पतिपत्नी के बीच जब ‘वो’ आ जाए तो आपसी विश्वास खत्म हो जाता है और रिश्तों को दरकते देर नहीं लगती. अगर ‘वो’ सास हो या अपनी ही मां जो छोटीछोटी बातों का बतंगड़ बनाए तो भी बसीबसाई गृहस्थी को आग लगते देर नहीं लगती. ऐसे कई परिवार हैं जहां पतिपत्नी के बीच संबंध आपसी तकरार की वजह से नहीं टूटते बल्कि सास या मां की बेवजह की रोकटोक, जरूरत से ज्यादा हुक्म जताने और परिवार के बीच फूट डालने से टूटते हैं. सास और मां का कहर बाहरी औरत से ज्यादा ही होता है.
जरूरी नहीं हमेशा सास ही गलत हो और यह भी जरूरी नहीं कि हमेशा बहू की ही गलती हो. आखिर अधिकतर मामलों में इन के रिश्ते सुल?ो हुए क्यों नहीं होते? क्यों बहू अपनी सास को मां का दर्जा नहीं दे पाती और सास अपनी बहू को बेटी का दर्जा देने से कतराती हैं?
क्योंकि सास सास होती है
आजकल लड़कियों के मन में पहले से ही ससुराल के प्रति नकारात्मक छवि बना दी जाती है. अब मांएं समझदार हो गई हैं पर फिर भी एक मां का अपने बेटे की चिंता रहती है. मन में कई सवाल दौड़ रहे होते हैं कि पता नहीं मेरी बहू कैसी होगी, कहीं कुछ समय बाद हमें अलग न कर दे, कहीं बेटा बदल न जाए आदि. शादी के बाद वह बेटे को बातबात पर भड़काने लगती है यह उस से बहू की छोटीछोटी शिकायतें करने लगती है.
बेटी की गृहस्थी में मां बनी विलेन
सास और बहू के अलावा लड़की की मां का भी अहम किरदार होता है. हर मां चाहती है कि उस की बेटी राजकुमारी बन कर रहे. जब मां अपनी बेटी को ससुराल में थोड़ाबहुत काम करते देखती या सुनती है, तो उसे लगता है कि उस के पैसे बरबाद हो गए, शादी में जितना पैसा खर्च किया था वह बेटी के लिए ही तो किया था कि वह राजकुमारी बन कर रहे. मगर वहां तो उसे नौकरानी बना कर रखा हुआ है. ये सब देख कर वह बेटी को यह सिखाती है कि किस तरह ससुराल में अपना रुतबा बनाना है.
अब श्रेया को ही देख लीजिए. मांबाप की इकलौती बेटी श्रेया की शादी बहुत अच्छे परिवार में हुई. वह अपनी शादी से बहुत खुश थी. उस की मां अकसर उस का हालचाल पूछने के लिए फोन करती रहती थी.
एक दिन मां ने श्रेया को फोन किया. उस वक्त श्रेया कहीं जाने की तैयारी में थी. बोली, ‘‘हैलो, हां मां.’’
‘‘कैसी हो तुम? क्या चल रहा
है वहां?’’
‘‘मैं ठीक हूं मां, कपड़े प्रैस कर रही हूं.’’
‘‘कपड़े प्रैस? क्यों तुम्हारे घर में धोबी नहीं आता क्या?’’
‘‘नहीं, मां यहां सब अपने कपड़े खुद प्रैस करते हैं और टाइम भी ज्यादा नहीं लगता. फिर वैसे भी धोबी के प्रैस किए कपड़े किसी को पसंद नहीं आते. इसलिए हम प्रैस खुद ही कर लेते हैं.’’
‘‘अरे, तुम ने तो यहां कभी कपड़े प्रैस नहीं किए और वहां तुम प्रैस करने लगी हुई हो. यहां तुम रानी बन कर रहती थी?’’
अब श्रेया की मां ने अपनी बेटी के मन में ससुराल वालों के प्रति गांठ डालने का काम शुरू कर दिया.
याद आती हैं मां की बातें
उस दिन के बाद से श्रेया जब भी कपड़े प्रैस करती उसे अपनी मां की बात याद आने लगती, जिस से उसे कपड़े प्रैस करना अखरने लगा. सिर्फ कपड़े प्रैस करना ही नहीं वरन घर के दूसरे काम करने के लिए भी मुंह बनाने लगी. उस के व्यवहार में बदलाव शुरू हो गया. अब श्रेया जब भी कोई काम करती तो चिड़चिड़ी हो कर. इस से उस की सास और उस के बीच संबंध खराब होने लगे. जब उस का पति उसे समझने की कोशिश करता तो वह अपनी ससुराल और मायके के बीच तुलना करने लगती. अपनी पत्नी के बदले व्यवहार से पति भी तंग आ गया और फिर दोनों के बीच दूरियां बढ़ने लगीं.
अकसर इस तरह की छोटीछोटी बातें आपस में कटुता पैदा कर देती हैं. कपड़े प्रैस करना कोई बहुत बड़ा काम नहीं है. लेकिन श्रेया की मां ने उसे इतना बड़ा काम बता दिया जैसे श्रेया अपनी ससुराल में कोई मजदूरी का काम कर रही हो. अगर श्रेया की मां चाहती तो वह अपनी बेटी के इस काम से खुश हो सकती थी क्योंकि जिस लड़की ने अपने मायके में कोई काम नहीं किया, वह आज अपनी जिम्मेदारी समझ रही है. लेकिन यहां तो उलटा ही देखन को मिला.
दूसरों की बात में न आएं
ऊष्मा की मां ने भी उस की गृहस्थी में कुछ ऐसे ही जहर घोला. ऊष्मा और उस की सास में बहुत बनती थी. घर में 2 नौकरानियां थीं. ऊष्मा की सास खाना बहुत अच्छा बनाती है, इसलिए ज्यादातर खाना वही बनाती थी. खाना बनाते समय ऊष्मा अपनी सास की मदद कर देती थी. एक दिन ऊष्मा की मां ने वीडियोकौल की और ऊष्मा बात करतेकरते रसोई में चली गई.
‘‘चाय तुम बना रही हो? लगता है आज तुम्हारी मेड नहीं आई.’’
‘‘नहींनहीं मां, मेड आई है, लेकिन सामान लेने बाजार गई है.’’
‘‘अरे काम के समय बाजार चली गई. उसे तो इस समय रसोई में होना चाहिए था. मैं जब भी तुम्हें फोन करती हूं, तुम हमेशा बिजी मिलती हो. तुम से 2 मिनट बात करना भी मुश्किल हो गया है. क्या यही दिन देखने के लिए इतना पैसा खर्च कर के हम ने तुम्हारी शादी इतने बड़े परिवार में की थी?’’
‘‘क्या मौम कुछ भी बोलती रहती हो. यहां सब लोग मु?ो बहुत प्यार करते हैं.’’
‘‘तुम्हारी सास को तो पूरा आराम है. खूब ऐश कर रही है न?’’
‘‘अरे मां, ऐसे क्यों बोल रही हो? वे भी तो कुछ न कुछ करती रहती हैं.’’
‘‘अच्छा तुम्हें उन का पक्ष लेने की ज्यादा जरूरत नहीं है. वह महारानी की तरह ऐसी में बैठ कर आराम फरमाए और तुम नौकरानी बन कर रसोई में लगी रहो. मेरी बात ध्यान से सुनो, अगर ऐसा ही चलता रहा तो ये लोग तुम्हें अपने पैरों तले रखेंगे. तुम ने अपने घर पर आज तक एक पानी का गिलास नहीं उठाया और वहां सभी के लिए चाय बना रही हो?’’
‘‘अरे मौम…’’
‘‘मैं तुम्हारी मां हूं ऊष्मा. तुम्हारे भले के लिए बोल रही हूं.’’
ऊष्मा की हंसतीखेलती गृहस्थी में अचानक तूफान आ गया. उस की मां ने चिनगारी जो लगा थी.
सासबहू के बीच बढ़ती है दरार
एक दिन ऊष्मा ने अपने पति से बंटवारे की बात कह दी. उस का कहना था कि वह और उस का पति अलग रहेंगे. यह सुन कर सब हक्काबक्का रह गए. सास और बहू के बीच बढ़ती दरार को देख उस के पति ने अलग होने का फैसला ले लिया.
यहां ऊष्मा की ससुराल वालों की कोई गलती नहीं थी. उस की ससुराल वाले ऊष्मा को बेटी की तरह मानते थे. थोड़ाबहुत घर का काम तो हम सभी करते हैं और करना भी चाहिए. इस का मतलब यह नहीं कि आप नौकरानी हो. ऊष्मा की सास सब के लिए खाना बनाती थी. आज ऊष्मा खुद अपने और अपने पति के लिए अकेले खाना बनाती है और घर के दूसरे सब काम भी खुद करती है. ऊष्मा का पति उस के साथ रहता तो है, लेकिन दोनों के बीच अब पहले जैसा प्यार नहीं है.
जब पति घुन की तरह पिसने लगे
आजकल ससुराल में नई शादीशुदा लड़कियां छोटीछोटी बातों का इशू बना लेती हैं. यदि सास या ननद किसी भी बात पर थोड़ा भी कुछ कह दे तो वे झट से मायके फोन कर देती हैं और ससुराल की शिकायतें मां से करने लगती हैं. ऐसे मामलों में पति बेचारा चक्की के दो पाटों में पीसा जाता है.
घर पर लड़के की मां अपने लड़के को बहू के खिलाफ भड़काती है. यदि बेटा जरूरत से ज्यादा समय बीवी को देता है तो इस में भी मां को दिक्कत होने लगती है. उसे लगता है कि बेटा हाथ से निकल रहा है. दोनों ही स्थितियों में पति की स्थिति दयनीय बन जाती है. वह बीवी और घर के बीच पिस कर रह जाता है.
सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे
सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे मतलब रिश्तों के बीच कड़वाहट भी खत्म हो जाए और रिश्ते भी न टूटें. बेटे की शादी के बाद अकसर मां में बेटे को ले कर ज्यादा पजैसिवनैस आने लगती है. ऐसे में बेटे को अपनी मां को पहले की ही तरह समय देना चाहिए. जिन बातों को वह अपनी मां से शेयर करता था उन्हें शादी के बाद भी शेयर करते रहना चाहिए. यदि मां को अपने बेटे में थोड़ा भी बदलाव दिखता है तो उस का सीधा निशाना उस की बीवी बनती है और फिर सासबहू के बीच दरार आने लगती है.
बहू को भी अपनी सास को मां की तरह पूरा सम्मान देना चाहिए. पति को अपनी बीवी को घर के सभी सदस्यों की पसंदनापसंद के बारे में बताना चाहिए ताकि वह उन्हें आसानी से समझ सके और सभी के दिल में जगह बना सके.
बेटी को मां और सास दोनों को बराबर मानसम्मान देना चाहिए. पति के विश्वास के साथसाथ घरपरिवार का विश्वास जीतने की कोशिश भी करनी चाहिए. ससुराल में जितना जरूरी पति का प्यार है उतना ही जरूरी बाकी सदस्यों का भी है.
हमारे समाज में सास और बहू के रिश्ते को हमेशा नकारात्मक रूप से दिखाया जाता है. फिर चाहे वह सीरियल हों या हिंदी सिनेमा. ऐसे कई सीरियल्स और फिल्में हैं, जिन में सास को विलेन के रूप में दिखाया गया है, जिस से हमारी मानसिकता वैसी ही हो गई है. हम यही मानते हैं कि सास मां की जगह कभी नहीं ले सकती. इसलिए हम रिश्ते से तो उन्हें अपना मान लेते हैं, लेकिन दिल से मानने में बहुत वक्त लग जाता है. ऐसा सिर्फ सास और बहू के बीच ही नहीं, बल्कि मां और बेटी के बीच भी होता है, जिस से रिश्ते में कड़वाहट आने लगती है और दूरियां बढ़ने लगती हैं.