रेटिंग : 3 स्टार
निर्माता: सलमान खान निशांत कौशिक विकास मलु
लेखक व निर्देशक: सतीश कौशिक
कलाकार: पंकज त्रिपाठी, मोनल गुर्जर ,अमर उपाध्याय , सतीश कौशिक,मीता वशिष्ठ, संदीपा धर व अन्य.
अवधि: एक घंटा 50 मिनट
ओटीटी प्लेटफॉर्म: जी फाइB
इंसान के जन्म से लेकर मृत्यु तक लकड़ी के साथ-साथ कागज की अनिवार्यता तय है. कम से कम हर सरकारी कामकाज में इंसान की मौजूदगी से कहीं ज्यादा अहमियत कागज की है. और यदि इंसान सरकारी कागजों में मृत पाए हो जाए, तो जीवित होते हुए भी उसे कोई जीवित नहीं मानता.ऐसा ही कुछ उत्तर प्रदेश में आजमगढ़ जिले के लाल बिहारी के साथ हुआ था, जिन्हें अपने आप को जीवित साबित करने के लिए 18 वर्ष का लंबा संघर्ष करना पड़ा था .उनके उसी संघर्ष और सत्य घटना करने को लेकर फिल्मकार सतीश कौशिक फिल्म ‘कागज ‘ लेकर आए हैं, जिसे ओटीटी प्लेटफॉर्म “जी5” पर देखा जा सकता है.
कहानी:
उत्तर प्रदेश के खलीलाबाद के एक छोटे से गांव का रहने वाले भरत लाल (पंकज त्रिपाठी) एक बैंड मास्टर हैं. जो अपनी पत्नी रुक्मणि ( मोनल गुज्जर) और बच्चों के साथ खुशहाल जिंदगी जी रहे हैं.कुछ लोग भरत लाल को सलाह देते हैं कि वह बैंक से कर्जा लेकर अपने भरत बैंड के व्यापार को विस्तार दे दे. पर भरत लाल इसे अनसुना कर देते हैं .लेकिन जब भरत लाल की पत्नी रुक्मणि उनसे अपने काम को विस्तार देने के मकसद से बैंक से कर्ज़ लेने की सलाह देती है,तो भरत लाल सहकारी बैंक कर्ज लेने पहुंच जाते हैं. बैंक मैनेजर कहता है कि कर्ज के बदले गिरवी रखने के लिए अपनी जमीन के कागज लेकर आओ .जब भरत लाल अपनी पुश्तैनी जमीन के कागज लेने लेखपाल के पास पहुंचता है, तो पता चलता है कि उसके चाचा और चचेरे भाइयों ने लेखपाल भूरे को घूस खिलाकर सरकारी कागजों में भरत लाल को मृत घोषित करा दिया है और उसकी सारी जमीन अब चचेरे भाइयों के नाम पर है. यही से भरत लाल की जिंदगी बदल जाती है.खूब घटना अपने आप को जीवित साबित करने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाता है. वह लेखपाल से लेकर सरपंच, मुख्यमंत्री ,प्रधानमंत्री और अदालत के चक्कर काटता रहता है. भरत लाल को बकरा बनाने के मकसद से मदद से वकील साधुराम केवट (सतीश कौशिक) आगे आते हैं, मगध भरत लाल जिस तरह से गतिविधियां करते हैं, उसके आगे वकील साधु राम केवट भी नतमस्तक हो जाते हैं और फिर अंत तक भरत लाल की मदद करते रहते हैं.भरत लाल हर तरह के हथकंडे अपनाते हैं अपने आप को जीवित साबित करने के लिए. यहां तक की भरत लाल अपने नाम के आगे मृतक लगाने के साथ ही अखिल भारतीय मृतक संघ बनाते हैं और पूरे प्रदेश के ऐसे सभी लोग उनके साथ जुड़ जाते हैं, जिन्हें कागजों में मृत घोषित कर दिया गया है.इस लंबे संघर्ष में भरत लाल का काम-धंधा बंद हो जाता है, परिवार साथ छोड़ देता है, पत्नी अपने बच्चों को लेकर अपने मामा के घर रहने चली जाती है. पर उन्हें विधायक अशर्फी देवी (मीता वशिष्ट) का भरत लाल को साथ मिलता है, जबकि एक अन्य विधायक (अमर उपाध्याय) भरत लाल के खिलाफ है. कई घटनाक्रम तेजी से बदलते हैं.लेकिन भरत लाल हार नहीं मानते हैं.18 वर्ष के लंबे संघर्ष के बाद अंततः भरत लाल को मुख्यमंत्री एक अध्यादेश जारी कर जीवित घोषित करते है.
लेखन व निर्देशन:
फिल्मकार सतीश कौशिक ने देश की शासन व्यवस्था और जड़ो तक व्याप्त भ्रष्टाचार की हकीकत को हास्य व्यंग के साथ इस फिल्म में पेश करने में सफल रहे हैं. बतौर लेखक सतीश कौशिक ने कई जगह बेहतरीन काम किया है . यह उनकी लिखावत का ही परिणाम है कि व्यंग वह विडंबना की धार उस वक्त तेज हो जाती है जब भरत लाल की पत्नी रुकमणी अपनी मांग में सिंदूर भरे मंगलसूत्र पहने विधवा पेंशन लेने सरकार के पास पहुंच जाती है. सतीश कौशिक, भरत लाल के नजरिए से पूरे सिस्टम का चित्रण करने में सफल रहे हैं. इतना ही नहीं कागज के साथ सतीश कौशिक एक बार फिर लोगों के दिलों को छूने में कामयाब रहे हैं . फिर भी फिल्म कई जगह बहुत धीमी गति से आगे बढ़ती है .यदि पटकथा पर थोड़ी सी मेहनत की जाती, तो फिल्म ज्यादा बेहतर बन सकती थी. पूरी फिल्म अभिनेता पंकज त्रिपाठी अपने कंधे पर लेकर चलते हैं. यदि भरत लाल के किरदार में उनकी जगह कोई दूसरा कलाकार होता, तो शायद फिर मजेदार न बन पाती. मिता वशिष्ट व अमर उपाध्याय ठेकेदारों को सही ढंग से विस्तार नहीं दिया गया. इसके अलावा एडिटिंग में कसावत की जरूरत थी.
फिल्म में गांव के सरपंच का एक संवाद है- ”इस देश में राज्यपाल से भी बड़ा लेखपाल होता है और उसके लिखे को कोई नहीं मिटा सकता.”यह संवाद हमारे देश की शासन व्यवस्था पर करारी चोट करता है. इसके अलावा फ़िल्म में कुछ संवाद, मसलन-” हमारा सिस्टम आम आदमी के उत्पीड़न का हथियार बन गया है अथवा “कोर्ट कचहरी न्याय के वह देवता है जो समय और सपनों की बलि मांगते हैं”. हमारी शासन प्रणाली और न्याय प्रणाली दोनों पर चोट करते हैं.
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अभिनय:
भरत लाल के किरदार में अभिनेता पंकज त्रिपाठी ने लाल बिहारी को भी जीवंतता प्रदान की है. पंकज त्रिपाठी ने जिस अंदाज में इस किरदार को अपने अभिनय से संवारा है, वह बिरले कलाकार ही कर सकते हैं. इस फिल्म के माध्यम से पंकज त्रिपाठी ने साबित कर दिखाया कि वह किसी भी फिल्म को अपने बलबूते पर सफलता के पायदान पर ले जा सकते हैं. इस फिल्म की सबसे बड़ी सशक्त कड़ी हैं पंकज त्रिपाठी. पंकज त्रिपाठी 2020 में ओटीटी प्लेटफॉर्म के सर्वाधिक सफल व चमकते सितारे थे, 2021 में कागज से उन्होंने शानदार शुरुआत की है. भरत लाल की पत्नी रुक्मणी के किरदार में मोनल गुज्जर सुंदर दिखने के अलावा अपनी मुस्कान से लोगों का ध्यान आकर्षित करती हैं.मीता वशिष्ठ के हिस्से करने के लिए खास कुछ आया ही नहीं. अमर उपाध्याय कहीं से भी प्रभावित नहीं करते हैं, वैसे उनकी भूमिका भी काफी छोटी है.