सैंकड़ों ऐसे मामले हैं जिन में किसी युवती या औरत की बिना सुबूत शिकायत पर बलात्कार, छेड़छाड़, बैड टच पर पुलिस ने आरोपी को गिरफ्तार कर लिया और वह महीनों सालों जेल में छोड़ा. आश्चर्य की बात है कि देश के लिए दुनिया भर से तरहतरह के गोल्ड, सिल्वर, ब्रौंज मेडल लाने वाली पहलवान लड़कियों के खुले आरोपों के बावजूद भारतीय जनता पार्टी ने ब्रजभूषण शरण सिंह, जो रैसलिंग फेडरेशन औफ इंडिया का प्रमुख है और वह भाजपा नेता है, को पुलिस छू तक नहीं रही.
भारतीय जनता पार्टी काबिले तारीफ है कि वह अपने कर्मठ सपोर्टर की इस हद तक सुरक्षा करती है कि जब 2 महीने से ये रैसलर युवतियां जंतरमंतर पर बैठ कर धरना दे रही हैं तो भी नेता को बचाने की कोशिश हो रही है. जब इन रैसलर्म और उन के मर्थकों ने संसद पर 28 मई को जाने की कोशिश की तो पुलिस ने उन की जम कर ऐसी धुनाई की जो उन्होंने ओलंपिक और दूसरे खेल टूर्नामैंटों ने नहीं सही हो. उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया.
यही नहीं उन के जेल में ले जाते समय बस में खींचे फोटो को फोटोशौप से मुरझाए चेहरों को मुस्कराते चेहरे बना दिए गए और पार्टी के विशाल डवैल सिस्टम में डाल कर साबित करने की कोशिश थी कि ये लड़कियां बस में पुलिस के पहरे में पिकनिक पर जा रही हैं.
असल में देश में कुश्ती को कोई खास इज्जत आज भी नहीं दी जाती क्योंकि इस में आने वाली लड़कियां समाज के पिछड़े वर्गों से आती हैं. जो बात आमिर खां ने अपनी फिल्म ‘दंगल’ में दिखाई थी वही असल में हो रहा है कि ये पिछड़ी लड़कियां हावी न हो सकें. मामला चाहे बलात्कार का हो या न हो.
अगर सरकार, रैसलिंग फेडरेशन और बाकी खेल फेडरेशन इस मामले में चुप हैं तो इसलिए कि सब बंटे हुए हैं और किसी को भी लड़कियों की छेडख़ानी पर कोई फर्क नहीं पड़ता.
पहलवानों की कुश्तियां हमेशा इस देश में गरीबों का खेल समझ गया है. यह तो सिर्फ क्रिकेट है जो अंग्रेजी नबाबों का खेल था जिस में अच्छे घरों के लोग गए थे, हांकी, फुटबाल, हमारे अमीरों के खेल नहीं है. महिला क्रिकेट को भी वह भाव नहीं मिलता जो पुरुष क्रिकेट को मिलता है क्योंकि उस में पिछड़ी जातियों की लड़कियां हैं.
एक तो कुश्ती जैसा खेल की खिलाड़ी और ऊपर से लड़कियां, उन्हें भला भाव कैसे दिया जा सकता है. यहां तो ऊंची जातियों की औरतों को भी पैर की जूती समझा जाता है और उन्हें सेवा करने की ट्रेङ्क्षनग जन्म होते ही दी जाती है. अच्छी औरत वही है जो पिता, पति, सांसससुर, घर में मंदिर, पंडोंपुजारियों और बच्चों की सेवा करे. वह आवाज उठाए तो चाहे चाहे जितनी जोर की हो, दबानी ही होगी. जंतरमंतर पर बैठी रैसलर्स अपना धर्म भूल गई हैं कि वे टुकड़ों के बदले सेवा के लिए है, बराबरी की इज्जत पाने का हक नहीं मांग सकती है.