सुबह साढ़े 4 बजे जब उन की सास नित्य स्नानध्यान के लिए ऊपर के बेडरूम से नीचे आने के लिए निकलीं तो पुलिस की तरह ऐन मौके पर बिजली चली गई. अंधेरे में जीने पर पड़े केले के छिलकों पर उन का पैर पड़ गया. उन की चीख के साथ ही पूरा घर जाग पड़ा और आनन- फानन में उन्हें अस्पताल पहुंचाया गया. चोट तो ज्यादा नहीं आई थी लेकिन बेचारी का दिल शायद कमजोर था इसलिए फेल हो गया. खैर, यह तो होनी थी, होनी को कौन टाल सकता है. लेकिन इसी बीच एक अनहोनी हो गई.
उसी रात ठाकुर अभयप्रताप के घर में एक चोर घुस आया. गेट पर खड़ा गार्ड शायद लघुशंका के लिए कोने में गया था, तभी मौका पा कर वह चोर गेट खोल कर धीरे से अंदर सरक आया. फिर बगीचे की झाडि़यों के पीछे छिपताछिपाता रसोई के पिछवाड़े पहुंच कर खिड़की की ग्रिल निकाल कर अंदर दाखिल हो गया.
नीचे के सारे कमरों का चोर ने जायजा लिया, सब खाली थे. दूर बरामदे में एक नौकर खर्राटे भर रहा था. चोर ने एकएक कर के सारा कीमती सामान उठाया और बड़ी सी गठरी बना कर रख ली.
अभी ड्राइंगरूम का काफी कीमती सामान बाकी था. वह दूसरी गठरी बनाने की फिराक में था कि तभी सामने सीढि़यों पर होती आहट से उस के कान खड़े हो गए. वह फौरन ड्राइंगरूम में लगे मोटे परदे के पीछे छिप गया. नाइट बल्ब की धुंधली रोशनी में उस ने देखा कि कोई भारी- भरकम कदकाठी का व्यक्ति जीने पर कुछ दूर तक आया फिर झुकझुक कर कुछ इधरउधर रखा और वापस ऊपर लौट गया.
कुछ देर तो चोर की सांस अटकी रही. लेकिन दोबारा जब कोई आहट नहीं हुई तो वह परदे से बाहर निकल कर अपनी दूसरी गठरी तैयार करने लगा. तभी अचानक किसी महिला की भयंकर चीत्कार से पूरा घर जाग गया. बाहर गेट पर खड़ा गार्ड अपनी बंदूक ले कर अंदर की तरफ दौड़ा. जल्दीजल्दी में 1-2 हवाई फायर भी कर दिए. जरूर किसी चोर ने घर की किसी महिला का गला रेत डाला है…आवाज ही ऐसी चिंचियाती हुई थी. लेकिन अंदर जा कर उसे पता चला कि मेम साहब की माताजी सीढि़यों से नीचे आ टपकी हैं.
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उधर चोर ने मामला नाजुक देखा तो दूसरी गठरी बनाना छोड़ पहली गठरी ले कर खिड़की फांद गया. गेट पर गार्ड भी नहीं था, सो आराम से गेट से बाहर आ गया. लेकिन फायर की आवाज सुन सड़क पर गश्त लगा रहे 2 पुलिस वालों ने उसे थोड़ी दूर पर धर दबोचा.
ठाकुर साहब के घर पर अब मातमपुर्सी का दौर शुरू हो गया था. पुलिस महकमे के इतने आला अधिकारी की सास की मौत हुई थी. ठाकुर साहब भी एक हफ्ते की छुट्टी ले कर घर बैठ गए. साहब और मेम साहब दोनों सुबह नहाधो कर सफेद वस्त्र धारण कर, एक दर्जन सफेद रूमाल ले कर सोफे पर पसर जाते. आतेजाते लोगों के सामने मेम साहब वही रटीरटाई बातें दोहरातीं, आंसू गिरातीं, नाक साफ करतीं. उन का साथ देने के लिए ठाकुर साहब भी रूमाल नाक पर रख कर बीचबीच में सुनसुन करते रहते. बारीबारी से पुलिस वाले आते और ठाकुर साहब की दुखती रग पर हाथ रखते.
पिछले 5 सालों से मेम साहब की मां ने लगभग पूरे घर का चार्ज अपने मजबूत हाथों में ले लिया था. उन के अनुसार उन की अनुभवहीन नासमझ बेटी और ईमानदार पुलिस आफिसर उन के दामाद गृहस्थी चलाने योग्य नहीं थे. लिहाजा, अपनी बेटीदामाद की गृहस्थी को दमदार बनाने की गरज से उन्होंने पिछले 5 सालों से सब की नाक में दम कर रखा था. कहावत है कि मरे पूत की बड़ीबड़ी अंखियां. फिर ये तो साहब की सास की मातमपुर्सी की रस्म थी.
दारोगा चरनदास अपनी टेढ़ी नाक सहलाते हुए नकिया रहा था, ‘‘बड़ी ही नेकदिल थीं अम्मांजी. मजाल है कभी किसी के साथ ऊंचा बोली भी हों. मुझे तो सच, कभी अपनी मां से भी इतना प्यार नहीं मिला जितना अम्मांजी से मिला था.’’
पिछले साल चरनदास का हाथ थोड़ा तंग था, इसलिए दीवाली पर सोने की गिन्नी की जगह वह मेवों के डब्बे के साथ चांदी की गिन्नी ले कर अम्मांजी की खिदमत में उपस्थित हुआ था. बस, अम्मांजी ने आव देखा न ताव, गिन्नी समेत मेवे का डब्बा खींच कर उस के मुंह पर मार दिया. नाक से खून बह निकला. साल भर होने को आया लेकिन अब भी जब पुरवा हवा चलती है तो चरनदास की नाक की हड्डी में दर्द होने लगता है.
इंस्पेक्टर इसरार खान अपनी खिजाब लगी दाढ़ी खुजलाते हुए लखनवी अंदाज व अदब के साथ अम्मांजी की मातमपुर्सी कर रहे थे, ‘‘खुदा जन्नत बख्शे मरहूम को. क्या नायाब मोहतरमा थीं जनाब, अल्ला को भी न जाने क्या सूझी कि ऐसी पाकीजा और शीरीं जबान खातून को हम से छीन लिया.’’
पिछले 5 सालों से आमों की फसल पर मलीहाबादी दशहरी आमों की पेटियों का नजराना पेश करने की जिम्मेदारी खान साहब पर ही थी. अम्मांजी एकएक पेटी गिन कर अंदर रखवातीं. 2 साल पहले जब कीड़े के प्रकोप से मलीहाबादी आमों की पूरी फसल ही चौपट हो गई थी तब बेचारे खान साहब कहां से आम लाते. फिर भी बाजार से ऊंचे दामों में 2 पेटियां खरीद कर अम्मांजी की खिदमत में पेश कीं.
‘‘पूरे सीजन में सिर्फ 2 पेटियां?’’ यह कहते हुए अम्मांजी आगबबूला हो उठीं और फिर तो अपनी निमकौड़ी जैसी जबान से ऐसीऐसी परंपरागत तामसिक गालियों की बौछार की कि बेचारे खान साहब की रूह फना हो गई. लोग खामखाह पुलिस मकहमे को गालियों की टकसाल कहा करते हैं.
धीरेधीरे एक हफ्ता बीत गया. जख्म भरने लगा और ठाकुर अभयप्रताप भी आफिस जाने लगे. इस बीच उन्हें यह खबर लग चुकी थी कि उन के चोरी हुए सामान समेत चोर पकड़ा जा चुका है. सामान की शिनाख्त भी उन के मातहत कर्मचारियों ने कर ली थी. तकरीबन सारा सामान उन्हीं मातहतों के खूनपसीने की कमाई का ही तो था जिन्हें उन्होंने तोहफों की शक्ल में अम्मांजी को भेंट किया था. चोर के साथ पुलिस वाले बेहद सख्ती से पेश आए थे.
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ठाकुर अभयप्रताप के सामने भी चोर की पेशी हुई. आखिर वह पुलिस के आला अफसर थे, वह भी देखना चाह रहे थे कि किस बंदे में इतनी हिम्मत थी जिस ने उन के घर में सेंध लगाई. बेडि़यों में जकड़ कर चोर को हाजिर किया गया. साहब की ओर देखते ही चोर चौंका. इन्हें तो पहले भी कहीं देखा है. कहां देखा है? वह याद कर ही रहा था कि सिपाही रामभरोसे ने एक जोरदार डंडा यह कहते हुए उस की पीठ पर जमा दिया, ‘‘ऐसे भकुआ बना क्या देख रहा है बे. यही वह साहब हैं जिन के घर घुसने की तू ने हिम्मत की थी. अब देख, साहब ही तेरी खाल में भूसा भरेंगे.’’
बेचारा चोर मार खाए कुत्ते जैसा कुंकुआने लगा. तभी उस के दिमाग में एक बिजली कौंधी. वह ठाकुर अभयप्रताप के सामने बैठ कर गिड़गिड़ाने लगा, ‘‘मुझे बचा लीजिए माई बाप, मैं तो मामूली उठाईगीर हूं. मैं ने चोरी जरूर की है माई बाप, पर आप का सब सामान तो मिल गया है हुजूर. थोड़ी सजा दे कर मुझे छोड़ दीजिए साहब.’’
‘‘अबे, तेरी तो ऐसी की तैसी,’’ और सिपाही रामभरोसे ने दूसरा डंडा ठोंका, ‘‘सवाल तेरी चोरी का नहीं है ससुरे, सवाल है तू ने हमारे साहब के घर घुसने की हिम्मत कैसे की?’’
बेचारा चोर फिर कुंकुआने लगा और तेजी से ठाकुर का पैर पकड़ कर बोला, ‘‘साहब, उस रात जब मैं आप के घर घुसा था तब आप ही थे न जो रात में जीने के ऊपर केले के छिलके बिछा रहे थे?’’
‘‘अयं, यह क्या आंयबांय बक रहा है बे. एक ही हफ्ते की मार से दिमाग फेल हो गया है क्या तेरा,’’ सिपाही रामभरोसे ने जूता उस के सिर पर जोर से ठोंका.
लेकिन अभयप्रताप सिंह का सिंहासन तो डोल गया था. फौरन सिपाही रामभरोसे को यह कहते हुए बाहर भेज दिया कि मुझे इस चोर से अकेले में कुछ बात करनी है.
फिर तो चोर ने पूरा खुलासा किया, ‘‘साहब, उस रात जीने पर जब साहब आप 3 जगह झुक कर केले के छिलके रख रहे थे तो यह खुशकिस्मत इनसान वहीं परदे के पीछे छिपा था. बाद में हवालात में ही मुझे पता चला कि साहब की सास की मौत केले के छिलके पर फिसल कर हुई थी.’’
अब क्या था. पासा पलट चुका था. साहब ने आननफानन में आदेश दे दिया कि चोरी का सामान तो मिल ही चुका है, फिर बेचारे गरीब चोर को क्यों सजा हो. पूरा का पूरा महकमा इस अजीब फैसले से सकते में आ गया. लेकिन जब साहब ने खुद ही उस का गुनाह माफ कर दिया तो फिर केस ही नहीं बनता न.
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वह दिन और आज का दिन. महीने की पहली तारीख को वह चोर अपनी मूंछ पर ताव देता हुआ ठाकुर अभयप्रताप के घर के दरवाजे के सामने खड़ा उन का इंतजार करता है. उस के हाथ में 2-4 केले रहते हैं. इंतजार करतेकरते वह पट्ठा सामने की पुलिया पर बैठ कर केले खाता जाता है और उस के छिलके पास में जमा करता जाता है. जैसे ही साहब बाहर निकलते हैं वह एक हाथ में केले का छिलका हिलाते हुए दूसरे हाथ से उन्हें सलाम ठोंकता है.
ठाकुर अभयप्रताप इधरउधर नजर दौड़ा कर धीरे से उस के पास जाते हैं और जेब से कुछ रुपए निकाल उस के हाथ पर रख कर झट से गाड़ी में बैठ जाते हैं. गेट पर खड़ा गार्ड और ड्राइवर सब उस चोर की हिमाकत और ठाकुर साहब की दरियादिली देख कर सिर खुजलाते रह जाते हैं.