जीत की जिदः लेखन, निर्देशन के साथ अमित साधा का कमजोर अभिनय

रेटिंग: 2 स्टार

निर्माताः बोनी कपूर, आकाश चावला व अरुणवा जॉय सेनगुप्ता

निर्देशकः विशाल मंगलोरकर

कलाकारः अमित साध,एली गोनी, सुशांत सिंह, मृणाल कुलकर्णी, अमृता पुरी व अन्य

अवधिः सात एपीसोड, कुल अवधि लगभग पौने 5 घंटे

ओटीटी प्लेटफार्मः जी 5

सेना और सैनिकों से जुड़ी कहानियां सदैव रोमांचक व रोचक होती हैं. मगर कई सैन्य व राष्ट्रपति द्वारा उच्च सम्मान से सम्मानित कारगिल योद्धा व सेना में स्पेशल फोर्स के मेजर दीप सिंह सेंगर की जिंदगी की सत्य कथा को वेब सीरीज ‘‘जीत की जिद’’ में प्रभावी तरीके से पेश करने में निर्देशक विषाल मंगलोरकर मात खा गए हैं.

कहानीः

बचपन में अपने भाई को कश्मीर में आतंकवादियों द्वारा मारे जाने के बाद दीप तय करता है कि वह सेना में भर्ती होगा और कश्मीर जाकर आतंकवादियों का सफाया करेगा. अपने माता पिता की इच्छा के विरुद्ध दीप सिंह सेंगर (अमित साध) सेना और वह भी स्पेशल फोर्स का हिस्सा बनते हैं. इसके लिए वह कई कठिन ट्रेनिंग भी हासिल करते हैं. सेना की कठिन परीक्षा पासकर वह कश्मीर पहुंचकर आतंकवादियों के सफाए में जुट जाते हैं. इसी बीच घायल होकर अस्पताल पहुंचते हैं.

अस्पताल से भागकर अपने सहकर्मी सैन्य अफसर सूर्या सेठी (एली गोनी) की शादी में पहुंचते हैं, जहां दीप की मुलाकात गणित की शिक्षक जया (अमृता पुरी) से होती है और वह जया को अपना दिल दे बैठते हैं. दोनों की मुलाकातें अस्पताल में होती हैं. फिर दोनो सगाई करने का निर्णय लेते हैं. पर तभी अस्पताल में ही दीप सिंह सेंगर को खबर मिलती है कि पाकिस्तान के खिलाफ कारगिल में युद्ध शुरू हो गया है.

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पूरी तरह से स्वस्थ न होते हुए भी अपनी जिद के चलते पाकिस्तानी सैनिको को सबक सिखाने के लिए अपनी सैन्य टीम के साथ दीप सिंह कारगिल पहुंचते हैं. जहां वह अपने मिशन में कामयाब होते है. मगर उनके पेट में पांच गोलियां लगती हैं. कुछ गोलियां आर पार हो जाती है. चार बड़े आपरेशन के बाद डाक्टर कह देते हैं कि अब मेजर दीप सिंह सेंगर अपने पैरों पर खड़े नहीं हो सकते.

मेजर दीप सिंह सेंगर अब जिंदगी भर व्हील चेअर पर ही चलेंगे, यह जानते हुए भी जया उनसे विवाह करती हैं. उसके बाद जया के उकसाने पर दीप सिंह सेंगर एमबीए करते हैं, कारपोरेट में अच्छी नौकरी मिल जाती है, पर फिर वह निराशा के गर्त में समाने लगते हैं. अंततः एक बार फिर कर्नल रंजीत चौधरी (सुशांत सिंह) दीप सिंह सेंगर को एक चैलेंज देते हैं.

लेखन व निर्देशनः

जिंदगी भर के लिए व्हील चेअर पर आने के बाद भी एक सैनिक हार नही मानता. यह एक अति प्रेरणादायक कहानी है, मगर अफसोस लचर लेखन व लचर निर्देशन के चलते यह कहानी प्रभावहीन हो गयी है. सात लंबे एपीसोड की इस वेब सीरीज का प्रस्तुतिकरण बहुत ही सतही है. वेब सीरीज में कहानी बार बार वर्तमान से अतीत में जाती है और ऐसा होते समय अतीत की कथा बहुत गलत तरीके से आती है, जिससे दर्शक बार बार दिग्भ्रमित होता रहता है. यह पटकथा लेखक के साथ साथ एडिटर की भी कमजोरी है.

फिल्म में गन फाइट के सीन वगैरह बहुत ही नकली लगते हैं. कम से कम इस वेब सीरीज के सर्जको को फिल्म ‘उरीः द सर्जिकल स्ट्राइक’ से ही कुछ सबक ले लेना चाहिए था. फिल्म ‘उरी’ में सब कुछ बहुत बेहतरीन तरीके से पेश किया गया है. मगर वेब सीरीज ‘जीत की जिद’ में सैन्य चॉपर, गन फाइट बैटल सहित सब कुछ डिजिटली रचा गया है. कैमरामैन ने भी अपनी जिम्मेदारी को गंभीरता से नहीं निभाया है. सैनिकों की ट्रेनिंग के दृष्य बार बार दोहराए गए हैं, जिससे दर्शकों को भी उब होने लगती है. पूरी वेब सीरीज देखते हुए कहीं भी रोमांच के क्षण पैदा ही नही होते.

सूर्या सेठी (एली गोनी) और दीप सिंह सेंगर (अमित साध) के बीच बाक्सिंग प्रतियोगिता दृष्य भी काफी शिथिल है. स्पेशल फोर्स की ट्रेनिंग के दृष्यों में जो सह कलाकार लिए गए हैं, उनका हाव भाव कहीं से भी सैनिकों जैसा नहीं लगता. ऐसा लगता है कि निर्देशक का सारा ध्यान सिर्फ इस बात पर रहा कि कितनी जल्दी इसकी शूटिंग खत्म की जाए.

फिल्म के एक दो संवादों को छोड़ दें, तो संवाद भी काफी सतही है. एक संवाद अच्छा है- ‘‘लीडर्स सिर्फ फ्रंट पर ही नहीं, हर फील्ड में होते हैं.’’

अभिनयः

जहां तक अभिनय का सवाल है, तो दीप सिंह सेंगर के किरदार में अमित साध निराश करते हैं. वह इस वेब सीरीज की सबसे कमजोर कड़ी साबित हुए हैं. आर्मी आफिसर और वह भी स्पेशल फोर्स का मेजर इतना मोटा व भरे गालों वाला नही हो सकता, जितने मोटे अमित साध हैं. उनका अभिनय प्रभावशाली नहीं है.

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एक दृष्य है, जिसमें उन्हे ट्रेनिंग के ही दौरान इलेक्ट्रिक शॉक दिया जाता है. इस सीन में अमित साध का अभिनय व उनकी प्रतिक्रिया देखकर हंसी आती है. इतना ही नही व्हील चेअर बैठे हुए एक भी दृष्य प्रभाव पैदा नही करते. बतौर अभिनेता अमित साध की यह असफलता ही है और इसके लिए निर्देशक भी पूरी तरह से दोषी हैं.

जया के किरदार में अमृता पुरी ने काफी सधा हुआ अभिनय किया है. सुशांत सिंह भी अपने अभिनय से प्रभावित नहीं करते.

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