आखिर क्यों कबीर सिंह के रिव्यूज को हिप्पोक्रिटिकल मानते हैं शाहिद

16 साल के कैरियर में शाहिद कपूर ने काफी उतारचढ़ाव  झेले हैं. पर उन्होंने हार नहीं मानी. मगर अब फिल्म ‘कबीर सिंह’ को मिली अपार सफलता ने सारे समीकरण बदल कर रख दिए हैं. ‘कबीर सिंह’ अब तक लगभग 300 करोड़ रुपए कमा चुकी है. शाहिद के लिए यह एक नया अनुभव है, लेकिन वह कबीर सिंह के रिव्यूज को हिप्पोक्रिटिकल मानते हैं, जानें क्या है वजह…

फैंस को पसंद आई फिल्म

दर्शक फिल्म को पसंद कर रहे हैं, जबकि फिल्म आलोचकों ने काफी आलोचना की थी. इतना ही नहीं, कई समाजसेवियों ने भी फिल्म के खिलाफ आवाज उठाई थी.

 

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These weekend numbers got us all like ? #kabirsingh

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शाहिद का ये है मानना

फिल्म को मिले रिव्यूज पर शाहिद कहते हैं, ‘‘फिल्म के रिव्यू बहुत क्रिटिकल आए. जब हौलीवुड फिल्मों में रौ सीन दिखाते हैं, तो लोग कहते हैं कि यह बहुत महान सिनेमा है. यह पाखंड ही है कि 2013 में प्रदर्शित फिल्म ‘द वोल्फ औफ वाल स्ट्रीट’ में लियोनार्डो डि कैप्रियो ने जो किरदार निभाया था उस में तो कबीर सिंह से ज्यादा समस्याएं थीं. लेकिन सभी आलोचकों ने उस की जम कर तारीफ की थी. पर वही लोग कबीर सिंह की आलोचना कर रहे हैं. जबकि दर्शकों ने ‘द वोल्फ औफ वाल स्ट्रीट’ की ही तरह ‘कबीर सिंह’ को पसंद किया है. सच कह रहा हूं कि एक तरफ मु झे बहुत ही हिप्पोक्रिटिकल फीलिंग आई. रिव्यूज बहुत हिप्पोक्रिटिकल थे.’’

 

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Thank you for the overwhelming love. #kabirsingh

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बता दें, शाहिद कपूर जल्द ही नई फिल्म जर्सी में नजर आने वाले हैं. वहीं इल फिल्म में उनकी हिरोइन सुपर 30 और बाटला हाउस जैसी फिल्मों में काम कर चुकी एक्ट्रेस मृणाल ठाकुर नजर आएंगी. अब देखना ये है कि क्या शाहिद अपनी नई फिल्म से भी कबीर सिंह जैसा जादू चला पाते हैं या नहीं.

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कबीर सिंह फिल्म रिव्यू: लीक से हटकर लव स्टोरी

रेटिंगः ढाई स्टार

निर्माताः मुराद खेतानी, अश्विन वर्दे, भूषण कुमार, किशन कुमार

लेखक व निर्देशकः संदीप रेड्डी वांगा

कलाकारः शाहिद कपूर, किआरा अडवाणी,अर्जन बाजवा और सुरेश ओबेराय

अवधिः दो घंटे 55 मिनट

बौलीवुड में प्यार को लेकर हजारों फिल्में बन चुकी हैं. बेइंतहा प्यार में डूबे प्रेमी अपनी जिंदगी बर्बाद कर लेते हैं. प्यार में कुर्बान हो जाने वाले प्रेमियों की भी कमी नही है. मगर फिल्म ‘‘कबीर सिंह’’ में एक अलग तरह की प्रेम कहानी है. यह कहानी एक बेहतरीन सर्जन डौक्टर की है, जो कि अति गुस्सैल है. उसके गुस्से आगे कोई नहीं ठहर सकता. वह अपने मेडिकल कौलेज की नई छात्रा प्रीति से बिना पूछे ही प्यार कर बैठता है और उसे अपने प्यार में दिवाना भी बना देता है. मगर कबीर सिंह भी दिशा भ्रम का शिकार है. अपने अंदर के गुस्से पर काबू न कर पाने और हालात का सही आकलन न कर पाने वाले युवक की कहानी है कबीर सिंह. माना कि वर्तमान युवा पीढ़़ी में चंद युवक कबीर सिंह की तरह गुस्सैल, दिशा भ्रमित, परिवार व समाज की परवाह न करने वाले, दिन रात ड्रग्स, शराब, सिगरेट आदि में डूबे रहने वाले,परि7स्थितियों का सही आकलन करने की बजाय सब कुछ गंवा देने वाला एक प्रतिशत युवक मौजूद होगा, मगर फिल्म में उसका महिमा मंडनकर पूरी युवा पीढ़ी को एक ही पायदान पर खड़ा कर देने की फिल्मकार की  कोशिश को जायज तो नहीं ठहराया जा सकता.फिल्म में कामुकता को प्यार से जिस तरह फिल्मकार ने जोड़ा है,वह भी कई सवाल खडा करता है. सिनेमा को महज मनोरंजन का साधन मानकर मनोरंजन के नाम पर इस तरह के चरित्रों का महिमा मंडन करना उचित है?मगर फिल्मकार की नजर में यह सारे सवाल बेमानी है क्योंकि हिंदी फिल्म ‘कबीर सिंह’ 2017 की सफल तेलगू फिल्म ‘अर्जुन रेड्डी’ का रीमेक है.

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कहानीः

यह कहानी नशे में धुत होनहार सर्जन डौक्टर कबीर सिंह की है,जो कि अपने पिता राजधीर सिंह (सुरेश ओबेराय) द्वारा घर से निकाला गया है. वह एक किराए के मकान में एक कुत्ते के साथ रहता है, जिसे वह प्रीति के नाम से बुलाता है. फिर कहानी अतीत में दिल्ली के एक मेडिकल कौलेज से शुरू होती है. जहां पर डौ.कबीर सिंह (शाहिद कपूर) मास्टर आफ सर्जरी की पढ़ाई कर रहा है. उसका जिगरी दोस्त है शिवा (सोहम मजूमदार). अपने गुस्से पर काबू न रख पाने वाला कबीर सिंह बेहतरीन फुटबाल खिलाड़ी भी है. गुस्से में किसी का भी सिर,हाथ या पैर तोड़ देना उसके लिए बहुत मामूली बात है. दो कौलेज की टीमें जब फुटबाल मैच के लिए मैदान पर उतरती हैं, तो दूसरी टीम के कैप्टन अमित (अमित शर्मा) व दूसरे खिलाड़ियों की कबीर सिंह जबरदस्त पिटाई करता है. जिसके चलते उसे कौलेज के डीन (आदिल हुसेन) कालेज से निकालने का आदेश दे देते हैं. मगर कौलेज में हुए नए प्रवेश में से एक लड़की प्रीति सिंह सिक्का (किआरा अडवाणी) को देखते ही कबीर सिंह उसे अपना दिल दे बैठते हैं. फिर वह डीन से लिखित माफी मांगकर कौलेज में ही बने रह जते हैं और कौलेज की हर कक्षा में जाकर शिक्षक की मौजूदगी में पंजाबी भाषा में हर लड़के व लड़की को धमकी दे आता है कि प्रीति के साथ कोई रैगिंग नहीं होगी, कोई उसे परेशान नहीं करेगा. प्रीति पर सिर्फ उसका हक है. होली के दिन जब अमित, प्रीति पर रंग डाल देता है और प्रीत रोती है, तो प्रीति को साथ ले जाकर जिस तरह से कबीर सिंह, अमित की पिटाई करता है, उससे प्रीति का वह दिल जीत लेता है. उसके बाद कबीर सिंह, प्रीति की परछाई बनकर अपनी सर्जन की पढ़ाई पूरी करता है. प्रीति भी डाक्टर बन जाती है. मगर इस दौरान दोनों के बीच न सिर्फ प्यार परवान चढ़ता है, बल्कि कबीर सिंह व प्रीति के बीच शारीरिक संबंध भी कई बार बनते हैं. मगर फिर प्रीति के रूढ़िवादी परिवार और कबीर सिंह के गुस्से के चलते प्रीति की शादी कहीं और हो जाती है. कबीर सिंह शराब व ड्रग्स के नशे में जो गुस्से में जो हरकत करता है, उसके चलते कबीर के पिता उसे घर से बाहर कर देेते हैं. अब कबीर सिंह खुद को तबाह करने लगता है. इसी बीच एक अभिनेत्री जिया शर्मा (निकिता दत्ता) से भी कबीर सिंह के शारीरिक संबंध बनते हैं. वह आज भी बेहतरीन सर्जन है. उसका एक भी आपरेशन असफल नहीं होता, जबकि वह सारे आपरेशन शराब व ड्रग्स के नशे में धुत होकर ही करता है. पर एक आपरेशन के बाद उसका काम उससे छिन जाता है. अब तो उसकी जिंदगी तबाही के कगार पर पहुंच चुकी है. तभी कबीर सिंह की दादी (कामिनी कौशल) की मौत हो जाती है और इससे कबीर सिंह विचलित होकर खुद को नशे से दूर करने का वादा कर सुधर जाता है फिर एक दिन नौ माह की गर्भवती प्रीति से कबीर सिंह की मुलाकात एक बगीचे में होती है, पता चलता है कि प्रीति के पेट में कबीर का ही बच्चा पल रहा है. दोनों की शादी हो जाती है.

लेखन व निर्देशनः

एक नकारात्मक चरित्र को हीरो बनाकर पेश करने के लिए फिल्मकार संदीप रेड्डी वांगा ने सिनेमा के सारे क्राफ्ट का बेहतरीन उपयोग किया है. ड्रग्स व शराब के आदी, अति गुस्सैल, अपनी प्रेमिका के प्रति अति संरक्षणात्मक रवैया, सेक्स में डूबा रहने वाला, हिंसक मगर कुशल सर्जन को अपनाना दर्शक के लिए कठिन होता है, मगर फिल्मकार संदीप रेड्डी वंगा के कथा कथन शैली में गुम दर्शक सब कुछ पचा जाता है. कबीर सिंह का प्यार पर फना हो जाने का जज्बा, प्यार व अपने पेशे के प्रति ईमानदारी, काम से हटाए जाने की नौबत आने पर भी झूठ की सच बोलने की कबीर की अदा भी कबीर को दर्शकों का अपना बना देती है. मगर दर्शक सोचता रहता है कि तमाम बुराईयों व नकारात्मक पक्ष के बावजूद कबीर सिंह में कुछ अच्छा निकलकर आएगा, लेकिन अंत तक ऐसा कुछ नहीं होता. कबीर सिंह एक बेहरतीन प्रेमी भी नहीं बन पाता, क्योकि प्रीति से शादी न होने के बाद वह दूसरी शादी नहीं करता, मगर अपनी शारीरिक इच्छा यानी कि महज सेक्स यौन तृप्ति के लिए एक फिल्म अभिनेत्री से संबंध जोड़ता है. फिल्मकार ने जिस तरह से जंगल व कार के अंदर कबीर व अभिनेत्री जिया के बीच सेक्स संबंध दिखाए हैं, वह कबीर को अति छोटा ही बनाते है. जब कबीर सिंह खुद को बर्बादी की तरफ ले जा रहे होते हैं, तो उनके अंदर का जो दर्द है, वह दर्शक महसूस नहीं कर पाता, यह निर्देशक और अभिनेता शाहिद कपूर की कमजोरी ही है.

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डायरेक्शन…

इंटरवल के बाद फिल्म पर से फिल्मकार की पकड़ थोड़ी ढीली हो गयी है. इंटरवल के बाद कहानी में काफी दोहराव है. एडीटिंग टेबल पर इसे कसने की जरुरत थी. लगभग तीन घंटे की अवधि से फिल्म काफी लंबी हो गयी है. इसे काफी कम किया जा सकता था.

फिल्म के गाने प्रभावित नहीं करते. फिल्म में जिस तरह से एक दो लाइनें बीच बीच में पिरोई गयी हैं, वह कहानी की गति को बाधित करती हैं.

इतना ही नही जिसने मूल तेलगू फिल्म ‘अर्जुन रेड्डी’ देखी है, उन्हें ‘कबीर सिंह’ काफी सतही फिल्म नजर आएगी. ‘अर्जुन रेड्डी’के साथ ‘कबीर सिंह’ की तुलना करने वालों को कबीर सिंह से निराशा ही होगी.

अभिनयः

अति जटिल, डार्क, विद्रोही, गुस्से पर काबू न रखने वाले, ड्रग्स व नशे के आदी कबीर सिंह के किरदार को जीवंत कर शाहिद कपूर ने अपनी उत्कृष्ट अभिनय क्षमता को दर्शाया है, मगर कुछ दृश्यों में ‘उड़ता पंजाब’ वाला देाहराव भी है. कबीर सिंह के दोस्त शिवा के किरदार में सोहम मजूमदार ने खुद को एक बेहतरीन कलाकार के रूप में उभारा है. मेडिकल कौलेज के डीन के छोटे किरदार में आदिल हुसैन की प्रतिभा को जाया किया गया है. किआरा अडवाणी खूबसूरत लगी हैं. पर कई दृश्यों में वह अपनी आंखों से काफी कुछ कह जाती हैं. दादी के किरदार में कामिनी कौशल याद रह जाती है. सुरेश ओबेराय, निकिता दत्ता, अर्जन बाजवा, कुणाल ठाकुर ने ठीक ठाक काम किया है.

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Edited by Rosy

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