जब मोहना के घरवाले लौट गए तो मोहना ने दरवाजे की ओट से रानी ओर किशोरजी बातें सुनीं.
‘‘मैं ने सोचा था कि शादी के बाद विलास ठीक हो जाएगा… सभी हो जाते हैं. पर ये तो अब तक वहीं अटका हुआ है,’’ किशोरजी कह रहे थे.
‘‘हां, मुझे भी कहां लगा था कि बहू इस का मन नहीं बदल पाएगी,’’ रानी भी हां में हां मिला रही थीं.
मोहना को अब यह बात बिलकुल स्पष्ट हो चुकी थी कि जो करना है उसे ही करना पड़ेगा. विलास एक बहुत अच्छा पति है, सुलझा हुआ, संवेदनशील और प्यार करने वाला किंतु जीवन में शारीरिक सामीप्य की जो खाई थी, क्या मोहना उस के साथ अपना पूरा जीवन काट सकेगी? अब इस प्रश्न का उत्तर उसे स्वयं ही देना था. बात थी भी इतनी कि किस से कहती वह?
घर पर त्योहार मनाने का सब से बड़ा फायदा जो मोहना को हुआ वह यह रहा कि अब उस ने
अपने जीवन की बागडोर अपने हाथों में लेने का निर्णय कर लिया. वापस मुंबई लौट कर मोहना ने विलास के आगे एक छोटी सी ट्रिप पर चलने का प्रस्ताव रखा. कई बार जो बातें रोजमर्रा के माहौल में नहीं हो पातीं वह पर्यटन स्थलों पर फ्रैश मूड में बहुत अच्छे से हो जाती हैं. इसी सोच से मोहना ने ये बात कही जो विलास ने सहर्ष स्वीकार कर ली.
आने वाले वीकैंड पर दोनों ने पंचगनी का ट्रिप बनाया. जहां मुंबई का तापमान हमेशा एकसा रहता है वहीं पंचगनी की हलकी ठंड से लिपटी शामें विलास और मोहना के लिए एक अच्छा बदलाव थीं. शौल ओढ़े, बोनफायर के आसपास बैठे दोनों ने अपने रिजार्ट में एक अच्छा दिन बिताया. अगले दिन दोनों ने यहां के प्रसिद्ध पर्यटक स्थलों को देखने का मन बनाया. आर्थर सीट की ऊंचाई से कोइना वैली का अद्भुत नजारा देखा, एल्फिंस्टन पौइंट पर पहुंच कर दोनों ने गरमगरम मैगी खाई और मसाला छास पी, टेबल लैंड का विशाल क्षेत्र उन्होंने घुड़सवारी कर पूरा किया और वेणा लेक में बोटिंग कर एक यादगार दिन बिताया.
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‘‘यहां की प्रसिद्ध स्ट्राबेरी तो ले लो. रूम में चल कर खाएंगे,’’ मोहना ने कहा.
‘‘सिर्फ स्ट्राबेरी?’’ मैं तो यहां की स्ट्राबेरी वाइन भी लेने वाला हूं,’’ हंस कर विलास ने कहा.
दोनों काफी खुश थे. यही सही मौका है, आज ही विलास से अपने दिल की बात करनी होगी, मोहना ने सोच रखा था. रूम में पहुंच कर दोनों ने वाइन ले चीयर्स किया. मोहना का गंभीर चेहरा देख विलास ने कारण जानना चाहा, ‘‘क्या घर की याद आ रही है?’’
‘‘नहीं… लेकिन एक अत्यंत गंभीर विषय पर बात करनी है तुम से… सोच नहीं पा रही कैसे कहूं…’’ मोहना की हिचकिचाहट देख विलास को बात का अंदेशा होने लगा. आखिर अपनी कमी किसे पता नहीं होती. उस ने बात को आगे न बढ़ाते हुए दूसरी बात शुरू करनी चाही, ‘‘मोहना, छोड़ो ये गंभीर बातें. आज का दिन कितना अच्छा बीता, अब मूड मत औफ करो.’’
‘‘विलास, तुम क्या चाहते हो कि मैं केवल ऊपर से हंसती रहूं या अंदर से भी खुश रहूं?’’ मोहना आज इस विषय पर बात करने की ठान चुकी थी. आखिर कब तक इस रिश्ते को यों अधूरा सा जीती रहेगी वह, ‘‘प्लीज मुझे बताओ कि आखिर बात क्या है. मैं असली कारण जानना चाहती हूं. आखिर हम जीवनसाथी हैं, सारी उम्र हमें एकदूसरे का साथ निभाना है, चाहे सुख हो या दुख, चाहे तकलीफ हो या आनंद. अगर हम ही अपने दिलों की परतें हटा कर एकदूसरे से अपने मन की बात नहीं कह सकते तो फिर कैसा रिश्ता है यह? मैं तुम्हें अपना सब कुछ मान चुकी हूं और मैं जानती हूं कि तुम भी मुझ से प्यार करते हो. ये रिश्ता केवल सतही नहीं अपितु हम दोनों के दिलों को एक सूत्र में बांधता है. क्या तुम मुझ से अपने मन की व्यथा नहीं कह सकते? क्या रोकता है तुम्हें? क्या मैं तुम्हें पसंद नहीं? क्या तुम्हारा प्यार मेरी गलतफहमी है या फिर केवल परिवार के लिए लिया गया एक फैसला?’’ मोहना कहती चली गई. आज उस ने स्वयं को रोका नहीं. जो पीड़ा उस के मन में आज तक मरोड़ रही थी, उस ने आज उसे विलास के सामने उघाड़ कर रख दिया.
मोहना की आंतरिक तकलीफ ने विलास को भी विचलित कर दिया. उस ने सोचा न था कि ऊपर से हमेशा हंसती रहने वाली मोहना हृदय की गहराइयों में इतनी व्यथित होगी. किंतु अपने दिल की असलियत बयान करने से वह अभी भी हिचकिचा रहा था, ‘‘क्या बताऊं, मोहना… ऐसी कोई बात नहीं है. बस, यों ही कभी कुछ तो कभी कुछ कारणों की वजह से… तुम व्यर्थ ही इतना परेशान हो रही हो.’’
‘‘ठीक है. जैसा तुम चाहो. यदि तुम मुझे अपनी संगिनी नहीं मानते तो कोई बात नहीं. पर यदि कल को मेरे कदम बहक जाएं तो प्लीज मुझे दोष मत देना. तब यह न सोचना कि मैं चरित्रहीन निकली. मैं ने सब से पहले तुम्हारे आगे अपने मन की बात कही. एक लड़की होते हुए भी मैं ने ऐसे कठिन विषय पर बात करने की पहल की. पर अगर तुम मुझ से परदा रखना चाहते हो, तो हमारी शादीशुदा जिंदगी में आगे जो कुछ भी होगा उस के जिम्मेदार तुम ही रहोगे, मेरी यह बात याद रखना,’’ आज मोहना काफी अडिग थी.
नींद आंखों से कोसों दूर भटकती रही और सारी रात विलास, मोहना द्वारा कही बातों पर विचार करता रहा. सच ही तो कह रही है वह. आखिर वह जीवनसंगिनी है, यदि विलास उस के आगे अपना मन नहीं खोल सकता तो फिर किस से कहेगा? पौ फटने के समय जब आकाश में लालिमा छाई, तब विलास के मस्तिष्क में भी रोशनी होने लगी. उस ने सोच लिया कि आज वह मोहना को सब कुछ बता देगा.
‘‘नाश्ते के लिए चलें?’’ नहा कर आई मोहना ने पूछा.
‘‘हां, संक्षिप्त सा उत्तर दे विलास उस के साथ चल दिया. गहरी सोच में था वह. आखिर आज वह अपने अंदर दबी उलझनों की गांठों को खोलने की कोशिश करने वाला था.
नाश्ते के बाद आज कुछ शौपिंग का प्रोग्राम था. लेकिन विलास के कहने पर पहले दोनों ने केट्स पौइंट जाने का निश्चय किया. पहाड़ की ऊंचाई पर पहुंच कर विलास ने एक एकांत कोना तलाशा और मोहना से वहां बैठने का आग्रह किया, ‘‘तुम जानना चाहती हो न कि मैं क्यों तुम्हारे पास नहीं आता? आज मैं तुम्हें अपने अतीत का वह राज बताने जा रहा हूं जिसे मैं कभी भी कुरेदना नहीं चाहता. लेकिन अगर आज नहीं कहा तो शायद फिर कभी कह न सकूंगा…’’
‘‘विलास, तुम बेझिझक मुझ से अपनी बात कह सकते हो. तुम जो भी कहोगे, वह केवल हम दोनों के बीच रहेगा,’’ मोहना की बात से विलास आश्वस्त हो गया. उस ने 1 गिलास पानी पिया. कुछ सोच कर उस ने आगे बात कहनी शुरू की…
जब विलास केवल 12 वर्ष का था तब उस के साथ एक हादसा गुजरा था. उस के मौसाजी
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जोकि उसी शहर नौकरी करने आए थे. उस के घर में रहने आए. अगले कुछ महीनों जब तक उस की मौसीजी की नौकरी का तबादला उसी शहर में न हो जाता, उन्हें इसी के घर में रहना था. एक बार मौसीजी आ जाए, तब ये अपना घर ले लेंगे, ऐसा विचार था. सब कुछ अच्छे ढंग से व्यवस्थित हो गया. किशोरजी अपनी दुकान संभालते, रानी घर संभालतीं, मौसाजी अपने दफ्तर जाते और विलास अपने स्कूल. सब की मुलाकात अकसर रात को खाने की मेज पर हुआ करती. ऐसे ही करीब 20 दिन बीत गए.
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रानीऔर किशोरजी के इकलौते बेटे की शादी थी. पूरे घर में रौनक ही रौनक थी. कहीं कोई कसर नहीं छोड़ी थी. दुलहनिया भी इसी शहर के एक नामी घर से लाए थे. जैसे इन का अपना सुनार का व्यवसाय था जो पूरे शहर में प्रसिद्ध था वैसे ही दुलहन के घरवालों का भी गोटेकारी का बड़ा काम था और उन की दुकानें शहर में कई जगहों पर थीं. उन का पूरा परिवार एक संयुक्त परिवार के रूप में एक ही कोठी में रहता था. चाचाताऊ में इतना एका था कि विलास के रिश्ते के लिए हां करने से पहले भी मोहना ने अपने ताऊजी को बताया था. तभी तो रानी को मेहना भा गई थी. उन का मानना था कि एकल परिवार की लड़कियां सासससुर से निभा नहीं सकतीं. संयुक्त परिवार की लड़की आएगी तो हिलमिल कर रहेगी.
डोली तो अलसुबह ही आंगन में उतर चुकी थी, दूल्हादुलहन को अलग कमरों में बिठा कर थोड़ी देर सुस्ताने का मौका भी दिया गया था. गीतों से वातावरण गुंजायमान था. फिर खेल होने थे सो सब औरतें उसी तैयारी में व्यस्त थीं. खूब हंसीखुशी के बीच खेल हुए. मोहना और विलास ने बहुत संयम से भाग लिया. न कोई छीनाझपटी और न कोई खींचतानी. मोहना खुश थी कि उस की पसंद सही निकल रही है वरना उस के बड़े भैया की शादी में भाभी के हाथों में उन के अपने नाखून गड़ कर लहूलुहान हो गए थे पर उन्होंने भैया को बंद मुट्ठी नहीं खोलने दी थी. ऐसे खेलों का क्या फायदा जो शादी के माहौल में नएनवेले जोड़े के मन में प्रतियोगियों जैसी भावना भर दें.
शाम ढलने को थी. सभी भाइयोंदोस्तों ने विलास का कमरा सुसज्जित कर दिया था. रात्री भोजन के पश्चात मोहना को सुहाग कक्ष में ले जा कर बैठा दिया गया. हंसतीखिलखिलाती बहनें कुछ ही देर में विलास को भी वहां छोड़ गईं.
‘‘अरे आप इतने भारी कपड़ों में सांस कैसे ले पा रही हो? वाई डोंट यू चेंज,’’ विलास ने कमरे में आते ही कहा, ‘‘मैं भी बहुत थक गया हूं. मैं भी चेंज कर लेता हूं.’’
मोहना एक बार फिर खुशी से लाल हो गई. कितना समझने वाला साथी मिला है उसे. वो उठ कर बाथरूम में चेंज कर के आई तब तक विलास भी चेंज कर के बिस्तर पर लेट चुका था. ‘गुड नाईट’, मुसकरा कर कह विलास ने कमरे की लाइट बुझा दी. थोड़ी ही देर में पिछले कई दिनों से चल रही रस्मों की थकान और सुबह से उकड़ू बैठी मोहना को नींद ने घेर लिया.
सुबह दोनों फ्रैश उठे. एकदूसरे को देख कर मुसकराए. विलास बोला, ‘‘कुछ दिनों की बात है, मोहना, यहां तो रीतिरिवाज खत्म नहीं होंगे पर हम दोनों जब मुंबई चले जाएंगे तब लाइफ सैटल होने लगेगी.’’ विलास अपने पिता का कारोबार न संभाल कर मुंबई में नौकरी करता था. शादी के कुछ दिनों बाद दोनों का मुंबई चले जाने का कार्यक्रम तय था. पर उस से पहले विलास और मोहना को हनीमून पर जाना था. शादी का दूसरा दिन हनीमून की पैकिंग में गया और तीसरे दिन दोनों ऊटी के लिए रवाना हो गए. ऊटी का नैसर्गिक सौंदर्य देख दोनों प्रसन्नचित्त थे. रिजौर्ट भी चुनिंदा था. विलास के मातापिता की तरफ से ये उन की शादी का गिफ्ट था.
‘‘यहां का सूर्योदय बहुत फेमस है तो कल सुबह जल्दी उठ कर चलेंगे सन पौइंट. चलो अब सो जाते हैं,’’ कह विलास ने कमरे की लाइट बंद कर दी. आज मोहना को थोड़ा अजीब लगा. नई विवाहिता पत्नी बगल में लेटी है और विलास जल्दी सोने की बात कर रहा है, वह भी हनीमून पर. घर पर उसे लगा था कि समय की कमी, थकान, आसपास परिवार वालों की मौजूदगी आदि के कारण वो उस के निकट नहीं आया पर यहां अकेले में? यहां क्यों विलास को सोने की जल्दी है? पर फिर अगले ही पल उस ने अपने विचारों को झटका, कह तो रहा है कि सुबह जल्दी निकलना है और फिर कितना तो खयाल रखता है वह मोहना का. सारे रास्ते उस के आराम और खानेपीने के बारे में पूछता रहा. कुछ ज्यादा ही सोच रही है वह शायद.
अगला दिन अच्छा व्यतीत हुआ. दोनों ने काफी कुछ घूमा. देर शाम थक कर
दोनों कमरे में लौटे, ‘‘मोहना, प्लीज क्या तुम मेरी पीठ पर ये बाम लगा दोगी? मेरी पीठ में काफी दर्द है कुछ दिनों से,’’ विलास ने मोहना को बाम की एक शीशी देते हुए कहा.
‘‘हां, क्यों नहीं. इस में प्लीज कहने की क्या बात है. लाओ, मैं बाम लगा देती हूं,’’ वो बाम लगाते हुए सोचने लगी, ‘‘अगर तुम्हारी पीठ में दर्द है तो कल कमरे में ही रेस्ट करते हैं, कहीं घूमने नहीं निकलते.’’
‘‘नहीं, नहीं, सुबह तक आराम आ जाना चाहिए और फिर इतनी दूर तक आए हैं तो कमरे में रहने तो नहीं,’’ विलास ने कहा.
अगले 2 दिनों में दोनों ने ऊटी शहर के पर्यटक आकर्षणों को देखा. बोटैनिकल गार्डन, रोज गार्डन, सैंट स्टीफन चर्च आदि घूम कर दोनों ने शहर का पूरा लुत्फ उठाया. होम मेड चौकलेट भी खरीदीं और यहां की सुप्रसिद्ध चाय भी. सभी घरवालों के लिए कुछ न कुछ तोहफे भी लिए. आज वापसी की बारी थी. मोहना जरा सी उदास भी थी और नहीं भी. जब उस का कुंवारा दिल पति प्रेम के सानिध्य में डूबने की इच्छा जताता, वह उसे समझा लेती कि पतिपत्नी का रिश्ता एक हफ्ते का नहीं अपितु पूरे जीवन भर का होता है. जिस सामीप्य के लिए वह तरस रही है, वह उसे मिल ही जाएगा. तो फिर आज के खुशहाल क्षण क्यों गंवाए?
घर लौटने पर रानी और किशोरजी बेहद खुश हुए. अब तक सारे रिश्तेदार लौट चुके थे. घर अपने वास्तविक रूप में लौट चुका था. आज मोहना ने अपनी पहली रसोई बनाई जिस में रानी ने उस की पूरी सहायता की. शगुन के रूप में किशोर जी ने उसे सोने के कंगन दिए. इतना प्यार, इतना दुलार पा कर मोहना अपने भाग्य पर इठलाने लगी थी.
कुछ दिन वहां रह कर मोहना और विलास मुंबई के लिए रवाना हो गए. सब कुछ बहुत अच्छा था, एकदम आदर्श स्थिति… बस कमी थी तो केवल शारीरिक सामीप्य की. विलास अब तक मोहना के निकट नहीं आया था. पर वह बेचारा भी क्या करे, पीठ में दर्द जो कायम था, सोच मोहना अपना मन संभाल रही थी.
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उस दिन भी रोज की तरह सब काम यथावत हो रहे थे. विलास की स्कूल बस नहीं आई तो मौसाजी ने उसे स्कूल छोड़ने का प्रस्ताव रखा, ‘‘यह अच्छा हो जाएगा, तुम तो जाते भी उसी तरफ हो,’’ कह किशारेजी आश्वस्त हो गए. लेकिन मौसाजी की नीयत में भारी खोट था. उन्होंने रास्ते में एक फ्लाईओवर के नीचे कोने में गाड़ी रोक ली. फिर उन्होंने विलास के साथ जबरदस्ती की. बेचारे विलास ने बहुत छूटने की कोशिश की पर विफल रहा.
एक बलिष्ठ आदमी के आगे छोटे बच्चे का क्या जोर. इस दुर्घटना ने उस के आत्मविश्वास को बुरी तरह छलनी कर दिया. ऊपर से उसे धमकी भी दी गई कि अगर मुंह खोला तो घर में कोई भी उस की बात का विश्वास नहीं करेगा. मां, अपनी बहन का साथ निभाएगी और पिता से ऐसी गंदी बात वह कह कैसे सकता है. विलास का बालमन घायल हो गया. लेकिन बेदर्दी मौसा को शर्म न आई. उस आदमी ने इस घटना को एक सिलसिला ही बना लिया. अब वह अकसर विलास को स्कूल छोड़ने की पेशकश करने लगा.
मातापिता सोचते कि बच्चा आराम से कार में चला जाएगा और मान लेते. विलास कितना भी मना करता, कभीकभी स्कूल न जाने के लिए बीमार होने का नाटक भी करता पर रानी और किशोरजी उस की एक न सुनते. सोचते अन्य बच्चों की तरह स्कूल न जाने के बहाने बना रहा है. मौसा ने उस के साथ दुष्कर्म करना जारी रखा. विलास अंदर से टूटता जा रहा था. कहे तो किस से कहे? इस कारण पढ़ाई में उस का मन न लगता जिस से स्कूल में उस के नंबर भी गिरने लगे.
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‘‘मम्मीपापा को काउंसलर ने स्कूल बुलाया तो उन्होंने बताया कि मैं अकसर स्कूल न जाने का बहाने बनाता हूं. बातोंबातों में यह बात सामने आई कि मौसाजी मुझे आराम से कार में छोड़ते हैं और मैं फिर भी नानुकुर करता हूं. शायद काउंसलर टीचर को कुछ संदेह हुआ. अगले दिन से उन्होंने अकेले में मेरी काउंसलिंग शुरू कर दी. अब तक इन हादसों को करीब 2 महीने गुजर चुके थे. टीचर के बारबार कुरेदने से मेरे अंदर की घबराहट बाहर आने लगी और एक दिन मैं ने उन्हें सब कुछ बता दिया. उस दिन मैं इतना रोया, इतना रोया कि टीचर भी मेरे साथ रो पड़ी थीं. फिर उन्होंने ही मेरे घर में बताया,’’ कह विलास चुप हो गया.
मोहना सुन्न बैठी थी. उस ने सपने में भी नहीं सोचा था कि विलास के मुंह से वह ऐसी कोई बात सुनेगी. आज उसे समझ आ गया कि विलास का उस के पास न आना और न ही उसे पास आने देने के पीछे क्या कारण है. विलास मनोरूप से घायल है, खास कर संबंध बनाने को ले कर. मोहना, विलास का दर्द समझ सकती थी. आखिर वह उस की जीवनसंगिनी है, विलास ने उसे अपना समझ कर उस से अपना वह दर्द बांटा है जिसे वह कई सालों से अपने मन के किसी कोने में दबाए हुए था.
ऊपर से सब कुछ सही लगता है पर कितनी बार मन के अंदर की परतें रिस रही होती हैं. हम कितनी बार ऐसी खबरें पढ़तेसुनते हैं लेकिन इन का कितना गहरा असर होता होगा बाल मन पर, यह कितनी बार सोचते हैं हम? शायद कभी नहीं. कारण है कि हमारा अपना कोई इन खबरों का हिस्सा नहीं होता न. मोहना को भी आज पहली बार इस वेदना का अंदाजा हुआ था. एक पीडि़त के कथन के बाद वह समझी थी कि यौन शोषण जीवन पर एक काला धब्बा है. तो क्या इस की छाप अमिट है? क्या विलास या इस के जैसे बचपन में हुए हादसों के शिकार अन्य लोग उबर नहीं सकते? मोहना गहरी सोच में पड़ गई.
उस रात मोहना ने विलास का हाथ नहीं छोड़ा. शायद वह बिना बोले ही कहना चाहती थी कि वह उस की तकलीफ में उस के साथ है. आज विलास ने भी अपना हाथ छुड़ाने की चेष्टा नहीं की. अगली सुबह दोनों मुंबई के लिए रवाना हो गए. इस छोटी सी ट्रिप का काफी बड़ा फायदा हुआ था. कम से कम बात की असलियत तो सामने आई. अब मोहना ने ठान लिया कि वह विलास को मानसिक रूप से भी स्वस्थ कर के रहेगी. उस ने इस विषय पर काफी पढ़ना आरंभ कर दिया. जो ज्ञान, जो बात जहां से पता चल सकती थी, उस ने जानना शुरू कर दिया.
काफी कुछ पढ़ने से उसे यह पता चला कि यह एक जटिल मनोदशा होती है जो बड़े होने पर आहत मन में ट्रौमा के रूप में रहती है और यही हो रहा था विलास के साथ. कुछ महीनों के शोषण ने उस की पूरी जिंदगी पर गलत छाप छोड़ दी. मोहना ने पढ़ा कि ऐसी स्थिति से बाहर निकलने में काउंसलिंग काफी सहायक होती है. पहले उस ने एक अच्छी काउंसलर के बारे में पता लगाया. उन से मिली. उन की बातों से उसे आश्वासन मिला कि वह विलास की मदद अवश्य कर सकेंगी. हां, इस में कुछ महीनों का समय लग सकता है. मोहना को अब विलास को काउंसलिंग के लिए तैयार करना था.
‘‘तुम ने कहा था कि यह बात केवल हम दोनों के बीच रहेगी… फिर यह काउंसलिंग? यह गलत है मोहना, तुम ने मेरा विश्वास तोड़ा है,’’ मोहना की बात सुन कर विलास तैश में आ गया.
‘‘नहीं विलास, मैं तुम्हारा विश्वास जीतना चाहती हूं. मुझे ऐसा क्यों लगता है कि तुम किसी पापी के पाप की सजा खुद को देते आ रहे हो. तुम क्यों घुट कर जी रहे हो. आज जमाना खुल कर जीने का है. क्या तुम अपने आसपास नहीं देखते कि लोग स्वयं अपना जीवनसाथी चुन रहे हैं, यहां तक कि समलैंगिक साथी चुनने की आजादी भी मिल गई है. लोग शोषण के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं, रेप विक्टिम्स खुल कर सामने आ रहे हैं, मातापिता बच्चों के साथ हुए दुर्व्यवहार पर गुहार लगा रहे हैं,’’ मोहना पूरी कोशिश कर रही थी. ‘‘ऐसे में तुम बरसों पुरानी दुर्घटना की चादर अपने ऊपर से उतार फेंकने को तैयार नहीं हो. क्यों? क्या डर है तुम्हें? एक बार अपने भय का सामना तो करो. एक बार कोशिश तो करो. मैं वादा करती हूं कि अगर तुम्हें काउंसलिंग पसंद नहीं आई या तुम्हारी तकलीफ बढ़ी तो मैं तुम्हारा साथ दूंगी और एक बार फिर कहती हूं कि यह बात हम दोनों के बीच ही रहेगी.’’
मोहना के मनाने पर विलास काउंसलिंग के कुद सैशंस लेने को तैयार हो गया और पहले कुछ सैशंस में ही विलास ने अनुभव किया कि अपने अंदर जो पीड़ा, जो दर्द, घृणा व छटपटाहट उस ने दबा रखी थी, उस का पहाड़ रेत की तरह ढहने लगा है. धीरेधीरे विलास अपनी मनोचिकित्सक से खुलता गया. जितना उस ने अपनी भावनाएं बांटी, उस की वेदना उतनी ही घटती गई. कुछ महीनों में विलास अपने अंदर एक नयापन, स्फूर्ति और उल्लास अनुभव करने लगा.
कुछ महीनों में काउंसलिंग की अवधि समाप्त हो गई. विलास ने अब अपने भूत को पूरी तरह त्याग दिया. वह खुशी से वर्तमान में जीने लगा. मोहना तो खुश थी ही, क्योंकि उसे सही अर्थों में अपना पति मिल गया. एक और कारण था दोनों की खुशी का उन्हें एकदूसरे में सच्चा हमसफर जो मिल गया था.
मुंबई पहुंच कर नए घर को व्यवस्थित करने का जिम्मा विलास ने मोहना को दिया, ‘‘अब से इस घर की सारी जिम्मेदारी तुम्हारी. चाहे जैसे सजाओ, चाहे जैसे रखो. हम तो आप के हुक्म के गुलाम हैं,’’ विलास का यह रूप, लच्छेदार बातें मोहना पहली बार सुन रही थी. अच्छा लगा उसे कि अकेले में विलास उस से बिलकुल खुल चुका था. विलास ने अपना औफिस वापस जौइन कर लिया और मोहना घर की साजसज्जा में व्यस्त रहने लगी. दिन में जितने फोन मोहना के मायके से आते, उतनी ही बार रानी भी उस से बात करती रहतीं. उसे अकेलापन बिलकुल नहीं महसूस हो रहा था. लेकिन विलास अकसर रातों को बहुत ही देर से घर लौटता, ‘‘आजकल काफी काम है. शादी के लिए छुट्टियां लीं तो बहुत काम पेंडिंग हो गया है,’’ वह कहता. घर की एक चाबी उसी के पास रहती तो देर रात लौट कर वह मोहना की नींद खराब नहीं करता, बल्कि अपनी चाबी से घर में घुस कर चुपचाप बिस्तर के एक कोने में सो जाता. मोहना सुबह पूछती तो पता चलता कि रात कितनी देर से लौटा था.
जब जिंदगी पटरी पर दौड़ने लगी तो मोहना सारा दिन घर में अकेले बोर होने लगी. विलास के कहने पर उस ने लोकल ट्रेन में चलना सीखा और अवसरों की नगरी मुंबई में 2 शिफ्टों में सुबहशाम की 2 नौकरियां ले लीं. अब मोहना खुद भी व्यस्त रहने लगी. शुरू में उसे यह व्यस्तता बहुत अच्छी लगी. लोकल ट्रेन में चलने का अपना ही नशा होता है. आप सारी भीड़ का एक हिस्सा हैं, आप उन के साथ उन की रफ्तार से कदम से कदम मिला कर चल रहे हैं और एकएक मिनट की कीमत समझ रहे हैं. मोहना भी इस जिंदगी का मजा लेने लगी. उस के कुछ नए दोस्त भी बने. प्रियंवदा उस की अच्छी सहेली बन गई जो उसे अकसर लोकल ट्रेन में मिला करती. उस का औफिस भी उसी रास्ते पर था. प्रियंवदा की शादी को एक साल हुआ था और मोहना की शादी को अभी केवल 2 महीने बीते थे.
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‘‘दूसरी शिफ्ट की क्या जरूरत है, मोहना, रात को घर लौटते समय देर नहीं हो जाती?’’ एक दिन प्रियंवदा ने पूछा.
‘‘हां, करीब 10 बज जाते हैं पर विलास काफी देर से घर लौटते हैं तो मुझे कोई प्रौब्लम नहीं होती.’’
‘‘तभी मैं कहूं्… मेरे पति तो मुझे जरा सी देर भी अकेला नहीं छोड़ते. यहां तक कि किचन का काम निबटाने में भी अगर टाइम लग जाए तो शोर मचाने लगते हैं,’’ कह प्रियंवदा शरमा कर हंसने लगी, ‘‘तुम्हारी शादी तो और भी नई है. रात को ऐनर्जी कहां से लाती हो.’’
मोहना के मन में आया कि अपनी सहेली को असली बात बता दे पर फिर नई दोस्ती होने के कारण चुप रह गई. किंतु अब उस के मन की टीस बढ़ने लगी. हर किसी के बैडरूम के किस्से और मजाक सुन कर उस के मन में अपनी जिंदगी की रिक्तता और भी गहराने लगी थी. खैर, जिंदगी तो अपनी रफ्तार से भागती रहती है. यों ही 6 महीने गुजर गए. आज फिर मोहना ने शुरुआत करने के बारे में सोचा… उसे याद आया कि जब पिछले महीने उस ने विलास के करीब सरक कर अपना हाथ उस की छाती पर रखा था तो कैसे विलास ने बेरुखी से कहा था, ‘‘क्या कर रही हो?’’
‘‘कुछ नहीं,’’ सकुचा कर रह गई थी वह. पर फिर भी उस ने हाथ नहीं हटाया था. धीरे से विलास की बांहों में जब वह आ गई तो उस ने विलास के गाल को चूमा था. विलास असहज हो गया और बोला, ‘‘मोहना, आजकल औफिस में बहुत स्ट्रैस चल रहा है. इस कारण मुझे सिरदर्द भी है. तुम्हें बुरा न लगे तो मैं करवट लेना चाहता हूं,’’ और विलास मोहना की तरफ पीठ फेर कर सो गया था. न जाने कितनी और देर तक मोहना जागी रही थी. सोती भी कैसे, नींद जो पलकों में आने से इंकार कर रही थी. इन बीते दिनों में जब कभी उस ने हिम्मत कर के शुरुआत की तब विलास की तरफ से केवल बेरुखी हाथ लगी. कभी कहता आज बहुत थका हुआ हूं, तो कभी खराब तबीयत का बहाना.
आज फिर मोहना ने कोशिश करने की सोची. उस ने एक बहाना बनाया, ‘‘मेरी पीठ में
आजकल बहुत ड्राईनैस हो रही है, मौसम बदल रहा है न, शायद इसलिए. पर मेरा हाथ पूरी पीठ तक नहीं पहुंच पा रहा. क्या तुम मेरी पीठ पर क्रीम लगा दोगे?’’ कहते हुए मोहना ने अपनी पीठ पर क्रीम लगाने की फरमाइश की और उस की ओर अपनी नंगी पीठ ले कर बैठ गई. स्पर्श में बड़ी ताकत होती है. उसे उम्मीद थी कि क्रीम लगाते हुए शायद विलास का मन उसे बांहों में लेने को हो जाए. विलास ने क्रीम तो लगा दी लेकिन काम पूरा करते ही नजर फेर ली.
वैसे मोहना को विलास से और कोई शिकायत न थी. वह उस का पूरा खयाल रखता. जब कभी वह लेट हो जाता तो डिनर भी बना कर रखता. नाश्ता बनाने में, घर को व्यवस्थित रखने में उस की पूरी सहायता करता. मोहना को लगता जैसे विलास उस से प्यार तो करता है पर कुछ है जो उसे रोक रहा है.
अगले महीने से त्योहार शुरू होने वाले थे. चूंकि ये उन का पहला त्योहार था इसलिए दोनों ने घरवालों के साथ ही त्योहार मनाने का कार्यक्रम बनाया. विलास व मोहना कुछ दिनों के लिए अपने शहर लौटे.
उस शाम मोहना के घरवाले विलास के घर डिनर पर आमंत्रित थे. बातचीत का सिलसिला चल रहा था.
‘‘और बच्चों हमें गुड न्यूज कब सुना रहे हो?’’ विलास की बुआ जो इसी शहर में रहती हैं, भी आई हुई थीं.
‘‘उस के लिए तो इन दोनों को समय से घर आना पड़ेगा, बहनजी,’’ मोहना की मां ने जवाब दिया, ‘‘ये दोनों तो 10 बजे के बाद ही घर में घुसते हैं. मैं ने तो टोका भी मोहना को कि 2-2 शिफ्टों में नौकरी करने की क्या जरूरत?’’
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वह आगे कुछ कहतीं इस से पहले ही किशोरजी बोल पड़े, ‘‘अच्छा ही है न, देर से आएगी, थकी होगी तो बैडरूम में कोई डिमांड भी नहीं करेगी.’’ उन की यह बात जहां सभी को अटपटी लगी वहीं मोना को समझते देर न लगी कि किशोरजी स्थिति से अवगत हैं और उन्होंने फिर भी जानबूझ कर ये रिश्ता करवाया. उस का मन किशोर जी के प्रति घृणा से भर गया. तभी रानी भी बोल पड़ी, ‘‘बच्चे समझदार हैं, जो करना होगा खुद कर लेंगे, हमें कुछ भी बोलने की क्या जरूरत है भला,’’ ओह, तो इस का मतलब रानी भी सब जानती हैं.
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