90 की दशक में बेहतरीन अदाकारा के रूप में चर्चित अभिनेत्री काजोल (Kajol) से कोई अपरिचित नहीं. उन्होंने हमेशा अलग-अलग भूमिका निभाकर दर्शकों को चकित किया है. फिर चाहे वह बाज़ीगर जैसी रोमांटिक फिल्म हो या तानाजी जैसी पीरियोडिकल ड्रामा हर किरदार में सफल रही. इस सफलता का श्रेय अपनी मां को देती है, जिसने हर माहौल में उसका साथ दिया. आज वह 2 बच्चों की मां भी है, पर परिवार के साथ काम में सामंजस्य बिठाने को मुश्किल नहीं समझती. उसे फिल्में चाहे छोटी हो या बड़ी किसी को भी करने से नहीं कतराती.
शौर्ट फिल्म ‘देवी’ में उसने एक साधारण और विनम्र महिला की भूमिका निभाई है. इस फिल्म के स्क्रीनिंग पर उसने बताया कि महिलाओं को देवी कहकर उन्हें उपर का दर्जा तो दिया जाता है, पर रियल लाइफ में उन्हें वह सम्मान नहीं मिलता जिसकी वह हकदार है, इसके लिए हर एक महिला को हो अपनी आवाज बुलंद करने की जरुरत होती है और ये तब तक करते रहना चाहिए जब तक उसे सही न्याय नहीं मिलता.
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काजोल कहती है कि मुझे कई लोगों ने पूछा कि मैं ये फिल्म क्यों कर रही हूं. मुझे इसकी स्क्रिप्ट के अलावा जो सन्देश है वह मेरे लिए बहुत रुचिपूर्ण था. इसमें 9 अभिनेत्रियों ने साथ मिलकर काम किया और यही बात हमारी महिलाओं में होनी चाहिए. वे अगर साथ मिलकर किसी बात का विरोध करती है, तो उसका परिणाम सामने निकलकर आयेंगा, लेकिन यही महिला अगर एक दूसरे से झगडती है या एक दूसरे को नीचा दिखाने की कोशिश करती है तो उन्हें उनका हक कभी नहीं मिल पायेगा.
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पूरे विश्व में महिलाओं के साथ भेदभाव होता है, पर समय के साथ-साथ उन्हें सफलता भी मिली है. काजोल कहती है कि महिलाओं ने आगे बढकर अपने आपको सिद्ध किया है और उन्हें सम्मान भी मिला है. कई ऐसे भी परिवार है जिन्होंने मेहनत कर अपने बेटों की सही परवरिश की है और वे अपनी बहन माँ और पत्नी को सम्मान देते है. हालाँकि ये काम धीरे-धीरे हो रहा है, पर मुझे उम्मीद है कि इसका प्रभाव अगले कुछ सालों में देखने को अवश्य मिलेगा.
भविष्य निर्माण में एक महिला ही जिम्मेदार होती है और इसे बचपन से उन्हें अपने बेटों को देनी चाहिए. इतना ही नहीं आज किसी भी अपराध की दोषी महिला को ही ठहराया जाता है. अगर महिला उससे निकलकर आगे बढकर न्याय मांगती है, तो वह समय रहते नहीं मिलता. इसमें कमजोरी हमारे सिस्टम की है, जिसे सुधारने की बहुत जरुरत है, जिसके लिए बहुत सारे लोगों को एक साथ मिलकर काम करने की जरुरत है.
फिल्म इंडस्ट्री में अभिनेता और अभिनेत्रियों के मेहनताना में काफी फर्क होने के बारें में पूछे जाने पर काजोल का कहना है कि केवल फिल्म इंडस्ट्री ही नहीं, हर क्षेत्र में महिलाओं को पुरुषों से कम आंका जाता है, क्योंकि ये पुरुष प्रधान समाज है. प्रैक्टिकल और सेंसिबल एप्रोच से ही इसे सुधारा जा सकता है. इसके अलावा हमारा समाज काफी हद तक जिम्मेदार है, जो महिला प्रधान फिल्मों को भी पुरुष प्रधान फिल्मों की तरह ही प्यार नहीं देती. इससे बदलाव आने में समय लग रहा है. आत्मसम्मान पाने के लिए खुद आवाज उठाने के अलावा हमारे बेटों को भी वैसी शिक्षा देने की जरुरत है.
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मी टू मूवमेंट (Me Too) भी इस दिशा में काफी कारगर सिद्ध हुई है. काजोल हंसती हुई कहती हैं कि इसके बाद से पुरुषों ने महिलाओं से 7 कदम की दूरी बना ली है. आज वे कुछ कहने से डरते है. ये सही कदम है, हर क्षेत्र में इस विषय पर ध्यान दिया जा रहा है. ये जरुरी था, आज पुरुष चाहे सेट पर हो या वर्किंग प्लेस पर किसी भी महिला से बात करने से पहले अपनी सीमा को समझने लगे है.