आधुनिकीकरण ने परिवार नामक इकाई का ढांचा बदल दिया है. अब पहले की तरह संयुक्त परिवार नहीं होते. लोगों ने वैस्टर्न कल्चर के तहत एकल परिवार में रहना शुरू कर दिया है. लेकिन परिवार के इस ढांचे के कुछ फायदे हैं, तो कुछ नुकसान भी. खासतौर पर जब ऐसे परिवार में कोई गंभीर बीमारी से पीडि़त हो जाए.
इस बाबत एशियन इंस्टिट्यूट औफ मैडिकल साइंस के नेफरोलौजिस्ट डाक्टर जितेंद्र कहते हैं कि न्यूक्लियर फैमिली का ट्रैंड तो भारत में आ गया, लेकिन इस टै्रंड को अपनाने वालों को यह नहीं पता कि वैस्टर्न कंट्रीज में न्यूक्लियर फैमिली में रहने वाले वृद्ध और बच्चों की जिम्मेदारी वहां की सरकार की होती है. वही उन्हें हर तरह की सुरक्षा और सुविधा मुहैया कराती है. यहां तक कि वहां पर ऐसे संसाधन हैं कि वृद्ध हो, युवा या फिर बच्चा किसी को भी विपरीत परिस्थितियों से निबटने में ज्यादा परेशानी नहीं होती.
डा. जितेंद्र आगे कहते हैं कि उन देशें में जब भी कोई बीमार पड़ता है और अगर उसे तत्काल चिकित्सा की जरूरत पड़ जाती है तब उसे ऐंबुलैंस के आने का इंतजार नहीं करना पड़ता, बल्कि ऐसे समय के लिए विशेष वाहन होते हैं जो बिना रुकावट सड़कों पर सरपट दौड़ सकते हैं और इन से मरीज को अस्पताल तक आसानी से पहुंचाया जा सकता है. लेकिन भारत में ट्रैफिक की हालत इतनी खराब है कि ऐंबुलैंस को ही मरीज तक पहुंचने में वक्त लग जाता है.
एकल परिवार में हर किसी को बीमारी से उबरने और उस से जुड़े सभी जरूरी काम स्वयं करने की आदत डालनी चाहिए. बीमारी के समय भी इस तरह आत्मनिर्भरता को कायम रखा जा सकता है: बीमारी के लक्षण को गंभीरता से लें: रोज की अपेक्षा कमजोरी महसूस कर रहे हों या फिर हलका सा भी बुखार हो तो उस के प्रति लापरवाही अच्छी नहीं. हो सकता है जिसे आप मामूली बुखार या कमजोरी समझ रहे हों वह किसी बड़ी बीमारी का संकेत हो. अपने फैमिली डाक्टर से इस बारे में चर्चा जरूर करें. फैमिली डाक्टर के पास जाने में अधिक समय न लगाएं. इस बात का इंतजार न करें कि घर का कोई दूसरा सदस्य आप को डाक्टर के पास ले जाएगा.
डाक्टर से बात करने में न हिचकें: अपने डाक्टर से खुल कर बात करें. आप क्या महसूस कर रहे हैं और आप को क्या तकलीफ है, इस के बारे में अपने डाक्टर को जरूर बताएं. फिर डाक्टर जो भी पूछे उस का सोचसमझ कर जवाब दें. बढ़ाचढ़ा कर भी कुछ न बताएं क्योंकि डाक्टर इस से भ्रमित हो जाता है. मरीज इस बात का ध्यान रखे कि वह अब आधुनिक समय में जी रहा है, जहां हर बीमारी का इलाज है. फिर चाहे वह कैंसर हो, टयूबरक्लोसिस हो या फिर जौंडिस. बीमारी पर खुल कर बात करने में डरने की क्या जरूरत?
प्रैस्क्रिप्शन को सहेज कर रखें: डाक्टर जो प्रैस्क्रिप्शन लिख कर दें उसे हमेशा संभाल कर रखें. हो सकता है कोई शारीरिक समस्या आप को बारबार रिपीट हो रही हो. इस परिस्थिति में आप डाक्टर को पुराना प्रैस्क्रिप्शन दिखा कर याद दिला सकते हैं कि पिछली बार भी आप को यही समस्या हुई थी. बारबार होने वाली बीमारी गंभीर रूप भी ले सकती है. यदि आप के डाक्टर को यह पता चल जाएगा तो वह इस की रोकथाम के लिए पहले ही आप को सतर्क कर देगा. सही डाक्टर चुनें: अकसर देखा गया है कि लोगों को तकलीफ शरीर के किसी भी हिस्से में क्यों न हो, लेकिन वे जाते जनरल फिजिशियन के पास ही हैं. जबकि जनरल फिजिशियन आप को सिर्फ राय दे सकता है. यदि आप को दांतों की तकलीफ है तो डैंटिस्ट के पास जाएं. हो सकता है कि आप को दांतों से जुड़ी कोई गंभीर बीमारी हो.
बीमारी टालें नहीं: अकसर लोग बीमारी के सिमटम्स नजरअंदाज कर देते हैं. मसलन, शरीर के किसी अंग में गांठ होना, बलगम में खून आना या फिर कहीं पस पड़ जाना. ये सभी बड़ी बीमारियों के संकेत होते हैं. लेकिन लोग इन्हें महीनों नजरअंदाज करते हैं. वे सोचते हैं कि कुछ समय बाद उन की तकलीफ खुदबखुद खत्म हो जाएगी. लेकिन तकलीफ जब बढ़ती है तब उन्हें डाक्टर की याद आती है. तब तक देर हो चुकी होती है. जिस बीमारी पर पहले लगाम कसी जा सकती थी वह बेलगाम हो जाती है इसलिए तकलीफ छोटी हो या बड़ी डाक्टर से एक बार सलाह जरूर लें. मैडिकल कार्ड अपने साथ रखें: यदि आप को कोई गंभीर बीमारी है, तो आप अपना मैडिकल कार्ड और डायरी अपने पास रखें. डाक्टर जितेंद्र कहते हैं कि किसी को सड़क पर चलतेचलते अचानक चक्कर आ जाए या दौरा पड़ जाए तो राहगीर सब से पहले मरीज की जेब की तलाशी लेते हैं ताकि मरीज से जुड़ी कोई परिचय सामग्री मिल जाए. यदि मैडिकल कार्ड रखा जाए तो किसी को भी पता चल जाएगा कि आप को क्या बीमारी है और बेहोश होने की स्थिति में आप को क्या ट्रीटमैंट दिया जाना चाहिए. यदि इस मैडिकल कार्ड में आप का पता और आप के परिचितों का नंबर होगा तो राहगीरों को उन से संपर्क करने में भी आसानी होगी. इस तरह समय रहते आप का इलाज हो सकेगा और परिचित लोग आप के पास हो सकेंगे.
मैडिकल डायरी भी है जरूरी: गंभीर बीमारी होने पर मरीज को अपने पास एक मैडिकल डायरी भी रखनी चाहिए. इस डायरी में मरीज को अपने सभी जरूरी टैस्ट, दवाएं और खानेपीने का रूटीन लिख लेना चाहिए. डाक्टर जितेंद्र इस डायरी का महत्त्व बताते हुए कहते हैं कि मैडिकल डायरी में मरीज अपने होने वाले टैस्टों की तारीख, दवाओं के खाने का समय और उन के खत्म होने और लाने की तारीख लिख सकता है. कई बार बीमारी की वजह से उसे सब कुछ याद नहीं रहता. इसलिए रोजाना इस डायरी को एक बार पढ़ लेने पर उसे ज्ञात हो जाएगा कि कब उसे क्या करना है.
आधुनिक तकनीकों का हो ज्ञान: वैसे तो आधुनिक युग में प्रचलित तकनीकों का ज्ञान सभी को होना चाहिए. लेकिन यदि किसी, का कोई गंभीर रोग है तो उस के लिए तकनीकों को जानना अनिवार्य हो जाता है. जैसे आजकल स्मार्टफोन का जमाना है, तो स्मार्टफोन मरीज के पास होना चाहिए और उस का इस्तेमाल भी मरीज को आना चाहिए. आजकल स्मार्टफोन में बहुत से एप्स हैं जो काफी मददगार हैं. मसलन, कैब बुकिंग एप्स, डायट अलर्ट एप्स, चैटिंग एप्स और विभिन्न प्रकार के ऐसे एप्स जो मरीज को सुविधा और उसे नई जानकारियां देने में काफी मददगार हैं.
डाक्टर जितेंद्र की मानें तो चैटिंग एप्स ऐसे हैं जो मरीज और डाक्टर के बीच इंटरैक्शन को बाधित नहीं होने देते. यदि मरीज को कोई छोटीमोटी जानकारी लेनी है तो वह डाक्टर से इस के जरीए बात कर सकता है. कई बार मरीज अपने डाक्टर से काफी दूर पर होता है, तो उस के लिए डाक्टर से प्रत्यक्ष रूप से मिल पाना मुमकिन नहीं होता. तब वीडियो कौन्फ्रैंसिंग के द्वारा मरीज अपने डाक्टर से परामर्श ले सकता है.नकद पैसा जरूर रखें: मरीज को घर में हमेशा कुछ नकद पैसा जरूर रखना चाहिए. यदि नकद पैसा रखने में असुरक्षा का एहसास हो तो मरीज अपने नाम से क्रेडिट या डेबिट कार्ड भी रख सकता है.
परिवार वालों का सहयोग भी जरूरी
एकल परिवार हो या संयुक्त परिवार, यदि परिवार में किसी को भी गंभीर बीमारी हो जाए तो मरीज को घर के सदस्यों का मानसिक और शारीरिक दोनों प्रकार का सहयोग चाहिए होता है. खासतौर पर एकल परिवार में मरीज खुद को ज्यादा अकेला महसूस करता है. एशियन इंस्टिट्यूट औफ मैडिकल साइंस में साइकोलौजिस्ट डाक्टर मीनाक्षी मानचंदा कहती हैं कि एकल परिवार में चुनिंदा लोग होते हैं, इसलिए सब की जिम्मेदारियां और काम बंटे होते हैं. घर में किसी के बीमार पड़ने से उन के लिए अतिरिक्त काम बढ़ जाता है. ऐसे में मरीज यदि अपनी छोटीमोटी चीजों का खुद ध्यान रख ले तब भी उस के परिवार के सदस्यों को ही करना होता है.
मरीज को बीमारी से लड़ने के लिए मानसिक तौर पर कैसे मजबूत बनाया जा सकता है, आइए जानते हैं:
बीमारी कितनी भी गंभीर हो मरीज को इस बात का भरोसा दिलाएं कि उस का अच्छे से अच्छा इलाज कराया जाएगा और वह पूरी तरह ठीक हो जाएगा.
मरीज को ऐसा न बनाएं कि वह आप पर निर्भर रहे. यदि वह डाक्टर के पास खुद जाना चाहे तो उसे अकेले ही जाने दें.
काम में कितने भी व्यस्त हों, लेकिन मरीज का दिन में 2 से 3 बार हालचाल जरूर पूछें. इस से मरीज को लगता है कि उस के अपने भी उस की चिंता कर रहे हैं.
यदि मरीज बीमारी से पूर्व औफिस जाता था तो उस का औफिस जाना बंद न कराएं. डाक्टर से सलाह लें कि मरीज औफिस जा सकता है या नहीं? मरीज को किसी भी छोटेमोटे काम में उलझा कर रखें, जिस से उसे मानसिक तनाव भी न महसूस करे.