मैं जौब करना चाहती हूं, लेकिन परिवार नहीं मान रहा?

सवाल-

मैं 26 वर्षीय युवती हूं. विवाह को 4 वर्ष हो चुके हैं. एक 3 वर्ष का बेटा है. घर में सासससुर और देवर है. हमारा अपना घर है. पति का अच्छा पैतृक व्यवसाय है, अर्थात आर्थिक रूप से काफी संपन्न हैं. मैं नौकरी करना चाहती हूं, परिवार वाले यही दलील देते हैं. विवाहपूर्व मैं नौकरी करती थी. इन लोगों के कहने पर ही मैं ने नौकरी छोड़ी थी. उसी कंपनी से मुझे फिर औफर आया है पर कोई नहीं मान रहा. मैं सारा दिन चूल्हेचौके में, जहां कोई खास काम मेरे करने लायक नहीं है, नहीं बिताना चाहती.

जवाब-

यदि पति और परिवार वाले आप के नौकरी करने के हक में नहीं हैं तो आप को इस की जिद नहीं करनी चाहिए. घर के कामकाज के साथसाथ आप पति के काम में मदद कर सकती हैं, बच्चे की देखभाल भलीभांति कर सकती हैं और अपनी कोई रुचि विकसित कर सकती हैं, किसी समाजसेवी संस्था में अपनी सेवाएं दे सकती हैं. इन के अलावा और भी कई काम हैं जिन्हें आप अपनी योग्यता और सुविधा के अनुसार घर पर रह कर कर सकती हैं.

ये भी पढ़ें- 

जून का महीना था. सुबह के साढ़े 8 ही बजे थे, परंतु धूप शरीर को चुभने लगी थी. दिल्ली महानगर की सड़कों पर भीड़ का सिलसिला जैसे उमड़ता ही चला आ रहा था. बसें, मोटरें, तिपहिए, स्कूटर सब एकदूसरे के पीछे भागे चले जा रहे थे. आंखों पर काला चश्मा चढ़ाए वान्या तेज कदमों से चली आ रही थी. उसे घर से निकलने में देर हो गई थी. वह मन ही मन आशंकित थी कि कहीं उस की बस न निकल जाए. ‘अब तो मुझे यह बस किसी भी तरह नहीं मिल सकती,’ अपनी आंखों के सामने से गुजरती हुई बस को देख कर वान्या ने एक लंबी सांस खींची. अचानक लाल बत्ती जल उठी और वान्या की बस सड़क की क्रौसिंग पर जा कर रुक गई.

पूरी कहानी पढ़ने के लिए- चक्रव्यूह भेदन : वान्या क्यों सोचती थी कि उसकी नौकरी से घर में बरकत थी

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

घर-परिवार के लिए कुरबान नौकरियां

ब्राह्मण स्मार्ट युवक 30 वर्ष, 5 फुट 8 इंच बीटैक (आईआईटी) दिल्ली, एचसीएल में कार्यरत, 10 एलपीए हेतु अच्छे परिवार की सुंदर, लंबी, प्रोफैशनली क्वालिफाइड, गृहकार्य में दक्ष वधू चाहिए. अपना मकान, गाड़ी, पिता क्लास-1 राजपत्रित अधिकारी. संपर्क करें +919810333333.

यह एक राष्ट्रीय हिंदी न्यूजपेपर में शादी के लिए दिया गया विज्ञापन है. शादी हमारे समाज में सब से ज्यादा महत्त्वपूर्ण, धार्मिक, पारिवारिक और सामाजिक कार्य है और ऐसे विज्ञापन हमारे समाज की सचाई को सामने लाते हैं.  कुछ लोग भले ही विज्ञापन में सुंदर, शिक्षित बहू की डिमांड करें, पर असल में वे घर के काम, पोता जनने और कम बोलने वाली बहू ही चाहते हैं. इस विज्ञापन में बहू क्वालिफाइड मांगी गई है पर वह गृहकार्य में भी दक्ष होनी चाहिए तभी बात आगे बढ़ेगी. अरे, जब घरेलू ही चाहिए तो क्वालिफाइड क्यों? क्वालिफाइड होगी तो वह अपना कैरियर दांव पर क्यों लगाए? वैसे तो आजकल नौकरीपेशा बहुओं की ही डिमांड है, पर कुछ लोग आज भी लड़के के लिए बहू ढूंढ़ते हैं तो पहला सवाल यही होता है कि शादी के बाद परिवार या कैरियर किसे ज्यादा वरीयता दोगी? अगर उस लड़की ने कैरियर का चुनाव किया तो सामने बैठे बुजुर्ग मुंह बिचका सकते हैं और अगर परिवार कहा तो समझो सवालों का पहला पड़ाव पार हो गया.

घर में शिक्षित व नौकरीपेशा आ गई और भले ही मियांबीवी मैट्रोसिटी में काम करने लगें,  शादी के 1 या 2 साल बाद ही ससुरालपक्ष से बच्चे की डिमांड होने लगेगी कि अरे बहू 30 के बाद बच्चा होने में दिक्कतें आती हैं. अब पोते का मुंह दिखा ही दो. कहने का मतलब यहां यह है कि 2 से 3 होने के लिए भी परिवार वालों का दबाव रहता है. लो बच्चा तो हो गया, पर अब उसे संभालेगा कौन? बीवी ने 3 महीने की तो मैटरनिटी लीव ली पर बाद में ससुरालपक्ष से कोई नहीं आया उस के पास रुकने. अब बीवी बच्चा संभाले या नौकरी करे? घर में खुशियां तो आईं पर पढ़ीलिखी क्वालिफाइड एमबीए बहू का कैरियर खत्म हो गया. बच्चा पालने की खातिर उसे अपने कैरियर की कुरबानी देनी पड़ी. भारत में विकास के मुद्दे पर बात व बहस जारी है. आंकड़ों के ढेर पर बैठ कर कल्पना करना आसान है कि देश की आर्थिक प्रगति हो रही है. देश हर दिन तरक्की कर रहा है. उद्योग व्यापार और अन्य क्षेत्रों के आंकड़े भविष्य के लिए काफी अच्छे संकेत दे रहे हैं. लेकिन इन तथ्यों के पीछे झांक कर देखें तो पाएंगे कि आर्थिक आजादी और विकास में महिलाओं की भूमिका अब भी वैसी नहीं है जैसी होनी चाहिए थी. इस मामले में देश ने आत्मनिर्भर और आजाद होने के 68 वर्षों में भी ज्यादा प्रगति नहीं की है.

ये भी पढ़ें- चुनाव और भारत

नैशनल सैंपल सर्वे और्गेनाइजेशन की रिपोर्ट के अनुसार भारत में 1999-2000 में करीब 5-6% का इजाफा हुआ. वहीं 2009-10 में 47 फीसदी महिलाएं होममेकर थीं. ज्यादातर महिलाएं अपने परिवार व बच्चों की देखभाल के लिए अपना कैरियर खत्म कर रही हैं. इस की बड़ी वजह न्यूक्लियर फैमिली का बढ़ता चलन है. न्यूक्लियर फैमिली में एक अन्य सर्वे के मुताबिक करीब 15 से 17 फीसदी महिलाएं सामाजिक व पारिवारिक दबाव में होममेकर रहती हैं. वहीं लगभग 10 फीसदी महिलाएं घरेलू काम इसलिए करती हैं कि वे मेड का खर्च नहीं उठा सकतीं.

बच्चों पर कुरबान कैरियर

2015 के मदर्सडे पर देश भर की महिलाओं पर हुए एक सर्वे में उन के परिवार के लिए कैरियर को त्यागने के मामले सामने आए हैं. एसोचैम के स्पैशल डैवलपमैंट फाउंडेशन द्वारा कराए गए इस सर्वेक्षण में दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, लखनऊ, अहमदाबाद, बैंगलुरु, हैदराबाद, इंदौर व जयपुर में 25 से 30 वर्ष की आयुवर्ग की 400 महिलाओं की राय को शामिल किया गया. इस में कुछ ऐसी महिलाएं भी शामिल थीं, जो हाल में ही मां बनी थीं. सर्वेक्षण के दौरान करीब 30 फीसदी महिलाओं ने अपने पहले बच्चे के जन्म के बाद उस की देखभाल के लिए नौकरी छोड़ी तो 20 फीसदी ने कहा कि बच्चों की परवरिश के लिए उन्होंने नौकरी पूरी तरह से छोड़ने का फैसला किया. बड़ी संख्या में महिलाओं ने कहा कि बच्चों के स्कूल जाने लगने के बाद वे दोबारा कैरियर शुरू करना चाहेंगी.

सताता है भेदभाव का डर

हालांकि कई महिलाएं बच्चा बड़ा होने के बाद अपना कैरियर फिर से संवारना चाहती हैं, लेकिन दोबारा या कहें रीजौइन करने पर उन्हें पुरानी पोजिशन और पुरानी सैलरी पर ही रखा जाता है. कंपनियों में डोंट आस्क और डोंट टेल (कुछ मत पूछो और कुछ मत बताओ) का कल्चर विकसित हो गया है. ऐसे में महिलाएं कुछ भी पूछने से घबराती हैं और अपने पांव पीछे खींच लेती हैं. ब्रिटेन की लौ फर्म क्वालिटी सौलिसिटर ने 100 कामकाजी महिलाओं पर सर्वे किया और पाया कि महिलाओं को अपने मैटरनिटी राइट्स के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं होती है. यही नहीं उन्हें यह भी डर लगता है कि अगर उन्होंने कंपनी से इस पौलिसी के बारे में कुछ पूछा तो इस से उन का कैरियर प्रभावित हो सकता है. ऐसे में प्रैगनैंट होने पर आधी से ज्यादा महिलाएं इस बारे में अपने बौस को कुछ नहीं बताती हैं. इसी डर के कारण काफी महिलाओं ने नौकरी न करने की बात कही है. एसोचैम सर्वे में महिलाओं ने कहा कि वे नौकरी कर अपने बच्चों के यादगार पलों को मिस करना नहीं चाहतीं, इसलिए घर में ही कोई काम शुरू कर वे काम और बच्चे दोनों के साथ न्याय कर सकेंगी. एसोचैम के सर्वेक्षण में यह बात सामने आई कि न्यूक्लियर परिवार की महिलाओं को अपने बच्चे की परवरिश और कैरियर के बीच संतुलन बनाने में कठिनाई होती है.

जिंदगी से जुड़े स्ट्रैस और भावनात्मक पसोपेश के साथ ही पारिवारिक और सामाजिक कारणों की वजह से उन्हें नौकरी छोड़ने का फैसला करना पड़ता है. वहीं संयुक्त परिवारों में इस तरह की परेशानी का सामना नहीं करना पड़ता. टीवी पर प्रसारित आप ने मैटरीमोनियल साइट का एक विज्ञापन जरूर देखा होगा, जिस में लड़कालड़की एकदूसरे को साइट से पसंद कर शादी कर लेते हैं पर ससुर को बहू का बाहर का काम करने जाना नहीं भाता. वे कह उठते हैं कि हमारे घर की बहुएं काम पर नहीं जातीं. तब उन का बेटा कहता है कि पापा, वह घर चलाने के लिए काम नहीं करती. उसे अच्छा लगता है इसलिए करती है. वैसे यह सिर्फ टीवी में ही नहीं दिखाया जाता. ऐसा कई परिवारों में भी होता है. सासससुर या पति है यह कहता है कि हमारे यहां लड़कियां काम नहीं करतीं. काम वही करती हैं, जिन्हें आर्थिक तंगी होती है. ऐसे में अगर आप के पति आप के फैसले में साथ हों, तो स्ट्रैस अपनेआप दूर हो जाएगा.

ये भी पढ़ें- पति-पत्नी और कानून

महिलाओं को लेने पड़ते हैं कई ब्रेक

पहला ब्रेक: युवतियां शादी से पहले अपना कैरियर शुरू करती हैं और शादी होने के बाद जरूरी नहीं कि उन की जौब स्मूथली चलेगी ही. कई महिलाओं को जहां पति या ससुराल पक्ष के दबाववश नौकरी को बायबाय कहना पड़ता है, तो वहीं शहर बदलने की वजह से भी कई बार जौब का ब्रेक हो जाता है. दूसरा ब्रेक: सैकंड और बड़ा ब्रेक महिलाएं मां बनने पर लेती हैं. करीब 35 फीसदी महिलाएं दूसरा ब्रेक लेने के बाद दोबारा काम पर नहीं लौटतीं. अगर लौटना भी चाहें तो वे अपने कैरियर में पिछड़ चुकी होती हैं, इसलिए भी वे उस दौरान तालमेल बैठा पाने में असमर्थ पाई जाती हैं.

परिवार, बच्चा महिला की जिम्मेदारी

दरअसल, हमारे समाज में बचपन से ही लड़की को पराया कहा जाता है. फिर थोड़ा बड़ी होने पर उसे बताया जाता है कि शर्म लड़की का गहना होती है इसलिए वह ऊंची आवाज में बात न करे. इस दौरान घर के माहौल के अनुसार उस की डिमांड कम बेटे की ज्यादा पूरी होती है. इस के अलावा लड़की घर से बाहर जाते समय लौटने का टाइम बता कर जाए ताकि उस पर पहरा रखा जा सके. यानी एक लड़की त्याग की देवी बचपन से बन जाती है. पारंपरिक दकियानूसी सोच है कि शादी के बाद बेटी ससुराल डोली में जाती है और वहां से वह अरथी में ही उठती है. बेटी ससुराल में सब का खयाल रखना यह कहने के साथ शादी के वक्त लड़की के घर वाले हाथ जोड़ कर उस के ससुराल वालों से यह कहना नहीं भूलते कि बेटी से कोई गलती हो जाए तो उसे माफ कर देना. लड़की की मां व रिश्तेदार भी लड़की से यह भी कहना नहीं भूलते कि शादी से पहले की लाइफ अलग और शादी के बाद की अलग होती है. इसलिए भी लड़कियां शादी और बच्चों को अपनी ही जिम्मेदारी समझ कर काम करती हैं. लेकिन क्या परिवार और बच्चों को संभालने की जिम्मेदारी सिर्फ लड़की के कंधों पर डालना सही है?

क्या करें लड़कियां

शादी के बाद अगर युवतियां फुलटाइम काम नहीं कर सकतीं तो वे पार्टटाइम काम का औप्शन चुन सकती हैं. इस के अलावा ट्यूशन व खुद सरकारी नौकरी के लिए कोचिंग ले कर फौर्म भर परीक्षा भी दे सकती हैं. घर से व्यापार करना भी अच्छा औप्शन है. टेलरिंग आदि का काम भी कर सकती हैं.

मास्टर औफ वन

मास्टर औफ वन का कौंसैप्ट अगर लड़कियां पहले से ले कर चलें तो अपना कैरियर वे आगे भी चला सकती हैं, क्योंकि कोई ऐसा कोर्स जिस में उन्होंने स्पैशलाइजेशन किया हो तो आगे उन्हें कोई मात नहीं दे सकता. स्पैशल कोर्स कर के आप गैप के बाद भी उसे पुन: जौइन कर सकती हैं. ऐसे कोर्स का फायदा आप के लंबे गैप को भी भर देगा. आप अपने कैरियर को खत्म होने से रोक पाएंगी.

ये भी पढ़ें- हिजाब घूंघट, धर्म की धौंस

कैसे करें घर बैठे मोटी कमाई

एक मशहूर कहावत है कि ऐवरी क्राइसिस कम विद एन औपर्चयुनिटी यानी हर आपदा एक अवसर ले कर आती है. कोरोना भी एक आपदा है, लेकिन कोरोना आपदा की शक्ल में कई सारे अवसर ले कर आया है खासकर उस तरह  के व्यवसाय और काम के लिए, जो पढ़ाई, आईटी, टैक्नोलौजी से संबंधित हैं, वर्चुअल दुनिया के प्रोडक्ट हैं, डिजिटल प्रोडक्ट हैं. क्योंकि कोरोना के समय में जिस तरह से लोग एकदूसरे से दूर हो कर घर में बंद हो गए हैं, वहां पर सौफ्टवेयर, आईटी, औनलाइन डिलिविरी, वर्चुअल ऐजुकेशन, ऐप्लिकेशंस इन सब की डिमांड बढ़ी है. जूम रातोंरात करोड़पति ऐप्लिकेशन बन गई है. और भी कई ऐप्लिकेशंस का यही हाल है.

इस आपदा के समय कोचिंग का व्यवसाय भी खूब फूलफल रहा है. वैसे तो यह व्यवसाय पहले भी खूब फलफूल रहा था, लेकिन जब से स्कूलकालेज बंद हुए हैं तब से इस व्यसाय के बढ़ने की संभावना और बढ़ गई है. इसलिए अगर आप घर में खाली बैठे हैं, आप की नौकरी नहीं है या फिर आप का बिजनैस डाउन हो गया है, तो आप अपने अंदर के हुनर को तराश कर इसे बिजनैस के तौर पर शुरू कर सकते हैं. जानिए कैसे:

घर बैठे सीखें केक बनाना

घर में किसी का बर्थडे हो या फिर ऐनीवर्सरी या फिर न्यू बौर्न बेबी के वैलकम की बात हो, हर शुभ अवसर पर केक कटिंग का चलन आम हो गया है. ऐसे में कोरोना की दस्तक ने इस बिजनैस को तेजी से बढ़ाने का काम किया है. अब लोग मार्केट से केक लाने से परहेज करने लगे हैं, इस की जगह वे अपने करीबी से या फिर खुद घर पर केक बनाना ज्यादा अच्छा औप्शन सम झते हैं. ऐसे में अगर आप में केक बनाने की कला है तो आप अपने इस हुनर को खुद तक ही सीमित न रखें बल्कि दूसरों को भी सिखा कर आप अच्छाखासा पैसा कमा सकते हैं.

ये भी पढ़ें- सिलाई-कढ़ाई: हुनर को बनाएं बिजनैस

इस संबंध में मेराकी होम बेकरी की दीप्ति जांगड़ा बताती हैं कि उन में केक बनाने का जनून है और उन के इस हुनर को लौकडाउन के समय काफी बढ़ावा मिला है. वे सिंपल से ले कर कस्टोमाइज्ड डिजाइनर केक तक बनाती हैं यानी जिसे जैसा केक चाहिए होता है उसी तसवीर को हूबहू केक पर उतारने की कला है उन में. उन्होंने बताया कि लोग उन के इस हुनर को बहुत अधिक प्रोत्साहित कर रहे हैं, जिस से उन में उत्साह और अधाक बढ़ गया है. यह उन की आमदनी का अच्छा साधन बन गया है, जो उन में कौन्फिडैंस बढ़ाने का काम करता है.

वे बताती हैं कि बेसिक केक सीखने के लिए क्व1,500 से क्व2,000, तो वहीं डिजाइनर केक बनाने की कला को सीखने के लिए क्व3,000 से क्व5,000 तक खर्च करने पड़ते हैं. कहने का तात्पर्य यह है कि अगर आप में हुनर है तो आप घर बैठे औनलाइन ट्रेनिंग दे कर अपनी आमदनी कर सकते हैं. यकीन मानिए इस से आप को जो खुशी मिलेगी उस का अंदाजा भी आप को नहीं होगा. बस आप को अपने हुनर को तराश कर उसे सही प्लेटफौर्म देने की जरूरत होती है.

डांस क्लासेज

डांस सदियों से पसंद किया जाता रहा है, जिस के कारण यह हमेशा से ही डिमांड में रहता है. चाहे संगीत हो या शादी या फिर पार्टी अथवा गैटटुगैदर, हर जगह डांस का अपना महत्त्व होता ही है. आज तो डांस के इतने प्रौब्लम आने लगे हैं कि उन में भाग लेने के लिए डांस की ट्रेनिंग लेनी बहुत जरूरी होती है ताकि बेहतर सीख कर अव्वल आ सकें. इस के लिए लोग मुंहमांगा पैसा देने के लिए भी तैयार रहते हैं. अगर आप किसी खास तरह के डांस जैसे हिप होप, बैलेट, फोक डांस, क्लासिक डांस इत्यादि को अच्छे से जानते हैं तो आप इस की औनलाइन ट्रेनिंग दे कर अपने स्किल्स को बढ़ाने के साथसाथ इस प्रोफैशन से अच्छाखासा कमा सकते हैं, क्योंकि घर से इस बिजनैस को शुरू करने पर इस की लागत न के बराबर ही आएगी.

पर्सनैलिटी डैवलपमैंट

कोरोना ने हर किसी को घर में बैठा दिया है, फिर चाहे बात बड़ों की हो या फिर बच्चों की, ऐसे में घर में बोरियत का माहौल हो गया है. हरकोई बदलाव चाहता है. ऐसे में अगर आप में वह है कि आप दूसरों को पर्सनैलिटी डैवलपमैंट की ट्रेनिंग दे सकते हैं तो यह समय आप के लिए गोल्डन चांस का काम करेगा, क्योंकि हर पेरैंट्स इस समय का फायदा उठा कर अपने बच्चों को सब सिखाना चाहते हैं, जिस से पढ़ाई के साथ उन की पर्सनैलिटी डैवलप हो. ऐसे में आप इस समय अपने हुनर का फायदा उठा कर औनलाइन पर्सनैलिटी डैवलपमैंट के कोर्स शुरू करें. आप औफर्स भी दे सकते हैं कि बच्चे के साथ पेरैंट्स भी अगर सीखते हैं तो आप को डिस्काउंट मिलेगा. बता दें कि पर्सनैलिटी डैवलपमैंट के कोर्सेज की काफी डिमांड रहती है. आप को अगर 3-4 लोग भी मिल गए तो भी आप महीने में क्व12,000 से क्व15,000 तक कमा लेंगे. बस जरूरत है आप को अपने हुनर को सही तरह से इस्तेमाल करने की.

कोडिंग क्लासेज

बच्चे सम झ गए हैं कि अगर टैक्नोलौजी वर्ल्ड में पहचान बनानी है तो कोडिंग से नाता जोड़ना ही पड़ेगा, क्योंकि आज के समय में टैक्नोलौजी की मदद लेनी ही पड़ती है. ऐसे में आईटी टीचर्स के लिए जहां सुनहरे अवसर खुल गए हैं वहीं बच्चों को भी इस के माध्यम से कुछ नया सीखने को मिल रहा है, जो उन के भविष्य को और उज्ज्वल बनाने का काम करेगा. बता दें कि कोडिंग प्रोग्रामिंग लैंग्वेज को कहते हैं, जिस की मदद से ऐप्स, वैबसाइट व सौफ्टवेयर बना सकते हैं. कोरोना के बाद से तो कोडिंग की काफी डिमांड बढ़ी है. ऐसे में अगर आईटी से जुड़े हुए हैं और आप को कोडिंग का अच्छाखासा ज्ञान है तो आप इस में औनलाइन कोचिंग दे कर मोटा पैसा कमा सकते हैं. इस से आप के ज्ञान में वृद्धि भी होगी और आप मोटा पैसा भी कमा पाएंगे.

कैरियर काउंसलिंग

बहुत सारे बच्चे असमंजस की स्थिति में रहते हैं कि 10वीं के बाद कौन सी स्ट्रीम चुनें या फिर 12वीं के बाद किस सैक्टर में अपना कैरियर बनाएं. असल में उन पर पेरैंट्स का भी दबाव होता है और साथ ही देखादेखी भी. ऐसे में वे अपने अंदर की प्रतिभा को जान नहीं पाते और गलत निर्णय लेने के कारण कई बार उन्हें पछताना भी पड़ता है. ऐसे में कैरियर काउंसलिंग बच्चों के लिए बहुत काम की साबित होती है ताकि उन से बात कर के उन की रुचि को जान कर और उन्हें किस जगह पर दिक्कत आती है उसे गहराई से सम झ कर उन्हें किस क्षेत्र में कैरियर बनाना चाहिए, कैरियर काउंसलिंग के माध्यम से मदद की जाती है. इस से उन्हें जहां कैरियर चुनने में मदद मिलती है वहीं उन्हें सही कैरियर चुनने से आगे सक्सैस मिलने के चांसेज भी काफी बढ़ जाते हैं.

कैरियर काउंसलिंग का महत्त्व कोरोना के टाइम में तो और अधिक बढ़ गया है, क्योंकि बच्चों का कैरियर चौपट सा हो गया है. ऐसे में उन के मन के संदेह को कैरियर काउंसलिंग के माध्यम से ही दूर किया जा सकता है. इस क्षेत्र में पैसा भी अच्छाखासा मिलता है. जैसे आप ने अगर 2 घंटे बच्चे की काउंसलिंग की तो आप एक बच्चे से कम से कम 2,000 से 3,000 तक कमा लेंगे. ऐसे में अगर आप में हुनर है और आप पेरैंट्स व बच्चों को सही गाइड कर सकते हैं, तो फिर औनलाइन कैरियर काउंसलिंग कर के कमाएं पैसा.

ये भी पढ़ें- अपना स्वास्थ्य करें सुरक्षित

फिटनैस ट्रेनिंग

आज अधिकांश लोग अपनी हैल्थ को ले कर ज्यादा सजग हो गए हैं. तभी तो उन के रूटीन में जुंबा, ऐरोबिक्स, जिम आदि शामिल हो गया है. यही नहीं वे इन के लिए हर महीने हजारों रुपए खर्च करने में भी गुरेज नहीं करते. सही भी है कि अगर आप स्वस्थ हैं तभी आप जीवन को अच्छे से ऐंजौय कर पाओगे. लेकिन कोरोना ने फिटनैस पर थोड़ा ब्रेक लगा दिया है. अब लोग जिम व अन्य ऐक्सरसाइज के लिए किसी ट्रेनर के पास जा कर सीखना उचित नहीं सम झ रहे हैं. ऐसे में उन की जरूरत और आप का हुनर आप की आमदनी का साधन बना सकता है. आप जूम, मीट जैसे ऐप्स की मदद ले कर उन्हें घर बैठे फिटनेस की ट्रेनिंग दे सकते हैं. यकीन मानिए आज के समय में आप का यह हुनर बहुत फायदे का साबित होगा क्योंकि अब और लोग अपनी हैल्थ से सम झौता नहीं करना चाहते हैं. आप फीस दिनों, घंटों व कोर्स के आधार पर रख कर काफी फायदा कमा सकते हैं.

इस संबंध में एशियन इंस्टिट्यूट औफ मैडिकल साइंसेज के हैल्थ ऐंड फिटनैस कंसल्टैंट हरीश कुमार शर्मा बताते हैं कि अगर आप में फिटनैस की ट्रेनिंग देने का हुनर है तो आप इस  से पर आवर एक व्यक्ति से स्टैंडर्ड कोर्स के क्व500 से क्व800 कमा सकते हैं. कोर्स के टाइप के हिसाब से आप फीस चार्ज कर के अपनी इनकम को बढ़ा सकते हैं.

ऐंट्रैंस कोचिंग

कोचिंग का बाजार तो हमेशा से ही गरम रहा है, लेकिन अब कोरोना के कारण औनलाइन कोचिंग की डिमांड और बढ़ गई है, क्योंकि न तो पेरैंट्स अपने बच्चों की पढ़ाई में ब्रेक लगने देना चाहते हैं और न ही बच्चे खुद. ऐसे में उन्हें चाहे फिर बात हो जौइंट ऐंट्रैंस ऐग्जामिनेशन की, ग्रैजुएट ऐप्टीटूड टैस्ट इन इंजीनियरिंग या फिर बैंकिंग सैक्टर इत्यादि की, वे औनलाइन कोचिंग के जरीए खुद को तैयार कर रहे हैं ताकि किसी भी कीमत पर उन्हें हार न मिले. ऐसे में अगर आप किसी भी फील्ड में कोचिंग दे सकते हैं और आप को अच्छाखासा ज्ञान है तो आप औनलाइन ऐंट्रैंस कोचिंग दे कर घर बैठे घंटे के हिसाब से काफी अच्छा कमा सकते हैं. आज इस प्रोफैशनल से लोग प्रति महीना का हजारोंलाखों कमा रहे हैं.

ये भी पढ़ें- मिरर से यों सजाएं घर

बिजनैस कोचिंग

अगर कोरोना के कारण आप की नौकरी चली गई है या फिर आप नौकरी छोड़ कर खुद का बिजनैस करना चाहते हैं, लेकिन सम झ नहीं आ रहा कि कैसे चुनें सही बिजनैस, जिस से खुद को भी मुनाफा हो और कस्टमर्स में भी अच्छी पहचान बन सके तो इस के लिए आप को बिजनैस ट्रेनर की मदद लेनी पड़ेगी ताकि आप को बिजनैस को ऊंचाइयों तक पहुंचाने के लिए ट्रेनर से छोटी से छोटी जानकारी मिल सके. अगर आप को बिजनैस और मार्केट की अच्छीखासी जानकारी है और आप व्यक्ति से बात कर के जान सकते हैं कि उसे किस बिजनैस में सफलता मिल सकती है या नहीं, मार्केट में क्या ज्यादा डिमांड में है, तो आप औनलाइन बिजनैस कोचिंग दे कर अपनी आमदनी बढ़ाने के साथसाथ लोगों को बिजनैस शुरू करने में मदद भी कर सकते हैं.

सब्जैक्ट कोचिंग

कोरोना के कारण वर्क फ्रौम होम का कल्चर बढ़ा है. ऐसे में अगर पतिपत्नी दोनों वर्किंग हैं तो वे अपने बच्चों को पढ़ाई में पूरा टाइम नहीं दे पा रहे हैं. साथ ही स्कूल की औनलाइन क्लासेज भी मात्र खानापूर्ति ही हो रही है. ऐसे में बच्चों को कोचिंग की जरूरत पड़ रही है. अगर आप किसी भी सब्जैक्ट के ऐक्सपर्ट हैं तो आप औनलाइन सब्जैक्ट कोचिंग दे सकते हैं. इस में कम टाइम में आप ज्यादा पैसा कमा सकते हैं. आप औनलाइन ग्रुप कोचिंग भी कर सकते

हैं या फिर इनडिविजुअल भी. इस से आप के ज्ञान में भी वृद्धि होगी और आप की आमदनी  भी बढ़ेगी.

औनलाइन बिजनैस शुरू करने के लिए कैसे करें तैयारी

–  इसे शुरू करने के लिए आप सोशल मीडिया जैसे व्हाट्सऐप, फेसबुक की मदद ले कर अपने परिचितों तक इस की जानकारी पहुंचाएं. उन्हें कहें कि वे इस संदेश को आगे फौरवर्ड करें ताकि आप को अच्छा रिजल्ट मिले. इस से आप दोस्तों, सगेसंबंधियों के जरीए अजनबियों तक पहुंच बना पाएंगे.

–  3-4 फ्री क्लासेज दें ताकि सीखने वाले जान सकें कि आप में कितना हुनर है.

–  फीस सही व सटीक रखें. लेकिन अपनी मेहनत का सही मूल्य आंकना न भूलें.

–  जिस भी विषय में आप कोचिंग दे रहे हैं, उस की आप को गहराई से जानकारी होनी चाहिए. हर क्लास में आप को क्या पढ़ाना है इस की पहले से तैयारी करें ताकि अधूरी जानकारी के साथ आप लोगों के सामने खुद को प्रेजैंट न करें.

–  घर के इंटीरियर को थोड़ा बदलें ताकि बैकग्राउंड अच्छी दिखे.

–  रिसर्च अच्छे से करें ताकि आप को बिजनैस में सफलता मिले.

–  आप औनलाइन प्लेटफौर्म के जरीए बिजनैस को बढ़ाने के लिए मार्केटिंग करें.

मै दोबारा नौकरी करना चाहती हूं, लेकिन पति मना कर रहे हैं?

सवाल-

मैं 26 वर्षीय विवाहिता व 3 वर्षीय बेटे की मां हूं. विवाह से पूर्व मैं नौकरी करती थी. शादी चूंकि दूसरे शहर में हुई है, इसलिए नौकरी छोड़नी पड़ी. अब मैं चाहती हूं दोबारा नौकरी कर लूं. पति से इस विषय में बात की तो वे मना करने लगे. चूंकि हम यहां अकेले रहते हैं, घर में कोई बड़ा बच्चे को संभालने के लिए नहीं है. बच्चे को क्रैच में छोड़ने के वे सख्त खिलाफ हैं. इस के अलावा उन का कहना है कि जब आर्थिक तौर पर हम सक्षम हैं तो फिर मैं क्यों नौकरी करना चाहती हूं. मैं कैसे समझाऊं कि आर्थिक निर्भरता के लिए नहीं अपनी इच्छा के लिए नौकरी करना चाहती हूं. यदि मैं ने और 2-4 साल यों ही बरबाद कर दिए तो मेरा कैरियर चौपट हो जाएगा. बताएं क्या करूं?

जवाब

शादी के बाद पारिवारिक कारणों से खासकर बच्चों की परवरिश के लिए अधिकांश महिलाएं नौकरी छोड़ देती हैं. उन्हें इस बात का मलाल भी नहीं होता, क्योंकि घरगृहस्थी और बच्चों का लालनपालन अपनेआप में एक फुल टाइम जौब है. दोनों को एकसाथ मैनेज करना, खासकर तब जब बच्चे की देखरेख करने के लिए परिवार का कोई सदस्य न हो, बहुत मुश्किल होता है. जहां तक क्रैच में बच्चे को छोड़ने की बात है, पहले तो अच्छे क्रैच मिलते नहीं और मिल भी जाएं तो भी उतनी अच्छी देखभाल बच्चे की नहीं हो पाती जितनी उस की मां करती है. अत: यदि आप को किसी प्रकार की आर्थिक तंगी नहीं है तो आप को नौकरी के लिए जिद नहीं करनी चाहिए. घर में अतिरिक्त समय में आप अपनी कोई हौबी विकसित या ट्यूशन आदि कर सकती हैं.

ये भी पढ़ें- मेरे पति सैक्स संबंध को लेकर संतुष्ट नहीं रहते हैं.

ये भी पढ़ें

‘‘शादी…यानी बरबादी…’’ जब उस की मां ने उस के सामने उस की शादी की चर्चा छेड़ी तो सुलेखा ने मुंह बिचकाते हुए कहा था, ‘‘मां मुझेशादी नहीं करनी है, मैं हमेशा तुम्हारे साथ रह कर तुम्हारा देखभाल करना चाहती हूं.’’

‘‘नहीं बेटा ऐसा नहीं कहते,’’ मां ने स्नेहभरी नजरों से अपनी बेटी की ओर देखा.

‘‘मां मुझेशादी जैसी रस्मों पर बिलकुल भरोसा नहीं… विवाह संस्था एकदम खोखली हो चुकी है… आप जरा अपनी जिंदगी देखो, शादी के बाद पापा से तुम्हें कौन सा सुख मिला है? पापा ने तो तुम्हें किसी और के लिए तलाक…’’ कहती हुई वह अचानक रुक गई और फिर आंसू भरे नेत्रों से मां की ओर देखने लगी.

मां ने दूसरी तरफ मुंह घुमा अपने आंसुओं को छिपाने की कोशिश करते हुए बोलीं, ‘‘अरे छोड़ो इन बातों को… इस वक्त ऐसी बातें नहीं करते और फिर लड़कियां तो होती ही हैं पराया धन. देखना ससुराल जा कर तुम इतनी खो जाओगी कि अपनी मां की तुम्हें कभी याद भी नहीं आएगी,’’ और फिर बेटी को गले लगा कर उस के माथे को चूम लिया.

मालती अपनी बेटी को बेहद प्यार करती हैं. आज 20 वर्ष हो गए उन्हें अपने पति से अलग हुए, जब मालती का अपने पति से तलाक हुआ था तब सुलेखा सिर्फ 5 वर्ष की थी. तब से ले कर आज तक उन्होंने सुलेखा को पिता और मां दोनों का प्यार दिया. सुलेखा उन की बेटी ही नहीं उन की सुखदुख की साथी भी थी. अपने टीचर की नौकरी से जितना कुछ कमाया वह अपनी बेटी पर ही खर्च किया. अच्छी से अच्छी शिक्षादीक्षा के साथसाथ उस की हर जरूरत का खयाल रखा. मालती ने अपनी बेटी को कभी किसी चीज की कमी नहीं होने दी भले खुद कितना भी कष्ट झेलना पड़ा हो.

सावधान ! बदल गई है जॉब मार्केट, खुद को काम का बनाए रखने की कोशिश करें  

यह कहने की जरूरत नहीं है कि कोरोना ने बहुत कुछ ही नहीं बल्कि सब कुछ ही बदल दिया है. पिछले लगभग दो सालों से जिस तरह से पूरी दुनिया कोरोना महामारी के शिकंजे में है, उसका ग्लोबल जॉब मार्केट में जबरदस्त असर हुआ है, इसका खुलासा एमआई यानी मैकिंजे इंटरनेशनल के एक हालिया सर्वे से हुआ है. दुनिया के आठ देशों में जहां धरती की 50 फीसदी से ज्यादा आबादी रहती है और जहां वैश्विक अर्थव्यवस्था का 62 फीसदी जीडीपी का उत्पादन होता है. ऐसे आठ देशों में मैकिंजे इंटरनेशनल ने पिछले दो सालों में बदले हुए जॉब ट्रेंड एक सर्वे किया है और कॅरियर शुरु करने के इंतजार में खड़ी पीढ़ी को सावधान किया है कि वे जल्द से जल्द अपने आपको नयी परिस्थितियों के मुताबिक ढालें वरना अप्रासंगिक हो जाएंगे.

मैकिंजे इंटरनेशनल ने जिन आठ देशों की अर्थव्यवस्था पर नजर रखी है और वहां के जॉब मार्केट में सर्वे किया है, उसमें चीन, भारत, फ्रांस, जर्मनी, स्पेन, जापान, यूनाइटेड किंगडम और यूनाइटेड स्टेट ऑफ़ अमरीका शामिल हैं. इन सभी देशों में कम या ज्यादा मगर पिछले दो सालों में नौकरियां कम हुई हैं. कहीं 8 से 10 फीसदी तक तो कहीं 20 से 25 फीसदी तक और इन नौकरियों के कम होने में सबसे बड़ी भूमिका है आटोमेशन की. शोध अध्ययन से पता चला है कि बड़े पैमाने पर जॉब  कुछ विशेष क्षेत्रों में समाहित हो गये हैं. मैकिंजे के विस्तृत अध्ययन से पता चला है कि पिछले दो सालों में 800 से ज्यादा प्रोफेशन, 10 कार्यक्षेत्रों में समाहित हो गये हैं और खरीद-फरोख्त के मामले में तो ऐसा उलटफेर कर देने वाला परिवर्तन हुआ है कि कोरोना से पहले जहां ग्लोबल शोपिंग में ऑनलाइन  शोपिंग की हिस्सेदारी 35 से 40 फीसदी थी, वहीं पिछले दो सालों में यह बढ़कर 80 फीसदी तक हो गई है.

हालांकि यह स्थायी डाटा नहीं रहने वाला. क्योंकि इतने बड़े पैमाने पर ऑनलाइन, शोपिंग इसलिए भी इन दिनों हुई  से क्योंकि इस दौरान दुनिया के ज्यादातर देशों में लॉकडाउन लगा हुआ था. बावजूद इसके मैकिंजे इंटरनेशनल शोध अध्ययन की पहली किस्त का साफ तौरपर निष्कर्ष है कि खरीद-फरोख्त की दुनिया में कोरोना महामारी ने आमूलचूल परिवर्तन कर दिया है. इस महामारी के खत्म होने के बाद भी यह परिवर्तन लौटकर पहली वाली स्थिति में नहीं आने वाला. आज की तारीख में राशन से लेकर सिरदर्द की टैबलेट तक लोग बड़ी सहजता से ऑनलाइन मंगवा रहे हैं. आश्चर्य तो इस बात का भी है कि बड़ी तेजी से इन लॉकडाउन के दिनों में अलग अलग शहरों के मशहूर स्नैक्स तक 24 से 48 घंटों के अंदर देश के एक कोने से दूसरे कोने में डिलीवर होने लगे हैं. इलाहाबाद के पेड़े (अमरूद) ही नहीं अब समोसे भी 24 घंटे के अंदर नागपुर, भोपाल, मुंबई, पुणे और विशाखापट्टनम में खाये जा सकते हैं.

वैसे कभी न कभी तो यह सब होना ही था. लेकिन कोरोना महामारी ने इसकी रफ्तार बहुत तेज कर दी है. पिछले दो सालों में ई-कॉमर्स  और आटोमेशन में जबरदस्त इजाफा हुआ है और इस इजाफे में कैटेलेटिक एजेंट की भूमिका कामकाजी लोगों का बड़े पैमाने पर घर में रहना यानी वर्क फ्राम होम की स्थिति ने निभाया है. पिछले दो सालों के भीतर औसतन पूरी दुनिया में करीब 25 फीसदी सेवा क्षेत्र की नौकरियों में इंसानों की उपस्थिति खत्म हो चुकी है,उनकी जगह या तो रोबोट ने ले ली है या कम स्टाफ ने. शायद इस महामारी के खत्म होने के कुछ सालों बाद ही दुनिया आश्चर्यजनक ढंग से इस महामारी के दौरान दुनिया में हुए रातोंरात तूफानी परिवर्तनों को महसूस करे, अभी तो यह सब कुछ बहुत तात्कालिक लगता है और कहीं न कहीं यह भी लगता है कि महामारी के जाते ही दुनिया शायद पुरानी जगह लौट आयेगी. लेकिन इतिहास इस अनुमान का, इस भरोसे का साथ नहीं देता.

इतिहास बताता है कि किसी भी क्षेत्र में हुआ कोई भी बदलाव आसानी से पहले की स्थिति में नहीं लौटता. यूरोप में और अमरीका में पिछले दो सालों के भीतर सफाई के क्षेत्र में बड़े पैमाने पर मशीनों का आगमन हुआ है. आज की तारीख में अमरीका में 18 से 20 फीसदी तक और यूरोप में 12 से 15 फीसदी तक रोबोट सफाई कर्मचारियों के रूप में मोर्चा संभाले हुए हैं. कोरोना संकट खत्म होने के बाद विशेषज्ञों को नहीं लगता कि रोबोट वापस शो रूम में चले जाएंगे. मैकिंजे की मानें तो आने वाले सालों में रोबोट इंसानों को अनुमान से 50 फीसदी ज्यादा चुनौती देने जा रहे हैं. हां, कुछ क्षेत्र इस दौरान ऐसे भी उभरकर सामने आये हैं, जहां मैनपावर यानी इंसानों की जरूरत पहले से कहीं ज्यादा महसूस हुई है. इसमें सबसे प्रमुख क्षेत्र निःसंदेह चिकित्सा का है . दुनिया का कोई ऐसा देश नहीं है जहां कोरोना त्रासदी के दौरान, डॉक्टरों और मेडिकल स्टाफ की कमी महसूस न हुई हो. भारत, चीन जैसे जनसंख्या प्रधान देशों में डॉक्टरों को सामान्य समय के मुकाबले कोरोनाकाल में करीब 2.5 से 3 गुना तक कमी महसूस कराई गई है.

यही हाल चिकित्सा क्षेत्र में देखरेख का मुख्य आधार नर्सों का भी है. दुनिया का कोई ऐसा देश नहीं है जो आज की तारीख में अपनी कुल जरूरत की 80 फीसदी तक नर्सें रखता हो. दुनिया के बहुत सारे देशों में भारत से ही नर्सें जाती हैं या उनकी बड़ी जरूरत को किसी हद तक पूरा करते हैं. लेकिन इस कोरोना महामारी के दौरान भारत में 300 फीसदी से ज्यादा नर्सों की कमी महसूस की गई. हालांकि नर्से उपलब्ध हो जाएं तो भी भारत के चिकित्सा क्षेत्र के पास इतने संसाधन नहीं है कि वह उन्हें नौकरी दे सके. लेकिन कोरोना की रह-रहकर आयी लहरों ने साबित किया है कि डॉक्टर, नर्स और इस क्षेत्र के दूसरे सहायकों की आज पहले से कहीं ज्यादा जरूरत है और आने वाले भविष्य में भी यह जरूरत बनी रहने वाली है.

गांरटीड नौकरी चाहिए तो करियर को दें अप्रेंटिस का कवच

अगर आपने हाल में ही 10 वीं या 12वीं पास की है या पहले से ही ग्रेजुएट हैं.लेकिन नौकरी न मिलने से परेशान हैं तो यह लेख आपके लिए ही है.यूं तो कहा जा सकता है कि इस भीषण बेरोजगारी के दौर में नौकरी मिलने की गारंटी किसी भी डिग्री या डिप्लोमा में नहीं है और यह सच भी है है.लेकिन इस बड़े सच के परे भी एक सच है.वह यह कि अगर आपने अपरेंटिस की हुई है तो समझिये नौकरी की गारंटी है.दूसरे शब्दों में अगर गारंटीड नौकरी चाहिए तो 10 वीं के बाद कभी भी किसी अपरेंटिस प्रोग्राम का हिस्सा बन जाइए नौकरी हर हाल में मिलेगी.

बेरोजगारी के इस भीषण दौर में भी अपरेंटिस किये लोगों को 100 फीसदी रोजगार मिल रहा है. 24 जून 2021 तक रेलवे में करीब 4000 अपरेंटिस की भर्ती होने जा रही है.एक रेलवे ही नहीं मई और जून के महीने में ऐसी दर्जनों सरकारी, गैर सरकारी, सार्वजनिक उपक्रम और मल्टीनेशनल कंपनियां तक अपरेंटिसशिप की रिक्तियां निकालती हैं. अपरेंटिसशिप का मतलब होता है एक किस्म का ट्रेनिंग प्रोग्राम.इस कार्यक्रम के तहत बिल्कुल नये लोगों को किसी क्षेत्र विशेष के काम की ट्रेनिंग दी जाती है.

लेकिन यह ट्रेनिंग विद्यार्थियों के सरीखे नहीं मिलती. यह ट्रेनिंग दरअसल ट्रेंड लोगों के साथ पूरे समय नियमित कर्मचारियों की तरह किये जाने वाले काम के रूप में मिलती है.यहां इन ट्रेनीज से पूरे समय एक नियमित कामगार के तौरपर काम कराया जाता है. जिस संस्थान में अपरेंटिसशिप होती है वहां इन ट्रेनीज पर वही नियम लागू होते हैं,जो नियमित कामगारों पर लागू होते हैं सिवाय वेतनमान के.अपरेंटिस संस्थान के नियमित कर्मचारियों की तरह ही भीकाम में आते हैं और उन्हीं की तरह उनकी भी छुट्टी होती है.

ये भी पढ़ें- जानें कैसे धोएं महंगे कपड़े

अपरेंटिसशिप छह महीने से लेकर चार साल तक के लिए होती है.अलग अलग संस्थानों में,इसके अलग अलग नियम हैं. मगर आमतौर पर रेलवे, स्टील ऑथोरिटी आफ इंडिया[सेल] भारत हैवी इलेक्ट्रिक्ल लिमिटेड(भेल), जैसे संस्थानों में तीन से चार साल तक की अपरेंटिसशिप ट्रेनिंग होती है.इस ट्रेनिंग कार्यक्रम में प्रवेश पाने के लिए भी यूं तो बहुत मारामारी है,लेकिन अगर आप सेलेक्ट हो गए हैं तो समझिये अब नौकरी मिलनी की गारंटी है.

दरअसल कोई भी कंपनी अकुशल कामगार चुनेगी ही नहीं यदि यदि विकल्प के रूप में उसके सामने कुशल कामगार मौजूद होंगे.अपरेंटिसशिप करने के बहुत फायदे हैं.एक तो सही मायनों में एक सामान्य व्यक्ति उस काम विशेष की कुशलता हासिल कर लेता है, चार साल की इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के बाद भी जो इंजीनियर नहीं हासिल कर पाता. क्योंकि भारत में कितने अच्छे तकनीकी संस्थान हों हर जगह प्रैक्टिकल की सुविधा वैसी है ही नहीं जैसी होनी चाहिए.लेकिन अपरेंटिसशिप में बिलकुल परफेक्ट ट्रेनिंग होती है.

इसीलिये अपरेंटिसशिप के बाद नौकरी मिलनी  लगभग गारंटीड होती है.भले अपरेंटिसशिप के दौरान इसका कोई लिखित आश्वासन न दिया जाता हो.लेकिन रेलवे करीब करीब 100 फीसदी अपने अपरेंटिस को अपने यहां नौकरी में रख लेता है.यही बात अपरेंटिसशिप कराने वाले दूसरे संस्थानों में भी लागू होती है.लेकिन यह जरूरी नहीं है कि आप जहां अपरेंटिस करें वहीं परमानेंट नौकरी करें.यह आपकी मर्जी है. दूसरे अनगिनत प्राइवेट संस्थान भी अपरेंटिसशिप किये लोगों को भागकर नौकरी देते हैं.अपरेंटिस किये लोगों को हमेशा तमाम संस्थान अपने दरवाजे खोलकर रखते हैं.

ये भी पढ़ें- Summer Special: नेचर का लेना है मजा, तो केरल है बेस्ट औप्शन

अपरेंटिसशिप का एक फायदा यह है कि आप काम तो सीखते ही हैं, इस दौरान नियमित तौरपर हर महीने एक वेतन भी मिलता है, जो आमतौर पर 5000 रुपये से ऊपर और 9 से 10 हजार रुपये प्रतिमाह तक होता है. कई जगहों पर कुछ ज्यादा भी मिलता है. कहने का मतलब यह है कि अपरेंटिसशिप एक ऐसा सुनहरा मौका होता है, जो आपको किसी क्षेत्र विशेष का प्रैक्टिकल नाॅलेज तो देता ही है, इस दौरान के काम के पैसे भी देता है और भविष्य की स्थायी नौकरी के लिए एक मुकम्मिल गारंटी भी इससे मिलती है.आपने अकसर देखा होगा कि कई कंपनियां किसी फ्रेशर को नौकरी देती ही नहीं है.वास्तव में वह इन्हीं अप्रेंटिसों की बदौलत बिना फ्रेशर को नौकरी दिये अपनी जरूरत पूरी कर लेती हैं. क्योंकि हर साल लाखों की तादाद में अपरेंटिस खत्म करने वाले युवा भी नौकरी पाने वालों की होड में होते हैं जाहिर है,उन्हें सबसे पहली प्राथमिकता दी जाती है. तो उम्मीद है आपने अपरेंटिसशिप के फायदे अच्छी तरह से समझ लिए होंगे.

लॉकडाउन में अगर आपकी भी नौकरी चली गई है…तो फिर से पाने की ऐसे करें कोशिश

यह दोहराने की जरूरत नहीं है कि कोरोना वायरस के चलते दो महीने से ज्यादा समय तक रहे लॉकडाउन में हिंदुस्तान के करोड़ों लोगों की नौकरियां चली गई हैं. लेकिन यह अकेले हिंदुस्तान में ही नहीं हुआ. पूरी दुनिया बेरोजगारी के इस महासंकट से गुजर रही है. इसलिए आखिर कब तक हम इस बात का रोना रोते रहेंगे कि काश! कोरोना न आया होता (..और याद रखिए अभी ये गया नहीं,उल्टे बढ़ रहा है) तो ये होता, तो वो होता.

अब हमें इन रोनों गानों को पीछे छोड़कर आगे बढ़ना चाहिए. क्योंकि कोरोना अभी तक किस्सा नहीं हुआ और कब होगा ये बात कोई भी दावे से नहीं कह सकता. अतः अब जरूरी है कि हम अपने उन तमाम कौशलों को इकट्ठा करें कि ऐसे संकटकाल में नौकरी कैसे और कहां पायी जा सकती है.

इसमें कोई दो राय नहीं है कि जहां कोरोना की विभीषिका ने बहुत सारे क्षेत्रों में रोजगार के लिहाज से भयानक कहर ढाया है. मसलन- टूरिज्म, हाॅस्पिटैलिटी, फैशन, इंटरटेनमेंट आदि. वहीं कोरोना संकट के चलते कई क्षेत्रों में रोजगार की बढ़ोत्तरी भी हुई है. मसलन- हेल्थ केयर, हेल्थ टेक्नोलाॅजी, नियो बैंकिंग, फार्मा सेक्टर तथा पैक्ड ग्रोसरी इंडस्ट्रीज. करीब 70 दिन हिंदुस्तान पूरी तरह से लॉकडाउन में रहा है और अभी भी सीमित अर्थों में देश के दो तिहाई हिस्सों में लॉकडाउन लागू है. जाहिर है इन दिनों ज्यादातर काम लोगों ने अपने घरों से किया है. इसलिए अगर कहा जाए कि हिंदुस्तान में कोरोना के चलते एक झटके में वर्क फ्राम होम की कल्चर आ गई है तो इसमें कतई अतिश्योक्ति नहीं होगी.

ये भी पढ़ें- 1 जून से बदले पुराने नियम, राशन कार्ड और एलपीजी समेत इन 6 चीजों में होगा बदलाव

एक अनुमान के मुताबिक पिछले ढाई महीनों में अगर बड़े पैमाने पर वर्क फ्राम होम नहीं हुआ होता तो करीब 80,000 करोड़ रुपये का अर्थव्यवस्था को और नुकसान हुआ होता. अगर यही कोरोना संकट आज के 30 साल पहले आया होता, जब देश में वर्क फ्राम होम का चलन नहीं था, तो आर्थिक हालात आज से कहीं ज्यादा बिगड़े होते.

कहने की बात यह है कि अब वर्क फ्राम होम हमारी वर्किंग कल्चर से नहीं जाने वाला. इसलिए अगर अब तक आपको वर्क फ्राम होम करने में रूचि नहीं रही या आप इसमें दक्ष नहीं रहे तो अब अपनी ऐसी मर्जी या कमी को आगे मत बढ़ने दीजिए. तुरंत घर से काम करने की कुशलता हासिल करिये और उससे भी ज्यादा जरूरी यह है कि अगर घर से काम करने के लिए जरूरी सुविधा आपके पास नहीं है यानी घर में डेस्कटौप या लैपटौप नहीं है, 4जी का मोबाइल नहीं है और ब्राड बैंड कनेक्शन नहीं है तो मान लीजिए आप बहुत पिछड़े हुए हैं, जितना जल्दी हो सके इन सुविधाओं को हासिल करिये, जिससे घर में काम करने की स्थितियां बन सकें. चूंकि इस समय देश ही नहीं पूरी दुनिया में बड़े पैमाने पर लोग बेरोजगार हैं, इसलिए लॉकडाउन के बाद अनलौक हुए टाइम में अगर नौकरी चाहिए तो कई तरह की कोशिशें एक साथ करनी होगीं. मसलन-

– सबसे पहले तो अपने तमाम संपर्कों में यह जानने की कोशिश करिये कि क्या कहीं कोई ऐसी नौकरी है, जिसे आप कर सकते हैं? जान पहचान की जगहों में इस समय नौकरी ढूंढ़ने को इसलिए प्राथमिकता देनी चाहिए; क्योंकि नौकरियां कम है और चाहने वाले बहुत बहुत ज्यादा हैं. ऐसे में अजनबी लोगों से ज्यादा जान पहचान वालों को नौकरी मिलने की उम्मीद रहेगी.

– जहां पहले काम कर चुके हैं और वहां कोई जगह खाली है, यदि यह बात आपको पता है तो बिना देर किये इसके लिए आवेदन कर दीजिए और व्यक्तिगत रूप से जाकर मिल भी लीजिए. क्योंकि उन्हें भी आपको नौकरी देने में सहूलियत रहेगी.

– भले दिन रात अखबारों और दूसरी मीडिया में आपको यह पढ़ने, सुनने और देखने में मिल रहा हो कि नौकरियों का बहुत अभाव है, कहीं नौकरियां नहीं बचीं, बावजूद इसके आप अपनी तरफ से नौकरी ढूंढ़ने की कोशिश न बंद करें. कई बार सुनी, देखी और पढ़ी बातों से हकीकत बिल्कुल भिन्न होती है.

– चूंकि इन दिनों नौकरियों की जरूरत ही नहीं, नौकरी ढूंढ़ने के तौर तरीके और इसके लिए मिलने जुलने की पारंपरिक तरीके में काफी बदलाव आ गये हैं. इसलिए बहुत संभव है कि आपको बजाय नियोक्ता के सामने बैठकर वीडियो इंटरव्यू देना पड़े. इसलिए जितना जल्दी हो सके, इन नयी तकनीकों से खुद को लैस कर लें. क्योंकि बिना नयी तकनीक की जानकारी के अब काम मिलना बहुत मुश्किल होगा.

ये  भी पढ़ें- लॉक डाउन के बाद कैसे बनाये लाइफ फिट 

– यूं तो हमेशा उसी क्षेत्र में नौकरी को प्राथमिकता देनी चाहिए, जिस क्षेत्र की आपको जानकारी हो, जिस क्षेत्र में आपकी विशेषज्ञता हो या जिस क्षेत्र की आप बुनियादी कुशलता रखते हों. लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं कि नौकरी के अकाल में भी इस तरह की रिजिडिटी दिखाएं. अगर नौकरी नहीं मिल रही और यह हमारे अस्तित्व के लिए संकट बन रही है तो अपने ही क्षेत्र के अन्य विभागों में भी नौकरी की जा सकती है. यही नहीं अगर किसी खास तकनीकी दक्षता का सवाल नहीं है तो बिल्कुल अलग क्षेत्र में भी नौकरी की जा सकती है, जिस क्षेत्र की अभी तक आपको एबीसीडी तक का पता न हो. अगर ऐसी स्थिति हो तो निःसंकोच आगे बढ़ें.

औरतों को कम सैलरी वाली नौकरी भी करने को रहना चाहिए तैयार

प्रिया ने हिंदी में एम ए के साथ कंप्यूटर कोर्स भी किया हुआ था. शादी से पहले वह पास के एक एक्सपोर्ट कंपनी में कंप्यूटर ऑपरेटर का काम करती थी. बाद में जब उस की शादी हुई तो काम छूट गया. दोनों बेबी के बाद वह 7- 8 साल बच्चों में बिजी रही. इस बीच उस ने जौब करने की बात सोची भी नहीं थी. पर इधर कुछ दिनों से वह बच्चों के स्कूल जाने के बाद पूरे दिन घर में रहरह कर बोर होने लगी थी. उस ने घर में चर्चा की कि वह दोबारा जौब जौइन करना चाहती है. उस ने एकदो जगह इंटरव्यू भी दिए मगर 10 -15 हजार से ज्यादा सैलरी की बात नहीं हो पाई.

सास ने जब इतनी कम सैलरी की बात सुनी तो साफ इंकार करते हुए कहा,” तेरे 10 -15 हजार से हमारा कुछ नहीं होने वाला. घर में बहुत काम होते हैं उन्हें करो.”

एक दो साल ऐसे ही बीत गए. इस बीच उस के पति का एक्सीडेंट हो गया और वह बेड पर आ गया. दोतीन महीने में ही घर की आर्थिक स्थिति डगमगाने लगी. ऐसे में प्रिया ने हिम्मत दिखाई और फिर से 2 -3 जगह जौब इंटरव्यू देने चली गई. इस बार भी उसे 20- 22 हजार से ज्यादा ऑफर नहीं हुए मगर इस बार इतने रुपए भी उसे और घरवालों को काफी ज्यादा लग रहे थे. वैसे भी डूबते को तिनके का सहारा ही काफी होता है. सास ने भी प्रिया को यह जौब कर लेने की अनुमति देने में वक्त नहीं लगाया.

प्रिया की जौब के सहारे कठिन समय गुजर गया. कुछ महीनों में प्रिया का पति भी वापस काम पर लौट गया मगर प्रिया ने जौब नहीं छोड़ी. उस के साथसाथ घर में भी सब को यह बात समझ में आ गई थी कि सैलरी कम हो या ज्यादा, घर में एडिशनल इनकम आ रही है तो उसे कभी रोकना नहीं चाहिए.

महिलाओं को कम वेतन वाली नौकरी भी करने को तैयार रहना चाहिए. इस से महिलाएं न सिर्फ घरपरिवार को आर्थिक सहयोग दे सकती हैं बल्कि यह उन के व्यक्तित्व के विकास और मानसिक सेहत के लिए भी फायदे का सौदा है,

ये भी पढ़ें- 5 TIPS: मेरा नाम करेगा रोशन जग में मेरा राजदुलारा

1. आत्मनिर्भर जीवन

स्वाबलंबी जीवन जीने के लिए हाथ में पैसे होने जरूरी होते हैं. आप के अंदर इतनी कूबत होनी चाहिए कि जरूरत पड़ने पर दूसरों से मदद लिए बगैर भी अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकें. पैसा आप को आत्मनिर्भर बनाता है. आप दूसरों पर निर्भर नहीं रहतीं. कम सैलरी वाली नौकरी होने से भले ही आप के पास बहुत ज्यादा बैंकबैलेंस नहीं होगा पर इतने रुपए जरूर होंगे कि अपने खर्चे बहुत आराम से निकाल सकें. आत्मनिर्भर होने के लिए इतना ही काफी है.

2. जो मिल रहा है उसे लेने में ही समझदारी

कई बार हम बहुत ज्यादा की आस में जो मिल रहा है वह भी गँवा बैठते हैं. समझदारी इसी में है कि अवसर को आगे से पकड़ें. संभव है कि जो मिल रहा था आप वह भी खो दें और बाद में इस बात को ले कर पछताएं. याद रखें एक स्त्री होने के नाते आप के ऑप्शंस काफी कम हो जाते हैं. आप को कई दफा परिस्थितियों से समझौते करने पड़ते हैं. बहुत सी नौकरियां ऐसी हैं जिन के लिए एक लड़की को घरवाले स्वीकृति नहीं देते तो कई बार घरेलू कारणों से वह जौब इंटरव्यूज अटैंड नहीं कर पाती. कई बार महिलाएं अधिक ऊंची पढ़ाई नहीं कर पातीं. ऐसे में यह सोच कर साधारण या कम सैलरी वाली नौकरियां छोड़ देना कि यह मेरी योग्यता के अनुरूप नहीं, गलत है.

यदि आप को किसी ऐसे ऑर्गेनाइजेशन में कम सैलरी की जौब ऑफर होती है जो आप को सूट करता है तो सैलरी की चिंता कतई न करें. क्योंकि बाद में आप की योग्यता और परफॉर्मेंस देख कर वैसे भी सैलरी बढ़ा दी जाती है और फिर मन का काम और जीवन में सुकून का होना ज्यादा जरूरी है भले ही सैलरी कुछ कम ही क्यों न हो.

3. किसी का धौंस नहीं सहना पड़ता

शादीशुदा महिलाओं को अक्सर पैसों के लिए अपने इनलॉज़ या पति की धौंस सहनी पड़ती है. वे यह शो करते हैं जैसे उन का खर्चा चला कर वे बहुत बड़ा अहसान कर रहे हैं. जबकि ऐसा है नहीं. औरतें पूरे दिन घर का काम करती हैं फिर भी उन के काम को कोई मानदेय नहीं मिलता. ऐसे में जरूरी है कि आप जौब कर रुपए कमाए ताकि अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए आप को किसी का मुंह न देखना पड़े.

4. रास्ता खुला रहता है

सैलरी कम हो या ज्यादा मगर एक बार जब आप जौब करना शुरू कर देती हैं तो आप के लिए आगे का रास्ता खुल जाता है. घरवालों को भी आदत हो जाती है कि आप जौब पर जाएंगी तो पीछे से घर में सब एडजस्ट कैसे करना है यह सीख जाते हैं. जौब के दौरान आप को दूसरे अवसरों की सूचनाएं मिलती रहती हैं. आप विवेकपूर्ण निर्णय ले पाती हैं. उस संस्था में भी यदि अच्छा काम कर के दिखाती हैं तो आप को जल्दी तरक्की मिल जाती है.

5. लोगों से मिलना भी जरूरी

आप जब जौब करती हैं तो 10 लोगों से मिलनाजुलना होता है. आप का एक सर्कल बन जाता है. सामाजिक दायरा बढ़ता है. नईनई बातें जानने को मिलती हैं, दिमाग खुलता है वरना घर में बैठेबैठे आप की सोच केवल एक ही दिशा तक सीमित रह जाती है. इसलिए जब भी मौका मिले बाहर निकलें, जौब करें. सैलरी से संतुष्ट नहीं हैं तो काम के साथ ही नई जौब भी तलाश कर सकती हैं.

ये भी पढे़ं- डिशवौशर खरीदने से पहले जान लें फायदे और नुकसान

6. आत्मविश्वास बढ़ता है

आप की सैलरी कम हो या ज्यादा मगर जब आप जौब करती हैं तो आप के अंदर एक अलग सा आत्मविश्वास पैदा होता है. आप के पहननेओढ़ने, चलनेफिरने, संवरने, बोलने आदि का ढंग बदल जाता है. आप हर मामले में अपटूडेट रहने लगती हैं. आप को दूसरों के आगे खुद को साबित करने का मौका मिलता है. इस से पर्सनैलिटी में काफी सकारात्मक बदलाव आते हैं.

7. पति को सहयोग

कई बार घर की आर्थिक स्थिति सही नहीं होती. पति सीमित सैलरी में मुश्किल से घर चला रहे होते हैं तो ऐसे में उन का हाथ बंधा होता है. घर के खर्चे निपटाने की बात ले कर अक्सर मियांबीवी में झगड़े होने लगते हैं. घर में तनाव बढ़ता है. इस स्थिति से बचने के लिए आप का नौकरी करना जरूरी हो जाता है. भले ही आप ज्यादा नहीं कमा रही हों मगर पति को आप की तरफ से थोड़ा सा भी आर्थिक सहयोग मिल जाए तो परिस्थितियां बदल जाती हैं. रिश्ते में प्यार बढ़ता है.

8. कम जिम्मेदारियां

जब आप की सैलरी कम होगी तो जाहिर है आप की जिम्मेदारियां भी कम होंगी. किसी भी संस्थान में जिम्मेदारियों के हिसाब से ही सैलरी तय की जाती है. ज्यादा जिम्मेदारी वाला पद लेकर भी यदि अपने घरेलू दायित्वों के कारण आप संस्थान से जुड़ी अपनी जिम्मेदारियों के साथ न्याय नहीं कर पा रही तो आप को बहुत टेंशन रहेगा. आप न ठीक से घर और बच्चों को संभाल पाएंगी और न ऑफिस के काम. ऐसे में क्या यह बेहतर नहीं कि आप हल्कीफुल्की जौब करते हुए घर भी देखती रहें और ऑफिस भी.

यही नहीं जब आप पूरे दिन घर में होती हैं तो आप को ज्यादा से ज्यादा घरेलू जिम्मेदारियां सौंप दी जाती हैं. पर जब आप ऑफिस जाएंगी तो आप का मन भी बदलेगा, हाथ में पैसे भी आएंगे और दिन भर घर की जिम्मेदारियों से भी आजादी भी मिलेगी. घर में सास ननद बगैरह आप के काफी काम निपटा कर रखेंगी. सास नहीं हैं तो आप अपने पैसों से मेड भी रख सकती हैं.

9. जौब छोड़ना पड़े तो भी अफसोस नहीं होगा

औरतों की जिंदगी में कई बार ऐसे मौके आते हैं जब उन्हें काम से लंबा ब्रेक लेना पड़ता है. मसलन बच्चे की पैदाइश के समय या जब बच्चे छोटे हों, घर में कोई बीमार हो या फिर किसी और तरह की परेशानी में उन्हें मजबूरन जौब छोड़नी पड़ती है. जरा सोचिए यदि आप अच्छीखासी सैलरी उठा रही हों तो क्या आप का अचानक जौब छोड़ना इतना आसान हो सकेगा? तब तो आप इसी कन्फ्यूजन में रही आएंगी कि ऑफिस देखूं या घर. मगर यदि आप की सैलरी बहुत साधारण है तो आप बिना ज्यादा सोचे भी ऑफिस की जिम्मेदारियों को गुड़बाय कह सकेंगी.

ये भी पढ़ें- बेडशीट खरीदतें समय रखें इन 5 बातों का ध्यान

डाक्टर के बजाय चपरासी क्यों बनना चाहते हैं युवा

2017 में मध्य प्रदेश और 2018 में उत्तर प्रदेश के बाद इस साल खबर गुजरात से आई है कि गुजरात हाईकोर्ट और निचली अदालतों में वर्ग-4 यानी चपरासी की नौकरी के लिए 7 डाक्टर और 450 इंजीनियरों सहित 543 ग्रेजुएट और 119 पोस्टग्रेजुएट चुने गए. इस खबर के आते ही पहली आम प्रतिक्रिया यह हुई कि क्या जमाना आ गया है जो खासे पढ़ेलिखे युवा, जिन में डाक्टर भी शामिल हैं, चपरासी जैसी छोटी नौकरी करने के लिए मजबूर हो चले हैं. यह तो निहायत ही शर्म की बात है.

गौरतलब है कि चपरासी के पदों के लिए कोई 45 हजार ग्रेजुएट्स सहित 5,727 पोस्टग्रेजुएट और बीई पास लगभग 5 हजार युवाओं ने भी आवेदन दिया था. निश्चितरूप से यह गैरमामूली आंकड़ा है, लेकिन सोचने वालों ने एकतरफा सोचा कि देश की और शिक्षा व्यवस्था की हालत इतनी बुरी हो चली है कि कल तक चपरासी की जिस पोस्ट के लिए 5वीं, 8वीं और 10वीं पास युवा ही आवेदन देते थे, अब उस के लिए उच्चशिक्षित युवा भी शर्मोलिहाज छोड़ कर यह छोटी नौकरी करने को तैयार हैं. सो, ऐसी पढ़ाईलिखाई का फायदा क्या.

शर्म की असल वजह

जाने क्यों लोगों ने यह नहीं सोचा कि जो 7 डाक्टर इस पोस्ट के लिए चुने गए उन्होंने डाक्टरी करना गवारा क्यों नहीं किया. वे चाहते तो किसी भी कसबे या गांव में क्लीनिक या डिस्पैंसरी खोल कर प्रैक्टिस शुरू कर सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया. इसी तरह इंजीनियरों के लिए भी प्राइवेट कंपनियों में 20-25 हजार रुपए महीने वाली नौकरियों का टोटा बेरोजगारी बढ़ने के बाद भी नहीं है, लेकिन उन्होंने सरकारी चपरासी बनना मंजूर किया तो बजाय शिक्षा व्यवस्था और शिक्षा के गिरते स्तर को कोसने के, इन युवाओं की मानसिकता पर भी विचार किया जाना चाहिए.

ये भी पढ़ें- वीगन मूवमैंट से बचेगी धरती

दरअसल, बात शर्म की इस लिहाज से है कि इन उच्चशिक्षित युवाओं ने अपनी सहूलियत और सरकारी नौकरी के फायदे देखे कि यह नौकरी गारंटेड है जिस में एक बार घुस जाने के बाद आसानी से उन्हें निकाला नहीं जा सकता. तनख्वाह भी ठीकठाक है और ट्रांसफर का भी ?ां?ाट नहीं है. अलावा इस के, सरकारी नौकरी में मौज ही मौज है जिस में पैसे काम करने के कम, काम न करने के ज्यादा मिलते हैं. रिटायरमैंट के बाद खासी पैंशन भी मिलती है और छुट्टियों की भी कोई कमी नहीं रहती. घूस की तो सरकारी नौकरी में जैसे बरसात होती है और इतनी होती है कि चपरासी भी करोड़पति बन जाता है.

इन युवाओं ने यह भी नहीं सोचा कि उन के हाथ में तकनीकी डिगरी है और अपनी शिक्षा का इस्तेमाल वे किसी भी जरिए से देश की तरक्की के लिए कर सकते हैं. निश्चित रूप से इन युवाओं में स्वाभिमान नाम की कोई चीज या जज्बा नहीं है जो उन्होंने सदस्यों को चायपानी देने वाली, फाइलें ढोने वाली और झाड़ू पोंछा करने वाली नौकरी चुनी.

देश में खासे पढ़ेलिखे युवाओं की भरमार है लेकिन डिगरी के बाद वे कहते क्या हैं, इस पर गौर किया जाना भी जरूरी है. इन्फौर्मेशन टैक्नोलौजी के इस युग में करोड़ों युवा प्राइवेट कंपनियों में कम पगार पर नौकरी कर रहे हैं जो कतई शर्म की बात नहीं क्योंकि वे युवा दिनरात मेहनत कर अभावों में रह कर कुछ करगुजरने का जज्बा रखते हैं और जैसेतैसे खुद का स्वाभिमान व अस्तित्व दोनों बनाए हुए हैं.

ऐसा नहीं है कि उन युवाओं ने एक बेहतर जिंदगी के ख्वाब नहीं बुने होंगे लेकिन उन्हें कतई सरकारी नौकरी न मिलने का गिलाशिकवा नहीं. उलटे, इस बात का फख्र है कि वे कंपनियों के जरिए देश के लिए कुछ कर रहे हैं.

इस बारे में इस प्रतिनिधि ने भोपाल के कुछ युवाओं से चर्चा की तो हैरत वाली बात यह सामने आई कि मध्य प्रदेश के लाखों युवाओं ने चपरासी तो दूर, शिक्षक, क्लर्क और पटवारी जैसी मलाईदार सरकारी नौकरियों के लिए आवेदन ही नहीं किया. उन के मुताबिक, इस से उन की पढ़ाई का मकसद पूरा नहीं हो रहा था.

एक नामी आईटी कंपनी में मुंबई में नौकरी कर रही 26 वर्षीय गुंजन का कहना है कि उस के मातापिता चाहते थे कि वह भोपाल के आसपास के किसी गांव में संविदा शिक्षक बन जाए. लेकिन गुंजन का सपना कंप्यूटर साइंस में कुछ करगुजरने का था, इसलिए उस ने विनम्रतापूर्वक मम्मीपापा को दिल की बात बता दी कि अगर यही करना था तो बीटैक में लाखों रुपए क्यों खर्च किए, बीए ही कर लेने देते.

यही रोना भोपाल के अभिषेक का है कि पापा चाहते थे कि वह एमटैक करने के बाद कोई छोटीमोटी सरकारी नौकरी कर ले जिस से घर के आसपास भी रहे और फोकट की तनख्वाह भी मिलती रहे. लेकिन उन की बात न मानते हुए अभिषेक ने प्राइवेट सैक्टर चुना और अब नोएडा स्थित एक नामी सौफ्टवेयर कंपनी में अच्छे पद और पगार पर काम कर रहा है.

गुंजन और अभिषेक के पास भले ही सरकारी नौकरी न हो लेकिन एक संतुष्टि जरूर है कि वे ऐसी जगह काम कर रहे हैं जहां नौकरी में मेहनत करनी पड़ती है और उन का किया देश की तरक्की में मददगार साबित होता है. सरकारी नौकरी मिल भी जाती तो उस में सिवा कुरसी तोड़ने और चापलूसी करने के कुछ और नहीं होता.

लेकिन इन का क्या

गुजरात की खबर पढ़ कर जिन लोगों को अफसोस हुआ था उन्हें यह सम?ाना बहुत जरूरी है कि गुजरात के 7 डाक्टर्स और हजारों इंजीनियर्स के निकम्मेपन और बेवकूफी पर शर्म करनी चाहिए.

इन लोगों ने मलाईदार रास्ता चुना जिस में अपार सुविधाएं और मुफ्त का पैसा ज्यादा है. घूस भी है और काम कुछ करना नहीं है. डाक्टर्स चाहते तो बहुत कम लागत में प्रैक्टिस शुरू कर सकते थे, इस से उन्हें अच्छाखासा पैसा भी मिलता और मरीजों को सहूलियत भी रहती. देश डाक्टरों की कमी से जू?ा रहा है गांवदेहातों के लोग चिकित्सकों के अभाव में बीमारियों से मारे जा रहे हैं और हमारे होनहार युवा डाक्टर सरकारी चपरासी बनने को प्राथमिकता दे रहे हैं.

ये भी पढ़ें- ज़रा याद करो कुर्बानी

क्यों इन युवाओं ने किसी प्राइवेट कंपनी में चपरासी की नौकरी स्वीकार नहीं कर ली, इस सवाल का जवाब बेहद साफ है कि इन की मंशा मोटी पगार वाली सरकारी चपरासी की नौकरी करने की थी. यही बात इंजीनियरों पर लागू होती है जिन्हें किसी बड़े शहर में 30-40 हजार रुपए महीने की नौकरी भार लगती है, इसलिए ये लोग इतनी ही सैलरी वाली सरकारी चपरासी वाली नौकरी करने के लिए तैयार हो गए. हर साल इन्क्रिमैंट और साल में 2 बार महंगाईभत्ता सरकारी नौकरी में मिलता ही है जिस से चपरासियों को भी रिटायर होतेहोते 70 हजार रुपए प्रतिमाह तक सैलरी मिलने लगती है.

गुंजन और अभिषेक जैसे देशभर के लाखों युवाओं के मुकाबले ये युवा वाकई किसी काम के नहीं, इसलिए ये सरकारी चपरासी पद के लिए ही उपयुक्त थे. इन्हीं युवाओं की वजह से देश पिछड़ रहा है जो अच्छी डिगरी ले कर कपप्लेट धोने को तैयार हैं लेकिन किसी प्रोजैक्ट इनोवेशन या नया क्रिएटिव कुछ करने के नाम पर इन के हाथपैर कांपने लगते हैं, क्योंकि ये काम और मेहनत करना ही नहीं चाहते.  इस लिहाज से तो बात वाकई शर्म की है.

क्या आप के बौस अकड़ू हैं?

एक खड़ूस व अकडू बौस का मजाक बनाना आसान है, लेकिन जब आप को ऐसे बौस का सामना करना पड़ता है तो बहुत सी तकलीफें उठानी पड़ती हैं. ऐसे बौस हरेक संस्था में एक न एक मिल ही जाते हैं. सो, उन्हें खुश रखने के लिए आप को कुछ नई आदतें बनानी पड़ेंगी, तो वहीं, अपनी कुछ हरकतों को सुधारना भी पड़ेगा.

आंकड़ों की मानें, तो अंडरट्रेंड बौस लगभग हर जगह पाए जाते हैं. उन्हें ज्यादा अनुभव न होने के कारण यह नहीं पता होता है कि अपने एम्पलौइज के साथ कैसे पेश आएं. सो, वे बहुत ज्यादा सख्ती से काम लेते हैं, जिस की वजह से पूरी संस्था के लोग परेशान हो जाते हैं. ऐसे बौस को खुश रखने के लिए क्याक्या करना चाहिए और क्याक्या नहीं करना चाहिए, यहां जानते हैं.

क्या-क्या करें :

● हर स्थिति में एक प्रोफैशनल की तरह व्यवहार करें, न कि किसी नौसिखिए की तरह.
● अपने लिए एक मैंटर अथवा गुरु का चयन करें जोकि आप को हर स्थिति के लिए तैयार कर सके और आप को हर काम करने में दिशा दे सके. आप अपने किसी सीनियर को अपना मैंटर चुन सकते हैं.
● जब भी आप कोई नया काम या किसी नए प्रोजैक्ट की शुरुआत करने जा रहे हों तो एक बार अपने बौस के साथ मीटिंग अवश्य कर लें, ताकि कल को अगर आप के प्रोजैक्ट के अच्छे नतीजे न मिलें, तो वे आप को इस बात के लिए न डांट सकें कि आप ने उन्हें इस प्रोजैक्ट के बारे में कोई अपडेट नहीं दिया.

ये भी पढ़ें- कैसे चुनें सही ब्रा

● अपनी फ्रस्ट्रेशन या गुस्सा औफिस के बजाय किसी बाहरी स्थान पर निकाल दें वरना आप के इस स्वभाव के कारण भी आप के खड़ूस बौस आप को अपना निशाना बना सकते हैं.
● यदि आप के डिपार्टमैंट के बौस बहुत ज्यादा अकडू व खड़ूस हैं तो किसी ऐसे मौके की तलाश में रहें जहां आप को किसी अन्य डिपार्टमैंट में स्थानांतरित किया जा सके.
● अपना व अपने बाहर के दोस्तों का जाल बना लें ताकि यदि इस कंपनी से अच्छी जौब कोई और कंपनी दे रही हो तो आप वहां जा सकें और खड़ूस बौस से छुटकारा पा सकें.
● हर समय अपना रिज्यूमे अपडेट कर के तैयार रखें ताकि आप किसी बेहतर नौकरी पाने का कोई भी मौका गंवा न सकें.
● अपने पहले के व अब के प्रदर्शन की तुलना करें और हर समय अच्छा ही करने की कोशिश करें.
● अपनी हरेक उपलब्धि को नोट करें, ताकि आप को भविष्य में अच्छी नौकरी पाने में मदद मिल सके.

क्या न करें :

● अपनी जौब वैल्यू पर किसी तरह का समझौता न करें.
● बौस के व्यवहार की किसी के आगे चुगली न करें खासकर अपने औफिस के किसी जानकार के सामने.
● बौस से एक रात में बदलने की उम्मीद न रखें.
● साथी कर्मचारियों से बौस के बारे में कुछ न कहें.
● यह न सोचें कि आप अकेले एक अकडू बौस का सामना कर रहे हैं.
● नौकरी के लिए अपने आत्मसम्मान को दांव पर न लगाएं.
● बौस को अपना कैरियर बरबाद न करने दें.

ये भी पढ़ें- कांटों भरी ग्लैमर की डगर

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें