Me Too को लेकर काजोल ने दिया बयान, कहा- पुरुषों ने महिलाओं से बनाई 7 कदम की दूरी

90 की दशक में बेहतरीन अदाकारा के रूप में चर्चित अभिनेत्री काजोल (Kajol) से कोई अपरिचित नहीं. उन्होंने हमेशा अलग-अलग भूमिका निभाकर दर्शकों को चकित किया है. फिर चाहे वह बाज़ीगर जैसी रोमांटिक फिल्म हो या तानाजी जैसी पीरियोडिकल ड्रामा हर किरदार में सफल रही. इस सफलता का श्रेय अपनी मां को देती है, जिसने हर माहौल में उसका साथ दिया. आज वह 2 बच्चों की मां भी है, पर परिवार के साथ काम में सामंजस्य बिठाने को मुश्किल नहीं समझती. उसे फिल्में चाहे छोटी हो या बड़ी किसी को भी करने से नहीं कतराती.

शौर्ट फिल्म ‘देवी’ में उसने एक साधारण और विनम्र महिला की भूमिका निभाई है. इस फिल्म के स्क्रीनिंग पर उसने बताया कि महिलाओं को देवी कहकर उन्हें उपर का दर्जा तो दिया जाता है, पर रियल लाइफ में उन्हें वह सम्मान नहीं मिलता जिसकी वह हकदार है, इसके लिए हर एक महिला को हो अपनी आवाज बुलंद करने की जरुरत होती है और ये तब तक करते रहना चाहिए जब तक उसे सही न्याय नहीं मिलता.

 

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Hey You….. Happy happy birthday you sweet girl. Wish you the world?❤❤❤❤❤❤ #Devi @tanishaamukerji

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काजोल कहती है कि मुझे कई लोगों ने पूछा कि मैं ये फिल्म क्यों कर रही हूं. मुझे इसकी स्क्रिप्ट के अलावा जो सन्देश है वह मेरे लिए बहुत रुचिपूर्ण था. इसमें 9 अभिनेत्रियों ने साथ मिलकर काम किया और यही बात हमारी महिलाओं में होनी चाहिए. वे अगर साथ मिलकर किसी बात का विरोध करती है, तो उसका परिणाम सामने निकलकर आयेंगा, लेकिन यही महिला अगर एक दूसरे से झगडती है या एक दूसरे को नीचा दिखाने की कोशिश करती है तो उन्हें उनका हक कभी नहीं मिल पायेगा.

 

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Team #Devi . She is all of us. One more for the women’s club! @electricapplese #goodday #womensclub #filmrelease

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पूरे विश्व में महिलाओं के साथ भेदभाव होता है, पर समय के साथ-साथ उन्हें सफलता भी मिली है. काजोल कहती है कि महिलाओं ने आगे बढकर अपने आपको सिद्ध किया है और उन्हें सम्मान भी मिला है. कई ऐसे भी परिवार है जिन्होंने मेहनत कर अपने बेटों की सही परवरिश की है और वे अपनी बहन माँ और पत्नी को सम्मान देते है. हालाँकि ये काम धीरे-धीरे हो रहा है, पर मुझे उम्मीद है कि इसका प्रभाव अगले कुछ सालों में देखने को अवश्य मिलेगा.

भविष्य निर्माण में एक महिला ही जिम्मेदार होती है और इसे बचपन से उन्हें अपने बेटों को देनी चाहिए. इतना ही नहीं आज किसी भी अपराध की दोषी महिला को ही ठहराया जाता है. अगर महिला उससे निकलकर आगे बढकर न्याय मांगती है, तो वह समय रहते नहीं मिलता. इसमें कमजोरी हमारे सिस्टम की है, जिसे सुधारने की बहुत जरुरत है, जिसके लिए बहुत सारे लोगों को एक साथ मिलकर काम करने की जरुरत है.


फिल्म इंडस्ट्री में अभिनेता और अभिनेत्रियों के मेहनताना में काफी फर्क होने के बारें में पूछे जाने पर काजोल का कहना है कि केवल फिल्म इंडस्ट्री ही नहीं, हर क्षेत्र में महिलाओं को पुरुषों से कम आंका जाता है, क्योंकि ये पुरुष प्रधान समाज है. प्रैक्टिकल और सेंसिबल एप्रोच से ही इसे सुधारा जा सकता है. इसके अलावा हमारा समाज काफी हद तक जिम्मेदार है, जो महिला प्रधान फिल्मों को भी पुरुष प्रधान फिल्मों की तरह ही प्यार नहीं देती. इससे बदलाव आने में समय लग रहा है. आत्मसम्मान पाने के लिए खुद आवाज उठाने के अलावा हमारे बेटों को भी वैसी शिक्षा देने की जरुरत है.

 

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Repost @officialhumansofbombay We met 25 years ago, on the sets of Hulchul–I was ready for the shot & asked, ‘Where’s my hero?’ Someone pointed him out–he was broodily sitting in a corner. So 10 minutes before I met him, I bitched about him! We began talking on set & became friends. I was dating someone at the time & so was he–I’ve even complained about my then boyfriend to him! Soon, we both broke up with our significant others. Neither of us proposed–it was understood that we were to be together. It went from hand-holding to a lot more before we knew it! We used to go for dinners & so many drives–he lived in Juhu & I, in South Bombay, so half our relationship was in the car! My friends warned me about him–he had quite a reputation. But he was different with me–that’s all I knew. We’d been dating for 4 years, when we decided to get married. His parents were on board, but my dad didn’t talk to me for 4 days. He wanted me to focus on my career, but I was firm & he eventually came around. Again, there was no proposal–we just knew we wanted to spend our lives together. We got married at home & gave the media the wrong venue–we wanted it to be our day. We had a Punjabi ceremony & a Marathi one! I remember, during the pheras Ajay was desperately trying to get the pandit to hurry up & even tried to bribe him! I wanted a long honeymoon–so we travelled to Sydney, Hawaii, Los Angeles… But 5 weeks into it, he fell sick & said, ‘Baby, book me on the next flight home!’ We were supposed to do Egypt, but we cut it short. Over time, we began planning to have kids. I was pregnant during K3G, but had a miscarriage. I was in the hospital that day–the film had done so well, but it wasn’t a happy time. I had another miscarriage after that–it was tough. But eventually it worked out–we had Nysa & Yug & our family’s complete. We’ve been through so much–we’ve formed our own company, Ajay’s on his 100th film & every day we’re building something new. Life with him is content–we’re not too romantic or anything–we care for each other. If I’m thinking idiotic things, it’ll come out of my mouth without a filter & vice versa. Like right now I’m thinking that he owes me a trip to Egypt!

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मी टू मूवमेंट (Me Too) भी इस दिशा में काफी कारगर सिद्ध हुई है. काजोल हंसती हुई कहती हैं कि इसके बाद से पुरुषों ने महिलाओं से 7 कदम की दूरी बना ली है. आज वे कुछ कहने से डरते है. ये सही कदम है, हर क्षेत्र में इस विषय पर ध्यान दिया जा रहा है. ये जरुरी था, आज पुरुष चाहे सेट पर हो या वर्किंग प्लेस पर किसी भी महिला से बात करने से पहले अपनी सीमा को समझने लगे है.

तानाजी फिल्म रिव्यू: अजय देवगन और सैफ अली खान की शानदार एक्टिंग

रेटिंगः साढ़े तीन स्टार

निर्माताः अजय देवगन,भूषण कुमार और किशन कुमार

निर्देशकः ओम राउत

कलाकारः अजय देवगन,काजोल,सैफ अली खान व अन्य.

अवधिः दो घंटे 14 मिनट

मराठा साम्राज्य की शूरवीरता को भव्य अंदाज में दर्शाने वाली आशुतोष गोवारीकर की फिल्म ‘‘पानीपत’’ के बाद अब ओम राउत उसी साम्राज्य की शूरवीरता को दिखाने के लिए फिल्म ‘‘तानाजीःद अनसंग वॉरियर’’ लेकर आए हैं.यह कथा सत्रहवीं सदी की ‘बैटल आफ सिंहगढ़’’ के नाम से मशहूर मुगल शासक औरंगजेब के खिलाफ मराठा साम्राज्य के शासक छत्रपति शिवाजी महाराज का युद्ध है. इसमें कोंढाणा किले को मुगल साम्राज्य से छुड़कर स्वराज्य का भगवा लहराने वाले वीर तान्हा जी कथा है. अमूमन युद्ध के इर्द गिर्द घूमने वाली ऐतिहासिक फिल्में बोरियत से भरपूर होती हैं, मगर ‘‘तानाजीःद अनसंग वौरियर’’ एक ऐसी कमर्शियल मसाला फिल्म है, जिसमें मनोरंजन के सारे तत्व भव्य पैमाने पर मौजूद हैं.

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कहानीः

यह कहानी है इतिहास के सत्रहवीं सदी में सिंहगढ़ युद्ध के नाम से दर्ज युद्ध की, जब मुगल शासक औरंगजेब (ल्यूक केनी) पूरे भारत पर मुगलिया परचम  लहराने के लिए ‘फूट डालो राज करो’की नीति के तहत दक्षिण में मराठा साम्राज्य के खिलाफ लड़ने के लिए हिंदू योद्धाओं और हिंदू राज्यों के शासकों का साथ ले रहे थे. उधर दक्षिण (दक्खण)में शिवाजी महाराज (शरद केलकर) अपने स्वराज्य को लेकर ली गई कसम के प्रति कटिबद्ध है. 17वीं शताब्दी में शिवाजी महाराज का परममित्र और जांबाज योद्धा सुबेदार तानाजी मालसुरे (अजय देवगन) खेती करने के साथ साथ अपनी पत्नी सावित्रीबाई (काजोल) के साथ अपने बेटे की शादी की तैयारियों में व्यस्त हैं.वह इस बात से अनभिज्ञ हैं कि एक संधि के तहत शिवाजी महाराज कोंढाणा किले समेत 23 किले मुगलों के हवाले कर चुके हैं.जब औरंगजेब की सेना कोंढाणा किले पर कब्जा करने आती है, तब राजमाता जीजाबाई ने कसम खायी थी कि जब तक इस किले पर दोबारा भगवा नहीं लहराएगा, तब तक वह पादुका नहीं पहनेंगी और नंगे पैर ही रहेंगी.

खैर,मुगलिया शासक औरंगजेब की प्यास नहीं मिटी है. औरंगजेब अपने विश्वासपात्र और अति क्रूर हिंदू सैनिक उदयभानु सिंह राठौड़ (सैफ अली खान)को भारी भरकम सेना और नागिन नामक एक बड़ी तोप के साथ कोंढाणा किले की ओर कूच करने का आदेश देते हुए मराठा साम्राज्य को खात्मा करने की बात कहता है.

शिवाजी महाराज अपने बहादुर और प्यारे दोस्त तानाजी के बेटे की शादी में व्यवधान न पड़े, इसलिए वह उदयभान सिह से युद्ध की त्रासदी में तानाजी को शामिल नहीं करना चाहते.पर जब तानाजी अपने बेटे की शादी का निमंत्रण शिवाजी महाराज को देने आते हैं,तो तान्हाजी को पता चल जाता है कि स्वराज्य और शिवाजी महाराज खतरे में हैं. ऐसे में वह बेटे की शादी की से पहले उदयभानु का सर कलम कर कोंढाणा किले पर भगवा फहराने के लिए निकल पड़ते हैं.

इस कहानी के ही बीच एक उपकहानी यह है कि क्रूर व जांबाज उदयभानु अपने पहले प्यार यानी कि विधवा राजकुमारी कमला (नेहा शर्मा)को उठा लाए हैं और उन्हें अपनी रानी बनाने पर अड़े हुए हैं. इसलिए कमला का भाई तानाजी का साथ देने को तैयार है, जिससे वह अपनी बहन को उदयभानु के चंगुल से बचा सके. उदयभानु सिंह के साथ युद्ध में तानाजी को विश्वासघात भी मिलता है.पर अंतिम परिणाम क्या होता है, क्या सूबेदार तानाजी मालुसरे (अजय देवगन) देश के लिए स्वतंत्रता अर्जित करने के अपने पिता के कर्ज को उतारते हैं. इसके लिए फिल्म देखना उचित रहेगा.

लेखन व निर्देशनः

‘लोकमान्यःएक युग पुरुष’ जैसी ऐतिहासिक फिल्म का लेखन व निर्देशन कर पुरस्कार हासिल कर चुके ओम राउत की यह दूसरी ऐतिहासिक फिल्म है, जिसे वह अतिभव्यता के साथ पेश करने में सफल रहे हैं. मगर पटकथा के स्तर पर इंटरवल से पहले वह थोड़ा सा मात खा गए.इंटरवल तक वह सिर्फ ‘सिंहगढ़ युद्ध’की आधारशिला ही रख पाए. इंटरवल के बाद फिल्म ज्यादा तेज गति से बढती है. फिल्म का क्लायमेक्स दर्शकों के अंदर एक जोश भरता है. लेखकद्वय प्रकाश कापड़िया व ओम राउत की तरफ से फिल्म की शुरूआत में ही घोषणा कर दी गयी है कि उन्होने पटकथा लेखन के दौरान सिनेमाई स्वतंत्रता ली है, इसलिए इसे इतिहास की कसौटी पर कसने की जरुरत नही रह जाती.

इस थ्री डी फिल्म में इतिहास के सत्रहवीं सदी के महत्वपूर्ण अध्याय की इस कहानी में जांबाजी, रोमांस, थ्रिल, विश्वासघात सहित सारे तत्व विद्यमान हैं.सबसे बड़ी संतोषजनक बात यह है कि फिल्म के युद्ध दृश्यों में जिस तरह की भयानक गलती फिल्म ‘पानीपत’में निर्देशक आशुतोष गोवारीकर ने की थी,वह ओम राउत ने अपनी फिल्म ‘‘तानाजीः द अनसंग वॉरियर’’ में नही की है. इसके लिए ओम राउत बधाई के पात्र हैं. ज्ञातब्य है कि ‘पानीपत’और‘तानाजीःद अनसंग वॉरियर’का कालखंड एक ही है.

फिल्म का वीएफएक्स शानदार है. फिल्म की कमजोर कड़ी इसके गीत हैं,जो कि फिल्म की गति को प्रभावित करते हैं.जबकि फिल्म का पाश्र्वसंगीत काफी बेहतर है.

फिल्म के एक्शन दृश्य सत्रहवीं सदी और मराठा शूरवीरों की छापामार युद्ध कौशल का अहसास दिलाते हैं. इसके लिए जर्मनी के एक्शन निर्देशक रमजान बुलट बधाई के पात्र हैं.

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अभिनयः    

वीर योद्धा सुबेदार तान्हा जी के किरदार को संगत तरीके से निभाने में अजय देवगन सफल रहे हैं. स्वराज्य के लिए मर मिटने वाला इमोशन भी उनके चरित्र को खास बनाता है. काजोल के साथ उनकी केमिस्ट्री भी परदे पर अच्छी बनी है. काजोल का अभिनय काफी सधा हुआ है. उदयभानु सिंह के किरदार में सैफ अली खान ने शानदार अभिनय किया है. युद्ध के दृश्यों में सैफ अली खान ने अजय देवगन को भी पछाड़ दिया है. उदयभानु की बर्बरता को जिस खूबसूरती से अपने अभिनय से सैफ अली खान ने परदे पर उकेरा है, वह बिरले कलाकारों के ही वश की बात है. शिवाजी के किरदार में बौडी लैंगवेज व भाव-भंगिमा से शरद केलकर बेहतर अभिनय कर दिखाया. अन्य कलाकार भी अपनी अपनी जगह ठीक हैं.

अगर खून बहेगा तो वह लाल ही बहेगा – काजोल

90 की दशक की एक बेहतरीन अदाकारा के रूप में उभर कर आने वाली अभिनेत्री काजोल ने हिंदी सिनेमा में कई बेहतरीन अभिनय कर अवार्ड जीते है. फ़िल्मी माहौल में पैदा हुई काजोल को विरासत में अभिनय के गुण मिले है, जिसे वह गर्व के साथ कहती है. हिंदी फ़िल्मी कैरियर की शिखर पर होते हुए उन्होंने अजय देवगन से शादी की और दो बच्चों न्यासा और युग की माँ बनी. माँ बनने के बाद उन्होंने कुछ दिनों का ब्रेक लिया. पर्दे पर आई और हमेशा एक अच्छी और नयी फिल्म दर्शकों को देने की कोशिश करती है. अभी उसकी ऐतिहासिक पीरियोडिकल फिल्म ‘तानाजी –द अनसंग वैरियर’ आने वाली है, जिसमें उन्होंने तानाजी की पत्नी सावित्रीबाई मालुसरे की भूमिका निभाई है. सालों बाद वह अपने पति अजय देवगन के साथ एक बार फिर से अभिनय कर खुश है. ट्रेडिशनल ड्रेस में वह सामने आई, पेश है बातचीत के कुछ अंश.

सवाल-आपको किस तरह के आउटफिट अधिक पसंद है?

मुझे साड़ियाँ बहुत पसंद है. हमेशा से मुझे इंडियन ऑउटफिट पसंद थे और मैं अधिकतर इसे ही पहनती हूँ, क्योंकि भारतीय महिलाएं किसी भी शेप, साइज़ या रंग की क्यों न हो, साड़ी हमेशा उनपर जंचती है.

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सवाल-इस फिल्म में मराठी संस्कृति को बहुत ही नजदीक से दिखाया गया है और आप खुद मराठी संस्कृति से सम्बन्ध रखती है, ऐसे में आपका अनुभव कैसा था?

इसे करने में बहुत अच्छा लगा मैंने इस फिल्म में नव्वारी साड़ी पहनी है, जो मैंने 20 साल पहले अपने शादी पर नथ और मंगलसूत्र के साथ पहनी थी. अभी फिर से पहनी है. मैंने अपनी नानी उसकी माँ और सारे रिश्तेदारों को ऐसे ड्रेस में देखा हुआ है. कैसे उसे पहनकर चलते है उसकी समझ थी पर इस फिल्म में बुजुर्ग महिला आशाताई को सेट पर बुलाया गया, जो पुराने तरीके से नव्वारी पहनाती है. मुझे आधे से पौने घंटे इस साडी को पहनने में लगते थे.

सवाल-इस भूमिका के लिए आपने कितनी तैयारी की?

मुझे अधिक तैयारी नहीं करनी पड़ी, क्योंकि निर्देशक ने सारी रिसर्च पिछले 5 साल से करते हुए यहाँतक पहुंचे है. मैंने उनके हिसाब से ही काम किया है. मेरी भूमिका के बारें में अधिक कहीं कुछ लिखा हुआ नहीं है. 500 साल पहले की डिटेल अधिक कहीं लिखी हुई भी नहीं है, पर जो भी है, इतिहास को लेकर ही इसे बनाया गया है.

सवाल-इतने सालों बाद फिर से सेट पर अजय के साथ काम करने का अनुभव कैसा रहा?

हम दोनों ने करीब 10 फिल्में साथ की है और घर पर भी हम साथ रहते है. ये सही है कि उनके साथ सीन्स करने में बहुत अच्छा लगा. मेरे हिसाब से किसी दृश्य में 50 प्रतिशत निर्देशक और 50 प्रतिशत कलाकार का हाथ उसे सफल बनाने में होता है. बीच में कई बार अजय ने मुझे और अधिक अच्छा अभिनय करने की सलाह भी दी, जो मेरे लिए अच्छी बात थी.

सवाल-इतने सालों में अजय देवगन और इंडस्ट्री में आप कितना परिवर्तन पाते है?

चरित्र के हिसाब से वे जैसे थे वैसे ही है, फिल्म सेट को मैं घर की तरह ही समझती हूँ . घर पर थोड़े अलग हो गए है, पर सेट पर वैसे ही काम करते है. आजकल इंडस्ट्री में भी काम करने का तरीका काफी बदल गया है. दर्शक आज कोरियन, चायनीज, जर्मन, इंग्लिश आदि हर तरही की फिल्में देखते है, इसलिए 15 साल पहले जो चीज चलती थी. वह आज नहीं चलती, इसलिए इंडस्ट्री को भी बदलना पड़ा.

सवाल-फिल्मों का चुनाव आप कैसे करती है?

मैं फिल्म की कहानी, निर्देशक बैनर आदि सब देखती हूँ, इसके अलावा जो भी कहानी मेरे पास आती है, उसमें से अच्छी फिल्म और किरदार को चुनकर उसे अधिक अच्छा बनाने की कोशिश करती हूँ.

सवाल-आप दोनों की जोड़ी शादी के बाद अच्छी चल रही है इसका क्रेडिट किसे जाता है?

मैंने हमेशा से ये माना है कि किसी भी रिश्ते को थोडा समय हर रोज देने की जरुरत पड़ती है, जैसे एक पौधे को रोज पानी देने की आवशयकता होती है. ये उस पेड़ के बड़े होने पर भी ध्यान देने की जरुरत होती है. यही हम दोनों को भी करने पड़ते है. हम दोनों एक ही रास्ते पर है, हमारी सोच एक है.

सवाल-बच्चे आप दोनों को एक साथ काम करते हुए देख कितने खुश है?

बच्चे बहुत खुश है, वे इसे देखना चाहते है. उन्हें लगता है कि मैं हर पिक्चर में रोती हूँ और वे उसे देखना नहीं चाहते.

सवाल-आप किस तरह की माँ है?

मैं बहुत अधिक कड़क माँ नहीं हूँ. मैं विश्वास करती हूँ कि अगर आपको बच्चों को सही तरह से पालन-पोषण करनी है तो उनपर विश्वास रखना पड़ेगा,क्योंकि दुनिया इतनी अलग है और छोटी उम्र से ही उनको सबकुछ पता चल जाता है, ऐसे में आप उन पर अधिक ध्यान नहीं रख सकते. अगर आप एक बैलेंस्ड पैरेंट बनना चाहते है ,तो आपको अपने बच्चों पर भरोसा रखना पड़ेगा कि आपने बच्चों को सही सीख दी है और वे खुद के लिए भी सही निर्णय लेने में समर्थ होंगे.

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सवाल- अधिकतर महिलाएं परिवार के साथ काम को छोड़ देती है आपने ऐसा नहीं किया और थोड़े दिनों बाद पर्दे पर दिखी, इसे कैसे किया?

मेरे हिसाब से महिलाएं अधिकतर परिवार के साथ भी काम करना चाहती है ,लेकिन उन्हें सहयोग नहीं मिलता और वे काम पर नहीं जा पाती. मुझे हमेशा परिवार का सहयोग रहा है, इसलिए अधिक सोचना नहीं पड़ा.

सवाल- आपकी माँ ने आपकी परवरिश कैसे की?

वे कभी ओवर प्रोटेक्टिव नहीं थी. मेरी माँ हमेशा खुले विचार रखती थी. उन्होंने बहुत हिम्मत के साथ हमें पाला है. बचपन में मुझे माँ से बहुत मार पड़ती थी. लेकिन जब मैं 13 साल की हुई, तो उन्होंने कहा कि अब वह मेरे उपर हाथ नहीं उठाएगी और मुझे अपनी जिम्मेदारी खुद सम्हालनी है.

सवाल- कोई ऐसी सीख,जिसे आपने माँ से सीखा है और बच्चों को भी देना चाहती है? उम्र होने पर माता –पिता बच्चों की तरह हो जाते है, इस बात पर आप कितना विश्वास करती है?

बहुत सारे है,जिसे मैंने माँ से सीखा है. जिसमें बच्चों पर विश्वास रखना और उन्हें निर्णय लेने की आज़ादी देना. मुझे याद आती है, जब मैं माँ बनी, तो एकदिन मैंने उन्हें फ़ोन पर कही थी कि मुझे आज पता चला है कि आपने मुझे कैसे पाला है और कितना प्यार दिया है. ये सही है कि आप तब तक इस बात को समझ नहीं सकते, जब तक कि आप खुद माँ न बनी हो. उन्होंने कितनी राते जगी होंगी, काम के साथ-साथ कितनी मुश्किलों से मुझे इतना बड़ा किया होगा आदि. हम इन सारी बातों को भूल जाते है. माता-पिता का प्यार बच्चों के प्रति हमेशा बिना शर्तो के होता है. इसलिए बच्चो को भी माता-पिता का ध्यान हमेशा रखने की जरूरत होती है. उन्होंने मेरे लिए जितना किया है, मैं उनके लिए अभी तक नहीं कर पायी हूँ. मैं हमेशा उनकी ऋणी रहूंगी. माता-पिता जिंदगी भर हमारे माता-पिता ही रहेंगे. उनसे हमेशा कुछ न कुछ आज भी सीखती हूँ. हॉस्पिटल के बेड पर होने पर भी कुछ न कुछ अवश्य सिखाएगी. इसलिए मैं उन्हें बच्चे की तरह कभी नहीं समझ सकती.

सवाल- आप एक ऐसे परिवार से आती है, जहाँ महिलाओं ने शुरू से काम किया है, आप इसे कैसे लेती है?

मेरे परिवार की सभी महिलाओं से मैंने एक बात सीखी है कि महिलाओं को कोई भी सशक्त नहीं बना सकता, जब तक वह खुद न चाहे. लोग महिला सशक्तिकरण के बारें में जो बातें करते है,मेरे हिसाब से उन्हें कुछ भी कहने की जरुरत नहीं होती. अगर आप खुद अपने आप में विश्वास रखे, तो वही सबसे बड़ी एम्पावरमेंट होती है. अगर मैं काम पर जाती हूँ, तो मेरा बेटा भी समझ जायेगा कि मैं काम कर सकती हूँ. मैं सभी माँ से कहना चाहती हूँ कि बेटे को महिलाओं के बारें में बताएं और उनके सशक्तिकरण के बारें में चर्चा उनके बचपन से करें, क्योंकि माँ के पास शक्ति होती है कि वे एक अच्छे भविष्य का निर्माण कर सके.

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सवाल-साल 2020 के लिए क्या मेसेज देना चाहती है?

साल 2020 बहुत अच्छा साल होने वाला है और मैं सब खुश रहे इसकी कामना करती हूँ. इसके अलावा मैं चाहती हूँ कि इस साल पूरी दुनिया के लोग एक दूसरे को ह्यूमन बीइंग की तरह देखें. चाहे वह किसी भी वर्ग, जाति, धर्म, वर्ग या रंग का हो, उन्हें अलग न समझे, क्योंकि अगर खून बहेगा तो वह लाल ही बहेगा, इसलिए हमें एक दूसरे को सहयोग करने की जरुरत है.

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