रेटिंगः दो स्टार
निर्माताः धर्मा प्रोडक्शंस और वायकाम 18 स्टूडियो
निर्देशकः राज मेहता
कलाकारः अनिल कपूर, नीतू कपूर, वरूण धवन, किआरा अडवाणी, मनीष पौल, प्रजाक्ता कोली, टिस्का चोपड़ा, वरूण सूद, एलनाज नौरोजी व अन्य.
अवधिः दो घंटे तीस मिनट
‘‘गुड न्यूज’’ फेम निर्देशक राज मेहता इस बार पारिवारिक ड्रामा वाली हास्य फिल्म ‘‘जुग जुग जियो’’ लेकर आए हैं, जो कि काफी निराश करती है.
कहानीः
फिल्म की कहानी पटियाला, पंजाब के एक परिवार की है, जिसके मुखिया भीम हैं. भीम(अनिल कपूर) के परिवार में उनकी पत्नी गीता(नीतू कपूर), बेटा कुकू(वरूण धवन ), कुकू की पत्नी नैना (किआरा अडवाणी) और बेटी गिन्नी ( प्रजाक्ता कोली ) है. इस अत्याधुनिक परिवार की लीला अजीब है. भीम अपनी शादी के 35 वर्ष बाद अपनी पत्नी गीता को तलाक देने जा रहे हैं, पर वजह नही पता. जबकि उनका बेटा कुकू शादी के पांच वर्ष बाद अपनी पत्नी नैना को तलाक देेने जा रहा है, इसे भी वजह पता नही. बेटी गिन्नी प्यार तो गौरव से करती है, मगर अपने माता पिता व भाई भाभी को आदर्श दंपति मानते हुए पिता द्वारा सुझाए गए युवक बलविंदर से विवाह करने जा रही है. कुकू और नैना एक दूसरे से पांचवीं कक्षा में पढ़ते समय से प्यार करते आ रहे हैं और दोनों शादी भी कर लेते हैं. शादी के बाद दोनो टोरंटो , कनाडा चले जाते हैं, क्योंकि वहां पर नैना की नौकरी लग जाती है. जबकि कुकू वहां पर नाइट क्लब में बाउंसर की नौकरी करने लगते हैं. अचानक शादी की पांचवीं सालगिरह के दिन दोनों एक दूसरे को तलाक लेेने का निर्णय सुना देते हैं. पर तय करते हैं कि पटियाला में गिन्नी की शादी के ेबाद यह दोनो अपने निर्णय से परिवार के सदस्यों को अवगत कराएंगे. पटियाला पहुॅचकर दोनांे आम शादी शुदा जोड़े की ही तरह रहते हैं. गिन्नी की शादी की रस्में शुरू होती है और एक दिन भीम शराब के नशे में अपने बेटे कुकू से कह देता है कि गिन्नी की शादी के बाद वह गीता को तलाक देकर अपनी प्रेमिका मीरा( टिस्का चोपड़ा) के साथ रहने जा चले जाएंगे. यह बात कुकू को पसंद नही आती. फिर कुकू अपने साले गुरप्रीत शर्मा (मनीष पौल ) की सलाह पर बलविंदर से बैचलर पार्टी में भीम को भी बुलाने के लिए दबाव डालते हैं, जिससे भीम की ठरक मिट सके. पर यहां एक अलग ही हंगामा हो जाता है. उधर गिन्नी अपनी बैचलर पार्टी से बाहर निकलकर अपने प्रेमी गौरव (वरूण सूद ) के साथ ‘किसिंग’ करती है. कई तरह के नाटकीय घटनाक्रमों के साथ फिल्म का अंत हो जाता है.
लेखन व निर्देशनः
कहानी व पटकथा की नींव ही कमजोर है. कहानी को बेवजह रबर की तरह खींचा गया है. ढाई घंटे की अवधि वाली इस फिल्म में लेखक व निर्देशक दोनों यह नही बता सके कि नैना यानी कि किआरा अडवाणी कनाडा में कहां नौकरी करती है और नैना व कुकू के बीच तलाक की नौबत क्यों आयी? जबकि पत्नी नैना के कैरियर के लिए कुकू पटियाला छोड़कर कनाडा जाकर बाउंसर की नौकरी करता है. इसी तरह भीम क्यों गीता केा छोड़कर मीरा के साथ जिंदगी जीने का निर्णय लेता है, नही बताया. एक तरफ गीता, नैना को समझाती है कि विवाह को सफल बनाने के लिए नारी को समझौतावादी होना चाहिए, तो कुछ समय बाद वह सम्मान की भी बात करती है. पूरी तरह से लेखक व निर्देशक खुद ही कंन्फ्यूज हैं. उन्हे नही पता कि वह किस तरह की की कहानी सुनाना चाहते हैं. नैना व ककू के जो हालात हैं, वही हालात ज्यों का त्यों 2006 में आयी फिल्म ‘कभी अलविदा ना कहना’ में शाहरुख खान व रानी मुखर्जी के किरदारों के बीच दर्शक देख चुके हैं. इतना ही नही फिल्म के संवादो मंे कहीं कोई अहसास नजर नहीं आता. कहानी पंजाबी पृष्ठभूमि की है, इसलिए कहीं भी बेवजह पंजाबी गाने ठॅंूसे गए हैं. तलाक जैसे संवेदनशील मुद्दे पर राज मेहता दर्शकों को अच्छी कहानी सुनाने में बुरी तरह से असफल रहे हैं. फिल्म का क्लायमेक्स एकदम घटिया है. क्लायमेक्स में लेखक व निर्देशक यह भी भूल गए कि वह भारतीय परिवार की कहानी बता रहे हैं. गानों के फिल्मांकन में पानी की तरह पैसा बहाया गया है, मगर सब बेकार. एक भी गाना प्रभाव नहीं छोड़ता. डेढ़ सौ करोड़ की लागत वाली इस फिल्म में दर्शकों को बांध कर रखने की ताकत नही है.
अभिनयः
राज मेहता की किस्मत अच्छी रही कि उन्हे बेहतरीन कलाकारों के साथ काम करने का अवसर मिला. सभी कलाकारों ने अपनी तरफ से सर्वश्रेष्ठ देेने का प्रयास किया है, मगर जब उन्हे कहानी, पटकथा व संवादों का सहयोग नहीं मिलेगा, तो कलाकार क्या करेगा?फिर भी कुकू के किरदार में वरूण धवन ने बेहतरीन अभिनय किया है. नृत्य हो या नाटकीय दृश्य या हास्य हर जगह वह बेहतर कलाकार के रूप में उभरते हैं. किआरा अडवाणी ने एक बार फिर साबित कर दिखाया कि उनके अंदर अभिनय प्रतिभा की कमी नही है. नीतू कपूर को अभिनय में वापसी के लिए इससे अच्छा अवसर नही मिल सकता था. लेकिन इन सभी कलाकारों के मुकाबले अति उत्तम अभिनय अनिल कपूर का रहा. वह पूरी फिल्म को अपने कंधों पर लेकर चलते हैं. हास्य और भावनाओं के बीच बेहतरीन सामंजस्य बैठाने का काम अनिल कपूर ने ही किया है.