मौडलिंग से अपने कैरियर की शुरुआत करने वाले अभिनेता जौन अब्राहम ने फिल्म ‘जिस्म’ से हिंदी फिल्म में डेब्यू किया, जिसमें उनके काम को सराहना मिली और उन्होंने पुरस्कार भी जीता. इसके बाद उनकी आई कई फिल्में फ्लौप रही, लेकिन फिल्म ‘धूम’ ने उन्हें फिर से एक बार दर्शकों का पसंदीदा बना दिया. यही वजह है कि वे अब किसी भी फिल्म को सावधानी से चुनते है. अगर स्क्रिप्ट अच्छी हो तो वे मल्टी स्टारर फिल्मों में काम करने से भी मना नहीं करते, क्योंकि ऐसी फिल्मों में काम करने से उन्हें बहुत कुछ सीखने को मिलता है. फिल्म ‘बाटला हाउस’ के प्रमोशन पर उनसे बात हुई पेश है कुछ अंश.
सवाल- रियलिस्टिक फिल्म में पुलिस अधिकारी की भूमिका निभाना कैसा लगता है ?
बहुत अच्छा लगता है, जब एक कलाकार के देश प्रेम को अभिनय के द्वारा दिखाए जाने का अवसर मिलता है और मेरी कद काठी एक पुलिस अधिकारी से मैच करती है तो और अधिक खुशी मिलती है, क्योंकि मेरे लिए डीसीपी संजीव कुमार यादव की भूमिका निभाना अपने आप में बड़ी बात है. जब निर्देशक निखिल आडवाणी ने इस कहानी को पढ़ने के लिए दिया, तो मुझे बहुत ही अच्छा लगा. ये आज के जमाने के लिए बहुत ही अच्छी फिल्म है, जिसे दिखाई जानी चाहिए. मैं इसे आंशिक रूप से प्रोड्यूस करने के लिए भी राज़ी हो गया, क्योंकि इस कहानी को मुझे कहनी है.
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सवाल- ऐसी रियल कहानी कहते समय किस बात का ध्यान रखना पड़ता है, ताकि कोई इससे आहत न हो, आपकी कोशिश या रिसर्च किस तरह की होती है?
मैं अपने माता-पिता दोनों तरफ से एक माइनौरिटी बैकग्राउंड से हूं. मैंने कभी भी किसी को आहत करने की कोशिश नहीं की है. रियल लाइफ के चरित्र में क्रिएटिव लिबर्टी तो आप ले सकते है, लेकिन कितनी हद तक आपको लेना है उसे सोचना पड़ता है. मैंने इस फिल्म में थोड़ी सी भी क्रिएटिव लिबर्टी नहीं ली है. असल कहानी जैसे है वैसे ही दिखाने की कोशिश की है. मैं संजीव कुमार यादव से कई बार मिल चुका हूं और उस समय जो बीती थी, उसे समझने की कोशिश किया है. बाटला हाउस के बाद संजीव कुमार का मानसिक स्तर कैसा था उसे जाना, क्योंकि इसके बाद वे काफी दुखी हुए थे और आत्महत्या तक करने की कोशिश की थी. उनका पारिवारिक जीवन भी बहुत ख़राब हो चुका था, उनकी पत्नी घर छोड़ देना चाहती थी. ऐसे में रियल कहानी को डोक्युमेंट्री न बनाकर मनोरंजक बनाने की कोशिश की गयी है, जो बहुत कठिन था.
सवाल- पिछले कुछ समय से आप एक अच्छे कलाकर बन चुके है और अच्छी फिल्में भी कर रहे है ऐसे में प्रोडक्शन में उतरने की वजह क्या रही?
मैं प्रौड्यूसर इसलिए बना, क्योंकि मुझे सही तरह की फिल्में नहीं मिल रही थी, जो मैं करना चाहता था. मेरी प्रतिभा को लोगों ने तब जाना, जब मैं निर्माता बना. फिल्म विकी डोनर बनने के बाद कई इस तरह की फिल्में बनी. फिल्म ‘मद्रास कैफे’ बनने के बाद उस तरह की कई और फिल्में बनी. मैं एक ट्रेंड सेटर बना और सबको लगा कि फिल्मों की ओर मेरी सोच अच्छी है.
सवाल- फिल्म निर्माण करते समय किस बात का खास ध्यान देते है?
मैंने बहुत कम बजट में फिल्में बनाई है और मैंने लक्ज़री पर खर्च नहीं किया. बड़े सेट मैंने नहीं बनाएं, लेकिन अपने दिमाग का इस्तेमाल कर अच्छी कहानी कम बज़ट में कहने की कोशिश की और फिल्में सफल रही. इसके अलावा मैं पहले से अब अपने काम को बहुत अधिक एन्जौय कर रहा हूं. मैं आगे कई और फिल्में अलग-अलग विषयों पर करने की कोशिश कर रहा हूं. मैं किसी कैम्प्स या पार्टी में जाना पसंद नहीं करता.
सवाल-आपकी तुलना अक्षय कुमार से की जाती है, क्योंकि वे भी देश भक्ति पर फिल्में बनाते है, इसे कैसे लेते है?
मैं खुश हूं कि मेरी तुलना अक्षय से की जाती है, लेकिन फिल्म बनाने का कोई निश्चित फार्मूला नहीं होता. कंटेंट सही नहीं हो, तो कोई भी फिल्म चलती नहीं है. मैं अपने आपको देशभक्त कहलाना पसंद करता हूं, लेकिन राष्ट्रवादी नहीं.
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सवाल- आपकी फिल्म 15 अगस्त को रिलीज हो रही है, स्वतंत्रता दिवस को लेकर आपके बचपन की यादें क्या है?
मुझे ये दिन बहुत खास लगता है और मैंने कई बार अपनी मां से एक बड़े झंडे की सिफारिश की थी, जो मुझे नहीं मिली, पर उस दिन स्कूल जाकर झंडा फहराते हुए देखना बहुत पसंद था. उसके बाद मैं फुटबाल खेलता था. दरअसल उस दिन स्कूल में छुट्टी होने की वजह से आजादी को मैं बहुत एन्जौय करता था.
सवाल- आप यूथ को क्या मेसेज देना चाहते है?
आज के यूथ बहुत समझदार है, पर वे सोशल मीडिया के गुलाम है. उन्हें हमेशा ईमानदारी और मेहनत से आगे बढ़ने की जरुरत है. किसी को धोखा न दें, क्योंकि इससे आपका स्वभाव खराब होता है और आपकी नियत बिगड़ती है.
सवाल- आप फिटनेस फ्रीक माने जाते है, ऐसे में फिटनेस को बानाए रखने के लिए क्या कभी नहीं करते?
मैं कभी भी ड्रग्स, ड्रिंक्स, जंक फूड्स, फ्राइड फूड्स आदि नहीं लेता. ऐसा मैं पिछले 25 साल से करता आ रहा हूं. लोग कहते है कि मेरे टेस्ट बड्स ख़त्म हो गए है, पर ऐसा नहीं है. स्वस्थ शरीर के लिए हमेशा अनुसाशित होना जरुरी है. इसमें सबसे अधिक आपके खान-पान पर ध्यान देने की जरुरत होती है. जो मुझे वैसे खाने औफर करता है, उसे मैं दुशमन मानता हूं. आपको अपने खाने की आदतों को स्ट्रिक्टली फौलो करना चाहिए, क्योंकि जब आप बीमार पड़ते है, तो परिवार के अलावा कोई भी आपके पास नहीं भटकता.
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