भी बढ़ जाता है, क्योंकि मां को लगता है कि स्तनपान बच्चों के लिए पर्याप्त नहीं हो रहा है जबकि 6 माह के पहले अगर बच्चे को ऊपर से कुछ भी दिया जाता है तो वह उसे बीमार करने के साथसाथ उस के पोषण को भी प्रभावित कर सकता है. इसलिए हर मां को यह तय कर लेना चाहिए कि बच्चे को स्तनपान ही कराना है ऊपर का कुछ भी नहीं देना है. फिर चाहे वह जुड़वां बच्चों की मां हो या सिंगल बच्चे की. मां दोनों ही के लिए अपनी ब्रैस्ट में पर्याप्त दूध का निर्माण कर लेती है.

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औपरेशन से हुए प्रसव में भी स्तनपान जारी रखें. अकसर औपरेशन से हुए प्रसव के चलते ब्रैस्टफीडिंग में देरी हो जाती है. जुड़वां बच्चों के मामले में यह देरी और बढ़ जाती है, जबकि प्रसव के 1 घंटे के अंदर शिशु को मां के स्तनों से गाढ़ा पीला दूध यानी कोलोस्ट्रम मिल जाना चाहिए, क्योंकि यह बच्चे को जन्म के बाद कई तरह की बीमारियों से बचाता है. अगर प्रसव औपरेशन से हुआ हो तो मां को जल्दी स्तनपान कराने के लिए वह पहले एक करवट लेट जाए और पहले एक बच्चे को निचले स्तन से लेटे हुए ही ब्रैस्टफीडिंग कराए. ऐसे ही दूसरी करवट लेट कर निचले स्तन से दूसरे बच्चे को स्तनपान कराए. लेट कर स्तनपान कराना जारी रखने के दौरान यह ध्यान रखे कि स्तनपान कराते समय बच्चे के सिर पर हाथ का सहारा जरूर दे और यह भी ध्यान रखे कि ब्रैस्टफीडिंग करातेकराते सोए नहीं.

2. स्तनपान की सही पोजीशन

जुड़वां बच्चों के मामले में ब्रैस्टफीडिंग को ले कर मां को कईर् तरह से सकर्त रहने की जरूरत होती है ताकि बच्चे को दूध के जरीए उचित पोषण मिल सके. इसलिए जब भी मां बच्चे को ब्रैस्टफीडिंग करा रही हो तो उसे अपनी पोजीशन का खयाल जरूर रखना चाहिए. मां को ब्रैस्टफीडिंग के समय चिंतामुक्त होना चाहिए. दोनों बच्चों को एकसाथ स्तनपान कराए, क्योंकि मां के स्तनों में दूध बनने की प्रक्रिया मां और शिशु के बीच सही लगाव होने से निकलने वाले हारमोंस के चलते होती है और यह तभी होता है जब मां का पूरा ध्यान बच्चे पर हो. ऐसा होने से मां स्तनों में प्रोलैक्टिन और औक्सीटोसिन नाम के हारमोन दूध बनाने और दूध को स्तनों से बाहर ले जाने का काम करते हैं.

3. जुड़वां बच्चों का ब्रैस्टफीडिंग अटैचमैंट

मां के स्तनों में पर्याप्त दूध बनता है. फिर भी कभीकभी उसे यह शिकायत रहती है कि उस के बच्चों को पर्याप्त दूध नहीं मिल पा रहा है. इसलिए मां को चाहिए कि जब भी ब्रैस्टफीडिंग कराए तो बच्चे का मुंह बड़ा खुले और स्तनों के निपल के पास के काले घेरे का ज्यादा हिस्सा बच्चे के मुंह में हो, क्योंकि बच्चा जब ब्रैस्टफीडिंग करता है तो अकसर मांएं बच्चे के मुंह में स्तन का निपल डालती हैं. इस से बच्चा दूध चूस नहीं पाता है, क्योंकि मां की ब्रैस्ट में दूध स्तन के काले वाले भाग में रहता है न कि निपल में. ऐसे में जब मां बच्चे को निपल पकड़ाती है, तो उस को दूध नहीं मिल पाता और वह दूध न मिलने की दशा में मसूड़ों से निपल पर जोर लगाता है, जिस से मां के निपल में दर्द और कभीकभी घाव की भी समस्या हो जाती है. इस के अलावा मां को ब्रैस्टफीडिंग के समय यह ध्यान देना चाहिए कि बच्चे की ठुड्डी यानी दाढ़ का अगला भाग ब्रैस्ट से सटा हो और स्तनपान के समय बच्चे का निचला होंठ बाहर की तरफ निकला हो. अगर मां यह तरीका अपनाती है, तो उस के जुड़वां बच्चों को पर्याप्त मात्रा में दूध मिलता रहता है.

4. इस बात का रखें विशेष खयाल

ज्यादातर मांओं की जुड़वां बच्चों के मामले में एक बच्चे को कम पोषण मिलने की शिकायत रहती है. इस का कारण मां को जुड़वां बच्चों के मामले में ब्रैस्टफीडिंग की सही जानकारी न होना है, जिस से एक बच्चे को पर्याप्त दूध तो मिल जाता है, जबकि दूसरे को दूध नहीं. ऐसे में यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि दोनों बच्चों को पर्याप्त दूध ब्रैस्टफीडिंग के जरीए मिल रहा हो, क्योंकि मां अपने जुड़वां बच्चों को अलगअलग समय में दूध पिलाती है, जिस से पहले ब्रैस्टफीडिंग करने वाले को स्तन से हलका मिल्क मिलता है और बाद वाले को पोषक तत्त्वों से युक्त गाढ़ा दूध मिलता है. इसलिए एक बच्चे में पोषण की कमी हो सकती है, जिस से आगे चल कर वह कमजोर हो सकता है.

ऐसी दशा में जुड़वां बच्चों वाली मां को चाहिए कि दोनों को बराबर और पर्याप्त मिल्क मिले. दोनों को 1-1 स्तन का पूरा दूध पिलाने की कोशिश करनी चाहिए. इस से हलका और गाढ़ा दोनों मिल्क बच्चों को बराबर मात्रा में मिलता है. हर मां जुड़वां बच्चों को हर 2 घंटे बाद ब्रैस्टफीडिंग कराए. इस से इन के पोषण की आवश्यकता की पूर्ति होती रहती है.

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