ब्रैस्टफीडिंग: आपके बेबी को आपका पहला तोहफा

लेखक- डा. तोषी व्यास

फिजियोथैरेपिस्ट (स्त्री एवं प्रसूति विशेषज्ञ)

ब्रैस्टफीडिंग के सफ़र की शुरुआत हर बार आसान नहीं होती. कई बार बहुत सी बातों की समझ नहीं होती और कई बार कुछ बातें इतनी समझा दी जाती हैं कि हम कंफ्यूज हो जाते हैं. ब्रैस्टफीडिंग ना सिर्फ शिशु को कई प्रकार के इंफेक्शन से बचाता है जैसे निमोनिया, उल्टी दस्त, कान की तकलीफ़, बल्कि मां को भी कई गंभीर बीमारियों से बचाने में मददगार है जैसे स्तन कैंसर, पोस्टपार्टम डिप्रेशन आदि. तो आइए समझते हैं ब्रैस्टफीडिंग से जुड़ी ज़रूरी जानकारी और भ्रांति के बारे में.

1. सबसे पहली और बेहद जरूरी बात. बैलेंस डाइट. अक्सर देखने में आता है कि मां को डिलीवरी के बाद कई दिनों तक केवल दूध दलिया या लौकी गिलकी ही दी जाती है , जबकि यह वह समय है जिसमें सबसे ज्यादा न्यूट्रिएंट्स की जरूरत होती है. इसलिए मां को संपूर्ण, संतुलित आहार दें जैसे दाल, चावल, सब्जी रोटी, सलाद, दही, छाछ आदि. डिलीवरी नॉर्मल हो या सिजेरियन, दूसरे दिन से ही टमाटर, टमाटर पालक, ब्रोकोली, सब्जियों आदि का सूप काफी फायदेमंद होता है.

2. बच्चे के जन्म के तुरंत बाद का पीला गाढ़ा दूध आपके शिशु के लिए वरदान है. इसे कभी निकालकर ना फेंके.

3. प्रत्येक ब्रैस्टफीडिंग से पहले निप्पल को धोने की जरूरत नहीं होती है, यदि आप ऐसा करती हैं तो आप उस पदार्थ को भी साफ कर देती हैं जो स्वत: वहां निकलता रहता है और बच्चे की इम्युनिटी बढ़ाने में कारगर है.

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4. अक्सर मां को डिलीवरी के तुरंत बाद आराम देने के लिए शिशु को मां से अलग रखा जाता है जबकि यह समय मां और शिशु की आपसी बॉन्डिंग के लिए बहुत जरूरी है और यही वह सबसे अच्छा समय भी है जब धीरे-धीरे मां और बच्चा दोनों ही ब्रैस्टफीडिंग को सीख सकते हैं जैसे ब्रैस्टफीडिंग के समय आप का पोश्चर सही है या नहीं, आपका शिशु सही ढंग से मुंह में निप्पल और गहरे गुलाबी घेरे को भी मुंह में लेकर दूध पिए जिसे लैचिंग कहते हैं.
“कंगारू तकनीक” जिसमें मां अपनी गर्माहट शिशु को प्रदान करती है भी इसी का एक रूप है जो बेहद लाभकारी है खासकर जन्म से पहले जन्मे शिशु के लिए.

5. ब्रैस्टफीडिंग कराते समय हमेशा ध्यान रखें कि आप और शिशु दोनों कंफर्टेबल पोश्चर में हों, अपनी सुविधानुसार आप बैठकर अथवा करवट पर लेट कर ब्रैस्टफीडिंग करवा सकती हैं. कंफर्टेबल पोश्चर में रहने के लिए तकियों का इस्तेमाल एक उत्तम उपाय है.

6. यदि आप को ब्रैस्टफीडिंग करवाते समय निप्पल में दर्द, सूजन अथवा लालिमा महसूस हो तो जरूर चेक करें कि शिशु की लैचिंग ठीक तरीके से हुई है या नहीं. फिर भी आराम ना मिले तो बिना देर किए विशेषज्ञ की सलाह लें.

7. यदि शिशु की उम्र 6 माह से कम है तो ऊपर से कोई भी आहार, घुटी या पानी ना दें. मां का दूध सर्वोत्तम और संपूर्ण आहार है.

8. कई बार सुनते हैं कि व्यायाम करने से दूध का स्वाद बदल जाता है. यह एक भ्रांति है. अपनी क्षमता अनुसार व्यायाम, संतुलित भोजन, और 3 —5 लीटर पानी या तरल पदार्थ आपको हमेशा फायदा ही करेंगे.

9. एक जरूरी बात जिससे हर दूसरी मां परेशान होती है. क्या बच्चे को उसकी जरूरत के हिसाब से दूध मिलता होगा? कहीं वह कमजोर तो नहीं पड़ जाएगा? दूध का बनना “डिमांड और सप्लाई” पर निर्भर होता है यानि जितना बच्चा पिएगा उतना बनेगा. दिन भर में बच्चा कितनी बार दूध पी रहा है, लैचिंग ठीक से हो रही है या नहीं, स्तन खाली होता है या नहीं, दिन भर में बच्चा कितनी बार नैपी गीली (नॉर्मल 8 से 10) कर रहा है आदि बातों से आप अंदाजा लगा सकते हैं और यदि सब ठीक है तो निश्चिंत रहिए. पंप करके मापने की गलती ना करें. फिर भी दिक्कत हो तो विशेषज्ञ की सलाह अवश्य लें.

10. शिशु बीमार हो या मां, सही इलाज और खानपान के साथ-साथ ब्रैस्टफीडिंग जारी रखें l. यदि बच्चे को दस्त हो रहे हों तब भी ब्रैस्टफीडिंग ज़रूर जारी रखें. यदि आप बीमार हैं तो अपने डॉक्टर को बताना ना भूलें कि आप ब्रैस्टफीडिंग करवाती हैं ताकि डॉक्टर आपको वही दवाइयां दे जिनसे शिशु की सेहत को कोई नुकसान ना पहुंचे.

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11. शिशु को कम से कम 2 साल तक ब्रैस्टफीडिंग कराएं. जब भी आप ब्रैस्टफीडिंग बंद कराना चाहें, उसे जबरदस्ती या घरेलू नुस्खों (नीम, करेले का रस, हींग) की मदद से बंद ना करें. बल्कि धीरे-धीरे आपके शिशु के कंफर्ट लेवल को ध्यान में रखकर करें.

12.  आखिरी बात परिवार के सदस्यों के लिए. यदि आपके परिवार में कोई भी महिला है जो ब्रैस्टफीडिंग करवाती है तो उसे पूरा सहयोग करें, उसकी सेहत का ध्यान रखें, दवाइयां जैसे कैल्शियम, आयरन समय पर दें. उसके कामों में हाथ बटाएं, उसकी नींद और खानपान का ध्यान रखें.

जानें क्यों जरुरी है ब्रेस्टफीडिंग

दुनिया भर में केवल पांच में से दो बच्चे जन्म के दो घंटे के भीतर स्तनपान का लाभ ले पाते  हैं – वह  सुनहरे घंटे शिशु को बढ़ने और विकसित होने का सबसे अच्छा मौका देते है. ब्रेस्टफीडिंग  नई  माताओं  को  अपने शिशु  के  साथ शारीरिक और भावनात्मक  रूप से  बांड बनाने में मदद करती है. जन्म से लेकर छह महीनों तक शिशु के स्वास्थ्य के लिए स्तनपान  बहुत  महत्वपूर्ण है. मां का दूध  शिशुओं में  शारीरिक  विकास को बढ़ावा देने के साथ, पोषक तत्व भी प्रदान करता है.

श्री राजेश वोहरा, चीफ एग्जीक्यूटिव ऑफिसर, आर्ट्साना ग्रुप, इन एसोसिएशन विद कीको रिसर्च सेंटर, बताते हैं कि शिशु के साथ-साथ स्तनपान मां के लिए भी अति लाभदायी  होता है. स्तनपान के सबसे महत्वपूर्ण लाभों में से एक लाभ यह है कि स्तनपान कराने की सुविधा देने वाला मुख्य हार्मोन गर्भाशय को उसकी पूर्व स्थिति मे लाने में  मदद  करता है. नई माताओं में  यह मोटापा और ऑस्टियोपोरोसिस को रोकने के साथ-साथ स्तन और ओवेरियन कैंसर के खतरे को भी  कम करता है. पहले के समय में  माताएं  घर  पर  रह  कर शिशु का लालन- पोषण  करती थी और उनको छह माह से लेकर साल भर  तक स्तनपान कराती थी.

लेकिन आज की परिस्थिति कुछ अलग  है. आजकल अधिकांश माताएं   काम पर जाती  हैं और उन्हें लंबे समय तक घर  से दूर रहना पड़ता है. हालांकि पिछले कुछ महीनों से बहुत सी माताएं घर से ही काम कर रही हैं , लेकिन घर के काम और ऑफिस के रूटीन के चलते वह हर समय शिशु को स्तनपान नहीं करा पाती , जिससे नई माताओं के लिए स्तनपान का अभ्यास जारी रखना मुश्किल हो जाता है. लेकिन, यह सुनिश्चित करना बेहद ज़रूरी है कि शिशु कम से कम छह महीने से लेकर एक साल तक के लिए विशेष रूप से स्तनपान पर निर्भर रहे.

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संक्रमण को रोकने में मदद करने के लिए कुछ सुझाव शिशु के पोषण के साथ साथ एक मां को स्तनपान कराते समय स्वच्छता का भी अधिक ध्यान देना चाहिए.

  • आपको अपने बच्चे को स्तनपान कराने से पहले एवं बाद में अपने हाथों को अच्छे से धोना चाहिए. हाथ धोने से सर्दी, फ्लू और पेट से जुड़ी समस्याएं नहीं होतीं.
  • अपने निपल्स को साफ और सूखा रखें
  • अपने निपल्स को धोने के लिए अल्कोहल युक्त सुगंधित साबुन या किसी भी चीज़ का उपयोग न करें. यह सूखापन पैदा कर सकता है और आपके बच्चे के लिए हानिकारक हो सकता है.
  • यदि आप ब्रेस्ट पैड्स का उपयोग करते हैं, तो नम हो जाने पर उन्हें बदलना अनिवार्य है जिससे कि बैक्टीरिया या फंगल संक्रमण का खतरा न हो
  • स्तनपान करने वाली माताओं को अपने कपड़े रोज़ बदलने चाहिए और जितना हो सके वह हवादार कॉटन के कपडे ही पहनें

नई  माताओं  को  साफ़ – सफाई के साथ-साथ अपने खान- पान का बहुत ख्याल रखना चाहिए. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि स्तनपान  कराते समय आपके शरीर को उन पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है, जो दूध की गुणवत्ता बढ़ाने में सहायक होते हैं. इसलिए नई माताओं को पौष्टिक आहार में कैल्शियम युक्त खाद्य पदार्थ जैसे कि दूध, दही, पनीर, हरी पत्तेदार सब्जियां आदि खाना चाहिए जिससे शिशु को भी पोषण मिले.

कोलोस्ट्रम के लाभ

कोलोस्ट्रम मां द्वारा निर्मित पहला दूध होता है और इसमें नवजात शिशु के लिए कई फायदे हैं- यह शिशु को एक मज़बूत इम्यून सिस्टम बनाने में मदद करता है; कोलोस्ट्रम में पाए जाने वाले पदार्थ शिशु की जीवाणुजनित और विषाणुजनित संक्रमणों से रक्षा करने में मदद करते हैं. मां  के दूध में प्राकृतिक एंटीबॉडीज़ होते हैं, जो शिशुओं को गैस्ट्राइटिस, दस्त और निमोनिया जैसी बिमारियों से बचाते हैं. और शिशुओं के मानसिक विकास में भी मदद करते हैं.

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शिशु की देखभाल में  अक्सर व्यस्त  हो जाने के कारण नई  माताएं अपना  ख्याल ठीक से नहीं रख पाती है.  एक स्वस्थ  शरीर और स्वस्थ  दिमाग ही एक स्वस्थ  और खुशनुमा जीवन प्रदान कर सकता है इसलिए अपने शारीरिक और भावनात्मक स्वास्थ्य की देखभाल के लिए नई माताओं को  दिन में कुछ समय अपने लिए रखना चाहिए.जिससे वह खुश  रहे , स्वस्थ  रहे  और  अपने शिशु व  परिवार  की देखभाल भी अच्छे से कर  पाएं.

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