Serial Story: जूठन– भाग 3

वंदना को 2 प्लेटों में खाना लगाते देख सीमा ने पूछा, ‘‘तुम्हारे अलावा और किस ने खाना नहीं खाया है, वंदना?’’

‘‘यह दूसरी प्लेट का खाना सामने रहने वाली मेरी सहेली निशा के लिए है,’’ वंदना ने खिड़की की तरफ उंगली उठा कर सीमा को अपनी सहेली का घर दिखाया.

‘‘वह यहीं आएगी क्या?’’

‘‘नहीं, मेरा बड़ा बेटा सोनू प्लेट उस के घर दे आएगा.’’

‘‘तुम्हारे दोनों बेटों से तो मैं मिली ही नहीं हूं. कहां हैं दोनों?’’

‘‘छोटे भानू को खांसीबुखार है. वह अंदर कमरे में सो रहा है. सोनू को मैं बुलाती हूं. वह सुबह से निशा के यहां गया हुआ है.’’

वंदना ने पीछे का दरवाजा खोल कर सोनू को आवाज दी. कुछ मिनट बाद सोनू निशा के घर से भागता हुआ बाहर आया.

अपनी मां के कहने पर उस ने सीमा आंटी को नमस्ते करी. बड़ी सावधानी से निशा के लिए लगाई गई खाने की प्लेट दोनों हाथों में पकड़ कर वह फौरन निशा के घर लौट गया.

‘‘बहुत प्यारा बच्चा है,’’ सीमा ने सोनू की तारीफ करी.

‘‘निशा भी उसे अपनी जान से ज्यादा चाहती है… बिलकुल एक मां की तरह. सोनू को 2 मांओं का प्यार मिल रहा है,’’ वंदना ने सीमा की आंखों में झांकते हुए गंभीर लहजे में कहा.

पीछे के बरामदे में एक गोल मेज के इर्दगिर्द 4 कुरसियां रखी थीं. वे दोनों वहीं बैठ गईं. वंदना ने धीरेधीरे खाना खाना शुरू कर दिया.

‘‘क्या निशा के पास अपना बेटा नहीं है?’’ सीमा ने वार्त्तालाप आगे बढ़ाया.

‘‘उस ने तो शादी ही नहीं करी है… तुम्हारी तरह अविवाहित रहने का फैसला कर रखा है

उस ने. हर औरत के सीने में मां का दिल मौजूद होता है. निशा उस दिल में भरी ममता खुले हाथों मेरे सोनू पर लुटाती है, ’’ वंदना ने मुसकराते हुए कहा.

कुछ देर खामोश रह कर सीमा बोली, ‘‘यह सच है कि कभी मैं ने शादी न करने का

फैसला किया था, लेकिन अब मैं किसी के साथ मैं अपनी बाकी जिंदगी गुजारना चाहती हूं. इसी सिलसिले में तुम से कुछ बातें करने आई हूं.’’

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‘‘मैं निशा को भी हमेशा कहती हूं कि शादी कर ले, पर वह सुनती ही नहीं. कहती है कि शादी किए बिना ही मुझे सोनू जैसा प्यारा बेटा मिल गया है, तो मैं बेकार किसी अनजान आदमी से जुड़ कर अपनी स्वतंत्रता क्यों खोऊं. मेरा सोनू उस के बुढ़ापे का सहारा बनेगा, यह विश्वास उस के मन में बहुत मजबूती से बैठ गया है,’’ सीमा के कहे को अनसुना कर वंदना ने निशा और सोनू के संबंध में बोलना जारी रखा.

‘‘राकेश और मैं एकदूसरे को साल भर से ज्यादा समय से जानते हैं. उन से मिलने के बाद ही मेरे जीवन में खुशियां लौटीं, नहीं तो बड़ी नीरस हुआ करती थी मेरी जिंदगी,’’ वंदना के कहे में दिलचस्पी न दिखा कर सीमा ने भी

अपने मन की बातें उसे बताने का सिलसिला

जारी रखा.

‘‘इस निशा की जिंदगी में खुशियों का उजाला मेरे सोनू के कारण है. आए दिन कुछ न कुछ उपहार सोनू को उस से मिल जाता है.’’

‘‘राकेश और मेरे संबंध अच्छी दोस्ती की सीमा को लांघ कर और ज्यादा गहरे हो चुके हैं. वे मुझे बहुत प्रेम करते हैं,’’ सीमा ने वंदना से एक झटके में अपने दिल की बात कह ही दी.

वंदना उदास सी मुसकान अपने होंठों पर ला कर बोली, ‘‘मेरे सोनू का दिल

जीतने को इस निशा ने उसे बहुत बड़ा लालच दे रखा है. खूब पैसे खर्च कर के उस ने सोनू को बाजार की चटपटी चीजें खाने का चसका लगवा दिया है. अब मेरे बेटे को घर का खाना फीका लगता है.’’

‘‘सोनू की बात छोड़ कर तुम राकेश के बारे में मुझ से बातें क्यों नहीं कर रही हो?’’ सीमा चिढ़ उठी.

बड़े अपनेपन से सीमा का कंधा दबाने के बाद वंदना ने उसी सुर में बोलना जारी रखा, ‘‘निशा को अच्छा खाना बनाना नहीं आता है. उस के घर की रसोई सूनी पड़ी रहती है. सोनू अगर उस का अपना बेटा होता, तो क्या वह अपनी घरगृहस्थी को सजानेसंवारने की जिम्मेदारियों से यों बचती? अपने बेटे को अपने हाथों से बढि़या खाना बना कर खिलाना क्या उसे तब बोझ लगता?’’

‘‘एक मां को अपने बेटे की इच्छाएं पूरा करना बोझ नहीं लगता है.’’

‘‘जिस से प्रेम हो, उस की खुशी के लिए कुछ भी करना बोझ नहीं हो सकता. यह निशा तो मेरे सोनू को कानूनन गोद लेने को भी मुझ पर आएदिन दबाव डालती रहती है.’’

‘‘और इस विषय में तुम्हारा जवाब क्या है, वंदना?’’

वंदना धीमे से हंसने के बाद बोली, ‘‘बिना प्रसव पीड़ा भोगे क्या कोई स्त्री सच्चे अर्थों में मां बन सकती है? घरगृहस्थी के झंझटों व चुनौतियों का सामना करने की शक्ति, खुद कष्ट उठा कर अपने बच्चों की हर सुखसुविधा का ध्यान रखने का जज्बा एक मां के ही पास होता है… किसी मौसी, चाची, आंटी या आया के बस का नहीं है दिल से उतनी मेहनत करना.’’

‘‘यह तो तुम ठीक ही कह रही हो. मैं भी अब अपनी घरगृहस्थी बसाने…’’

वंदना ने उसे टोक कर चुप किया और गंभीर लहजे में आगे बोली, ‘‘मेरे सोनू को निशा कितना भी प्यार करे, पर वह हमेशा मेरा बेटा ही रहेगा… सारा समाज उसे मेरे बेटे के नाम से ही जानता है. निशा के गिफ्ट, उस का सोनू के लिए खूब खर्चा करना, सोनू की उस के घर पर जाने की चाह जैसी बातें इस तथ्य को कभी बदल नहीं सकतीं कि वह मेरा बेटा है. मैं तुम से एक बात पूछूं?’’

‘‘पूछो,’’ सीमा अचानक गंभीर हो गई, क्योंकि उसे पहली बार यह एहसास हुआ कि वंदना सोनू और निशा की बातें कर के उस से कुछ खास कहना चाह रही है.

‘‘मैं अपने कलेजे के टुकड़े को निशा को गोद देने के लिए मजबूरन राजी भी हो जाऊं, तो क्या वह सचमुच मेरे बेटे की मां बन जाएगी? सोनू को जन्म देने का आनंद उसे कैसे मिलेगा? उस के साथ अब तक बिताए 8 सालों की पीड़ा व खुशियां देने वाली जो यादें मेरे पास हैं, उन्हें निशा कहां से लाएगी? क्या मुझे रुला कर वह हंस पाएगी?’’ वंदना की आंखों में अचानक आंसू छलक आए.

सीमा एक गहरी सांस खींच कर बोली, ‘‘तुम्हारा दिल दुखाए बिना निशा सोनू को नहीं पा सकती है और तुम्हारी सहेली होने के नाते उसे सोनू को बेटा बनाने की चाह छोड़ देनी चाहिए. मुझे भी तुम से मिलने नहीं आना चाहिए था. तुम्हारे व्यक्तित्व को जानने के बाद मेरे मन की बेचैनी व असंतोष और ज्यादा बढ़ा है.’’

वंदना ने उस के हाथ पर हाथ रखा और भरे गले से बोली, ‘‘सीमा, तुम्हें अपनी छोटी बहन मान कर कुछ अपने दिल की बातें कहती हूं. मुझे अपने बच्चों, पति व घरगृहस्थी से ज्यादा प्यारा और कुछ नहीं है. राकेश को छोड़ने की कल्पना करना भी मेरे लिए असहनीय है.

‘‘राकेश मुझ से ज्यादा तुम्हें चाहते हैं, जो मेरे लिए ठीक नहीं है, उन की हर सुखसुविधा का खयाल मैं खुशीखुशी रखती हूं. अपने बेटों को वे अपनी जान से ज्यादा चाहते हैं. उन के कारण वे सदा इस घर से जुड़े रहेंगे, यह बात मेरे मन को गहरा संतोष और सुरक्षा देती है.’’

‘‘तुम उतनी सीधीसादी हो नहीं, जितना दिखती हो. मैं तुम्हारे पास और ज्यादा देर नहीं बैठना चाहती,’’ सीमा अचानक उठ खड़ी हुई.

वंदना ने उदास लहजे में जवाब दिया, ‘‘अगर तुम मेरे दिल में झांकने की क्षमता पैदा

कर सको, तो तुम्हें मुझ से सहानुभूति होगी.

मुझ पर दया आएगी. प्रेम के बदले प्रेम न पाने

की पीड़ा में लाख कोशिश कर के भी नहीं भुल पाती हूं.’’

‘‘राकेश और सोनू के व्यवहार में बड़ी समानता है. मेरे पति तुम से और बेटा निशा से अपनी खुशियों की खातिर जुड़े हुए हैं, लेकिन इस घर से संबंध तोड़ने में दोनों की कतई दिलचस्पी नहीं है.

बाजार का खाना मेरे बेटे की सेहत के लिए बुरा है, यह जानते हुए भी मैं

सोनू की खुशी की खातिर चुप रहती हूं. राकेश तुम से जुड़े हैं, इस की शिकायत भी मैं कभी उन से नहीं करूंगी.

‘‘मेरे बेटे व मेरे पति से मेरा संबंध मेरी मौत ही तोड़ सकती है. मैं तो हर हाल में इन के साथ संतुष्ट रह लूंगी, पर निशा को या तुम्हें इन के साथ भावनात्मक रूप से जुड़ कर क्या मिल रहा है? उसे बेटा या तुम्हें जीवनसाथी चाहिए, तो दोनों बिलकुल नई शुरुआत क्यों नहीं करती हो? दूसरे की कितनी भी स्वादिष्ठ जूठन खाने की तुम दोनों को जरूरत ही क्या है?’’

कई पलों तक खामोश खड़ी रह कर सीमा वंदना को आंसू बहाते देखती रही. फिर आगे बढ़ कर उस ने वंदना का माथा चूम कर एक शब्द मुंह से निकाला, ‘‘थैंक यू.’’

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आगे और कुछ बोले बिना सीमा झटके से मुड़ी और ड्राइंगरूम की दिशा में बढ़ गई.

ड्राइंगरूम में राकेश अभी भी दीवान पर सो रहा था. सीमा ने अपना पर्स मेज पर से उठाया और राकेश से अलविदा कहे बिना उस के घर से बाहर चली आई.

राकेश से हमेशा के लिए अपना अवैध प्रेम संबंध समाप्त करने का फैसला पलपल उस के मन में अपनी जड़ें मजबूत करता जा रहा था.

Serial Story: जूठन– भाग 2

‘‘मैं तुम्हारे साथ तुम्हारी प्रेमिका व दोस्त बन कर रहने को तैयार हूं, पर शादी कर के साथसाथ जिंदगी गुजारने का मजा ही कुछ और होगा. इस बारे में क्या कहते हो राकेश?’’ करीब महीना भर पहले सीमा ने राकेश के फ्लैट में उसे बैड टी पेश करते हुए यह सवाल पूछ ही लिया था.

‘‘तुम तैयार हो तो मैं तुम से आज ही दूसरी शादी करने को तैयार हूं,’’ राकेश ने उस के सवाल का जवाब मजाकिया अंदाज में दिया.

‘‘वैसा करना तो खुद को धोखा देना होगा, राकेश,’’ सीमा गंभीर बनी रही.

‘‘अगर तुम ऐसा समझती हो, तो शादी करने की बात क्यों उठा रही हो?’’

‘‘अपने मन की इच्छा तुम्हें नहीं, तो किसे बताऊंगी.’’

‘‘वह ठीक है, पर हमारी शादी होने का कोई रास्ता है भी तो नहीं.’’

‘‘तुम मुझे दिल की गहराइयों से प्रेम करते हो न?’’

‘‘बिलकुल,’’ राकेश ने उस के होंठों को चूम लिया.

‘‘तुम ने हमेशा मुझ से कहा है कि तुम्हारी पत्नी वंदना नहीं, बल्कि मैं तुम्हारे दिल पर राज करती हूं. यह सच है न?’’

‘‘हां, वंदना मेरे दोनों बेटों की मां है. वह सीधीसादी औरत वैसे आकर्षक व्यक्तित्व की मालकिन नहीं जैसी मैं चाहता था. अपने मातापिता की पसंद से मुझे शादी नहीं करनी चाहिए थी, पर अब मैं अपना कर्तव्य समझ कर वंदना के साथ जुड़ा हुआ हूं,’’ राकेश ने गंभीर लहजे में उस से अपने मन की बात कही.

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‘‘क्या हमारी खुशियों की खातिर तुम वंदना को तलाक नहीं दे सकते हो?’’ सीमा ने तनावग्रस्त लहजे में अपनी इच्छा बयान कर ही दी.

‘‘नहीं, और इस बारे में तुम मुझ पर कभी दबाव भी मत बनाना, सीमा. वंदना मुझे छोड़ने का फैसला कर ले, तो बात जुदा है. उस से तलाक लेने की बात करते हुए मैं अपनी नजरों में बुरी तरह गिर जाऊंगा, क्योंकि वह तो मेरे प्रति पूरी तरह से समर्पित है. बिना कुसूर उसे तलाक की पीड़ा से गुजारना बिलकुल अन्यायपूर्ण होगा,’’ राकेश के बोलने का लहजा ऐसा कठोर था कि सीमा ने इस विषय पर आगे एक शब्द नहीं कहा.

उसी दिन सीमा ने वंदना से मिलने का फैसला मन ही मन कर लिया था. ऐसा करने का कोई साफ मकसद उसे समझ नहीं आया, पर वह वंदना के व्यक्तित्व को समझने की इच्छुक जरूर थी. मन के किसी कोने में शायद यह उम्मीद छिपी थी कि वंदना खुद राकेश से अलग हो जाए और इस लक्ष्य को पूरा करने का कोई रास्ता इस मुलाकात के जरीए सीमा के हाथ लग जाए.

वंदना उसे बहुत सीधीसादी साधारण सी महिला लगी. उस ने सीमा का खुले दिल से स्वागत किया, तो सीमा के लिए उस के प्रति अपने मन में चिड़, नाराजगी व दुश्मनी के भाव पैदा करना मुश्किल हो गया.

वंदना के प्रति उसे राकेश का व्यवहार जरूर अजीब लगा. अगर वह राकेश से प्रेम न करती होती, तो उसे अपने प्रेमी का उस की पत्नी से व्यवहार सरासर गलत, घटिया और अन्यायपूर्ण लगता.

अपने घर में राकेश उस के साथ खूब खुल कर हंसबोल रहा था. उसे न सीमा का हाथ पकड़ने से परहेज था, न रोमांटिक वाक्य मुंह से निकालने से. कहीं वंदना यह सब देख न ले, इस बात का भय सिर्फ सीमा को था, राकेश को नहीं. जब एक मौके पर राकेश ने उसे अचानक बांहों में भर कर उस के होंठों को चूमा, तो सीमा बहुत घबरा उठी.

‘‘यह क्या कर रहे हो राकेश? अगर वंदना ने हमें ऐसी गलत हरकत करते देख लिया, तो कम से कम मुझे बहुत शर्मिंदगी महसूस होगी,’’ वह सचमुच परेशान और नाराज हो उठी.

‘‘रिलैक्स, सीमा,’’ राकेश लापरवाह अंदाज में मुसकराया, ‘‘मेरे दिल में तुम्हारे लिए सच्चा प्यार है. तुम मेरे लिए सिर्फ वासनापूर्ति का साधन नहीं हो. जो वंदना से कभी नहीं मिली, वह खुशी तुम से जुड़ कर पाई है मैं ने.’’

‘‘लेकिन यहां… वंदना की मौजूदगी में… उस के घर में तुम मुझे प्यार करो, यह मुझे बिलकुल अच्छा नहीं लगा.’’

‘‘अब कुछ गड़बड़ नहीं करूंगा, पर तुम एक बात का ध्यान रखो.’’

‘‘किस बात का?’’

‘‘वंदना से डरो मत. अगर कभी उस ने मुझे मजबूर किया, तो मैं तुम्हारा साथ चुनूंगा और उसे छोड़ दूंगा,’’ राकेश की अत्यधिक भावुकता सीमा को अच्छी तो लगी, पर उस के दिल का एक कोना बेचैन भी हो उठा.

सीमा के मन में वंदना के साथ वार्त्तालाप करने की इच्छा अचानक बहुत बलवती हो गई. उस के व्यक्तित्व, उस की खूबियों व कमियों को जाननासमझना सीमा के लिए अहम था. ऐसा किए बिना वह राकेश को उस से अलग करने का कोई रास्ता नहीं ढूंढ़ सकती थी.

उसे अपने मन की इच्छा पूरी होती नजर आ रही थी. राकेश एक पल के लिए उस के पास से उठने के मूड में नहीं था. उस की दिलचस्पी वंदना को बुला कर उसे वार्त्तालाप में शामिल करने में रत्ती भर न थी. वंदना भोजन की तैयारी में व्यस्त थी. सीमा का मन कह रहा था कि वह जानबूझ कर उन दोनों से दूर रहने को अति व्यस्तता का बहाना बना रही थी.

वंदना ने उन के साथ खाना भी नहीं खाया. सीमा ने काफी जोर लगाया, पर वह साथ खाने नहीं बैठी.

‘‘वंदना हमेशा मुझे खिला कर खाना खाती है. तुम शुरू करो, यह बाद में खा लेगी,’’ राकेश लापरवाही से बोला और फिर बड़े उत्साह के साथ सीमा की प्लेट भरने में लग गया.

सीमा ने नोट किया कि सारी चीजें राकेश की पसंद की और स्वादिष्ठ बनी थीं.

‘‘खाना कैसा बना है?’’ राकेश ने यह सवाल वंदना की उपस्थिति में सीमा से पूछा.

‘‘बहुत बढि़या,’’ सीमा ने उत्साहित लहजे में सचाई बयान करी.

‘‘वंदना वाकई बहुत अच्छा खाना बनाती है. इसी कारण मैं वजन नहीं कम कर पाता हूं.’’

सीमा ने देखा कि राकेश के मुंह से अपनी जरा सी तारीफ सुन कर वंदना का चेहरा फूल सा खिल उठा. राकेश उस की तरफ देख भी नहीं रहा था, पर वंदना की प्यार भरी नजरों का केंद्र वही था.

‘वंदना राकेश को बहुत चाहती है. शायद यह उसे तलाक देने को कभी राजी नहीं होगी,’ सीमा के मन में यह विचार अचानक उभरा और वह बेचैनी से भर गई.

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खाना खाने के बाद राकेश ड्राइंगरूम में पड़े दीवान पर लेट गया. कुछ देर सीमा से बातें करने के बाद उस की आंख लग गई. सीमा उस के पास से उठ कर वंदना से मिलने रसोई में पहुंच गई.

आगे पढ़ें- वंदना को 2 प्लेटों में खाना लगाते देख सीमा ने पूछा, ‘‘तुम्हारे…

Serial Story: जूठन– भाग 1

मेरठ पहुंचने के बाद सीमा को राकेश का घर ढूंढ़ने में ज्यादा परेशानी नहीं हुई. कार से उतर कर वह मुख्य दरवाजे की तरफ चल पड़ी. इस वक्त ऊपर से शांत व सहज नजर आने के बावजूद अंदर से उस का मन काफी बेचैन था.

दरवाजा खोलने वाली स्त्री से नमस्ते कर के उस ने पूछा, ‘‘क्या राकेश घर पर हैं?’’

‘‘तुम सीमा हो न?’’ उस स्त्री की आंखों में एकदम से पहचानने के भाव उभरे और फिर मुसकरा दी.

‘‘हां, पर आप ने कैसे पहचाना?’’

‘‘एक बार इन्होंने औफिस के किसी फंक्शन की तसवीरें दिखाई थीं. अत: याद रह गई. आओ, अंदर चलो,’’ सीमा का हाथ अपनेपन से पकड़ वह उसे घर के भीतर ले गई.

‘‘मैं कौन हूं यह तो तुम समझ ही गई होगी. मेरा नाम…’’

‘‘वंदना है,’’ सीमा ने उसे टोका, ‘‘मैं भी आप को पहचानती हूं. राकेश के फ्लैट में जो फैमिली फोटो लगा है, उसे मैं ने कई बार देखा है.’’

सीमा के कहे पर कोई खास प्रतिक्रिया व्यक्त न कर के वंदना ने सहज भाव से पूछा, ‘‘इन की बीमारी के बारे में कैसे पता चला?’’

‘‘राकेश मेरे सीनियर हैं. उन से रोज मुझे फोन पर बात करनी पड़ती है. अब कैसी तबीयत है उन की?’’ जवाब देते हुए सीमा की आवाज में झिझक या घबराहट के भाव नहीं थे.

‘‘तुम्हारे इस सवाल का जवाब वे खुद देंगे. मैं उन्हें भेजती हूं. बस यह बता दो कि तुम चायकौफी पीओगी या ठंडा?’’

‘‘कौफी मिल जाए तो बढि़या रहेगा.’’

‘‘तुम हमारी खास मेहमान हो, सीमा. आज तक इन के औफिस के किसी अन्य सहयोगी से

मैं नहीं मिली हूं. तुम्हारी खातिरदारी में मैं कोई कसर नहीं छोड़ूंगी. मैं उन्हें भेजती हूं,’’ बड़े दोस्ताना अंदाज में अपनी बात कह कर वंदना अंदर चली गई.

अकेली बैठी सीमा ने ड्राइंगरूम में चारों तरफ नजर दौड़ाई. हर चीज

साफसुथरी व करीने से सजी थी. वंदना एक कुशल गृहिणी है, यह बात ड्राइंगरूम की हालत साफ दर्शा रही थी.

फिर उस का मन वंदना के व्यक्तित्व के बारे में सोचने लगा. उस के नैननक्श सुंदर होने के कारण सांवला चेहरा भी आकर्षित करता था.

2 बेटों की मां बनने के कारण शरीर कुछ ज्यादा भरा था, पर वह पूरी तरह चुस्त व स्वस्थ नजर आती थी.

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सीमा को पता था कि वह सिर्फ 10वीं कक्षा तक पढ़ी है. उस का यह अनुमान गलत निकला कि वंदना घरगृहस्थी के झंझटों में उलझी परेशान व थकीहारी सी स्त्री निकलेगी. सुबह के 10 बजे उस ने उसे उचित ढंग से तैयार व आत्मविश्वास से भरा पाया था.

कुछ देर बाद राकेश ने ड्राइंगरूम में प्रवेश किया. सीमा के बिलकुल पास आ कर उस ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘तुम्हें यहां देख कर बड़ी सुखद हैरानी हो रही है. कल फोन पर तुम ने बताया क्यों नहीं कि यहां आओगी?’’

‘‘मैं बताती, तो क्या तुम मुझे आने देते?’’ सीमा उस के हाथ पर हाथ रख कर शरारती अंदाज में मुसकराई.

‘‘शायद नहीं.’’

‘‘तभी मैं ने बताया नहीं और चली आई. आज तबीयत कैसी है?’’

‘‘पिछले 2 दिनों से बुखार नहीं आया, पर कमजोरी बहुत है.’’

‘‘दिख भी बहुत कमजोर रहे हो. अभी कुछ दिन आराम करो.’’

‘‘नहीं, परसों सोमवार से ड्यूटी पर आऊंगा. तुम से ज्यादा दिन दूर रहना अच्छा भी नहीं लग रहा है.’’

‘‘जरा धीमे बोलो वरना तुम्हारी श्रीमतीजी सुन लेंगी. वैसे एक बात पूछूं?’’

‘‘पूछो.’’

‘‘क्या वंदना को हमारे प्यार के बारे में अंदाजा है?’’

‘‘होगा ही, पर उस ने अपने मुंह से कभी कुछ कहा नहीं है,’’ राकेश ने लापरवाही से कंधे उचका कर जवाब दिया.

‘‘उन के अच्छे व्यवहार से तो मुझे ऐसा लगा कि उन के मन में मेरे प्रति कोई शिकायत या नाराजगी नहीं है.’’

‘‘तुम मेरी परिचित और सहयोगी हो, और इसी कारण वह तुम से गलत व्यवहार करने की हिम्मत नहीं कर सकती. तुम मेरे घर में बिलकुल सहज हो कर हंसोबोलो, सीमा. वंदना को ले कर मन में किसी तरह की टैंशन मत पैदा करो,’’ उस का गाल प्यार से थपथपाने के बाद राकेश सामने वाले सोफे पर बैठ गया.

राकेश उस से औफिस की गतिविधियों के बारे में पूछने लगा. कुछ देर बाद वंदना कौफी व नाश्ते का सामान मेज पर रख कर चली गई. सीमा ने उसे साथ में कौफी पीने को कहा, पर रसोई के काम का बहाना बना वंदना उन के पास नहीं बैठी.

अपने प्रेमी राकेश से कई दिनों बाद आमनेसामने बैठ कर बातें करते हुए सीमा वंदना को भूल सी गई. वंदना मेज से कपप्लेट उठा कर ले जाने के बाद ड्राइंगरूम में साथ बैठने आई भी नहीं.

सीमा को राकेश के प्रेम में पड़े 1 साल से ज्यादा समय हो चुका था. उस के आकर्षक व्यक्तित्व ने पहली मुलाकात से ही उस के दिलोदिमाग पर जादू सा कर दिया था. दुनिया के कहने की परवाह न करते हुए उस ने कुछ सप्ताह बाद ही अपना तनमन राकेश को समर्पित कर दिया था.

उन के प्रेम संबंध की जानकारी जब सीमा के मातापिता को मिली, तब उन्होंने खूब शोर मचाया.

‘‘मैं अब 30 साल की हो रही हूं. मुझे छोटी लड़की समझ कर रातदिन समझाने की आदत छोड़ दीजिए आप दोनों,’’ सीमा ने एक शाम उन दोनों को सख्त लहजे में समझा दिया, ‘‘मेरी शादी की फिक्र न करें, क्योंकि उचित समय पर इस काम को अंजाम देने में आप दोनों असफल रहे हैं. अपने भविष्य के सुखदुख की चिंता मैं खुद कर लूंगी. अगर मुझे राकेश से मेरे संबंध को ले कर आप दोनों ने परेशान करना जारी रखा, तो मैं अपने रहने का अलग इंतजाम कर लूंगी.’’

सीमा की ऐसी धमकी के बाद उस के मातापिता ने नाराजगी भरी खामोशी इख्तियार कर ली. अपनी कमाऊ व जिद्दी बेटी से जबरदस्ती कुछ करवा या मनवा लेना उन के लिए अतीत में भी कभी संभव नहीं रहा था.

उम्र बढ़ती गई और जब कोई मनपसंद जीवनसाथी सामने नहीं आया तो सीमा ने मन ही मन अविवाहित रहने का फैसला कर लिया था. लेकिन अकेले जिंदगी काटना आसान नहीं होता. अपने परिवार से दूर अकेले रह रहे सुंदर व स्मार्ट राकेश ने प्रयास कर के उस के दिल में प्रेम की जगह बना ही ली थी.

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इस प्रेम संबंध ने सीमा की नीरस जिंदगी में खुशी, संतोष और मौजमस्ती का रस भर दिया. राकेश उस के दिलोदिमाग पर ऐसा छा गया कि उस के साथ जिंदगी गुजारने की इच्छा सीमा के मन में धीरेधीरे मजबूत जड़ें पकड़ने लगी.

आगे पढ़ें- करीब महीना भर पहले सीमा ने राकेश के फ्लैट में…

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