झांसी की रानी: सुप्रतीक ने अपनी बेटी से क्या कहा

‘‘पापा, आप हमेशा झांसी की रानी की तसवीर के साथ दादी का फोटो क्यों रखते हैं?’’ नवेली ने अपने पापा सुप्रतीक से पूछा था.

‘‘तुम्हारी दादी ने भी झांसी की रानी की तरह अपने हकों के लिए तलवार उठाई थी, इसलिए…’’ सुप्रतीक ने कहा. सुप्रतीक का ध्यान मां के फोटो पर ही रहा. चौड़ा सूना माथा, होंठों पर मुसकराहट और भरी हुई पनियल आंखें. मां की आंखों को उस ने हमेशा ऐसे ही डबडबाई हुई ही देखा था. ताउम्र, जो होंठों की मुसकान से हमेशा बेमेल लगती थी. एक बार सुप्रतीक ने देखा था मां की चमकती हुई काजल भरी आंखों को, तब वह 10 साल का रहा होगा. उस दिन वह जब स्कूल से लौटा, तो देखा कि मां अपनी नर्स वाली ड्रेस की जगह चमकती हुई लाल साड़ी पहने हुए थीं और उन के माथे पर थी लाल गोल बिंदी. मां को निहारने में उस ने ध्यान ही नहीं दिया कि कोई आया हुआ है.

‘सुप्रतीक देखो ये तुम्हारे पापा,’ मां ने कहा था.

‘पापा, मेरे पापा,’ कह कर सुप्रतीक ने उन की ओर देखा था. इतने स्मार्ट, सूटबूट पहने हुए उस के पापा. एक पल को उसे अपने सारे दोस्तों के पापा याद आ गए, जिन्हें देख वह कितना तरसा करता था.

‘मेरे पापा तो उन सब से कहीं ज्यादा स्मार्ट दिख रहे हैं…’ कुछ और सोच पाता कि पापा ने उसे बांहों में भींच लिया.

‘ओह, पापा की खुशबू ऐसी होती है…’

सुप्रतीक ने दीवार पर टंगे मांपापा के फोटो की तरफ देखा, जैसे बिना बिंदी मां का चेहरा कुछ और ही दिखता है, वैसे ही शायद मूंछें उगा कर पापा का चेहरा भी बदल गया है. मां जहां फोटो की तुलना में दुबली लगती थीं, वहीं पापा सेहतमंद दिख रहे थे. सुप्रतीक देख रहा था मां की चंचलता, चपलता और वह खिलखिलाहट. हमेशा शांत सी रहने वाली मां का यह रूप देख कर वह खुश हो गया था. कुछ पल को पापा की मौजूदगी भूल कर वह मां को देखने लगा. मां खाना लगाने लगीं. उन्होंने दरी बिछा कर 3 प्लेटें लगाईं.

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‘सुधा, बेटे का क्या नाम रखा है?’ पापा ने पूछा था.‘सुप्रतीक,’ मां ने मुसकराते हुए कहा.

‘यानी अपने नाम ‘सु’ से मिला कर रखा है. मेरे नाम से कुछ नहीं जोड़ा?’ पापा हंसते हुए कह रहे थे.

‘हुं, सुधा और घनश्याम को मिला कर भला क्या नाम बनता?’ सुप्रतीक सोचने लगा.

‘आप यहां होते, तो हम मिल कर नाम सोचते घनश्याम,’ मां ने खाना लगाते हुए कहा था.

‘घनश्याम हा…हा…हा… कितने दिनों के बाद यह नाम सुना. वहां सब मुझे सैम के नाम से जानते हैं. अरे, तुम ने अरवी के पत्ते की सब्जी बनाई है. सालों हो गए हैं बिना खाए,’ पापा ने कहा था. सुप्रतीक ने देखा कि मां के होंठ ‘सैमसैम’ बुदबुदा रहे थे, मानो वे इस नाम की रिहर्सल कर रही हों. सुप्रतीक ने अब तक पापा को फोटो में ही देखा था. मां दिखाती थीं. 2-4 पुराने फोटो. वे बतातीं कि उस के पापा विदेश में रहते हैं. लेकिन कभी पापा की चिट्ठी नहीं आई और न ही वे खुद. फोनतो तब होते ही नहीं थे. मां को उस ने हमेशा बहुत मेहनत करते देखा था. एक अस्पताल में वे नर्स थीं, घरबाहर के सभी काम वे ही करती थीं. जिस दिन मां की रात की ड्यूटी नहीं होती थी, वह देखता कि मां देर रात तक खिड़की के पास खड़ी आसमान को देखती रहती थीं. सुप्रतीक को लगता कि मां शायद रोती भी रहती थीं. उस दिन खाना खाने के बाद देर तक वे तीनों बातें करते रहे थे. सुप्रतीक ने उस पल में मानो जमाने की खुशियां हासिल कर ली थीं. सुबह उठा, तो देखा कि पापा नहीं थे.

‘मां, पापा किधर हैं?’ सुप्रतीक ने हैरानी से पूछा था.

‘तुम्हारे पापा रात में ही होटल चले गए, जहां वे ठहरे हैं.’ मां का चेहरा उतरा हुआ लग रहा था. माथे की लकीरें गहरी दिख रही थीं. आंखों में काजल की जगह फिर पानी था. थोड़ी देर में फिर पापा आ गए, वैसे ही खुशबू से सराबोर और फ्रैश. आते ही उन्होंने सुप्रतीक को सीने से लगा लिया. आज उस ने भी कस कर भींच लिया था उन्हें, कहीं फिर न चले जाएं.

‘पापा, अब आप भी हमारे साथ रहिएगा,’ सुप्रतीक ने कहा था.

‘मैं तुम्हें अपने साथ अमेरिका ले जाऊंगा. हवाईजहाज से. वहीं अच्छे स्कूल में पढ़ाऊंगा. बड़ा आदमी बनाऊंगा…’ पापा बोल रहे थे. सुप्रतीक उस सुख के बारे में सोचसोच कर खुश हुआ जा रहा था.

‘पर, तुम्हारी मम्मी नहीं जा पाएंगी, वे यहीं रहेंगी. तुम्हारी एक मां वहां पहले से हैं, नैंसी… वे होटल में तुम्हारा इंतजार कर रही हैं,’ पापा को ऐसा बोलते सुन सुप्रतीक जल्दी से हट कर सुधा से सट कर खड़ा हो गया था.

‘मैं कल से ही तुम्हारे आने की वजह समझने की कोशिश कर रही थी. एक पल को मैं सच भी समझने लगी थी कि तुम सुबह के भूले शाम को घर लौटे हो. जब तुम्हारी पत्नी है, तो बच्चे भी होंगे. फिर क्यों मेरे बच्चे को ले जाने की बात कर रहे हो?’ सुधा अब चिल्लाने लगी थी, ‘एक दिन अचानक तुम मुझे छोड़ कर चले गए थे, तब मैं पेट से थी. तुम्हें मालूम था न?

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‘एक सुबह अचानक तुम ने मुझ से कहा था कि तुम शाम को अमेरिका जा रहे हो, तुम्हें पढ़ाई करनी है. शादी हुए बमुश्किल कुछ महीने हुए थे. तुम्हारी दहेज की मांग जुटाने में मेरे पिताजी रास्ते पर आ गए थे. लेकिन अमेरिका जाने के बाद तुम ने कभी मुझे चिट्ठी नहीं लिखी. ‘मैं कितना भटकी, कहांकहां नहीं गई कि तुम्हारे बारे में जान सकूं. तुम्हारे परिवार वालों ने मुझे ही गुनाहगार ठहराया. अब क्यों लौटे हो?’ मां अब हांफ रही थीं. सुप्रतीक ने देखा कि पापा घुटनों के बल बैठ कर सिर झुकाए बोलने लगे थे, ‘सुधा, मैं तुम्हारा गुनाहगार हो सकता हूं. सच बात यह है कि मुझे अमेरिका जाने के लिए बहुत सारे रुपयों की जरूरत थी और इसी की खातिर मैं ने शादी की. तुम मुझे जरा भी पसंद नहीं थीं. उस शादी को मैं ने कभी दिल से स्वीकार ही नहीं किया. ‘बाद में मैं ने नैंसी से शादी की और अब तो मैं वहीं का नागरिक हो गया हूं. लेकिन लाख कोशिशों के बावजूद हम मांबाप नहीं बन सके. यह तो मेरा ही खून है. मुझे मेरा बेटा दे दो सुधा…’

अचानक काफी बेचैन लगने लगे थे पापा. ‘देख रहा हूं कि तुम इसे क्या सुख दे रही हो… सीधेसीधे मेरा बेटा मेरे हवाले करो, वरना मुझे उंगली टेढ़ी करनी भी आती है.’ सुप्रतीक देख रहा था उन के बदलते तेवर और गुस्से को. वह सुधा से और चिपट गया. तभी उस के पापा पूरी ताकत से उसे सुधा से अलग कर खींचने लगे. उस की पकड़ ढीली पड़ गई और उस के पापा उसे खींच कर घर से बाहर ले जाने लगे कि अचानक मां रसोई वाली बड़ी सी छुरी हाथ में लिए दौड़ती हुई आईं और पागलों की तरह पापा पर वार करने लगीं. पापा के हाथ से खून की धार निकलने लगी, पर उन्होंने अभी भी सुप्रतीक का हाथ नहीं छोड़ा था. चीखपुकार सुन कर अड़ोसपड़ोस से लोग जुटने लगे थे. किसी ने इस आदमी को देखा नहीं था. लोग गोलबंद होने लगे, पापा की पकड़ जैसे ही ढीली हुई, सुप्रतीक दौड़ कर सुधा से लिपट गया. लाल साड़ी में मां वाकई झांसी की रानी ही लग रही थीं. लाललाल आंखें, गुस्से से फुफकारती सी, बिखरे बाल और मुट्ठी में चाकू. सुप्रतीक ने देखा कि सड़क के उस पार रुकी टैक्सी में एक गोरी सी औरत उस के पापा को सहारा देते हुए बिठा रही थी.

‘‘नवेली, तुम्हारी दादी बहुत बहादुर और हिम्मत वाली थीं,’’ सुप्रतीक ने अपनी बेटी से कहा. सुप्रतीक की निगाहें फिर से मां के फोटो पर टिक गई थीं.

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 ‘झांसी की रानी’ सीरियल से बदली इस एक्ट्रेस की जिंदगी, अब करना चाहती हैं रियल लाइफ फिल्मों में काम

सीरियल ‘बालवीर’ में मेहर की भूमिका निभाकर चर्चित हुई अभिनेत्री अनुष्का सेन झारखण्ड की है. बचपन से ही उसे अभिनय का शौक था,जिसमें साथ दिया उसकी माँ राजरूपा सेन और पिता अनिर्बान सेन ने. वह सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव रहती है. उसके फोलोवर्स करोड़ो में है. इसके अलावा उसने कई विज्ञापनों और फिल्मों में भी काम किया है. वर्ष 2018 में 20 टॉप यंग एचीवर्स का अवार्ड भी मिल चुका है. अनुष्का को डांस बहुत पसंद है और शामक डावर के डांस क्लास में नृत्य भी सीख चुकी है. स्वभाव से नम्र और चुलबुली अनुष्का इन दिनों लॉक डाउन में कई वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर शेयर कर रही है. रविन्द्रनाथ टैगोर के जन्म तिथि पर उसने एक ट्रिब्यूट वीडियो शेयर किया, जिसे लोगों ने काफी पसंद किया. उसकी जर्नी के बारें में बात हुई, पेश है कुछ अंश.

सवाल-लॉक डाउन में कैसे समय बिता रही है?

मैं इस समय उन फिल्मों को देख रही हूं, जिसे व्यस्तता के करण देख नहीं पा रही थी. खासकर सत्यजित रे और आस्कर विनिंग फिल्में देख रही हूं. साथ ही पढाई भी कर रही हूं, क्योंकि 12वीं की मेरी एक पेपर बाकी है, जिसे अब जुलाई में शिड्युल कर दिया गया है, उसकी तैयारी कर रही हूं, इसके अलावा मैं यू ट्यूब के लिए कंटेंट बनाती हूं, जिसमें वीडियो सौंग खास होता है.

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सवाल-लॉक डाउन के बाद जिंदगी कठिन होने वाली है, आप इस बारें में क्या सोचती है, क्या होने वाला है?

इस समय कई बड़ी फिल्में थिएटर में न आकर डिजिटल प्लेटफॉर्म पर आ रही है. ये पिछले कुछ दिनों से ही शुरू हो चुका है, लोग व्यस्तता की वजह से ऑनलाइन फिल्में देखना पसंद कर रहे है. मैं भी बिंज वाच अधिक करती हूं. इसमें एक साथ बैठकर सारी सीरीज या फिल्म देखी जा सकती है. लॉकडाउन के बाद थोड़े दिन लोग थिएटर में जाकर फिल्म देखना पसंद भी नहीं करेंगे, ऐसे में ये ऑनलाइन फिल्में ही अधिक चलेगी. पहले थिएटर के बाद फिल्में ऑनलाइन आती थी. अब ऑनलाइन पहले और बाद में थिएटर में जाया करेगी. इसके अलावा लोगों के बीच में हायजिन बढ़ जाएगी. जिसमें क्रू मेम्बर से लेकर एक्टर एक्ट्रेस सभी इस नियम के तहत काम करना पसंद करेंगे. इससे किसी भी प्रकार की बीमारी आप तक नहीं पहुँच सकती. शूटिंग में भी मास्क और सेनिटाइजर का प्रयोग अधिक किया जायेगा. मेरे हिसाब से इस लॉक डाउन के बाद बहुत सारी पॉजिटिवनेस दिखाई पड़ेगी.

सवाल-लॉक डाउन की वजह से आपने क्या-क्या मिस किया है?

साल 2019 मेरे लिए बहुत अच्छा था, क्योंकि तब मुझे झाँसी की रानी शो मिली थी. उस जर्नी को मैंने बहुत एन्जॉय किया, कई अवार्ड्स भी मिले. कुछ फिल्में भी थी, जो कांस फिल्म फेस्टिवल में रिलीज होने वाली थी. मैं इस समय वहां होती और मेरे लिए एक बहुत बड़ी ओपर्चुनिटी थी, उसे मैंने मिस किया. मुझे सालों से कांस फिल्म फेस्टिवल में जाने की जाने की इच्छा है. वहां काफी जाने-माने लोग आते है,जिससे मुझे बहुत कुछ सीखने का मौका मिलता. इसके अलावा मैंने एक फिल्म भी की थी, जिसका पोस्ट प्रोडक्शन बाकी रह गया है, जो अभी चल रहा है. 12 वीं की बोर्ड परीक्षा की वजह से एक महीने मैंने कई सारे मीटिंग्स भी कैंसल किये थे.

सवाल-क्या आगे पढाई करने की इच्छा है ?

मुझे मॉस मीडिया में पढाई करनी है. मैं पर्दे पर ही नहीं पर्दे के पीछे की चीजों को भी सीखना चाहती हूं.

सवाल-आपके यहां तक पहुंचने में माता-पिता कितना सहयोग करते है?

मैंने 9 साल की उम्र से अभिनय शुरू किया था. माता-पिता का प्यार और हौसला मुझे हमेशा मिला है.   रानी लक्ष्मीबाई की शूटिंग के दौरान पिता ने ही मुझे कई बार घुड़सवारी,तलवारबाज़ी आदि में हौसला मिला, क्योंकि ये सब मेरे लिए करना आसान नहीं था. इस समय भी जब मैं इस लॉक डाउन से चिंतित होती हूं तो वे मुझे कुछ अच्छा करने या सीखने की सलाह देते है.

सवाल-अभी क्वारेंटाइन, मास्क, लॉक डाउन, माइग्रेंट वर्कर आदि कुछ शब्द हमारे डिक्शनरी में शामिल हो चुके है, क्या इसे लेकर कुछ नयी कहानी कहने की इच्छा रखती है?

ऐसे कुछ विदेशी फिल्म है, जो इस पर आधारित है, लेकिन अब ये हमारे जीवन में भी शामिल हो चुका है. ऐसी कहानी की हिस्सा अगर मैं बन सकूँ, तो ख़ुशी होगी, क्योंकि इन सब चीजों को मैंने करीब से जिया है. रियल कहानी मुझे प्रेरित करती है. इस अवस्था को केवल देश में ही नहीं, विदेश में भी लोगों ने फेस किया है. इसे बनाने वाले निर्देशकों में अनुराग कश्यप, सुजीत सरकार आदि कोई भी हो सकता है.

सवाल-किस कहानी ने आपकी जिंदगी बदल दी?

शो ‘झांसी की रानी’ ने मेरी जिंदगी बदल दी. वह एक लिजेंड्री चरित्र थी. एक फ्रीडम फाइटर की किरदार निभाना बहुत मुश्किल था. इस चरित्र के साथ बहुत बड़ी ट्रेनिंग और तैयारियां थी. उस जर्नी से बहुत कुछ सीखने को मिला.

सवाल-बांग्ला में कुछ करने की इच्छा है?

मुझे करने की बहुत इच्छा है, अच्छी स्क्रिप्ट की तलाश है. बहुत सारे फैन्स मुझे इस बारें में पूछते भी है कि मैं बांग्ला फिल्म या शो कब करुँगी. मैंने इंडो बॉलीवुड और हॉलीवुड कर लिया है. अब बांग्ला की बारी है.

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सवाल-कोरोना पॉजिटिव की वजह से देश में कई समस्याएं आ रही है, क्या मेसेज देना चाहती है?

डॉक्टर्स, नर्सेज, पुलिस कर्मी और सफाई कर्मी अभी दिन –रात काम कर रहे है. जबकि हम सब घर पर है. मैं उन सबको सैल्यूट करना चाहती हूं. वे लोग सुरक्षित रहे इसके लिए उन्हें सरकार की तरफ से हर सुविधा देने की जरुरत है. उनकी बाते आम लोगों को सुनने की भी आवश्यकता है. उनका सम्मान करे मारपीट न करें. मैं चाहती हूं कि जल्दी से पेंड़ेमिक ख़त्म हो जाय और हम सब फिर से काम पर लग जाएं.

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