अगर दोस्ती नहीं खोना चाहते तो भूलकर भी अपने यहां दोस्त को न लगवाएं नौकरी

कई महीनों की अथक मेहनत के बाद रवि शंकर जिस वेब पोर्टल में काम कर रहे थे, वह चल निकला था. अब पोर्टल को ठीकठाक विज्ञापन मिलने लगे थे और ज्यादा से ज्यादा तथा अच्छे कंटेंट की मांग भी होने लगी थी. ऐसे में एक दिन रवि को उनके एडिटर ने अपने केबिन में बुलाया और बोले-

‘रवि तुम्हारी नजर में कोई ठीकठाक कंटेंट राइटर हो तो उसे बुलाओ. अपने को एक दो और कंटेंट राइटर चाहिए होंगे.’

रवि संपादक जी के कहने पर एक मिनट को कुछ सोचने लगा और फिर बोला-

‘सर, मेरे एक दोस्त हैं, एक अखबार में फीचर पेज देखते थे. अच्छा लिख लेते हैं. कई विषयों पर पकड़ है और अनुभवी भी हैं. लेकिन…’

‘लेकिन क्या?’

संपादक जी ने रवि के इस तरह चुप हो जाने पर पूछा. इस पर रवि ने कहा-

‘सर, वो तनख्वाह थोड़ी ज्यादा मांगेंगे.’

अगर तुम कह रहे हों कि वह योग्य हैं और कई विषयों पर लिख लेते हैं तो तनख्वाह थोड़ी ज्यादा दे देंगे. आखिर काम भी अच्छा होगा.

‘हां, सर ये तो है.’

‘तो फिर उन्हें बुला लो.’

‘ठीक है सर, कब बुला लूं.’

‘कल बुला लो.’

‘ओके’

यह कहकर रवि अपनी वर्किंग डेस्क पर आ गया और वहीं से ललित वत्स को फोन किया और बोला, ‘कल मेरे दफ्तर आ जाओ, हमें एक सीनियर कंटेंट राइटर की जरूरत है. मेरी बाॅस से बात हो चुकी है, शायद तुम्हारा काम हो जायेगा.’ ललित ने अपने पुराने दोस्त रवि का धन्यवाद किया और अगले दिन दोपहर में वह उसके दफ्तर मंे पहुंच गया. ललित का व्यक्तित्व प्रभावशाली था, विषयों की समझ ठीक थी और उन्हें व्यक्त करने का तरीका भी वह अच्छा जानता था. कुल मिलाकर पहली मुलाकात में ही रवि के संपादक जी उससे प्रभावित हुए और तीसरे दिन से रवि व ललित सहकर्मी हो चुके थे.

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जैसा कि रवि को आभास भी था, जल्द ही ललित के काम करने की प्रभावशाली शैली तथा अच्छी जानकारियों के चलते वह दफ्तर में ‘नेक्स्ट टू बाॅस’ हो गया. रवि को हालांकि इससे कोई खास दिक्कत नहीं थी, फिर भी थोड़ी ईष्र्या तो होती ही है. शायद वह इस ईष्र्या को भी दबा लेता, लेकिन दफ्तर में दूसरे नंबर की हैसियत में आते ही ललित ने अपने पुराने दोस्त को न सिर्फ यह जताने की कोशिश की कि दफ्तर में वह उसके मातहत है बल्कि उसके काम पर अकसर मीनमेख निकालने लगा. हद तो तब हो गई, जब वह उस छोटे से दफ्तर में सार्वजनिक रूप से रवि के लिखने के ढंग की ही आलोचना नहीं करने लगा बल्कि एक दो बार तो सबके सामने ही उसकी स्टोरी को इस तरह रिजेक्ट कर दिया, जैसे वह अभी ट्रेनी राइटर हो. जल्द ही रवि के लिए दफ्तर में स्थितियां इतनी बुरी हो गईं कि उसे नौकरी छोड़नी पड़ी. दरअसल अब बाॅस को भी लगने लगा था कि ललित न सिर्फ बेहतर लेखक है बल्कि वह अच्छी तरह से आॅफिस भी संभाल सकता है तो उन्होंने रवि के जाने की परवाह नहीं की.

एच आर विशेषज्ञ कहते हैं कि अपने किसी दोस्त को अपने यहां नौकरी देकर परेशानी मोल नहीं लेनी चाहिए. अगर आपके हाथ में हो तो किसी अजनबी को भले अपने दफ्तर में साथ काम करने का मौका दे दें, लेकिन दोस्त को न दें. क्योंकि अजनबी को संभालना भी आसान होता है और निकलना तो और भी ज्यादा आसान होता है. चाहे आप बाॅस हों या फिर एक साधारण कर्मचारी अपने कार्यस्थल में किसी पुराने दोस्त के साथ होना हमेशा नुकसानदेह होता है. खासकर तब, जब दोस्त ईष्र्यालु हो, कार्यस्थल के प्रोटोकाॅल का पालन न करता हो और महत्वाकांक्षी हो. वास्तव मंे दोस्त अगर कार्यस्थल साझा करते हों तो अकसर सिरदर्द बन जाते हैं.

मान लीजिए सब कुछ ठीक है लेकिन दोस्त महत्वाकांक्षी है, वह आपसे आगे जाना चाहता है. सवाल है क्या आप यह स्थिति स्वीकार कर लेंगे? शायद ऐसा नहीं होगा. क्योंकि उसके आगे जाने का रास्ता आपको पीछे धकेलकर जा सकता है. अगर ऐसा कुछ भी न हो और आपके दोस्त का परफोर्मेंस उम्मीद से कम हो तो कंपनी से इसके लिए आपको बातें सुननी पड़ सकती हैं और अगर बेहतर हो तो उसके साथ आपकी पसंद न आने वाली तुलना की जा सकती है, ताकि आपको डाउन किया जा सके. कई बार यदि दफ्तर मंे आपके द्वारा लाया गया आपका दोस्त कामचोर है तो प्रबंधन आपसे उम्मीद करता है कि आप उस पर दबाव बनाएं, उसे समझाएं. अगर आप ऐसा करते हैं तो संभव है आपका दोस्त आपको अपना सिरदर्द मानने लगे और ऐसा नहीं करते तो हो सकता है कंपनी प्रबंधन आप पर दोष मढ़ने लगे कि आपने कैसा कर्मचारी ला दिया है.

लब्बोलुआब यह कि अपने कार्यस्थल में दोस्त को प्रवेश दिलाकर आप परेशानियां ही परेशानियां मोल लेंगे. मान लीजिए आपके दोस्त में तमाम सारी खूबियां हैं, वह आपके कार्यस्थल में आते ही छा जाता है. हर कोई उसकी तारीफ करने लगता है और दफ्तर की महिला कर्मचारी तो मानो उस पर फिदा ही हो जाती हैं, तब क्या होगा? निश्चित ही उसका प्रभामंडल आपको अच्छा नहीं लगेगा. आप बेहद ईष्र्यालु हो जाएंगे, आपको खुद पर गुस्सा आयेगा और सोचेंगे पता नहीं वह कौन सी घड़ी थी, जब मेरी मति मारी गई और मैंने अपने ही दफ्तर में अपने आपका डिमोशन कर लिया. ऐसी सैकड़ों परेशानियों का एक ही हल है कि कभी भी अपने किसी दोस्त को अपनी कंपनी में नौकरी न लगवाइये अगर आपको उसके साथ दोस्ती हमेशा हमेशा के लिए रखनी है.

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