रेटिंगः डेढ़ स्टार
निर्माताःदीपक मुकुट व अनुज शर्मा
निर्देशकःसमीप कंग
कलाकारः ऋषि कपूर, जिम्मी शेरगिल, लिलेट दुबे,सनी सिंह,ओंकार कपूर, मनोज जोशी निमिशा मेहता, पूजिता, राजेश शर्मा व अन्य.
अवधिः दो घंटे 13 मिनट
एक बहुत पुरानी कहावत है कि ‘एक झूठ को छिपाने के लिए सौ झूठ बोलने पड़ते हैं. ’’इस कहावत को लेकर समीप कंग ने अपनी हास्य फिल्म ‘‘झूठा कहीं का’’ की कहानी का ताना बना बुना है, मगर फिल्म अति सतही दर्जे की बनकर उभरी है. मजेदार बात यह है कि अभी लगभग एक माह पहले ही इसी तरह की कहानी पर दर्शक अमित अग्रवाल की फिल्म ‘‘फंसते फंसाते’’ देख चुके हैं.
कहानीः
फिल्म की कहानी के केंद्र में मौरीशस में रह रहे दो दोस्त वरूण (ओंकार कपूर) व करण सिंह (सनी सिंह) हैं. वरूण के पिता व अवकाशप्राप्त पुलिस वाले योगराज सिंह (रिषि कपूर) पंजाब, भारत में अपने साले कोका सिंह (राजेश शर्मा) व उनकी पत्नी के साथ रहते हैं. मौरीशस में अपना भविष्य बनाने की फिराक में जुटे वरूण को एक लड़की रिया मेहता (निमिषा मेहता) से प्यार हो जाता है, जो कि अपने व्हील चेअर पर रहने वाले पिता (मनोज जोशी) व मां रूचि मेहता (लिलेट दुबे) को छोड़कर जाना नहीं चाहती. रिया को पाने के लिए वरूण खुद को अनाथ बताकर उसके साथ उसके घर में ही रहने लगता है और कह देता है कि उसे घर जमाई बनने से परहेज नहीं है. जबकि करण को रूचा (रूचा वैद्य) से प्यार है. करण का बड़ा भाई टौमी पांडे (जिम्मी शेरगिल) जेल में है, मगर करण, रूचा से कहता है कि उसके भाई अमरिका में रहते हैं, लेकिन वरूण के सिर पर उस वक्त मुसीबत आ जाती है,जब योगराज अपने साले कोका व उसकी पत्नी के साथ मौरीशस आकर रिया के बंगले में ही रहने पहुंच जाते है. वरूण,करण को रिया का पति बताता है. अब वरूण व करण दोनो दोस्त झूठ की दलदल में फंसते जाते हैं.
लेखन व निर्देशनः
अति कमजोर पटकथा के चलते फिल्म दर्शकों को बांधकर रखने में बुरी तरह से विफल रहती है. हास्य के नाम पर कुछ फूहड़ और औरतों के मान सम्मान को ठेस पहुंचाने वाले संवाद परोसे गए हैं. इंटरवल से पहले ओंकार कपूर व सनी सिंह के बीच के कुछ दृश्य इन्ही कलाकारों की एक पुरानी फिल्म से उठाए गए लगते हैं. धीमी गति से चलने वाली फिल्म की लंबाई कुछ ज्यादा है. इसे एडिटिंग टेबल पर कसने की जरुरत थी. ‘‘कैरी औन जट्टा’’और ‘‘भज्जी इन प्रौब्लम’’ जैसी सफल पंजाबी फिल्मों के निर्देशक समीप कंग अपनी पहली हिंदी फिल्म में अपनी निर्देशकीय प्रतिभा का जलवा नही दिखा पाए. मौरीशस में फिल्मायी गयी इस फिल्म में मौरीशस की खूबसूरती के दर्शन नहीं हो सकते, क्योकि फिल्मकार ने पूरी फिल्म को एक कमरे के अंदर ही कैद कर रखा है.
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अभिनयः
साले बहनोई के किरदार में राजेश शर्मा और रिषि कपूर की जुगलबंदी अच्छी है. ओंकार कपूर व सनी सिंह उम्मीदों पर खरे नहीं उतरते. निमिषा मेहता सिर्फ खूबसूरत लगी हैं. रूचा वैद्य के हिस्से करने के लिए कुछ रहा ही नहीं. मनोज जोशी व लिलेट दुबे जैसे कलाकारों की प्रतिभा को जाया किया गया है. जिम्मी शेरगिल बेहतरीन अभिनेता हैं, मगर फिल्मकार की कमजोरी के चलते वह अपने आपको दोहराते हुए ही नजर आए हैं.
लेखकः श्रेया श्रीवास्तव व वैभव सुमन
कैमरामैनः आकाशदीप पांडे
संगीतकारः यो यो हनी सिंह,अमजद नदीम-अमीर,संजीव-अजय
Edited by Rosy