‘‘कहां गई थीं? काफी देर लगा दी आने में?’’अशोक ने पूछा तो दिन भर की थकीहारी मिनी गुस्से से फट पड़ी, ‘‘और कहां जाऊंगी इस जिंदगी में नई नौकरी ढूंढ़ने और बारबार इंटरव्यू देने के अलावा?’’ ‘‘अरे, इस में नाराज होने वाली कौन सी बात है? मैं तो ऐसे ही पूछ रहा था. चलो, गरमगरम चाय पीते हैं साथसाथ,’’ अशोक ने प्यार से कहा.
‘‘मिनी फ्रैश होने चली गई. चाय बनाते समय भी वह बड़बड़ा रही थी, न जाने कैसेकैसे उलटेसीधे प्रश्नों के उत्तर देने पड़ते हैं हर बार?’’
थोड़ी देर में 2 कप चाय ले कर मिनी आ तो गई, पर उस का मूड अभी भी उखड़ा हुआ था.
‘‘अच्छा बताओ कैसा रहा इंटरव्यू?’’ अशोक ने पूछा.
‘‘ठीकठाक ही रहा. हर जगह लोग अविश्वास कि दृष्टि से देखते हैं मुझ जैसे लोगों को. यह प्रश्न पूछना भी नहीं भूलते कि इतनी जल्दीजल्दी नौकरी क्यों बदली आप ने या क्यों बदलनी पड़ी? उन का अगला प्रश्न होता है कि अगर आप को नौकरी दी जाती है तो कहीं बीच में ही तो छोड़ कर नहीं चली जाएंगी?’’
‘‘क्या जवाब दिया तुम ने?’’
अशोक के पूछने पर मिनी ने धीरे से कहा, ‘‘सच पूछो तो उस का सही जवाब तो मेरे पास भी नहीं होता. मेरा तो अपना सब कुछ अस्थाई और अनियोजित है.’’
असल में मिनी के पति अशोक की नौकरी तबादले वाली है. अत: जब भी अशोक का तबादला होता है उसे परिवार और बच्चों की खातिर अपनी नौकरी छोड़नी पड़ती है. नई जगह पर घरगृहस्थी और बच्चे सब व्यवस्थित हो जाते हैं तो आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर रहने में विश्वास करने वाली मिनी को खुद का जीवन अव्यवस्थित लगने लगता है.
यह समस्या सिर्फ मिनी की नहीं है. अकसर महिलाओं को परिवार और काम के बीच संतुलन बनाए रखने के लिए कई बार अपनी नौकरी छोड़नी, बदलनी या नई नौकरी से समझौता करना पड़ता है. बारबार नौकरी छोड़ने के कई कारण हो सकते हैं जैसे पति का तबादला, बच्चों की परवरिश, पढ़ाई एवं सुरक्षा या घर में बीमार बुजुर्ग की देखभाल की समस्या आदि. कारण चाहे जो भी हो पर बारबार नौकरी बदलने की मजबूरी से इनसान खासकर महिलाओं को कई प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है.
सही नौकरी की तलाश
‘‘आज के जमाने में जहां नौकरी मिलना बहुत कठिन है, वहीं मिली हुई नौकरी को छोड़, अपनी रुचि और सुविधानुसार नई नौकरी तलाश करना अपनेआप में बहुत बड़ी समस्या है,’’ यह कहना है 30 साल की जरीना का जो अब तक पारिवारिक कारणों से एक ही शहर में 3 बार नौकरी छोड़ चुकी हैं और चौथी की तलाश जारी है. नई नौकरी पाने के चक्कर में कई तरह के समझौते करने पड़ते हैं. कभी पैसों से समझौता करना पड़ता है तो भी वर्किंग आवर्स को ले कर.
काबिलीयत को प्रूव करना
45 साल की गोपा चक्रवर्ती के पति सेना में कार्यरत हैं, जिन का तबादला लगभग हर 2 साल पर होता रहता है. बारबार जौबे ढूंढ़ने की बात चली तो वे कहने लगीं, ‘‘मैं तो हर 2 साल पर बेरोजगार हो जाती हूं. फिर से नई जगह नौकरी ढूंढ़नी पड़ती है. अब इतना अनुभव हो गया है कि नौकरी तो मिल जाती है पर काबिलीयत होते हुए भी हर जगह अपना काम जीरो से शुरू करना पड़ता है और जब तक मेहनत कर के खुद को प्रूव करती हूं, नौकरी छोड़ देनी पड़ती है. लगता है नौकरी करने का एक ही मकसद रह गया है. बस खुद को लोगों के सामने प्रूव करते रहो जिंदगी भर.’’
अस्थिर भविष्य की चिंता
एमए पास 37 वर्षीय भावना शर्मा जो शुरू में एक प्राइवेट कालेज में प्रवक्ता थीं, वर्तमान में दुबई में स्कूल शिक्षिका हैं, ने बताया, ‘‘क्या करूं एक तरफ पति का कैरियर है तो दूसरी तरफ बेटी की सुरक्षा का सवाल है. शुरू में जब नईनई गृहस्थी थी उस समय आर्थिक कारणों से दोनों पतिपत्नी का कमाना जरूरी था. जब बेटी का जन्म हुआ तब मैं ने एनटीटी कोर्स कर के ऐसा स्कूल जौइन किया था जिस में क्रैश की सुविधा थी, क्योंकि मेरी मां नहीं हैं और सास की तबीयत भी ऐसी नहीं थी कि वे बच्ची की देखभाल कर सकें. फिर जब बेटी थोड़ी बड़ी हुई और उस का स्कूल बदला तो मैं ने भी उसी स्कूल में काम करना शुरू किया जहां मेरी बेटी पढ़ती है. इस के लिए मुझे पेमैंट को ले कर समझौता भी करना पड़ा. पर अब लगता है कि टीनएजर बेटी को समय देने और उसे अकेले छोड़ने के बजाय मुझे ही नौकरी छोड़नी पड़ेगी. अब मुझे पैसों की उतनी जरूरत नहीं है पर जब एक बार वर्किंग वूमन हो जाओ तो घर बैठना बुरा लगता है. कल्पना करती हूं तो लगता है कि कहीं मैं घर पर बैठ कर चिड़चिड़े स्वभाव की न हो जाऊं और मेरे स्वास्थ्य पर इस का कोई बुरा असर न पड़े?’’
फील्ड बदलना चुनौती भरा काम
कई बार महिलाओं को एक फील्ड में लंबे समय तक काम करने के बाद मजबूरीवश अपनी फील्ड बदलनी पड़ती है या जौब छोड़नी पड़ती है. दोनों ही स्थितियां उन्हें मानसिक तौर पर प्रभावित करती हैं.
40 वर्षीय प्रिया कासेकर के पति अकसर दौरे पर रहते हैं. घर में बूढे सासससुर तथा 2 बच्चे हैं, जिन की देखभाल की जिम्मेदारी उसे ही निभानी पड़ती हैं. ऐसे में इंजीनियर प्रिया ने अपनी फील्ड बदल ली. 3 साल पहले बीएड कर के अब एक स्कूल में पढ़ाती है.
प्रिया का कहना है कि शुरू में तो उसे अपनी रुचि से अलग काम करना काफी चुनौती भरा लगा, साथ ही साथ नई नौकरी खोजते समय इस बात की बारबार सफाई भी देनी पड़ी कि पेशे से इंजीनियर शिक्षिका क्यों बन रही.
मानसिक प्रताड़ना की अनुभूति
नई नौकरी चाहिए तो इंटरव्यू देना ही पड़ता है. गोपा चक्रवर्ती का मानना है, ‘‘जब आप अपनी मरजी से जौब छोड़ कर नई जौब पकड़ना चाहते हो तो इंटरव्यू देना बुरा नहीं लगता पर अपनी जमीजमाई नौकरी छोड़ हर बार कई इंटरव्यू फेस करना और लोगों के प्रश्नों के संतोषप्रद उत्तर देना, फिर जब तक यह नहीं पता चले कि जौब मिली या नहीं, उस के लिए इंतजार करना एक प्रकार से मानसिक प्रताड़ना झेलने का अनुभव कराता है.’’
सही तालमेल बैठाना आसान काम नहीं
बारबार नौकरी बदलने में एक बात होती है कि काफी कुछ सीखने को मिलता है पर हर बार नए लोगों, नए माहौल और नए प्रोजैक्ट्स तथा अपने परिवार में उचित तालमेल बैठाना भी कोई आसान काम नहीं होता. प्राइवेट फर्म में काम करने वाली मार्गरेट का मानना है कि तालमेल बैठाने में शारीरिक और मानसिक दोनों तरह की मेहनत करनी पड़ती है. इस क्रम में कभीकभी तो लगता है कि वह एक मशीन बन कर रह गई है.
जौब सैटिस्फैक्शन की समस्या
मजबूरी में छोड़ी गई तथा परिवार की सुविधानुसार की गई नौकरी में कई बार जौब सैटिस्फैक्शन नहीं होती. बस लगता है आर्थिक आमदनी के कारण नौकरी ढोए जा रहे हैं. इस संबंध में 32 वर्षीय मीनाक्षी का कहना है कि जब जौब सैटिस्फैक्शन देने वाली नहीं होती तो ऐसा महसूस होने लगता है कि अपना कोई वजूद ही नहीं है. बस पागलों की तरह मेहनत करते जाओ.
दो नावों की सवारी
कहा गया है कि दो नावों पर एकसाथ सवारी करना खतरनाक साबित होता है, पर शिक्षित, जागरूक और खुद को आर्थिक रूप से सक्षम बनाने के लिए महिलाओं को कई बार ऐसी सवारी करनी ही पड़ती है. मार्गरेट अपने अनुभव बताते हुए कहती हैं कि अगर आप परिवार के सदस्यों की सुविधानुसार नौकरी करती हैं और कई बार उन की खातिर छोड़ देती हैं तो परिवार के सदस्य भी पहले अपनी सुविधा देखते हैं आप की नहीं. घर आती आमदनी सब को अच्छी लगती है चाहे पति हों या बच्चे, लेकिन वे एडजस्ट करना नहीं चाहते, बल्कि आप को एडजस्ट करना पड़ता है. कभी वर्किंग हो कर तो कभी घर बैठ कर.
मनोवैज्ञानिक दबाव
मनोविश्लेषकों का मानना है कि अपने जीवन में इनसान को कई चाहे अनचाहे उतारचढ़ावों से गुजरना पड़ता है. यह एक हद तक तो ठीक है पर जब बारबार इस तरह की परिस्थितियों का सामना करना पड़े तो कई बार इस का प्रतिकूल प्रभाव इनसान के मानसिक, शारीरिक और पारिवारिक जीवन पर प्रत्यक्ष रूप से देखने को मिल जाता है. पुरुषों से अपेक्षाकृत अधिक संवेदनशील होने के कारण मनोवैज्ञानिक दबाव के दुष्प्रभाव की शिकार सब से ज्यादा ऐसी महिलाएं होती हैं जो घरबाहर की दोहरी जिम्मेदारी निभाने पर भी जिन की पहचान न तो घरेलू महिला की रहती है और न ही कामकाजी की. मानसिक तौर पर वह स्वयं निश्चित नहीं कर पाती कि खुद को किस श्रेणी में रखे हाउसवाइफ की या वर्किंग की श्रेणी में?
एक प्रसिद्ध मनोचिकित्सक के अनुसार, नौकरी छोड़ना और नई नौकरी पकड़ने के दौरान कई बार कुछ महिलाओं में असुरक्षा की भावना, पैसे की कमी, खालीपन, पारिवारिक उपेक्षा का एहसास, मनोबल का गिर जाना, अनिद्रा, चिड़चिड़ापन के साथसाथ हलके और गहरे अवसाद जैसे लक्षण भी पाए जाते हैं. ऐसी विषम स्थिति में न तो ठीक से कोई काम किया जा सकता है और न ही जीवन का आनंद उठाया जा सकता है. कई महिलाएं तो इस अल्पकालीन विषम स्थिति में धैर्य एवं हिम्मत रख कर खुद को संभाल लेती हैं पर बहुतों को मनोचिकित्सक की सलाह लेने की जरूरत पड़ जाती है.
एक महिला होने के नाते मेरा मानना है कि महिलाएं जिस तरह पति,बच्चों या परिवार के अन्य सदस्यों की उपलब्धियों के लिए जिस हिम्मत और जोश के साथ प्रयासरत रहती हैं. अपनी उपलब्धि के लिए भी प्रयासरत रहते समय निराशा के अंधकार में डूबने के बजाय हिम्मत, जोश और धैर्य बरकरार रखें.