वंदना को 2 प्लेटों में खाना लगाते देख सीमा ने पूछा, ‘‘तुम्हारे अलावा और किस ने खाना नहीं खाया है, वंदना?’’
‘‘यह दूसरी प्लेट का खाना सामने रहने वाली मेरी सहेली निशा के लिए है,’’ वंदना ने खिड़की की तरफ उंगली उठा कर सीमा को अपनी सहेली का घर दिखाया.
‘‘वह यहीं आएगी क्या?’’
‘‘नहीं, मेरा बड़ा बेटा सोनू प्लेट उस के घर दे आएगा.’’
‘‘तुम्हारे दोनों बेटों से तो मैं मिली ही नहीं हूं. कहां हैं दोनों?’’
‘‘छोटे भानू को खांसीबुखार है. वह अंदर कमरे में सो रहा है. सोनू को मैं बुलाती हूं. वह सुबह से निशा के यहां गया हुआ है.’’
वंदना ने पीछे का दरवाजा खोल कर सोनू को आवाज दी. कुछ मिनट बाद सोनू निशा के घर से भागता हुआ बाहर आया.
अपनी मां के कहने पर उस ने सीमा आंटी को नमस्ते करी. बड़ी सावधानी से निशा के लिए लगाई गई खाने की प्लेट दोनों हाथों में पकड़ कर वह फौरन निशा के घर लौट गया.
‘‘बहुत प्यारा बच्चा है,’’ सीमा ने सोनू की तारीफ करी.
‘‘निशा भी उसे अपनी जान से ज्यादा चाहती है… बिलकुल एक मां की तरह. सोनू को 2 मांओं का प्यार मिल रहा है,’’ वंदना ने सीमा की आंखों में झांकते हुए गंभीर लहजे में कहा.
पीछे के बरामदे में एक गोल मेज के इर्दगिर्द 4 कुरसियां रखी थीं. वे दोनों वहीं बैठ गईं. वंदना ने धीरेधीरे खाना खाना शुरू कर दिया.
‘‘क्या निशा के पास अपना बेटा नहीं है?’’ सीमा ने वार्त्तालाप आगे बढ़ाया.
‘‘उस ने तो शादी ही नहीं करी है… तुम्हारी तरह अविवाहित रहने का फैसला कर रखा है
उस ने. हर औरत के सीने में मां का दिल मौजूद होता है. निशा उस दिल में भरी ममता खुले हाथों मेरे सोनू पर लुटाती है, ’’ वंदना ने मुसकराते हुए कहा.
कुछ देर खामोश रह कर सीमा बोली, ‘‘यह सच है कि कभी मैं ने शादी न करने का
फैसला किया था, लेकिन अब मैं किसी के साथ मैं अपनी बाकी जिंदगी गुजारना चाहती हूं. इसी सिलसिले में तुम से कुछ बातें करने आई हूं.’’
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‘‘मैं निशा को भी हमेशा कहती हूं कि शादी कर ले, पर वह सुनती ही नहीं. कहती है कि शादी किए बिना ही मुझे सोनू जैसा प्यारा बेटा मिल गया है, तो मैं बेकार किसी अनजान आदमी से जुड़ कर अपनी स्वतंत्रता क्यों खोऊं. मेरा सोनू उस के बुढ़ापे का सहारा बनेगा, यह विश्वास उस के मन में बहुत मजबूती से बैठ गया है,’’ सीमा के कहे को अनसुना कर वंदना ने निशा और सोनू के संबंध में बोलना जारी रखा.
‘‘राकेश और मैं एकदूसरे को साल भर से ज्यादा समय से जानते हैं. उन से मिलने के बाद ही मेरे जीवन में खुशियां लौटीं, नहीं तो बड़ी नीरस हुआ करती थी मेरी जिंदगी,’’ वंदना के कहे में दिलचस्पी न दिखा कर सीमा ने भी
अपने मन की बातें उसे बताने का सिलसिला
जारी रखा.
‘‘इस निशा की जिंदगी में खुशियों का उजाला मेरे सोनू के कारण है. आए दिन कुछ न कुछ उपहार सोनू को उस से मिल जाता है.’’
‘‘राकेश और मेरे संबंध अच्छी दोस्ती की सीमा को लांघ कर और ज्यादा गहरे हो चुके हैं. वे मुझे बहुत प्रेम करते हैं,’’ सीमा ने वंदना से एक झटके में अपने दिल की बात कह ही दी.
वंदना उदास सी मुसकान अपने होंठों पर ला कर बोली, ‘‘मेरे सोनू का दिल
जीतने को इस निशा ने उसे बहुत बड़ा लालच दे रखा है. खूब पैसे खर्च कर के उस ने सोनू को बाजार की चटपटी चीजें खाने का चसका लगवा दिया है. अब मेरे बेटे को घर का खाना फीका लगता है.’’
‘‘सोनू की बात छोड़ कर तुम राकेश के बारे में मुझ से बातें क्यों नहीं कर रही हो?’’ सीमा चिढ़ उठी.
बड़े अपनेपन से सीमा का कंधा दबाने के बाद वंदना ने उसी सुर में बोलना जारी रखा, ‘‘निशा को अच्छा खाना बनाना नहीं आता है. उस के घर की रसोई सूनी पड़ी रहती है. सोनू अगर उस का अपना बेटा होता, तो क्या वह अपनी घरगृहस्थी को सजानेसंवारने की जिम्मेदारियों से यों बचती? अपने बेटे को अपने हाथों से बढि़या खाना बना कर खिलाना क्या उसे तब बोझ लगता?’’
‘‘एक मां को अपने बेटे की इच्छाएं पूरा करना बोझ नहीं लगता है.’’
‘‘जिस से प्रेम हो, उस की खुशी के लिए कुछ भी करना बोझ नहीं हो सकता. यह निशा तो मेरे सोनू को कानूनन गोद लेने को भी मुझ पर आएदिन दबाव डालती रहती है.’’
‘‘और इस विषय में तुम्हारा जवाब क्या है, वंदना?’’
वंदना धीमे से हंसने के बाद बोली, ‘‘बिना प्रसव पीड़ा भोगे क्या कोई स्त्री सच्चे अर्थों में मां बन सकती है? घरगृहस्थी के झंझटों व चुनौतियों का सामना करने की शक्ति, खुद कष्ट उठा कर अपने बच्चों की हर सुखसुविधा का ध्यान रखने का जज्बा एक मां के ही पास होता है… किसी मौसी, चाची, आंटी या आया के बस का नहीं है दिल से उतनी मेहनत करना.’’
‘‘यह तो तुम ठीक ही कह रही हो. मैं भी अब अपनी घरगृहस्थी बसाने…’’
वंदना ने उसे टोक कर चुप किया और गंभीर लहजे में आगे बोली, ‘‘मेरे सोनू को निशा कितना भी प्यार करे, पर वह हमेशा मेरा बेटा ही रहेगा… सारा समाज उसे मेरे बेटे के नाम से ही जानता है. निशा के गिफ्ट, उस का सोनू के लिए खूब खर्चा करना, सोनू की उस के घर पर जाने की चाह जैसी बातें इस तथ्य को कभी बदल नहीं सकतीं कि वह मेरा बेटा है. मैं तुम से एक बात पूछूं?’’
‘‘पूछो,’’ सीमा अचानक गंभीर हो गई, क्योंकि उसे पहली बार यह एहसास हुआ कि वंदना सोनू और निशा की बातें कर के उस से कुछ खास कहना चाह रही है.
‘‘मैं अपने कलेजे के टुकड़े को निशा को गोद देने के लिए मजबूरन राजी भी हो जाऊं, तो क्या वह सचमुच मेरे बेटे की मां बन जाएगी? सोनू को जन्म देने का आनंद उसे कैसे मिलेगा? उस के साथ अब तक बिताए 8 सालों की पीड़ा व खुशियां देने वाली जो यादें मेरे पास हैं, उन्हें निशा कहां से लाएगी? क्या मुझे रुला कर वह हंस पाएगी?’’ वंदना की आंखों में अचानक आंसू छलक आए.
सीमा एक गहरी सांस खींच कर बोली, ‘‘तुम्हारा दिल दुखाए बिना निशा सोनू को नहीं पा सकती है और तुम्हारी सहेली होने के नाते उसे सोनू को बेटा बनाने की चाह छोड़ देनी चाहिए. मुझे भी तुम से मिलने नहीं आना चाहिए था. तुम्हारे व्यक्तित्व को जानने के बाद मेरे मन की बेचैनी व असंतोष और ज्यादा बढ़ा है.’’
वंदना ने उस के हाथ पर हाथ रखा और भरे गले से बोली, ‘‘सीमा, तुम्हें अपनी छोटी बहन मान कर कुछ अपने दिल की बातें कहती हूं. मुझे अपने बच्चों, पति व घरगृहस्थी से ज्यादा प्यारा और कुछ नहीं है. राकेश को छोड़ने की कल्पना करना भी मेरे लिए असहनीय है.
‘‘राकेश मुझ से ज्यादा तुम्हें चाहते हैं, जो मेरे लिए ठीक नहीं है, उन की हर सुखसुविधा का खयाल मैं खुशीखुशी रखती हूं. अपने बेटों को वे अपनी जान से ज्यादा चाहते हैं. उन के कारण वे सदा इस घर से जुड़े रहेंगे, यह बात मेरे मन को गहरा संतोष और सुरक्षा देती है.’’
‘‘तुम उतनी सीधीसादी हो नहीं, जितना दिखती हो. मैं तुम्हारे पास और ज्यादा देर नहीं बैठना चाहती,’’ सीमा अचानक उठ खड़ी हुई.
वंदना ने उदास लहजे में जवाब दिया, ‘‘अगर तुम मेरे दिल में झांकने की क्षमता पैदा
कर सको, तो तुम्हें मुझ से सहानुभूति होगी.
मुझ पर दया आएगी. प्रेम के बदले प्रेम न पाने
की पीड़ा में लाख कोशिश कर के भी नहीं भुल पाती हूं.’’
‘‘राकेश और सोनू के व्यवहार में बड़ी समानता है. मेरे पति तुम से और बेटा निशा से अपनी खुशियों की खातिर जुड़े हुए हैं, लेकिन इस घर से संबंध तोड़ने में दोनों की कतई दिलचस्पी नहीं है.
बाजार का खाना मेरे बेटे की सेहत के लिए बुरा है, यह जानते हुए भी मैं
सोनू की खुशी की खातिर चुप रहती हूं. राकेश तुम से जुड़े हैं, इस की शिकायत भी मैं कभी उन से नहीं करूंगी.
‘‘मेरे बेटे व मेरे पति से मेरा संबंध मेरी मौत ही तोड़ सकती है. मैं तो हर हाल में इन के साथ संतुष्ट रह लूंगी, पर निशा को या तुम्हें इन के साथ भावनात्मक रूप से जुड़ कर क्या मिल रहा है? उसे बेटा या तुम्हें जीवनसाथी चाहिए, तो दोनों बिलकुल नई शुरुआत क्यों नहीं करती हो? दूसरे की कितनी भी स्वादिष्ठ जूठन खाने की तुम दोनों को जरूरत ही क्या है?’’
कई पलों तक खामोश खड़ी रह कर सीमा वंदना को आंसू बहाते देखती रही. फिर आगे बढ़ कर उस ने वंदना का माथा चूम कर एक शब्द मुंह से निकाला, ‘‘थैंक यू.’’
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आगे और कुछ बोले बिना सीमा झटके से मुड़ी और ड्राइंगरूम की दिशा में बढ़ गई.
ड्राइंगरूम में राकेश अभी भी दीवान पर सो रहा था. सीमा ने अपना पर्स मेज पर से उठाया और राकेश से अलविदा कहे बिना उस के घर से बाहर चली आई.
राकेश से हमेशा के लिए अपना अवैध प्रेम संबंध समाप्त करने का फैसला पलपल उस के मन में अपनी जड़ें मजबूत करता जा रहा था.