बेबी की पोषण से जुुड़ी जरुरतों के लिए मां के दूध की मात्रा कैसे बढ़ाएं?

मां के लिए अपने बेबी को ब्रैस्टफीडिंग कराना दुनिया का सबसे बड़ा सुख होता है. जो मां तथा बेबी दोनों के लिए ही आपार स्वास्थ्य लाभ प्रदान करने के रूप में जाना गया है. आपके बेबी के लिए मां का दूध जीवन के पहले छह महीनों में आवश्यक माना जाता है क्यूंकि इसमें सभी महत्वपूर्ण पोषण होते हैं. साथ ही इसमें बीमारियों से लड़ने के लिए कई आवश्यक तत्व होते हैं जो आपके बेबी के स्वास्थ्य को समस्याओं से बचने में मदद करते हैं. इसके आलावा इसमें एंटीबाॅडिज भी होते हैं जो आपके बच्चे को वायरस तथा बैक्टीरिया से लड़ने में मदद करते हैं.

बेबी स्वास्थ्य के लिए मां का दूध है सर्वोत्तम आहार-

बेबी के जीवन के पहले छह महीनों के लिए उसकी समस्त पोषण आवश्यकताओं के लिए मां का दूध सर्वोत्तम होता है. आपका बेबी ज्यादा से ज्यादा पोषण प्राप्त करें, इसके लिए यह आवश्यक है कि जन्म के तुरंत बाद से लेकर कम से कम छह महीने तक जबतक कि बेबी को अन्य आहार देना न शुरू कर दिया जाए, केवल मां का दूध ही दिया जाए.

डॉ अरुणा कालरा, वरिष्ठ स्त्री रोग विशेषज्ञ और प्रसूति रोग विशेषज्ञ बता रही हैं स्तन दूध की मात्रा बढ़ाने के खास उपाय.

बहुत सी महिलाओं को कई बार ऐसा लगता है की वे स्तन दूध का उत्पादन पर्याप्त मात्रा में नहीं कर पा रही हैं. एक नयी माँ के लिए ऐसा महसूस करना बहुत ही आम बात है. हालाँकि ऐसी बहुत ही काम महिलाएं होती हैं जो ज़्यादा स्तन दूध का उत्पादन नहीं कर पाती परन्तु यदि आपको लगता है की आप भी उनमे से एक हैं तो आप घबरायें नहीं. ऐसे कुछ बहुत ही आसान तरीकें हैं जिनसे आप अपने स्तन दूध की मात्रा बढ़ा सकती हैं.

आपके स्तन के दूध के उत्पादन को बढ़ाने के लिए निम्नलिखित कुछ तरीके हैं जो आप अपना सकती हैं.

आपके दूध की आपूर्ति को बढ़ाने में कितना समय लगेगा यह इस बात पर निर्भर करता है कि आपकी आपूर्ति की शुरुआत कितनी कम है और आपके कम स्तन दूध के उत्पादन की क्या वजह है. यदि ये तरीके आपके लिए काम करते हैं तो आप स्तन दूध कुछ ही दिनों में बढ़ने लगेगा.

1. बेबी को एक दिन में थोड़ा अधिक बार ब्रैस्टफीडिंग कराएं-

जब आप अपने बेबी को ब्रैस्टफीडिंग कराती हैं तब आपके शरीर में स्तन दूध बढ़ाने वाले होर्मोनेस रिलीज़ होते हैं. आप जितना अधिक ब्रैस्टफीडिंग करवाएंगी उतने अधिक आपके शरीर में ये होर्मोनेस रिलीज़ होंगे और आपके स्तन दूध की मात्रा बढ़ाएंगे.

2. पंप का इस्तेमाल-

ब्रैस्टफीडिंग करने के बीच के समय में पंप का इस्तेमाल करके स्तन दूध निकाले. ऐसा जाना जाता है कि ब्रैस्ट पंप के इस्तेमाल से स्तन दूध निकालने से आपके स्तन दूध की मात्रा बढ़ती है. जब भी आपको लगे की ब्रैस्टफीडिंग करवाने के बाद भी आपके स्तन में दूध बचा है या बेबी किसी कारणवश ब्रैस्टफीडिंग नहीं कर पाया है तब आप पंप का इस्तेमाल करके स्तन दूध निकाल लें.

3. दोनों स्तन से बेबी को ब्रैस्टफीडिंग करवाएं-

बेबी को पहले एक स्तन से ब्रैस्टफीडिंग करवाएं और जब वह दूध पीना काम कर दे  या रुक जाये तो उसे दूसरे स्तन से ब्रैस्टफीडिंग करवाएं. दोनों स्तन से ब्रैस्टफीडिंग करवाने से आपके स्तन दूध की मात्रा बढ़ती है.

4. दूध की मात्रा बढ़ाने वाला खाना खाएं-

निम्नलिखित कुछ ऐसे खाने कि चीज़ें हैं जिससे आपके स्तन दूध की मात्रा बढ़ सकती है. जैसे की-

–  मेथी

– लहसुन

– अदरक

– सौंफ

– ओट्स

– जीरा

– धनिया

– छुआरा

– पपीता, आदि.

जब भी आपको लगे कि इन् सब तरीकों से आपका स्तन दूध नहीं बढ़ पा रहा है तो आप अपने चिकित्सक की सलाह लीजिये.

ब्रैस्टफीडिंग: आपके बेबी को आपका पहला तोहफा

लेखक- डा. तोषी व्यास

फिजियोथैरेपिस्ट (स्त्री एवं प्रसूति विशेषज्ञ)

ब्रैस्टफीडिंग के सफ़र की शुरुआत हर बार आसान नहीं होती. कई बार बहुत सी बातों की समझ नहीं होती और कई बार कुछ बातें इतनी समझा दी जाती हैं कि हम कंफ्यूज हो जाते हैं. ब्रैस्टफीडिंग ना सिर्फ शिशु को कई प्रकार के इंफेक्शन से बचाता है जैसे निमोनिया, उल्टी दस्त, कान की तकलीफ़, बल्कि मां को भी कई गंभीर बीमारियों से बचाने में मददगार है जैसे स्तन कैंसर, पोस्टपार्टम डिप्रेशन आदि. तो आइए समझते हैं ब्रैस्टफीडिंग से जुड़ी ज़रूरी जानकारी और भ्रांति के बारे में.

1. सबसे पहली और बेहद जरूरी बात. बैलेंस डाइट. अक्सर देखने में आता है कि मां को डिलीवरी के बाद कई दिनों तक केवल दूध दलिया या लौकी गिलकी ही दी जाती है , जबकि यह वह समय है जिसमें सबसे ज्यादा न्यूट्रिएंट्स की जरूरत होती है. इसलिए मां को संपूर्ण, संतुलित आहार दें जैसे दाल, चावल, सब्जी रोटी, सलाद, दही, छाछ आदि. डिलीवरी नॉर्मल हो या सिजेरियन, दूसरे दिन से ही टमाटर, टमाटर पालक, ब्रोकोली, सब्जियों आदि का सूप काफी फायदेमंद होता है.

2. बच्चे के जन्म के तुरंत बाद का पीला गाढ़ा दूध आपके शिशु के लिए वरदान है. इसे कभी निकालकर ना फेंके.

3. प्रत्येक ब्रैस्टफीडिंग से पहले निप्पल को धोने की जरूरत नहीं होती है, यदि आप ऐसा करती हैं तो आप उस पदार्थ को भी साफ कर देती हैं जो स्वत: वहां निकलता रहता है और बच्चे की इम्युनिटी बढ़ाने में कारगर है.

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4. अक्सर मां को डिलीवरी के तुरंत बाद आराम देने के लिए शिशु को मां से अलग रखा जाता है जबकि यह समय मां और शिशु की आपसी बॉन्डिंग के लिए बहुत जरूरी है और यही वह सबसे अच्छा समय भी है जब धीरे-धीरे मां और बच्चा दोनों ही ब्रैस्टफीडिंग को सीख सकते हैं जैसे ब्रैस्टफीडिंग के समय आप का पोश्चर सही है या नहीं, आपका शिशु सही ढंग से मुंह में निप्पल और गहरे गुलाबी घेरे को भी मुंह में लेकर दूध पिए जिसे लैचिंग कहते हैं.
“कंगारू तकनीक” जिसमें मां अपनी गर्माहट शिशु को प्रदान करती है भी इसी का एक रूप है जो बेहद लाभकारी है खासकर जन्म से पहले जन्मे शिशु के लिए.

5. ब्रैस्टफीडिंग कराते समय हमेशा ध्यान रखें कि आप और शिशु दोनों कंफर्टेबल पोश्चर में हों, अपनी सुविधानुसार आप बैठकर अथवा करवट पर लेट कर ब्रैस्टफीडिंग करवा सकती हैं. कंफर्टेबल पोश्चर में रहने के लिए तकियों का इस्तेमाल एक उत्तम उपाय है.

6. यदि आप को ब्रैस्टफीडिंग करवाते समय निप्पल में दर्द, सूजन अथवा लालिमा महसूस हो तो जरूर चेक करें कि शिशु की लैचिंग ठीक तरीके से हुई है या नहीं. फिर भी आराम ना मिले तो बिना देर किए विशेषज्ञ की सलाह लें.

7. यदि शिशु की उम्र 6 माह से कम है तो ऊपर से कोई भी आहार, घुटी या पानी ना दें. मां का दूध सर्वोत्तम और संपूर्ण आहार है.

8. कई बार सुनते हैं कि व्यायाम करने से दूध का स्वाद बदल जाता है. यह एक भ्रांति है. अपनी क्षमता अनुसार व्यायाम, संतुलित भोजन, और 3 —5 लीटर पानी या तरल पदार्थ आपको हमेशा फायदा ही करेंगे.

9. एक जरूरी बात जिससे हर दूसरी मां परेशान होती है. क्या बच्चे को उसकी जरूरत के हिसाब से दूध मिलता होगा? कहीं वह कमजोर तो नहीं पड़ जाएगा? दूध का बनना “डिमांड और सप्लाई” पर निर्भर होता है यानि जितना बच्चा पिएगा उतना बनेगा. दिन भर में बच्चा कितनी बार दूध पी रहा है, लैचिंग ठीक से हो रही है या नहीं, स्तन खाली होता है या नहीं, दिन भर में बच्चा कितनी बार नैपी गीली (नॉर्मल 8 से 10) कर रहा है आदि बातों से आप अंदाजा लगा सकते हैं और यदि सब ठीक है तो निश्चिंत रहिए. पंप करके मापने की गलती ना करें. फिर भी दिक्कत हो तो विशेषज्ञ की सलाह अवश्य लें.

10. शिशु बीमार हो या मां, सही इलाज और खानपान के साथ-साथ ब्रैस्टफीडिंग जारी रखें l. यदि बच्चे को दस्त हो रहे हों तब भी ब्रैस्टफीडिंग ज़रूर जारी रखें. यदि आप बीमार हैं तो अपने डॉक्टर को बताना ना भूलें कि आप ब्रैस्टफीडिंग करवाती हैं ताकि डॉक्टर आपको वही दवाइयां दे जिनसे शिशु की सेहत को कोई नुकसान ना पहुंचे.

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11. शिशु को कम से कम 2 साल तक ब्रैस्टफीडिंग कराएं. जब भी आप ब्रैस्टफीडिंग बंद कराना चाहें, उसे जबरदस्ती या घरेलू नुस्खों (नीम, करेले का रस, हींग) की मदद से बंद ना करें. बल्कि धीरे-धीरे आपके शिशु के कंफर्ट लेवल को ध्यान में रखकर करें.

12.  आखिरी बात परिवार के सदस्यों के लिए. यदि आपके परिवार में कोई भी महिला है जो ब्रैस्टफीडिंग करवाती है तो उसे पूरा सहयोग करें, उसकी सेहत का ध्यान रखें, दवाइयां जैसे कैल्शियम, आयरन समय पर दें. उसके कामों में हाथ बटाएं, उसकी नींद और खानपान का ध्यान रखें.

जानें क्यों जरुरी है ब्रेस्टफीडिंग

दुनिया भर में केवल पांच में से दो बच्चे जन्म के दो घंटे के भीतर स्तनपान का लाभ ले पाते  हैं – वह  सुनहरे घंटे शिशु को बढ़ने और विकसित होने का सबसे अच्छा मौका देते है. ब्रेस्टफीडिंग  नई  माताओं  को  अपने शिशु  के  साथ शारीरिक और भावनात्मक  रूप से  बांड बनाने में मदद करती है. जन्म से लेकर छह महीनों तक शिशु के स्वास्थ्य के लिए स्तनपान  बहुत  महत्वपूर्ण है. मां का दूध  शिशुओं में  शारीरिक  विकास को बढ़ावा देने के साथ, पोषक तत्व भी प्रदान करता है.

श्री राजेश वोहरा, चीफ एग्जीक्यूटिव ऑफिसर, आर्ट्साना ग्रुप, इन एसोसिएशन विद कीको रिसर्च सेंटर, बताते हैं कि शिशु के साथ-साथ स्तनपान मां के लिए भी अति लाभदायी  होता है. स्तनपान के सबसे महत्वपूर्ण लाभों में से एक लाभ यह है कि स्तनपान कराने की सुविधा देने वाला मुख्य हार्मोन गर्भाशय को उसकी पूर्व स्थिति मे लाने में  मदद  करता है. नई माताओं में  यह मोटापा और ऑस्टियोपोरोसिस को रोकने के साथ-साथ स्तन और ओवेरियन कैंसर के खतरे को भी  कम करता है. पहले के समय में  माताएं  घर  पर  रह  कर शिशु का लालन- पोषण  करती थी और उनको छह माह से लेकर साल भर  तक स्तनपान कराती थी.

लेकिन आज की परिस्थिति कुछ अलग  है. आजकल अधिकांश माताएं   काम पर जाती  हैं और उन्हें लंबे समय तक घर  से दूर रहना पड़ता है. हालांकि पिछले कुछ महीनों से बहुत सी माताएं घर से ही काम कर रही हैं , लेकिन घर के काम और ऑफिस के रूटीन के चलते वह हर समय शिशु को स्तनपान नहीं करा पाती , जिससे नई माताओं के लिए स्तनपान का अभ्यास जारी रखना मुश्किल हो जाता है. लेकिन, यह सुनिश्चित करना बेहद ज़रूरी है कि शिशु कम से कम छह महीने से लेकर एक साल तक के लिए विशेष रूप से स्तनपान पर निर्भर रहे.

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संक्रमण को रोकने में मदद करने के लिए कुछ सुझाव शिशु के पोषण के साथ साथ एक मां को स्तनपान कराते समय स्वच्छता का भी अधिक ध्यान देना चाहिए.

  • आपको अपने बच्चे को स्तनपान कराने से पहले एवं बाद में अपने हाथों को अच्छे से धोना चाहिए. हाथ धोने से सर्दी, फ्लू और पेट से जुड़ी समस्याएं नहीं होतीं.
  • अपने निपल्स को साफ और सूखा रखें
  • अपने निपल्स को धोने के लिए अल्कोहल युक्त सुगंधित साबुन या किसी भी चीज़ का उपयोग न करें. यह सूखापन पैदा कर सकता है और आपके बच्चे के लिए हानिकारक हो सकता है.
  • यदि आप ब्रेस्ट पैड्स का उपयोग करते हैं, तो नम हो जाने पर उन्हें बदलना अनिवार्य है जिससे कि बैक्टीरिया या फंगल संक्रमण का खतरा न हो
  • स्तनपान करने वाली माताओं को अपने कपड़े रोज़ बदलने चाहिए और जितना हो सके वह हवादार कॉटन के कपडे ही पहनें

नई  माताओं  को  साफ़ – सफाई के साथ-साथ अपने खान- पान का बहुत ख्याल रखना चाहिए. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि स्तनपान  कराते समय आपके शरीर को उन पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है, जो दूध की गुणवत्ता बढ़ाने में सहायक होते हैं. इसलिए नई माताओं को पौष्टिक आहार में कैल्शियम युक्त खाद्य पदार्थ जैसे कि दूध, दही, पनीर, हरी पत्तेदार सब्जियां आदि खाना चाहिए जिससे शिशु को भी पोषण मिले.

कोलोस्ट्रम के लाभ

कोलोस्ट्रम मां द्वारा निर्मित पहला दूध होता है और इसमें नवजात शिशु के लिए कई फायदे हैं- यह शिशु को एक मज़बूत इम्यून सिस्टम बनाने में मदद करता है; कोलोस्ट्रम में पाए जाने वाले पदार्थ शिशु की जीवाणुजनित और विषाणुजनित संक्रमणों से रक्षा करने में मदद करते हैं. मां  के दूध में प्राकृतिक एंटीबॉडीज़ होते हैं, जो शिशुओं को गैस्ट्राइटिस, दस्त और निमोनिया जैसी बिमारियों से बचाते हैं. और शिशुओं के मानसिक विकास में भी मदद करते हैं.

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शिशु की देखभाल में  अक्सर व्यस्त  हो जाने के कारण नई  माताएं अपना  ख्याल ठीक से नहीं रख पाती है.  एक स्वस्थ  शरीर और स्वस्थ  दिमाग ही एक स्वस्थ  और खुशनुमा जीवन प्रदान कर सकता है इसलिए अपने शारीरिक और भावनात्मक स्वास्थ्य की देखभाल के लिए नई माताओं को  दिन में कुछ समय अपने लिए रखना चाहिए.जिससे वह खुश  रहे , स्वस्थ  रहे  और  अपने शिशु व  परिवार  की देखभाल भी अच्छे से कर  पाएं.

ब्रेस्टफीडिंग के दौरान बरतें ये सावधानियां

ब्रैस्ट फीड कराने वाली मांओं के लिए ब्रैस्ट की साफसफाई पर बहुत ध्यान देने की आवश्यकता होती है. साफसफाई से संबंधित ये टिप्स हर मां के लिए जानने जरूरी हैं:

– बच्चे को फीड कराने से पहले हाथ जरूर धोने चाहिए, क्योंकि आप दिनभर में हाथों से कई काम करती हैं. ऐसे में उंगलियों व हथेलियों के गंदे व संक्रमित होने की संभावना अधिक रहती है. वैसे भी संक्रमित करने वाले जीवाणु व विषाणु इतने छोटे होते हैं कि दिखाई नहीं देते हैं और नवजात को दूध पिलाने के दौरान स्थानांतरित हो जाते हैं. इस से शिशु कई बीमारियों से ग्रस्त हो जाता है. इसलिए शिशु में बीमारियों को फैलने से रोकने के लिए मां का अपने हाथों को उचित तरीके से धोना बेहद आवश्यक है.

– स्तनों व निपलों को साफ रखना भी जरूरी है, क्योंकि कपड़ों की वजह से निपलों पर पसीना जमने से वहां कीटाणु पनपते हैं, जो ब्रैस्ट फीडिंग के दौरान शिशु के पेट में पहुंच जाते हैं और फिर उसे नुकसान पहुंचाते हैं. इसलिए ध्यान रहे कि शिशु को ब्रेस्टफीडिंग कराने से पहले अपने स्तनों व निपलों को कुनकुने पानी में रुई या साफ कपड़ा भिगो कर उस से अच्छी तरह पोंछें. निपल की सूजन को कम करने के लिए आप दूध की 4-5 बूंदें निपल पर लगा कर सूखने दें. कई बार नवजात दूध पीते वक्त दांतों से काट लेता है, जिस से जख्म बन जाता है और फिर दर्द होता है. इस दर्द को कम करने में भी मां का अपना दूध काफी मददगार साबित होता है.

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– शिशु के जन्म के बाद से ही मां के स्तनों के आकार में परिवर्तन आ जाता है. ऐसी स्थिति में टाइट ब्रा पहनने से बचना चाहिए, क्योंकि टाइट ब्रा पहनने के बहुत नुकसान होते हैं. एक तो शिशु को दूध पिलाने में दिक्कत होती है दूसरा स्तनों में दूध का जमाव बढ़ जाता है, जोकि बाद में गांठ का रूप ले लेता है.

– कई मांएं ब्रैस्ट फीड कराते समय निपल शील्ड का उपयोग करती हैं, जो दूध पिलाते वक्त उन के सामने आने वाली समस्याओं का अल्पकालीन समाधान है. इन निपल शील्ड को उपयोग करते समय इन की साफसफाई पर भी ध्यान देना जरूरी है और इन्हें लगा कर दूध पिलाने से पहले इन्हें हर बार स्टेरलाइज कर लेना चाहिए ताकि शील्ड पर मौजूद कीटाणु हट जाएं और नवजात के पेट में न जा पाएं.

– ब्रैस्ट फीडिंग कराने वाली मांएं रैग्युलर ब्रा की जगह नर्सिंग ब्रा पहनती हैं, जिस से शिशु को फीड कराना आसान रहता है, क्योंकि यह साधारण ब्रा के मुकाबले काफी आरामदायक व फ्लैक्सिबल होती है. कौटन से बनी इस ब्रा में जहां हवा पास होती रहती है वहीं इस में लगा इलास्टिक त्वचा को काफी सौफ्ट टच देता है. अगर आप अभी मां बनी हैं और बच्चे को ब्रैस्ट फीड कराती हैं, तो बौडी केयर की नर्सिंग ब्रा एक अच्छा विकल्प है. इस तरह की ब्रा में कप में निपल वाली जगह खोलने की सुविधा होती है और पीछे हुक भी अधिक लगे होते हैं, जिन्हें आप अपने हिसाब से लूज व टाइट कर सकती हैं. इस ब्रा की बनावट स्तनों  को पूरा सहारा देती है. लेकिन कई बार दूध पिलाते वक्त ब्रा पर दूध गिर जाने से वहां बैक्टीरिया पनप जाते हैं और वह गंदी भी हो जाती है. इसलिए नर्सिंग ब्रा को हर दिन बदलें.

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– ब्रेस्टफीडिंग के लिए आप जिन उपकरणों जैसेकि ब्रैस्ट पंप का उपयोग कर रही हैं, तो उस की साफसफाई भी जरूरी है. ब्रैस्ट पंप धोने के लिए रसोईर् या शिशु की बोतल धोने वाले ब्रश का प्रयोग भूल कर भी न करें. इसे साफ करने के लिए अलग साधन का प्रयोग करें.

Breastfeeding Tips: बच्चे के वजन से लेकर आपके पहनावे तक, इन बातों का रखें ध्यान

कई बार जुड़वां बच्चों की मां बच्चे के जन्म के पहले हफ्ते में पूर्ण स्तनपान कराए जाने के बावजूद वजन घटने के चलते घबरा जाती है. अत: अगर आप के बच्चे के जन्म के पहले हफ्ते में सही स्तनपान कराने के बावजूद वजन घट रहा है तो घबराने की जरूरत नहीं है, क्योंकि जन्म के पहले सप्ताह के पूरा होने तक फिर से जन्म के समय वाले वजन के बराबर हो जाता है. अगर ऐसा होता है तो यह समझ जाना चाहिए कि आप के बच्चे को आप का सही मात्रा में दूध मिल रहा है. अगर सप्ताह पूरा होने पर भी जुड़वां बच्चों का घटा वजन कवर न हो तो ब्रैस्टफीडिंग ऐक्सपर्ट या डाक्टर से परामर्श लेना न भूलें.

कैसे जानें कि बच्चा सही दूध पी रहा है

कई बार मां द्वारा सही स्थिति में बच्चे को ब्रैस्टफीडिंग कराने के बावजूद मां को बारबार यह लगता है कि उस के बच्चे को सही मात्रा में स्तनों से दूध नहीं मिला. यह स्थिति जुड़वां बच्चों के मामले में और जुदा होती है, क्योंकि मां को लगता है बच्चा एक स्तन का ही दूध पी रहा है, जो उस के लिए काफी नहीं है.

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ऐसे में अगर आप सही पोजीशन का ध्यान रख कर बच्चे को ब्रैस्टफीडिंग कराएं तो ज्यादातर मामलों में उस की जरूरत भर का दूध मां से मिल जाता है. इसे हम इस तरीके से जांच सकते हैं- अगर बच्चे का पेट मां के दूध से भर रहा हो तो वह 24 घंटे में कम से कम 7-8 बार टौयलेट करता है. इस के लिए बच्चे का गीला नैपी भी गिन सकती हैं. यह भी ध्यान रखें कि बच्चा दूध पीने के बाद 2 घंटे तक सोए. उस का वजन उस की उम्र के अनुसार बढ़ रहा हो यानी हर सप्ताह औसत 150 ग्राम तक तो यह सम झ लेना चाहिए कि बच्चे का पेट मां के दूध से पूरी तरह भर रहा है.

डकार दिलाना न भूलें

डाक्टर प्रीति मिश्रा के अनुसार, अगर आप जुड़वां बच्चों की मां हैं, तो आप को उन पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत होती है. ब्रैस्टफीडिंग को ले कर ऐसे में जब भी आप बच्चे को ब्रैस्टफीडिंग कराएं तो ब्रैस्टफीडिंग के तुरंत बाद बच्चे को अपने कंधे पर लिटा कर उस की पीठ को हलके हाथों से सहलाना न भूलें. इस के अलावा आप बच्चे को अपने पैरों पर पेट के बल लिटा कर उस की पीठ भी सहला सकती हैं. ऐसा करने से बच्चे को डकार अच्छी आती है, जिस से उस का दूध पच जाता है और वह उलटी नहीं करता. ऐसा करने से बच्चे के पेट में गैस भी नहीं बनती है.

खुद का भी रखें खयाल

जुड़वां बच्चों की मांओं को बच्चों की देखभाल के साथसाथ खुद का भी खयाल रखना पड़ता है खासकर तब जब बच्चे ब्रैस्टफीडिंग वाली अवस्था के हों. इस अवस्था में मां को अच्छा व पोषणयुक्त भोजन लेना चाहिए. मां को चाहिए कि वह अपने रोज के खाने में हरी सब्जियां, फल, दूध, दही, मांस, मछली, अंडा, दालें, फलियां जरूर शामिल करे. खुद के शरीर को आराम पहुंचाने के लिए व्यायाम करने के साथसाथ अच्छी नींद भी जरूर ले.

पहनावा कैसा हो

अगर आप जुड़वां बच्चों को ब्रैस्टफीडिंग कराने वाली मां हैं, तो बाहर जाने के दौरान आप का पहनावा आप की ब्रैस्टफीडिंग में बाधा पैदा करता है. ऐसे में सार्वजनिक जगहों पर चाहते हुए भी अपने बच्चे को ब्रैस्टफीडिंग नहीं करा पाती हैं. इसलिए आप को चाहिए कि इस अवस्था में आप अपने पहनावे पर विशेष ध्यान दें. इस के लिए ऐसे टौप खरीदें, जिन में बै्रस्ट का स्थान ज्यादा खुला हुआ हो. इस से आप कपड़ों को ऊपरनीचे करने से बच सकती हैं.

ब्रैस्टफीडिंग कराने वाली मांओं को अपने साथ दुपट्टा या स्टोल हमेशा रखना चाहिए. इस के अलावा घर में रहने के दौरान ऊपर से खुलने वाले गाउन, मैक्सी या हलके कपड़े पहन सकती हैं. अगर आप कोई पार्टी या फंक्शन अटैंड करने जा रही हैं तब भी आप को अपने बच्चों की ब्रैस्टफीडिंग का खयाल रखना पड़ेगा. इसलिए फैशन ऐक्सपर्ट से सलाह ले कर ब्रैस्टफीडिंग कराने में कंफर्ट कपड़ों का चयन करें.

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अगर जुड़वां बच्चों वाली मांएं कामकाजी हैं तो ऐसी अवस्था में वे अपने ब्रैस्ट मिल्क को निकाल कर स्टोर कर सकती हैं. ब्रैस्ट मिल्क को स्टोर करने के लिए उसे फ्रिज में रखने की जरूरत नहीं होती है, बल्कि इसे सामान्य तापमान पर 6 घंटों तक सुरक्षित रखा जा सकता है.

स्तनों से दूध निकालने के लिए साफ कटोरी का इस्तेमाल करें. अपने हाथ के अंगूठे और अंगूठे की बगल की उंगली से ब्रैस्ट को नीचे से ऊपर की तरफ गोलाई में एरिओला में लाना चाहिए. इस से ब्रैस्ट में स्टोर दूध बाहर आ जाता है. अगर ब्रैस्टफीडिंग के दौरान ब्रैस्ट में दर्द या घाव है, आप का बच्चा सुस्त है या दूध चूसने में उसे परेशानी हो रही है तो डाक्टर से सलाह लें.

 ब्रैस्टफीडिंग: जब हों जुड़वां बच्चे

श्रेया प्रैगनैंट थी. उस ने होने वाले बच्चे की सारी तैयारी भी कर रखी थी. जब उस की डिलिवरी हुई तो उसे जुड़वां बच्चे पैदा हुए. उस का इस तरफ ध्यान ही न था कि उसे जुड़वां बच्चे भी हो सकते हैं, क्योंकि वह जिस डाक्टर से अपनी रूटीन जांच कराती थी उस ने भी ऐसी कोई जानकारी उसे नहीं दी थी. उसे डाक्टरों ने जुड़वां बच्चों की देखभाल से जुड़े तमाम दिशानिर्देश दिए. बच्चों के साफसफाई, पोषण सहित ब्रैस्टफीडिंग से जुड़ी पूरी जानकारी दी.

अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद जब श्रेया घर आई तो 1 हफ्ते तक तो सबकुछ ठीकठाक रहा, फिर उस के दोनों बच्चे चिड़चिड़े से रहने लगे.

घबराई श्रेया ने पति के साथ ऐक्सपर्ट डाक्टर से मिल कर उन्हें बच्चों के चिड़चिड़े होने और सही से ब्रैस्टफीडिंग न कर पाने की बात बताई. तब डाक्टर ने श्रेया को बताया कि जुड़वां बच्चों के मामले में यह आम बात है, क्योंकि जुड़वां बच्चों में ब्रैस्टफीडिंग कराने के दौरान विशेष सावधानी बरतनी पड़ती है. इस के बाद फिर डाक्टर ने श्रेया को ब्रैस्टफीडिंग में अपनाई जाने वाली कुछ पोजीशंस बताईं, साथ ही कुछ सावधानियां बरतने को भी कहा, जिन पर गौर करने के बाद श्रेया की शिकायत दूर हो गई.

1. 6 माह तक विशेष खयाल

मां और बच्चों की विशेषज्ञा डाक्टर प्रीति मिश्रा कहती हैं कि अकसर मांएं जन्म के बाद से ही अपने शिशुओं को स्तनपान कराने के साथ ही ऊपर से गाय का दूध, शहद, घुट्टी, पानी आदि देने लगती हैं. जुड़वां बच्चे होने पर यह सिलसिला और भी बढ़ जाता है, क्योंकि मां को लगता है कि स्तनपान बच्चों के लिए पर्याप्त नहीं हो रहा है जबकि 6 माह के पहले अगर बच्चे को ऊपर से कुछ भी दिया जाता है तो वह उसे बीमार करने के साथसाथ उस के पोषण को भी प्रभावित कर सकता है. इसलिए हर मां को यह तय कर लेना चाहिए कि बच्चे को स्तनपान ही कराना है ऊपर का कुछ भी नहीं देना है. फिर चाहे वह जुड़वां बच्चों की मां हो या सिंगल बच्चे की. मां दोनों ही के लिए अपनी ब्रैस्ट में पर्याप्त दूध का निर्माण कर लेती है.

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औपरेशन से हुए प्रसव में भी स्तनपान जारी रखें. अकसर औपरेशन से हुए प्रसव के चलते ब्रैस्टफीडिंग में देरी हो जाती है. जुड़वां बच्चों के मामले में यह देरी और बढ़ जाती है, जबकि प्रसव के 1 घंटे के अंदर शिशु को मां के स्तनों से गाढ़ा पीला दूध यानी कोलोस्ट्रम मिल जाना चाहिए, क्योंकि यह बच्चे को जन्म के बाद कई तरह की बीमारियों से बचाता है. अगर प्रसव औपरेशन से हुआ हो तो मां को जल्दी स्तनपान कराने के लिए वह पहले एक करवट लेट जाए और पहले एक बच्चे को निचले स्तन से लेटे हुए ही ब्रैस्टफीडिंग कराए. ऐसे ही दूसरी करवट लेट कर निचले स्तन से दूसरे बच्चे को स्तनपान कराए. लेट कर स्तनपान कराना जारी रखने के दौरान यह ध्यान रखे कि स्तनपान कराते समय बच्चे के सिर पर हाथ का सहारा जरूर दे और यह भी ध्यान रखे कि ब्रैस्टफीडिंग करातेकराते सोए नहीं.

2. स्तनपान की सही पोजीशन

जुड़वां बच्चों के मामले में ब्रैस्टफीडिंग को ले कर मां को कईर् तरह से सकर्त रहने की जरूरत होती है ताकि बच्चे को दूध के जरीए उचित पोषण मिल सके. इसलिए जब भी मां बच्चे को ब्रैस्टफीडिंग करा रही हो तो उसे अपनी पोजीशन का खयाल जरूर रखना चाहिए. मां को ब्रैस्टफीडिंग के समय चिंतामुक्त होना चाहिए. दोनों बच्चों को एकसाथ स्तनपान कराए, क्योंकि मां के स्तनों में दूध बनने की प्रक्रिया मां और शिशु के बीच सही लगाव होने से निकलने वाले हारमोंस के चलते होती है और यह तभी होता है जब मां का पूरा ध्यान बच्चे पर हो. ऐसा होने से मां स्तनों में प्रोलैक्टिन और औक्सीटोसिन नाम के हारमोन दूध बनाने और दूध को स्तनों से बाहर ले जाने का काम करते हैं.

3. जुड़वां बच्चों का ब्रैस्टफीडिंग अटैचमैंट

मां के स्तनों में पर्याप्त दूध बनता है. फिर भी कभीकभी उसे यह शिकायत रहती है कि उस के बच्चों को पर्याप्त दूध नहीं मिल पा रहा है. इसलिए मां को चाहिए कि जब भी ब्रैस्टफीडिंग कराए तो बच्चे का मुंह बड़ा खुले और स्तनों के निपल के पास के काले घेरे का ज्यादा हिस्सा बच्चे के मुंह में हो, क्योंकि बच्चा जब ब्रैस्टफीडिंग करता है तो अकसर मांएं बच्चे के मुंह में स्तन का निपल डालती हैं. इस से बच्चा दूध चूस नहीं पाता है, क्योंकि मां की ब्रैस्ट में दूध स्तन के काले वाले भाग में रहता है न कि निपल में. ऐसे में जब मां बच्चे को निपल पकड़ाती है, तो उस को दूध नहीं मिल पाता और वह दूध न मिलने की दशा में मसूड़ों से निपल पर जोर लगाता है, जिस से मां के निपल में दर्द और कभीकभी घाव की भी समस्या हो जाती है. इस के अलावा मां को ब्रैस्टफीडिंग के समय यह ध्यान देना चाहिए कि बच्चे की ठुड्डी यानी दाढ़ का अगला भाग ब्रैस्ट से सटा हो और स्तनपान के समय बच्चे का निचला होंठ बाहर की तरफ निकला हो. अगर मां यह तरीका अपनाती है, तो उस के जुड़वां बच्चों को पर्याप्त मात्रा में दूध मिलता रहता है.

4. इस बात का रखें विशेष खयाल

ज्यादातर मांओं की जुड़वां बच्चों के मामले में एक बच्चे को कम पोषण मिलने की शिकायत रहती है. इस का कारण मां को जुड़वां बच्चों के मामले में ब्रैस्टफीडिंग की सही जानकारी न होना है, जिस से एक बच्चे को पर्याप्त दूध तो मिल जाता है, जबकि दूसरे को दूध नहीं. ऐसे में यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि दोनों बच्चों को पर्याप्त दूध ब्रैस्टफीडिंग के जरीए मिल रहा हो, क्योंकि मां अपने जुड़वां बच्चों को अलगअलग समय में दूध पिलाती है, जिस से पहले ब्रैस्टफीडिंग करने वाले को स्तन से हलका मिल्क मिलता है और बाद वाले को पोषक तत्त्वों से युक्त गाढ़ा दूध मिलता है. इसलिए एक बच्चे में पोषण की कमी हो सकती है, जिस से आगे चल कर वह कमजोर हो सकता है.

ऐसी दशा में जुड़वां बच्चों वाली मां को चाहिए कि दोनों को बराबर और पर्याप्त मिल्क मिले. दोनों को 1-1 स्तन का पूरा दूध पिलाने की कोशिश करनी चाहिए. इस से हलका और गाढ़ा दोनों मिल्क बच्चों को बराबर मात्रा में मिलता है. हर मां जुड़वां बच्चों को हर 2 घंटे बाद ब्रैस्टफीडिंग कराए. इस से इन के पोषण की आवश्यकता की पूर्ति होती रहती है.

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