“अरे, अरे! दिला दीजिये न इसे बैलून. बचपन कहां लौटकर आता है?” वह दो-ढाई वर्षीय एक बच्चे को गुब्बारे के लिए मचलते देख उसकी मां से कह रहा था. गोआ के मीरामर बीच पर बैठी दिशा की ओर पीठ थी उस पुरुष की. उसे देख फिर से अम्बर की याद आ गयी दिशा को. वैसे भूली ही कब थी वह उसे ? अम्बर था ही ऐसा कि यादों से निकल ही नहीं पाता था. सबके दिल की बात समझने वाला, छोटी-छोटी बातों में खुशियां ढूंढने वाला, एक ज़िन्दा-दिल इंसान. दिशा सोच में डूबी हुई थी कि वही बच्चा एक हाथ से अपनी मां का हाथ पकड़े और दूसरे हाथ में बड़ा सा गुब्बारा थामे नन्हे कदमों से दूर तक चक्कर लगाकर फिर से आता हुआ दिखाई दिया. उसके पीछे पीछे वही पुरुष था. ‘अरे, यह तो अम्बर ही है!’ दिशा को अपनी आंखों पर विश्वास ही नहीं हुआ.
अम्बर भी आश्चर्य चकित हो कुछ पलों के लिए दिशा को देखता ही रह गया. फिर बच्चे की ओर मुस्कुराकर हाथ हिलाने के बाद दिशा के पास आ उल्लासित स्वर में बोल उठा, “दिशा, तुम, यहां?…..अरे, यूं गुपचुप गुमसुम!”
दिशा भी अम्बर को देख अपनी प्रसन्नता पर काबू नहीं रख सकी, “तुमसे इतने सालों बाद यहां पर ही मिलना तय था शायद…. अम्बर, तुम तो अभी भी वैसे ही लग रहे हो जैसे पांच साल पहले कौलेज में लगते थे.”
“लेकिन तुम्हारा वह चुलबुलापन दूर हो गया तुमसे. पहले वाली दिशा यूं सागर किनारे चुपचाप बैठने वाली थोड़े ही थी.” अम्बर बिना किसी औपचारिकता के मन की बात कह उठा.
“यह बच्चा तुम्हारा है क्या ?” बैलून वाले बच्चे की ओर इशारा करते हुए दिशा ने पूछा.
“हा हा हा, इस बच्चे से तो अभी यहीं मुलाकात हो गयी थी.” अम्बर की हंसी छूट गयी. फिर संभलते हुए बोला, “मैं तो अभी सिंगल हूं. मम्मी-पापा को सौंप दी है जिम्मेदारी. वे जब जिसे चुन लेंगे, मैं उसका हाथ थाम लूंगा.”
“कहां हो आजकल? गोआ में जौब है क्या ?” दिशा अम्बर के विषय में सब कुछ जान लेना चाहती थी.
“अरे नहीं, मैं तो यहां एक वर्कशौप अटैंड करने आया हुआ हूं. मैं अभी भी दिल्ली में ही हूं. जब तुम्हारी बीए हुई थी उसी साल मेरी एमए कम्पलीट हो गयी थी और उसके बाद पीएचडी करने कनाडा की डलहौज़ी यूनिवर्सिटी चला गया था. फिर वापिस दिल्ली आ गया. दो साल से ‘सैंटर फौर अटमोसफ़ियरिक साइन्स’ में असिस्टेंट प्रोफेसर की पोस्ट पर हूं. तुम्हारा ससुराल तो इंदौर में है ना? यहां पतिदेव के साथ घूमने आई हो?”
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“नहीं अम्बर….मैं अब इंदौर में नहीं रहती. तीन सालों से दिल्ली में मम्मी-पापा के साथ रह रही हूं. प्राइवेट बैंक में जौब है. उसी की एक ब्रांच में कुछ प्रौब्लम्स थीं, इसलिए अपनी टीम के साथ आयी हूं यहां. फिर मिलूंगी तो सब बताऊंगी. अभी मुझे गैस्ट हाउस में शाम को चाय के लिए पहुंचना है. सभी कलीग्स वहीं पर होंगे. फिर मिलते हैं.”
दोनों ने एक-दूसरे को अपने मोबाइल नंबर दिए और फ़ोन पर बात करने को कह चल दिए.
गैस्ट हाउस पहुंच दिशा अपने कमरे में जाकर लेट गयी. अचानक तेज़ सिर-दर्द के कारण वह इवनिंग टी में सम्मिलित नहीं हो सकी. एक उदास सी सोच उस पर हावी होने लगी. ज़िंदगी ने कैसे-कैसे रंग दिखाये उसे? कैसा निरर्थक सा था वह एक वर्ष का विवाहित जीवन! विक्रांत का प्यार पाने के लिए क्या-क्या बदलने का प्रयास नहीं किया उसने स्वयं में? लेकिन विक्रांत की चहेती नहीं बन सकी कभी. विक्रांत की पसंद के कपड़े पहनना, उसकी पसंद का खाना कुक से बनवाना और स्वयं भी वही ख़ुशी-ख़ुशी खाना, उसके दोस्तों के आने पर सेवा में कोई कमी न रहने देना. आगे की पढ़ाई और नौकरी का सपना देखना भी छोड़ दिया था उसने. अपनी ओर से जी-जान न्योछावर करने पर भी वह विक्रांत की आंखों की किरकिरी ही बनी रही. इस रिश्ते का अंत तलाक नहीं होता तो क्या होता? दिशा का अपने माता-पिता से बार-बार एक ही सवाल करने को जी चाहता था कि क्या कमी थी अम्बर में? उसकी निम्न जाति खटक रही थी आंखों में तो उच्च जातीय विक्रांत ने कौन सा सुख दे दिया उसे? कितने ख़ुशनुमा थे वे दिन जो अम्बर के साथ बीते थे!
दिशा ने जब बीए में एडमिशन लिया था तो उसके सीनियर अम्बर के चर्चे कौलेज में खूब सुनाई देते थे. वह स्वयं भी उसके आकर्षक, संजीदा व बुद्धिजीवी चरित्र से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकी. पढ़ाई की बात हो या आम जिंदगी की, अम्बर सबकी मदद को तत्पर रहता था. दिशा को बीए के द्वितीय वर्ष में जब इक्नौमिक्स पढ़ते हुए कुछ गणितीय अवधारणायें समझने में मुश्किल हो रही थी तो अम्बर के पास मदद के लिए चली गयी. अम्बर यद्यपि उस समय जियोग्राफी में एमए कर रहा था, लेकिन अपने बीए में पढ़े ज्ञान के आधार पर उसने दिशा को सब समझा दिया. अपनी कठिनाईयों में अम्बर का साथ उसे संबल देने लगा और सूने दिल में अम्बर के नाम की बयार बहने लगी. इन झोंकों का असर अम्बर के ह्रदय-समुद्र पर भी हुआ और प्यार की तरंगे उसके मन में भी हिलोरें लेने लगीं.
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कौलेज में वे लगभग प्रतिदिन मिलते और अपने विचारों का आदान-प्रदान करते. उन दोनों के स्वभाव में अंतर था, शौक भी काफी अलग थे. फिर भी कुछ न कुछ ऐसा अवश्य था जो दोनों को आपस में जोड़े हुए था. शायद अम्बर का मर्यादित रहकर भी स्त्री-मन की समझ रखना, कभी हिम्मत न हारने की सलाह देते रहना और प्रेम की अहमियत समझना दिशा को उससे बांधे जा रहा था. दिशा की नारी-सुलभ मासूमियत अम्बर के मन को गुदगुदा देती थी. वह अम्बर की बातें सुन अपनी कमियों को तरशाने और स्वयं को बदलने के लिए हमेशा तैयार रहती. इतनी निकटता और जुड़ाव के बावज़ूद भी वे एक-दूसरे से अपने मन की बात कहने का साहस नहीं कर पा रहे थे.
दिल की बात अचानक ही दोनों की ज़ुबान पर तब आ गयी, जब कौलेज की ओर से उन्हें एजुकेशनल ट्रिप पर दक्षिण भारत ले जाया गया. उस दिन अपने-अपने अध्ययन क्षेत्रों में घूमने के बाद सभी विषयों के छात्र व अध्यापक शाम के समय कोवलम बीच पर चले गये. वहां जाकर कुछ लड़के-लड़कियां गप-शप में व्यस्त हो गए तो कुछ एक-दूसरे का हाथ थामे पानी में लहरों के आने-जाने का आनंद लेने लगे. दिशा बालू पर बैठ बड़ी तन्मयता से एक घरौंदा बनाने में मग्न थी. दोस्तों से बातें करते हुए अम्बर दूर से उसे देख रहा था. मन दिशा के पास बैठने को बेचैन था. कुछ देर बाद वह चाय बेचने वाले से दो कप चाय लेकर दिशा के पास चला गया.
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दिशा अब चुप नहीं रह सकी. थरथरायी आवाज़ में ग़ुबार निकालते हुए बोली, “मुझे आज बहुत हैरत हो रही है. आप सब कितने स्वार्थी हैं. अम्बर को क्या एक खिलौना समझ रखा है आपने कि जब ज़रूरत पड़ी बेटी के हाथ में थमा दिया और जब बेटी को उससे दूर करना था तो तोड़-मरोड़ कर फेंकने के लिए पूरा ज़ोर लगा दिया. जब मैं अम्बर को चाहती थी तब आपको सिर्फ़ उसकी नीची जाति दिखाई दे रही थी, उसके गुण नहीं. यह कैसे हो सकता है कि पहले मेरी भलाई अम्बर से रिश्ता तोड़ने में थी और अब अम्बर से रिश्ता जोड़ने में? कहां गया अब वह ऊंची जाति का दंभ? आप में अचानक आया यह बदलाव तो वह मुखौटा है जो आज अपनी तलाकशुदा बेटी पर उठ रही समाज की उंगलियों से बचने के लिये आपको लगाना पड़ रहा है. बोलो यही सच है ना?” बात पूरी होते-होते दिशा फूट-फूट कर रोती हुई अपने कमरे में चली गयी.
रात को सोने से पहले अम्बर को ‘सब ठीक है’ का मैसेज भेज वह सोचने लगी, ‘कितना अच्छा होता कि परिवार वाले उसी समय मान गए होते ! आज वह सबको बोझ तो न लगती और अम्बर उसका होता.’ अपने ज़ख्मों पर अम्बर की यादों की मरहम लगाते हुए उसे कब नींद आ गयी पता ही नहीं लगा.
अगले दिन औफ़िस में बैठे हुए भी अम्बर की याद उसे बेचैन कर रही थी. बार-बार कुणाल की शादी का कार्ड निकाल वह गणना करने लगती कि कितने दिनों बाद वह अम्बर के साथ एक सुकून भरी लम्बी शाम बिता सकेगी. दिशा को आज वह पल बहुत याद आ रहा था जब समुद्र किनारे पहली बार दोनों ने प्यार का इज़हार किया था. उसके मन में कुछ पंक्तियां गूंजने लगीं. पर्स में से पेन और कुणाल वाला कार्ड निकालकर उसने भावों को लिपिबद्ध कर दिया…..
समन्दर किनारे बीता भीगा पल याद आता है,
एक-दूजे को यूं ही सा चाहना याद आता है!
मेरा वो ठहरा सा बचपन और नदी सा अल्हड़पन,
किनारा बनकर तुम्हारा समेटे रखना याद आता है!
रेत पर लिखकर नाम दोनों का उंगलियों से अपनी,
घरौंदा छोटा सा पैरों पर बनाना याद आता है!
महक कुछ अलग सी आयी थी उन फूलों से,
बालों में तुम्हारा उनको लगाना याद आता है!
सहारे बहुत ज़िन्दगी ने यूं तो दिए हैं मुझको भी,
जाने क्यों कांधे पर तेरे सिर टिकाना याद आता है!
कार्ड और पेन पर्स में वापिस रख दिशा ने मेज़ पर सिर टिका डबडबायी आंखों को मूंद लिया.
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कुणाल की शादी के दिन दिशा ने आधे दिन की छुट्टी ले ली थी. शाम को अम्बर का मैसेज आते ही वह घर से निकल पडी. अम्बर बाहर कार में प्रतीक्षा कर रहा था. दिशा बहुत दिनों बाद किसी फ़ंक्शन के लिए तैयार हुई थी. अम्बर चांद से चमकते उसके चेहरे को देखता ही रह गया. कढ़ाई वाली गुलाबी नैट की साड़ी के साथ कुंदन और मोतियों से बने नैकलेस सैट में वह किसी अप्सरा सी दिख रही थी. अम्बर को आसमानी कुर्ते और फ्लोरल प्रिंट की जैकेट में देख दिशा का मन भी रीझे जा रहा था. वहां पहुंचकर दोनों दूल्हा-दुल्हन को बधाई देने एक साथ स्टेज पर गये, दोनों ने खाना भी साथ-साथ खाया और रौनक भरे माहौल का एक साथ आनंद लेते रहे. रात को दिशा को घर छोड़ते समय अम्बर ने बताया कि कल वे शाम को नहीं मिल सकेंगे क्योंकि औफ़िस से वह सीधा घर जायेगा. एक लड़की से इन दिनों रिश्ते की बात चल रही है, वही अपने मम्मी-पापा के साथ आएगी. मोबाइल में अम्बर ने दिशा को उसकी तस्वीर भी दिखाई. एक ख़ूबसूरत लड़की से अम्बर के रिश्ते की बात चलती देख दिशा अन्दर ही अन्दर मायूस हो रही थी, किन्तु बेबसी को छुपाते हुए बोली, “इस बार हां कर ही देना अम्बर. लड़की अच्छी लग रही है और जौब भी नोएडा में कर रही है. तुम दोनों को किसी तरह की परेशानी नहीं होगी.” अम्बर मुस्कुरा कर रह गया.
अगले दिन सुबह औफ़िस के लिए निकलने से पहले अम्बर अपनी कार साफ़ कर रहा था. सीट पर कुणाल की शादी का कार्ड रखा था जो कल उसने दिशा से ऐड्रेस देखने के लिए मांगा था. अम्बर कार्ड फाड़कर फेंक ही रहा था कि दिशा के लिखे शब्दों पर उसका ध्यान चला गया. हाथ में कार्ड ले उसने पूरी कविता एक सांस में पढ़ डाली. पढ़कर अम्बर को ऐसा लगा जैसे किसी कुशल चितेरे ने कूची से समुद्र किनारे सालों पहले बीते उस अमूल्य पल को जीवंत कर दिया हो. शब्द-शब्द से प्रेम छलक रहा था. उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि दिशा अब भी उससे इतना प्यार करती है. अम्बर तो दिशा का साथ हमेशा से ही पाना चाहता था, लेकिन उसे लगता था कि वह किस्सा तो कब का खत्म हो चुका है. उसने बिना देर किये दिल की धड़कनों पर काबू रख दिशा को लंच में मिलने का मैसेज कर दिया.
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लंच टाइम से पहले ही वह कौफ़ी-शॉप में बैठकर अधीरता से दिशा की प्रतीक्षा करने लगा.
“अरे, अच्छा हुआ कि तुमने लंच में मिलने का कार्यक्रम बना लिया. मैं सुबह से बोर हो रही थी. औफ़िस में भी कुछ ख़ास करने को नहीं था आज.” आते ही दिशा मुस्कुराकर बोली.
अम्बर तो जैसे सोचकर ही बैठा था कि उसे क्या कहना है. दिशा की ओर एक मिनट तक चुपचाप मुस्कुराकर देखने के बाद उसने बोलना शुरू किया, “दिशा, कुछ सालों पहले कितना प्यारा था हमारा जीवन. दोनों निश्छल, एक-दूजे में खोये रहते थे. फिर हमें मजबूर होकर दुनिया के बनाये नियमों का मुखौटा लगाना पडा और हम एक-दूसरे के लिए अजनबी से बन गए. तुम्हारी जिंदगी में विक्रांत आया जो शराफ़त का मुखौटा लगाये था. उससे तुम कितनी आहत हुईं, लेकिन अपने अन्दर की घायल दिशा को छुपाने के लिए तुमने दुनिया के सामने एक नौर्मल इंसान बने रहने का और फिर घरवालों को खुश देखने के लिए एक हंसती-खेलती लड़की का मुखौटा लगा लिया. और मैं…..लाख चाहकर भी तुम्हें अपने मन से कभी निकाल नहीं पाया, लेकिन जब तुम मिलीं तो एक दोस्त का मुखौटा लगाकर मिलता रहा तुमसे. कल तुम्हारी लिखी कविता ने मेरी आंखें खोल दीं. मुझे एहसास हुआ कि मेरे सामने तुम भी दोस्ती का मुखौटा लगाकर आती हो. कहीं ऐसा न हो कि मुखौटे चढ़ाते-चढ़ाते हम अपने असली किरदार को ही भूल जाएं. मन में जो प्रेम है वह खो जाये. दिशा, मैं तो उतार देना चाहता हूं आज अपना मुखौटा….प्लीज़ तुम भी उतार दो. अब मैं उस दिशा से मिलना चाहता हूं जिसके सिर चढ़कर मेरे इश्क़ का जादू बोलता था. असली दिशा से मिलना चाहता हूं मैं आज !”
“अम्बर, विक्रांत से शादी और फिर तलाक़. इन बातों ने मुझे अन्दर तक छलनी कर दिया था. गोआ में तुम क्या मिले कि एक बार फिर मेरी ज़िंदगी गुलज़ार हो गयी. यह अहसान ही क्या कम था कि फिर से दोस्त बनकर मेरा दुःख बांटा तुमने. किस मुंह से कहती कि किसी की पत्नी बनने के बाद भी तुमसे प्यार करती हूं ?” अंतिम वाक्य बोलते हुए दिशा की रुलाई फूट पड़ी.
“दिशा, किसी की पत्नी क्या तुम अपनी मर्ज़ी से बनी थीं? समाज के जो लोग जाति-पाति का भेद मन में रखते हैं, वे स्वयं तो आडम्बर का मुखौटा पहनकर रखते ही हैं, हम जैसे लोगों को भी ऐसे मुखौटे पहनने को मज़बूर कर देते हैं. लेकिन वे भूल जाते हैं कि मुखौटा केवल चेहरे पर पहनाया जा सकता है, मन पर नहीं. दिल से हमेशा मैं तुम्हारा था और तुम मेरी. अब दुनिया के सामने भी एक हो जायेंगे हम.”
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“अम्बर, क्या तुम्हारे घरवाले एक तलाकशुदा से…..”
“परवाह नहीं मुझे.” दिशा की बात बीच में काटते हुए अम्बर बोला. “आज हम दोनों इस समाज के बनाये हर उस उसूल को ठुकरा देंगे जो एक प्यार को बेसिर पैर के नियमों से बने मुखौटे पहनने को विवश करता है. तुम्हारा साथ चाहिए बस.”
दिशा ने गीली आंखों से अम्बर को देखा और उसकी हथेली को अपने लरज़ते गर्म होंठों से छू लिया.
बन्धनों का मुखौटा उतार वे एक-दूजे का हाथ थामे कौफ़ी-शॉप से बाहर निकल पड़े.
दिशा अपने को प्रसन्न रखने का भरपूर प्रयास कर रही थी. स्वयं को सांत्वना देती रहती थी कि कभी न कभी समय और विक्रांत का मन बदल ही जायेगा. लेकिन सुधरना तो दूर विक्रांत की निर्लज्जता दिनों-दिन बढ़ रही थी. हद तो तब हुई जब वह कौल गर्ल्स को घर पर बुलाने लगा. दिशा के बैड-रूम में उसके पति की किसी और के साथ हंसने-खिलखिलाने की आवाज़ बाहर तक आती. जब एक दिन निराश हो दिशा ने इसका विरोध किया तो विक्रांत उसे संकीर्ण विचारधारा की पिछड़ी हुई औरत कहकर मज़ाक उड़ाते हुए बोला, “तुम जैसी कंज़र्वेटिव औरत के लिए मेरे दिल में कभी जगह नहीं हो सकती. चुपचाप घर के कोने में पड़ी रहा करो. पैसा जब चाहे मांग लेना, कभी मना नहीं करूंगा. बस उन पैसों के बदले सोसायटी में मेरी प्यारी सी संस्कारी धर्मपत्नी बनी रहना और मैं बना रहूंगा तुम्हारा शरीफ़ सा सिविलाइज़्ड हज़बैंड!”
गुस्से से थर-थर कांपती दिशा ने यह सुन घर छोड़ने में एक मिनट की भी देरी नहीं की. विक्रांत के क्षमा मांगने पर दिशा के माता-पिता ने उसे एक मौका और देने को कहा, लेकिन वह नहीं मानी. दिशा की कोई मांग नहीं थी इसलिए तलाक़ जल्दी हो गया. इक्नौमिक्स में एमए करने के बाद एक प्राइवेट बैंक में उसकी नौकरी लग गयी. पिछले तीन वर्षों से माता-पिता के साथ रह रही थी वह.
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अचानक दरवाज़े पर दस्तक हुई और दिशा को आभास हुआ कि वह गैस्ट हाउस में लेटे हुए न जाने कितने वर्ष पीछे चली गयी थी. ‘लगता है डायरेक्टर सर होंगे, मीटिंग को लेकर कुछ ज़रुरी बात करनी होगी.’ सोचते हुए दिशा ने दरवाज़ा खोला तो सामने अम्बर को देख आश्चर्यमिश्रित हर्ष से उसका मुंह खुला रह गया.
“कितने मैसजेस किये मैंने अभी तुम्हें व्हाट्सऐप पर, देखे भी नहीं तुमने….बहुत बिज़ी हो गयी हो.” बैड के पास रखी कुर्सी पर बैठते हुए अम्बर स्नेह भरे शिकायती अंदाज़ में बोला.
“बस सिर दर्द था तो आंख लग गयी थी…..अरे, रात के दस बज गए!” दीवार घड़ी की ओर देखते हुए दिशा बोली.
“तभी तो आया था तुम्हारे पास. सोचा था अब तक तो डिनर भी कर लिया होगा तुमने. तुम्हारे साथ कुछ देर बैठने का मन था. चलो, कहीं बाहर चलते हैं, वैसे खाना मैंने भी नहीं खाया अब तक.” दिशा को मना करने का अवसर ही नहीं मिला. दोनों पास के एक रेस्टोरैंट में चले गए.
दिशा चाह रही थी कि उसके चेहरे पर पीड़ा की एक रेखा भी न आने पाये. अम्बर के सामने वह प्रसन्न दिखने की पूरी कोशिश कर रही थी. कुछ देर इधर-उधर की बातें करने के बाद अम्बर ने विक्रांत की चर्चा छेड़ दी. दिशा अधिक देर तक अम्बर के समक्ष संतुष्टि और प्रसन्नता का मुखौटा नहीं लगा सकी और पनीली आंखों से जीवन का कड़वा सच उसके सामने खोल कर रख दिया.
“क्या दिशा तुम भी…..! इतने दुःख झेले और मुझे ख़बर तक नहीं दी. आज भी हम नहीं मिलते तो मैं जान ही नहीं पाता कि तुम पर क्या बीती है.” दिशा की पीड़ा का असर अम्बर के दिल से होकर चेहरे पर झलक रहा था.
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डिनर के बाद कुछ देर बाहर टहलते हुए दोनों ने बीते समय की अन्य बातें शेयर की. अम्बर दिशा को गैस्ट हाउस तक छोड़ने आया. बाद में वे जितने दिन गोआ में रहे काम से समय निकालकर कहीं न कहीं घूमने निकल जाते. यूं तो समुद्री तटों के लिए विख्यात गोआ में घूमते हुए दिशा को वह पल याद आ ही जाता था जब वे स्टडी टूर पर गए थे, लेकिन ‘डोना पाउला’ के लवर पौइंट पर जाकर वह खो सी गयी. कहते हैं कि उस समय के वायसराय की बेटी ‘डोना पाउला डी मेनजेस’ एक मछुआरे से बहुत प्रेम करती थी. जब उसके पिता ने दोनों को विवाह की अनुमति नहीं दी तो उसने चट्टान से कूदकर अपनी जान दे दी थी. एक पुरुष और स्त्री की मूर्तियां भी हैं वहां पर. दिशा उनकी कहानी सुनकर उदास हो गयी. उसकी उदासी अम्बर से छुपी न रही और वह उसका मन बहलाने पास की एक मार्किट में ले गया. दिशा ने सीपियों और शंखों से बने कुछ गहने खरीदे और अम्बर ने पुर्तगाली हस्तशिल्प से तैयार नौका का एक शो-पीस. अगले दिन दिशा दिल्ली लौट गयी और तीन दिन बाद अम्बर भी आ गया.
वापिस दिल्ली आने के बाद अम्बर और दिशा अक्सर मिलने लगे. कभी शाम को औफ़िस के बाद वे एक साथ चाय-कौफ़ी पीते तो कभी रविवार के दिन मौल में मिलते. अपने घर में यह सब बताकर दिशा कोई बवंडर खड़ा नहीं करना चाहती थी, किन्तु एक दिन गौरव भैया ने दोनों को साथ-साथ देख लिया.
उन दोनों के एक मित्र, कुणाल का कुछ दिनों बाद विवाह होने वाला था. एक साथ कार्ड देने के उद्देश्य से उसने कुछ दोस्तों को रेस्टोरैंट में बुला लिया. सबसे पहले अम्बर व दिशा वहां पहुंचे. वे जाकर बैठे ही थे कि दिशा की नज़र सामने की टेबल पर पड़ गयी. गौरव अपने एक मित्र के साथ वहां बैठा हुआ था. कुणाल व अन्य मित्रों के आने तक वे दोनों गौरव के पास बैठ गए. सबके आ जाने पर गौरव वापिस चला गया. चाय पीते हुए वे सब कौलेज के दिनों को याद कर ठहाके लगा रहे थे. दिशा भी बातचीत और हंसी-मज़ाक में सबका साथ दे रही थी, लेकिन भीतर ही भीतर भयभीत थी कि घर पर जाने क्या होगा? गौरव भैया अम्बर को लेकर न जाने मम्मी-पापा से क्या कहेंगे?
रेस्टोरैंट से निकलकर दिशा ने अपने मन का डर जब अम्बर के सामने रखा तो उसने आश्वासन देते हुआ कहा कि किसी भी समय यदि उसकी आवश्यकता हो तो दिशा कौल या मैसेज कर दे. वह जल्द से जल्द उनके घर पहुंचकर उसके परिवारवालों को समझा देगा.
दिशा ने डरते हुए घर में कदम रखा. मां उसके लिए चाय लेकर आ गयीं. फिर गौरव और माता-पिता के बीच कानाफूसी होने लगी. कुछ देर बाद वे तीनों मुस्कुराते हुए दिशा के पास आये और बात शुरू करते हुए मां बोली, “बेटा, गौरव बता रहा था कि अम्बर की अभी तक शादी नहीं हो पायी है. हम चाहते हैं कि उसे कल घर पर बुला लो, हम रिश्ते की बात करना चाहते हैं.”
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“यह क्या कह रही हैं आप?” दिशा के माथे पर बल पड़ गए.
“मेरी और पापा की भी यही राय है.” गौरव मुस्कुरा रहा था.
दिशा उनके इस व्यवहार से भौंचक्की रह गयी. गुस्से से तमतमाया चेहरा लेकर वह कमरे से निकल ही रही थी कि पापा बोल उठे, “तुम्हारी भलाई की बात ही कर रहे हैं, बेटा.”
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“कितना सुन्दर है यह छोटा सा रेत का मकान, रंग-बिरंगी सीपियों से सजा हुआ! कैसे ढूंढ ली इतनी ख़ूबसूरत सीपियां इतनी जल्दी तुमने?” अम्बर घरौंदा देख सचमुच आश्चर्य चकित था.
“अपने बालू जैसे रूखे मन से भी ऐसे ही प्यार की चमकती सीपियां निकालकर अब प्रेम-घर सजाना चाहती हूं.” अनायास ही दिशा के मुंह से निकल गया.
“मैं भी अपने प्यार का फूल सजा दूं क्या यहां?” पास से गुज़र रहे फूल बेचने वाले से रंग-बिरंगे फूलों का एक गुच्छा खरीदते हुए अम्बर बोला.
गुच्छे से दो फूल निकाल उसकी पंखुडियां अलग कर अम्बर ने घरौंदे पर बिखेर दीं और एक बड़ा सा जवाकुसुम का फूल दिशा के बालों में लगाता हुआ बोला, “फूल नहीं यह प्यार है मेरा, देखना अब मेरा इश्क़ तुम्हारे सिर चढ़कर बोलेगा.”
दिशा निगाहें नीची कर मुस्कुरा दी फिर अपना सिर अम्बर के कंधे पर टिका दिया. अम्बर ने उसके प्रेम में भीगे चेहरे को अपनी हथेलियों में समेट प्रेम की मोहर लगा दी.
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सचमुच अम्बर के प्यार का जादू दिशा के सिर चढ़कर बोलने लगा. दिन-रात अम्बर से मिलने को बेताब दिशा को उसके बिना जीना दुश्वार सा लगने लगा था. अम्बर भी दिशा के प्रेम में रंगा था, किन्तु वह अपने को संयत कर प्रेम को मन में ही दबाये रखता था. दिशा जब कभी भी उसे अपने मन की हलचल के विषय खुलकर बताती तो वह मुस्कुराकर कहता, “समय आने पर इस रिश्ते को नाम दे देंगे.”
दिशा अब इस बात को सोचकर बेचैन हो उठती कि उसके और अम्बर के परिवार वाले इस रिश्ते को सहमति देंगे या नहीं. वह अपने माता-पिता को सब कुछ बताकर भविष्य के प्रति आश्वस्त हो जाना चाहती थी. एक दिन जब वह हिम्मत जुटा अपनी भावनाएं मां से साझा करने पहुंची तो उनकी प्रतिक्रिया देख वह भीतर तक आहत हो गयी.
“यह क्या कह रही हो दिशा ? धीरे बोलो. अच्छा हुआ जो तुमने ये बात अपने भैया, गौरव के सामने नहीं की, वह तो तुम्हारे कौलेज जाने पर भी रोक लगवा देता.” कहते हुए मां ने कमरे का दरवाज़ा धीरे से बंद कर दिया. फिर थोड़ा क्षोभ प्रकट करते हुए बोलीं, “तुम्हें पता है न कि अम्बर नीची जाति से है. हमसे पाप करवओगी क्या नीची जातिवालों से सम्बन्ध बनावाकर?”
मम्मी की बातों से निराश दिशा शाम को पापा के आने की प्रतीक्षा करने लगी. उसे अपनी दुलारी बेटी कहने वाले पापा ने मां का समर्थन करते हुए उसके सामने अपने एक मित्र के बेटे, विक्रांत से विवाह का प्रस्ताव रख दिया. विक्रांत का परिवार काफी संपन्न था, उनके विदेश तक फैले व्यापार का विक्रांत ही अकेला उत्तराधिकारी था.
दिशा की मां ने प्रसन्नता दर्शाते हुए कहा “मैं तो अब दिशा के लिए लड़के देखने की बात आपसे करने ही वाली थी. इसका बीए फाइनल इयर है. बस इसके बाद हाथ पीले कर देंगे. अच्छा हुआ कि आपकी पहचान में विक्रांत जैसा एक लड़का है.”
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“कल संडे है, मैं उन लोगों को फ़ोन कर घर आने का इनविटेशन दे देता हूं.” दिशा के पिता जेब से अपना मोबाइल निकालते हुए बोले.
“अभी मुझे बहुत पढ़ना है, अम्बर को तो मैं केवल पसंद करती हूं इसलिए आपको बताना चाहती थी. शादी के बारे में तो मैं अभी सोच ही नहीं रही थी.” दिशा ने इस प्रस्ताव को टालना चाहा.
“तो हम भी बस यूं ही मिलने के लिए बुला लेते हैं उन लोगों को.” दिशा की मां के कहते ही उसके पिता ने विक्रांत के घर फ़ोन लगा लिया. वे अम्बर से उसका सम्बन्ध किसी भी कीमत पर समाप्त करवा देना चाहते थे.
अगले दिन विक्रांत अपने परिवार के साथ आ गया. दिशा कुछ देर उन लोगों के पास बैठने के बाद अपने कमरे में चली गयी. इसी बीच उसके घरवालों ने विक्रांत के परिवार से दोनों के रिश्ते की बात कर ली. विक्रांत की मां ने अपने गले से सोने की मोटी चेन उतारकर दिशा के गले में डाल दी. दिशा जैसी कोमल गुड़िया सरीखी लड़की को वे कैसे छोड़ देतीं? दिशा को वह चेन फांसी के फंदे सी लग रही थी. उसके पिता ने नोटों की ढेर सारी गड्डियां विक्रांत की झोली में डाल दीं और दोनों के माता-पिता ने एक-दूसरे को शुभकामनाएं दे रिश्ता पक्का कर दिया. दिशा लुटी सी सब देखती रह गयी. रात का खाना खाकर उनके जाने के बाद दिशा टूटे वृक्ष सी अपने बिस्तर पर पड़ गयी. ‘अब क्या होगा? अम्बर से सब कैसे कहेगी? सोचा क्या था और क्या हो गया!’ दिशा का मन बहुत अशांत था. रात भर वह सुबकती ही रही.
सुबह होते ही वह जल्दी-जल्दी तैयार हो कौलेज के लिए निकल पड़ी और वहां पहुंचकर सीधा अम्बर के क्लास-रूम में चली गयी. अम्बर को देखते ही रुंधे गले से बात शुरू करते हुए बोली, “अम्बर, मेरे परिवार वालों के मन में मेरे लिए ज़रा सा भी स्नेह नहीं है. उनका असली चेहरा दिख गया है मुझे. अभी तक वे मुखौटे लगाकर रह रहे थे.” और दिशा ने रोते हुए पूरी बात बता दी.
अम्बर को कुछ नहीं सूझ रहा था. अभी तो वह अपने पैरों पर खड़ा भी नहीं हुआ था, फिर दिशा को अपने साथ घर बसाने को कैसे कह देता? दिशा की बेबसी और अपनी लाचारी देख उसने पीड़ा को भीतर छुपाते हुए मुस्कुराता चेहरा अपने उदास चेहरे पर चढ़ा लिया और दिशा को परिस्थिति से समझौता कर अपने माता-पिता की बात मान लेने का सुझाव दे दिया.
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दिशा ने भी दिल पर पत्थर रख लिया. वार्षिक परीक्षा के बाद विक्रांत से उसका विवाह हो गया. विवाह के दो माह बीतते-बीतते वह जान गयी कि विक्रांत का असली चेहरा कुछ और ही था. एक विनम्र, चरित्रवान और निश्छल व्यक्ति का मुखौटा लगाये वह सबको धोखे में रखता था. प्रतिदिन घर देर से आना, शराब पीकर दिशा को डांटना-फटकारना और अन्य स्त्रियों से सम्बन्ध उसकी आदत थी. मदिरा के मद में कभी दिशा पर प्यार भी आता तो बिस्तर से शुरू होकर बिस्तर पर ही समाप्त हो जाता. पत्नी तो मात्र देह थी उसके नज़रों में. देह की कभी भावनाएं होती हैं क्या? तभी तो दिशा का भावनात्मक होना उसे हास्यास्पद लगता था और पति के प्रति उसका प्रेम विक्रांत को कमज़ोरी की निशानी लगता था. दिशा उसके लिए हाथ आ चुकी वह वस्तु थी जो अब कभी छूटने वाली नहीं थी.
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