देश में नौकरी करने वाली महिलाओं की संख्या तेजी से बढ़ रही है. आजादी के 7 दशक बाद पहली बार नौकरियों में शहरी महिलाओं की हिस्सेदारी पुरुषों से ज्यादा हो गई है. सांख्यिकी मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक शहरों में कुल 52.1% महिलाएं जबकि 45.7 प्रतिशत पुरुष कामकाजी हैं। वैसे ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाएं नौकरियों में अभी भी पुरुषों से पीछे हैं.
कहीं न कहीं महिलाओं की बढ़ती प्रोफेशनल और टेक्नीकल शिक्षा और लोगों की सोच में परिवर्तन ने बदलाव की यह बयार चलाई है. आज पुरुष भी स्त्रियों को सहयोग देने लगे हैं. लोगों की मानसिकता स्त्री सपोर्टिव बनती जा रही है.
औरतें आज न सिर्फ जरुरत के लिए बल्कि अपने मन की ख़ुशी के लिए भी कामकाजी होना पसंद करती हैं. औफिस के बहाने वे घर के तनावों से बाहर निकल पाती हैं. अपनी पहचान बना पाती हैं.
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घर से ज्यादा औफिस में खुश रहती हैं महिलाएं
पेन स्टेट यूनिवर्सिटी द्वारा हाल में हुई एक स्टडी की रिपोर्ट के मुताबिक महिलाओं को अपने घर के मुकाबले औफिस में कम तनाव होता है. स्टडी के दौरान शोधकर्ताओं ने एक हफ्ते लगातार 122 लोगों में कोर्टीसोल हार्मोन (तनाव पैदा करने वाला हार्मोन) के स्तर की जांच की. इस के साथ ही दिन में अलगअलग समय उन के मूड के बारे में पूछा. नतीजों में सामने आया कि महिलाओं को अपने घर के मुकाबले औफिस में कम तनाव होता है. इस स्टडी में अलग-अलग बैकग्राउंड से आए लोगों को शामिल किया गया. शोधकर्ताओं के मुताबिक़ महिलाएं ऑफिस में ज्यादा खुश रहती हैं जब कि पुरुष अपने घर में ज्यादा खुश रहते हैं.
इस का एक कारण यह भी है कि जब महिलाओं को उन की जौब से संतुष्टि नहीं होती है, तो वे अपनी जौब बदल लेती हैं और जहां उन्हें अच्छा महसूस होता है वहीं जौब करती हैं. लेकिन पुरुष ऐसा नहीं करते हैं. अपनी जौब से संतुष्ट न होने के बाद भी वे उसी कंपनी में काम करते रहते हैं जिस कारण वे औफिस में खुश नहीं रह पाते हैं. इस के अलावा पुरुषों में अधिक अधिकार पाने की जंग भी चलती रहती है. उन का ईगो भी बहुत जल्दी हर्ट होता है.