जीने की राह: उदास और हताश सोनू के जीवन की कहानी

Serial Story: जीने की राह (भाग-4)

सोनू की बातें सुन मैं किंकर्तव्यविमूढ़ सा हो गया, स्वयं को संभालते हुए मैं ने कहा, ‘‘सोनू, तुम ने ठीक समझा, प्यार तो मैं बेइंतहा करता हूं, किंतु वैसा नहीं जैसा तुम ने समझा. प्यार तो एक सच्चीसाफ भावना है, उसे सही दिशा, मार्ग देना हमारा काम है. जिस तरह उफनती नदी पर बांध बना कर हम उसे सही मार्ग देते हैं वरना जो जल जीवनरक्षक होता है वही जीवन का नाश कर बैठता है.’’ मैं ने उसे समझाते हुए कहा, ‘‘सोनू, मैं 60 वर्ष का हो रहा हूं. तुम लगभग 22-24 की नवयुवती हो. मेरी रिया भी इसी उम्र की थी. मैं अपनी रिया के लिए मेरी उम्र का दामाद कभी भी पसंद नहीं करता फिर तुम्हारे लिए ऐसा कैसे सोच सकता हूं. ‘‘तुम्हें उस दुर्घटना में मातापिता को खो देने के बाद बहुत तनहा, उदास देखा, तुम्हारी तरह ही मेरी दशा भी थी. नीता और रिया के बिना जीवन निरर्थक मसूस होने लगा, तब मैं ने स्वयं से संकल्प लिया था कि स्वयं के जीवन को भी सार्थक बनाते हुए, उदासीन, तनहा सोनू के जीवन में फिर उल्लास, उमंग भरने का प्रयास कर, उसे सामान्य जीवन हेतु प्रोत्साहित करूंगा. तुम्हारे रूप में मुझे रिया मिल गई, मैं फिर जीवन के प्रति आशान्वित हो उठा.

‘‘सोनू, मैं इस सोच के एकदम खिलाफ हूं कि एक कमसिन, सुंदर नवयुवती को मजबूरी की हालत में देख पुरुषवर्ग सिर्फ और सिर्फ उसे भोग्या ही समझता है. आएदिन पुरुषों द्वारा स्त्रियों पर इस तरह के दुष्कर्म पढ़नेसुनने के लिए मिल जाते हैं. मेरा दिल चिल्लाचिल्ला कर कहता है कि मजबूर लड़कियों को बेटी/बहन मान कर स्वीकार कर, मदद क्यों नहीं की जाती.

‘‘मेरा मानना है कि एक व्यक्ति अकेला नहीं होता है. उस के साथ अनेक लोगों का मानसम्मान जुड़ा होता है तथा हमें ऐसा कोई कृत्य नहीं करना चाहिए जिस से कि हम अपनों से नजरें चुराएं.

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‘‘तुम्हारे मातापिता की भी तुम से बहुत सी उम्मीदें रही होंगी. वे तुम्हारे लिए जीवनसाथी कभी भी किसी भी सूरत में मुझ जैसा प्रौढ़ तो नहीं चुनते. यदि तुम चुन लेतीं, तब वे भी तुम्हें असहमति में ही समझाते. हां, इतना मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि सुमन जैसा दामाद पा कर वे स्वयं को धन्य समझते. सो, तुम्हारा यह कर्तव्य है कि तुम उन की आधीअधूरी उम्मीदों को पूर्ण करो, यह तुम्हारी उन के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि भी होगी.

‘‘ऐसा ही मेरे साथ भी है. मैं अपनी बेटी रिया की उम्र की सोनू से विवाह रचा कर अपने दिल में बसी पत्नी और बेटी से नजरें कैसे मिला पाऊंगा. सोनू, वे दोनों मेरे दिल में बसी हुई हैं, जिन से मैं रोज बातें करता हूं,  हंसता हूं, रोता हूं. और अगर ऐसा कृत्य कर जाऊंगा तब तो दोनों से नजरें ही चुराता रह जाऊंगा.

‘‘सोनू, मैं तुम्हें बताना चाहूंगा कि मैं ने तुम्हें अपनी रिया ही समझा है तथा मेरी दिली ख्वाहिश है कि मैं तुम्हारा कन्यादान करूं. रिया का कन्यादान करने का सुख तो इस जन्म में नहीं मिल सका, किंतु तुम्हारा कन्यादान कर इस सुखानुभूति को पाना चाहता हूं, वैसे तुम्हें मैं बाध्य नहीं कर सकता इस हेतु.

‘‘मैं तुम्हें नीता के बारे में क्या बताऊं, अद्भुत महिला थी मेरी पत्नी नीता. उस के साथ मैं ने भरपूर आनंदमय जीवन जीया है. रूपरंग की तो धनी थी ही, साथ ही व्यवहारकुशल और गुणी भी थी. उस ने मेरे जीवन को इतना संबल दिया है कि उस के सहारे मैं जीवन जी लूंगा. ‘‘मेरा मानना है कि हम अपने, अपनों के आदर्श एवं विचारों को सदैव याद रखें. यह नहीं कि उन के जाते ही हम विपरीत कृत्य कर उन का उपहास उड़ाएं. ‘‘सोनू, एक बात बताना चाहूंगा कि तुम से मिलने के बाद ऐसा एहसास हुआ कि मुझे मेरी रिया मिल गई. मैं तुम्हें बेटा ही कह कर पुकारना चाहता था किंतु तुम ने सोनू पुकारने की इच्छा जाहिर की थी. इस के अलावा जीवन में 2-4 बार तुम्हारी उम्र की युवतियों से झिड़क भी सुन चुका था. उन लोगों का कहना था कि बेटा क्यों पुकारते हैं. हमारा नाम है, हमें हमारे नाम से पुकारिए. क्या अलगअलग उम्र के दोस्त नहीं हो सकते? कई बार इच्छा हुई तुम से कहने की, फिर सोचा सोनू भी पुकारने में बड़ा प्यारा लगता है. सो, क्या हर्ज है.

‘‘ठीक है सोनू, मैं चलता हूं, मेरी सलाह है कि शांत मन से सुमन के संबंध में विचार करो. यह सत्य है कि हम दोनों जीवनसाथी नहीं बन सकते. हां, हम दोस्त तो हैं ही और सदा बने रह सकते हैं. ‘‘सुमन के विषय में तुम्हारी सहमति हो तो तुम मुझे फोन से बता देना. अगर तुम शाम तक फोन नहीं करोगी तो मैं तुम्हारी असहमति समझ लूंगा.’’ मैं घर लौट आया था, किंतु असमंजस की स्थिति थी मेरी. इसलिए मैं बड़े भैया एवं सुमन से कुछ भी कहने में असमर्थ था. दोनों से बचने के लिए मैं ने स्वयं को अन्य कामों में व्यस्त कर लिया. मेरी गंभीर स्थिति देख दोनों यही समझ रहे थे कि मैं नीता और रिया की कमी महसूस कर रहा हूं, इसलिए दोनों मुझे बहलाने के बहाने ढूंढ़ रहे थे. साढ़े 10 बजे तक ही सोनू का फोन आ गया. मैं ने अधीरता से हैलो कहा. उस ने बहुत आत्मीयता से कहा, ‘‘मैं आप को पापा कह सकती हूं न? आप मेरा कन्यादान करेंगे न?’’

मैं ने भावविह्वल होते हुए कहा, ‘‘हां बेटा, हां, मैं ही तेरा कन्यादान करूंगा. मैं ही तो तेरा पापा हूं. मैं नहीं तो कौन करेगा यह कार्य.’’ मेरी आंखें खुशी के आंसुओं से छलक उठीं. उस ने कहा, ‘‘आप जैसे सचरित्र से मेरा संबंध बना, मैं बहुत खुश हूं. अब मैं अनाथ नहीं रही.’’ मैं ने कहा, ‘‘बेटा, तुम्हारे कारण मैं भी तो बेऔलाद न रहा. बेटा, भैया और सुमन के साथ शाम को तुम्हारे घर पहुंचता हूं, रोके की रस्म कर लेंगे.’’

‘‘आप जैसा ठीक समझें, पापा,’’ उस ने आत्मीयता से कहा. मैं ने बड़े भैया को रोके की रस्म के बारे में बताते हुए कहा, ‘‘भैया, मैं सुमन को ले कर मार्केट से हो कर आता हूं.’’ बड़े भैया ने कहा, ‘‘बेटा मन, मुझे भी तो शगुन के रूप में सोनू को कुछ देना है. मुझे भी मार्केट ले चल, या तू ही लेता आ. हां, पैसे मैं दिए देता हूं.’’ मैं ने भैया को रोकते हुए कहा, ‘‘भैया, कुछ लाने की जरूरत नहीं है सोनू के लिए, क्योंकि नीता, रिया के लिए कुछ न कुछ गहने बनवाती रहती थी, अभी जो नया सैट बनवाया था वह घर में ही रखा है, इसी तरह उस ने रिया के लिए साडि़यां भी खरीद रखी थीं. सो सोनू को आप वह ही दे दीजिए.’’ बड़े भैया खुश होते हुए बोले, ‘‘चल, यही ठीक है, तू ने तो एक मिनट में ही मेरी उलझन सुलझा दी. जब घर में सब है ही, तब तू क्यों मार्केट जा रहा है?’’ मैं ने कहा, ‘‘भैया, आप की बहू के लिए तो शगुन का इंतजाम हो गया, किंतु मुझे अपने दामाद के लिए भी तो अंगूठी, चैन, कपड़े लेने हैं. फिर मिठाई, नारियल, पान, सुपारी आदि भी तो लाना है.’’ बड़े भैया बोले, वे बेहद आश्चर्यचकित थे, ‘‘मन बेटा, यह सुमन, तेरा दामाद कैसे हो गया? तू तो इस का छोटा पापा है न?’’ ‘‘भैया, सोनू का कन्यादान मैं करूंगा, वह मेरी रिया है. सोनू के रूप में मुझे मेरी रिया मिल गई है. इस रिश्ते से सुमन मेरा दामाद ही हुआ न. वैसे भैया, उस का छोटा पापा तो मैं सदैव रहूंगा ही.’’ मार्केट जाते समय उत्तम एवं भाभीजी से तय हो गया कि वे दोनों भी आ जाएंगे एवं सोनू को भाभीजी तैयार कर देंगी. हम शाम को सोनू के घर पर पहुंच गए. सोनू को भाभीजी ने बहुत सुंदर ढंग से तैयार किया था. वह आसमान से उतरी परी सी लग रही थी. सुमन भी ब्लू सूट में किसी राजकुमार से कम नहीं लग रहा था. दोनों की जोड़ी बड़ी प्यारी लग रही थी. सारे कार्यक्रम बड़े ढंग से हो जाने के बाद बड़े भैया ने मेरी तरफ मुखातिब हो कर कहा, ‘‘सोनू के पापा, मैं आप की बेटी सोनू को जल्दी से जल्दी अपनी बहू बना कर अपने घर ले जाना चाहता हूं. इसलिए आप जल्दी से जल्दी शादी का मुहूर्त निकलवाइए.’’

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मैं ने भी बड़ी नाटकीयता से जवाब दिया, ‘‘सुमन के पापा, आप एकदम सही फरमा रहे हैं. मैं भी अपनी बेटी सोनू को अपने बेटे सुमन की बहू बना कर जल्दी से जल्दी अपने घर ले आना चाहता हूं,’’ और हम सभी ठहाका लगा कर हंस पड़े. अच्छी बात यह भी रही कि एक हफ्ते बाद का ही मुहूर्त निकल आया. एक छोटे से कार्यक्रम में सोनू और सुमन की शादी कर दी गई. सोनू का कन्यादान मैं ने ही किया. हम दोनों बेहद भावविह्वल हो रहे थे. मुझे सोनू के रूप में बेटी मिल गई थी. उसे उस के मांपापा के स्थान पर मैं मिल गया था. यह घड़ी ही ऐसी थी जिस में हमें अपने नए रिश्ते के साथ, अपने बिछड़े रिश्ते भी बहुत याद आ रहे थे. सोनू मुझ से गले लग कर फूटफूट कर रो पड़ी. मैं ने उसे संभालते हुए कहा, ‘‘बेटा, खुद को संभालो, अपनी भावनाओं पर काबू रखो, यह रोने का नहीं बल्कि खुशी का समय है. आज हम ने अपने रिश्ते को सार्थक नाम दिया है तथा आज हमारे अपने, जिन्हें हम ने खो दिया है, बेहद खुश होंगे. आज हम ने उन के सपनों को साकार कर उन्हें सही अर्थों में याद किया है, श्रद्धासुमन अर्पित किए हैं.’’ वह कस कर मेरे गले से लग गई, ठीक रिया की तरह. रिया भी जब बेहद भावुक होती थी, ऐसा ही करती थी. वह धीरे से बोली, ‘‘पापा, आप बहुत अच्छे इंसान हैं, मैं स्वयं को गौरवान्वित महसूस कर रही हूं, जो आप मुझे मिले.’’

सोनू बहू बन कर मेरे घर क्या आई मानो मेरे सूने घर में बहार आ गई. ऐसा महसूस होता मानो मरुस्थल में रिमझिमरिमझिम बारिश हो रही हो. बड़े भैया हमेशा कहते, ‘‘मन बेटा, तू ने मेरा दिल जीत लिया. तू ने मेरे ऊपर इतना बड़ा उपकार किया है, मुझे तू ने इतनी अच्छी बहू दी है, यह एहसान मैं तेरा कैसे चुकाऊंगा.’’ मैं कहता, ‘‘कैसी बातें करते हैं भैया, भला अपनोें पर कोई एहसान करता है. फिर सुमन, जैसा आप का बेटा वैसे ही मेरा भी तो बेटा है. मैं ने अपना भला किया है.’’ वे कहते, ‘‘सच कहता हूं मन, इतनी सुंदर, संस्कारी बहू मुझे मिलेगी, कभी सोचाभी नहीं था.’’ मैं, भैया को छेड़ते हुए कहता, ‘‘भैया, आप को बहू अच्छी मिली है तो मुझे भी लाखों में एक दामाद मिला है. मैं इस रिश्ते से बहुत खुश हूं.’’ वे मेरे साथ खुल कर हंस देते.

घर के बदले हुए वातावरण से मैं काफी उत्साहित था. एकाएक मेरे दिमाग में एक अद्भुत विचार आया, जिस से मेरा मनमयूर नाच उठा. मैं ने भैया को टटोलते हुए कहा, ‘‘हालांकि मैं ने कोई एहसान नहीं किया है फिर भी आप कहते हैं न कि आप मेरा एहसान कैसे चुकाएंगे. आज मैं आप को सरलतम उपाय बताता हूं जिस से आप मेरे एहसान से उऋण हो जाएंगे. पहले वादा कीजिए ‘न’ नहीं करेंगे.’’ उन्होंने तत्परता से कहा, ‘‘बोल, मन बेटा, जो कहेगा, करूंगा, यह लाला का वादा है. जो कहेगा, दे दूंगा.’’ मैं ने उन की नजरों से नजरें मिलाते हुए कहा, ‘‘भैया, अब यहीं रह जाइए, हम सब साथ रहेंगे.’’ भैया, प्रश्नवाचक दृष्टि से मुझे देखने लगे. मैं ने कहा, ‘‘आप सोच रहे होंगे, बड़ा लालची निकला, स्वयं अकेला पड़ जाएगा, इसलिए हम सब को यहां रोक लेना चाहता है. ‘‘यह विचार मुझे पहले आया नहीं, वरना मैं आप से अवश्य चर्चा करता. शायद आप दोनों का साथ एवं सोनू की विदाई के भय से मेरे दिमाग में यह विचार उपजा. कहा भी जाता है आवश्यकता ही आविष्कार की जननी होती है, सभी के साथ की लालसा ने शायद इस विचार को जन्म दिया.’’

‘‘मन बेटा, तू बहुत नेकदिल इंसान है. तुझे लालची तो मैं समझ नहीं सकता हूं, तू बोल रहा है तो जरूर सब का हित इस में होगा तभी रुकने को कह रहा है. मैं सोच रहा हूं, सुमन की नौकरी और मेरे घर का क्या किया जाए?’’ मैं ने कहा, ‘‘भैया, मैं ने सब के बारे में सोच लिया है. देखिए भैया, सुमन तो कभी भी नौकरी करना नहीं चाहता था, उस का सपना तो हमेशा से कोचिंग इंस्टिट्यूट रहा है. वह ऐसा कोचिंग इंस्टिट्यूट खोलना चाहता है जिस में शिक्षा का उत्तम स्तर होगा तथा वह व्यापार के उद्देश्य से नहीं खोला जाएगा. उस की गुणवत्ता के चलते, इतने स्टूडैंट्स आएंगे कि कम फीस में भी हमारा खर्चा आराम से निकल आएगा. आप की प्यारी बहू नीता भी ट्यूशन चलाती थी, वह छोटे स्तर पर ही यह काम कर रही थी, किंतु इन क्लासेस में उस की जान बसती थी. मैं उस के द्वारा चलाई गई इन क्लासेस को आप लोगों के सहयोग से बड़ा रूप देना चाहता हूं. ‘‘भैया, मैं और उत्तम 6 माह आगेपीछे रिटायर होने वाले हैं. हम दोनों भी इंस्टिट्यूट से जुड़ जाएंगे. पहले कालेज में पढ़ाते रहे हैं, अब कोचिंग इंस्टिट्यूट में पढ़ाएंगे. समझिए कि रिटायर होते हुए भी रिटायर नहीं होंगे. आप भी रिटायर्ड प्रोफैसर हैं, आप को भी पढ़ाने में लगना होगा. अपनी सोनू भी अध्यापिका है वह भी गणित की, वह भी साथ हो जाएगी तथा आवश्यकतानुसार बाहर से शिक्षक ले लेंगे. मैं कई अच्छे प्रोफैसर को जानता हूं, जो खुशीखुशी हमारे साथ जुड़ जाएंगे.’’

भैया बोले, ‘‘मन बेटा, तू ने सोचा तो बहुत सही है. इस तरह सुमन का सपना भी पूरा होगा व मेरी बहू नीता का सपना भी साकार होगा तथा सब से बड़ी बात है कि हम सब एकसाथ रह भी सकेंगे. सच कहूं तो इस बुढ़ापे में तेरे साथ ही रहना चाहता हूं.’’ कोचिंग इंस्टिट्यूट की बात सुन कर सोनू और सुमन बेहद खुश हो गए. सुमन ने कहा, ‘‘छोटे पापा, कल ही तो मैं ने सोनू को अपने दिल की बात बताई थी. उस ने कहा भी था कि आप जब भी इंस्टिट्यूट खोलना चाहेंगे, वह भी उस में पूरा सहयोग करेगी किंतु यह सपना इतनी जल्दी साकार होगा, यह मैं ने नहीं सोचा था.’’ सब ने मिलबैठ कर यही तय किया कि सुमन और सोनू दिल्ली जा कर मकान एवं सुमन की नौकरी का काम निबटा लें. इस बहाने इन का हनीमून भी हो जाएगा तथा घर का काम भी निबट जाएगा. सुमन ने हंसते हुए कहा, ‘‘पापा, हनीमून पर अपनी नौकरी से इस्तीफा देने वाला मैं इकलौता बंदा ही होऊंगा.’’ सुमन की बात को बढ़ाते हुए सोनू ने जोड़ दिया, ‘‘हनीमून पर अपने मकान के लिए किराएदार ढूंढ़ने वाले भी हम पहले नवविवाहित जोड़ा बन जाएंगे.’’

उन दोनों की चुहलबाजी पर हम सभी हंस पड़े. सोनू और सुमन की शादी को 5 वर्ष हो चुके हैं. हमारे द्वारा खोले गए इंस्टिट्यूट को भी लगभग 5 वर्ष हो रहे हैं. सोनू की सलाह पर इंस्टिट्यूट का नाम नीता इंस्टिट्यूट रखा गया. शहर में नीता इंस्टिट्यूट का नाम बड़े आदर के साथ लिया जाता है. बड़े भैया, मैं व उत्तम के साथसाथ मेरे कुछ मित्र भी इस में शामिल हुए हैं. नई पीढ़ी व पुरानी पीढ़ी के संयुक्त योगदान का अच्छा प्रतिफल विद्यार्थियों को मिल रहा है. सोनू और सुमन की 3 साल की प्यारी सी बिटिया है, जिस का नाम सोनू ने रिया रखा है. आज सोनू और सुमन के सहयोग से मेरे चौबीस घंटे नीता (इंस्टिट्यूट) और रिया (पोती) के साथ व्यतीत होते हैं. मेरा और सोनू का अनोखा रिश्ता हम दोनों के ही जीवन का मजबूत संबल बना रहा. इस कथन पर पूरी तरह विश्वास सा हो गया है कि जब सारे रास्ते बंद हो जाते हैं, उम्मीद का एक रास्ता अवश्य खुलता है. हिम्मत करे तो मनुष्य उस के सहारे निराशा से आशा की ओर उन्मुख हो सकता है.

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Serial Story: जीने की राह (भाग-3)

मैं ने स्वयं ही मन में एक संकल्प लिया कि मैं नीता और रिया की यादों को अपनी कमजोरी नहीं बनने दूंगा बल्कि उसे संबल बनाऊंगा और उस से प्रेरणा ले कर जिंदगी आगे जीऊंगा. एक पल बाद मैं सोचने लगा, मैं करूंगा क्या ऐसा, जिस से जीवन सार्थक महसूस हो. एकाएक सोनू की याद आ गई-तनहा, उदासीन, सोनू. मन में एक संकल्प उभर आया, हां, मैं नीता व रिया की अपनी यादों को अपने दिल में बसाए, अपने जीवन में संजोए, तनहा व उदासीन सोनू की जिंदगी संवारने की कोशिश करूंगा. इस उदास युवती को एक सामान्य खुशहाल जीवन जीने के लिए प्रोत्साहित करूंगा. अब मेरे जीवन का यही लक्ष्य होगा. मैं खुद को बेहद हलका महसूस करने लग गया, जीने की राह जो मुझे मिल गई थी.

अपने संकल्प की चर्चा मैं ने किसी से भी नहीं की थी. मैं ने कालेज भी जौइन कर लिया. मन में खयाल आया, अपने दुख के कारण विद्यार्थियों को हानि पहुंचाना गलत है, सो, अब सुबह कालेज जाने की व्यस्तता हो गई थी. सोनू ने भी स्कूल जौइन कर लिया था. दिन में हम अपनेअपने कार्यों में व्यस्त रहते थे किंतु शाम में अवश्य मौका निकाल कर हम मिल लेते थे. अचानक 5 दिनों के लिए उत्तम एवं भाभीजी को दिल्ली जाने का प्रोग्राम बनाना पड़ गया, परिवार में एक शादी पड़ गई थी. सोनू फ्लैट में अकेली रह गई थी, इसलिए मैं उस का ज्यादा खयाल रखने लगा था. अब वह भी मुझ से ज्यादा बातें करने लगी है. उस ने अपने मांपापा के विषय में विस्तार से बताया कि उस के मांपापा ने दोनों परिवारों के विरोध के बावजूद अंतर्जातीय विवाह किया था. इसलिए दोनों परिवार वालों ने उन लोगों से संबंध तोड़ लिए थे. उस ने बताया कि उस के मांपापा को उस से पहले भी एक बेटी हुई थी, जिस का नाम पापा ने बड़े प्यार से ‘संगम’ रखा था. 2 भिन्न जातिधर्म का संगम. उस की मां बहुत सरल स्वभाव की थीं, उन्होंने दोनों परिवारों को संगम के बहाने मिलाने का काफी प्रयास किया किंतु दोनों तरफ से कड़ा जवाब ही मिला कि वे संगम को नाजायज औलाद मानते हैं, उस के जन्म से उन्हें कोई खुशी नहीं है. सो, मेलमिलाप का तो सवाल ही नहीं उठता है. उस ने आगे बताया, ‘‘संगम 9 माह की हो कर खत्म हो गई. मां ने बताया था कि संगम को सिर्फ बुखार हुआ था, जो अचानक काफी तेज हो गया था. उसे डाक्टर के पास ले गए किंतु उस ने कम समय में ही आंखें उलट दीं एवं उस का शरीर ऐंठ गया. डाक्टर कुछ भी न कर सके.

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‘‘मांपापा का प्यार सच्चा था, दोनों एकदूसरे का संबल बन एकदूसरे के लिए खुश रहते एवं एकदूसरे को खुश रखने की पूरी कोशिश करते. संगम की मृत्यु के 2 साल बाद मेरा जन्म हुआ. मां ने फिर दोनों परिवारों से मुझे स्वीकार करने की मिन्नतें कीं. उन्होंने हाथ जोड़ कर प्रार्थना की कि इस नन्ही जान को स्वीकार कर लीजिए. आप लोगों ने मेरी पहली बच्ची को नहीं स्वीकारा, वह रूठ कर चली गई. किंतु मां की पुकार दोनों परिवारों के बीच की तपन को पिघला न सकी. दोनों परिवारों का एक ही जवाब था, जब हमारा तुम से ही कोई संबंध नहीं है तब तुम्हारी औलाद से हमें क्या मोह?

‘‘मां ने मुझे बताया था कि दोनों परिवारों के रुख के कारण पापा ने नाराज हो कर मां से वचन लिया था कि अब वह कभी भी दोनों परिवारों से मेलमिलाप का प्रयास नहीं करेगी. इस के बाद मां ने दोनों परिवारों के संबंध में सोचना बंद कर दिया,’’ मुझे यह सब बता कर सोनू फूटफूट कर रो पड़ी. मैं ने उसे सांत्वना देने के उद्देश्य से उस के कंधे थपथपाते हुए कहा, ‘‘सोनू, धैर्य रखो, आश्चर्य होता है लोग इतने निर्दयी क्यों हो जाते हैं जो अपने खून को पहचानने से, उसे स्वीकार करने से इनकार कर देते हैं.’’ सोनू अपने आंसू पोंछती हुई बोली, ‘‘मनजी, मेरी समझ में नहीं आता, लोग प्यार से इतनी घृणा क्यों करते हैं. मेरे मांपापा अलगअलग जातिधर्म के थे, दोनों ने प्यार किया था, कोई अपराध तो नहीं किया था, किंतु दोनों परिवारों ने उन का बहिष्कार कर दिया. मां ने एक बार बताया था कि उन की मां ने उन्हें उलाहना देते हुए कहा था कि यह दिन दिखाने से तो अच्छा होता कि वे मर गई होतीं, तो उन्हें खुशी होती.’’

सोनू की जीवनगाथा सुननेसुनाने में हमें समय का खयाल ही नहीं रहा. रात के साढ़े 8 बज चुके थे. मैं ने कहा, ‘‘सोनू, काफी देर हो चुकी है. अब तुम घर जाओ. हम कल मिलते हैं. अपना खयाल रखना.’’ वह बिना कुछ बोले, धीरे से बाय, गुडनाइट कह कर चल दी. रविवार का दिन था, सोनू का फोन आया, ‘‘मनजी, मेरे साथ मार्केट चलिएगा, घर का थोड़ा जरूरी सामान खरीदना है.’’

मैं ने कहा, ‘‘ठीक है, 4 बजे तक चलते हैं.’’ हम नजदीक के मौल में चले गए. उस ने चादरें, तौलिया तथा किचन का काफी सामान लिया. मैं ने भी किचन की कुछ चीजें खरीद लीं. यह सब खरीदारी नीता ही किया करती थी. सो, मुझे थोड़ी असुविधा हो रही थी. सोनू से मुझे खरीदारी में काफी मदद मिली. खरीदारी करते हुए हमें 8 से ऊपर बज गए. सो हम ने डिनर भी बाहर ही कर लिया. सोनू का सामान कुछ ज्यादा था, इसलिए मैं ने कहा, ‘‘तुम्हारा सामान तो ज्यादा है, इसलिए कुछ सामान मैं तुम्हारे घर तक पहुंचा देता हूं.’’ उस ने सहमति में सिर हिला दिया. उस का सामान पहुंचा कर मैं लौटने लगा तब वह बोली, ‘‘मनजी, मैं आप से कुछ कहना चाहती हूं.’’

‘‘हांहां, बोलो,’’ मैं ने कहा.

वह झिझकते हुए बोली, ‘‘मनजी, अब हम एकदूसरे को अच्छी तरह से जानते हैं.’’ मैं ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘दरअसल, समान दुख के कारण हम एकदूसरे को जल्दी समझ सके.’’ ‘‘मनजी, हमें एकदूसरे को जानते हुए 6 माह से भी ऊपर हो चुके हैं. मैं इंतजार में थी कि आप ही इस संबंध में कुछ करते किंतु आप तो…’’ वह एक पल रुक कर मुसकराते हुए बोली, ‘‘मनजी, आप बहुत भले इंसान हैं. इतनी बातें मैं मांपापा के सिवा सिर्फ आप से करती हूं.’’ मैं ने भी उस की हां में हां मिलाते हुए कहा, ‘‘मैं भी इतनी बातें सिर्फ नीता और रिया से करता था. हम दोनों बातें कर ही रहे थे कि उत्तम और भाभीजी दिल्ली से लौट आए. घर के सामने उन की टैक्सी आ चुकी थी, हम दोनों उन की अगवानी में लग गए. उत्तम से सारी बातें जानने के लिए मैं अधीर हो रहा था, क्योंकि मैं ने उस से विशेष आग्रह किया था कि वह दिल्ली में समय निकाल कर मेरे बड़े भैया एवं भतीजे सुमन से अवश्य मिल ले तथा मैं ने शादी संबंधी जो भैया एवं सुमन से सलाह मांगी थी, वह प्रत्यक्षत: उस संबंध में राय जान ले एवं उन की प्रतिक्रिया प्रत्यक्षत: देख कर, उन के विचार साफतौर पर समझ ले. उत्तम ने बताया कि दोनों ही मेरे विचारों से सहमत हैं तथा इस सिलसिले में इसी हफ्ते आ जाएंगे. अगले दिन सोनू शाम को मेरे घर पर आई थी. हम दोनों चाय पी रहे थे एवं बातें कर रहे थे कि बड़े भैया का फोन आया. जरूरी बातें कर, मैं ने उन से थोड़ी देर बाद बात करने की बात कह कर फोन काट दिया.

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भैया के फोन का जिक्र सुन कर सोनू मुझ से मेरे परिवार के बारे में पूछने लगी. मैं ने बताया कि अब मांपापा तो हैं नहीं, हम 2 भाई ही हैं. बड़े भैया दिल्ली में हैं. उन का एक बेटा सुमन है. पिछले साल भाभी का देहांत हो गया है. हम दोनों भाइयों में बहुत प्रेम है. सोनू ने कहा, ‘‘बड़े भैया और भतीजा, आप के इतने दुखद समय में आप के पास क्यों नहीं आए?’’ ‘‘दोनों ही आना चाहते थे किंतु बड़े भैया बीमार चल रहे थे, सो मैं ने ही दोनों को आने से मना कर दिया था. वे लोग मुझे अपने पास बुला रहे थे किंतु मैं नहीं गया क्योंकि मुझे दुखी देख कर दोनों बहुत दुखी होते, नीता और रिया पर दोनों जान छिड़कते थे. ‘‘नीता बड़े भैया का पिता समान मान रखती थी. जो बातें भैया को नापसंद हैं वह मजाल है कि कोई कर सके, नीता सख्ती से इस बात की निगरानी रखती थी.

‘‘सुमन और रिया का आपसी प्यार देख लोग उन्हें सगे भाईबहन ही समझ बैठते थे. दोनों के मध्य ढाई साल का ही फर्क था किंतु सुमन अपनी बहन का बहुत खयाल रखता था.’’ नियत समय पर बड़े भैया एवं सुमन आ गए. नीता और रिया के जाने के बाद हमारी पहली मुलाकात थी. वे दोनों मुझ से लिपट कर रोए जा रहे थे. मेरा भी वही हाल था. हम तीनों कुछ भी बोल पाने में असमर्थ थे, आंसू थे कि थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे. मैं ने ही पहल करते हुए कहा कि हम लोगों को स्वयं को हर हाल में संभालना होगा. हम तीनों एकदूसरे की हिम्मत बनेंगे एवं विलाप कर एकदूसरे को कमजोर नहीं बनाएंगे. दोनों ने ही सहमति जताते हुए कस कर मुझे जकड़ लिया. भैया सोनू से जल्दी ही मिलना चाहते थे, सो मैं ने सोनू को फोन कर दिया, ‘‘सोनू, शाम को मेरे घर पर चली आना, हो सके तो साड़ी पहन कर आना.’’

सोनू ने कहा, ‘‘मनजी, मैं समय पर पहुंच जाऊंगी.’’

मैं ने फोन काटने से पहले कहा, ‘‘सोनू, डिनर हम साथ ही करेंगे, मेरे घर पर.’’

उस ने कहा, ‘‘ठीक है, मनजी, पर एक शर्त है, आज आप मेरे हाथ से बने गोभी के परांठे और प्याज का रायता खाएंगे. हां, बनाने में थोड़ी मदद कर दीजिएगा. अरे हां, गोभी है न घर में?’’

‘‘हांहां, गोभी है, प्याज और दही भी है, चलो यही तय रहा,’’ मैं ने सहमति प्रकट करते हुए कहा.

सोनू शाम 7 बजे आ गई. उस ने गुलाबी रंग की साड़ी बड़े सलीके से बांधी हुई थी. मैं ने उस का परिचय बड़े भैया और सुमन से करवाया. मेरे घर पर 2 अजनबियों को देख वह थोड़ा असहज हुई, किंतु उस ने जल्दी ही स्वयं को संभाल लिया तथा बड़ी शिष्टता से दोनों से मिली. वह भी हमारे साथ ड्राइंगरूम में बैठ गई. बड़े भैया ने कहा, ‘‘सुमन बेटा, दिल्ली वाली मिठाइयां एवं नमकीन ले आओ. सोनू बेटा को भी टेस्ट करवाओ.’’ सुमन तुरंत मिठाइयां एवं नमकीन ले आया. मैं दोनों के व्यवहार से बहुत राहत महसूस कर रहा था, क्योंकि दोनों के व्यवहार से साफतौर पर  परिलक्षित था कि दोनों को ही सोनू पसंद आ रही है. इतने में ही उत्तम एवं भाभीजी भी आ पहुंचे. मैं ने ही दोनों को आने के लिए कह दिया था. सोनू को देख भाभीजी बोल पड़ीं, ‘‘साड़ी में कितनी प्यारी लग रही है, मुझे तो एकदम…’’ मेरी तरफ देख उन्होंने वाक्य अधूरा ही छोड़ दिया.

खाना भाभी एवं सोनू ने मिल कर बनाया, बेहद स्वादिष्ठ था. हमारे साथ बड़े भैया एवं सुमन ने बड़ी रुचि से खाना खाया. बड़े भैया बारबार कहते, ‘‘सही बात है, औरतों के हाथों में जादू होता है, कितने कम समय में इन दोनों ने इतना स्वादिष्ठ खाना तैयार कर दिया.’’ सुमन भी बोला, ‘‘सही बात है छोटे पापा, वहां पर वह कुक खाना बनाता है, इस स्वाद का कहां मुकाबला. बस, पेट भरना होता है, सो खा लेते हैं.’’

सुमन ने एक चम्मच रायता मुंह में डालते हुए स्वादिष्ठ रायते के लिए भाभीजी को थैंक्स कहा.

भाभीजी बोलीं, ‘‘सुमन पुत्तर, यह स्वादिष्ठ रायता सोनू ने बनाया है, उसे ही थैंक्स दें.’’

सुमन ने सोनू को थैंक्स कहा तथा उस ने भी मुसकराते हुए ‘इट्स माई प्लेजर’ कहा.

मैं ने सुबह 7 बजे के लगभग सोनू को फोन कर पूछा, ‘‘तुम फ्री हो तो मैं इसी वक्त तुम से मिलना चाहता हूं?’’

सोनू ने कहा, ‘‘आप तुरंत आ जाइए, दूसरी बातों के बीच कल तो आप से कुछ बात ही न हो सकी.’’

मैं जब पहुंचा, वह 2 प्याली चाय और स्नैक्स के साथ मेरा इंतजार कर रही थी.

मैं ने चाय पीते हुए पूछा, ‘‘सुमन और बड़े भैया तुम्हें कैसे लगे?’’

उस ने तुरंत जवाब दिया, ‘‘अच्छे हैं, दोनों ही बहुत अच्छे हैं. उन के व्यवहार में बहुत अपनापन है.’’

मैं ने पूछा, ‘‘और सुमन?’’

उस ने सहजता से कहा, ‘‘बहुत अच्छा लड़का है, एकदम आप के साथ बेटे जैसा व्यवहार करता है. अच्छा स्मार्ट एवं हैंडसम है, अच्छी पढ़ाई की है उस ने और अच्छी नौकरी भी करता है, किंतु अभी तो हम अपनी बातें करें, कल रात भी हम कुछ भी बात न कर सके.’’

‘‘तुम ने ठीक कहा सोनू, मैं अभी तुम से अपने दिल की ही बात करने आया हूं,’’ मैं ने कहा.

सोनू ने अधीरता से कहा, ‘‘मनजी, कह दीजिए, दिल की बात कहने में ज्यादा वक्त नहीं लेना चाहिए.’’

सकुचाते हुए मैं ने कहा, ‘‘सही कहा तुम ने, मैं बिना वक्त बरबाद किए तुम से दिल की बात कह देता हूं. मैं तुम्हारा हाथ सुमन के लिए मांगना चाहता हूं.’’

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वह आश्चर्य से व्हाट कह कर खड़ी हो गई. सोनू की भावभंगिमा देख कर एक पल मुझे खुद पर ही खीझ होने लगी कि मैं ने यह अधिकार कैसे प्राप्त कर लिया जो उस के व्यक्तिगत जीवन में हस्तक्षेप कर बैठा. शादी किस से करनी है, कब करनी है, इस संबंध में मैं क्योंकर हस्तक्षेप कर बैठा. मैं ने क्षणभर में ही स्वयं को संयत करते हुए कहा, ‘‘सोनू, बुरा मत मानो, शादी तुम्हारा व्यक्तिगत मामला है, मैं ने हस्तक्षेप किया इस के लिए मैं तुम से माफी मांगता हूं. तुम्हें यदि सुमन पसंद नहीं है या तुम किसी और को पसंद करतीहो, यह तुम्हारा निजी मामला है. तुम यदि मेरे प्रस्ताव से इनकार करोगी, मैं अन्यथा न लूंगा. वैसे एक बात कहूं, मैं ने तो तुम्हें सारेसारे दिन भी देखा है, कभी ऐसा आभास नहीं हुआ कि तुम्हारा बौयफ्रैंड वगैरह है. खैर, कोई बात नहीं, मुझे साफतौर पर बता देतीं तो ठीक रहता.’’ सोनू धीरेधीरे मेरे नजदीक आई, उस ने आहिस्ताआहिस्ता कहना शुरू किया, ‘‘मनजी, मुझे लगा आप मुझे प्यार करने लगे हैं, मैं तो आप से प्यार करने लगी हूं तथा आप को जीवनसाथी मान बैठी हूं.’’

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Serial Story: जीने की राह (भाग-2)

माताजी मेरे परिवार से बहुत स्नेह करती थीं. वे अकसर मेरे घर आती रहती थीं. रिया के हमउम्र उन के 2 पोते हैं. मुझे याद है, एक दिन दोनों पोतों की शिकायत करते हुए बोलीं, ‘देख न नीता, मेरे दोनों पोते अक्षय और अभय को तो अपनी बूढ़ी दादी के लिए समय ही नहीं है, कितने दिनों से बोल रही हूं मुझे तुलसी ला दो पर दोनों हर बार कल पर टाल देते हैं. रिया बेटा, तू ही अपने भाइयों को थोड़ा समझा न.’ रिया बड़े प्यार से माताजी से बोली थी, ‘दादीमां, आप को कोई काम हुआ करे तो आप मुझे बोल दिया करो. मैं कर दिया करूंगी. मेरे ये दोनों भाई ऐसे ही हैं, दोनों को क्रिकेट से फुरसत मिलेगी तब तो दूसरा कोई काम करेंगे.’ रिया, अगले ही दिन जा कर उन के लिए तुलसी ले आई. माताजी खुश हो कर बोलीं, ‘मेरी पोती कितनी लायक है.’ रिया हंसते हुए बोली, ‘दादीमां, सिर्फ मक्खन से काम नहीं चलेगा, मुझे मेरा इनाम चाहिए.’ माताजी प्यार से उस का माथा चूम लेतीं, यही रिया का इनाम होता था. दादीपोती का यह प्यार अनोखा था, जिस की प्रशंसा पूरी कालोनी करती थी.

मेरे सभी परिचित मुझे अपनेअपने तरीके से सांत्वना दे रहे थे. मैं ने कहा, ‘‘मुझ में इतनी हिम्मत नहीं है. मैं असमर्थ हूं. नीता और रिया के बिना जीने के खयाल से ही मैं कांप जाता हूं. दिल में आता है स्वयं को खत्म कर दूं. मैं हार गया,’’ यह कहतेकहते मैं रो पड़ा. उत्तम ने मेरा हाथ अपने हाथों में ले कर कहा, ‘‘मन, ऐसा सोचना गलत है, जीवन से हार कर स्वयं को कायर लोग खत्म करते हैं. आप हिम्मत से काम लीजिए.’’ सभी शांत एवं उदास बैठे थे, मानो सांत्वना के सारे शब्द उन के पास खत्म हो चुके हों. निश्चित कार्यक्रम के अनुसार सुबह 8 बजे मैं और उत्तम निकट के अनाथालय चले गए, वहां का काम निबटा कर हम साढ़े 10 बजे तक घर लौट आए थे. मैं और उत्तम मेरे घर की छत पर चुपचाप, गमगीन बैठे हुए थे. भाभीजी चायनाश्ता ले कर आ गईं, आग्रह करती हुई बोलीं, ‘‘मनजी, आप दोनों के लिए नाश्ता रख कर जा रही हूं, अवश्य खा लीजिएगा,’’ और वे जल्दी से पलट कर चली गईं. मैं समझ रहा था भाभीजी मुझ से नजरें मिलाना नहीं चाह रही थीं, क्योंकि रोरो कर उन का भी बुरा हाल था.

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मैं और उत्तम साथसाथ खा भी रहे थे तथा कुछ बातें भी कर रहे थे. एकाएक मुझे सोनू का खयाल आया, मैं ने उत्तम को सोनू के बारे में बताते हुए कहा, ‘‘क्या बताऊं यार, मेरे ऊपर तो जो बीती सो तो असहनीय है ही, दुर्घटनास्थल का दृश्य हृदयविदारक था, रहरह कर चलचित्र की भांति आंखों के सामने आ जाता है. एक लड़की सोनू, लगभग अपनी रिया की उम्र की ही होगी, बेचारी इस दुनिया में अकेली हो गई है. उस के मातापिता दोनों ही इस दुर्घटना में खत्म हो गए. वह 15 दिन पहले ही पटना आई है, अपनी कालोनी के सामने वाले गर्ल्स स्कूल में उसे नौकरी मिली है, यहीं अपने स्कूल के आसपास ही रहने का ठिकाना चाहती है. मैं ने उसे आश्वासन दिया है कि मैं जल्दी ही उसे अपनी कालोनी में फ्लैट पता कर बताऊंगा, तेरी नजर में है कोई एक बैडरूम का फ्लैट?’’ ‘‘अरे यार, मेरा ऊपर वाला फ्लैट मैं उसे दे सकता हूं क्योंकि मेरे दोनों किराएदार विनीत और मुकेश को जौब मिल गई है. वे दोनों आजकल में चले जाएंगे.’’

मैं ने खुश होते हुए कहा, ‘‘तेरा फ्लैट मिल जाने से सोनू बहुत राहत महसूस करेगी क्योंकि तुम से और भाभीजी से तो उसे बहुत स्नेहप्यार मिलेगा. मैं उसे फोन कर बता देता हूं. वह आ कर फ्लैट देख लेगी. तुम लोगों से मिल कर बात भी कर लेगी.’’ मैं ने सोनू को फोन लगाया, उस ने कहा, ‘‘मनजी, मैं आप के फोन का इंतजार कर रही थी, अच्छा हुआ आप ने फोन कर लिया.’’ मैं ने कहा, ‘‘सोनू, तुम्हें एक ऐसे छोटे फ्लैट की तलाश थी न जो परिवार के साथ भी हो और अलग भी. मुझे ऐसा ही फ्लैट मिल गया है. मेरे भाईसमान मित्र उत्तम का फ्लैट है. तुम समय निकाल कर आ कर देख लो.’’ सोनू ने कहा, ‘‘यह तो अच्छी खबर है. मैं आज ही फ्लैट देख लेना चाहती हूं. आप मुझे पता दे दीजिए.’’

मैं ने कहा, ‘‘तुम अपने स्कूल पहुंचो. मैं वहां से तुम्हें साथ ले कर फ्लैट दिखा दूंगा. ऐसा करना, तुम स्कूल पहुंच कर मुझे फोन कर देना.’’ ‘‘जी अच्छा, मैं अभी निकलती हूं किंतु मुझे पहुंचतेपहुंचते लगभग 2 घंटे तो लग ही जाएंगे,’’ सोनू ने कहा.

सोनू ने फोन किया. मैं उसे ले कर उत्तम के घर पहुंच गया, वह फ्लैट देख कर बोली, ‘‘मैं जल्दी से जल्दी शिफ्ट हो जाना चाहूंगी, जल्दी से जल्दी स्कूल भी जौइन करना होगा, नईनई नौकरी है, ज्यादा छुट्टी लेना ठीक नहीं होगा.’’ उत्तम ने कहा, ‘‘कल सुबह फ्लैट खाली हो जाएगा. मैं रंगरोगन करवा दूं. फिर आप शिफ्ट हो जाइए.’’ सोनू ने कहा, ‘‘रंगरोगन सब ठीक है. आप तो खाली होने पर सिर्फ सफाई करवा दीजिए. मैं कल ही शिफ्ट होना चाहूंगी.’’ सोनू अगले ही दिन 12 बजतेबजते शिफ्ट हो गई. मैं ने तथा उत्तम ने सामान की व्यवस्था करने में उस की पूरी मदद की. शाम के समय सोनू मेरे घर पर आई, कहने लगी, ‘‘मनजी, फ्लैट भी बहुत अच्छा है, स्कूल भी एकदम पास है तथा सब से अच्छी बात है कि आप मेरे निकटतम पड़ोसी हैं,’’ एक पल सोच कर वह फिर बोली, ‘‘मनजी, आप का फ्लैट तो काफी बड़ा है, 2 फ्लोर हैं, आप भी तो मुझे एक फ्लोर किराए पर दे सकते थे.’’

मैं ने कहा, ‘‘सोनू, पहली बात तो यह है कि मेरा फ्लैट तुम्हारी जरूरत के लायक नहीं था क्योंकि बात तो यह है कि तुम्हें एक बैडरूम का फ्लैट चाहिए था, इस के अलावा नीचे के फ्लैट में नीता 10+2 के स्टूडैंट्स की ट्यूशन लेती थी, जिस में उस की 2 सहयोगी भी थीं, नीता तो अब नहीं है किंतु मैं चाहता हूं कि उस की दोनों सहयोगी ट्यूशन क्लासेस पूर्ववत चलाती रहें, क्योंकि इन क्लासेस से नीता को बेहद लगाव था.’’ इधरउधर की बातें होती रहीं. सोनू ने उत्तम और उस की पत्नी की काफी तारीफ करते हुए कहा, ‘‘मनजी, इन के बच्चे कहां हैं?’’ मैं ने उसे बताया, ‘‘उत्तम के 2 बेटे हैं. दोनों नौकरी के सिलसिले में अमेरिका गए थे. वे वहीं के हो कर रह गए. अब तो दोनों घरगृहस्थी वाले हो गए हैं. दोनों का भारत आने का मन नहीं है क्योंकि दोनों की पत्नियां विदेशी हैं और उन्हें भारत सूट नहीं करता.

‘‘कुछ साल पहले एक बार उत्तम और भाभीजी अपने बेटों के पास गए थे. दोनों ही सोच कर गए थे कि बहुएं विदेशी हैं, सो सामंजस्य बिठाने में अड़चनें तो आएंगी पर इस तालमेल में उन के बेटे तो उन्हें सहयोग देंगे. वहां जा कर देखा कि उन के अपने बेटे ही उन से अजनबियों सा व्यवहार कर रहे हैं. उन में मांपापा से मिलने का न उल्लास न कोई खुशी. ये दोनों गए थे इत्मीनान से बेटों के साथ रहेंगे किंतु जल्दी ही वापस आ गए. बहुत दुखी मन से लौटे थे. उस समय नीता और रिया ने उन्हें बहुत सहारा दिया. ये दोनों अपने बेटों के व्यवहार से इतने गमगीन थे कि नीता ने कसम दे कर दोनों को हमारे घर पर ही रोक लिया था. उस दौरान हमारे मध्य की सारी औपचारिकताएं समाप्त हो गईं. उस समय से समझो, हम एक परिवार ही बन गए. आज नीता और रिया को खोने का जितना दुख मुझे है, उन्हें भी मुझ से कम नहीं है.

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‘‘उत्तम एवं भाभीजी घर में किराएदार घर को मात्र गुलजार करने के लिए ही रखते हैं. पैसा तो उन के पास पर्याप्त है, उस की कोई कमी नहीं है. उत्तम और भाभी तो अपने किराएदार को खानानाश्ता ज्यादातर अपने साथ ही करवाते हैं. वैसे तुम तो खुद ही सब देखोगी. हां, इतना जरूर आश्वस्त करना चाहूंगा कि दोनों बहुत नेकदिल इंसान हैं.’’ सोनू के जाने के बाद मैं अपना दिल बहलाने की कोशिश में लग गया किंतु नीता और रिया के बिना घर मानो काटने को दौड़ता. घर का हर कोना, हर वस्तु, हर लमहा नीता और रिया से जुड़ा हुआ था. कैसे जिंदगी कटेगी दोनों के बगैर, सोचसोच कर मैं हैरानपरेशान था. अचानक सोनू पर आ कर सोच को बे्रक लगा. मैं इस उम्र में अपनों से बिछड़ कर इतना घबरा रहा हूं. जबकि सारी कालोनी मेरी परिचित है, कुछ परिवारों से तो घनिष्ठ पारिवारिक संबंध हैं, शहर भी पूरी तरह जानापहचाना है. किंतु बेचारी सोनू, कम उम्र की युवती, उस के लिए शहर भी अजनबी, न वह किसी को जानती है और न ही कोई उसे पहचानता है. हां, मैं अवश्य उसे जानने लगा हूं तथा वह भी मुझे पहचानने लगी है. मुझे अवश्य उस का हाल लेना चाहिए.

मैं उस के घर पहुंचा. वह उदास, गुमसुम बैठी हुई थी. मैं ने पूछा, ‘‘कैसी हो, सोनू?’’ रोंआसी सोनू ने कहा, ‘‘मनजी, दिलोदिमाग पर वह ट्रेन दुर्घटना ही हावी रहती है. अपने मम्मीपापा की दर्दनाक मौत असहनीय है, कैसे जिंदगी काटूंगी, समझ में नहीं आता. जब तक आप से बातें करती हूं, मन कुछ बहल जाता है वरना समय कटता ही नहीं है.’’ मैं और सोनू बातें कर ही रहे थे कि उत्तम और भाभीजी भी आ गए. भाभीजी ने आते ही कहा, ‘‘सोनू पुत्तर, डिनर हम सब साथ ही हमारे घर पर करेंगे, तू ने बनाया नहीं न?’’ सोनू झटपट बोली, ‘‘भाभीजी, आप क्यों तकलीफ करिएगा, मैं बना लूंगी.’’ भाभीजी ने समझाते हुए कहा, ‘‘पुत्तर, तू इतनी फौर्मल क्यों होती है? अरे, मैं ने मनजी को भी बोल दिया है कि 10-15 दिन हमारे साथ ही लंचडिनर करेंगे. अरे, साथ मिल कर कुछ बातचीत भी होगी और खा भी लेंगे. जी कुछ हलका होगा वरना सब दुखी और गमगीन रहेंगे. धीरेधीरे मन संभल जाएगा,’’ फिर एक पल बाद वे बनावटी गुस्से के साथ बोलीं, ‘‘तू मेरे घर के डिनर से इतना घबरा क्यों रही है? अरे, कोई बेस्वाद खाना थोड़े ही बनाती हूं.’’

भाभी की बात पर हम सभी हंसने के प्रयास में मुसकरा दिए. अतीत की यादों को दिल से लगाए दिन तो किसी तरह काट लेता किंतु रात काटना बहुत कठिन होता था. विचारों की शृंखला के कारण नींद जल्दी आती नहीं थी, आने पर भी कुछ देर बाद उचट कर टूट जाती. नीता, रिया के साथ बिताए लमहे चलचित्र की भांति आंखों के सामने आ जाते.

क्रमश:

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Serial Story: जीने की राह (भाग-1)

एक हफ्ते बाद कल पत्नी नीता व बेटी रिया घर लौट आएंगी, यह सोच कर मन बेहद उत्साहित था, दोनों के बिना घर काटने को दौड़ता था. नित्य की भांति मैं ने न्यूज देखने के लिए टीवी औन कर लिया था. जिस ट्रेन से दोनों लौट रही थीं वह बुरी तरह दुर्घटनाग्रस्त हो गई थी. टीवी पर बहुत भयानक दृश्य दिखाया जा रहा था. ट्रेन के कुछ डब्बे पानी में गिर गए थे, कुछ पुल से लटके हुए थे और कुछ उलटपलट कर दूर गिर गए थे. मैं टीवी के सामने जड़वत बैठा हुआ था, मानो दिलोदिमाग ने काम करना बंद कर दिया हो. मेरा निकटतम पड़ोसी उत्तम हांफता हुआ मेरे पास पहुंचा. उस ने भी टीवी पर यह भयंकर दृश्य देख लिया था, उसे भी नीता और रिया के लौटने की खबर थी.

वह हांफता हुआ बोला, ‘‘मन, यह कैसी खबर है?’’

उस की बात सुन कर मैं दहाड़ मार कर रो पड़ा. वह मुझे संभालते हुए बोला, ‘‘नहीं मन, खुद को संभाल, हम यह क्यों सोचें कि नीता और रिया सुरक्षित नहीं होंगे. अरे, सब थोड़े ही हताहत हुए होंगे. तू विश्वास रख, नीता और रिया एकदम ठीक होंगी. हम जल्दी से जल्दी वहां पहुंचते हैं और उन्हें अपने साथ लिवा लाते हैं. मेरे दोस्त हिम्मत रख, सब ठीक रहेगा.’’ मैं ने कहा, ‘‘अच्छा हो कि तेरी बात सही निकले, वे दोनों सहीसलामत हों. किंतु मैं अकेला ही जाऊंगा, तू भाभीजी की देखभाल कर, कल ही तो उन का बुखार उतरा है, अभी वे काफी कमजोर हैं.’’ थोड़ी नानुकुर के बाद उत्तम मान गया. मैं अकेला ही घटनास्थल पर पहुंचा. भयानक एवं वीभत्स दृश्य था. चंद लोगों के अलावा सब खत्म हो चुके थे. चंद जीवित लोगों में नीता और रिया नहीं मिलीं. उन्हें लाशों में से तलाशना बेहद मुश्किल काम था. दो कदम आगे बढ़ चार कदम पीछे हट जाता, मन चीत्कार कर कहता, ‘नहीं होगा यह कार्य मुझ से,’ किंतु उन्हें बिना देखे भी तो वापस नहीं जा सकता था. पागलों की तरह मैं अपनों की लाशें ढूंढ़ रहा था.

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विचित्र दृश्य था, अजीब तरह की अफरातफरी मची हुई थी, कई समाज सेवी संस्थाएं व स्थानीय जनता तो सहयोग कर ही रही थी, सरकारी तंत्र भी सहयोग में लगा हुआ था. मेरी नजर अचानक रिया पर पड़ी. वहीं बगल में नीता भी थी. बिलकुल क्षतिविक्षत हालत में. मेरी आंखों के आगे अंधेरा छाने लगा किंतु अपनेआप को संभाला. मैं अपनी नीता एवं रिया की लाशें समेटे खड़ा था, वहीं निकट एक युवती, मेरी रिया की हमउम्र

2 लाशों के मध्य बैठी रोए जा रही थी. मेरा दिल रोरो कर गुहार लगा रहा है, इन निर्दोषों ने ऐसा क्या अपराध किया था जो जान गंवा बैठे या हम ने ऐसा क्या कर दिया जो अपनों को गंवा बैठे. थोड़ी देर में सार्वजनिक रूप से दाहसंस्कार किया जाने वाला था. कई लोग उस में शामिल हो रहे थे, कुछ लोग अपनों की लाशें अपने साथ लिए जा रहे थे, कुछ लाशें अपनों का इंतजार कर रही थीं, कुछ ऐसे भी थे जिन्हें अपनों की लाशें भी नसीब नहीं हुई थीं, वे पागलों की तरह उन्हें खोज रहे थे, रो रहे थे, चिल्ला रहे थे. इंसान कभी कल्पना भी नहीं करता है कि जीवन में उसे ऐसे दर्दनाक दौर का सामना करना पड़ जाएगा. भयानक दृश्य था, एकसाथ इतनी लाशें जल रही थीं, इतनी भारी संख्या में लोग विलाप कर रहे थे. ऐसे अवसर पर मानवीय चेतना विशेष जागृत हो उठती है तथा मनमस्तिष्क में सवालों की झड़ी लग जाती है, ‘हमारे साथ ही ऐसा क्यों हुआ, किस गलती की सजा मिली है, ऐसी तो कोई गलती की हो, याद ही नहीं आता. हम अपनों से बिछड़ कर जीने के लिए क्यों अभिशप्त हुए वगैरवगैरा.’ दाहसंस्कार के बाद मैं नीता और रिया के सामान को समेट कर इधरउधर घूम रहा था. काफी भिखारी भी पहुंच गए थे, काफी कुछ तो उन्हें दे दिया यह सोच कर कि जिन का सामान है वे तो चले गए, चलो किसी के तो काम आएगा, किंतु इस सोच के बाद भी सब न दिया जा सका. कुछ सामान समेट कर अपने साथ रख लिया, मानो इस बहाने नीता और रिया मेरे साथ हों.

मैं नीता और रिया की यादों के समुद्र में गोते लगा रहा था, दुख का दर्द असहनीय था. लगता था मानो वह कलेजे को चीर कर निकल जाएगा. पटना वापस लौटना था, मन होता कहीं भाग जाऊं, क्या करूंगा पत्नी और बेटी के बिना घर में, उन के बिना जीने की कल्पना से ही कलेजा मुंह को आता था, फिर भी लौटना तो था ही. अचानक उस युवती पर नजर ठहर गई. वह भी अपने मातापिता का दाहसंस्कार कर सामान समेटे एक बैंच पर गुमसुम बैठी थी. मैं ने उस के समीप पहुंच, उस से पूछा, ‘‘तुम कहां से हो?’’

‘‘जी पटना से,’’ उस ने उदास नजरों से देखते हुए संक्षिप्त सा उत्तर दिया.

मैं ने पूछा, ‘‘रात की पटना जाने वाली ट्रेन से जाने वाली हो?’’

उस ने सहमति में सिर हिला दिया. अभी ट्रेन के लिए लगभग 3 घंटे शेष थे. मैं ने कहा, ‘‘चलो, स्टेशन ही चलते हैं.’’ वह आज्ञाकारी बच्चों की तरह साथ चल दी. मैं महसूस कर रहा था कि अत्यधिक उदासीनता के बावजूद इस युवती से जुड़ता जा रहा हूं. एक अजीब सा अपनापन महसूस करने लगा हूं इस अजनबी युवती से कुछ ही घंटों की बातचीत में ऐसा लग रहा था जैसे मैं उसे वर्षों से जानता हूं. फिर हम दोनों ट्रेन पकड़ने के लिए चल दिए. हम दोनों ट्रेन में पहुंच चुके थे. दिनभर के थकेहारे थे, सो अपनीअपनी बर्थ पर चले गए. सुबहसुबह मेरी नींद खुली. मैं ने पाया, वह भी जाग चुकी है. पटना स्टेशन आने में अभी लगभग 1 घंटा शेष था. हम दोनों की विदा होने की घड़ी नजदीक आ पहुंची थी. मैं ने उस से कहा, ‘‘मेरा नाम मानव है, वैसे नजदीकी लोग मुझे ‘मन’ पुकारते हैं. क्या मैं तुम्हारा नाम जान सकता हूं?’’

उस ने कहा, ‘‘मेरा नाम सुनयना है. मुझे मेरे नजदीकी ‘सोनू’ कहते हैं.’ कठिन समय में हम दोनों की आत्मीयता, जीवन संजीवनी का काम कर रही थी. मैं ने कहा कि मैं तुम्हें अपना मोबाइल नंबर दे देता हूं. हम मोबाइल के माध्यम से संपर्क बनाए रख सकते हैं. हम दोनों ने एकदूसरे से अपने नंबर शेयर कर लिए. हम फिर अपनों की याद में खोए गुमसुम से बैठ गए. मैं ने ही चुप्पी तोड़ते हुए कहा, ‘‘सोनू, मैं कृष्णपुरी कालोनी में शांतिपार्क अपार्टमैंट में रहता हूं. मुझे तो पटना में रहते हुए 32 साल हो गए हैं.’’ ‘‘मुझे पटना में रहते हुए मात्र 15 दिन ही हुए हैं. मैं ने यहां गर्ल्स हाई स्कूल जौइन किया है. मेरे मम्मीपापा  बहुत उत्साहित थे, विशाखापट्टनम से वे मेरी ही व्यवस्था देखने आ रहे थे. मेरा ही कुसूर है. न ही मैं यहां जौइन करती और न ही वे लोग यहां आने की सोचते और न ही इस दुर्घटना में फंसते. उन लोगों की मौत की जिम्मेदार मैं ही हूं,’’ वह भावविह्वल हो रो पड़ी.

मैं ने समझाते हुए कहा, ‘‘स्वयं को दोषी नहीं समझो. यहां प्रत्येक के आने और जाने की तिथि तय है. इस में तुम्हारा कोई दोष नहीं है. जिस को जितना मिलना है उतना ही मिलता है. हमें सदैव सकारात्मक दृष्टिकोण रखना चाहिए.’’ मेरी बातों का सोनू पर कुछ असर हुआ. उस ने स्वयं को संभाल लिया. कुछ पल शांत रहने के बाद वह बोली, ‘‘मनजी, आप कृष्णपुरी में रहते हैं न, मेरा स्कूल भी तो वहीं है.’’ मैं ने याद करते हुए कहा, ‘‘हांहां, हमारी कालोनी के सामने एक गर्ल्स स्कूल है तो, वैसे उस की 3-4 शाखाएं हैं पटना में.’’

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सोनू ने कहा, ‘‘हां, शाखाएं तो हैं, किंतु मेरा अपौइंटमैंट कृष्णपुरी शाखा में हुआ है. मैं ने जौइन भी कर लिया है. अभी मैं अपनी एक फ्रैंड के साथ रहती हूं. वहां से स्कूल काफी दूर है. मैं स्कूल के आसपास ही रहने की व्यवस्था करना चाहती हूं.’’ मैं ने कहा, ‘‘हमारी कालोनी में तो काफी फ्लैट्स हैं. तुम्हें अवश्य पसंद का फ्लैट मिल जाएगा. मैं तुम्हें जल्दी से जल्दी पता कर बताता हूं.’’

घर पहुंच कर तन्हाई से सामना करना कठिन हो रहा था. हर तरफ नीता और रिया दिखाई दे रही थीं, उन की यादों ने मुझे झकझोर कर रख दिया. जी में आता घर छोड़ कर कहीं दूर चला जाऊं. मैं किंकर्तव्यविमूढ़ सा धम्म से सोफे पर बैठ गया. दुर्घटना से संबंधित सारे दृश्य आंखों के सामने आने लगे, मानो कोई वीभत्स चलचित्र देख रहा हूं. हादसे का दृश्य, क्षतविक्षत शरीर, मेरी नीता और रिया, जो मेरे लिए सुंदरता की प्रतिमूर्ति थीं. क्षतविक्षत लाशें, सार्वजनिक दाहसंस्कार, इतनी बड़ी संख्या में लोगों का क्रंदन. इतने लोगों के मध्य में भी अपना दुख सहन किए बैठा था किंतु घर में अकेले असहनीय प्रतीत हो रहा है. नहीं सहन होगा मुझ से, मैं नीता और रिया के बिना नहीं जी सकता, जो मेरी हर सांस में, हर आस में बसी हैं, उन के बिना भला कैसे जी सकता हूं. यह असंभव है, एकदम असंभव.

अपने ही घर में मैं बुत बना बैठा था. सामने रखे फोटो पर नजर ठहर गई. और मैं अतीत में खो गया. पिछले माह ही मेरी और नीता की 25वीं शादी की सालगिरह पड़ी थी. रिया के अनुरोध पर हम ने यह तसवीर खिंचवाई थी. रिया का कहना था कि मम्मीपापा, आप लोग अपनी शादी की 25वीं सालगिरह पर पेपर फोटो खिंचवाइए, जैसी आप दोनों ने अपनी शादी के बाद खिंचवाई थी. उस ने हंसते हुए कहा था, ‘मेरे मम्मीपापा इतने यंग और स्मार्ट दिखते हैं कि कोई विश्वास ही नहीं करेगा कि यह तसवीर 25वीं सालगिरह पर खिंचवाई गई है.’ नीता ने रिया से सस्नेह कहा, ‘चलो, तुम्हारी बात मान लेते हैं, किंतु इस फोटो में हमारी प्यारी बिटिया भी साथ आएगी, भला 25वीं सालगिरह की फोटो बिटिया के बिना हो ही नहीं सकती है.’

नीता की बात पर सहमत होते हुए रिया ने कहा था, ‘अब आप की 25वीं सालगिरह के दिन तो आप की बात रखनी ही होगी.’ और वह भी हमारे साथ शामिल हो गई तथा हमारा प्यारा फैमिली फोटोग्राफ तैयार हो गया. मैं गुमसुम अश्रुपूरित नजरों से फोटोग्राफ को एकटक देख रहा था कि किसी के आने की आहट पा मेरी तंद्रा भंग हुई. मेरे पड़ोसी एकएक कर मेरे घर पहुंचने लगे, सभी को कानोंकान मेरे वापस लौट आने की खबर लग चुकी थी. इस कालोनी में अपने घर में रहते हुए मुझे 8 साल हो चुके थे. नीता और रिया कालोनी के प्रत्येक क्रियाकलापों में काफी सक्रिय रहती थीं, सो वे दोनों ही कालोनी में बेहद लोकप्रिय थीं. हमेशा ही मेरे पड़ोसियों का मेरे घर आनाजाना लगा रहता था. सभी दोनों की आकस्मिक मौत से बेहद दुखी थे, सभी को मुझ से गहरी सहानुभूति थी.

अपनों की सहानुभूति पा कर मेरे धैर्य का बांध टूट गया और मैं फूटफूट कर रो पड़ा. मेरा निकटतम पड़ोसी उत्तम भावविह्वल हो मुझे गले से लगा कर बोला, ‘‘न मन, न, स्वयं को संभाल.’’ उत्तम नीता को बहन मानता था. वह नीता से राखी बंधवाता था. उत्तम बड़े प्यार एवं शौक से उसे उन मौकों पर गिफ्ट भी दिया करता. उन स्नेहपूरित उपहारों को नीता भी सहर्ष स्वीकार कर लेती थी. रिया उसे मामा कहती थी. कभी भूल से अंकल बोल जाती तो वह नाराज हो जाता. मेरा विलाप देख सामने वाली माताजी ने मेरे सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, ‘‘मन, बेटा दिल को कड़ा कर, जो तुम्हारे साथ हुआ है उसे सहन करना बेहद कठिन है किंतु सहना तो पड़ेगा ही क्योंकि दूसरा विकल्प नहीं है. हम सब तेरे साथ हैं. तू अकेला नहीं है. खुद को मजबूत बना. नीता मेरी बहू और रिया मेरी पोती थी न, बेटा,’’ मुझे समझाते वे स्वयं विलाप करने लगीं.

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